नवम भाव का कारक ग्रह गुरु होता है| नवम भाव से मुख्य चार प्रकार के विचार होते हैं|
१. एवं नवम भाव का कारक ग्रह बलि हो ६,८,१२ भाव में स्थित न हो, केंद्र-त्रिकोण में स्थित हो तो पूर्ण फल मिलता है|
२. यदि नवम भाव में स्थित ग्रह नवम भाव के राशि स्वामी के मित्र हो तथा शुभ-स्थानों का स्वामी होकर नवम भाव में स्थित हो तो पूर्ण फल प्रदान करता है|
३. यदि नवम भाव का स्वामी बलि होकर केंद्र त्रिकोण में स्थित हो और मित्र राशि, स्वराशी, शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो पूर्ण फल प्रदान करेगा| अर्थात नवम भाव का कारक ग्रह नवमेंश नवम भाव, नवम भाव पर दृष्टि ये चार प्रकार के कारक शुभ स्थान के भाव का हो, शुभ ग्रह से दृष्ट हो बली ६,८,१२ में न हो तो सात प्रतिशत पूर्ण फल प्रदान करेगा| अतः इन सभी शुभ स्थानों के शुभ ग्रहों के युत दृष्ट बलि इत्यादि होने पर उन-उन स्थानों के कारकत्व पूर्ण दृष्टि होकर जातक को शुभ फल प्राप्त होगा| यदि इसके विपरीत हो तो फल भी विपरीत समझना चाहिए|
यदि शुभ अशुभ दोनों प्रकार का योग हो तो उनमें से जो बलि होगा उसका फल मिलेगा| यदि शुभ अशुभ समान रूप से बलि हों तब जातक के जीवन में शुभ अशुभ दोनों ही समान रूप से विद्यमान होगा| यदि नवम भाव के उपरोक्त चार कारक सप्त वर्ग में शुभ अपनें भाव, स्वगृही मित्र, गृही उच्च शुभ वर्ग इत्यदि में प्राप्त हो तो जातक का भाग्य बहुत महत्वपूर्ण बन जायेगा ऐसा जातक समाज देश विदेश धर्म में विख्यात होगा| प्रसिद्ध व्यक्ति होगा|
नवम भाव पर विचरणीय विषय
भाग्य शक्ति, (गुरु-पिता, धर्म, तप, शुभ कार्य, धर्मगुरु, धर्म के कार्यों में संलग्न रहना तथ दया, दान, शिक्षा से लाभ, विद्या, परिश्रम, बड़े लोग, मालिक, शुद्ध आचरण, तीर्थ यात्रा, लम्बी दुरी की यात्रा, गुरु के प्रति भक्ति, ओषधि, चित्त की शुद्धता, देवता की उपासना, कमी हुई सम्पत्ति, न्याय प्रताप, आरोग्य सत्संग, ऐश्वर्य धन कम होते जाना, वैराग्य, वेद पठन, दैवी शक्ति संस्थापन, साले का विचार, परोपकार, नदी या समुद्र का प्रवास, विदेश यात्रा, स्थानांतरण, नौकरी में परिवर्तन, सन्यास, मेहमान धरोहर, दुसरे का विवाह, कानून, दर्शनशास्त्र, बड़े अधिकारी, उच्च शिक्षा इत्यादि|
भाग्योदय वर्ष
ग्रह सूर्य चन्द्र मंगल बुद्ध गुरु शुक्र शनि राहू
वर्ष २२ २४ २८ ३२ १६ २५ ३६ ४२
जैसे भाग्येश के नवांश में यदि चन्द्रमा हो तो जातक का भाग्योदय २४ वर्ष पर होगा|
१. बुद्ध भागेश हो तो ३२ वें वर्ष में होगा| गुरु की स्थिति शुभ होती है, तो जातक भाग्यशाली होता है|
२. गुरु स्वगृही उच्चगत केन्द्रगत हो तो जातक भाग्यशाली होता है|
३. नवमेंश और गुरु शुभ वर्ग में हो तो जातक भाग्यशाली होता है| साथ ही नवम भाव में शुभ ग्रह हो|
४. नवम भाव में पाप ग्रह हो, नीच राशि का हो या अस्त हो तो ऐसा जातक भाग्यहीन होता है|
५. नवम भाव में कोई भी ग्रह उच्च राशि का, मित्र राशि का एवं स्वग्रही हो तो ऐसा जातक भाग्यवान होता है|
६. भाग्येश अष्टम में, नीच्चस्थ हो, पाप ग्रह से युत या दृष्ट हो, पाप ग्रह के नवमांश में हो तो ऐसा जातक भाग्यहीन होकर भींख मांगता है|
७. भाग्येश शुभ ग्रह से दृष्ट या युत हो तथा नवम भाव शुभ ग्रह से युत हो तो ऐसा जातक महाँ भाग्यशाली होता है|
८. यदि गुरु नवम भाव में हो और नवमेंश केंद्र में हो, लग्नेंश बलि हो तो जातक भाग्यशाली और यदि इसके विपरीत ग्रह बल्हीनहो निचस्थ हो तो जातक भाग्यहीन होता है|
