शुक्रवार, 24 नवंबर 2017

सुखमय वैवाहिक जीवन जीने के उपाय

वैवाहिक जीवन मे क्यों आती है परेशनिया :ज्योतिष के लिहाज से शुक्र या गुरु के कमज़ोर होने से वैवाहिक जीवन मे समस्याये आती है .

सुखी वैवाहिक जीवन के उपाय् :पत्नी को पति के बायी तरफ ही सोना चाहिए .

सोने के लिए हमेशा एक ही लंबे तकिये का प्रयोग करे .2 single गद्दे का प्रयोग ना करे.

कमरे का रंग ह्ल्का गुलाबी या ह्ल्का हरा होना चाहिए .पीला या इससे मिलता जुलता रंग कभी ना प्रयोग मे लाये .

शुक्रवर को पति पत्नी को एक साथ ताजे फूल लाने चाहिए और उनको अपने बेड के सिरहाने रखने चाहिए .

सोते समय पूर्व या south की तरफ सिर करके सोये .पैरो की तरफ बहते हुए जल की painting लगाये .सोने के कमरे मे भगवान की तस्वीर ना लगाये .

शुक्रवार को कोई हल्की सुगंध वाला perfume खरीदे और उसे पति पत्नी प्रयोग करे .तेज सुगंध से बचे .

शुक्रवार के दिन देवी को सफेद रंग की मिठाई का भोग लगाये ,उसके बाद पति पत्नी साथ मे उस प्रसाद को ग्रहन करे .खट्टी चीजो का प्रयोग शुक्रवार को ना करे .

नव ग्रहों की अनुकूलता

 *कुंडली ना हो तो भी ग्रहों को अनुकूल किया जा सकता है?*

   *अक्सर इंसान बहुत सी परेशानी से  जूझता रहता है और सोचता है के काश उसके पास जन्म कुंडली हो तो किसी से पूछ लेता।*

   *अगर इन्सान अपने आचार व्यवहार सही रखे तो ग्रह  अपने आप ही अनुकूल हो जाते है।*

*1 :- माता-पिता की सेवा। (सूर्य-चन्द्र)*

*2 :- गुरु और वृद्ध जानो के प्रति सेवा और आदर भाव। (वृहस्पति)*

*3 :- देश -भक्ति की भावना। (शनि )*

*4 :- मजबूर और अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के प्रति स्नेह भाव (शनि )*

*5:- अपने रक्त -सम्बन्धियों ,बहन-भाई आदि के साथ स्नेह और कर्तव्य भाव। (मंगल)*

*6 :- नारी जाति के प्रति सम्मान और श्रद्धा भाव। (शुक्र)*

*7 :- मधुर और अच्छी भाषा का प्रयोग। (बुध)*

*8 :- इस धरा के समस्त प्राणी -मात्र के प्रति दया भाव। (राहू-केतु)*

गुरुवार, 23 नवंबर 2017

आदत और ग्रह विचार

यदि आप अपनी आदत बदलते हैं तो ग्रह भी सुधरने लगते हैं।
1- यदि आप मंदिर की या किसी धर्म स्थान की सफाई करते हैं तो ऐसे करने से आपके गुरु ग्रह अच्छे होते हैं और अच्छे फल देने लगते हैं।

2- यदि आप अपने जुठे बर्तन उठाकर उन्हें उनके सही स्थान में रखते हैं या धो देते हैं तो ऐसा करने से चन्द्रमा और शनि अच्छे फल देते हैं।
3- देर रात जागने से चन्द्रमा बुरे फल देने लगते हैं। इसीलिए आप जल्दी सोने की आदत डाल लेते हैं तो चंद्रमा शुभ फल देने लगता है।

4- यदि कोई बाहर से आये और आप उसे स्वच्छ पानी पिलाते हैं तो ऐसा करने से राहु ठीक होता है, और बुरे प्रभाव नहीं देता।

5- यदि आप स्त्रियों और पत्नी का सम्मान और इज़्ज़त करते हैं तो आपका शुक्र खुदबखुद अच्छा होता चला जाता है।

6- पिता और पिता तुल्य आदमियों की सेवा करने से सूर्य के दोष दूर होते हैं।

7- लाल गाय की सेवा करने से घर में आये मेहमानो को शर्बद पिलाने और मीठा खिलाने से मंगल के दोष दूर होते हैं।

8- छोटे बच्चों को खुश रखने से बुआ बहन से सम्बन्ध अच्छे रखने से बुध मजबूत रहते हैं।

9- कव्वों को भोजन देने से, मजदूर और नौकरों को खुश रखने से, भिखारियों को जरूरत का सामान या पैसे देने से शनिदेव प्रशन्न रहते हैं।

10- कुत्तों की सेवा और भोजन देने से, जरूरतमंद को कम्बल का दान देने से केत अपना शुभ प्रभाव बनाये रखता है।

नवम भाव से भाग्य विचार

नवम भाव का कारक ग्रह गुरु होता है| नवम भाव से मुख्य चार प्रकार के विचार होते हैं|
१. एवं नवम भाव का कारक ग्रह बलि हो ६,८,१२ भाव में स्थित न हो, केंद्र-त्रिकोण में स्थित हो तो पूर्ण फल मिलता है|

२. यदि नवम भाव में स्थित ग्रह नवम भाव के राशि स्वामी के मित्र हो तथा शुभ-स्थानों का स्वामी होकर नवम भाव में स्थित हो तो पूर्ण फल प्रदान करता है|

३. यदि नवम भाव का स्वामी बलि होकर केंद्र त्रिकोण में स्थित हो और मित्र राशि, स्वराशी, शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो पूर्ण फल प्रदान करेगा| अर्थात नवम भाव का कारक ग्रह नवमेंश नवम भाव, नवम भाव पर दृष्टि ये चार प्रकार के कारक शुभ स्थान के भाव का हो, शुभ ग्रह से दृष्ट हो बली ६,८,१२ में न हो तो सात प्रतिशत पूर्ण फल प्रदान करेगा| अतः इन सभी शुभ स्थानों के शुभ ग्रहों के युत दृष्ट बलि इत्यादि होने पर उन-उन स्थानों के कारकत्व पूर्ण दृष्टि होकर जातक को शुभ फल प्राप्त होगा| यदि इसके विपरीत हो तो फल भी विपरीत समझना चाहिए|

यदि शुभ अशुभ दोनों प्रकार का योग हो तो उनमें से जो बलि होगा उसका फल मिलेगा| यदि शुभ अशुभ समान रूप से बलि हों तब जातक के जीवन में शुभ अशुभ दोनों ही समान रूप से विद्यमान होगा| यदि नवम भाव के उपरोक्त चार कारक सप्त वर्ग में शुभ अपनें भाव, स्वगृही मित्र, गृही उच्च शुभ वर्ग इत्यदि में प्राप्त हो तो जातक का भाग्य बहुत महत्वपूर्ण बन जायेगा ऐसा जातक समाज देश विदेश धर्म में विख्यात होगा| प्रसिद्ध व्यक्ति होगा|
नवम भाव पर विचरणीय विषय
भाग्य शक्ति, (गुरु-पिता, धर्म, तप, शुभ कार्य, धर्मगुरु, धर्म के कार्यों में संलग्न रहना तथ दया, दान, शिक्षा से लाभ, विद्या, परिश्रम, बड़े लोग, मालिक, शुद्ध आचरण, तीर्थ यात्रा, लम्बी दुरी की यात्रा, गुरु के प्रति भक्ति, ओषधि, चित्त की शुद्धता, देवता की उपासना, कमी हुई सम्पत्ति, न्याय प्रताप, आरोग्य सत्संग, ऐश्वर्य धन कम होते जाना, वैराग्य, वेद पठन, दैवी शक्ति संस्थापन, साले का विचार, परोपकार, नदी या समुद्र का प्रवास, विदेश यात्रा, स्थानांतरण, नौकरी में परिवर्तन, सन्यास, मेहमान धरोहर, दुसरे का विवाह, कानून, दर्शनशास्त्र, बड़े अधिकारी, उच्च शिक्षा इत्यादि|
भाग्योदय वर्ष
ग्रह सूर्य चन्द्र मंगल बुद्ध गुरु शुक्र शनि राहू
वर्ष २२ २४ २८ ३२ १६ २५ ३६ ४२
जैसे भाग्येश के नवांश में यदि चन्द्रमा हो तो जातक का भाग्योदय २४ वर्ष पर होगा|
१. बुद्ध भागेश हो तो ३२ वें वर्ष में होगा| गुरु की स्थिति शुभ होती है, तो जातक भाग्यशाली होता है|
२. गुरु स्वगृही उच्चगत केन्द्रगत हो तो जातक भाग्यशाली होता है|
३. नवमेंश और गुरु शुभ वर्ग में हो तो जातक भाग्यशाली होता है| साथ ही नवम भाव में शुभ ग्रह हो|
४. नवम भाव में पाप ग्रह हो, नीच राशि का हो या अस्त हो तो ऐसा जातक भाग्यहीन होता है|
५. नवम भाव में कोई भी ग्रह उच्च राशि का, मित्र राशि का एवं स्वग्रही हो तो ऐसा जातक भाग्यवान होता है|
६. भाग्येश अष्टम में, नीच्चस्थ हो, पाप ग्रह से युत या दृष्ट हो, पाप ग्रह के नवमांश में हो तो ऐसा जातक भाग्यहीन होकर भींख मांगता है|
७. भाग्येश शुभ ग्रह से दृष्ट या युत हो तथा नवम भाव शुभ ग्रह से युत हो तो ऐसा जातक महाँ भाग्यशाली होता है|
८. यदि गुरु नवम भाव में हो और नवमेंश केंद्र में हो, लग्नेंश बलि हो तो जातक भाग्यशाली और यदि इसके विपरीत ग्रह बल्हीनहो निचस्थ हो तो जातक भाग्यहीन होता है|

