शनिवार, 30 दिसंबर 2023

पार्थिव श्रीगणेश पूजन का महत्त्व


अलग अलग कामनाओ की पूर्ति के लिए अलग अलग द्रव्यों से बने हुए गणपति की स्थापना की जाती हैं।


(1) श्री गणेश-  मिट्टी के पार्थिव श्री गणेश बनाकर पूजन करने से सर्व कार्य सिद्धि होती हे!                         


(2) हेरम्ब-  गुड़ के गणेश जी बनाकर पूजन करने से लक्ष्मी प्राप्ति होती हे। 

                                         

(3) वाक्पति-  भोजपत्र पर केसर से पर श्री गणेश प्रतिमा चित्र बनाकर।  पूजन करने से विद्या प्राप्ति होती हे।


 (4) उच्चिष्ठ गणेश-  लाख के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से स्त्री।  सुख और स्त्री को पतिसुख प्राप्त होता हे घर में ग्रह क्लेश निवारण होता हे। 


(5) कलहप्रिय-  नमक की डली या। नमक  के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से शत्रुओ में क्षोभ उतपन्न होता हे वह आपस में ही झगड़ने लगते हे। 


(6) गोबरगणेश-  गोबर के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से पशुधन में व्रद्धि होती हे और पशुओ की बीमारिया नष्ट होती है (गोबर केवल गौ माता का ही हो)।

                           

(7) श्वेतार्क श्री गणेश-  सफेद आक मन्दार की जड़ के श्री गणेश जी बनाकर पूजन करने से भूमि लाभ भवन लाभ होता हे। 

                       

(8) शत्रुंजय-  कडूए नीम की की लकड़ी से गणेश जी बनाकर पूजन करने से शत्रुनाश होता हे और युद्ध में विजय होती हे।

                           

(9) हरिद्रा गणेश-  हल्दी की जड़ से या आटे में हल्दी मिलाकर श्री गणेश प्रतिमा बनाकर पूजन करने से विवाह में आने वाली हर बाधा नष्ठ होती हे और स्तम्भन होता हे।


(10) सन्तान गणेश-  मक्खन के श्री गणेश जी बनाकर पूजन से सन्तान प्राप्ति के योग निर्मित होते हैं।


(11) धान्यगणेश- सप्तधान्य को पीसकर उनके श्रीगणेश जी बनाकर आराधना करने से धान्य व्रद्धि होती हे अन्नपूर्णा माँ प्रसन्न होती हैं।    


(12) महागणेश-  लाल चन्दन की लकड़ी से दशभुजा वाले श्री गणेश जी प्रतिमा निर्माण कर के पूजन से राज राजेश्वरी श्री आद्याकालीका की शरणागति प्राप्त होती हैं।

रविवार, 13 अगस्त 2023

१) जन्म कुंडली के केन्द्र भावों में यदि कोई ग्रह न हो (केंद्र भाव खाली हों) तो उसका फलित कैसे किया जाता है? २) जन्म कुंडली के केन्द्र भावों में यदि पाप ग्रह ही हों या सिर्फ़ पाप ग्रहों का ही प्रभाव दृष्टिगत हो तो उसका फलित कैसे किया जाता है?

केंद्र के स्वामी अपने स्वभाव को भूल जाते हैं और जैसे स्वभाव वाले ग्रह से संबंध हो वैसा फल देते हैं। त्रिकोण में हो यह त्रिकोण के स्वामी के साथ संबंध होने पर फल विशेष शुभ हो जाता है। यदि किसी दूसरे पाप स्थान 3,6,8,12 में हो या उनके स्वामी के साथ हो जैसे 3,6,8,12 के स्वामी के साथ संबंध हो जाए तो सामान्य रूप से फल देता है। 

शुभ ग्रह गुरु शुक्र केंद्रेश हैं, तो बुरे हैं। परंतु बुध केंद्रेश हो तो शुक्र की अपेक्षा कम बुराई करेगा। चंद्र केंद्रेश हो तो बुध से कम बुराई करेगा अर्थात चंद्र बुध शुक्र गुरु उत्तरोत्तर बुराई में बुरे हैं। 

स्वभाविक पाप ग्रह यदि केंद्रेश होकर त्रिषडाय (3-6-11) के भी स्वामी हो जाएं तो पाप कारक हो जाते हैं। 

