गुरुवार, 28 सितंबर 2017

कुंडली में गुरु की 12 भाव मे प्रभाव

जिस जातक के लग्न में बृहस्पति स्थित होता है, वह जातक दिव्य देह से युक्त, आभूषणधारी, बुद्धिमान, लंबे शरीर वाला होता है।. ऐसा व्यक्ति धनवान, प्रतिष्ठावान तथा राजदरबार में मान-सम्मान पाने वाला होता है।. शरीर कांति के समान, गुणवान, गौर वर्ण, सुंदर वाणी से युक्त,सतोगुणी एवं कफ प्रकृति वाला होता है।दीर्घायु, सत्कर्मी, पुत्रवान एवं सुखी बनाता है लग्न का बृहस्पति।.

 जिस जातक के द्वितीय भाव में बृहस्पति होता है, उसकी बुद्धि, उसकी स्वाभाविक रुचि काव्य-शास्त्र की ओर होती है।. द्वितीय भाव वाणी का भी होता इस कारण जातक वाचाल होता है।. उसमें अहम की मात्रा बढ़ जाती है।. क्योंकि द्वितीय भाव कुटुंब, वाणी एवं धन का होता है और बृहस्पति इस भाव का कारक भी है, इस कारण द्वितीय भाव स्थित बृहस्पति, कारक भावों नाश्यति के सूत्र के अनुसार, इस भाव के शुभ फलों में कमी ही करता देखा गया है।. धनार्जन के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना,वाणी की प्रगल्भता, अथवा बहुत कम बोलना और परिवार में संतुलन बनाये रखने हेतु उसे प्रयास करने पड़ते हैं।. राजदरबार में उसे दंड देने का अधिकारी होता है। अन्य लोग इसका मान-सम्मान करते हैं।. ऐसा जातक शत्रुरहित होता है।. आयुर्भाव पर पूर्ण दृष्टि होने के कारण वह दीर्घायु और विध्वान होता है।. पाप ग्रह से युक्त होने पर शिक्षा में रुकावटें आती हैं तथा वहमिथ्याभाषी हो जाता है।. दूषित गुरु से शुभ फलों मेंकमी आती है और घर के बड़ों से विरोध कराता है।.

 जिस जातक के तृतीय भाव में बृहस्पति होता है, वह मित्रों के प्रति कृतघ्न और सहोदरों का कल्याण करने वाला होता है।. वराहमिहिर के अनुसार वह कृपण होता है।. इसी कारण धनवान हो कर भी वह निर्धन के समान परिलक्षित होता है।. परंतु शुभ ग्रहों से युक्त होने पर उसे शुभ फल प्राप्त होते हैं।. पुरुष राशि में होने पर शिक्षा अपूर्ण रहती है, परंतु विधवान प्रतीत होता है।. इस स्थान में स्थित गुरु के जातक के लिए सर्वोत्तम व्यवसाय अध्यापक का होता है।. शिक्षक प्रत्येक स्थिति में गंभीर एवं शांत बने रहते हैं तथा परिस्थितियों का कुशलतापूर्वक सामना करते हैं।.

 जिस जातक के चतुर्थ स्थान में बलवान बृहस्पति होता है, वह देवताओं और ब्राह्मणों से प्रीति रखता है, राजा से सुख प्राप्त करता है, सुखी, यशस्वी, बली, धन-वाहनादि से युक्त होता है और पिता को सुखी बनाता है।. वह सुहृदय एवं मेधावी होता है। इस भाव में अकेला गुरू पूर्वजों से संपत्ति प्राप्त करता है।.

 जिस जातक के पंचम स्थान में बृहस्पति होता है, वह बुद्धिमान, गुणवान, तर्कशील, श्रेष्ठ एवं विद्वानों द्वारा पूजित होता है।. धनु एवं मीन राशि में होने से उसकी कम संतति होती है।. कर्क में वह संतति रहित भी देखा गया है।. सभा में तर्कानुकूल उचित बोलने वाला, शुद्धचित तथा विनम्र होता है।. पंचमस्थ गुरु के कारण संतान सुख कम होता है।. संतान कम होती है और उससे सुख भी कम ही मिलता है।.

 रिपु स्थान, अर्थात जन्म लग्न से छठे स्थान में बृहस्पति होने पर जातक शत्रुनाशक, युद्धजया होता है एवं मामा से विरोध करता है।. स्वयं, माता एवं मामा के स्वास्थ्य में कमी रहती है।. संगीत विधा में अभिरुचि होती है।. पाप ग्रहों की राशि में होने से शत्रुओं से पीड़ित भी रहता है।. गुरु – चंद्र का योग इस स्थान पर दोष उत्पन्न करता है।. यदि गुरु शनि के घर राहु के साथ स्थित हो, तो रोगों का प्रकोप बना रहता है।. इस भाव का गुरु वैध, डाक्टर और अधिवक्ताओं हेतु अशुभ है।. इस भाव के गुरु के जातक के बारे में लोग संदिग्ध और संशयात्मा रहते हैं।. पुरुष राशि में गुरु होने पर जुआ, शराब और वेश्या से प्रेम होता है।. इन्हें मधुमेह, बहुमूत्रता, हर्निया आदि रोग हो सकते हैं।. धनेश होने पर पैतृक संपत्ति से वंचित रहना पड़ सकता है।.

 जिस जातक के जन्म लग्न से सप्तम भाव में बृहस्पति हो, तो ऐसा जातक, बुद्धिमान, सर्वगुणसंपन्न, अधिक स्त्रियों में आसक्त रहने वाला, धनी, सभा में भाषण देने में कुशल, संतोषी, धैर्यवान, विनम्र और अपने पिता से अधिक और उच्च पद को प्राप्त करने वाला होता है।. इसकी पत्नी पतिव्रता होती है।. मेष, सिंह, मिथुन एवं धनु में गुरु हो, तो शिक्षा के लिए श्रेष्ठ है, जिस कारण ऐसा व्यक्ति विधवान, बुद्धिमान, शिक्षक, प्राध्यापक और न्यायाधीश हो सकता है।.

 जिस व्यक्ति के अष्टम भाव में बृहस्पति होता है, वह पिता के घर में अधिक समय तक नहीं रहता।. वह कृशकाय और दीर्घायु होता है।. द्वितीय भाव पर पूर्ण दृष्टि होने के कारण धनी होता है।. वह कुटुंब से स्नेह रखता है।. उसकी वाणी संयमित होती है।. यदि शत्रु राशि में गुरु हो, तो जातक शत्रुओं से घिरा हुआ, विवेकहीन, सेवक, निम्न कार्यों में लिप्त रहने वाला और आलसी होता है।. स्वग्रही एवं शुभ राशि में होने पर जातक ज्ञानपूर्वक किसी उत्तम स्थान पर मृत्यु को प्राप्त करता है।. वह सुखी होता है।. बाह्य संबंधों से लाभान्वित होता है। स्त्री राशि में होने के कारण अशुभ फल और पुरुष राशि में होने से शुभ फल प्राप्त होते हैं।.

 जिस जातक के नवम स्थान में बृहस्पति हो, उसका घर चार मंजिल का होता है।. धर्म में उसकी आस्था सदैव बनी रहती है।. उसपर राजकृपा बनी रहती है, अर्थात जहां भी नौकरी करेगा, स्वामी की कृपा दृष्टि उसपर बनी रहेगी।. वह उसका स्नेह पात्र होगा।. बृहस्पति उसका धर्म पिता होगा।. सहोदरों के प्रति वह समर्पित रहेगा और ऐश्वर्यशाली होगा।. उसका भाग्यवान होना अवश्यंभावी है और वह विद्वान, पुत्रवान,सर्वशास्त्रज्ञ, राजमंत्री एवं विद्वानों का आदर करने वाला होगा।.

 जिस जातक के दसवें भाव में बृहस्पति हो, उसके घर पर देव ध्वजा फहराती रहती है।. उसका प्रताप अपने पिता-दादा से कहीं अधिक होता है।. उसको संतान सुख अल्प होता है।. वह धनी और यशस्वी, उत्तम आचरण वाला और राजा का प्रिय होता है।. इसे मित्रों का, स्त्री का, कुटुंब का धन और वाहन का पूर्ण सुख प्राप्त होता है।. दशम में रवि हो, तो पिता से, चंद्र हो, तो माता से, बुध हो, तो मित्र से, मंगल हो, तो शत्रु से, गुरु हो, तो भाई से, शुक्र हो, तो स्त्री से एवं शनि हो, तो सेवकों से उसे धन प्राप्त होता है।.

 जिस जातक के एकादश भाव में बृहस्पति हो, उसकी धनवान एवं विधवान भी सभा में स्तृति करते हैं।. वह सोना-चांदी आदि अमूल्य पदार्थों का स्वामी होता है।. वह विधवान, निरोगी, चंचल, सुंदर एवं निज स्त्री प्रेमी होता है।. परंतु कारक भावों नाश्यति, के कारण इस भाव के गुरु के फल सामान्य ही दृष्टिगोचर होते हैं, अर्थात इनके शुभत्व में कमी आती है।.

 जिस जातक के द्वादश भाव में बृहस्पति हो, तो उसका द्रव्य अच्छे कार्यों में व्यय होने के पश्चात् भी, अभिमानी होने के कारण, उसे यश प्राप्त नहीं होता है।. निर्धन ,भाग्यहीन, अल्प संतति वाला और दूसरों को किस प्रकार से ठगा जाए, सदैव ऐसी चिंताओं में वह लिप्त रहता है।. वह रोगी होता है और अपने कर्मों के द्वारा शत्रु अधिक पैदा कर लेता है।. उसके अनुसार यज्ञ आदि कर्म व्यर्थ और निरर्थक हैं।. आयु का मध्य तथा उत्तरार्द्ध अच्छे होते है।. इस प्रकार यह अनुभव में आता है कि गुरु कितना ही शुभ ग्रह हो, लेकिन यदि अशुभ स्थिति में है, तो उसके फलों में शुभत्व की कमी हो जाती है और अशुभ फल भी प्राप्त होते हैं और शुभ स्थिति में होने पर गुरु कल्याणकारी होता है।

जन्म अथवा नाम राशि के अनुकूल रंग

रंगों का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है। हम अपने चारों ओर के  अनेक  रंगों से प्रभावित होते हैं। मूल रूप से इन्द्रधनुष  के सात रंगों को ही रंगों का जनक माना जाता है, ये सात रंग लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीलातथा बैंगनी हैं। रंगों की उत्पत्ति का  प्राकृतिक स्रोत सूर्य का प्रकाश है|  प्रकृति की सुन्दरता अवर्णनीय है और रंग ही  इसकी सुन्दरता में चार चाँद लगाते है । सूर्य की लालिमा हो या खेतों की हरियाली, आसमान का नीलापन या मेघों का कालापन, वर्षा  के बाद में बिखरती इन्द्रधनुष की अनोखी छटा, बर्फ़ की सफ़ेदी और ऐसे  कितने ही ख़ूबसूरत दृश्य  हैं  जो हमें प्रफुल्लित कर देते हैं । इस आनंद का रहस्य  है  रंगों की अनुभूति। मानव जीवन रंगों के बिना उदास और सूना है| व्यक्ति पर उसके द्वारा प्रयोग किये जाने वाले तथा उसके आस पास के रंगों का बहुत असर पड़ता है | रंगों के इस महत्व को समझ कर ही हमारे ऋषियों ने धार्मिक अनुष्ठानों  में विभिन्न रंगों के प्रयोग का समावेश किया है | कुमकुम ,हल्दी ,मेहँदी ,गुलाल को धार्मिक कार्यों में प्रयोग किया जाता है | नव ग्रह पूजन में सूर्य  और मंगल को लाल रंग से ,चन्द्र और शुक्र को श्वेत रंग से ,बुध को हरे रंग से ,गुरु को पीले रंग से ,शनि तथा राहू –केतु को काले रंग से प्रदर्शित किया जाता है |  हमारे शरीर पर रंगों का प्रभाव बहुत ही सूक्ष्म प्रक्रिया से होता हैं | आज कल पाश्चात्य चिकित्सा में भी रंगों के प्रयोग पर अनुसंधान किया जा रहा है   जिसका  बहुत सकारात्मक परिणाम मिल रहा  है |

नीचे आपकी राशि के अनुकूल तथा प्रतिकूल रंगों का वर्णन किया गया है | अपनी राशि के अनुकूल रंग का अपने जीवन में अधिक प्रयोग करने पर आपको सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होगी|

जिनकी जन्म या नाम राशि मेष  है उनके  लिए लाल, पीला, नारंगी,श्वेत ,गुलाबी रंग अनुकूल हैं  ।  नीले, स्लेटी  और काले  ओर  हरे  रंग के प्रयोग से बचें|
जिनकी जन्म या नाम राशि वृष है  उनके  लिए हरा,श्वेत ,मिश्रित रंग,नीला ,स्लेटी,काला ,आसमानी ,जामुनी रंग अनुकूल हैं | लाल, पीला, नारंगी,श्वेत ,गुलाबी रंग का प्रयोग कम करें |

जिनकी जन्म या नाम राशि मिथुन है उनके  लिए हरा,श्वेत ,मिश्रित रंग,नीला ,स्लेटी,काला ,आसमानी ,जामुनी रंग अनुकूल हैं | लाल, पीला, नारंगी,श्वेत ,गुलाबी रंग का प्रयोग कम करें |
जिनकी जन्म या नाम राशि कर्क है उनके लिए लाल, पीला, नारंगी,श्वेत ,गुलाबी रंग अनुकूल हैं  ।  नीले, स्लेटी, हरे और काले रंग के प्रयोग से बचें|

जिनकी जन्म या नाम राशि सिंह  है उनके  लिए लाल, पीला,हरा , नारंगी,श्वेत ,गुलाबी रंग अनुकूल हैं  ।  नीले, स्लेटी  और काले रंग के प्रयोग से बचें|

जिनकी जन्म या नाम राशि कन्या है  उनके  लिए हरा ,नीला ,स्लेटी,काला ,आसमानी ,जामुनी रंग अनुकूल हैं | लाल, पीला, नारंगी,श्वेत ,गुलाबी रंग का प्रयोग कम करें |

जिनकी जन्म या नाम राशि  तुला है  उनके  लिए हरा,श्वेत ,मिश्रित रंग,नीला ,स्लेटी,काला ,आसमानी ,जामुनी रंग अनुकूल हैं | लाल, पीला, नारंगी,गुलाबी रंग का प्रयोग कम करें |

जिनकी जन्म या नाम राशि वृश्चिक  है उनके  लिए लाल, पीला, नारंगी,श्वेत ,गुलाबी रंग अनुकूल हैं  ।  नीले, स्लेटी  और काले रंग के प्रयोग से बचें|

जिनकी जन्म या नाम राशि धनु है उनके  लिए लाल, पीला, नारंगी,श्वेत ,गुलाबी रंग अनुकूल हैं  ।  नीले, स्लेटी ,हरे  और काले रंग के प्रयोग से बचें |

जिनकी जन्म या नाम राशि मकर है उनके  लिए हरा ,मिश्रित रंग,नीला ,स्लेटी,काला ,आसमानी ,जामुनी रंग अनुकूल हैं लाल, पीला, नारंगी,श्वेत ,गुलाबी रंग का प्रयोग कम करें |

जिनकी जन्म या नाम राशि कुम्भ  है उनके  लिए हरा,नीला ,स्लेटी,काला ,आसमानी ,जामुनी रंग अनुकूल हैं | लाल, पीला, नारंगी,श्वेत ,गुलाबी रंग का प्रयोग कम करें |

जिनकी जन्म या नाम राशि मीन है उनके  लिए लाल, भूरा , पीला, नारंगी,श्वेत ,गुलाबी रंग अनुकूल हैं  । नीले,  हरे ,स्लेटी और काले रंग के प्रयोग से बचें|

जन्म कुंडली से जानें पिता-पुत्र के संबंध

आपकी जन्म कुंडली के अनुसार आपका आपके पुत्र से संबंध कैसा रहेगा? कभी-कभी पिता और पुत्र में झगड़ा भी होता है। देखें कि किन-किन ग्रहों से पिता एवं पुत्र का संबंध है। पिता के लग्न से दशम राशि में यदि पुत्र का जन्म लग्न में हो तो पुत्र-पिता तुल्य गुणवान होता है। यदि पिता के द्वितीय, तृतीय, नवम व एकादश भावस्थ राशि में पुत्र का जन्म लग्न हो तो पुत्र पिता के अधीन रहता है।यदि पिता के षष्ठम व अष्टम भाव में जो राशि हो, वही पुत्र का जन्म लग्न हो तो पुत्र, पिता का शत्रु होता है और यदि पिता के द्वादश भाव गत राशि में पुत्र का जन्म हो तो भी पिता-पुत्र में उत्तम स्नेह नहीं रहता।

यदि पिता की कुंडली का षष्ठेश अथवा अष्टमेश पुत्र की कुंडली के लग्न में बैठा हो तो पिता से पुत्र विशेष गुणी होता है। यदि लग्नेश की दृष्टि पंचमेश पर पड़ती हो और पंचमेश की दृष्टि लग्नेश पर पड़ती हो अथवा लग्नेश पंचमेश के गृह में हो और पंचमेश नवमेश के गृह में हो अथवा पंचमेश नवमेश के नवांश में हो तो पुत्र आज्ञाकारी और सेवक होता है। यदि पंचम स्थान में लग्नाधिपति और त्रिकोणाधिपति साथ होकर बैठे हों और उन पर शुभग्रह की दृष्टि भी पड़ती हो तो जातक के लिए केवल राज योग ही नहीं होता वरन् उसके पुत्रादि सुशील, सुखी, उन्नतिशील और पिता को सुखी रखने वाले होते हैं परंतु यदि षष्ठेश, अष्टमेश अथवा द्वादशेश पाप ग्रह और दुर्बल होकर पंचम स्थान में बैठे हों तो ऐसा जातक अपनी संतान के रोग ग्रस्त रहने के कारण उससे शत्रुता के कारण, संतान से असभ्य व्यवहार के कारण अथवा संतान-मृत्यु के कारण पीड़ित रहता है।

यदि पंचमेश पंचमगत हो अथवा लग्न पर दृष्टि रखता हो अथवा लग्नेश पंचमस्थ हो तो पुत्र आज्ञाकारी और प्रिय होता है।स्मरण रहे कि जितना ही पंचम स्थान का लग्न से शुभ संबंध होगा, उतना ही पिता-पुत्र का संबंध उत्तम और घनिष्ठ होगा। यदि पंचमेश 6, 8 व 12 स्थान में हो और उस पर लग्नेश की दृष्टि न पड़ती हो तो पिता-पुत्र का संबंध उत्तम होता है। यदि पंचमेश 6, 8 व 12 स्थानगत हो तो उस पर लग्नेश, मंगल और राहू की दृष्टि भी पड़ती हो तो पुत्र-पिता से घृणा करेगा और पिता को गाली-गलौच तक करने में बाज नहीं आएगा। पद लग्न से पुत्र और पिता का भी विचार किया जाता है।पद लग्न से केंद्र अथवा त्रिकोण में अथवा उपचय स्थान में यदि पंचम राशि पड़ती हो तो पिता-पुत्र में परस्पर मित्रता होती है, परंतु लग्न से पंचमेश 6, 8, 12 स्थान में पड़े तो पिता-पुत्र में बैर होता है।

विभिन्न मृत्यु योग

मृत्यु योग
1- लग्न की महादशा हो और अन्तर्दशा लग्न के शत्रु ग्रह की हो तो मनुष्य की अकस्मात मृत्यु होती है।

2- छठे स्थान के स्वामी का सम्बन्ध मंगल से हो तो अकस्मात आपरेशन से मृत्यु हो।

3- लग्न से तृतीय स्थान में या कारक ग्रह से तृतीय स्थान में सूर्य हो तो राज्य के कारण मृत्यु हो।

4- यदि शनि चर व चर राशि के नवांश में हो तो दूर देश में मृत्यु हो।

5- अष्टम में स्थिर राशि हो उस राशि का स्वामी स्थिर राशि में हो तो गृह स्थान में जातक की मृत्यु होती है।

6- द्विस्वभाव राशि अष्टम स्थान मं हो तथा उसका स्वामी भी द्विस्वभाव राशिगत हो तो पथ (रास्ते) में मृत्यु हो।

7- तीन ग्रह एक राशि में बैठे हों तो जातक सहस्र पद से युक्त पवित्र स्थान गंगा के समीप मरता है।

8- लग्न से 22 वें द्रेष्काण का स्वामी या अष्टमभाव का स्वामी नवम भाव में चन्द्र हो तो काशीतीर्थ बुध शुक्र हो तो द्वारिका में मृत्यु हो।

9- अष्टम भाव में गुरु चाहे किसी राशि में हो व्यक्ति की मृत्यु बुरी हालत में होती है।

मृत्यु फांसी के द्वारा

1- द्वितीयेश और अष्टमेश राहु व केतु के साथ 6, 8, 12 वें भाव में हो। सारे ग्रह मेष, वृष, मिथुन राशि में हो।