ज्योतिषी बनने के योग

प्रश्न: ज्योतिषी बनने के क्या-क्या योग हैं? यदि इनका वर्गीकरण व्यवसाय और शोध के आधार पर किया जाये तो इनका ज्योतिषीय आधार क्या होगा?

सफल भविष्यवक्ताओं व ज्योतिषियों की कुंडलियां लग्नबल एवं ग्रहबल प्रधान होती हैं। प्रथमतः लग्न एवं लग्नेश दोनों बलवान होने चाहिए। लग्नबल की परीक्षा अंश बल एवं नवमांश कुंडली से होती है। लग्नेश का बल भी अंशों से ही नापा जाता है। लग्नेश स्वगृही, उच्चस्थ, मूलत्रिकोण राशि में केंद्र या त्रिकोण में होना चाहिए। इसमें द्वितीय भाव, द्वितीयेश (वाणी स्थान) का शक्तिशाली होना आवश्यक है तभी वाणी सफल होगी। वाणी की सफलता के लिए सरस्वती उपासना, गायत्री की साधना अनिवार्य है। लग्नेश के अनुसार ही ज्योतिषी की रूचियां होती हैं, आचरण होता है व्यवहार होता है। जातक तत्व के अनुसार ज्योतिषी होने के योग
1. यदि बुध व शुक्र द्वितीय व तृतीय स्थानों में हों तो मनुष्य श्रेष्ठ ज्योतिषी होता है। किसी भी स्थिति में होने पर अर्थात दोनों साथ हों या एक-एक भाव में एक-एक ग्रह हो तो उक्त फल होता है।
 2. धन स्थान का स्वामी बलवान हो व बुध केंद्र या त्रिकोण या एकादश स्थानों में हो तो मनुष्य श्रेष्ठ ज्योतिषी होता है।
 3. धन स्थान में बृहस्पति अपनी उच्च राशि का हो तो जातक उत्तम ज्योतिषी होता है।
4. बुद्धि कारक ग्रह बुध या बृहस्पति केंद्र या त्रिकोण स्थानों में स्थित हों तथा वहां पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो जातक भविष्यवक्ता होता है।
 5. बृहस्पति अपने नवांश में या मृदु षष्ठयांश में हो तो जातक भूत, वर्तमान व भविष्य को जानने वाला त्रिकालज्ञ होता है। बृहस्पति गोपुरांश में यदि शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो भी जातक त्रिकालज्ञ होता है।

 ज्योतिषी बनने के कुछ ग्रह योग गहन शोध के उपरांत प्राप्त हुए सूत्रों द्वारा ग्रहण किया गया है।
 1. द्वितीय (वाणी के स्थान) भाव में यदि पंचमेश या बुध अथवा बृहस्पति अष्टमेश के साथ युति करें तो मनुष्य गूढ़ विद्या एवं पूर्वजन्मकृत बातों को बताने वाला भविष्यवक्ता होता है।
2. पंचम स्थान में लग्नेश, द्वितीयेश, दशमेश एवं बुध व बृहस्पति की युति हो एवं ये सभी अष्टमेश दृष्ट हों तो मनुष्य ज्योतिषी बनकर धनार्जन करता है।
3. शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि से लेकर कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि तक का चंद्र पूर्ण बलवान होकर सूर्य, बुध व बृहस्पति से संबंध बनाए एवं इन पर दशमेश एव एकादशेश की दृष्टि हो तो भी मनुष्य ज्योतिष के माध्यम से अपना जीवन यापन करता है।
4. अष्टमेश पंचमेश के साथ लग्न में स्थित होकर द्वितीयेश एवं एकादशेश का यदि ग्रहों से दृष्टि या अन्य संबंध हो तो भी मनुष्य ज्योतिष के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है।
5. अष्टमेश का यदि चंद्र या शनि से दृष्टि या युति संबंध बनता हो या अष्टमेश व पंचमेश की युति हो तो भी मनुष्य ज्योतिषीय कार्य में रुचि रखता है।
 6. बुद्धि व ज्ञानकारक ग्रह बृहस्पति बलवान होकर चंद्र के साथ गजकेसरी योग, लग्न, पंचम अष्टम या नवम भावों में होकर रचना करता हो तो मनुष्य ज्योतिषी व हस्तरेखा विशेषज्ञ होता है।
 7.अगर क्षीण चंद्र पर शनि की दृष्टि हो या चंद्र-बुध की युति हो और उस पर शनि की दृष्टि हो या शनि चंद्र बुध की युति हो साथ ही बृहस्पति बुध व शुक्र के साथ किसी भी प्रकार का संबंध बनाता हो तो मनुष्य ज्योतिष शास्त्र में रूचि रखता है।
 8. पत्रिका में बुध व बृहस्पति का परस्पर स्थान परिवर्तन हो तो मनुष्य को ज्योतिषिय ज्ञान में रूचि लेने की संभावना निर्मित होती है। इसके साथ ही पंचमेश व नवमेश इन दोना ग्रहों से दृष्टि या युति संबंध रखें तो मनुष्य सफल भविष्यवक्ता होता है।
9. यदि पत्रिका में बुध व बृहस्पति की युति या दृष्टि संबंध होकर अष्टम भाव से संबंध हो जाये तो मनुष्य गूढ़ विद्याओं का ज्योतिषीय ज्ञान रखने वाला हो सकता है।
10. दशम भाव में लग्नेश, पंचमेश, अष्टमेश, नवमेश, बुध व बृहस्पति इत्यादि जितने भी अधिक ग्रह स्थित होंगे मनुष्य उतना ही सफल ज्योतिषी हो सकता है।
 11. केतु का बुध एवं बृहस्पति से संबंध भी मनुष्य को अपनी दशा-अंतर्दशा में ज्योतिष के क्षेत्र में ले जाने में सफल होता है क्योंकि केतु भी गूढ़ विद्याओं में पारंगत करने में सहायक होता है।
12. सिंह लग्न की पत्रिका में यदि बुद्धि एवं वाणी के द्वितीय स्थान में बृहस्पति पंचमेश व अष्टमेश होकर बैठे, दशमस्थ केतु की दृष्टि बृहस्पति पर एवं बृहस्पति की नवम दृष्टि गूढ़ विद्या के कारक केतु पर हो तथा बुध लग्नेश के साथ युति कर लोकप्रियता के चतुर्थ स्थान में बैठकर दशम स्थान के केतु पर दृष्टिपात करे तो ऐसा मनुष्य गूढ़ विद्याओं एवं ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान प्राप्त कर जनमानस में ज्योतिष का ज्ञाता जाना जाता है।
13. यदि पत्रिका में तृतीयस्थ वाणी कारक बुध पर विद्या घर के स्वामी मंगल की चतुर्थ दृष्टि हो और यही विद्या घर का स्वामी मंगल बुध की राशि कन्या में हो ( देखें उदाहरण कुंडली क्रमांक 2) या यही मंगल गूढ़ विद्याओं के कारक केतु के साथ द्वादश स्थान में हो, केतु की पंचम दृष्टि अष्टमेश शुक्र के साथ बैठे बृहस्पति की चतुर्थ स्थान पर हो, साथ ही इसी केतु की नवम दृष्टि अष्टम स्थान पर हो और इसी अष्टम स्थान पर बृहस्पति की पंचम दृष्टि एवं नवम दृष्टि केतु-मंगल युति पर हो तो ऐसा मनुष्य अपने मूल कर्म के अतिरिक्त भी ज्योतिषीय ज्ञान अर्जित करने के लिए लालायित रहता है।
 14. कन्या लग्न की पत्रिका में पंचमेश शनि व अष्टमेश मंगल लग्न में हो, द्वितीयेश व नवमेश शुक्र स्वराशि का होकर अष्टम स्थान पर दृष्टि रखता हो, बृहस्पति स्वक्षेत्री मीन राशि का केंद्र में होकर लग्न एवं लग्नेश बुध पर दृष्टि रखे एवं केतु मोक्ष के द्वादश स्थान में स्थित होकर गूढ़ विद्या के अष्टम स्थान पर दृष्टि करे तो ऐसा मनुष्य अपने मूल कार्य के अलावा गूढ़ एवं ज्योतिष विद्या में प्रवीणता प्राप्त करता है।
15. लग्नेश एवं बुद्धिकारक बुध, बृहस्पति की मीन राशि दशम स्थान में हो, बृहस्पति ज्ञान कारक ग्रह पंचम भाव में पंचमेश से दृष्ट हो, अष्टमेश-नवमेश शनि लग्न में स्थित होकर गूढ़ विद्याओं के कारक केतु पर दृष्टि रखे तथा वाणी स्थान का स्वामी चंद्र लग्न में हो तो ऐसा मनुष्य ज्योतिष के क्षेत्र में प्रवीणता प्राप्त कर अपने ज्ञान से पुस्तक लेखन में सफल होता है।
16. वृश्चिक लग्न की पत्रिका में ज्ञान कारक बृहस्पति स्वराशि का होकर बुद्धि के स्थान द्वितीय भाव में होकर अष्टम भाव पर दृष्टि रखे, अष्टमेश केतु से दृष्ट होकर पंचम भाव में बृहस्पति की मीन राशि में हो, दशमेश सूर्य लोकप्रियता के चतुर्थ भाव में स्थित होकर दशम भाव को देखे और शनि जनता एवं चतुर्थ भाव का स्वामी होकर मित्रस्थ राशि का होकर सप्तमस्थ होकर भाग्येश चंद्र को लग्न में देखे तो ऐसा मनुष्य अपने ज्योतिष ज्ञान से भविष्यवाणियां कर लोकप्रियता प्राप्त करता है।
17. मकर लग्न की पत्रिका में बुद्धि एवं वाणी स्थान का स्वामी शनि उच्च का होकर दशम स्थान पर हो, पंचमेश बुध लग्न में योगकारक शुक्र के साथ स्थित हो तथा बृहस्पति केतु के साथ बुध की मिथुन राशि में स्थित होकर लग्नेश शनि पर दृष्टि रखे तथा अष्टमेश अष्टम भाव को देखे तो ऐसा मनुष्य तकनीकी योग्यता के साथ ज्योतिषीय ज्ञान का अध्ययन कर इस क्षेत्र में प्रसिद्धि प्राप्त करता है।
 18. धनु लग्न की पत्रिका में पंचमेश मंगल लग्न में और लग्नेश बृहस्पति पराक्रम भाव में स्थित होकर बुध की मिथुन राशि पर पंचम दृष्टि करें, बुध-अष्टमेश चंद्र के साथ युति करे, बुद्धि का स्वामी शनि केतु जैसे गूढ़ विद्याकारक ग्रह के साथ बुध की कन्या राशि में दशम भाव में हो तो ऐसा मनुष्य अपने मूल कार्यों के अतिरिक्त ध्यान योग व गूढ़ विद्याओं को सीखने की लालसा एवं ज्योतिष शास्त्र में प्रवीणता प्राप्त करने में अत्यधिक रूचि रखता है।
 19. कुंभ लग्न की पत्रिका में वाणीकारक बृहस्पति कर्म स्थान में स्थित हो, पंचम, अष्टम एवं नवम स्थान के स्वामी बुध एवं शुक्र दशमेश के साथ सप्तम स्थान में युति संबंध बनाकर लग्न को पूर्ण दृष्टि से प्रभावित करे तथा लग्नेश शनि उच्चराशिस्थ चंद्र के साथ युति करे एवं केतु भी बुध की राशि अष्टम स्थान में स्थित होकर गूढ़ विद्याओं हेतु प्रेरित करे तो ऐसा मनुष्य ज्योतिष के क्षेत्र में देश-विदेश में ख्याति अर्जित करता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार लग्न, पंचम एवं नवम स्थान में शुभ ग्रह स्थित हों तो मनुष्य सात्विक देवी-देवताओं की उपासना करने वाला एवं सफल भविष्यवक्ता होता है तथा इन स्थानों पर पापग्रहों का समावेश हो तो क्षुद्र देवी-देवताओं जैसे यक्षिणी , भूत-प्रेतादि का उपासक होता है। अगर एक से अधिक पाप ग्रह हों या पापग्रहों की दृष्टि हो तो उपासना विरोधी होता है।