१. एवं नवम भाव का कारक ग्रह बलि हो ६,८,१२ भाव में स्थित न हो, केंद्र-त्रिकोण में स्थित हो तो पूर्ण फल मिलता है|
२. यदि नवम भाव में स्थित ग्रह नवम भाव के राशि स्वामी के मित्र हो तथा शुभ-स्थानों का स्वामी होकर नवम भाव में स्थित हो तो पूर्ण फल प्रदान करता है|
३. यदि नवम भाव का स्वामी बलि होकर केंद्र त्रिकोण में स्थित हो और मित्र राशि, स्वराशी, शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो पूर्ण फल प्रदान करेगा| अर्थात नवम भाव का कारक ग्रह नवमेंश नवम भाव, नवम भाव पर दृष्टि ये चार प्रकार के कारक शुभ स्थान के भाव का हो, शुभ ग्रह से दृष्ट हो बली ६,८,१२ में न हो तो सात प्रतिशत पूर्ण फल प्रदान करेगा| अतः इन सभी शुभ स्थानों के शुभ ग्रहों के युत दृष्ट बलि इत्यादि होने पर उन-उन स्थानों के कारकत्व पूर्ण दृष्टि होकर जातक को शुभ फल प्राप्त होगा| यदि इसके विपरीत हो तो फल भी विपरीत समझना चाहिए|
यदि शुभ अशुभ दोनों प्रकार का योग हो तो उनमें से जो बलि होगा उसका फल मिलेगा| यदि शुभ अशुभ समान रूप से बलि हों तब जातक के जीवन में शुभ अशुभ दोनों ही समान रूप से विद्यमान होगा| यदि नवम भाव के उपरोक्त चार कारक सप्त वर्ग में शुभ अपनें भाव, स्वगृही मित्र, गृही उच्च शुभ वर्ग इत्यदि में प्राप्त हो तो जातक का भाग्य बहुत महत्वपूर्ण बन जायेगा ऐसा जातक समाज देश विदेश धर्म में विख्यात होगा| प्रसिद्ध व्यक्ति होगा|
नवम भाव पर विचरणीय विषय
भाग्य शक्ति, (गुरु-पिता, धर्म, तप, शुभ कार्य, धर्मगुरु, धर्म के कार्यों में संलग्न रहना तथ दया, दान, शिक्षा से लाभ, विद्या, परिश्रम, बड़े लोग, मालिक, शुद्ध आचरण, तीर्थ यात्रा, लम्बी दुरी की यात्रा, गुरु के प्रति भक्ति, ओषधि, चित्त की शुद्धता, देवता की उपासना, कमी हुई सम्पत्ति, न्याय प्रताप, आरोग्य सत्संग, ऐश्वर्य धन कम होते जाना, वैराग्य, वेद पठन, दैवी शक्ति संस्थापन, साले का विचार, परोपकार, नदी या समुद्र का प्रवास, विदेश यात्रा, स्थानांतरण, नौकरी में परिवर्तन, सन्यास, मेहमान धरोहर, दुसरे का विवाह, कानून, दर्शनशास्त्र, बड़े अधिकारी, उच्च शिक्षा इत्यादि|
भाग्योदय वर्ष
ग्रह सूर्य चन्द्र मंगल बुद्ध गुरु शुक्र शनि राहू
वर्ष २२ २४ २८ ३२ १६ २५ ३६ ४२
जैसे भाग्येश के नवांश में यदि चन्द्रमा हो तो जातक का भाग्योदय २४ वर्ष पर होगा|
१. बुद्ध भागेश हो तो ३२ वें वर्ष में होगा| गुरु की स्थिति शुभ होती है, तो जातक भाग्यशाली होता है|
२. गुरु स्वगृही उच्चगत केन्द्रगत हो तो जातक भाग्यशाली होता है|
३. नवमेंश और गुरु शुभ वर्ग में हो तो जातक भाग्यशाली होता है| साथ ही नवम भाव में शुभ ग्रह हो|
४. नवम भाव में पाप ग्रह हो, नीच राशि का हो या अस्त हो तो ऐसा जातक भाग्यहीन होता है|
५. नवम भाव में कोई भी ग्रह उच्च राशि का, मित्र राशि का एवं स्वग्रही हो तो ऐसा जातक भाग्यवान होता है|
६. भाग्येश अष्टम में, नीच्चस्थ हो, पाप ग्रह से युत या दृष्ट हो, पाप ग्रह के नवमांश में हो तो ऐसा जातक भाग्यहीन होकर भींख मांगता है|
७. भाग्येश शुभ ग्रह से दृष्ट या युत हो तथा नवम भाव शुभ ग्रह से युत हो तो ऐसा जातक महाँ भाग्यशाली होता है|
८. यदि गुरु नवम भाव में हो और नवमेंश केंद्र में हो, लग्नेंश बलि हो तो जातक भाग्यशाली और यदि इसके विपरीत ग्रह बल्हीनहो निचस्थ हो तो जातक भाग्यहीन होता है|
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