पाप ग्रहों के केंद्रेश होने में इतना शुभत्व आ जाता है कि वह अपने पाप फल को नहीं देता यदि वह उस समय त्रिकोणेश भी हो जावे तो उसे शुभ फल देने का बल आ जाता है। 

जन्म कुंडली के केंद्र भावों में यदि पाप ग्रह ही हो या सिर्फ पाप ग्रहों का प्रभाव दृष्टिगत हो तो इसका फलित कैसे किया जाता है

1,4,7,10 स्थान क्रम से उत्तरोत्तर बली है। जैसे:- पाप ग्रह 1,4 भाव का स्वामी हो जाए तो लग्न की अपेक्षा चतुर्थेश शुभ फल देने में अधिक बली होगा। 

शनि की राशि 10,11 लग्न में हो और शनी उसे देख रहा हो तो लग्न बली हो जाता है। और शनी अपनी दशा अंतर्दशा में शुभ फल देता है। 

केंद्र में पाप ग्रह अशुभ फल देते हैं और आयु कम करते हैं। 


 कुंडली के केंद्र भावों में यदि कोई ग्रह न हो (केन्द्र भाव खाली हों ) तो उसका फलित निम्नानुसार भी किया जाता है :---

1केन्द्र भाव लग्न, चतुर्थ, सप्तम तथा दशम भाव होते हैं। प्रथम भाव, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव तथा दशम भाव होते हैं। इन चारों भावों मे जो--जो राशि है,  उस राशि का स्वामी ग्रह जिन जिन भावों में स्थित होते हैं उनके अनुसार केन्द्र के भावों का फलित किया जाता है। यदि केन्द्र में स्थित राशि का स्वामी ग्रह यदि त्रिकोण भाव में स्थित हो तो शुभ फल प्राप्त होता  है। यदि केन्द्र में स्थित राशि का स्वामी ग्रह षष्ट, अष्ठम या द्वादश भाव मे स्थित हो तो शुभ फल मे कमी आयेगी । 

*केन्द्र के भावों मे लग्न, चतुर्थ, सप्तम दशम भाव पर जिस ग्रह की दृष्टि होती है के अनुसार भी केन्द्र के भाव का फलित किया जाता है। 

2-जन्म कुंडली के केन्द्र भावो मे यदि पाप ग्रह हो तो वह अपना पाप फल स्थगित कर देंगे। जैसे तुला लग्न की कुंडली में मंगल सप्तमेश है और द्वितीयेश भी है। द्वितीयेश होकर सम है और सप्तमेश होकर अपना अशुभ फल स्थगित कर देगा। इसलिए तुला लग्न में मंगल मारक का फल नहीं देता है। 

यदि केन्द्र में स्थित भावों पर पाप ग्रह की दृष्टि हो तो पाप ग्रह की स्थिति के अनुसार फलित बताना चाहिए ।केन्द्र मे स्थित भाव मे स्थित राशि और दृष्टि डालने वाले  पाप ग्रह किस भाव का स्वामी ग्रह है तथा लग्नेश का मित्र है या शत्रु है या सम भाव रखता है।  जिस भाव पर दृष्टि डाल रहा है उस भाव मे स्थित राशि से दृष्टि डालने वाले पाप ग्रह के मध्य मित्रता है या शत्रुताहै या सम भाव रखता है के अनुसार फलप्राप्त होगा।

शनिवार, 6 मई 2023

श्री श्याम ज्योतिष संस्थान : एक सूचना

 1 .आप सभी शुभचिंतको को सूचित किया जाता है की कल दिनांक 07/05/2023से इस ज्योतिष ब्लॉग हर रविवार को श्याम 4:00 pm से 5:00 pmके बीच सक्रिय रहूँगा | उस समय आप ब्लॉग  पर टिप्पणी के जरिये मुझसे संपर्क साध सकते है |मेरे द्वारा सभी को जवाब देने का प्रयास रहेगा |

2. रविवार के दिन ही निशुल्क परामर्श के लिए प्रातः 8:00 से 9:00 बजे के बीच ही whatsapp नंबर 9782316887 पर मेसेज करना होगा |आपके मेसेज में नाम ,जन्म दिनांक ,जन्म समय और जन्म स्थान बताना होगा और साथ में कोई कुंडली हो तो वो भी सेंड कर सकते है | अपना एक प्रश्न भी लिखना होगा जिसका आप जवाब चाहते है |याद रहे सिर्फ एक प्रश्न |अतिरिक्त प्रश्न के लिए आपको फीस देनी होगी |