2- चतुर्थ स्थान में शनि हो दशम भाव में क्षीण चन्द्रमा के साथ मंगल शनि बैठे हों

3- अष्टम भाव बुध और शनि स्थित हो तो फांसी से मृत्यु हो।

4- क्षीण चन्द्रमा पाप ग्रह के साथ 9, 5, 11 वे भाव में हो।

5- शनि लग्न में हो और उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तथा सूर्य, राहु क्षीण चन्द्रमा युत हों तो जातक की गोली या छुरे से मृत्यु अथवा हत्या हो।

6- नवमांश लग्न में सप्तमेश राहु, केतु से युत 6, 8, 12 वें भाव मं स्थित हों तो आत्महत्या करता है।

7- चैथे व दसवें या त्रिकोण भाव में अशुभ ग्रह हो या अष्टमेश लग्न में मंगल से युत हो तो फांसी से मृत्यु होती है

8- क्षीण चन्द्रमा पाप ग्रह के साथ पंचम या एकादश स्थान में हो तो सूली से मृत्यु होती है।

दुर्घटना से मृत्यु योग

1- चतुर्थेश, षष्ठेश व अष्टमेश से सम्बन्ध हो तो मृत्यु वाहन दुर्घटना मं हो।

2- यदि अष्टम भाव में चन्द्र, मंगल, शनि हो तो मृत्यु हथियार द्वारा हो।

3- चन्द्र सूर्य मंगल शनि 8, 5 तथा 9 में हो तो मृत्यु ऊँचाई से गिरने समुद्र, तूफान या वज्रपात से हो।

4- अष्टमेश तथा अष्टम, षष्ठ तथा षष्ठेश और मंगल का इन सबसे सम्बन्ध हो तो मृत्यु शत्रु द्वारा होती है।

5- अष्टमेश एवं द्वादशेश में भाव परिवर्तन हो, इन पर मंगल की दृष्टि हो तो अकाल मौत हो। जन्म विषघटिका में होने से विष, अग्नि क्रूरजीव से मृत्यु हो।

6- जन्म लग्न से दशम भाव में सूर्य चतुर्थ भाव में मंगल हो तो मृत्यु वाहन दुर्घटना तथा सवारी से गिरने से होती है।

7- मंगल और सूर्य सप्तम भाव में, शनि अष्टम भाव में क्षीण चन्द्र के साथ हो तो पक्षी के कारण दुर्घटना में मृत्यु हो।

8- सूर्य, मंगल, केतु की यति हो जिस पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो अग्नि दुर्घटना में मृत्यु हो। चन्द्र मेष$ वृश्चिक राशि में हो तो पाप ग्रह की दृष्टि से अग्नि अस्त्र से मृत्यु हो।

9- द्विस्वभाव राशि लग्न में सूर्य+चन्द्र हो तो जातक की मृत्यु जल में डूबने से हो।

10- लग्नेश और अष्टमेश कमजोर हो, मंगल षष्ठेश से युत हो तो मृत्यु युद्ध में हो। द्वादश भाव में मंगल अष्टम भाव में शनि से हथियार द्वारा हत्या हो।

11- यदि नंवाश लग्न में सप्तमेश शनि युत हो 6, 8, 12 में हो जहर खाने से मृत्यु हो ।

12- चन्द्र मंगल अष्टमस्थ हो तो सर्पदंश से मृत्यु होती है। 13- लग्नेश अष्टमेश और सप्तमेश साथ बैठे हों तो जातक स्त्री के साथ मरता है।

आत्म हत्या से मृत्यु योग

1- लग्न व सप्तम भाव में नीच ग्रह हों
2- लग्नेश व अष्टमेश का सम्बन्ध व्ययेश से हो।
3- अष्टमेश जल तत्व हो तो जल में डूबने से, अग्नि तत्व हो तो जलकर, वायु तत्व हो तो तूफान व बज्रपात से अपघात हो ।
4- कर्क राशि का मंगल अष्टम भाव में पानी में डूबकर आत्मघात कराता है
5- यदि अष्टम भाव में एक या अधिक अशुभ ग्रह हो तो जातक हत्या, अपघात, दुर्घटना, बीमारी से मरता है।

ग्रहों के अनुसार स्त्री पुरूष के आकस्मिक मृत्यु योग

1- चतुर्थ भाव में सूर्य और मंगल स्थित हों, शनि दशम भाव मं स्थित हो तो शूल से मृत्यु तुल्य कष्ट तथा अपेंडिक्स रोग से मौत हो सकती है।

2- द्वितीय स्थान में शनि, चतुर्थ स्थान में चन्द्र, दशम स्थान में मंगल हो तो घाव में सेप्टिक से मृत्यु होती है।

3- दशम स्थान में सूर्य और चतुर्थ स्थान में मंगल स्थित हो तो कार, बस, वाहन या पत्थर लगने से मृत्यु तुल्य कष्ट होता है।

4- शनि कर्क और चन्द्रमा मकर राशिगत हो तो जल से अथवा जलोदर से मृत्यु हो।

5- शनि चतुर्थस्थ, चन्द्रमा सप्तमस्थ और मंगल दशमस्थ हो तो कुएं में गिरने से मृत्यु होती है

6- क्षीण चन्द्रमा अष्टम स्थान में हो उसके साथ मं$रा$शनि हो तो पिशाचादि दोष से मृत्यु हो।

7- जातक का जन्म विष घटिका में होने से उसकी मृत्यु विष, अग्नि तथा क्रूर जीव से होती है।

8- द्वितीय में शनि, चतुर्थ में चन्द्र और दशम में मंगल हो तो मुख मं कृमिरोग से मृत्यु होती है।

9- शुभ ग्रह दशम, चतुर्थ, अष्टम, लग्न में हो और पाप ग्रह से दृष्ट हो तो बर्छी की मार से मृत्यु हो।

10- यदि मंगल नवमस्थ और शनि, सूर्य राहु एकत्र हो, शुभ ग्रह दृष्ट न हो तो बाण से मृत्यु हो

11- अष्टम भाव में चन्द्र के साथ मंगल, शनि, राहु हो तो मृत्यु मिर्गी से हो।

12- नवम भाव में बुध शुक्र हो तो हृदय रोग से मृत्यु होती है।

13- अष्टम शुक्र अशुभ ग्रह से दृष्ट हो तो मृत्यु गठिया या मधुमेह से होती है

14- स्त्री की जन्म कुण्डली सूर्य, चन्द्रमा मेष राशि या वृश्चिक राशिगत होकर पापी ग्रहों के बीच हो तो महिला शस्त्र व अग्नि से अकाल मृत्यु को प्राप्त होती है।

15- स्त्री की जन्म कुण्डली में सूर्य एवं चन्द्रमा लग्न से तृतीय, षष्ठम, नवम, द्वादश भाव में स्थित हो तो तथा पाप ग्रहों की युति व दृष्टि हो तो महिला फंासी लगाकर या जल में कूद कर आत्म हत्या करती है।

16- द्वितीय भाव में राहु, सप्तम भाव में मंगल हो तो महिला की विषाक्त भोजन से मृत्यु हो

17- सूर्य एवं मंगल चतुर्थ भाव अथवा दशम भाव में स्थित हो तो स्त्री पहाड़ से गिर कर मृत्यु को प्राप्त होती है।

18- दशमेश शनि की व्ययेश एवं सप्तमेश मंगल पर पूर्ण दृष्टि से महिला की डिप्रेशन से मृत्यु हो।

19- पंचमेश नीच राशिगत होकर शत्रु ग्रह शुक्र एवं शनि से दृष्ट हो तो प्रसव के समय मृत्यु हो ।

20- महिला की जन्मकुण्डली में मंगल द्वितीय भाव में हो, चन्द्रमा सप्तम भाव में हो, शनि चतुर्थ भाव में हो तो स्त्री कुएं, बाबड़ी, तालाब में कूद कर मृत्यु को प्राप्त होती है।

लग्नेश के नवांश से मृत्यु, रोग अनुमान

1- मेष नवांश हो तो ज्वर, ताप जठराग्नि तथा पित्तदोष से मृत्यु हो
2- वृष नवांश हो तो दमा, शूल त्रिदोषादि, ऐपेंडिसाइटिस से मृत्यु हो।
3- मिथुन नवांश हो तो सिर वेदना,
4- कर्क नवांश वात रोग व उन्माद से मृत्यु हो।
5- सिंह नवांश हो तो विस्फोटकादि, घाव, विष, शस्त्राघात और ज्वर से मृत्यु।
6- कन्या नवांश हो तो गुह्य रोग, जठराग्नि विकार से मृत्यु हो।
7- तुला नवांश में शोक, बुद्धि दोष, चतुष्पद के आघात से मृत्यु हो।
8- वृश्चिक नवांश में पत्थर अथवा शस्त्र चोट, पाण्डु ग्रहणी वेग से।
9- धनु नवांश में गठिया, विष शस्त्राघात से मृत्यु हो।
10- मकर नवांश में व्याघ्र, शेर, पशुओं से घात, शूल, अरुचि रोग से मृत्यु।
11- कुंभ नवांश में स्त्री से विष पान श्वांस तथा ज्वर से मृत्यु हो।
12- मीन नवांश में जल से तथा संग्रहणी रोग से मृत्यु हो।

गुलिक से मृत्युकारी रोग अनुमान

1- गुलिक नवांश से सप्तम शुभग्रह हो तो मृत्यु सुखकारी होगी।
2- गुलिक नवांश से सप्तम स्थान में मंगल हो तो जातक की युद्ध लड़ाई में मृत्यु होगी।
3- गुलिक नवांश से सप्तम स्थान में शनि हो तो मृत्यु चोर, दानव, सर्पदंश से होगी।
4- गुलिक नवांश से सप्तम स्थान में सूर्य हो तो राजकीय तथा जलजीवांे से मृत्यु।

अरिष्ट महादशा व दशान्तर में मृत्यु

1- अष्टमेश भाव 6, 8, 12 मं हो तो अष्टमेश की दशा-अन्तर्दशा में और दशमेश के बाद के ग्रह अन्तर्दशा में मृत्यु होती है।
2- कर्क, वृश्चिक, मीन के अन्तिम भाग ऋक्ष संधि कहलाते हैं। ऋक्ष सन्धि ग्रह की दशा मृत्युकारी होती है।
3- जिस महादशा में जन्म हो महादशा से तीसरा, पांचवां, सातवें भाव की महादशा यदि नीच, अस्त, तथा शत्रु ग्रह की हो तो मृत्यु होती है।
4- द्वादशेश की महादशा में द्वितीयेश का अन्तर आता है अथवा द्वितीयेश दशा में द्वादश अन्तर में अनिष्टकारी मृत्यु तुल्य होता है।
5- छिद्र ग्रह सात होते हैं

1. अष्टमेश,
2. अष्टमस्थ ग्रह,
3. अष्टमदर्शी ग्रह,
4. लग्न से 22 वां द्रेष्काण अर्थात अष्टम स्थान का द्रेष्काण जिसे रवर कहते हैं उस द्रेष्काण स्वामी,
5. अष्टमेश के साथ वाला ग्रह,
6. चन्द्र नवांश से 64 वां नवांशपति,
7. अष्टमेश का अतिशत्रु ग्रह।

इन सात में से सबसे बली ग्रह की महादशा कष्टदायक व मृत्युकारी होगी।

1. आकस्मिक मृत्यु के बचाव के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। जप रुद्राक्ष माला से पूर्वी मुख होकर करें।

2. वाहन चलाते समय मादक वस्तुओं का सेवन न करें तथा अभक्ष्य वस्तुओं का सेवन न करें अन्यथा पिशाची बाधा हावी होगी वैदिक गायत्री मंत्र कैसेट चालू रखें।

3. गोचर कनिष्ठ ग्रहों की दशा में वाहन तेजी से न चलायें।

4. मंगल का वाहन दुर्घटना यंत्र वाहन में लगायें, उसकी विधिवत पूजा करें।

5. नवग्रह यंत्र का विधिविधान पूर्वक प्रतिष्ठा कर देव स्थान में पूजा करें।

6. सूर्य कलाक्षीण हो तो आदित्य हृदय स्तोत्र, चन्द्र की कला क्षीण हो तो चन्द्रशेखर स्तोत्र, मंगल की कला क्षीण हो तो हनुमान स्तोत्र, शनि कला क्षीण हो तो दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ करें। राहु की कला क्षीण हो तो भैरवाष्टक व गणेश स्तोत्र का पाठ करें।

गणित पद्धति से अरिष्ट दिन मृत्यु समय के लग्न, अरिष्ट मास का ज्ञान अरिष्ट मास:

1- लग्न स्फूट और मांदी स्फुट को जोड़कर जो राशि एवं नवांश हो उस राशि के उसी नवांश पर जब गोचर में सूर्य आता है तब जातक की मृत्यु होती है।
2- लग्नेश के साथ जितने ग्रह हां उन ग्रहों की महादशा वर्ष जोड़कर 12 का भाग दें। जो शेष बचे उसी संख्यानुसार सौर मास में अरिष्ट होगा।

अरिष्ट दिन:

1- मांदी स्फुट और चन्द्र स्फुट को जोड़कर 18 से गुणन करें उसमें शनि स्फुट को जोड़कर 9 से गुणन कर जोड़ दें। जब गोचर चन्द्र उस राशि के नवांश में जाता है तो उस दिन अरिष्ट दिन होगा।

मृत्यु समय लग्न का ज्ञान:

2- लग्न स्फुट मांदी स्फुट और चन्द्र स्फुट को जोड़ देने से जो राशि आये उसी राशि के उदय होने पर जातक की मृत्यु होती है।

बुधवार, 27 सितंबर 2017

कैसे निकाला जाये विवाह का मुहूर्त

सही विवाह नही मिलान होने से वर ने आत्महत्या कर ली आज कम्पयूटर का जमाना है जिसे देखो अपने अपने कम्पयूटर में कोई न कोई सोफ़्टवेयर ज्योतिष वाला डालकर बैठा है,जैसे ही किसी भी वर कन्या की विवाह वाली बात की जाती है सीधे से वर और कन्या की जन्म तारीख समय आदि के साथ कुंडली बना ली जाती है और उन्हे सीधे से विवाह मिलान के लिये देखा जाता है,गुण चक्र नाडी दोष और भकूट दोष आसानी से कम्पयूटर का सोफ़्टवेयर निकाल कर दे देता है,मंगल चाहे वक्री हो अस्त हो कम डिग्री का हो उसे मंगली दोष लगाते देर नही लगती है,चन्द्रमा चाहे बाल हो वृद्ध हो अस्त हो नीच हो उसे राशि मिलान करते देर नही लगती है,कन्या का गुरु बल चाहे बहुत ही कमजोर हो वर का सूर्य बल चाहे बिलकुल ही नही मिलता हो लेकिन कम्पयूटर के अनुसार गुण चक्र बताने मे कतई देर नही लगती है और फ़टाफ़ट फ़ैसला भी हो जाता है,चाहे दोनो का चन्द्र बल बहुत ही अच्छा हो। इस प्रकार से कितने अर्थ के अनर्थ हो जाते है जिन लोगों को वास्तव मे कतई ज्योतिष की जानकारी नही है वे आसानी से वर-कन्या के गुण दोष बताने लगते है और जब उनसे कोई बात पूँछी जाती है तो वे अपने गुण को सर्वोच्च बताने की आशा मे अपने अनाप सनाप वाचाली नीति को अपनाने लगते है।

मूल अनुराधा मृगशिरा रेवती हस्त उत्तराफ़ाल्गुनी उत्तराषाढा उत्तराभाद्रपत स्वाति मघा रोहिणी इन नक्षत्रो मे और ज्येष्ठ माघ फ़ाल्गुन बैशाख मार्गशीर्ष आषाढ इन महीनो मे विवाह करना शुभ है। विवाह का सामान्य दिन पंचांग मे लिखा रहता है अत: पांचांग के लिये दिन को लेकर उस दिन वर कन्या के लिये यह विचार करना कन्या के लिये गुरुबल वर के लिये सूर्य बल दोनो के लिये चन्द्रबल देख लेना चाहिये।

गुरुबल विचार:-गुरु कन्या की राशि से नवम एकादश द्वितीय और सप्तम राशि मे शुभ होता है दसम तृतीय छठा और प्रथम राशि मे दान देने से शुभ और चौथे आठवे बारहवी राशि मे अशुभ होता है।

सूर्य बल विचार:- सूर्य वर की राशि से तीसरा छठा दसवा ग्यारहवा शुभ होता है,दूसरा पांचवा सातवा और नवां दान देने से शुभ माना जाता है,चौथा आठवां बारहवां सूर्य अशुभ होता है।

चन्द्रबल विचार:- चन्द्रमा वर और कन्या की राशि से तीसरा छठा सातवां दसवा ग्यारहवां शुभ पहला दूसरा पांचवां नौवां दान से शुभ और चौथा आठवां बारहवां अशुभ होता है।

विवाह मे त्यागने वाली लगनें:- दिन मे तुला वृश्चिक और रात्रि में मकर राशि बधिर है,दिन मे सिंह मेष वृष और रात्रि में कन्या मिथुन कर्क अन्धी है,दिन मे कुंभ और रात्रि मे मीन दोनो लगने पंगु है,सिंह मेष वृष मकर कुम्भ मीन ये लगन सुबह और शाम के समय कुबडे होते है.

त्यागने वाली लगनों का फ़ल:- अगर विवाह बधिर लगन मे होता है तो वर कन्या चाहे कुबेर के खजाने से लदे हुये जाये लेकिन दरिद्र हो जायेंगे,दिन की अन्धी लगनो मे विवाह किया जाता है तो कन्या को वर से दूरी मिलनी ही है,रात्रि की अन्धी लगन मे विवाह होता है तो संतति होने का सवाल ही नही होता है और होती भी है तो जिन्दा नही रहती है,लगन पंगु होती है तो धन नाश और परिवार की मर्यादा का नाश होने लगता है।

लगन शुद्धि:- लगन से बारहवे शनि दसवे मंगल तीसरे शुक्र लग्न मे चन्द्रमा और क्रूर ग्रह अच्छे नही होते है लगनेश और सौम्य ग्रह आठवें भाव मे अच्छे नही होते है सातवे भाव मे कोई भी ग्रह शुभ नही होता है।

ग्रहों का बल:- पहले चौथे पांचवे नवें और दसवे स्थान मे गुरु सब दोषों को नष्ट करने वाला होता है,सूर्य ग्यारहवे स्थान स्थिति तथा चन्द्रमा वर्गोत्तम लगन मे स्थिति नवांश दोष को नष्ट करता है बुध लगन से चौथे पांचवे नौवें और दसवे स्थान मे हो तो अक्सर खराब से खराब दोष को शुभ करता है। लगन का स्वामी और नवांश का स्वामी एक ही भाव राशि के हों तो भी अक्सर दोष शांति को माना जाता है।

केतु के गुण अवगुण

*ज्योतिष शास्त्र के अनुसार केतु एक छाया ग्रह है जो स्वभाव से पाप ग्रह भी है। केतु के बुरे प्रभाव से व्यक्ति को जीवन में कई बड़े संकटों का सामना करना पड़ता है। हालांकि यही केतु जब शुभ होता है तो व्यक्ति को ऊंचाईयों पर भी ले जाता है। केतु यदि अनुकूल हो जाए तो व्यक्ति आध्यात्म के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त करता है। आमतौर पर माना जाता है कि हमारी जन्मकुंडली हमारे पिछले जन्म के कर्मों तथा इस जन्म के भाग्य को बताती है। फिर भी ज्योतिषीय विश्लेषण कर हम अशुभ ग्रहों से होने वाले प्रभाव तथा उनके कारणों को जानकर उनका सहज ही निवारण कर सकते हैं।*

*राहू एवं केतु छाया ग्रह माने गए है जिनका स्वयं का कोई अस्तित्व नहीं होता है। इन्हें इनके कार्य करने की वास्तविक शक्ति कुंडली में अन्य ग्रहों के सम्मिलित प्रभाव से मिलती है। ज्योतिष में माना जाता है कि किसी जानवर को परेशान करने पर, किसी धार्मिक स्थल को तोड़ने अथवा किसी रिश्तेदार को सताने, उनका हक छीनने की सजा देना ही केतु का कार्य है। झूठी गवाही व किसी से धोखा करना भी केतु के बुरे प्रभाव को आमंत्रित करता है।*

*जब भी व्यक्ति पर केतु का अशुभ प्रभाव शुरू होने वाला होता है तो उसके अंदर कामवासना एकदम से बढ़ जाती है। किसी अन्य पापग्रह यथा राहू, मंगल की युति मिलने पर व्यक्ति किसी महिला/ लड़की से दुष्कर्म तक करने का जोखिम उठा सकता है। इसके अलावा मुकदमेबाजी, अनावश्यक झगड़ा, वैवाहिक जीवन में अशांति, भूत-प्रेत बाधाओं द्वारा परेशान होना भी केतु के ही कारण होता है। शारीरिक प्रभावों में व्यक्ति को पथरी, गुप्त व असाध्य रोग, खांसी तथा वात एवं पित्त विकार संबंधी रोग हो जाते हैं।*