व्यापार में सफलता के योग

हमारी कुंडली का दशम भाव हमारी आजीविका
या करियर को नियंत्रित करता है व्यक्ति की
आजीविका किस स्तर की होगी यह कुंडली के दशम
भाव की स्थिति पर निर्भर करता है परन्तु जब हम
अपनी आजीविका को भी विशेषतः व्यापार के रूप
में देखते हैं तो यहाँ कुंडली के “सप्तम और एकादश
भाव” की महत्वपूर्ण भूमिका होती है जन्मकुंडली
का सातवा भाव स्वतंत्र व्यवसाय और ग्यारहवां
भाव लाभ का कारक होता है अतः करियर में भी
विशेष रूप से केवल व्यापार में सफलता मिलना या ना
मिलना कुंडली के सातवें और ग्यारहवे भाव की
स्थिति पर निर्भर करता है। बिजनेस में सफलता के
लिए सप्तम और एकादश भाव और तथा इनके
स्वामियों का अच्छी स्थिति में होना बहुत
आवश्यक है। इसके अतिरिक्त व्यापार का नैसर्गिक
नियंत्रक “बुध” को माना गया है अतः व्यापार में
सफलता और अच्छे व्यापारिक गुणों के लिए कुंडली
में बुध का बलवान होना भी बहुत आवश्यक है अतः
बिजनेस में सफलता के लिए सप्तम भाव, एकादश भाव
और बुध तीनों घटकों का अच्छी स्थिति में होना
आवश्यक है परन्तु व्यापार में सफलता और अच्छी
उन्नति के लिए जो घटक सर्वाधिक महत्त्व रखता है
वह है कुंडली का “लाभ स्थान” अर्थात ग्यारहवा
भाव क्योंकि बिज़नेस में किये गए इन्वेस्टमेंट का
रिटर्न या लाभ हमें अच्छी स्थिति में मिल पाये ये
लाभ स्थान और लाभेश की शक्ति पर निर्भर करता
है अतः एक बिजनेस मैन की कुंडली में लाभ स्थान
और लाभेश का बलि होना व्यापर की सफलता को
तय करता है।
बिजनेस में सफलता के योग –
1. यदि सप्तमेश सप्तम भाव में हो या सप्तम भाव
पर सप्तमेश की दृष्टि हो तो बिजनेस में
सफलता मिलती है।
2. सप्तमेश स्व या उच्च राशि में होकर शुभ भाव
(केंद्र–त्रिकोण आदि) में हो तो बिजनेस के
अच्छे योग होते हैं।
3. यदि लाभेश लाभ स्थान में ही स्थित हो तो
व्यापार में अच्छी सफलता मिलती है।
4. लाभेश की लाभ स्थान पर दृष्टि हो तो
व्यापार में सफलता मिलती है।
5. यदि लाभेश दशम भाव में और दशमेश लाभ
स्थान में हो तो अच्छा व्यापारिक योग
होता है।
6. दशमेश का भाग्येश के साथ राशि परिवर्तन भी
व्यापार में सफलता देता है।
7. यदि धनेश और लाभेश का योग शुभ स्थान पर
हो या धनेश और लाभेश का राशि परिवर्तन
हो रहा हो तो भी व्यापार में सफलता
मिलती है।
8. यदि किसी व्यक्ति की सर्वाष्टकवर्ग कुंडली
के ग्यारहवे भाव में बारहवे भाव से अधिक बिंदु
हों तो व्यापार के लिए अच्छा योग होता है
ग्यारहवे भाव में बारहवे भाव से जितने अधिक
बिंदु होंगे उतना ही अच्छा लाभ मिलेगा।
9. सप्तमेश यदि मित्र राशि में शुभ भावों में
स्थित हो तो भी बिजनेस में जाने का योग
होता है।
10. यदि सप्तमेश और दशमेश का राशि परिवर्तन
हो अर्थात सप्तमेश दशम भाव में और दशमेश
सप्तम भाव में हो तो भी बिजनेस में सफलता
मिलती है।
11. सप्तमेश और लग्नेश का राशि परिवर्तन भी
बिजनेस में सफलता दिलाता है।
12. बुध स्व या उच्च राशि (मिथुन, कन्या) में
होकर शुभ भावों में हो तो बिजनेस में जाने
का अच्छा योग होता है।
13. बुध यदि शुभ स्थान केंद्र–त्रिकोण में मित्र
राशि में हो और सप्तम भाव, सप्तमेश अच्छी
स्थिति में हो तो भी बिजनेस में सफलता मिल
जाती है।
14. कुंडली का लाभ स्थान(ग्यारहवा भाव)
जितना अधिक बलि होगा बिजनेस में उतनी
ही अच्छी उन्नति होगी।
15. सप्तमेश और लाभेश का राशि परिवर्तन भी
अच्छा व्यापारिक योग देता है।
बिजनेस में संघर्ष –
1. यदि लाभेश (ग्यारहवे भाव का स्वामी) पाप
भाव (6,8,12) में हो तो ऐसे में बिजनेस में संघर्ष
की स्थिति रहती है और किये गए इन्वेस्टमेंट
का पूरा लाभ प्राप्त नहीं हो पाता।
2. लाभेश यदि अपनी नीच राशि में हो तो
बिजनेस में अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाते।
3. कुंडली के एकादश भाव में किसी पाप योग
(ग्रहण योग, गुरुचांडाल योग आदि) का बनना
भी बिजनेस में संघर्ष उत्पन्न करके सफलता को
कम करता है।
4. कुंडली में सप्मेश का पाप भाव या नीच राशि
में होना भी बिजनेस के क्षेत्र में संघर्ष देता है।
5. यदि कुंडली में बुध नीच राशि (मीन) में हो या
पाप भाव में होने से पीड़ित हो तो व्यक्ति में
अच्छे व्यापारिक गुणों का विकास न होने से
और गलत निर्णयों के कारण बिजनेस में अच्छी
सफलता नहीं मिल पाती।
6. शुक्र धन प्राप्ति और रिटर्न का कारक ग्रह है
यदि कुंडली में शुक्र अति पीड़ित स्थिति में
हो तो व्यक्ति बिजनेस में सामान्य स्तर से
ऊपर नहीं उठ पाता।
अतः कुंडली में एकादश भाव, सप्तम भाव और बुध का
कमजोर होना बिजनेस की सफलता में बाधक बनता
है अतः कुंडली में लाभ स्थान, सप्तम भाव और बुध
यदि अति पीड़ित या कमजोर स्थिति में हों तो
व्यक्ति को बिजेस या व्यापार के क्षेत्र में नहीं
जाना चाहिए।
विशेष – कुंडली के सप्तम भाव और सप्तमेश की
स्थिति जहाँ व्यापार में सफलता या संघर्ष को
निश्चित करती है वहीँ व्यापार का नैसर्गिक कारक
बुध व्यक्ति में व्यापार करने के गुणों को देकर
व्यापार की सफलता को निश्चित करता है तो वहीँ
लाभ स्थान व्यापार में होने वाले लाभ के स्तर को
तय करता है अतः यदि ये सभी घटक जन्मकुंडली में
अच्छी स्थिति में हो तो व्यक्ति को बिजनेस में
अच्छी सफलता मिलती है और किस वस्तु या क्षेत्र से
सम्बंधित बिजनेस किया जाय यह व्यक्ति की
कुंडली के मजबूत ग्रहों पर निर्भर करता है। किस
व्यक्ति को व्यापार के किस क्षेत्र में जाना
चाहिए या किस वस्तु से सम्बंधित व्यापार करना
चाहिए यह व्यक्ति की कुंडली के बली ग्रहों पर
निर्भर करता है

