बुधवार, 2 जनवरी 2019

शनि शुक्र दशांतर एक विचित्र नियम

कालिदास कृत उत्तरकालामृत नामक प्रसिद्द ज्योतिष ग्रन्थ में एक विचित्र नियम का उल्लेख किया गया है।
यह नियम है शनि और शुक्र का परस्पर दशांतर ।इस नियम का उत्तरकालामृत के अलावा अन्य किसी भी ज्योतिष ग्रन्थ में कोई विवरण नहीं मिलता।

इस नियम के अनुसार यदि शनि और शुक्र जन्मकुंडली में योगकारक हों और अवस्था में मृत ना हों तो अपने परस्पर दशांतर में महान दुर्भाग्य घटित कर देते हैं।यह ऐसा दशांतर होता है जो जातक को धूल चटा देता है सुख समृद्धि शांति सब हवा में उड़ जाती है जातक के चारों ओर दुखों का तांडव होने लगता है।
इस दशांतर की भयानकता तब और बढ़ जाती है जब शनि लग्न अथवा चंद्र से चतुर्थ अष्टम और दशम भाव में गोचर कर रहा हो।
लेकिन यह दोनों ग्रह जन्मकुंडली में निर्बल और पीड़ित हों नीच के हों और अवस्था में मृत हों तो परस्पर दशांतर में महान सौभाग्य प्रदान करते हैं रंक से राजा बन जाता है जातक मिट्टी को छूता है तो वह सोना बन जाती है सब तरफ से शुभ समाचार प्राप्त होने लगते हैं महा राजयोग घटित हो जाता है।
इनमें से एक निर्बली और दूसरा योगकारक हो तो परस्पर दशांतर योगकारक ग्रह की क्षमता अनुसार शुभ फल करता है।

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