3.प्रथम दो मेसेज करने वाले संपर्ककर्ताओ को परामर्श निशुल्क दिया जाएगा |बाकि संपर्ककर्ताओं को न्यूनतम फीस के द्वारा परामर्श दिया जाएगा |परामर्श शुल्क मुख्य फीस से 50% कम 251रुपये होगा |

4. जो भी व्यक्ति रविवार को संपर्क करता है  प्रातः 8:00 से 9:00 बजे के बीच में उसे ही यह लाभ दिया जाएगा |

5 .मेरे द्वारा परामर्श देने का समय श्याम 4.00से 5.00 बजे तक ही होगा |इस दौरान यदि सभी के जवाब नहीं दे पाया तो अगले दिन उनसे संपर्क कर के ही जरुर जवाब दिया जाएगा |

6 परामर्श का निर्धारित शुल्क पहले ही जमा करना होगा |शुल्क के बारे में जानकारी ब्लॉग पर पूर्व में ही मेरे द्वारा बताया जा चुका है | 

गुरुवार, 28 अक्तूबर 2021

श्री श्याम ज्योतिष संस्थान : ज्योतिषीय उपाय के लिए सदा आपके साथ

 जीवन में उतार चढाव आते रहते है | किसी भी समस्या का ज्योतिषीय कारण और उपाय के लिए मुझे आप 9782316887 पर व्हाट्स अप करे या मुझे कॉल करें | मेरी फीस 501 रुपये है | पहले पूरी फीस मुझे किसी भी माध्यम से phone pay , google pay या  pay tm करे ,फीस जमा की रशीद भी डाले | थोडा समय दे निश्चित आपकी समस्या का समाधान किया जाएगा |

                                                                     ज्योतिषी रवि व्यास |

सोमवार, 3 जून 2019

केमद्रुम योग

॥ केमद्रुमे मलिन दुःखितनीचनिस्वो नृपजोपी ॥

केमद्रुम योग में जन्म हो तो राजा के यहाँ  जन्म पाया हुआ मनुष्य भी मलिन स्वभाव का वा मैला रहने वाला, दुःखी नीच प्रकृति वाला नीच दर्जे का और निर्धन मनुष्य होता है अर्थात्  साधारण मनुष्य के भंग रहित यह योग हो तो वह दरिद्री हुए बिना नहीं रहता।
यदि चन्द्रमा के दोनों तरफ़ कोई ग्रह न हो तो केमद्रुम योग बनता है। जिसके फलस्वरूप जातक गन्दा दुःखी, अनुचित काम करने वाला, ग़रीब, दूसरे पर निर्भर, दुष्ट और ठग होगा।

एक मान्यता यह भी है कि जन्म लग्न या चन्द्रमा से केन्द्र में ग्रह हों या चन्द्रमा किसी ग्रह से युक्त हो तो केमद्रुम योग नहीं बनता।
कुछ अन्य का मत है कि योग केन्द्र और नवांश से बनते हैं जो कि सामान्यतः स्वीकार्य नहीं है। वाराहमिहिर इस बात पर जोर देते हैं कि राजकीय परिवारों में पैदा होने वाले जातकों की कुंडली में इस प्रकार के योग बनते हों तो उनके मामले में साधारण परिवारों में पैदा होने वाले जातकों की अपेक्षा अधिक दुर्भाग्य की भविष्यवाणी करनी चाहिये।
दुःख का अर्थ शारीरिक तथा मानसिक दुःख होता  है। मूलतः नीच शब्द का प्रयोग किया जाता है और इससे ऐसे कार्यों का सम्बन्ध होता है जो धर्म, नैतिकता और सामाजिक व्यवस्था में मना है और इसे अपमानजनक माना जाता है।

केमद्रुम योग के भेद

केमद्रुम योग केवल चन्द्र के व्यय दूसरे स्थान में कोई भी ग्रह नहीं होने से ही होता है ऐसा नहीं है। जातक पारिजात में केमद्रुम के १३ भेद बताये हैं इनमे से कोई भी एक प्रकार का योग हो तो केमद्रुम योग हो जाता है।
 यह भेद इस प्रकार से हैं :-