गुरुवार, 16 नवंबर 2017

शुक्र शनि दशा के विशेष नियम

शुक्र शनि दशा विशेष नियमपराशर ज्योतिष का एक ये विशेष नियम है की शुक्र अपना फल अपनी महादशा में शनि की अन्तर्दशा में देता है और शनिअपना फल अपनी महादशा में जब शुक्र की अन्तर्दशा आती है तब देता है अब इस नियम की एक ख़ास बात ये भी है की जब कुंडली में ये दोनों अपनी उंच राशि स्वराशि में होकर शुभ स्थानो में स्थित हो तो इनकी दशा अन्तर्दशा जातक को बर्बाद करने का कार्य करती है लेकिन जब इन दोनों में से कोई एक यदि नीच राशि शत्रु राशि में सिथत होकर अशुभ स्थानों में होतो इनकी दशा योगकारक होकर जातक को विशेष शुभ फल देती है ऐसे ही यदि ये दोनों अपनी नीच राशि शत्रु राशि में स्थित होकर त्रिक भाव में हो तो इनकी दशा अन्तर्दशा में जातक को विशेष शुभ फल मिलते है यदि इन दोनों में से कोई एक त्रिक भाव का स्वामी हो और दूसरा शुभ भाव का स्वामी हो तो भी इनकी दशा विशेष रूप से शुभ फल जातक को देती है यदि ये दोनों अशुभ भावों के स्वामी हो तो भी इनकी दशा विशेष रूप से योगकारक होकर जातक को अच्छे फल देती है जिन जातकों ने इनकी दशा अन्तर्दशा भुगती है वो ये नियम अपने उपर लगाकर खुद देख सकते है की ये नियम कितना स्टिक है।

मंगल ग्रह के कुछ शुभ अशुभ योग

कुंडली में मंगल की अच्छी दशा बेहद कामयाब बनाती है. वहीं इस ग्रह की बुरी दशा इंसान से सब कुछ छीन भी सकती है. मंगल के बहुत से शुभ और अशुभ योग हैं.

मंगल का पहला अशुभ योग -
- किसी कुंडली में मंगल और राहु एक साथ हों तो अंगारक योग बनता है.
- अक्सर यह योग बड़ी दुर्घटना का कारण बनता है.
- इसके चलते लोगों को सर्जरी और रक्त से जुड़ी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
- अंगारक योग इंसान का स्वभाव बहुत क्रूर और नकारात्मक बना देता है.
- इस योग की वजह से परिवार के साथ रिश्ते बिगड़ने लगते हैं.

अंगारक योग से बचने के उपाय -
- अंगारक योग के चलते मंगलवार का व्रत करना शुभ होगा.
- मंगलवार का व्रत रखने के साथ भगवान शिव के पुत्र कुमार कार्तिकेय की उपासना करें.

मंगल का दूसरा अशुभ योग -
अंगारक योग के बाद मंगल का दूसरा अशुभ योग है मंगल दोष. यह इंसान के व्यक्तित्व और रिश्तों को नाजुक बना देता है.
- कुंडली के पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें स्थान में मंगल हो तो मंगलदोष का योग बनता है.
- इस योग में जन्म लेने वाले व्यक्ति को मांगलिक कहते हैं.
- कुंडली की यह स्थिति विवाह संबंधों के लिए बहुत संवेदनशील मानी जाती है.

मंगलदोष के लिए उपाय -
- हनुमान जी को रोज चोला चढ़ाने से मंगल दोष से राहत मिल सकती है.
- मंगल दोष से पीड़ित व्यक्ति को जमीन पर ही सोना चाहिए.

मंगल का तीसरा अशुभ योग -
नीचस्थ मंगल तीसरा सबसे अशुभ योग है. जिनकी कुंडली में यह योग बनता है, उन्हें अजीब परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है.
- इस योग में कर्क राशि में मंगल नीच का यानी कमजोर हो जाता है.
- जिनकी कुंडली में नीचस्थ मंगल योग होता है, उनमें आत्मविश्वास और साहस की कमी होती है.
- यह योग खून की कमी का भी कारण बनता है.
- कभी–कभी कर्क राशि का नीचस्थ मंगल इंसान को डॉक्टर या सर्जन भी बना देता है.

नीचस्थ मंगल के लिए उपाय -
- नीचस्थ मंगल के अशुभ योग से बचने के लिए तांबा पहनना शुभ सकता है.
- इस योग में गुड़ और काली मिर्च खाने से विशेष लाभ होगा.

मंगल का चौथा अशुभ योग -
मंगल का एक और अशुभ योग है जो बहुत खतरनाक है. इसे शनि मंगल (अग्नि योग) कहा जाता है. इसके कारण इंसान की जिंदगी में बड़ी और जानलेवा घटनाओं का योग बनता है.
- ज्योतिष में शनि को हवा और मंगल को आग माना जाता है.
- जिनकी कुंडली में शनि मंगल (अग्नि योग) होता है उन्हें हथियार, हवाई हादसों और बड़ी दुर्घटनाओं से सावधान रहना चाहिए.
- हालांकि यह योग कभी–कभी बड़ी कामयाबी भी दिलाता है.