*सभी ग्रहों में राहु-केतु मायावी ग्रह हैं इन पर सटीक फलित करना अत्यधिक जटिल है। राहु पर थोडा बहुत लिखा हुआ मिल भी जाता है, लेकिन जब केतु की बात आती हैं उस समय या तो राहु के समान उसके फल बतायें गये हैं या मंगल के गुणों की समानता दे दी जाती है। लेकिन मेरे अनुभव में केतु के बिल्कुल अलग फल है। केतु सभी ग्रहों में सबसे तीक्ष्ण व पीडा दायक ग्रह है। मायावी होने के कारण प्राय: केतु में लगभग सभी ग्रहों की झलक देखने को मिल जाती है। सूर्य के समान जलाने वाला, चंद्र के समान चंचल, मंगल के समान पीडाकारी, बुध के समान दूसरे ग्रहों से शीघ्र प्रभावित होने वाला, गुरु के समान ज्ञानी, शुक्र के समान चमकने वाला एवं शनि के समान एकांतवासी ग्रह है। केतु के कुछ अनुभव सिद्ध फल-*

*1- केतु हमेशा अपना प्रभाव दिखाता ही है। केतु का प्रभाव जिस भाव पर होगा जातक को उस भाव से सम्बंधित अंग में किसी प्रकार की चोट या निशान, तिल, वर्ण अवश्य देगा।*

*2-  केतु पर यदि षष्ठेश का प्रभाव हो तो पीडा दायक रोग होते हैं। यदि साथ में मारकेश का भी प्रभाव होतो ऐसा केतु ऑपरेशन आदि करवाता हैं अथवा अंगहीन बनाता है।*

*3- केतु का प्रभाव लग्न या तृतिय स्थान पर हो तथा कुछ क्रूर या पापी ग्रह का प्रभाव भी हो तो ऐसे जातक अत्यधिक गुस्सैल व अनियंत्रित होते हैं। ऐसे जातक जल्दबाज होते हैं जिनके कारण अधिकतर गलत निर्णय लेते हैं। यदि केतु पर पाप प्रभाव अधिक हो तो ऐसे जातक हत्या तक कर बैठते है।*

*4- केतु का नवम, दशम व एकादश प्रभाव शुभ होता है इसके अतिरिक्त बुध व गुरु की राशि में स्थित केतु भी मारक प्रभाव न रखकर व्यक्ति को उच्च शिक्षा देने वाला या सफल बनाने वाला होता  है। ऐसे जातक प्रबुध होते है, डॉक्टर, वकील या रक्षा विभाग में प्रयास करने से सफलता शीघ्र प्राप्त होती है।*

*5- केतु के अंदर अध्यात्मिक शक्ति होती है, शास्त्रों में वर्णित है की गुरु संग केतु की युति मोक्ष दायक होती है। अत: शुभ केतु का प्रभाव व्यक्ति को धर्म से जोडता है। लग्न या नवम भाव पर केतु का शुभ प्रभाव होतो ऐसे लोग कट्टर धर्मी होते हैं।*

*6- केतु का संकेत चिन्ह झंडा होता है जो की उच्चता का सूचक है। योगकारक ग्रह के संग या लग्नेश संग केतु का प्रभाव व्यक्ति को प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्रदान करता हैं।*

*केतु को सूर्य व चंद्र का शत्रु कहा गया हैं। केतु मंगल ग्रह की तरह प्रभाव डालता है। केतु वृश्चिक व धनु राशि में उच्च का और वृष व मिथुन में नीच का होता है।*

*जन्म कुंडली में लग्न, षष्ठम, अष्ठम और एकादश भाव में केतु की स्थिति को शुभ नहीं माना गया है | इसके कारण जातक के जीवन में अशुभ प्रभाव ही देखने को मिलते है |*

*जन्मकुंडली में केतु यदि केंद्र-त्रिकोण में उनके स्वामियों के साथ बैठे हों या उनके साथ शुभ दृष्टि में हों तो योगकारक बन जाते हैं। ऐसी स्थिति में ये अपनी दशा-भुक्ति में शुभ परिणाम जैसे लंबी आयु, धन, भौतिक सुख आदि देते हैं।*

*केतु के कारक है -मोक्ष, पागलपन, विदेश प्रवास, कोढ़, आत्महत्या, दादा-दादी, गंदी जुबान, लंबे कद, धूम्रपान, जख्म, शरीर पर धब्बे, दुबलापन, पापवृत्ति , द्वेष, गूढ़ता, जादूगरी, षडयंत्र, दर्शनशास्त्र, मानसिक शांति, धैर्य, वैराग्य, सरकारी जुर्माने, सपने, आकस्मिक मौत, बुरी आत्मा, वायुजनित रोग, जहर, धर्म, ज्योतिष विद्या, मुक्ति, दिवालियापन, हत्या की प्रवृत्ति , अग्नि-दुर्घटना आदि का कारक केतु ग्रह है।*

*सूर्य जब केतु के साथ होता है तो जातक के व्यवसाय, पिता की सेहत, मान-प्रतिष्ठा, आयु, सुख आदि पर बुरा प्रभाव डालता है।*

*चंद्र यदि केतु के साथ हो और उस पर किसी अन्य शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो व्यक्ति मानसिक रोग, वातरोग, पागलपन आदि का शिकार होता है।*

*वृश्चिक लग्न में यह योग जातक को अत्यधिक धार्मिक बना देता है।*

*मंगल केतु के साथ हो तो जातक को हिंसक बना देता है। इस योग से प्रभावित जातक अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं रख पाते और कभी-कभी तो कातिल भी बन जाते हैं।*

*बुध केतु के साथ हो तो व्यक्ति लाइलाज बीमारी ग्रस्त होता है। यह योग उसे पागल, सनकी, चालाक, कपटी या चोर बना देता है। वह धर्म विरुद्ध आचरण करता है।*

*केतु गुरु के साथ हो तो गुरु के सात्विक गुणों को समाप्त कर देता है और जातक को परंपरा विरोधी बनाता है। यह योग यदि किसी शुभ भाव में हो तो जातक ज्योतिष शास्त्र में रुचि रखता है।*

*शुक्र केतु के साथ हो तो जातक दूसरों की स्त्रियों या पर पुरुष के प्रति आकर्षित होता है।*

*शनि केतु के साथ हो तो आत्महत्या तक कराता है। ऐसा जातक आतंकवादी प्रवृति का होता है। अगर बृहस्पति की दृष्टि हो तो अच्छा योगी होता है।*

*किसी स्त्री के जन्म लग्न या नवांश लग्न में केतु हो तो उसके बच्चे का जन्म आपरेशन से होता है। इस योग में अगर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो कष्ट कम होता है।*

*भतीजे एवं भांजे का दिल दुखाने एवं उनका हक छीनने पर केतु अशुभ फल देना है। कुत्ते को मारने एवं किसी के द्वारा मरवाने पर, किसी भी मंदिर को तोड़ने अथवा ध्वजा नष्ट करने पर इसी के साथ ज्यादा कंजूसी करने पर केतु अशुभ फल देता है। किसी से धोखा करने व झूठी गवाही देने पर भी केतु अशुभ फल देते हैं।*

*अत: मनुष्य को अपना जीवन व्यवस्िथत जीना चाहिए। किसी को कष्ट या छल-कपट द्वारा अपनी रोजी नहीं चलानी चाहिए। किसी भी प्राणी को अपने अधीन नहीं समझना चाहिए जिससे ग्रहों के अशुभ कष्ट सहना पड़े।*

*समय रहते यदि शुभ-अशुभ योगों को पहचान लिया जाए तो जीवन को सभी ओर सकारात्मक दिशा देने में आसानी हो सकती है।केतु के अधीन आने वाले जातक जीवन में अच्छी ऊंचाइयों पर पहुंचते हैं, जिनमें से अधिकांश आध्यात्मिक ऊंचाईयों पर होते हैं।*

*केतु ग्रह के उपाय -दान और वैदिक मंत्र :-*
*केतु शांति हेतु लहसुनिया रत्न धारण करने का विधान है।*
*केतु ग्रह की उपासना के लिए निम्न में किसी एक मंत्र का नित्य श्रद्धापूर्वक निश्चित संख्या में जप करना चाहिए।*
*जप का समय रात्रि ८ बजे के बाद तथा कुल जप-संख्या 17000 है।*
*हवन के लिए कुश का उपयोग करना चाहिए।*

*वैदिक मंत्र-*
*ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। सुमुषद्भिरजायथाः॥*
*बीज मंत्र- जप-संख्या 17000*
*पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम्।*
*रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्॥*
*बीज मंत्र-जप-संख्या 17000*
*ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः।*
*सामान्य मंत्र-जप-संख्या 17000*
*ॐ कें केतवे नमः।*

*केतु ग्रह का दान :-केतु की प्रसन्नता हेतु दान की जाने वाली वस्तुएँ इस प्रकार बताई गई हैं-*

*वैदूर्य रत्नं तैलं च तिलं कम्बलमर्पयेत्।शस्त्रं मृगमदं नीलपुष्पं केतुग्रहाय वै॥*

*वैदूर्य नामक रत्न, तेल, काला तिल, कंबल, शस्त्र, कस्तूरी तथा नीले रंग का पुष्प दान करने से केतु ग्रह साधक का कल्याण करता है।*

*अश्वगंधा की जड़ को नीले धागे में बांधकर मंगलवार को धारण करने से भी केतु ग्रह के अशुभ प्रभाव कम होने लगते है |*

*केतु से पीड़ित व्यक्ति को मंदिर में कम्बल का दान करना चाहिए*

*तंदूर में मीठी रोटी बनाकर 43 दिन कुत्तों को खिलाएँ या सवा किलो आटे को भुनकर उसमे गुड का चुरा मिला दे और ४३ दिन तक लगातार चींटियों को डाले,रोज कौओं को रोटी खिलाएं।*

*अपना कर्म ठीक रखे तभी भाग्य आप का साथ देगा और कर्म ठीक हो इसके लिए आप मन्दिर में प्रतिदिन दर्शन के लिए जाएं।*

*माता-पिता और गुरु जानो का सम्मान करे ,अपने धर्मं का पालन करे, भाई बन्धुओं से अच्छे सम्बन्ध बनाकर रखें।*

*यदि सन्तान बाधा हो तो कुत्तों को रोटी खिलाने से घर में बड़ो के आशीर्वाद लेने से और उनकी सेवा करने से सन्तान सुख की प्राप्ति होगी।*

*गौ ग्रास. रोज भोजन करते समय परोसी गयी थाली में से एक हिस्सा गाय को, एक हिस्सा कुत्ते को एवं एक हिस्सा कौए को खिलाएं आप के घर में हमेशा बरक्कत रहेगी।*

*नोट:-हर जातक जातिका की कुंडली में ग्रहों की स्तिथि अलग अलग होती है इसलिए हर जातक किसी भी ग्रह की वजह से शुभ या अशुभ समय से गुजर रहा है तो उनके प्रेडिक्शन या उपाय भी उनकी वर्तमान समस्या तथा कुंडली मे स्थित ग्रहों की स्तिथि के अनुसार ही किये जाये तो बेहतर परिणाम

कुंडली के भाव एवं राशि अनुसार चन्द्रमा का प्रभाव

प्रथम भाव👉 प्रथम भाव का चंद्रमा जातक को विपरीत
लिंग के प्रति आकर्षित, रसिक, सभ्य, सौम्य तथा समस्याओं के निराकरण में माहिर बनाता है। वृषभ या कर्क का चन्द्रमा उसे भव्यता, भाग्य व सौम्यता प्रदान करता है। प्रथम भाव का चंद्रमा अध्ययन में अभिरुचि व ख्याति का भी द्योतक है। इस भाव में नीच का चंद्र व्यक्ति को व्यसनों का आदी तथा स्वभाव से कंजूस बनाता है।
जीवन के 27वें वर्ष अस्वस्थता व रोग का भय रहता
है।

द्वितीय भाव👉 द्वितीय भाव का चंद्रमा व्यक्ति को धनवान, अध्ययन का प्रेमी, अच्छा वक्ता, धन व सुख का चाहने वाला तथा किसी विषय का गहरा ज्ञान रखने वाला बनाता है। चंद्रमा पर बुध का प्रभाव उसे पिता की संपत्ति से वंचित रखता है। विदेशों से अच्छा धन कमाता है। किंतु धन की स्थिति हमेशा ऊपर- नीचे होती रहती है। शुभ
ग्रहों के प्रभाव से चंद्रमा जातक को किसी विशेष
विषय का ज्ञाता, धन व्यय करने का ईच्छुक किंतु बहुत धन कमाने वाला बनाता है। जीवन के 27वें वर्ष में जातक को विशेष लाभ होता है।

तृतीय भाव👉  तृतीय भाव का चंद्रमा व्यक्ति को भ्रातृ प्रेम तथा आर्थिक संपन्नता प्रदान करता है। वह स्वस्थ, बुद्धिमान, कठिन विषयों का ज्ञाता, दूर स्थानों की यात्रा करने वाला, अच्छा लेखक किंतु मनमौजी बनाता है। भाग्योदय जीवन के तीसरे वर्ष में तथा 27 से 30वें वर्ष में यात्राओं से विशेष लाभ होता है। वृश्चिक का चंद्रमा उसे कानों में कष्ट, कंजूस, परपीड़क तथा धर्म की तरफ
झुकाव वाला बनाता है। इस स्थान पर शुभ राशि का चंद्रमा व्यक्ति को प्रसिद्ध कवि व लेखक बनाता है।

चतुर्थ भाव👉  चतुर्थ भाव का चंद्रमा व्यक्ति को सुखी,
प्रसिद्ध, खदानों से लाभ पाने वाला, विवाह के बाद भाग्योदय, अच्छी आय, उत्तम वाहन, माता का सुख, दुष्कर्मों से डरने वाला तथा धनी लोगों का संरक्षण पाने वाला होता है। विपरीत लिंग वालों को आकर्षित करने वाला, राजसी लोगों से लाभ पाने वाला एवं चंद्र-मंगल संयोग होने पर अधिक खाने वाला बनाता है। शुक्र-चंद्रमा से वह भ्रष्ट हो बुरे लोगों की संगत में पड़ता है। संतान से कष्ट पाता है। जीवन के 22वें वर्ष में भाग्योदय।

पंचम भाव👉 पंचम भाव का चंद्रमा जातक को धनवान, भाग्यवान, अध्ययन का प्रेमी, सम्मानित, रहस्यमय विषयों में रुचि वाला, करुण हृदय, दयावान, आनंदित, खुश रहने वाला, आत्मविश्वासी, संतुष्ट तथा ललित कलाओं में रुचि लेने वाला बनाता है। भाग्यवान संतति, जीवन में धन लाभ। यदि वृष या कर्क में चंद्रमा हो तो अधिक कन्याएं पैदा होती हैं। ज्ञानवान, सट्टे व लाटरी से लाभ, अच्छे वस्त्र व भोजन का शौकीन, धर्म में आस्था तथा पूजा पाठ में रुचि लेने वाला बनाता है। शनि से प्रभावित चंद्रमा उसे शरारती, दूसरों की हंसी उड़ाने वाला, मासूमों को सताने वाला बनाता है। जीवन के छठे वर्ष में बिजली व अग्नि से
भय रहता है।

छठा भाव👉 छठे भाव का चंद्रमा व्यक्ति को स्पष्ट वक्ता,
व्ययशील तथा नौकरों-चाकरों से परेशान रखता है।
कमजोर या बुरे ग्रहों के प्रभाव में जातक की आयु में
हानि होती है किंतु पूर्ण अथवा बढ़ता हुआ चांद उसे
दीर्घायु प्रदान करता है। इस भाव का चंद्रमा अनेक
शत्रु, आलस्य, अति कामुकता तथा अम्लीय दोष से
पीड़ित रखता है। वृषभ का चंद्रमा गले का कष्ट तथा
वृश्चिक का चंद्र बवासीर का कारण होता है। चंद्रमा
व शुक्र का योग व्यक्ति को अति कामुक, भाइयों से द्रोह रखने वाला तथा विपरीत लिंगियों पर भारी व्यय करने
वाला तथा अदालती मामलों में पराजय पाने वाला बनाता है। जीवन के पांचवें वर्ष में शारीरिक कष्ट
की संभावना रहती है।

सप्तम भाव👉 सप्तम भाव का चंद्रमा व्यक्ति को करुणामय, विदेश में रहने का अत्यंत ईच्छुक तथा विपरीत लिंगियों से प्रभावित होने वाला बनाता है। व्यापार से लाभ पाने वाला, मीठे का शौकीन, प्रसन्न व प्रसिद्ध बनाता है। गुरु व बुध से युक्त चंद्रमा संपत्तियों का स्वामित्व तथा पत्नी व पुत्रों का सुख प्राप्त करने वाला बनाता है। शनि-चन्द्र की युति विवाह में अशांति की
द्योतक है। दूषित चंद्र व्यक्ति को अति कामुक तथा पत्नी से दुख पाने वाला बनाता है। जीवन के 24वें वर्ष में विवाह का योग होता है।

अष्टम भाव👉 अष्टम भाव का चंद्रमा अस्वस्थ देह तथा दूसरों की सुख-संपत्ति से ईष्र्या करने वाला बनाता है।
जीवन में पूर्ण सुख का अभाव रहता है। बलवान चंद्रमा विदेश में जीवन व साझेदारी से लाभ प्राप्त कराता है किंतु मन पूर्वाग्रहों व दुर्भावनाओं से ग्रसित रहता है। शुक्र व मंगल के दुष्प्रभाव से अकस्मात मृत्यु की संभावना रहती है तथा माता के स्वास्थ्य की हानि होती है। बृहस्पति
के संयोग से जातक की रुचि रहस्यवाद में भी होती है। जीवन के 32वें वर्ष में दुर्घटना का भय रहता है।

नवम👉 भाव नवम भाव का चंद्रमा जातक को पितृभक्त,
गुणी पुत्र वाला, दानशील, धनवान, धार्मिक व्यक्तियों की सेवा करने वाला तथा अपने अच्छे कामों के लिए जाना जा सकने वाला बनाता है। शुक्र-चंद्रमा का योग इसे नटखट जीवन साथी प्रदान करता है। वह दूसरों के अधीन सेवा करने वाला होता है। इस भाव में चंद्रमा दुर्भाग्य व मानहानि का कारक होता है। विदेशों से लाभ, 20 वर्ष की आयु में तीर्थयात्रा तथा 24वें वर्ष में भाग्य की देवी उस पर प्रसन्न होती है।

दशम भाव👉 दशम भाव का चंद्रमा व्यक्ति को धनवान, भाग्य सुख को भोगने वाला बनाता है। सुदर वस्तुओं का व्यापार करने वाला, संतोषी व्यक्ति, दूसरों की सहायता करने वाला, परिवार में प्रमुख तथा सौम्य स्वभाव वाला होता है। समाज में सम्मानित सरकारी कार्य में कुशल तथा शासन से लाभ पाने वाला होता है। भाग्यवान जीवनसाथी वाला, धनवान स्त्रियों को प्रभावित करने वाला तथा सरकार से सम्मान पाने वाला होता है। दूषित चंद्रमा दमा, विवाह-विच्छेद, आलस्य और दूसरों से अपमान का कारक होता है। चर राशियों का चंद्रमा
बहुत से व्यवसाय परिवर्तनों का कारण होता है। मंगल से युति हानि का तथा शनि से युति व्यवसाय में कठिनाइयों का द्योतक है। किंतु जीवन के 24व व 43वें वर्ष में लाभ को भी इंगित करता है।

एकादश👉 भाव एकादश भाव का चंद्रमा व्यक्ति को धनवान, संतान द्वारा भाग्योदय तथा विपरीत लिंगियों द्वारा धन लाभ का कारण होता है। इस भाव का चंद्रमा ज्योतिष व धर्म में रुचि, सेवाभाव व जीवन के सुख भोगों का कारण होता है। वह समाज में ख्याति सहज पा लेता है तथा इतिहास का ज्ञाता होता है किंतु कमजोर व दूषित चंद्रमा उसे अवारा लोगों के प्रति आकर्षित करता है जो बदनामी का कारण होता है तथा संतान से सुख में भी हानि होती है। इसे सामाजिक अपमान का भय रहता है किंतु लाभदायक चंद्रमा 16वें वर्ष में धन व 27वें वर्ष में मान का कारण होता है।

द्वादश भाव👉 द्वादश भाव का चन्द्रमा व्यक्ति को
विदेशवासी, गुप्त विद्याओं में रुचि रखने वाला, एकान्त
प्रिय, संन्यासी वृत्ति वाला, त्यागी, औषधियों का व्यापार करने वाला तथा शुभ अवसरों व कार्यों मेंव्यय में रुचि लेने
वाला बनाता है। इस भाव में दूषित चंद्रमा व्यक्ति को
क्रोधी व्यक्तित्व, कुसंगति में रुचि, कंजूस मानसिकता
वाला, क्रूर व आलसी बनाता है। सूर्य व मंगल से
प्रभावित चंद्रमा, सरकार व शासन के दंड का भागी,
कपट करने वाला, समस्याएं पैदा करने वाला, नेत्र विकार से पीड़ित, जुए में हारने वाला व कारागार का
भोगी भी बना सकता है। जीवन के तीसरे वर्ष में अस्वस्थता तथा 45वें वर्ष में जल से भय की संभावना
होती है।

