मंगलवार, 19 सितंबर 2017

सातवां भाव काम/पार्टनरशिप

पद्धति द्वारा सप्तम, अर्थात काम, के भाव पर प्रस्तुत लेख है |. सप्तम भाव लग्न का सम्मुख अर्थात पूरक भाव है |. अतः संसार में आना अर्थात देह का प्रकट होना लग्न है तो उसका कारण है |

 सम्मुख में काम का भाव, और से मुक्ति मिले तो संसार में आने से भी मुक्ति मिलेगी |. देह का काम से सीधा सम्बन्ध है, काम की पूर्ति हेतु ही जीव देह धारण करता है |. लग्न का सम्बन्ध है देह और उसके गुण-अवगुण से, सांसारिक चरित्र एवं प्रकट स्वभाव से, अतः काम की पूर्ति का भी इन दैहिक लक्षणों से सम्बन्ध है |

 संसार मे आपका प्रकट चरित्र और प्रकट और प्रकट स्वभाव कैसा है,इसपर काम की पूर्ति या आपूर्ति निर्भर करती है | दोनों भावो का एक दूशरे पर पूर्ण दृष्टि है | काम (सप्तम) से दूशरा भाव है अष्टम जो मृत्यु, दैहिक जीवन मे कमजोरियों अर्थार्त छिद्र एवं गुप्त ज्ञान का भाव है, एवं धनभाव का सम्मुख होने के कारन ऋण का भाव है |

 अष्टम भाव काम का धनभाव है, अतः अष्टम भाव शुभ रहे तो काम की पूर्ति की सम्भावना मे वृद्धि होती है, काम हेतु जो वाक्य-पटुता चाहिये वह मिलती है, काम की पूर्ति मे कुटुंब से सहयोग मिलता है, अथवा काम के सम्बन्ध वाला नया कुटुंब प्राप्त होता है | काम से तीसरा भाव है धर्म का नवम भाव | अतः धर्म भाव शुभ रहे तो काम हेतु पराक्रम की योग्यता बढती है , इस कार्य में भाइयों से सहयोग मिलता है | किन्तु काम का स्वामी धर्म भाव मे रहे तो धर्म को काम नस्ट करता है , जबकि कामभाव में धर्मेश रहे तो काम पे धर्म का नियंत्रद बढ़ता है | काम का चतुर्थ है कर्म का दसम भाव | अतःदसम शुभ रहे तो काम के क्षेत्र मे आत्मीय सम्बन्ध बनता है,हार्दिक प्रेम का सम्बन्ध बनता है , जो मेलापक अच्छा होने पे दृढ हो जाता है |

 दसम शुभ हो तो दाम्पत्य जीवनी मे मत्र्पझ से सहयोग मिलता है और घर का सुख भी मिलता है | एकादस भाव शुभ हो तो काम की बुद्धि तीव्र होती है क्यूंकि वह काम से पचम है | द्वादश शुभ हो तो काम के मार्ग में शत्रु और रोग बाधा नही बनते | लग्न शुभ हो तो काम की पूर्ति मे देह और स्वभाव सह्वोग करता है | धनभाव शुभ हो तो काम की पूर्ति में मृतु या दुर्घटना और गंभीर रोग आदि बाधक नही बनते | तीसरा भाव शुभ हो तो काम मे भाग्य साथ देता है , वह काम का भाग्यभाव है |चौथा भाव शुभ हो तो काम की पूर्ति मे जो आवश्य कर्म चाहिए वे बेखटके होने लगते है  | पचम भाव शुभ हो तो काम हेतु जो आय चाहिए उसमे बधा दूर होती है  |

 षष्ठ भाव शुभ हो तो काम के बाधक दूर होते है | उपरोक्त फल केवल काम के संदर्भ से सभी भावो का फल है | उन भावो का लग्न के या अन्य भावो के संदर्भो मे जो फल है उनका समावेश नही किया गया है | भावेसो के फलो का भी समवेस नही किया गया है | आरूढ़ पदों और कार्कांश एवं षोडश वर्ग आदि कुंडलियों मे यह परिक्रिया फलो मे सूक्क्षमता लाने मे सहायक होगी | उपरोक्त फल मे एक विशेषता है – काम त्रिकोण मे सप्तम के साथ एकादस तथा तृतीय भाव होते है | अतः काम की पूर्ति मे समस्त बारह भावो मे सर्वाधिक शुभ यही तीन भाव हनी चैहिये – पराक्रम एवं आमदनी दुरुस्त रहने से काम की पूर्ति होती है | सप्तम भाव को कुछ लोग धर्मपत्नी का भाव समझ लेते है | सप्तम भाव काम – पत्नी का भाव है , धर्म – पत्नी का भाव नवम है जहा से यज्ञ|दी धर्म के विषय देखे जाते है | बिना पत्नी वाले को यज्ञ का अधिकार नहीं होता | किन्तु धर्मपत्नी से भी काम का सम्बन्ध सप्तम भाव ही बनता है | इस जटिलता को आधुनिक लोग समझ नहीं पते क्यूंकि वैदिक विवाह का अर्थ लोग भूल चुके है , जिसमे पत्नी काम की पूर्ति का साधन नही बल्कि धर्म की पूर्ति का साधन है , अतः “धर्मपत्नी” कहलाती है , जिसपर समूचा गृहस्थ – धर्म टिका होता है | अब दुसरे द्रितिकोद से देखे | लग्न से सप्तम काम है , अतः  पूर्ण दृष्टी का सम्बन्ध है | एक दूशरे के पूरक है |

 द्रितीय भाव से षष्ठ है काम , अत: धन का सत्रु है – जो काम के पीछे दोड़ता है उनके धन का नाश होता है और कुटुंब से सम्बन्ध बिगडते है |

 तृतीय भाव से पचम है काम , अत: पराक्रम का अक्ल काम देता है , किस प्रकार का और कौन सा पराक्रम करे यह अक्ल काम की वासना से प्राप्त होती है |

 चतुर्थ से चतुर्थ है काम , अत: काम तो घर का भी घर है गृहस्त आश्रम का आधार है , भूमि – भवन एवं मैत्री आदि हार्दिक संबंधो को निर्धारित करने वाली नीव है |

 पचम से तीसरा है काम , अत: बुद्धि और सांसारिक विधाओ का पराक्रम – भाव है काम कामवासना ना हो तो लोग सांसारिक विधाओ के लिए पराक्रम करना छोड़ दे |

 षष्ठ से दूशरा है काम ,

अत: कामभाव शुभ हो तो शत्रु एवं रोगों के विरुद्ध धन आदि द्वारा रक्षा करना है , कामभाव असुभ हो तो शत्रु एवं रोग से रक्षा हेतु धन आदि साधनों का नाश होता है | अष्टम से द्वादश है काम , अत: मोक्ष – त्रिकोण के गुप्तज्ञान का नाश काम करता है , एवं अष्टम अशुभ हो तो काम हेतु भी छिद्र या कमजोरियां मे वृधि होती है | नवंम से एकादस है काम ,अत: धर्म हेतु यह लाभ का भाव है ,काम शुभ हो तो धर्म मे सहायक है | दसम से दसम है काम , अत: काम भाव शुभ हो तो कर्मशीलता बढती है , पितृपक्ष से सहयोग मिलता है | काम से निरास लोग कर्म ठीक से नही कर पाते | एकादस से नवम है काम , आय या लाभ का धर्म है काम , अर्थार्त सप्तम भाव के बली होने से लाभ मे वृधि हेतु धार्मिक कार्य संपन्न होते है |

द्वादश से अष्टम है काम ,मोक्ष की मृतु है काम !

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