शनि मंगल (अग्नि योग) के लिए उपाय -
- शनि मंगल (अग्नि योग) दोष के प्रभाव को कम करने के लिए रोज सुबह माता-पिता के पैर छुएं.
- हर मंगलवार और शनिवार को सुंदरकांड का पाठ करने से इस योग का प्रभाव कम होगा.

मंगल का पहला शुभ योग -
मंगल के शुभ योग में भाग्य चमक उठता है. लक्ष्मी योग मंगल का पहला शुभ योग है.
- चंद्रमा और मंगल के संयोग से लक्ष्मी योग बनता है.
- यह योग इंसान को धनवान बनाता है.
- जिनकी कुंडली में लक्ष्मी योग है, उन्हें नियमित दान करना चाहिए.

मंगल का दूसरा शुभ योग -
- मंगल से बनने वाले पंच-महापुरुष योग को रूचक योग कहते हैं.
- जब मंगल मजबूत स्थिति के साथ मेष, वृश्चिक या मकर राशि में हो तो रूचक योग बनता है.
- यह योग इंसान को राजा, भू-स्वामी, सेनाध्यक्ष और प्रशासक जैसे बड़े पद दिलाता है.
- इस योग वाले व्यक्ति को कमजोर और गरीब लोगों की मदद करनी चाहिए.

मोक्ष प्राप्ति योग

*मोक्ष प्राप्ति योग*


यदि उच्चस्थ (कर्क राशि का)गुरु लग्न से छठे, आठवें या केन्द्र में हो तथा शेष ग्रह निर्बल हों तो जातक को मुक्ति मिलती है। (बृहद्जातक)।

यदि गुरु मीन लग्न तथा शुभ नवांश का हो और अन्य ग्रह निर्बल हों तो जातक मोक्ष पाता है। (जातक चन्द्रिका)

यदि गुरु धनु लग्न, मेष नवांश(धनु में 0 अंश से 3 अंश 20’ तक) में हो, शुक्र सप्तम भाव में हो और चंद्र कन्या राशि में हो तो जातक को मोक्ष प्राप्त होता है। (जातक पारिजात)

यदि गुरु कर्क लग्न में उच्चस्थ हो, धनु नवांश (कर्क में 16″40’ से 20″ तक)का हो और तीन चार ग्रह केन्द्र में हों तो जातक मोक्ष पाता है। (जातक पारिजात)

जिसके बारहवें स्थान में शुभ ग्रह हो और द्वादशेशश बलवान होकर शुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट हो, उसे मोक्ष प्रापत होता है। (बृहत् पराशर होरा शास्त्र)

यदि दशम भाव में मीन राशि हो और उसमें मंगल शुभ ग्रहों के साथ हो तो भी व्यक्ति मोक्ष पाता है। (सर्वार्थ चिन्तामणि)

देवलोक (स्वर्ग)प्राप्ति योग
यदि शुभ ग्रह बारहवें भाव में शुभ होकर स्थित हों, अच्छे वर्ग में हों और शुभ ग्रह से दृष्ट हों तो जातक को स्वर्ग मिलता है। (जातक पारिजात)

यदि अष्टम भाव में केवल शुभ ग्रह हों तो मरणोपरांत शुभ गति प्राप्त होती है।

यदि बृहस्पति दशमेष होकर बारहवें स्थान में हो और शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो देवपद प्राप्त होता है। (सर्वार्थ चिंतामणि)
लग्न में उच्च का गुरु चंदको पूर्ण दृष्टि से देखता हो और अष्टम स्थान में कोई ग्रह न हो तो जातक सैकड़ों धार्मिक कार्य करता है और सदगति पाता है।

नरक प्राप्ति योग
बारहवें भाव का स्वामी पाप षष्ठांश में हो और उसे पापी ग्रह देखते हों तो प्राणी नकर में जाता है। (फल दीपिका)
बारहवें भाव में यदि राहु, गुलिका और अष्टमेश हो तो जातक नरक पाता है। (जातक पारिजात)
बारहवें भाव में मंगल, सूर्य, शनि व राहु हों अथवा द्वादशेश सूर्य के साथ हो तो मृत्योपरांत नरक मिलता है। (बृहत् पराशर होरा शास्त्र)
यदि बारहवें भाव में राहु और मांदी हों और अष्टमेश तथा षष्ठेश से दृष्ट हों तो जातक नरक पाता है। (सर्वार्थ चिंतामणि)
यदि बारहवें भाव में शनि राहु या केतु अष्टमेश के साथ हो तब भी नरक की प्राप्ति होती है। (जातक पारिजात)
 ऊपर वर्णित ग्रह योग प्रारब्ध के अनुरूप मनुष्य के अगले जन्म की ओर अंगित करते हैं। फिर भी वह इसी जन्म में एकनिष्ठ भाव से परमात्मा की शरण में जाकर अपने पूर्वार्जित कर्म-फल को नष्ट कर जन्म – मृत्यु के चक्र से छुटकारा पा सकता है।
 इसका आश्वासन भगवान श्री कृष्ण ने गीता के 18वें अध्याय के 66वें श्लोक में दिया है।

सर्वधर्मान्परिज्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
 अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।

अर्थात संपूर्ण धर्मो को अर्थात संपूर्ण कर्तव्य कर्मो को मुझ में अर्पितकर तू केवल एक मुझ सर्वशक्तिमान सर्वाधार परमेश्वर की शरण में आ जा। मैं तुझे संपूर्ण पापों से मुक्त कर दूंगा.

गुरुवार, 9 नवंबर 2017

केमद्रुम योग

केमद्रुम योग | Kemdrum Yoga | Kemdrum Dosh

     केमद्रुम योग ज्योतिष में चंद्रमा से निर्मित एक महत्वपूर्ण योग है. वृहज्जातक में वाराहमिहिर के अनुसार यह योग उस समय होता है जब चंद्रमा के आगे या पीछे वाले भावों में ग्रह न हो अर्थात चंद्रमा से दूसरे और चंद्रमा से द्वादश भाव में कोई भी ग्रह नहीं हो.  यह योग इतना अनिष्टकारी नहीं होता जितना कि वर्तमान समय के ज्योतिषियों ने इसे बना दिया है. व्यक्ति को इससे भयभीत नहीं होना चाहिए क्योंकि यह योग व्यक्ति को सदैव बुरे प्रभाव नहीं देता अपितु वह व्यक्ति को जीवन में संघर्ष से जूझने की क्षमता एवं ताकत देता है, जिसे अपनाकर जातक अपना भाग्य निर्माण कर पाने में सक्षम हो सकता है और अपनी बाधाओं से उबर कर आने वाले समय का अभिनंदन कर सकता है.

ज्योतिष शास्त्र में चन्द्र को मन का कारक कहा गया है. सामान्यत: यह देखने में आता है कि मन जब अकेला हो तो वह इधर-उधर की बातें अधिक सोचता है और ऎसे में व्यक्ति में चिन्ता करने की प्रवृति अधिक होती है.  इसी प्रकार के फल केमद्रुम योग देता है.

केमद्रुम योग कैसे बनता है | How is Kemdrum Yoga formed

यदि चंद्रमा से द्वितीय और द्वादश दोनों स्थानों में कोई ग्रह नही हो तो केमद्रुम नामक योग बनता है या चंद्र किसी ग्रह से युति में न हो या चंद्र को कोई शुभ ग्रह न देखता हो तो कुण्डली में केमद्रुम योग बनता है. केमद्रुम योग के संदर्भ में छाया ग्रह राहु केतु की गणना नहीं की जाती है.

इस योग में उत्पन्न हुआ व्यक्ति जीवन में कभी न कभी दरिद्रता एवं संघर्ष से ग्रस्त होता है. इसके साथ ही साथ व्यक्ति अशिक्षित या कम पढा लिखा, निर्धन एवं मूर्ख भी हो सकता है. यह भी कहा जाता है कि केमदुम योग वाला व्यक्ति वैवाहिक जीवन और संतान पक्ष का उचित सुख नहीं प्राप्त कर पाता है. वह सामान्यत: घर से दूर ही रहता है. परिजनों को सुख देने में प्रयास रत रहता है. व्यर्थ बात करने वाला होता है. कभी कभी उसके स्वभाव में नीचता का भाव भी देखा जा सकता है.

केमद्रुम योग के शुभ और अशुभ फल | Auspicious and Inauspicious results of Kemdrum Yoga

केमद्रुम योग में जन्‍म लेनेवाला व्‍यक्ति निर्धनता एवं दुख को भोगता है. आर्थिक दृष्टि से वह गरीब होता है.  आजिविका संबंधी कार्यों के लिए परेशान रह सकता है. मन में भटकाव एवं असंतुष्टी की स्थिति बनी रहती है.  व्‍यक्ति हमेशा दूसरों पर निर्भर रह सकता है. पारिवारिक सुख में कमी और संतान द्वारा कष्‍ट प्राप्‍त कर सकता है. ऐसे व्‍यक्ति दीर्घायु होते हैं.