विभिन्न राशियों में चन्द्रमा का प्रभाव:-
〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
 मेष🐐 जैसा कि हम जानते हैं कि मेष राशि का स्वामी मंगल है तथा चंद्रमा व मंगल में सहज मित्रता है किंतु मेष राशि में चन्द्रमा अत्यंत भावुक व्यवहार करता है। इसका मुख्य कारण है कि चंद्रमा अति गतिशील ग्रह है और मेष एक क्षैतिजिक (चर) राशि होने के कारण उसे पर्याप्त आधार प्रदान नहीं कर पाती। जब तक कि चंद्रमा शुभ ग्रहों से संबद्ध या प्रभावित न हो। इसी कारण से व्यक्ति में चंचलता बनी रहती है तथा वह बहुत कुछ एकसाथ कर लेना चाहता है। वह धार्मिक रुचि वाला, ज्ञानियों का
मान करने वाला, देशाटन का प्रेमी, करुण हृदय तथा
उथले व्यवहार में विश्वास न रखने वाला होता है। वृष यह
चंद्रमा के उच्च का स्थान है यद्यपि उच्चतम शून्य से
तीन अंश तक शेष 3 से 30 अंश तक मूल त्रिकोण में
माना जाता है। 3 अंश पर यह उच्चतम होता है।

वृष🐂 राशि का स्वामी शुक्र है तथा चंद्रमा व शुक्र का
निकट का संबंध है इसलिए यहां चंद्रमा की गतिविधि में
हम विशेष उत्साह के दर्शन करते हैं। यहां रचनात्मक वृत्ति अपनी पूर्णता मं उपलब्ध है। यदि जातक रचनात्मक
क्रियाओं पर ध्यान दे तो वह आश्चर्यजनक परिणाम पा सकता है। इस राशि में चंद्रमा जातक को संपदा, संतान से सुख, भाग्य, शासन से सम्मान व सुखकारी जीवन
साथी प्रदान करता है। व्यक्ति को परिवार व वाहन का
सुख तथा धार्मिक वृत्ति भी प्रदान करता है।

मिथुन💏  मिथुन राशि का स्वामी बुध होने के कारण विशेष महत्व रखता है। बुध व चंद्रमा में अच्छे संबंध के कारण यहां जीवन के उतार-चढ़ाव देखने में आते हैं। इस राशि में चंद्रमा उत्तेजित अवस्थाओं में अपने उतार-चढ़ाव के साथ प्रभावी रहता है। अतः मिथुन में चंद्रमा होने पर
जीवन में उदासी के क्षण नहीं होते। कभी-कभी नैसर्गिक बुद्धि बहुत सुंदर परिणाम देती है तथा व्यक्ति शानदार उपायों को व्यक्त करता है जो अपने समय से आगे के जान पड़ते हैं। मिथुन का चंद्रमा व्यक्ति को माता-पिता का
भक्त व धार्मिक बनाता है। जीवन में सुख की कोई कमी नहीं होती तथा व्यक्ति को जीवन भर यात्रा करना आनंददायक लगता है।

कर्क🦀  चंद्रमा कर्क राशि का स्वामी है। अतः इस राशि
में चन्द्रमा सहज ही अच्छे परिणाम देता है। यह व्यक्ति को शांत, एकाग्र तथा अपनी समस्त शक्ति से काम करने वाला बनाता है। संतोषकारी परिणाम होने पर व्यक्ति की रुचि उसी कार्य में बनी रहती है अन्यथा वह अपनी रुचि परिवर्तित कर लेता है। कर्क का चंद्रमा जातक को घर, वाहन व कभी-कभी बहुत संपत्ति प्रदान करता है। नये अध्यावसायों में सफलता, धार्मिक वृत्ति, दानशीलता किंतु गुप्त रोगों से पीड़ा भी संभव होती है।

सिंह🦁 जैसा कि हम जानते हैं कि यह राशि सूर्य के स्वामित्व में है। अतः चंद्रमा सिंह राशि में सुख का अनुभव करता है। इस राशि में होने के कारण चंद्रमा कुछ अतिरिक्त उत्साही होता है तथा समय-समय पर अपना प्रभाव दिखाता है। जातक अपनी सामथ्र्य सिद्ध करना चाहता है तथा भारी चुनौतियां स्वीकार करता है। अपने
विषय में उसकी राय बहुत ऊंची होती है तथा वह अपनी बड़ाई करने से भी नहीं चूकता। सिंह का चंद्रमा शासन
से सम्मान, समाज में प्रतिष्ठा तथा अधिकारिक पद देने वाला होता है। वह अत्यधिक ध्नार्जन करता है किंतु अस्वस्थ व शारीरिक कष्ट का भागी होता है।

कन्या👩 कन्या राशि का स्वामी बुध है। अतः चंद्रमा
कन्या राशि के जातक को कुशाग्र बुद्धि प्रदान करता है तथा वह तुरंत ही परिणामों को प्राप्त करने में सफल होता है। समस्याओं को वह बहुत व्यावहारिक बुद्धि से देखता है। अतः कुछ भी भाग्य के भरोसे नहीं छोड़ता। तो
भी कभी उसके अपनी ही तार्किकता में उलझ जाने की संभावना रहती है। कन्या राशि का चंद्रमा जातक को
विपरीत लिंगों से सहवास व समस्त ऐश्वर्य प्रदान
करता है। वह यात्रा का ईच्छुक तथा विदेशों में रहने वाला होता है। धन कमाने की अच्छी क्षमता होती है। वह जल्दबाज, बिना सोचे बोलने वाला तथा गैर कानूनी कामों में रुचि लेने वाला होता है।

तुला⚖ तुला राशि का स्वामी शुक्र है तथा शुक्र के प्रभाव
से चंद्रमा अपने भव्य गुणों को खो बैठता है क्योंकि इस इस राशि में निकृष्ट मानसिक वृत्तियों को बढ़ावा देने की वृत्ति होती है। अतः जातक इन प्रभावों में बह जाता है
और दुर्भाग्यकारी गतिविधियों में संलग्न रहता है। वह दुश्चरित्र व्यक्तियों के संपर्क में आता है तथा धन व पद
की हानि का भागी होता है। धन की कमी उसके जीवन में
विशेष स्थान रखती है। विपरीत लिंगों से संबंध न सुखद होते हैं न लाभदायक। उसमें विवाद की वृत्ति, आत्मविश्वास में कमी, दरिद्रता तथा कभी-कभी हास्यास्पद व्यवहार की वृत्ति रहती है।

वृश्चिक🦂  वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल है तथा यह
चंद्रमा के नीच का स्थान है। 3 अंश पर यह नीचतम होता है। स्वाभाविक ही नीच का ग्रह अपना स्वभाव व प्रभाव खो बैठता है और केवल नीचभंग की दशा में ही प्रभावी होता है। इस राशि में यही चंद्रमा के साथ होता है । जातक को अपने प्रयासों में अपमानित होना पड़ता है। दूसरों की सेवा में जाना पड़ता है। अपनों से द्वेष रहता है तथा धन की हानि होती है। उसे शासन से समस्या, उपक्रमों में निराशा व शारीरिक कष्ट होता है।

धनु🏹 धनु राशि का स्वामी बृहस्पति है। चंद्रमा व
बृहस्पति की मित्रता के कारण धनु राशि में चंद्रमा
अच्छे परिणाम देता है किंतु अयोग्य विचारों व व्यक्तियों के प्रभाव में आकर परिणामों का बिना विचार किये अति उत्साही रहने की प्रवृत्ति रहती है। वे मेहनती व कार्यकुशल होते हं किंतु एकाग्रता के अभाव में कुछ भी लाभप्रद नहीं कर पाते और उद्देश्य से भटक जाते हैं। इन्हें पैतृक संपत्ति की हानि, मानसिक व शारीरिक कष्ट तथा
शासन द्वारा दंड की आशंका रहती है। इन सभी बाधाओं के होते हुए भी इनका परिश्रम और धैर्य ही इन्हें जीवन में
सफलता दिलाता है।

मकर🐊 चंद्रमा का विभिन्न राशियों से विभिन्न प्रकार का संबंध होता है। इसके दो कारण हैं। 1. चंद्रमा विभिन्न ग्रहों से विभिन्न स्तरों पर संबंध स्थापित करता है। 2. उसी के अनुसारव उसमें सहजता अथवा असहजता का राशि अनुसार अनुभव करता है। मकर राशि का स्वामी शनि ग्रह है। इस राशि में चंद्रमा बहुत ही व्यावहारिक हो जाता है तथासांसारिक ज्ञान से लाभ लेने का प्रयास करता है। इस राशि का जातक यात्राओं की ईच्छा वाला तथा संतान से सुख पाने वाला होता है। इसके व्यवहार में एक सतत अनिश्चितता रहती है तथा वह अज्ञात चिंताओं से भयभीत रहता है।

कुंभ🍯  शनि इस राशि का स्वामी भी है किंतु चन्द्रमा का इस राशि से संबंध मकर राशि से कुछ अलग प्रकार का
है। यहां विषयों का एक अंतद्र्वंद्व है जो व्यावहारिक परिणामों की प्राप्ति में बाधक है। यह द्वंद्व की स्थिति व्यक्ति के विकास क्रम के साथ-साथ देखी जा सकती है। वे सार्वभौमिक स्तर पर कार्य करना चाहते हैं किंतु छोटी-छोटी समस्याएं उन्हें घेरे रहती हैं। उन्हें संपत्ति की हानि, दुश्चिंता, कर्ज लेना तथा अनैतिक कार्यों में संलग्न होना पड़ सकता है। उसमें बुरे लोगों की संगत व दुव्र्यसनों
की लत पड़ने की संभावना रहती है।

मीन🐳 इस राशि का स्वामी बृहस्पति है। चंद्रमा का बृहस्पति से विशेष संबंध है जो मीन राशि में चंद्रमा के होने से ही स्पष्ट होता है। चंद्रमा अपनी समस्त योग्यता के साथ यहां प्रकट होता है तथा जातक की कल्पना को एक नई दिशा प्रदान करता है। यहां आकाश को छू लेने की आंतरिक ईच्छा काम करती प्रतीत होती है जो इस नव प्राप्त ख्याति का भाग हो जाना चाहती है। मन रचना की दुनिया में विचरने को आतुर होता है तथा एक के बाद एक रचनात्मक कृतियों के निर्माण में संलग्न रहता है। व्यक्ति अपने अच्छे कर्मो से धनार्जन करता है, बहिर्मुखी होता है तथा जल से संबंधित उत्पादों में रुचि लेता है और उससे लाभ पाता है। स्त्री व संतान से सुख तथा शत्रुओं का समूल नाश करने में भी जातक सक्षम होता है।

मंगल ग्रह के गुण और प्रभाव

*मंगल सौरमंडल में सूर्य से चौथा ग्रह है। पृथ्वी से इसकी आभा रक्तिम दिखती है जिस वजह से इसे “लाल ग्रह” के नाम से भी जाना जाता है। संस्कृत में मंगल को अंगारका (‘जो लाल रंग का हो’) या भौम (‘भूमि पुत्र’) भी कहा जाता है। वह युद्ध के देवता है और अविवाहित है। उन्हें पृथ्वी या भूमि का पुत्र माना जाता है। वह हाथो में चार शस्त्र, एक त्रिशूल, एक गदा, एक पद्म या कमल और एक शूल थामे हुए है। उनका वाहन एक भेड़ है। वें ‘मंगला-वरम’ (मंगलवार) के अधिष्ठाता हैं। हिंदी व संस्कृत में मंगल का अर्थ होता है शुभ अथवा कल्याणकारी, देवी पृथ्वी से इनकी उत्पत्ति के कारण इन्हें भौम कहा जाता है।*

*परन्तु ज्योतिषशास्त्र में मंगल ग्रह को क्रूर ग्रह कहा गया है। मंगल ग्रह उग्रता के साथ-साथ धैर्य के प्रतिनिधि माने गए हैं। मंगल जातक को दूसरों के सामने अपने को साबित करने में मदद करते हैं। अपने द्वारा निश्चित किये गए उद्देश्य के लिए जीवन में संघर्ष और तनाव का सामना करना, जीवन में संघर्ष के लिए आंतरिक अभिव्यक्ति, मानसिक परिपक्वता और उग्रता हमे मंगल से ही प्राप्त होती है। जुझारूपन एवं हार न मानने की शक्ति हमें मंगल से ही मिलती है और खून की ताक़त भी मंगल से ही मिलती है। दायें बाजू का विचार मंगल से किया जाता है हमारे समाज में भाई को दायाँ हाथ कहा जाता है इसी कारण से भाई का कारक भी मंगल देव हैं।मंगल ग्रह का विवाह में बहुत महत्व है और मंगल के शुभ प्रभाव के बिना भूमि का स्वामित्व प्राप्त होना असंभव है। कुण्डली में इसकी विशेष स्थिति दुर्घटना और परिवार में मतभेद पैदा कर देती है। मंगल को युद्ध का देवता भी कहा जाता है अन्ततः यह मतभेद और अलगाव का भी कारक हैं।सूर्य और चन्द्र केवल एक राशि के स्वामी हैं जबकि मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि सभी २-२ राशियों के स्वामी हैं।*

*दो राशियों का स्वामी होने के कारण ये ग्रह अतिरिक्त उर्जा ,स्वभाव,चरित्र और व्यवहारिक क्षमता रखते हैं। इनके पूर्ण प्रभाव को हम दोनों राशियों का विचार किये बिना पूरी तरह से नहीं समझ सकते, एक राशि में वही ग्रह चमत्कारी प्रभाव देता है वहीं दूसरी राशि में ये बेहद साधारण या बुरा प्रभाव देता है।जैसा की हम जानते ही हैं कि मंगल ब्रह्माण्ड की दो महत्वपूर्ण राशियों का स्वामी है यदि हम मंगल के प्रभाव को पूर्ण रूप से जानना चाहते है तो इन राशियों का प्रभाव देखना होगा। मेष और वृश्चक की विपरीत राशियाँ तुला और वृषभ है जिन पर मादक ग्रह शुक्र का अधिकार है। मंगल और शुक्र में एक विशेष सम्बन्ध है जहाँ मंगल पौरुषता का द्योतक है वहीँ शुक्र नारित्व का द्योतक है।*

*ज्योतिष में मेष राशिचक्र की पहली राशि है और यह लक्ष्यहीन उर्जा को दर्शाती है मंगल अदृश्य उर्जा से ओतप्रोत है इसीलिए इस राशि में उग्रता होती है। परन्तु बिना किसी संदेह और स्वार्थ के इस राशि से प्रभावित लोग अपने लक्ष्य की और बढ़ते रहते है इनकी त्वरित निर्णय की क्षमता इन्हें अन्य लोगों से दूर भी करती है और एक सुरक्षा भी देती है।मंगल के स्वामित्व वाली दूसरी राशि है वृश्चिक, यह राशि बहुत ही जटिल स्वभाव वाली है इसीलिए इसे रहस्यमयी राशि कहते हैं। यह राशि जीवन के दो महत्वपूर्ण पक्षों (काम और मृत्यु ) पर अपना प्रभाव रखती है । उर्जा के मूल स्वभाव का दो तरह से उपयोग किया जा सकता है, पहला निर्माण और दूसरा विनाश।*

*मंगल ग्रह अपने में प्रचंड ऊर्ज़ा का स्त्रोत है।मंगल की पहली राशि मेष में ऊर्ज़ा बहिर्मुखी दिशा में उद्यत है वहीँ दूसरी राशि वृश्चिक में वही ऊर्ज़ा अंतर्मुखी हो जाती है। मंगल की ये ही ऊर्ज़ा एक तरफ इंसान को अहंकारी और उग्र स्वभाव का बना देती है तो दूसरी तरफ दार्शनिक, वफादार, बहादुर और सामाजिक भी बना देती है।कुंडली में मंगल की अच्छी दशा बेहद कामयाब बनाती है। वहीं इस ग्रह की बुरी दशा इंसान से सब कुछ छीन भी सकती है।मंगल ग्रह के बहुत से शुभ और अशुभ योग हैं*

*मंगल का पहला अशुभ योग – किसी कुंडली में मंगल और राहु एक साथ हों तो अंगारक योग बनता है, अक्सर यह योग बड़ी दुर्घटना का कारण बनता है।इसके चलते लोगों को सर्जरी और रक्त से जुड़ी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अंगारक योग इंसान का स्वभाव बहुत क्रूर और नकारात्मक बना देता है। इस योग की वजह से परिवार के साथ रिश्ते बिगड़ने लगते हैं।अंगारक योग से बचने के उपाय – अंगारक योग के चलते मंगलवार का व्रत करना शुभ होगा। मंगलवार का व्रत रखने के साथ भगवान शिव के पुत्र कुमार कार्तिकेय की उपासना करें।*

*मंगल का दूसरा अशुभ योग – अंगारक योग के बाद मंगल का दूसरा अशुभ योग है मंगल दोष। यह इंसान के व्यक्तित्व और रिश्तों को नाजुक बना देता है। कुंडली के पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें स्थान में मंगल हो तो मंगलदोष का योग बनता है। इस योग में जन्म लेने वाले व्यक्ति को मांगलिक कहते हैं। कुंडली की यह स्थिति विवाह संबंधों के लिए बहुत संवेदनशील मानी जाती है।मंगलदोष के लिए उपाय – हनुमान जी को रोज चोला चढ़ाने से मंगल दोष से राहत मिल सकती है। मंगल दोष से पीड़ित व्यक्ति को जमीन पर ही सोना चाहिए।*

*मंगल का तीसरा अशुभ योग – नीचस्थ मंगल तीसरा सबसे अशुभ योग है। जिनकी कुंडली में यह योग बनता है, उन्हें अजीब परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। इस योग में कर्क राशि में मंगल नीच का यानी कमजोर हो जाता है। जिनकी कुंडली में नीचस्थ मंगल योग होता है, उनमें आत्मविश्वास और साहस की कमी होती है। यह योग खून की कमी का भी कारण बनता है। कभी–कभी कर्क राशि का नीचस्थ मंगल इंसान को डॉक्टर या सर्जन भी बना देता है।नीचस्थ मंगल के लिए उपाय – नीचस्थ मंगल के अशुभ योग से बचने के लिए तांबा पहनना शुभ सकता है। इस योग में गुड़ और काली मिर्च खाने से विशेष लाभ होगा।*

*मंगल का चौथा अशुभ योग – मंगल का एक और अशुभ योग है जो बहुत खतरनाक है। इसे शनि मंगल (अग्नि योग) कहा जाता है। इसके कारण इंसान की जिंदगी में बड़ी और जानलेवा घटनाओं का योग बनता है। ज्योतिष में शनि को हवा और मंगल को आग माना जाता है। जिनकी कुंडली में शनि मंगल (अग्नि योग) होता है उन्हें हथियार, हवाई हादसों और बड़ी दुर्घटनाओं से सावधान रहना चाहिए। हालांकि यह योग कभी–कभी बड़ी कामयाबी भी दिलाता है।*

*शनि मंगल (अग्नि योग) के लिए उपाय – शनि मंगल (अग्नि योग) दोष के प्रभाव को कम करने के लिए रोज सुबह माता-पिता के पैर छुएं। हर मंगलवार और शनिवार को सुंदरकांड का पाठ करने से इस योग का प्रभाव कम होगा।*

*मंगल का पहला शुभ योग – मंगल के शुभ योग में भाग्य चमक उठता है। लक्ष्मी योग मंगल का पहला शुभ योग है। चंद्रमा और मंगल के संयोग से लक्ष्मी योग बनता है। यह योग इंसान को धनवान बनाता है। जिनकी कुंडली में लक्ष्मी योग है, उन्हें नियमित दान करना चाहिए।*

*मंगल का दूसरा शुभ योग – मंगल से बनने वाले पंच- महापुरुष राज योग को रूचक योग कहते हैं। केंद्र में जब मंगल मजबूत स्थिति के साथ मेष, वृश्चिक या मकर राशि में हो तो रूचक योग बनता है। यह योग इंसान को राजा, भू-स्वामी, सेनाध्यक्ष और प्रशासक जैसे बड़े पद दिलाता है। इस योग वाले व्यक्ति को कमजोर और गरीब लोगों की मदद करनी चाहिए।*

*मंगल के जन्म की कथा –देवी भागवत् पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने हिरण्याक्ष नामक राक्षस का वध करने के लिए वाराह अवतार लिया। इस राक्षस का वध करने के बाद जब वाराह भगवान अपने लोक लौटने लगे तब धरती माता ने उनसे पुत्र प्राप्ति की इच्छा प्रकट की। धरती की मनोकामना पूरी करने के लिए वराह कुछ समय तक धरती के साथ रहे। धरती ने जब पुत्र को जन्म दिया, इसके बाद वराह भगवान लौटकर बैकुण्ठ चले आए। लेकिन जब धरती के पुत्र मंगल बड़े हुए तो वह इस बात से नाराज हुए कि वराह भगवान ने उनकी माता का त्याग कर दिया। इसलिए मंगल वैवाहिक जीवन में दूरियां पैदा करते हैं। दुर्घटना और रक्तपात की घटनाएं करवाते हैं।

नाड़ी दोष का परिहार

* वर तथा वधु की एक ही राशि हो लेकिन नक्षत्र भिन्न तब इस दोष का परिहार होता है.