1 लग्न में किंवा सप्तम में चन्द्रमा गया हो और उस पर गुरु की दृष्टि न हो तो केमद्रुम योग होता है। सर्वग्रह बलहीन व अष्टकवर्ग में ४ बिंदु से युक्त हो तो यह योग बलवान हो जाता है।
2 चन्द्रमा सूर्य से युत हो के नीच राशि में गये हुए ग्रह से दृष्ट हो और पापग्रह के नवांश में गया हो तो दरिद्र योग होता है।
3 क्षीण चन्द्रमा अष्टम स्थान में स्थित होकर पापग्रह से दृष्ट किंवा युत हो और रात्रि समय में जन्म हो तो केमद्रुम योग होता है।
4 चन्द्रमा राहु आदि पापग्रहों से पीड़ित होकर पापग्रहों से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग होता है।
5 लग्न से किंवा चन्द्रमा से चारों केन्द्र स्थान में पापग्रह गयें हों तो केमद्रुम योग बनता है।
6 चन्द्र पर बलहीन पराजित शुभग्रहों की दृष्टि हो और जन्म लग्न राहु आदि पापग्रहों से पीड़ित हो तो केमद्रुम योग होता है।
7 तुला राशि का चन्द्रमा शत्रुग्रह की राशि के वर्ग में हो और नीच तथा शत्रु राशि में गए हुए ग्रह से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग होता है।
8 नीच किंवा शत्रु राशिगत चन्द्रमा १, ४, ७, १० किंवा ९, ५ भाव में गया हो और चन्द्रमा से ६, ८, १२ वे स्थान में गुरु गया हो तो दरिद्र योग होता है।
9 चर राशि में चर राशि के ही नवमांश में गया हुआ चन्द्रमा पापग्रह के नवमांश में हो और अपने शत्रुग्रह से दृष्ट हो गुरु की दृष्टि से रहित हो तो महादरिद्र योग होता है।
10 नीच शत्रु पापग्रह की राशि नवांशादि वर्ग में गए हुए शनि शुक्र एक राशि से युक्त हो किंवा परस्पर दृष्ट हो तो केमद्रुम योग होता है। इस योग में राजवंश में जन्म पाया हुआ भी दरिद्री होता है।
11 पापग्रह की राशि में गया हुआ निर्बल चन्द्रमा पापग्रह से युक्त हो और पापग्रह के ही नवमांश में गया हो और रात्रि समय का जन्म हो तथा उसको दशमेश देखता हो तो केमद्रुम योग होता है।
12 नीच राशि के नवमांश में गया हुआ चन्द्रमा पाप ग्रह से युक्त हो के नवमेश से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग होता है।
13 रात्रि समय का जन्म हो और क्षीण चन्द्रमा नीच राशि में गया हुआ हो तो केमद्रुम योग होता है।
जिनके जन्म काल में ये दरिद्र योग [केमद्रुम] होता है उनका राजयोग भंग होता है।

केमद्रुम भंग योग -

1 जातक पारिजात में लिखा है। जिनके समय में
चन्द्रमा अथवा शुक्र केंद्र स्थान में स्थित हो और गुरु से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग का भंग [दरिद्र योग नहीं] करता है। 
2 चन्द्रमा शुभग्रह से युत हो अथवा शुभग्रहों के मध्य में गया हो और गुरु से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग नहीं होता है।
3 चन्द्रमा अधि मित्र राशि का किंवा अपनी उच्च राशि का हो अथवा अधिमित्र तथा अपनी उच्चराशि के नवमांश में गया हो और गुरु से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग नहीं होता है।
4 पूर्ण चन्द्रमा शुभ ग्रह से युत होकर बुध की उच्चराशि में गया हो और गुरु से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग नहीं होता है।
5 चन्द्रमा सर्व ग्रहों से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग का वहन भंग करता है।  

मंगलवार, 22 जनवरी 2019

सर्वार्थ सिद्धि योग

सर्वार्थ सिद्धि योग अत्यंत शुभ योग माना जाता है। यह तीन शब्दों से मिलकर बना है। सर्वार्थ यानि सभी, सिद्धि यानि लाभ व प्राप्ति एवं योग से तात्पर्य संयोजन, अत: हर प्रकार से लाभ की प्राप्ति को ही सर्वार्थ सिद्धि योग कहा गया है। यह एक शुभ योग है इसलिए इस योग में संपन्न होने वाले कार्यों से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