केमद्रुम योग के बारे में ऐसी मान्यता है कि यह योग संघर्ष और अभाव ग्रस्त जीवन देता है.  इसीलिए ज्योतिष के अनेक विद्वान इसे दुर्भाग्य का सूचक कहते हें. परंतु लेकिन यह अवधारणा पूर्णतः सत्य नहीं है.  केमद्रुम योग से युक्त कुंडली के जातक कार्यक्षेत्र में सफलता के साथ-साथ यश और प्रतिष्ठा भी प्राप्त करते हैं. वस्तुतः अधिकांश विद्वान इसके नकारात्मक पक्ष पर ही अधिक प्रकाश डालते हैं. यदि इसके सकारात्मक पक्ष का विस्तार पूर्वक विवेचन करें तो हम पाएंगे कि कुछ विशेष योगों की उपस्थिति से केमद्रुम योग भंग होकर राजयोग में परिवर्तित हो जाता है. इसलिए किसी जातक की कुंडली देखते समय केमद्रुम योग की उपस्थिति होने पर उसको भंग करने वाले योगों पर ध्यान देना आवश्यक है तत्पश्चात ही फलकथन करना चाहिए.

केमद्रुम योग का भंग होना | Destruction of Kemdrum Yoga

जब कुण्डली में लग्न से केन्द्र में चन्द्रमा या कोई ग्रह हो तो केमद्रुम योग भंग माना जाता है.  योग भंग होने पर केमद्रुम योग के अशुभ फल भी समाप्त होते है.  कुण्डली में बन रही कुछ अन्य स्थितियां भी इस योग को भंग करती है, जैसे चंद्रमा सभी ग्रहों से दृष्ट हो या चंद्रमा शुभ स्‍थान में हो या चंद्रमा शुभ ग्रहों से युक्‍त हो या पूर्ण चंद्रमा लग्‍न में हो या चंद्रमा दसवें भाव में उच्‍च का हो या केन्‍द्र में चंद्रमा पूर्ण बली हो अथवा कुण्डली में सुनफा, अनफा या दुरुधरा योग बन रहा हो, तो केमद्रुम योग भंग हो जाता है. यदि चन्द्रमा से केन्द्र में कोई ग्रह हो तब भी यह अशुभ योग भंग हो जाता है और व्यक्ति इस योग के प्रभावों से मुक्त हो जाता है.

कुछ अन्य शास्त्रों के अनुसार- यदि चन्द्रमा के आगे-पीछे केन्द्र और नवांश में भी इसी प्रकार की ग्रह स्थिति बन रही हो तब भी यह योग भंग माना जाता है. केमद्रुम योग होने पर भी जब चन्द्रमा शुभ ग्रह की राशि में हो तो योग भंग हो जाता है. शुभ ग्रहों में बुध्, गुरु और शुक्र माने गये है. ऎसे में व्यक्ति संतान और धन से युक्त बनता है तथा उसे जीवन में सुखों की प्राप्ति होती है.

केमद्रुम योग की शांति के उपाय | Remedies for Kemdrum Yoga

केमद्रुम योग के अशुभ प्रभावों को दूर करने हेतु कुछ उपायों को करके इस योग के अशुभ प्रभावों को कम करके शुभता को प्राप्त किया जा सकता है. यह उपाय इस प्रकार हैं-

सोमवार को पूर्णिमा के दिन अथवा सोमवार को चित्रा नक्षत्र के समय से लगातार चार वर्ष तक पूर्णिमा का व्रत रखें.

सोमवार के दिन भगवान शिव के मंदिर जाकर शिवलिंग पर गाय का कच्चा दूध चढ़ाएं व पूजा करें.  भगवान शिव ओर माता पार्वती का पूजन करें. रूद्राक्ष की माला से शिवपंचाक्षरी मंत्र " ऊँ नम: शिवाय" का जप करें ऎसा करने से  केमद्रुम योग के अशुभ फलों में कमी आएगी.

घर में दक्षिणावर्ती शंख स्थापित करके नियमित रुप से श्रीसूक्त का पाठ करें. दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर उस जल से देवी लक्ष्मी की मूर्ति को स्नान कराएं तथा चांदी के श्रीयंत्र में मोती धारण करके उसे सदैव अपने पास रखें  या धारण करें.

सोमवार, 6 नवंबर 2017

कुछ वास्तु विचार

1. पश्चिम या दक्षिण-पश्चिम यानि नैश्रृत्य कोण में मुख्य द्धार की स्थापना अति रोग कारक और अशुभ मानी जाती हैं, क्योंकि यहाँ से आने वाला प्रकाश और वायु मलिन माना गया हैं, इससे बचें.
2. पूर्व दिशा में यदि दिवार बाकि दीवारों से ऊचीं होती हैं तो घर में रहने वालों का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता हैं और इसके विपरीत दक्षिण दिशा में ऊँची दिवार रोगों का नाश करती हैं और सुख कारी होती हैं, क्योंकि शुभकारी पूर्व दिशा की वायु, ऊचीं दिवार रोक देती हैं और दक्षिण दिशा की अशुभकारी वायु भी ऊँची दिवार रोक देती हैं.
3. नैश्रृत्य में जल संचय का स्तोत्र रखने से गम्भीर रोग होने का अंदेशा रहता हैं, वहीँ ईशान कोण में जल संचय करने से स्वास्थय लाभ बना रहता हैं. परन्तु यदि वास्तु स्वामी की जन्म कुंडली में चन्द्रमा नीच का या त्रिक भावों में पाप पीड़ित हो तो ईशान कोण में पानी टैंक अशुभ हो जाता हैं, ऐसी दशा में पहले ज्योतिषी से सलाह लेवें.
4. यदि घर का बरंडा या गैलरी पश्चिम की ओर स्लोब लिए या ढला होगा तो उस गृह के पुरुषों का स्वास्थय ठीक नहीं रहेगा और इसके विपरीत उत्तर की और रहने पर रोगों से बचाव होगा.
5. मनुष्य का मस्तक चुम्बकीय अवधारणा में उत्तरी ध्रुव माना जाता हैं, तो उत्तर दिशा में सिर रख कर सोने से धरती का उत्तरी ध्रुव और मनुष्य का सिर आपस में विकर्षित होते हैं जिससे अनिद्रा का रोग हो सकता हैं और शरीर धीरे धीरे कमजोर हो जाता हैं, दक्षिण में मस्तक रख कर सोने से चुंबकीय आकर्षण से शरीर निरोगी रहता हैं.
6. स्नानागार में एक डब्बे में जिसको ढक्कन न लगा हो, उसमे सफ़ेद नमक रखने से घर में बीमारियों का प्रकोप कम रहता हैं.
7. ईशान कोण या उत्तर दिशा में मुख्य द्धार की स्थति उन्नति कारक और आरोग्यकारक होती हैं, पूर्व का द्धार भी अति शुभ माना गया हैं, क्योंकि यहाँ से आने वाला प्रकाश और वायु स्वास्थय के लिए भी शुभ माना जाता हैं, बिना देहरी के मुख्य द्धार नकारात्मकता को रोक नहीं पाता, देहरी आम की लकड़ी की सर्वोत्तम कही गई हैं.
8. पूजा घर में खंडित मूर्ति या तस्वीर लगाने से स्वास्थय संबंधी परेशानियाँ हो सकती हैं, अगर घर में खंडित या टूटी हुई मूर्तियाँ या तस्वीरें हो तो उन्हें नदी में विसर्जित कर देवें, दक्षिण की दिवार पर पितृ की तस्वीर या पंचमुखी बालाजी की तस्वीर के अलावा अन्य देवी देवताओं की तस्वीर अशांति और दुर्भाग्य लाती हैं.
9. दक्षिण दिशा में या नैश्रृत्य कोण में मुख्य द्धार होने पर घर की स्त्रियों का सुख एवं स्वास्थय सही नहीं रहता हैं, अतः ईशान में द्धार की व्यवस्था करें.
10. ईशान कोण में तुलसी का पौधा रखने से घर की स्त्रियों का स्वास्थय कभी ठीक नहीं रहता, इसलिये तुलसी को पश्चिम दिशा में लगाये जो की स्त्री जाती के लिए आरोग्यदायक हैं.
11. पश्चिम दिशा में अंडर ग्राउंड या तहखाना बनाने से अनेक विपदाओं का सामना करना पड़ सकता हैं, उत्तर दिशा में तहखाना बनाने से स्त्रियाँ सुखी और संपन्न रहती हैं.
12. घर में छोटा सा कोना कच्चा, मिट्टी युक्त रखने से शुक्र ग्रह का अच्छा प्रभाव रहता है, जो स्त्रियों के स्वास्थय एवं लक्ष्मी प्राप्ति हेतु अच्छा प्रभाव करता है, ये पूर्व दिशा में श्रेयस्कर हैं.

