सोमवार, 3 जून 2019

केमद्रुम योग

॥ केमद्रुमे मलिन दुःखितनीचनिस्वो नृपजोपी ॥

केमद्रुम योग में जन्म हो तो राजा के यहाँ  जन्म पाया हुआ मनुष्य भी मलिन स्वभाव का वा मैला रहने वाला, दुःखी नीच प्रकृति वाला नीच दर्जे का और निर्धन मनुष्य होता है अर्थात्  साधारण मनुष्य के भंग रहित यह योग हो तो वह दरिद्री हुए बिना नहीं रहता।
यदि चन्द्रमा के दोनों तरफ़ कोई ग्रह न हो तो केमद्रुम योग बनता है। जिसके फलस्वरूप जातक गन्दा दुःखी, अनुचित काम करने वाला, ग़रीब, दूसरे पर निर्भर, दुष्ट और ठग होगा।

एक मान्यता यह भी है कि जन्म लग्न या चन्द्रमा से केन्द्र में ग्रह हों या चन्द्रमा किसी ग्रह से युक्त हो तो केमद्रुम योग नहीं बनता।
कुछ अन्य का मत है कि योग केन्द्र और नवांश से बनते हैं जो कि सामान्यतः स्वीकार्य नहीं है। वाराहमिहिर इस बात पर जोर देते हैं कि राजकीय परिवारों में पैदा होने वाले जातकों की कुंडली में इस प्रकार के योग बनते हों तो उनके मामले में साधारण परिवारों में पैदा होने वाले जातकों की अपेक्षा अधिक दुर्भाग्य की भविष्यवाणी करनी चाहिये।
दुःख का अर्थ शारीरिक तथा मानसिक दुःख होता  है। मूलतः नीच शब्द का प्रयोग किया जाता है और इससे ऐसे कार्यों का सम्बन्ध होता है जो धर्म, नैतिकता और सामाजिक व्यवस्था में मना है और इसे अपमानजनक माना जाता है।

केमद्रुम योग के भेद

केमद्रुम योग केवल चन्द्र के व्यय दूसरे स्थान में कोई भी ग्रह नहीं होने से ही होता है ऐसा नहीं है। जातक पारिजात में केमद्रुम के १३ भेद बताये हैं इनमे से कोई भी एक प्रकार का योग हो तो केमद्रुम योग हो जाता है।
 यह भेद इस प्रकार से हैं :-

1 लग्न में किंवा सप्तम में चन्द्रमा गया हो और उस पर गुरु की दृष्टि न हो तो केमद्रुम योग होता है। सर्वग्रह बलहीन व अष्टकवर्ग में ४ बिंदु से युक्त हो तो यह योग बलवान हो जाता है।
2 चन्द्रमा सूर्य से युत हो के नीच राशि में गये हुए ग्रह से दृष्ट हो और पापग्रह के नवांश में गया हो तो दरिद्र योग होता है।
3 क्षीण चन्द्रमा अष्टम स्थान में स्थित होकर पापग्रह से दृष्ट किंवा युत हो और रात्रि समय में जन्म हो तो केमद्रुम योग होता है।
4 चन्द्रमा राहु आदि पापग्रहों से पीड़ित होकर पापग्रहों से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग होता है।
5 लग्न से किंवा चन्द्रमा से चारों केन्द्र स्थान में पापग्रह गयें हों तो केमद्रुम योग बनता है।
6 चन्द्र पर बलहीन पराजित शुभग्रहों की दृष्टि हो और जन्म लग्न राहु आदि पापग्रहों से पीड़ित हो तो केमद्रुम योग होता है।
7 तुला राशि का चन्द्रमा शत्रुग्रह की राशि के वर्ग में हो और नीच तथा शत्रु राशि में गए हुए ग्रह से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग होता है।
8 नीच किंवा शत्रु राशिगत चन्द्रमा १, ४, ७, १० किंवा ९, ५ भाव में गया हो और चन्द्रमा से ६, ८, १२ वे स्थान में गुरु गया हो तो दरिद्र योग होता है।
9 चर राशि में चर राशि के ही नवमांश में गया हुआ चन्द्रमा पापग्रह के नवमांश में हो और अपने शत्रुग्रह से दृष्ट हो गुरु की दृष्टि से रहित हो तो महादरिद्र योग होता है।
10 नीच शत्रु पापग्रह की राशि नवांशादि वर्ग में गए हुए शनि शुक्र एक राशि से युक्त हो किंवा परस्पर दृष्ट हो तो केमद्रुम योग होता है। इस योग में राजवंश में जन्म पाया हुआ भी दरिद्री होता है।
11 पापग्रह की राशि में गया हुआ निर्बल चन्द्रमा पापग्रह से युक्त हो और पापग्रह के ही नवमांश में गया हो और रात्रि समय का जन्म हो तथा उसको दशमेश देखता हो तो केमद्रुम योग होता है।
12 नीच राशि के नवमांश में गया हुआ चन्द्रमा पाप ग्रह से युक्त हो के नवमेश से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग होता है।
13 रात्रि समय का जन्म हो और क्षीण चन्द्रमा नीच राशि में गया हुआ हो तो केमद्रुम योग होता है।
जिनके जन्म काल में ये दरिद्र योग [केमद्रुम] होता है उनका राजयोग भंग होता है।