* दोनों का जन्म नक्षत्र एक हो लेकिन चंद्र राशि भिन्न हो तब परिहार होता है.

* दोनों का जन्म नक्षत्र एक हो लेकिन चरण भिन्न हों तब परिहार होता है.

* शास्त्रानुसार नाड़ी दोष ब्राह्मणों के लिए, वर्णदोष क्षत्रियों के लिए, गणा दोष वैश्यों के लिए और योनि दोष शूद्र जाति के लिए देखा जाता है.

* ज्योतिष चिन्तामणि के अनुसार रोहिणी, मृ्गशिरा, आर्द्रा, ज्येष्ठा, कृतिका, पुष्य, श्रवण, रेवती तथा उत्तराभाद्रपद नक्षत्र होने पर नाड़ी दोष नहीं माना जाता है।

ज्योतिष और स्त्रियों के कुछ महत्त्वपूर्ण योग

महिलाओं से सम्बंधित कुछ महत्त्वपूर्ण योग, कुंडली के विभिन्न योग, विधवा योग, तलाक योग, पति से सम्बंधित कुछ योग, सुख योग, दुखी जीवन योग, बंध्यापन के योग, संतति योग
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स्त्री का पुरुष के जीवन में बहुत ही मुख्य स्थान है, इसी कारण ज्योतिष में स्त्री वर्ग पर भी पर्याप्त विचार किया जाता है।
जहां तक पुरुष और नारी के सहज सनातन संबंधों का प्रश्न है, ज्योतिष उन्हें अभिन्न अंग मानकर विचार करता है. कुंडली का सातवा स्थान एक दुसरे का सूचक है अर्थान स्त्री और पुरुष के कुंडली में सातवाँ स्थान एक दुसरे का प्रतिनिधित्व करता है।
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आइये यहाँ हम स्त्री की कुंडली में स्थित ग्रहों को थोडा समझने का प्रयास करे -
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1. लग्न और चन्द्रमा , मेष , मिथुन , सिंह तुला धनु, कुम्भ, राशियों में स्थित हो तो स्त्री में पुरुषोचित गुण जैसे बलिष्ट देह, मुछों की रेखा, क्रूरता, कठोर स्व, आदि होते हैं. चरित्र की दृष्टि से इनकी प्रशंसा नहीं की जा सकती है . क्रोध और अहंकार भी इनके प्रकृति में होता है।
2. लग्न और चन्द्रमा के सम राशियों में जैसे वृषभ , कर्क, कण, वृश्चिक, मकर, मीन में हो तो स्त्रियोंचित गुण पर्याप्त मात्रा में होते है . अच्छी देह, लज्जा, पति के प्रति निष्ठा , कुल मर्यादा के प्रति आस्था, आदि प्रकृति में रहते है।
3. स्त्री के कुंडली में सातवे स्थान में शनि हो और उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो उसका विवाह नहीं होता।
4. सप्तम स्थान का स्वामी शनि के साथ स्थित हो या शनि से देखा जा रहा हो तो बड़ी उम्र में विवाह होता है।
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विधवा योग :
1. जन्म कुंडली में सातवे स्थान में मंगल हो और उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो विधवा योग बनता है . ऐसी लड़कियों का विवाह बड़ी उम्र में करने पर दोष कम हो जाता है .
2. आयु भाव में या चंद्रमा से सातवे स्थान में या आठवे स्थान में कई पाप गृह हो तो विधवा योग होता है।
3. 8 या 12 स्थान में मेष या वृश्चिक राशि हो और उसमे पाप गृह के साथ राहू हो तो विधवा योग होता है।
4. लग्न और सातवे स्थान में पाप गृह होने से भी विधवा योग बनता है।
5. चन्द्रमा से सातवे , आठवे, और बारहवे स्थान में शनि , मंगल हो और उन्पर भी पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो विधवा योग अबंता है।
6. क्षीण या नीच का चन्द्र 6 या 8 स्थान में हो तो भी विधवा योग बनता है
7. 6 और 8 स्थान का स्वामी एक दुसरे के स्थान में हो और उन पर पाप ग्रहों की दिष्टि हो तो विधवा योग बनता है।
8. सप्तम का स्वामी अष्टम में और अष्टम का स्वामी सप्तम में हो और इनमे से किसी को पाप गृह देख रहा हो तो विधवा योग बनता है।
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तलाक योग :
1. सूर्य का सातवे स्थान में होना तलाक की संभावनाए बनता है।
2. सातवे स्थान में निर्बल ग्रहों के होने से और उनपर शुभ ग्रहों के होने से एक पति स्वर तलाक देने पर दुसरे विवाह के योग बनते है।
3. सातवे स्थान में शुभ और पाप दोनों गृह होने से पुनर्विवाह के योग बनते है।
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पति से सम्बंधित कुछ योग :
1. लग्न में अगर मेष , कर्क, तुला , मकर राशि हो तो पति परदेश में रहने वाला होता हो या घुमने फिरने वाला होता हो।
2. सातवे स्थान में अगर बुध और शनि स्थित हो तो पति पुरुश्त्वहीन होता हो।
3. सातवे स्थान खाली हो और उस पर किसी गृह की दृष्टि भी न हो तो पति नीच प्रकृति का होता है।
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सुख योग :
1. बुध और शुक्र लग्न में हो तो कमनीय देह वाली , कला युक्त, बुध्हिमान और पति प्रिय होती है।
2. लग्न में बुध और चन्द्र के होने से चतुर, गुणवान, सुखी और सौभाग्यवती होती है।
3. लग्न में चन्द्र और शुक्र के होने से रूपवती , सुखी परन्तु ईर्ष्यालु होती है।
4. केंद्र स्थान के बलवान होने पर या फिर चन्द्र,, गुरु और बुध इनमे से कोई 2 गृह के उच्च होने पर तथा लग्न, में वरिश, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर, मीन, होतो समाज्पूज्य स्त्री होती है।
5. सातवे स्थान में शुभ ग्रहों के होने से गुणवती, पति का स्नेह प्राप्त करने वाली और सौभाग्य शाली स्त्री होती है।
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बंध्यापन के योग :
1. सूर्य और शनि के आठवे स्थान में होने से बंध्या होती है।
2. आठवे स्थान में बुध के होने से एक बार संतान होकर बंद हो जाती है।
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संतति योग :
1. सातवे स्थान में चन्द्र या बुध हो तो कन्याये अधिक होंगी।
2. सातवे स्थान में राहू हो तो अधिक से अधिक 2 पुत्रियाँ होंगी पुत्र होने में बढ़ा हो।
3. नवे स्थान में शुक्र होने से कन्या का योग बनता है।
4. सातवे स्थान में मंगल हो और उसपर शनि की दृष्टि हो अथवा सातवे स्थान में शनि , मंगल, एकत्र हो तो गर्भपात होता रहता है।

ग्रहों के 120 गुण

*ग्रहों के 120 गुण*
लगन अगर-
मेष है तो आदमी का बच्चा है
वृष है तो धन की मशीन है
मिथुन है तो टेलीफ़ोन है
कर्क है तो भावना की पुडिया है
सिंह है तो अहम भरा हुआ है
कन्या है तो कर्जा दुश्मनी बीमारी से घिरा है
तुला है तो हर बात में फ़ायदा सोचने वाला है
वृश्चिक है तो भूतो का सरदार है
धनु है तो बाप दादा की बात करने वाला है
मकर है तो चौबीस घंटे काम ही काम है
कुम्भ है तो जल्दी रिस्ता बना सकता है
मीन है तो हमेशा मौन रहने वाला है

लगन से सूर्य अगर-
पहले भाव मे है तो अहम भरा है
दूसरे भाव मे है तो चमक के आगे कुछ दिखाई ही नही देता
तीसरे भाव मे है तो नेतागीरी पहले है
चौथे भाव मे है तो राजनीति वाली सोच है
पंचम भाव मे है तो परिवार मे ही राजनीति करने वाला है
छठे भाव मे है तो बाप को नौकर समझता है
सातवे भाव मे है जीवन साथी का गुलाम है
आठवे भाव मे है तो बेचारा दिल का मरीज है
नवे भाव मे है तो धर्म से भी कमाने वाला है
दसवे भाव मे है तो सभी काम नेतागीरी से किये जाते है
ग्यारहवे भाव मे है तो पिता को नोट छापने की मशीन समझता है
बारहवे भाव मे है तो आंखों का मरीज है

लगन से चन्द्र अगर-
पहले भाव मे है तो मन से काम करने वाला है
दूसरे भाव मे है तो ख्यालों से धनी है
तीसरे भाव मे है तो हर बात को पूंछ कर चलने वाला है
चौथे भाव मे है तो मकान दुकान और घर मे रहने वाला है
पंचवे भाव मे है तो मनोरंजन में ही मस्त रहने वाला है
छठे भाव मे है तो कोई काम सोचने से नही होता है
सातवे भाव मे है तो हर बात में माता की राय जरूरी है
आठवे भाव मे है तो दिल की गहराइया बहुत है,थाह पाना मुश्किल है
नवे भाव मे है तो हर काम भाग्य के भरोसे है
दसवे भाव मे है तो कार्य के लिये सोचने वाला है करने वाला नही है
ग्यारहवे भाव मे है तो कमाने के पहले ही कर्जा करने वाला है
बारहवे भाव मे है तो टोने टोटके और ज्योतिष मे रुचि रखने वाला है

मंगल अगर-
पहले भाव मे है तो तलवार का धनी है
दूसरे भाव मे है तो खरी खोटी सुनाने वाला है
तीसरे भाव मे है तो झगडा करने की आदत है
चौथे भाव मे है तो दिल को सुलगाने वाला है
पंचम भाव मे है तो खिलाडी है
छठे भाव मे है तो खून मे ही बीमारी है
सातवे भाव मे है तो काम मे चौकस है
आठवे भाव मे है तो जली हुयी मिठाई है
नवे भाव मे है तो खानदान को आग लगाने वाला है
दसवे भाव में है तो जो कहा है वह सच है,भले ही झूठ हो
ग्यारहवे भाव मे है तो चोरों का सरदार है
बारहवे भाव मे है तो तवे पर पानी छिनछिनाता है

बुध अगर-
पहले भाव मे है तो बातूनी है
दूसरे भाव मे है तो जमीन जायदाद वाला है
तीसरे भाव मे है तो चुगलखोर है
चौथे भाव मे है तो गाने बजाने मे रुचि है
पंचम भाव मे है तो गेंद की तरह परिवार को उछालने वाला है
छठे भाव मे है तो आवाज भी धीमी है
सातवे भाव मे है तो मौन रहकर सुनने वाला है
आठवे भाव मे है तो बात की औकात ही नही है
नवे भाव मे है तो पहुंच कर भी जगह से फ़िसलने वाला है
दसवें भाव मे है तो बातों का व्यापार करने वाला है
ग्यारहवे भाव मे है तो इतिहास को बखानने वाला है
बारहवे भाव मे है तो आधा पागल है

गुरु अगर-
पहले भाव मे है तो बेचारा अकेला है
दूसरे भाव मे है तो वेद को भी बेचकर खाने वाला है
तीसरे भाव मे है तो हर बात धर्मानुसार होनी चाहिये
चौथे भाव मे है तो कपडे की जानकारी है
पंचम भाव मे रास्ते चलते शिक्षा देने वाला है
छठे भाव मे है तो कर्जा दुश्मनी और बीमारी के मामले मे गुणी है
सप्तम भाव मे है तो धर्म पर बहस करने वाला है
अष्टम भाव मे है तो जमा पूंजी को खाने वाला है
नवम भाव मे है तो पूर्वजों के भाग्य की खा रहा है
दसम भाव मे है तो पूर्वजों की सम्पत्ति को बेच कर खाने वाला है
ग्यारहवे भाव मे है तो दोस्तों के साथ ही पति या पत्नी के सम्बन्ध बनाने वाला है
बारहवे भाव मे है तो आगे नाम चलाने वाला ही नही है

शुक्र अगर-
पहले भाव मे है तो खूबसूरत है
दूसरे भाव मे है तो बिना क्रीम लगाये कही जाने वाला नही
तीसरे भाव मे है तो सज संवर कर ही निकलेगा
चौथे भाव मे है तो रोजाना सवारी तो करनी ही है
पंचम भाव मे है तो फ़िल्म देखने से ही फ़ुर्सत नही है
छठे भाव मे है तो मकान दुकान और पत्नी को भी गिरवी रखने वाला है
सातवें भाव मे है तो जीवन को पैर के नीचे लेकर चलने वाला है
अष्टम मे है तो शमशान मे भी सो सकते है
नवम मे है तो देश मे तो रह ही नही सकते है
दसवे भाव मे है तो चमक दमक मे ही काम करना है,शाम को भले भूखा सोना पडे
ग्यारहवे भाव मे है तो शाम को रोटी भी उधारी की आ सकती है
बारहवे भाव मे है तो आराम का मामला है

शनि अगर-
पहले भाव मे है तो जड है
दूसरे भाव मे है तो धन की चिन्ता है
तीसरे भाव मे है तो आलसी है
चौथे भाव में ठंड अधिक लगती है
पंचम मे है तो कल का खाया ही नही पचता है
छठे भाव मे है तो सारी जिन्दगी की ताबेदारी यानी नौकरी है
सप्तम मे है तो रोजाना पहाड पर चढ कर काम करना है
अष्टम मे है तो सूखा कुआ है
नवम मे है तो भाग्य भरोसे नही काम के भरोसे कमाना है
दसवे भाव मे है तो दिन रात की मेहनत के बाद भी केवल रोटी
ग्यारहवे भाव मे है तो रोजाना काम का पैसा डूबने वाला है
बारहवे भाव मे है तो आराम के मामलो मे खर्चा नही

राहु अगर-
पहले भाव मे है तो आसमान से उतरना मुश्किल है
दूसरे भाव मे है तो पैसा कहां से आयेगा
तीसरे भाव मे है तो कोई भरोसा नही कब थप्पड मार दे
चौथे भाव मे है तो हर बात में शक है
पंचम मे है तो पढाई से क्या होता है हम तो बहुत जानते है
छठे भाव मे है तो बिना दवाई के रास्ता नही चलनी
सातवे भाव मे है तो घर मे कभी नही बननी
आठवे भाव मे है तो पता नही कब गुम जायें
नवे भाव मे है तो खाना खाने से भी पहले पूर्वजों का नाम लेना है
दसवे भाव मे कभी तो भूत की तरह काम करना है कभी करना ही नही है
ग्यारहवे भाव मे है तो कभी बहुत कमाई कभी धेला भी नही
बारहवे भाव मे है तो घर से बाहर निकलने में भी डर लगता है

केतु अगर-
पहले भाव मे है तो अकेला काफ़ी है
दूसरे भाव मे है तो मालिक के लिये धनदायक है
तीसरे भाव मे है तो टेलीफ़ोन का तार है
चौथे भाव मे है तो बेचारा सांस का मरीज है
पंचम भाव मे है तो क्रिकेट का बल्ला है
छठे भाव मे है तो औजार ही खराब है
सातवे भाव मे है तो सामने खम्भा है
आठवे भाव मे है तो एक टांग टूटी है
नवे भाव मे है तो कोई धर्म हो सब एक जैसे है
दसवे भाव मे है तो सरकारी नेता है
ग्यारहवे भाव मे है तो हर काम बायें हाथ का है
बारहवे भाव मे है तो झंडा ऊंचा रहे हमारा....

जेलयात्रा योग, निवारण उपाय

किसी भी कुंडली में सितारों की स्थिति ये भी बता देती है कि जेल यात्रा के योग है या नहीं ?
जी हाँ, कुंडली में सूर्य, शनि, मंगल और राहु-केतु जैसे पाप ग्रह बता देते हैं कि आपकी कुंडली में जेल जाने के योग है या नहीं।

अगर किसी की कुंडली के छठें आठवें या बारहवें भाव में पाप ग्रह होते है तो ऐसे लोगों को जीवन में एक न एक बार जेल यात्रा करनी पड़ती है। कुंडली के छठे आठवें और बारहवें भाव से जेल जाने के योग बनते हैं।

👉 कब बनते हैं जेल जाने के योग?
- कुंडली के बारहवें भाव से भी कारावास का विचार किया जाता है। कुंडली के इस घर में वृश्चिक या धनु राशी का राहु हो तो उसके अशुभ प्रभाव के कारण
व्यक्ति को किसी बड़े अपराध के कारण जेल जाना पड़ता है।

- कुंडली के बारहवें घर में वृश्चिक राशी होने के साथ अगर राहु और शनि होते है तो कोर्ट कचहरी के मामलों में हारने के बाद जेल जाना पड़ता है।

- कर्क राशी स्तिथ मंगल कुंडली के छठे घर में होने
से जेल यात्रा के योग बनाता है।

- अगर कुंडली में मंगल और शनि एक दूसरे को देख
रहें हो तो लड़ाई झगड़े के कारण व्यक्ति को जेल जाना पड़ेगा।

- अगर कुंडली में नीच का मंगल हो और मेष राशि का शनि, मंगल को देखता भी हो तो भी जेल जाने के योग बनते हैं।

- पराक्रम भाव एवं अष्टम भाव का स्थान परिवर्तन, भावेश द्वारा द्रष्टि सम्बन्ध, भावईश् की दशा-प्रत्यंतर, ग्रह गोचर द्वारा दुर्भाग्य उद्दीपन होने पर जेल जाने की स्तिथि प्रबलता से बनती है।

- लग्नेश या लग्न पर मार्केष् वक्री ग्रह की दृष्टि प्रभाव वश

जन्म कुंडली पत्रिका में उपर्युक्त किसी भी ग्रहदोष स्तिथि का निर्माण होने पर समय विशेष की पुष्टि द्वारा जातक कर्मस्तिथिवश कोर्ट कचहरी, मुक़दमे, फौजदारी, सामाजिक अपयश या जेलयात्रा अवश्य संभावी होती है। ऐसी किसी भी स्तिथि के ज्ञात होने पर ज्योतिष अनुसन्धान में ग्रहदोष निवारण वैदिक उपाय द्वारा अशुभता को काफी हद तक निम्न किया जा सका है।

सावधानिया, जेलयात्रा बचाव के उपाय:
😸 घटना के पूर्व ही:
     >  ग्रहदोष शांति उपाय
     >  दुर्भाग्य नाशक यंत्र - मन्त्र
     >  सांकेतिक जेलयात्रा

😸 बचाव, जेलजाने योग्य कर्म घटित होने के पश्चात्:
     >  प्रायश्चित प्रक्रिया - शारीरिक पंचतत्व संतुलन
     >  दुर्भाग्य नाशक यंत्र - मन्त्र

😸 जेल स्तिथि बन जाने पर:
      >  प्रायश्चित प्रक्रिया - सामाजिक संतुलन
      >  प्रायश्चित प्रक्रिया - पर्यावरण संतुलन
      >  प्रायश्चित प्रक्रिया - शारीरिक पंचतत्व संतुलन
      >  शत्रु वशीकरण तंत्र
      >  दुर्भाग्य नाशक यंत्र - मन्त्र

सभी उपाय योग्य ज्योतिष जानकार विद्वान के सानिध्य में शास्त्र सम्मत विधि द्वारा पूर्णरूप से सम्पादित करने पर जीवन कष्ट स्तिथि में #शुभ_बदलाव को तत्काल सहजता से पाया जा सकता है।

कुंडली में कुछ विशेष योग

ससुराल से धन-प्राप्ति के योग

  सप्तमेश और द्वतीयेश एक साथ हों और उन पर शुक्र की दृष्टि हो | चौथे घर का स्वमी सातवें घर में हो, शुक्र चौथे स्थान पर हो, तो ससुराल से धन मिलता है | सप्तमेश नवमेश शुक्र द्वारा देखे जाते हों | बलवान धनेश सातवें स्थान पर बैठे शुक्र द्वारा देखा जाता हो | 