अमावस्या दोष

 आप में से बहुत से लोगों ने किसी ज्योतिष या पंडित जी के मुँह से ये शब्द सुना होगा कि अमुक जातक अमावस का जन्मा है या इसे अमावस दोष है, जी हाँ दोस्तों आज में इसी दोष पर चर्चा करने जा रहा हूँ।
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तो आईये सबसे पहले तो ये समझते हैं कि आखिर ये अमावस्या दोष होता क्या है।
दोस्तों जब भी सूर्य और चन्द्रमा कुंडली के किसी भी भाव में एक साथ होते हैं तो वहां पर अमावस्या दोष बन जाता है, या अमावस का जन्म होता है। इस दोष को सर्वाधिक अशुभ दोषों में से एक माना जाता है, क्योंकि अमावस्या को चन्द्रमा दिखाई नहीं देता मतलब अन्धकार चन्द्रमा का प्रभाव छिण हो जाता है। क्योंकि चन्द्रमा को ज्योतिष में कुंडली का प्राण माना जाता है, और जब चन्द्रमा ही अंधकारमय हो जाये तो फिर आप लोग समझ सकते हो कि इंसान के मन की क्या स्थिति होगी।
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और कहा भी गया है कि चन्द्रमा मनसो जातः। सूर्य आग है और चन्द्रमा पानी दोनों के तत्व अलग है, और मानव शारीर में अधिकतर जल ही तो होता है। सूर्य के साथ एक ही घर में होने से चन्द्रमा अधिकतर अस्त हो जाता है और इसकी अपनी कोई शक्ति नहीं रह जाती,
चन्द्रमा हमारे मन और मस्तिष्क पर अपना पूर्ण प्रभाव होता है, और नियंत्रण भी यही करता है, और जब चन्द्रमा ही कमजोर हो जाये तो फिर इंसान को कुछ समझ नहीं आता और वह अधिकतर मन के रोग से पीड़ित हो जाता है या फिर उसे कुछ समझ नहीं आता की आखिर ये हो क्या रहा है।
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इंसान के शारीर और मस्तिष्क में या तो जल तत्व बढ़ जाता है या फिर बहुत कम हो जाता है और दोनों ही स्थितियां ख़राब होती हैं।
मन अधिकतर भटकता ही रहता है, दिमाग में अच्छे विचार कम और बुरे ज्यादा आने लगते हैं, दिमाग में भरम, वहम, गन्दी और हिंसक सोच, नकारात्मक विचार, जैसे यदि आप सफ़र कर रहे हैं तो अचानक सोच बन जायेगी कि कहीं एक्सीडेंट न हो जाये, या मैं मर न जॉन, यदि सिरदर्द 2- 4 दिन लगातार हो जाये तो ये सोचना कि कहीं ब्रेन ट्यूमर न हो रहा हो, चेस्ट में थोडा गैस या अन्य कारण से दर्द हो रहा हो तो ये सोचना की कहीं अटैक न आ रहा हो आदि आदि बुरे विचार, इन विचारों में मनुष्य इतना उलझ जाता है कि फिर इनसे बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है, ऐसे नकारात्मक विचार चंद्र के दूषित होने से आते हैं। बहुत से लोग बीमार तो नहीं होते लेकिन खुद के विचार उन्हें बीमार कर देते हैं।
यह सबसे अधिक प्रभाव मन पर ही डालता है दोस्तों, क्योंकि तन एक बार बीमार हो जाये तो वह तो ठीक हो जाता है लेकिन मन बीमार हो जाये तो फिर इससे निकलना बहुत मुश्किल हो जाता है। क्योंकि मन के जीते जीत और मन के हारे हार होती है, दोस्तों आप जानते ही होंगे फिल्मस्टार दीपिका पादुकोण भी डिप्प्रेशन में चली गयी थी, उनकी कुंडली में भी चन्द्रमा की स्थिति कमजोर थी, और वह बड़ी मुश्किल से इससे बाहर निकली थी, आखिर वो भी इंसान ही है।इसके अलावा ऐसे बहुत सी फ़िल्मी हस्तियां थी जो मानसिक तौर से बीमार हो गए थे। और फिर कई मसक्कत के बाद ही बाहर निकले थे, खैर ग्रह दोष तो सभी को एक सामान रूप से ही परेशान करते हैं।
दोस्तों इस दोष में माता पिता की आर्थिक स्थिति अधिकतर ख़राब ही रहती है, जातक भी जीवन भर आर्थिक तंगी से जूझता रहता है, एक तरह से दरिद्र बना देता है।
मान सम्मान गिर जाता है, मन अधिकतर उदासीन और बिना बात के परेशान रहता है, आत्मविश्वास की अधिकतर कमी हो जाया करती है। और अधिकतर जातक आलसी और वहमी हो जाता है। कार्यों में अड़चने आती रहती हैं, सफलता कम ही मिलती है, नकारात्मक ऊर्जा घर कर जाती है, फालतू के दोषारोपण लगते रहते हैं।
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लेकिन दोस्तों घबराने की बात नहीं, यदि ज्योतिष में बुरे योग हैं तो इनके उपाय भी अवश्य होते हैं।
अब इसके उपाय भी सुन लीजिए।

सर्वप्रथम सुबह उठकर सुद्ध होकर सूर्य देव को अर्घ देना चाहिए,
दूसरा- सूर्य और चंद्र से सम्बंधित दान करने चाहिए जैसे कि गेहूं, लाल और सफ़ेद कपडा, दूध, चावल, खीर, आदि जो भी इनसे सम्बंधित सामग्री हो।
तीसरा- शिव आराधना करें और शिवलिंग में कच्चा दूध और पानी में गंगाजल मिलाकर अभिषेक करें।
व पूर्णिमा का व्रत करें।
चौथा- सूर्य एवम चंद्र की शांति कराएं और रोज एक माला चन्द्रमा की जपें।
ऐसे करने से धीरे-धीरे दोष में कमी आने लगती है।

पूर्वजन्म विचार

लोग पूछते है पूर्व जन्म में क्या था अपनी कुंडली से देख कर पता कर सकते है आप खुद और विचार करे।
1- जिस व्यक्ति की कुंडली में चार या इससे अधिक ग्रह उच्च राशि के अथवा स्वराशि के हों तो उस व्यक्ति ने उत्तम योनि भोगकर यहां जन्म लिया है।
2- लग्न में उच्च राशि का चंद्रमा हो तो ऐसा व्यक्ति पूर्वजन्म में योग्य वणिक था, ऐसा मानना चाहिए।
3- लग्नस्थ गुरु इस बात का सूचक है कि जन्म लेने वाला पूर्वजन्म में वेदपाठी ब्राह्मण था। यदि जन्मकुंडली में कहीं भी उच्च का गुरु होकर लग्न को देख रहा हो तो बालक पूर्वजन्म में धर्मात्मा, सद्गुणी एवं विवेकशील साधु अथवा तपस्वी था, ऐसा मानना चाहिए।
4- यदि जन्म कुंडली में सूर्य छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो अथवा तुला राशि का हो तो व्यक्ति पूर्वजन्म में भ्रष्ट जीवन व्यतीत करना वाला था, ऐसा मानना चाहिए।
5- लग्न या सप्तम भाव में यदि शुक्र हो तो जातक पूर्वजन्म में राजा अथवा सेठ था व जीवन के सभी सुख भोगने वाला था, ऐसा समझना चाहिए।
6- लग्न, एकादश, सप्तम या चौथे भाव में शनि इस बात का सूचक है कि व्यक्ति पूर्वजन्म में शुद्र परिवार से संबंधित था एवं पापपूर्ण कार्यों में लिप्त था।
7- यदि लग्न या सप्तम भाव में राहु हो तो व्यक्ति की पूर्व मृत्यु स्वभाविक रूप से नहीं हुई,
8- चार या इससे अधिक ग्रह जन्म कुंडली में नीच राशि के हों तो ऐसे व्यक्ति ने पूर्वजन्म में निश्चय ही आत्महत्या की होगी, ऐसा मानना चाहिए।
9- कुंडली में स्थित लग्नस्थ बुध स्पष्ट करता है कि व्यक्ति पूर्वजन्म में वणिक पुत्र था एवं विविध क्लेशों से ग्रस्त रहता था।
10- सप्तम भाव, छठे भाव या दशम भाव में मंगल की उपस्थिति यह स्पष्ट करती है कि यह व्यक्ति पूर्वजन्म में क्रोधी स्वभाव का था तथा कई लोग इससे पीडि़त रहते थे।
11- गुरु शुभ ग्रहों से दृष्ट हो या पंचम या नवम भाव में हो तो जातक पूर्वजन्म में संन्यासी था, ऐसा मानना चाहिए।
12- कुंडली के ग्यारहवे भाव में सूर्य, पांचवे में गुरु तथा बारहवें में शुक्र इस बात का सूचक है कि यह व्यक्ति पूर्वजन्म में धर्मात्मा प्रवृत्ति का तथा लोगों की मदद करने वाला था, ऐसा मेरा मनना है।

शुक्रवार, 3 नवंबर 2017

पुनर्जन्म व पूर्वजन्म के सिद्धांत

पुनर्जन्म के सिद्धांत को लेकर सभी के मन ये जानने की जिज्ञासा अवश्य रहती है कि पूर्वजन्म में वे क्या थे साथ ही वे ये भी जानना चाहते हैं, वर्तमान शरीर की मृत्यु हो जाने पर इस आत्मा का क्या होगा?