केमद्रुम भंग योग -

1 जातक पारिजात में लिखा है। जिनके समय में
चन्द्रमा अथवा शुक्र केंद्र स्थान में स्थित हो और गुरु से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग का भंग [दरिद्र योग नहीं] करता है। 
2 चन्द्रमा शुभग्रह से युत हो अथवा शुभग्रहों के मध्य में गया हो और गुरु से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग नहीं होता है।
3 चन्द्रमा अधि मित्र राशि का किंवा अपनी उच्च राशि का हो अथवा अधिमित्र तथा अपनी उच्चराशि के नवमांश में गया हो और गुरु से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग नहीं होता है।
4 पूर्ण चन्द्रमा शुभ ग्रह से युत होकर बुध की उच्चराशि में गया हो और गुरु से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग नहीं होता है।
5 चन्द्रमा सर्व ग्रहों से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग का वहन भंग करता है।  

मंगलवार, 22 जनवरी 2019

सर्वार्थ सिद्धि योग

सर्वार्थ सिद्धि योग अत्यंत शुभ योग माना जाता है। यह तीन शब्दों से मिलकर बना है। सर्वार्थ यानि सभी, सिद्धि यानि लाभ व प्राप्ति एवं योग से तात्पर्य संयोजन, अत: हर प्रकार से लाभ की प्राप्ति को ही सर्वार्थ सिद्धि योग कहा गया है। यह एक शुभ योग है इसलिए इस योग में संपन्न होने वाले कार्यों से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

सर्वार्थ सिद्धि योग एक निश्चित वार और निश्चित नक्षत्र के संयोग से बनता है। यह योग शुभ कार्यों की शुरुआत के लिए विशेष फलदायी होता है और समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करता है। वार और नक्षत्र के ये संयोग हमेशा निर्धारित रहते हैं। सर्वार्थ सिद्धि योग सभी शुभ कार्यों के शुभारंभ के लिए उपयुक्त समय होता है।

नक्षत्र और वार के संयोग जिनमें सर्वार्थ सिद्धि योग निर्मित होते हैं :

1.  रविवार- अश्विनी, हस्त, पुष्य, मूल, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपद

2.  सोमवार- श्रवण, रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, अनुराधा

3.  मंगलवार- अश्विनी, उत्तरा भाद्रपद, कृतिका, अश्लेषा

4.  बुधवार- रोहिणी, अनुराधा, हस्त, कृतिका, मृगशिरा

5.  गुरुवार- रेवती, अनुराधा, अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य

6.  शुक्रवार- रेवती, अनुराधा, अश्विनी, पुनर्वसु, श्रवण

7.  शनिवार- श्रवण, रोहिणी, स्वाति

सर्वार्थ सिद्धि योग किसी भी नए तरह का करार करने का सबसे अच्छा समय होता है। इस योग के प्रभाव से नौकरी, परीक्षा, चुनाव, खरीदी-बिक्री से जुड़े कार्यों में सफलता मिलती है। भूमि, गहने और कपड़ों की ख़रीददारी में सर्वार्थ सिद्धि योग अत्यंत लाभकारी है। इसके प्रभाव से मृत्यु योग जैसे कष्टकारी योग के दुष्प्रभाव भी नष्ट हो जाते हैं। सर्वार्थ सिद्धि योग में हर वस्तु की खरीददारी शुभ मानी जाती है लेकिन मंगलवार के दिन नए वाहन और शनिवार के दिन इस योग में लोहे का सामान खरीदना अशुभ माना जाता है। सर्वार्थ सिद्धि योग को एक शुभ योग की संज्ञा दी गई है। यह योग एक ऐसा सुनहरा अवसर लेकर आता है जिसके प्रभाव से आपकी समस्त इच्छा और सपने पूर्ण होते हैं।