धन-सुख योग

धन-सुख योग   दिन मे जन्म लेने वाले जातक का चन्द्रमा अपने नवांश मे हो तथा उसे गुरु देखता हो, तो धन-सुख योग होता है | रात मे जन्म हो, चंद्रमा को शुक्र देखता हो, तो धन-प्राप्ति होती है | भाग्य के स्वामी का लाभ के स्वामी के साथ योग हो | चौथे घर का मालिक भाग्येश के साथ बैठा हो | भाग्येश और पंचमेश का योग हो | भाग्येश और द्वितीयेश का योग हो | दशमेश और लाभेश साथ हों | दशमेश और चतुर्थेश २, ४, ५, ९ घर मे साथ बैठे हो | धनेश और पंचमेश का योग हो | लग्न का स्वामी चौथे घर के साथ बैठे हो | लाभेश और चतुर्थेश का योग हो | लाभेश और धनेश का योग हो | लाभेश और लग्नेश का योग हो | लग्नेश और धनेश का योग हो | लग्न का स्वामी पांचवें स्थान के स्वामी के साथ हो | 

महालक्ष्मी योग

महालक्ष्मी योग   धन और एश्वर्य प्रदान करने वाला योग है। यह योग कुण्डली Kundli में तब बनता है जब धन भाव यानी द्वितीय स्थान का स्वामी बृहस्पति एकादश भाव में बैठकर द्वितीय भाव पर दृष्टि डालता है। यह धनकारक योग (Dhan Yoga) माना जाता है। इसी प्रकार एक महान योग है   

सरस्वती योग

सरस्वती योग   यह तब बनता है जब शुक्र बृहस्पति और बुध ग्रह एक दूसरे के साथ हों अथवा केन्द्र में बैठकर एक दूसरे से सम्बन्ध बना रहे हों। युति अथवा दृष्टि किसी प्रकार से सम्बन्ध बनने पर यह योग बनता है। यह योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में बनता है उस पर विद्या की देवी मां सरस्वती की कृपा रहती है। सरस्वती योग वाले व्यक्ति कला, संगीत, लेखन, एवं विद्या से सम्बन्धित किसी भी क्षेत्र में काफी नाम और धन कमाते हैं।

छत्र योग

छत्र योग   जिस व्यक्ति की जन्म पत्रिका Kundli में होता है वह व्यक्ति जीवन मे निरन्तर प्रगति करता हुए उच्च पद प्राप्त करता है। इस भगवान की छत्र छाया वाला योग कहा जा सकता है यह योग तब बनता है तब कि कुण्डली Kundli में चतुर्थ भाव से दशम भाव तक सभी ग्रह मौजूद हों या फिर दशम भाव से चतुर्थ भाव तक सभी ग्रह स्थित हों। तीन भावों में दो दो ग्रह हों तथा तीन भावों में एक एक ग्रह स्थित हों तब शुभ योग बनता है जो नन्दा योग (Nanda Yoga) के नाम से जाना जाता है। यह योग जिस व्यक्ति की जन्म पत्रिका में होता है वह स्वस्थ एवं दीर्घायु होता है। इस योग से प्रभावित व्यक्ति का जीवन सुखमय रहता है।।
     
अष्टलक्ष्मी योग

अष्टलक्ष्मी योग   वैदिक ज्योतिष में राहु नैसर्गिक पापी ग्रह के रूप में जाना जाता है.इस ग्रह की अपनी कोई राशि नहीं है अत: जिस राशि में होता है उस राशि के स्वामी अथवा भाव के अनुसार फल देता है.राहु जब छठे भाव में स्थित होता है और केन्द्र में गुरू होता है तब यह अष्टलक्ष्मी योग (Ashtalakshmi yoga) नामक शुभ योग का निर्माण करता है. अष्टलक्ष्मी योग (Ashtalakshmi yoga) में राहु अपना पाप पूर्ण स्वभाव त्यागकर गुरू के समान उत्तम फल देता है. अष्टलक्ष्मी योग (Ashtalakshmi yoga) जिस व्यक्ति की कुण्डली में बनता है वह व्यक्ति ईश्वर के प्रति आस्थावान  है.इनका व्यक्तित्व शांत होता है.इन्हें यश और मान सम्मान मिलता है.लक्ष्मी देवी की इनपर कृपा रहती है.

वास्तु शास्त्र

* सोते समय सिर दक्षिण में पैर उत्तर दिशा में रखें। या सिर पश्चिम में पैर पूर्व दिशा में रखना चाहिए

* अलमारी या तिजोरी को कभी भी दक्षिणमुखी नहीं रखें

* पूजा घर ईशान कोण में रखें

* रसोई घर मेन स्वीच, इलेक्ट्रीक बोर्ड, टीवी इन सब को आग्नेय कोण में रखें

* रसोई के स्टेंड का पत्थर काला नहीं रखें।दक्षिणमुखी होकर रसोई नहीं पकाए

* शौचालय सदा नैर्ऋत्य कोण में रखने का प्रयास करें

* फर्श या दिवारों का रंग पूर्ण सफेद नहीं रखें

* फर्श काला नहीं रखें

* मुख्य द्वार की दांयी और शाम को रोजाना एक दीपक लगाएं।

मंगलवार, 26 सितंबर 2017

शनि मंगल का विध्वंशक संबंध

कालपुरुष की पत्रिका मे शनि दशम व एकादश भाव तथा मंगल प्रथम व अष्टम भाव का प्रतिनिधित्व करते हैं किसी की भी पत्रिका मे इन दोनों ग्रहो का युति अथवा दृस्टी संबंध जातक विशेष को गुप्त रूप से कर्म कर लाभ प्राप्त करने जैसे फलो की पुष्टि करता हैं जिससे जातक विशेष के चरित्र पर एक प्रश्न चिह्न लग जाता हैं इसके अतिरिक्त प्रत्येक कुंडली मे इन दोनों ग्रहो के भाव स्थान व उनके संबन्धित कारको को भी देखा जाना चाहिए | प्रस्तुत लेख मे हमने ऐसी ही लगभग 200 कुंडलियो का अध्ययन कर कुछ इस प्रकार के नतीजे प्राप्त किए |
ज्योतिष का हर जानकार शनि ग्रह को धरती पर होने वाली सभी बुरी घटनाओ का प्रतीक व कारक मानता हैं संसार मे होने वाले कष्ट,दुख,संताप,मृत्यु,अपंगता,विकलता,दुष्टता,पतन,युद्ध,क्रूरता भरे कार्य,अव्यवस्था,विद्रोह इत्यादि का कारक ग्रह यह शनि ही माना जाता हैं किसी की भी कुंडली मे इसकी स्थिति बहुत महत्व रखती हैं जैसे यह कहा जा सकता हैं की दूसरे भाव मे शनि वैवाहिक जीवन व धन हेतु अशुभ होता हैं जबकि चतुर्थ भाव मे यह कष्टपूर्ण बचपन का प्रतीक बनता हैं इसी प्रकार दशम भाव का शनि पाप प्रभाव मे होने से अपनी दशा मे जातक को ऊंचाई से गिराता हैं अथवा ऊंचे पद से धरातल मे ले आता हैं | इस शनि का सूर्य चन्द्र से सप्तम मे होना हमेशा बुरे परिणाम देता हैं वही गुरु के साथ होने पर यह शनि गुरु दशा मे परेशानी अवश्य प्रदान करता हैं |
इसी प्रकार मंगल ग्रह को धरती पर होने वाले विस्फोटो,हमलो,अग्निकांडों,युद्धो,भूकंपो इत्यादि का कारक माना जाता हैं जातक विशेष की पत्रिका मे यह मंगल दोष के अतिरिक्त कुछ अन्य भावो मे भी हानी ही करता हैं जैसे तृतीय भाव मे यह भात्र सुख मे कमी प्रदान कर अत्यधिक साहसी प्रवृति देता हैं तथा पंचम भाव मे यह तुरंत निर्णय लेने की घातक सोच प्रदान करता हैं |
हमारे ज्योतिष शास्त्रो मे शनि मंगल के संबंध वाले जातक के विषय निम्न बातें कही गयी हैं “ऐसा जातक वक्ता,जादू जानने वाला,धैर्यहीन,झगड़ालू,विष व मदिरा बनाने वाला,अन्याय से द्रव प्राप्ति करने वाला,कलहप्रिय,सुख रहित,दुखी निंदित,झूठी प्रतिज्ञा करने वाला अर्थात झूठा होता हैं | हमने अपने अध्ययन मे काफी हद तक यह बातें सही पायी हैं इसके अतिरिक्त भी कुछ अन्य बातें हमें अपने इस अध्ययन के दौरान प्राप्त हुयी |
इन दोनों ग्रहो का एक अजीब सा रिश्ता हैं मंगल जहां शनि के घर मे ऊंच का होता हैं वही शनि मंगल के घर मे नीच का हो जाता हैं यह दोनों एक मात्र ऐसे ग्रह हैं जो समसप्तक हुये बिना भी एक दूसरे से दृस्टी संबंध बना सकते हैं | ऐसे मे इन दोनों ग्रहो की युति अथवा दृस्टी जातक विशेष की कुंडली मे क्या परिणाम देती हैं आइए कुछ कुंडलियो द्वारा जानने का प्रयास करते हैं |
1)यह संबंध जातक विशेष को आत्महत्या करने पर मजबूर करता हैं | उदाहरण के लिए निम्न कुण्डलिया देखी जा सकती हैं |
1)श्री राम जी की कर्क लग्न की पत्रिका मे शनि और मंगल (सप्तमेश-अष्टमेश व पंचमेश-कर्मेश ) की लग्न व दशम भाव पर दृस्टी हैं जिनके मिले जुले प्रभावों से सभी जानते हैं की श्री राम ने जलसमाधि लेकर आत्महत्या करी थी |
2)29/4/1837 को मिथुन लग्न मे जन्मे इस ने जातक फ्रांसीसी सेना मे जनरल के पद पर रहते हुये फ्रांस के युद्धो मे बहुत नाम कमाया था 1889 मे इन्हे शत्रुतापूर्ण कारवाई के चलते पद से हटा दिया गया 1890 मे इनकी पत्नी की भी मृत्यु हो गयी जिससे निराश होकर इन्होने 30/9/1891 मे आत्महत्या कर ली थी | इनकी पत्रिका मे भी मंगल शनि का दृस्टी संबंध हैं |3)हिटलर (20/4/1889) तुला लग्न की इस पत्रिका मे शनि मंगल का दृस्टी संबंध हैं जो सप्तमेश चतुर्थेश का संबंध हैं जिससे हिटलर को सिंहासन व पद प्राप्ति की अदम्य असंतुष्टि की भावना प्राप्त हुई और वह अपनी तानाशाही प्रवृति की और उन्मुख होकर विश्व मे विवादित व्यक्ति के रूप मे जाना गया इन्ही ग्रहो के लग्न पर प्रभाव ने उसे आत्महत्या करने को मजबूर किया |
इसी प्रकार 4)25/7/1966 सिंह लग्न,5)27/4/1967 मीन लग्न,6)18/3/1957 कर्क लग्न,7)31/1/1973 कन्या लग्न,8)9/3/1989 कन्या लग्न,9)6/10/1985                कर्क लग्न,10)18/12/1959 वृश्चिक लग्न,11)25/7/1966 सिंह लग्न,12)11/9/1905 मकर लग्न,13)20/10/1912 तुला लग्न,14)9/3/1894 धनु लग्न,15)27/12/1974 मीन लग्न,16)25/12/1917 कन्या लग्न,17)5/9/1967 मीन लग्न,18)23/7/1931 वृश्चिक लग्न,19)13/11/1970 मीन लग्न,20)2/4/1929 मिथुन लग्न,21)20/4/1934 मकर लग्न,22)28/10/1994 कर्क लग्न इन सभी जातको की पत्रिका मे शनि मंगल का संबंध हैं अथवा शनि मंगल किसी एक भाव पर दृस्टी दे रहे हैं जिसके कारण इन सभी जातको ने आत्महत्या करी |
2) यह संबंध हिंसात्मक रूप से हत्या या दुर्घटना द्वारा मृत्यु प्रदान करता हैं |
1)ईसा मसीह (25/12/7बी सी) कन्या लग्न की इस पत्रिका मे शनि और मंगल की दृस्टी लग्न मे हैं सर्वविदित हैं की इनकी मृत्यु हत्या के रूप मे हुई थी |
2)मुसोलिनी 29/7/1883 वृश्चिक लग्न की इस पत्रिका मे शनि मंगल की सप्तम भाव मे युति होने से इनका प्रभाव लग्न पर हैं इनका कार्य व व्यक्तित्व भी काफी विवादास्परूपद रहा तथा इनकी 28/4/1945 को हिंसात्मक रूप से गोली मार कर हत्या कर दी गयीइनके अतिरिक्त 3) जॉन केनेडी (29/5/1917) कन्या लग्न,4) महात्मा गांधी (2/10/1869) तुला लग्न,5) राजीव गांधी (20/8/1944) सिंह लग्न,6) मैरी एंटोनिटी फ्रांसीसी रानी (2/11/1755)मिथुन लग्न,7) नाथु राम गोडसे (19/5/1910) मिथुन लग्न, 8) 3/8/1911 कन्या लग्न  की पत्रिकाओ मे अष्टम भाव पर तथा 9) ओसामा बिन लादेन 10/3/1957 वृषभ लग्न प्रथम भाव,10) बेनज़ीर भुट्टो 21/6/1953 धनु लग्न दशम भाव,11) 17/10/1951 वृषभ लग्न सप्तम भाव,12)अब्राहम लिंकन 12/2/1809 कुम्भ लग्न,13)ज़ुल्फिकर अली भुट्टो (5/1/1928)मिथुन लग्न,14)2/2/1923 तुला लग्न,15)मुजीब उर रहमान 17/3/1920 वृश्चिक लग्न,16)फूलन देवी (15/9/1959) मकर लग्न,इन सभी के द्वादश भाव पर मंगल शनि की दृस्टी थी जबकि 17)झांसी की रानी,18)नेपाल नरेश दोनों तुला लग्न व दोनों के लग्न पर इन दोनों ग्रहो का प्रभाव था 19)मार्टीन लूथर किंग 15/1/1929 मेष लग्न की पत्रिका मे भी मंगल की शनि पर दृस्टी थी हम सब जानते ही हैं की इन सबकी भी हत्या की गयी थी | वही  संजय गांधी 14/12/1946 मकर लग्न सप्तम भाव,माधव राव सिंधिया (9/3/1945)वृश्चिक लग्न दशम भाव पर इन दोनों ग्रहो की दृस्टी होने से इनकी दोनों की वायुयान दुर्घटना मे हिंसात्मक मृत्यु हुई तथा 24/7/1911 को तुला लग्न (सप्तम भाव ) मे जन्मे इस जातक की भी वाहन दुर्घटना मे मौत हुयी थी |
3)यह संबंध जातक को हिंसात्मक व तानाशाही प्रवृति देता हैं |
1)औरंगजेब 3/11/1618 कुम्भ लग्न की इस पत्रिका मे लग्न व दशम पर शनि मंगल का प्रभाव हैं जातक की प्रवृति हिंसात्मक व तानाशाही थी |
2)चंगेज़ खान 14/9/1186 कर्क लग्न,3)तैमुर लंग 9/4/1336 धनु लग्न,4)फिडेल कास्त्रों 13/8/1926 मिथुन लग्न,5)निकोलस जार 19/5/1868 धनु लग्न,6)ओसामा बिन लादेन 10/3/1957 वृषभ लग्न,7) हिटलर तुला लग्न, सभी की हिंसात्मक व तानाशाही प्रवृति थी | 
4)यह संबंध जातक विशेष को आपराधिक कार्य करने पर मजबूर करता हैं जिससे यह जातक हत्या,चोरी व बलात्कार जैसे कार्य कर सकते हैं |
1)12/2/1944 तुला लग्न के इस जातक ने अपनी प्रेमिका की हत्या करी |
2)5/4/1959 मिथुन लग्न के इस जातक ने दुश्मनी के चलते अपने शत्रु की हत्या करी |
3)1/2/1946 सिंह लग्न का यह जातक एक आपराधिक गैंग का सरगना था जिसकी हत्या कर दी गयी |4)27/4/1965 मीन लग्न के इस जातक को बलात्कार करने पर सजा हुई |
5)10/1/1958 वृश्चिक लग्न मे जन्मे इस जातक को गमन के आरोप मे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा |
6)11/9/1862 वृषभ लग्न बैंक फ़ंड मे गड़बड़ी के कारण 1898 मे 5 वर्ष की जेल हुई |
7)19/8/1946 कर्क लग्न मे जन्मे बिल क्लिंटन के दशम भाव मे मंगल शनि का प्रभाव हैं जिसके कारण इन्हे अपने जीवन के स्वर्णिम काल मे राष्ट्रपति रहते हुये भी सेक्स स्केण्डल का सामना करना पड़ा और इन्होने बाद मे अपना गुनाह कबुल भी किया |
इस प्रकार यह स्पष्ट रूप से कहाँ जा सकता हैं की जातक की पत्रिका मे मंगल शनि का संबंध उसे किसी न किसी प्रकार से संदेहास्पद व शंकालु चरित्र अवश्य प्रदान करता हैं और इन दोनों ग्रहो के प्रभाव मे आकर वह कुछ भी अनैतिक तथा असामाजिक कार्य कर सकता हैं |

इन सब प्रभावों के अतिरिक्त गोचर मे भी जब इन दोनों ग्रहो का किसी भी प्रकार से संबंध बनता हैं तब धरती पर बहुत ही विध्वंसकारी प्रभाव पड़ते हैं हमने यहाँ कुछ प्रभावों के विषय मे जानकारी देने का प्रयास किया हैं |
1)13/4/1919 को अमृतसर जालियावाला बाग कांड हुआ |
2)22/11/1933 को जॉन कैनेडी की हत्या हुई |
3)1/4/1939 विश्व युद्ध आरंभ हुआ |
4)18/10/1962 चीन ने भारत पर हमला किया |
5)5/6/1984 अमृतसर स्वर्ण मंदिर मे ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया |
6)2/5/2011 ओसामा बिन लादेन की हत्या अमरीकी फौज के द्वारा की गयी |
7)24/4/1974 भारत मे रेलवे की हड़ताल कारण ट्रेने रद्द कर दी गयी |
8)30/4/1945 हिटलर ने आत्महत्या करी |
9)23/8/1939 रूस व जर्मनी के बीच समझौता हुआ |
10)15/6/1973 को अमरीका व वियतनाम के बीच शांति समझौता रोक दिया गया |
11)10/2/2014 केजरीवाल की सरकार दिल्ली मे बनी व ज्यादा नहीं चली |
12)8/2/2014 मलेशिया का विमान लापता हो गया |

इन सभी उदाहरणो से यह स्पष्ट हो जाता हैं की शनि मंगल का संबंध सच मे ही एक विध्वंशक संबंध हैं जो कुंडली मे जातक विशेष के अतिरिक्त धरती पर भी अपना विध्वंशक प्रभाव ही देता हैं |

स्त्री रोग योग

स्त्री रोग योग

स्त्री रोग योग   लग्न में शनि, मंगल या केतु हो | सप्तमेश 8, 12वें भाव में हो | सप्तमेश और दुतीयेश पापग्रहो से युक्त हो | नीच का चन्द्रमा सातवें भाव में हो | सातवें भाव में बुध पापग्रहो से दृष्टी हो |                     भास्कर योग

भास्कर योग   सू्र्य के अनेक नामों में भास्कर भी एक है.यह योग कुण्डली तब बनता है जबकि बुध सूर्य से द्वतीय भाव में होता है एवं बुध से एकादश भाव में चन्द्रमा और इससे पंचम अथवा नवम में गुरू होता है.ग्रहों का यह योग अति दुर्लभ होता है.जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह महान योग बनता है वह व्यक्ति भी महान बन जाता है.इस योग के प्रभाव से धन वैभव से घर भरा होता है.भमि, भवन एवं वाहन का सुख प्राप्त होता है.इनमें कला के प्रति लगाव एवं अन्य लोगों के प्रति स्नेह होता है. संतान प्रतिबंधक योग

संतान प्रतिबंधक योग   1- तृतीय भाव का अधिपति और चंद्रमा केंद्र या त्रिकोण भावों में स्थित हो तो जरक को संतान सुख में बाधा होती है ! 2- लग्न में मांगल, आठवें शनि और पंचम भाव में शनि हो तो भी जातक को संतान सुख में बाधा होती है ! 3- बुध और लग्न भाव का अधिपति ये दोनों लग्न के अलावा केंद्र स्थानों में हो तो भी संतान सुख में बाधा होती है ! 4- लग्न, अस्थम एवम बारहवें भाव में पापग्रह हो तो संतान सुख में बाधा उत्पन्न होती है ! 5- सप्तम भाव में शुक्र, दशवें भाव में चन्द्रमा, एवं सप्तम भाव में शनि या मंगल हो तो संतान सुख में बाधा होती है ! 6- तीसरे भाव का अधिपति 1/2/3/5 वें भाव में स्थित हो तथा शुभ से युत या द्रस्त हो तो ऐसे जातक को संतान सुख में बाधा होती है !          महाराज योग

महाराज योग   लग्नेश पंचमेश में तथा पंचमेश लग्न में हो | लग्नेश शुभग्रहो से दृष्ट हो | लग्नेश तथा पंचमेश स्वराशिस्थ हो | इन योगो में जन्म लेनेवाला जातक उच्च शासनधिकारी बनता हे      |भाग्योदय योग