सर्वार्थ सिद्धि योग एक निश्चित वार और निश्चित नक्षत्र के संयोग से बनता है। यह योग शुभ कार्यों की शुरुआत के लिए विशेष फलदायी होता है और समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करता है। वार और नक्षत्र के ये संयोग हमेशा निर्धारित रहते हैं। सर्वार्थ सिद्धि योग सभी शुभ कार्यों के शुभारंभ के लिए उपयुक्त समय होता है।

नक्षत्र और वार के संयोग जिनमें सर्वार्थ सिद्धि योग निर्मित होते हैं :

1.  रविवार- अश्विनी, हस्त, पुष्य, मूल, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपद

2.  सोमवार- श्रवण, रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, अनुराधा

3.  मंगलवार- अश्विनी, उत्तरा भाद्रपद, कृतिका, अश्लेषा

4.  बुधवार- रोहिणी, अनुराधा, हस्त, कृतिका, मृगशिरा

5.  गुरुवार- रेवती, अनुराधा, अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य

6.  शुक्रवार- रेवती, अनुराधा, अश्विनी, पुनर्वसु, श्रवण

7.  शनिवार- श्रवण, रोहिणी, स्वाति

सर्वार्थ सिद्धि योग किसी भी नए तरह का करार करने का सबसे अच्छा समय होता है। इस योग के प्रभाव से नौकरी, परीक्षा, चुनाव, खरीदी-बिक्री से जुड़े कार्यों में सफलता मिलती है। भूमि, गहने और कपड़ों की ख़रीददारी में सर्वार्थ सिद्धि योग अत्यंत लाभकारी है। इसके प्रभाव से मृत्यु योग जैसे कष्टकारी योग के दुष्प्रभाव भी नष्ट हो जाते हैं। सर्वार्थ सिद्धि योग में हर वस्तु की खरीददारी शुभ मानी जाती है लेकिन मंगलवार के दिन नए वाहन और शनिवार के दिन इस योग में लोहे का सामान खरीदना अशुभ माना जाता है। सर्वार्थ सिद्धि योग को एक शुभ योग की संज्ञा दी गई है। यह योग एक ऐसा सुनहरा अवसर लेकर आता है जिसके प्रभाव से आपकी समस्त इच्छा और सपने पूर्ण होते हैं।

गुरुवार, 3 जनवरी 2019

वास्तु के अनुसार कैसा हो घर?

1.घर का मुख्य द्वार चार ईशान, उत्तर, पूर्व और पश्चिम में से किसी एक दिशा में हो।

2.घर के सामने आँगन और पीछे भी आँगन हो जिसके बीच में तुलसी का एक पौधा लगा हो।

3.घर के सामने या निकट तिराहा-चौराह नहीं होना चाहिए।

4.घर का दरवाजा दो पल्लों का होना चाहिए। अर्थात बीच में से भीतर खुलने वाला हो। दरवाजे की दीवार के दाएँ शुभ और बाएँ लाभ लिखा हो।

5.घर के प्रवेश द्वार के ऊपर स्वस्तिक अथवा 'ॐ' की आकृति लगाएँ।

6 .घर के अंदर आग्नेय कोण में किचन, ईशान में प्रार्थना-ध्यान का कक्ष हो, नैऋत्य कोण में शौचालय, दक्षिण में भारी सामान रखने का स्थान आदि हो।

7.घर में बहुत सारे देवी-देवताओं के चित्र या मूर्ति ना रखें। घर में मंदिर ना बनाएँ।

8.घर के सारे कोने और ब्रह्म स्थान (बीच का स्थान) खाली रखें।

9.घर की छत में किसी भी प्रकार का उजालदान ना रखें।

10.घर हो मंदिर के आसपास तो घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।

11.घर में किसी भी प्रकार की नाकारात्मक वस्तुओं का संग्रह ना करें ।

12.घर में सीढ़ियाँ विषम संख्या (5,7, 9) में होनी चाहिए।

13.उत्तर, पूर्व तथा उत्तर-पूर्व (ईशान) में खुला स्थान अधिक रखना चाहिए।

14. घर के उपर केसरिया धवज लगाकर रखें।

16. घर में किसी भी तरह के नकारात्मक कांटेदार पौधे या वृक्ष रोपित ना करें।

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