गुरुवार, 3 जनवरी 2019

वास्तु के अनुसार कैसा हो घर?

1.घर का मुख्य द्वार चार ईशान, उत्तर, पूर्व और पश्चिम में से किसी एक दिशा में हो।

2.घर के सामने आँगन और पीछे भी आँगन हो जिसके बीच में तुलसी का एक पौधा लगा हो।

3.घर के सामने या निकट तिराहा-चौराह नहीं होना चाहिए।

4.घर का दरवाजा दो पल्लों का होना चाहिए। अर्थात बीच में से भीतर खुलने वाला हो। दरवाजे की दीवार के दाएँ शुभ और बाएँ लाभ लिखा हो।

5.घर के प्रवेश द्वार के ऊपर स्वस्तिक अथवा 'ॐ' की आकृति लगाएँ।

6 .घर के अंदर आग्नेय कोण में किचन, ईशान में प्रार्थना-ध्यान का कक्ष हो, नैऋत्य कोण में शौचालय, दक्षिण में भारी सामान रखने का स्थान आदि हो।

7.घर में बहुत सारे देवी-देवताओं के चित्र या मूर्ति ना रखें। घर में मंदिर ना बनाएँ।

8.घर के सारे कोने और ब्रह्म स्थान (बीच का स्थान) खाली रखें।

9.घर की छत में किसी भी प्रकार का उजालदान ना रखें।

10.घर हो मंदिर के आसपास तो घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।

11.घर में किसी भी प्रकार की नाकारात्मक वस्तुओं का संग्रह ना करें ।

12.घर में सीढ़ियाँ विषम संख्या (5,7, 9) में होनी चाहिए।

13.उत्तर, पूर्व तथा उत्तर-पूर्व (ईशान) में खुला स्थान अधिक रखना चाहिए।

14. घर के उपर केसरिया धवज लगाकर रखें।

16. घर में किसी भी तरह के नकारात्मक कांटेदार पौधे या वृक्ष रोपित ना करें।

बुधवार, 2 जनवरी 2019

शनि शुक्र दशांतर एक विचित्र नियम

कालिदास कृत उत्तरकालामृत नामक प्रसिद्द ज्योतिष ग्रन्थ में एक विचित्र नियम का उल्लेख किया गया है।
यह नियम है शनि और शुक्र का परस्पर दशांतर ।इस नियम का उत्तरकालामृत के अलावा अन्य किसी भी ज्योतिष ग्रन्थ में कोई विवरण नहीं मिलता।

इस नियम के अनुसार यदि शनि और शुक्र जन्मकुंडली में योगकारक हों और अवस्था में मृत ना हों तो अपने परस्पर दशांतर में महान दुर्भाग्य घटित कर देते हैं।यह ऐसा दशांतर होता है जो जातक को धूल चटा देता है सुख समृद्धि शांति सब हवा में उड़ जाती है जातक के चारों ओर दुखों का तांडव होने लगता है।
इस दशांतर की भयानकता तब और बढ़ जाती है जब शनि लग्न अथवा चंद्र से चतुर्थ अष्टम और दशम भाव में गोचर कर रहा हो।
लेकिन यह दोनों ग्रह जन्मकुंडली में निर्बल और पीड़ित हों नीच के हों और अवस्था में मृत हों तो परस्पर दशांतर में महान सौभाग्य प्रदान करते हैं रंक से राजा बन जाता है जातक मिट्टी को छूता है तो वह सोना बन जाती है सब तरफ से शुभ समाचार प्राप्त होने लगते हैं महा राजयोग घटित हो जाता है।
इनमें से एक निर्बली और दूसरा योगकारक हो तो परस्पर दशांतर योगकारक ग्रह की क्षमता अनुसार शुभ फल करता है।

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