भाग्योदय योग   सप्तमेश या शुक्र 3, 6, 10, 11वें स्थान पर हों, तो 22वें वर्ष में भाग्योदय होता हो | भाग्येश रवि हो, तो 24वें वर्ष में | चन्द्रमा भाग्येश हो, तो 25वें वर्ष में | भाग्येश भौम हो, तो 28वें वर्ष में | भाग्येश बुध हो, तो 32वें वर्ष में | भाग्येश गुरु हो, तो 16वें वर्ष में | शुक्र भाग्येश हो, तो 25वें वर्ष में | शनि भाग्येश हो, तो 36वें वर्ष में | राहु-केतु भाग्येश हो, तो 42वें वर्ष में | नवम भाव में गुरु या शुक्र हो | नवमस्थ गुरु शुभ राशि का व स्वराशिस्थ हो | नवम भाव में शुभग्रह हो और उस पर किसी पापग्रह की दृष्टी न हो रोग योग

रोग योग   षष्ठेश सूर्य के साथ 1 या 8वें भाव में हो, तो मुखरोग | षष्ठेश चन्द्र के साथ 1 या 8वें भाव में हो, तो तालुरोग | 12वें भाव में गुरू और चन्द्र साथ  हों | मंगल और शनि का योग 6 या 12वें भाव में हो | लग्नेश रवि का योग 6, 8 व 12वें स्थान में हो | मंगल और शनि लग्न स्थान या लग्नेश को देखते हों | सूर्य ,मंगल तथा शनि-तीनों जिस स्थान में हो, उस स्थान वाले अगं पर रोग होता है | पापी मंगल पापराशि में हो | शुक्र और मंगल में सूर्य का योग हो | अष्टमेश और लग्नेश साथ हो | छठे स्थान पर शनि की पुणॅ दृष्टी हो | चन्द्र और शनि एक साथ कर्क राशि में हो | छठे भाव में चन्द्र, शनि और बुध हों, तो जातक कोढ़ी होता है | अष्टमेश नीच ग्रहों के बीच में हो | सूर्य पापग्रह द्रारा दृष्ट हो |
बहुसन्तान योग

बहुसन्तान योग   पंचमेश शनि शुक्र के साथ पाप स्थानगत हो | आठवें भाग में पंचमेश हो | पंचमेश तथा तृतीयेश साथ-साथ हो | पंचमेश के स्थान में तृतीयेश हो | सप्तमेश-तृतीयेश का अन्योंयास्रित योग हो गोद जाने का योग

गोद जाने का योग   कर्क या सिंह राशि मे पापग्रह हो | ४ या १०वें स्थान पर पापग्रह हो | चन्द्रमा से चतुर्थ राशि मे पापग्रह हो | सूर्य से ९वें स्थान पर पापग्रह हो | चन्द्रमा या सूर्य शत्रुक्षेत्र मे हो |जमींदारी योग

जमींदारी योग   चौथे घर का मालिक दशम मे तथा दशमेश चतुर्थ मे हो | चतुर्थेश, २ या ११वें स्थान पर हो | चतुर्थेश, दशमेश और चन्द्रमा बलवान हों तथा परस्पर मित्र हों | पंचमेश लग्न मे हो | सप्तमेश, नवमेश तथा एकादशेश लग्न मे हों ।

राहु एक परिचय 2

राहु
नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी करालवक्त्र: करवालशूली। चतुर्भुजश्चक्रधरश्च राहु: सिंहाधिरूढो वरदोऽस्तु मह्यम॥
राहु और केतु की प्रतिष्ठा अन्य ग्रहों की भांति ही है। यद्यपि यह सूर्य चन्द्र मंगल आदि की भांति कोई धरातल वाला ग्रह नही है,इसलिये राहु और केतु को छाया ग्रह कहा जाता है,राहु के सम्बन्ध में अनेक पौराणिक आख्यान है,शनि की भांति राहु से भी लोग भयभीत रहते है,दक्षिण भारत में तो लोग राहु काल में कोई कार्य भी नही करते हैं।
राहु के सम्बन्ध में समुद्र मंथन वाली कथा से प्राय: सभी परिचित है,एक पौराणिक आख्यान के अनुसार दैत्यराज हिरण्य कशिपु की पुत्री सिंहिका का पुत्र था,उसके पिता का नाम विप्रचित था। विप्रचित के सहसवास से सिंहिका ने सौ पुत्रों को जन्म दिया उनमें सबसे बडा पुत्र राहु था।

देवासुर संग्राम में राहु भी भाग लिया तो वह भी उसमें सम्मिलित हुआ। समुद्र मंथन के फ़लस्वरूप प्राप्त चौदह रत्नों में अमृत भी था,जब विष्णु सुन्दरी का रूप धारण कर देवताओं को अमृत पान करा रहे थे,तब राहु उनका वास्तविक परिचय और वास्तविक हेतु जान गया। वह तत्काल माया से रूप धारण कर एक पात्र ले आया,और अन्य देवतागणों के बीच जा बैठा,सुन्दरी का रूप धरे विष्णु ने उसे अमृत पान करवा दिया,तभी सूर्य और चन्द्र ने उसकी वास्तविकता प्रकट कर दी,विष्णु ने अपने चक्र से राहु का सिर काट दिया,अमृत पान करने के कारण राहु का सिर अमर हो गया,उसका शरीर कांपता हुआ गौतमी नदी के तट पर गिरा,अमृतपान करने के कारण राहु का धड भी अमरत्व पा चुका था।

इस तथ्य से देवता भयभीत हो गये,और शंकरजी से उसके विनास की प्रार्थना की,शिवजी ने राहु के संहार के लिये अपनी श्रेष्ठ चंडिका को मातृकाओं के साथ भेजा,सिर देवताओं ने अपने पास रोके रखा,लेकिन बिना सिर की देह भी मातृकाओं के साथ युद्ध करती रही।

अपनी देह को परास्त होता न देख राहु का विवेक जागृत हुआ,और उसने देवताओं को परामर्श दिया कि इस अविजित देह के नाश लिये उसे पहले आप फ़ाड दें,ताकि उसका व्ह उत्तम रस निवृत हो जाये,इसके उपरांत शरीर क्षण मात्र में भस्म हो जायेगा,राहु के परामर्श से देवता प्रसन्न हो गये,उन्होने उसका अभिषेक किया,और ग्रहों के मध्य एक ग्रह बन जाने का ग्रहत्व प्रदान किया,बाद में देवताओं द्वारा राहु के शरीर की विनास की युक्ति जान लेने पर देवी ने उसका शरीर फ़ाड दिया,और अम्रुत रस को निकालकर उसका पान कर लिया।

ग्रहत्व प्राप्त कर लेने के बाद भी राहु सूर्य और चन्द्र को अपनी वास्तविकता के उद्घाटन के लिये क्षमा नही कर पाया,और पूर्णिमा और अमावस्या के समय चन्द्र और सूर्य के ग्रसने का प्रयत्न करने लगा।

राहु के एक पुत्र मेघदास का भी उल्लेख मिलता है,उसने अपने पिता के बैर का बदला चुकाने के लिये घोर तप किया,पुराणो में राहु के सम्बन्ध में अनेक आख्यान भी प्राप्त होते है।खगोलीय विज्ञान में राहु
राहु और केतु आकाशीय पिण्ड नही है,वरन राहु चन्द्रमा और कांतिवृत का उत्तरी कटाव बिन्दु है। उसे नार्थ नोड के नाम से जाना जाता है। वैसे तो प्रत्येक ग्रह का प्रकास को प्राप्त करने वाला हिस्सा राहु का क्षेत्र है,और उस ग्रह पर आते हुये प्रकाश के दूसरी तरफ़ दिखाई देने वाली छाया केतु का क्षेत्र कहलाता है। यथा ब्रहमाण्डे तथा पिण्डे के अनुसार संसार की प्रत्येक वस्तु के साथ राहु केतु आन्तरिक रूप से जुडे हुये है।कारण जो दिखाई देता है,वह राहु है और जो अन्धेरे में है वह केतु है।

ज्योतिष शास्त्र में राहु
भारतीय ज्योतिष शास्त्रों में राहु और केतु को अन्य ग्रहों के समान महत्व दिया गया है,पाराशर ने राहु को तमों अर्थात अंधकार युक्त ग्रह कहा है,उनके अनुसार धूम्र वर्णी जैसा नीलवर्णी राहु वनचर भयंकर वात प्रकृति प्रधान तथा बुद्धिमान होता है,नीलकंठ ने राहु का स्वरूप शनि जैसा निरूपित किया है।

सामन्यत: राहु और केतु को राशियों पर आधिपत्य प्रदान नही किया गया है,हां उनके लिये नक्षत्र अवश्य निर्धारित हैं। तथापि कुछ आचार्यों ने जैसे नारायण भट्ट ने कन्या राशि को राहु के अधीन माना है,उनके अनुसार राहु मिथुन राशि में उच्च तथा धनु राशि में नीच होता है।

राहु के नक्षत्र
राहु के नक्षत्र आर्द्रा स्वाति और शतभिषा है,इन नक्षत्रों में सूर्य और चन्द्र के आने पर या जन्म राशि में ग्रह के होने पर राहु का असर शामिल हो जाता है।
एक और धारणा

हमारे विचार से राहु का वर्ण नीलमेघ के समान है,यह सूर्य से १९००० योजन से नीचे की ओर स्थित है,तथा सूर्य के चारों ओर नक्षत्र की भांति घूमता रहता है। शरीर में इसे पिट और पिण्डलियों में स्थान मिला है,जब जातक के विपरीत कर्म बन जाते है,तो उसे शुद्ध करने के लिये अनिद्रा पेट के रोग मस्तिष्क के रोग पागलपन आदि भयंकर रोग देता है,जिस प्रकार अपने निन्दनीय कर्मों से दूसरों को पीडा पहुंचाई थी उसी प्रकार भयंकर कष्ट देता है,और पागल तक बना देता है,यदि जातक के कर्म शुभ हों तो ऐसे कर्मों के भुगतान कराने के लिये अतुलित धन संपत्ति देता है,इसलिये इन कर्मों के भुगतान स्वरूप उपजी विपत्ति से बचने के लिये जातक को राहु की शरण में जाना चाहिये,तथा पूजा पाठ जप दान आदि से प्रसन्न करना चाहिये। गोमेद इसकी मणि है,तथा पूर्णिमा इसका दिन है। अभ्रक इसकी धातु है।

द्वादश भावों में राहु
राहु प्रथम भाव में शत्रुनाशक अल्प संतति मस्तिष्क रोगी स्वार्थी सेवक प्रवृत्ति का बनाता है।
राहु दूसरे भाव में कुटुम्ब नाशक अल्प संतति मिथ्या भाषी कृपण और शत्रु हन्ता बनाता है।
राहु तीसरे भाव में विवेकी बलिष्ठ विद्वान और व्यवसायी बनाता है।
राहु चौथे भाव में स्वभाव से क्रूर कम बोलने वाला असंतोषी और माता को कष्ट देने वाला होता है।
राहु पंचम भाग्यवान कर्मठ कुलनाशक और जीवन साथी को सदा कष्ट देने वाला होता है।
राहु छठे भाव में बलवान धैर्यवान दीर्घवान अनिष्टकारक और शत्रुहन्ता बनाता है।
राहु सप्तम भाव में चतुर लोभी वातरोगी दुष्कर्म प्रवृत्त एकाधिक विवाह और बेशर्म बनाता है।
राहु आठवें भाव में कठोर परिश्रमी बुद्धिमान कामी गुप्त रोगी बनाता है।
राहु नवें भाव में सदगुणी परिश्रमी लेकिन भाग्य में अंधकार देने वाला होता है।
राहु दसवें भाव में व्यसनी शौकीन सुन्दरियों पर आसक्त नीच कर्म करने वाला होता है।
राहु ग्यारहवें भाव में मंदमति लाभहीन परिश्रम करने वाला अनिष्ट्कारक और सतर्क रखने वाला बनाता है।
राहु बारहवें भाव में मंदमति विवेकहीन दुर्जनों की संगति करवाने वाला बनाता है।

चेतावनी
राहु के लिये जातक अपनी जन्म कुन्डली में देखें राहु प्रथम द्वितीय चतुर्थ पंचम सप्तम अष्टम नवम द्वादस भावों में किसी भी राशि का विशेषकर नीच का बैठा हो,तो निश्चित ही आर्थिक मानसिक भौतिक पीडायें अपनी महादशा अन्तरदशा में देता है,इसमे कोई संसय नही है। समय से पहले यानि महादशा अन्तरदशा आरम्भ होने से पहले राहु के बीज मन्त्र का अवश्य जाप कर लेना चाहिये। ताकि राहु प्रताडित न करे और वह समय सुख पूर्वक व्यतीत हो,याद रखें अस्त राहु भयंकर पीडाकारक होता है,चाहे वह किसी भी भाव का क्यों न हो।राहु की विशेषता
राहु छाया ग्रह है,ग्रन्थों मे इसका पूरा वर्णन है,और श्रीमदभागवत महापुराण में तो शुकदेवजी ने स्पष्ट वर्णन किया कि यह सूर्य से १० हजार योजन नीचे स्थित है,और श्याम वर्ण की किरणें निरन्तर पृथ्वी पर छोडता रहता है,यह मिथुन राहि में उच्च का होता है धनु राशि में नीच का हो जाता है,राहु और शनि रोग कारक ग्रह है,इसलिये यह ग्रह रोग जरूर देता है। काला जादू तंत्र टोना आदि यही ग्रह अपने प्रभाव से करवाता है।अचानक घटनाओं के घटने के योग राहु के कारण ही होते है,और षष्टांश में क्रूर होने पर ग्रद्य रोग हो जाते है।राहु के बारे में हमे बहुत ध्यान से समझना चाहिये,बुध हमारी बुद्धि का कारक है,जो बुद्धि हमारी सामान्य बातों की समझ से सम्बन्धित है,जैसे एक ताला लगा हो और हमारे पास चाबियों का गुच्छा है,जो बुध की समझ है तो वह कहेगा कि ताले के अनुसार इस आकार की चाबी इसमे लगेगी,दस में से एक या दो चाबियों का प्रयोग करने के बाद वह ताला खुल जायेगा,और यदि हमारी समझ कम है,तो हम बिना बिचारे एक बाद एक बडे आकार की चाबी का प्रयोग भी कर सकते है,जो ताले के सुराख से भी बडी हो,बुध की यह बौद्धिक शक्ति है क्षमता है,वह हमारी अर्जित की हुई जानकारी या समझ पर आधारित है,जैसे कि यह आदमी बडा बुद्धिमान है,क्योंकि अपनी बातचीत में वह अन्य कई पुस्तकों के उदाहरण दे सकता है,तो यह सब बुध पर आधारित है,बुध की प्रखरता पर निर्भर है,और बुध का इष्ट है दुर्गा।राहु का इष्ट है सरस्वती,सम्भवत: आपको यह अजीब सा लगे कि राहु का इष्ट देवता सरस्वती क्यों है,क्योंकि राहु हमारी उस बुद्धि का कारक है,जो ज्ञान हमारी बुद्धि के बावजूद पैदा होता है,जैसे आविष्कार की बात है,गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त न्यूटन ने पेड से सेब गिरने के आधार पर खोजा,यह सिद्धान्त पहले उसकी याददास्त में नही था,यहां जब दिमाग में एकदम विचार पैदा हुआ,उसका कारण राहु है,बुध नही होगा,जैसे स्वप्न का कारक राहु है,एक दिन अचानक हमारा शरीर अकडने लगा,दिमाग में तनाव घिर गया,चारों तरफ़ अशांति समझ में आने लगी,घबराहट होने लगी,मन में आने लगा कि संसार बेकार है,और इस संसार से अपने को हटा लेना चाहिये,अब हमारे पास इसका कारण बताने को तो है नही,जो कि हम इस बात का विश्लेषण कर लेते,लेकिन यह जो मानसिक विक्षिप्तता है,इसका कारण राहु है,इस प्रकार की बुद्धि का कारक राहु है,राहु के अन्दर दिमाग की खराब आलमतों को लिया गया है,बेकार के दुश्मन पैदा होना,यह मोटे तौर पर राहु के अशुभ होने की निशानी है,राहु हमारे ससुराल का कारक है,ससुराल से बिगाड कर नही चलना,इसे सुधारने के उपाय है,सिर पर चोटी रखना राहु का उपाय है,आपके दिमाग में आ रहा होगा कि चोटी और राहु का क्या सम्बन्ध है,चोटी तो गुरु की कारक है,जो लोग पंडित होते है पूजा पाठ करते है,धर्म कर्म में विश्वास करते है,वही चोटी को धारण करते है,राहु को अपना कोई भाव नही दिया गया है,इस प्रकार का कथन वैदिक ज्योतिष में तो कहा गया है,पाश्चात्य ज्योतिष में भी राहु को नार्थ नोड की उपाधि दी गयी है,लेकिन कुन्डली का बारहवां भाव राहु का घर नही है तो क्या है,इस अनन्त आकाश का दर्शन राहु के ही रूप में तो दिखाई दे रहा है,इस राहु के नीले प्रभाव के अन्दर ही तो सभी ग्रह विद्यमान है,और जितना दूर हम चले जायेंगे,यह नीला रंग तो कभी समाप्त नही होने वाला। राहु ही ब्रह्माण्ड का दृश्य रूप है।

राहु की अपनी कोई राशि नही है
राहु की अपनी कोई राशि नही है,यह जिस ग्रह के साथ बैठता है वहां तीन कार्य करता है।
१.यह उस ग्रह की पूरी शक्ति समाप्त कर देता है।
२.यह उस ग्रह और भाव की शक्ति खुद लेलेता है।
३.यह उस भाव से सम्बन्धित फ़लों को दिलवाने के पहले बहुत ही संघर्ष करवाता है फ़िर सफ़लता देता है।
कहने का तात्पर्य है कि बडा भारी संघर्ष करने के बाद सत्ता देता है और फ़िर उसे समाप्त करवा देता है।

राहु कूटनीति का ग्रह है
राहु कूटनीति का सबसे बडा ग्रह है,राहु जहां बैठता है शरीर के ऊपरी भाग को अपनी गंदगी से भर देता है,यानी दिमाग को खराब करने में अपनी पूरी पूरी ताकत लगा देता है। दांतों के रोग देता है,शादी अगर किसी प्रकार से राहु की दशा अन्तर्दशा में कर दी जाती है,तो वह शादी किसी प्रकार से चल नही पाती है,अचानक कोई बीच वाला आकर उस शादी के प्रति दिमाग में फ़ितूर भर देता है,और शादी टूट जाती है,कोर्ट केश चलते है,जातिका या जातक को गृहस्थ सुख नही मिल पाते है।इस प्रकार से जातक के पूर्व कर्मो को उसी रूप से प्रायश्चित कराकर उसको शुद्ध कर देता है।

राहु जेल और बन्धन का कारक है
राहु का बारहवें घर में बैठना बडा अशुभ होता है,क्योंकि यह जेल और बन्धन का मालिक है,१२ वें घर में बैठ कर अपनी महादशा अन्तर्दशा में या तो पागलखाने या अस्पताल में या जेल में बिठा देता है,,यह ही नही अगर कोई सदकर्मी है,और सत्यता तथा दूसरे के हित के लिये अपना भाव रखता है,तो एक बन्द कोठरी में भी उसकी पूजा करवाता है,और घर बैठे सभी साधन लाकर देता है। यह साधन किसी भी प्रकार के हो सकते है।

राहु संघर्ष करवाता है
हजारों कुन्डलियों को देखा,जो महापुरुष या नेता हुये उन्होने बडे बडे संघर्ष किये तब जाकर कहीं कुर्सी पर बैठे,जवाहर लाल नेहरू सुभाषचन्द्र बोस सरदार पटेल जिन्होने जीवन भर संघर्ष किया तभी इतिहास में उनका नाम लिखा गया,हिटलर की कुन्डली में भी द्सवें भाव में राहु था,जिसके कारण किसी भी देश या सरकार की तरफ़ मात्र देखलेने की जरूरत से उसको मारकाट की जरूरत नही पडती थी।

राहु १९वीं साल में जरूर फ़ल देता है
यह एक अकाट्य सत्य है कि किसी कुन्डली में राहु जिस घर में बैठा है,१९ वीं साल में उसका फ़ल जरूर देता है,सभी ग्रहों को छोड कर यदि किसी का राहु सप्तम में विराजमान है,चाहे शुक्र विराजमान हो,या बुध विराजमान हो या गुरु विराजमान हो,अगर वह स्त्री है तो पुरुष का सुख और पुरुष है तो स्त्री का सुख यह राहु १९ वीं साल में जरूर देता है। और उस फ़ल को २० वीं साल में नष्ट भी कर देता है। इसलिये जिन लोगों ने १९ वीं साल में किसी से प्रेम प्यार या शादी कर ली उसे एक साल बाद काफ़ी कष्ट हुये। राहु किसी भी ग्रह की शक्ति को खींच लेता है,और अगर राहु आगे या पीछे ६ अंश तक किसी ग्रह के है तो वह उस ग्रह की सम्पूर्ण शक्ति को समाप्त ही कर देता है।