 भारतीय ज्योतिष में इस विषय पर भी काफी शोध किया गया है। उसके अनुसार किसी भी व्यक्ति की कुंडली देखकर उसके पूर्व जन्म और मृत्यु के बाद आत्मा की गति के बारे में जाना जा सकता है। गीताप्रेस गोरखपुर दवारा प्रकाशित परलोक और पुनर्जन्मांक पुस्तक में इस विषय पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला गया है। उसके अनुसार शिशु जिस समय जन्म लेता है। उस समय, स्थान व तिथि को देखकर उसकी जन्म कुंडली बनाई जाती है। उस समय के ग्रहों की स्थिति के अध्ययन के फलस्वरूप यह जाना जा सकता है कि बालक किस योनि से आया है और मृत्यु के बाद उसकी क्या गति होगी। आगे इस संबंध में कुछ विशेष योग बताए जा रहे हैं-

 जन्मपूर्व योनि विचार

1- जिस व्यक्ति की कुंडली में चार या इससे अधिक ग्रह उच्च राशि के अथवा स्वराशि के हों तो उस व्यक्ति ने उत्तम योनि भोगकर यहां जन्म लिया है, ऐसा ज्योतिषियों का मानना है।
2- लग्न में उच्च राशि का चंद्रमा हो तो ऐसा व्यक्ति पूर्वजन्म में योग्य वणिक था, ऐसा मानना चाहिए।
3- लग्नस्थ गुरु इस बात का सूचक है कि जन्म लेने वाला पूर्वजन्म में वेदपाठी ब्राह्मण था। यदि जन्मकुंडली में कहीं भी उच्च का गुरु होकर लग्न को देख रहा हो तो बालक पूर्वजन्म में धर्मात्मा, सद्गुणी एवं विवेकशील साधु अथवा तपस्वी था, ऐसा मानना चाहिए।
4- यदि जन्म कुंडली में सूर्य छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो अथवा तुला राशि का हो तो व्यक्ति पूर्वजन्म में भ्रष्ट जीवन व्यतीत करना वाला था, ऐसा मानना चाहिए।
5- लग्न या सप्तम भाव में यदि शुक्र हो तो जातक पूर्वजन्म में राजा अथवा सेठ था व जीवन के सभी सुख भोगने वाला था, ऐसा समझना चाहिए।
6- लग्न, एकादश, सप्तम या चौथे भाव में शनि इस बात का सूचक है कि व्यक्ति पूर्वजन्म में शुद्र परिवार से संबंधित था एवं पापपूर्ण कार्यों में लिप्त था।
7- यदि लग्न या सप्तम भाव में राहु हो तो व्यक्ति की पूर्व मृत्यु स्वभाविक रूप से नहीं हुई, ऐसा ज्योतिषियों का मत है।
8- चार या इससे अधिक ग्रह जन्म कुंडली में नीच राशि के हों तो ऐसे व्यक्ति ने पूर्वजन्म में निश्चय ही आत्महत्या की होगी, ऐसा मानना चाहिए।
9- कुंडली में स्थित लग्नस्थ बुध स्पष्ट करता है कि व्यक्ति पूर्वजन्म में वणिक पुत्र था एवं विविध क्लेशों से ग्रस्त रहता था।
10- सप्तम भाव, छठे भाव या दशम भाव में मंगल की उपस्थिति यह स्पष्ट करती है कि यह व्यक्ति पूर्वजन्म में क्रोधी स्वभाव का था तथा कई लोग इससे पीडि़त रहते थे।
11- गुरु शुभ ग्रहों से दृष्ट हो या पंचम या नवम भाव में हो तो जातक पूर्वजन्म में संन्यासी था, ऐसा मानना चाहिए।
12- कुंडली के ग्यारहवे भाव में सूर्य, पांचवे में गुरु तथा बारहवें में शुक्र इस बात का सूचक है कि यह व्यक्ति पूर्वजन्म में धर्मात्मा प्रवृत्ति का तथा लोगों की मदद करने वाला था, ऐसा ज्योतिषियों का मानना है।

मृत्यु उपरांत गति विचार

मृत्यु के बाद आत्मा की क्या गति होगी या वह पुन: किस रूप में जन्म लेगी, इसके बारे में भी जन्म कुंडली देखकर जाना जा सकता है। आगे इसी से संबंधित कुछ प्रमाणिक योग बताए जा रहे हैं-
1- कुंडली में कहीं पर भी यदि कर्क राशि में गुरु स्थित हो तो जातक मृत्यु के बाद उत्तम कुल में जन्म लेता है।
2- लग्न में उच्च राशि का चंद्रमा हो तथा कोई पापग्रह उसे न देखते हों तो ऐसे व्यक्ति को मृत्यु के बाद सद्गति प्राप्त होती है।
3- अष्टमस्थ राहु जातक को पुण्यात्मा बना देता है तथा मरने के बाद वह राजकुल में जन्म लेता है, ऐसा विद्वानों का कथन है।
4- अष्टम भाव पर मंगल की दृष्टि हो तथा लग्नस्थ मंगल पर नीच शनि की दृष्टि हो तो जातक रौरव नरक भोगता है।
5- अष्टमस्थ शुक्र पर गुरु की दृष्टि हो तो जातक मृत्यु के बाद वैश्य कुल में जन्म लेता है।
6- अष्टम भाव पर मंगल और शनि, इन दोनों ग्रहों की पूर्ण दृष्टि हो तो जातक की अकाल मृत्यु होती है।
7- अष्टम भाव पर शुभ अथवा अशुभ किसी भी प्रकार के ग्रह की दृष्टि न हो और न अष्टम भाव में कोई ग्रह स्थित हो तो जातक ब्रह्मलोक प्राप्त करता है।
8- लग्न में गुरु-चंद्र, चतुर्थ भाव में तुला का शनि एवं सप्तम भाव में मकर राशि का मंगल हो तो जातक जीवन में कीर्ति अर्जित करता हुआ मृत्यु उपरांत ब्रह्मलीन होता है अर्थात उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
9- लग्न में उच्च का गुरु चंद्र को पूर्ण दृष्टि से देख रहा हो एवं अष्टम स्थान ग्रहों से रिक्त हो तो जातक जीवन में सैकड़ों धार्मिक कार्य करता है तथा प्रबल पुण्यात्मा एवं मृत्यु के बाद सद्गति प्राप्त करता है।
10- अष्टम भाव को शनि देख रहा हो तथा अष्टम भाव में मकर या कुंभ राशि हो तो जातक योगिराज पद प्राप्त करता है तथा मृत्यु के बाद विष्णु लोक प्राप्त करता है।
11- यदि जन्म कुंडली में चार ग्रह उच्च के हों तो जातक निश्चय ही श्रेष्ठ मृत्यु का वरण करता है।
12- ग्यारहवे भाव में सूर्य-बुध हों, नवम भाव में शनि तथा अष्टम भाव में राहु हो तो जातक मृत्यु के पश्चात मोक्ष प्राप्त करता है।

विशेष योग

1- बारहवां भाव शनि, राहु या केतु से युक्त हो फिर अष्टमेश (कुंडली के आठवें भाव का स्वामी) से युक्त हो अथवा षष्ठेश (छठे भाव का स्वामी) से दृष्ट हो तो मरने के बाद अनेक नरक भोगने पड़ेंगे, ऐसा समझना चाहिए।
2- गुरु लग्न में हो, शुक्र सप्तम भाव में हो, कन्या राशि का चंद्रमा हो एवं धनु लग्न में मेष का नवांश हो तो जातक मृत्यु के बाद परमपद प्राप्त करता है।
3- अष्टम भाव को गुरु, शुक्र और चंद्र, ये तीनों ग्रह देखते हों तो जातक मृत्यु के बाद श्रीकृष्ण के चरणों में स्थान प्राप्त करता है, ऐसा ज्योतिषियों का मत है।

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