राहु की दशा १८ साल की होती है
राहु की दशा का समय १८ साल का होता है,राहु की चाल बिलकुल नियमित है,तीन कला और ग्यारह विकला रोजाना की चाल के हिसाब से वह अपने नियत समय पर अपनी ओर से जातक को अच्छा या बुरा फ़ल देता है,राहु की चाल से प्रत्येक १९ वीं साल में जातक के साथ अच्छा या बुरा फ़ल मिलता चला जाता है,अगर जातक की १९ वीं साल में किसी महिला या पुरुष से शारीरिक सम्बन्ध बने है,तो उसे ३८ वीं साल में भी बनाने पडेंगे,अगर जातक किसी प्रकार से १९ वीं साल में जेल या अस्पताल या अन्य बन्धन में रहा है,तो उसे ३८ वीं साल में,५७ वीं साल में भी रहना पडेगा। राहु की गणना के साथ एक बात और आपको ध्यान में रखनी चाहिये कि जो तिथि आज है,वही तिथि आज के १९ वीं साल में होगी।राहु चन्द्र हमेशा चिन्ता का योग बनाते हैं
राहु और चन्द्र किसी भी भाव में एक साथ जब विराजमान हो,तो हमेशा चिन्ता का योग बनाते है,राहु के साथ चन्द्र होने से दिमाग में किसी न किसी प्रकार की चिन्ता लगी रहती है,पुरुषों को बीमारी या काम काज की चिन्ता लगी रहती है,महिलाओं को अपनी सास या ससुराल खानदान के साथ बन्धन की चिन्ता लगी रहती है। राहु और चन्द्रमा का एक साथ रहना हमेशा से देखा गया है,कुन्डली में एक भाव के अन्दर दूरी चाहे २९ अंश तक क्यों न हो,वह फ़ल अपना जरूर देता है। इसलिये राहु जब भी गोचर से या जन्म कुन्डली की दशा से एक साथ होंगे तो जातक का चिन्ता का समय जरूर सामने होगा।

पंचम का राहु औलाद और धन में धुंआ उडा देता है
राहु का सम्बन्ध दूसरे और पांचवें स्थान पर होने पर जातक को सट्टा लाटरी और शेयर बाजार से धन कमाने का बहुत शौक होता है,राहु के साथ बुध हो तो वह सट्टा लाटरी कमेटी जुआ शेयर आदि की तरफ़ बहुत ही लगाव रखता है,अधिकतर मामलों में देखा गया है कि इस प्रकार का जातक निफ़्टी और आई.टी. वाले शेयर की तरफ़ अपना झुकाव रखता है। अगर इसी बीच में जातक का गोचर से बुध अस्त हो जाये तो वह उपरोक्त कारणों से लुट कर सडक पर आजाता है,और इसी कारण से जातक को दरिद्रता का जीवन जीना पडता है,उसके जितने भी सम्बन्धी होते है,वे भी उससे परेशान हो जाते है,और वह अगर किसी प्रकार से घर में प्रवेश करने की कोशिश करता है,तो वे आशंकाओं से घिर जाते है। कुन्डली में राहु का चन्द्र शुक्र का योग अगर चौथे भाव में होता है तो जातक की माता को भी पता नही होता है कि वह औलाद किसकी है,पूरा जीवन माता को चैन नही होता है,और अपने तीखे स्वभाव के कारण वह अपनी पुत्र वधू और दामाद को कष्ट देने में ही अपना सब कुछ समझती है।

सही भाव में राहु-गुरु चांडाल योग को हटाकर यान चालक बनाता है
बुध अस्त में जन्मा जातक कभी भी राहु वाले खेल न खेले तो बहुत सुखी रहता है,राहु का सम्बन्ध मनोरंजन और सिनेमा से भी है,राहु वाहन का कारक भी है राहु को हवाई जहाज के काम,और अंतरिक्ष में जाने के कार्य भी पसंद है,अगर किसी प्रकार से राहु और गुरु का आपसी सम्बन्ध १२ भाव में सही तरीके से होता है,और केतु सही है,तो जातक को पायलेट की नौकरी करनी पडती है,लेकिन मंगल साथ नही है तो जातक बजाय पायलेट बनने के और जिन्दा आदमियों को दूर पहुंचाने के पंडिताई करने लगता है,और मरी हुयी आत्माओं को क्रिया कर्म का काम करने के बाद स्वर्ग में पहुंचाने का काम भी हो जाता है। इसलिये बुध अस्त वाले को लाटरी सट्टा जुआ शेयर आदि से दूर रहकर ही अपना जीवन मेहनत वाले कामों को करके बिताना ठीक रहता है।राहु के साथ मंगल व्यक्ति को आतंकवादी बना देता है
राहु के साथ मंगल वाला व्यक्ति धमाके करने में माहिर होता है,उसे विस्फ़ोट करने और आतिशबाजी के कामों की महारता हाशिल होती है,वह किसी भी प्रकार बारूदी काम करने के बाद जनता को पलक झपकते ही ठिकाने लगा सकता है। राहु तेज हथियार के रूप में भी जाना जाता है,अगर कुन्डली में शनि मंगल राहु की युति है,तो बद मंगल के कारण राहु व्यक्ति को कसाई का रूप देता है,उसे मारने काटने में आनन्द महसूस होता है।

राहु गुरु अपनी जाति को छुपाकर ऊंचा बनने की कोशिश करता है
राहु के साथ जब गुरु या तो साथ हो या आगे पीछे हो तो वह अपनी शरारत करने से नहीं हिचकता है,जिस प्रकार से एक पल्लेदार टाइप व्यक्ति किसी को मारने से नही हिचकेगा,लेकिन एक पढा लिखा व्यक्ति किसी को मारने से पहले दस बार कानून और भलाई बुराई को सोचेगा। राहु के साथ शनि होने से राहु खराब हो जाता है,जिसके भी परिवार में इस प्रकार के जातक होते है वे शराब कबाव और भूत के भोजन में अपना विश्वास रखते है,और अपनी परिवारिक मर्यादा के साथ उनकी जमी जमाई औकात को बरबाद करने के लिये ही आते है,और बरबाद करने के बाद चले जाते है। इस राहु के कारण शुक्र अपनी मर्यादा को भूल कर अलावा जाति से अपना सम्बन्ध बना बैठता है,और शादी अन्य जाति में करने के बाद अपने कुल की मर्यादा को समाप्त कर देता है,शुक्र का रूप राहु के साथ चमक दमक से जुड जाता है। राहु के साथ शनि की महादशा या अन्तर्दशा चलती है तो सभी काम काज समाप्त हो जाते है।

राहु सम्बन्धी अन्य विवरण
राहु से सम्बन्धित रोग उनके निवारण हेतु उपाय राहु के रत्न उपरत्न राहु से सम्बन्धित जडी बूटियां राहु के निमित्त उपाय और रत्न आदि धारण करने की विधि मंत्र स्तोत्र आदि का विवरण इस प्रकार से है।
राहु के रोगराहु से ग्रस्त व्यक्ति पागल की तरह व्यवहार करता है
पेट के रोग दिमागी रोग पागलपन खाजखुजली भूत चुडैल का शरीर में प्रवेश बिना बात के ही झूमना,नशे की आदत लगना,गलत स्त्रियों या पुरुषों के साथ सम्बन्ध बनाकर विभिन्न प्रकार के रोग लगा लेना,शराब और शबाब के चक्कर में अपने को बरबाद कर लेना,लगातार टीवी और मनोरंजन के साधनों में अपना मन लगाकर बैठना,होरर शो देखने की आदत होना,भूत प्रेत और रूहानी ताकतों के लिये जादू या शमशानी काम करना,नेट पर बैठ कर बेकार की स्त्रियों और पुरुषों के साथ चैटिंग करना और दिमाग खराब करते रहना,कृत्रिम साधनो से अपने शरीर के सूर्य यानी वीर्य को झाडते रहना,शरीर के अन्दर अति कामुकता के चलते लगातार यौन सम्बन्धों को बनाते रहना और बाद में वीर्य के समाप्त होने पर या स्त्रियों में रज के खत्म होने पर टीबी तपेदिक फ़ेफ़डों की बीमारियां लगाकर जीवन को खत्म करने के उपाय करना,शरीर की नशें काटकर उनसे खून निकाल कर अपने खून रूपी मंगल को समाप्त कर जीवन को समाप्त करना,ड्र्ग लेने की आदत डाल लेना,नींद नही आना,शरीर में चींटियों के रेंगने का अहसास होना,गाली देने की आदत पड जाना,सडक पर गाडी आदि चलाते वक्त अपना पौरुष दिखाना या कलाबाजी दिखाने के चक्कर में शरीर को तोड लेना,बाजी नामक रोग लगा लेना,जैसे गाडीबाजी,रंडीबाजी,आदि,इन रोगों के अन्य रोग भी राहु के है,जैसे कि किसी दूसरे के मामले में अपने को दाखिल करने के बाद दो लोगों को आपस में लडाकर दूर बैठ कर तमाशा देखना,लोगों को पोर्न साइट बनाकर या क्लिप बनाकर लूटने की क्रिया करना और इन कामों के द्वारा जनता का जीवन बिना किसी हथियार के बरबाद करना भी है। अगर उपरोक्त प्रकार के भाव मिलते है,तो समझना चाहिये कि किसी न किसी प्रकार से राहु का प्रकोप शरीर पर है,या तो गोचर से राहु अपनी शक्ति देकर मनुष्य जीवन को जानवर की गति प्रदान कर रहा है,अथवा राहु की दशा चल रही है,और पुराने पूर्वजों की गल्तियों के कारण जातक को इस प्रकार से उनके पाप भुगतने के लिये राहु प्रयोग कर रहा है।
राहु के रत्न उप रत्न राहु के समय में अधिक से अधिक चांदी पहननी चाहिये
राहु के रत्न गोमेद,तुरसा,साफ़ा आदि माने जाते है,लेकिन राहु के लिये कभी भी रत्नों को चांदी के अन्दर नही धारण करना चाहिये,क्योंकि चांदी के अन्दर राहु के रत्न पहिनने के बाद वह मानसिक चिन्ताओं को और बढा देता है,गले में और शरीर में खाली चांदी की वस्तुयें पहिनने से फ़ायदा होता है। बुधवार या शनिवार को को मध्य रात्रि में आर्द्रा नक्षत्र में अच्छा रत्न धारण करने के बाद ४० प्रतिशत तक फ़ायदा हो जाता है,रत्न की जब तक उसके ग्रह के अनुसार विधि विधान पूर्वक प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जाती है,तो वह रत्न पूर्ण प्रभाव नही देता है,इसलिये रत्न पहिनने से पहले अर्थात अंगूठी या पेन्डल में लगवाने के बाद प्राण प्रतिष्ठा अवश्य करवालेनी चाहिये। क्योंकि पत्थर अपने आप में पत्थर ही है,जिस प्रकार से किसी मूर्ति को दुकान से लाने के बाद उसे मन्दिर में स्थापित करने के बाद प्रतिष्ठा करने के बाद ही वह फ़ल देना चालू करती है,और प्राण प्रतिष्ठा नही करवाने पर पता नही और कौन सी आत्मा उसके अन्दर आकर विराजमान हो जावे,और बजाय फ़ल देने के नुकसान देने लगे,उसी प्रकार से रत्न की प्राण प्रतिष्ठा नही करने पर भी उसके अन्दर और कौन सी शक्ति आकर बैठ जावे और जो किया जय वह खाकर गलत फ़ल देने लगे,इसका ध्यान रखना चाहिये,राहु की दशा और अन्तर दशा में तथा गोचर में चन्द्र सूर्य और लगन पर या लगनेश चन्द्र लगनेश या सूर्य लगनेश के ऊपर जब राहु की युति हो तो नीला कपडा भूल कर नही पहिनना चाहिये,क्योंकि नीला कपडा राहु का प्रिय कपडा है,और उसे एकपडे के पहिनने पर या नीली वस्तु प्रयोग करने पर जैसे गाडी या सामान पता नही कब हादसा देदे यह पता नही होता है।
राहु की जडी बूटियांचंदन को माथे में लगाने वाला राहु से नही घबडाता
रत्न की अनुपस्थिति में राहु के लिये जडी बूटियों का प्रयोग भी आशातीत फ़ायदा देता है,इसकी जडी बूटियों में सफ़ेद चंदन को महत्ता दी गयी है,इसे आर्द्रा नक्षत्र में बुधवार या शनिवार को आधी रात के समय काले धागे में बांध कर पुरुष अपनी दाहिनी बाजू में और स्त्रियां अपनी बायीं बाजू में धारण कर सकती है। इसके धारण करने के बाद राहु का प्रभाव कम होना चालू हो जाता है।

राहु के लिये दान
आर्द्रा स्वाति शभिषा नक्षत्रों के काल में अभ्रक लौह जो हथियार के रूप में हो,तिल जो कि किसी पतली किनारी वाली तस्तरी में हो,नीला कपडा,छाग,तांबे का बर्तन,सात तरह के अनाज,उडद (माह),गोमेद,काले फ़ूल,खुशबू वाला तेल,धारी वाले कम्बल,हाथी का बना हुआ खिलौना,जौ धार वाले हथियार आदि।

राहु से जुडे व्यापार और नौकरी
यदि राहु अधिक अंशों में बलवान है,तो इस प्रकार व्यापार और नौकरी फ़ायदा देने वाले होते है,गांजा,अफ़ीम,भांग,रबड का व्यापार,लाटरी कमीशन, सर्कस की नौकरी,सिनेमा में नग्न दृश्य,प्रचार और मीडिया वाले कार्य,म्यूनिसपल्टी के काम,सडक बनाने के काम,जिला परिषद के काम,विधान सभा और लोक सभा के काम,उनकी सदस्यता आदि।

राहु का वैदिक मंत्र
राहु ग्रह सम्बन्धित पाठ पूजा आदि के स्तोत्र मंत्र तथा राहु गायत्री को पाठको की सुविधा के लिये यहां मै लिख रहा हूँ,वैदिक मंत्र अपने आप में अमूल्य है,इनका कोई मूल्य नही होता है,किसी दुखी व्यक्ति को प्रयोग करने से फ़ायदा मिलता है,तो मै समझूंगा कि मेरी मेहनत वसूल हो गयी है।

राहु मंत्र का विनियोग
ऊँ कया निश्चत्रेति मंत्रस्य वामदेव ऋषि: गायत्री छन्द: राहुर्देवता: राहुप्रीत्यर्थे जपे विनोयोग:॥
दाहिने हाथ में जाप करते वक्त पानी या चावल ले लें,और यह मंत्र जपते हुये वे चावल या पानी राहुदेव की प्रतिमा या यंत्र पर छोड दें।राहु मंत्र का देहागंन्यास
कया शिरसि। न: ललाटे। चित्र मुखे। आ कंठे । भुव ह्रदये। दूती नाभौ। सदा कट्याम। वृध: मेढ्रे सखा ऊर्वौ:। कया जान्वो:। शचिष्ठ्या गुल्फ़यो:। वृता पादयो:।

क्रम से सिर माथा मुंह कंठ ह्रदय नाभि कमर छाती जांघे गुदा और पैरों को उपरोक्त मंत्र बोलते हुये दाहिने हाथ से छुये।

राहु मंत्र का करान्यास
कया न: अंगुष्ठाभ्यां नम:। चित्र आ तर्ज्जनीभ्यां नम:। भुवदूती मध्यमाभ्यां नम:। सदावृध: सखा अनामिकाभ्यां नम:। कया कनिष्ठकाभ्यां नम:। शचिष्ट्या वृता करतलपृष्ठाभ्यां नम:॥
राहु मंत्र का ह्रदयान्यास

कयान: ह्रदयाय नम:। चित्र आ शिर्षे स्वाहा। भुवदूती शिखायै वषट। सदावृध: सखा कवचाय: हुँ। कया नेत्रत्रयाय वौषट। शचिष्ठ्या वृता अस्त्राय फ़ट।

राहु मंत्र के लिये ध्यान
नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी करालवक्त्र: करवालशूली। चतुर्भुजश्चक्रधरश्च राहु: सिंहाधिरूढो वरदोऽस्तु मह्यम॥
राहु गायत्री
नीलवर्णाय विद्यमहे सैहिकेयाय धीमहि तन्नो राहु: प्रचोदयात ।
राहु का वैदिक बीज मंत्र
ऊँ भ्राँ भ्रीँ भ्रौँ स: ऊँ भूर्भुव: स्व: ऊँ कया नश्चित्रऽआभुवदूती सदावृध: सखा। कया शचिष्ठ्या व्वृता ऊँ स्व: भुव: भू: ऊँ स: भ्रौँ भ्रीँ भ्राँ ऊँ राहुवे नम:॥

राहु का जाप मंत्र
ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहुवे नम:॥ १८००० बार रोजाना,शांति मिलने तक॥
राहु स्तोत्र
राहु: दानव मन्त्री च सिंहिकाचित्त नन्दन:। अर्धकाय: सदा क्रोधी चन्द्र आदित्य विमर्दन:॥
रौद्र: रुद्र प्रिय: दैत्य: स्वर-भानु:-भानु भीतिद:। ग्रहराज: सुधा पायी राकातिथ्य-अभिलाषुक:॥
काल दृष्टि: काल रूप: श्री कण्ठह्रदय-आश्रय:। विधुन्तुद: सैहिकेय: घोर रूप महाबल:॥
ग्रह पीडा कर: दंष्ट्री रक्त नेत्र: महोदर:। पंचविंशति नामानि स्मृत्वा राहुं सदा नर:॥
य: पठेत महतीं पीडाम तस्य नश्यति केवलम। आरोग्यम पुत्रम अतुलाम श्रियम धान्यम पशून-तथा॥
ददाति राहु: तस्मै य: पठते स्तोत्रम-उत्तमम। सततम पठते य: तु जीवेत वर्षशतम नर:॥राहु मंगल स्तोत्र
राहु: सिंहल देश जश्च निऋति कृष्णांग शूर्पासनो। य: पैठीनसि गोत्र सम्भव समिद दूर्वामुखो दक्षिण:॥
य: सर्पाद्यधि दैवते च निऋति प्रत्याधि देव: सदा। षटत्रिंस्थ: शुभकृत च सिंहिक सुत: कुर्यात सदा मंगलम॥

उपरोक्त दोनो स्तोत्रों का नित्य १०८ पाठ करने से राहु प्रदत्त समस्त प्रकार की कालिमा भयंकर क्रोध अकारण मस्तिष्क की गर्मी अनिद्रा अनिर्णय शक्ति ग्रहण योग पति पत्नी विवाद तथा काल सर्प योग सदा के लिये समाप्त हो जाते हैं,स्तोत्र पाठ करने के फ़लस्वरूप अखंड शांति योग की परिपक्वता पूर्ण निर्णय शक्ति तथा राहु प्रदत्त समस्त प्रकार के कष्टों से निवृत्ति हो जाती है।

राहु क्यों प्रताडित करता है
यह अकाट्य सत्य है कि जीव को अपने किये कर्म निश्चित भोगने पडेंगे,जब जीव धोखेबाज दगाबाज या कर्ज लेकर वापस नही करता,या सहायता के लिये लिया पैसा वापस नही करता,निकृष्ट दलित गलित निन्दनीय कार्य करता है,समाज की कुल की तथा शास्त्र की आज्ञा का उलंघन करता है,तो राहु उसके साथ क्रूरता करता है,राहु राक्षस होने के कारण बुरी तरह से प्रताडित करता है। कठोरता से कर्म का भोग करवाता है,पागलपन अनिद्रा मस्तिष्क की चेतना समाप्त कर देता है,जिसके कारण जातक की निर्णय शक्ति समाप्त हो जाती है,वह अपने हाथों से अपने पैरों को काटना शुरु कर देता है,यदि जातक बहुत अधिक निन्दनीय कर्मी है,तो दूसरे जन्म में पैदा होने के बाद बचपन से ही उसकी चेतना को बन्द कर देता है,और उसे अपने घर से भगा देता है,और याद भी नही रहने देता कि वह कहां से आया है,उसका कौन बाप है और कौन मां है,वह रोटी पानी के लिये जानवरों की भांति दर दर का फ़िरता रहता है,कोई टुकडा डाल भी दे तो खाता है,और आसपास के जानवर उसे खाने भी नही देते,कमजोर होने पर वह या तो किसी रेलवे स्टेशन पर मरा मिलता है,अथवा कुत्तों के द्वारा उसे खा लिया जाता है,कभी कभी अधिक ठंड या बरसात या गर्मी के कारण रास्ते पर मर जाता है,यह सब उसके कर्मो का फ़ल ही उसे मिलता है,बाप के किये गये कर्मो का फ़ल पुत्र भोगता है,पुत्र के किये गये कर्म पौत्र भोगता है,इसी प्रकार से सीढी दर सीढी राहु भुगतान करता रहता है।

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