कुंडली में बाधक ग्रह का मतलब क्या होता है
बाधक जैसा कि शब्द से ही मालूम पड़ता है कि बाधा देने वाला
वैसे हमने पहले भी मारक ग्रह की चर्चा की है मारक का मतलब मार देगा ऐसा नहीं है मारक ग्रह का मतलब है जिंदगी में जो भी गृह और भाव सबसे ज्यादा हमें उलझा कर रखता है हमें चक्र व्यूह में फंसा कर रखता है इस तरह के दो ही भाव है वह है दूसरा भाव और सातवां भाव क्योंकि हम पूरी जिंदगी वैवाहिक जिंदगी धन परिवार इस तरह इन के इर्द गिर्द घूमते रहते हैं इसीलिए इन 2 भावों को मारक भाव कहां गया है।
अभी बात करते है, बाधक ग्रह, इसे भी कॉमन सेन्सस से समझे,
जो भी चर लग्न वाले व्यक्ति होते हैं वह हमेशा आराम से बैठना पसंद नहीं करते हमेशा कुछ ना कुछ अपने फायदे वाले जुगाड़ में लगे रहते हैं और इस वजह से जो भी फायदे वाली चीजें हैं उन्हीं से उनको कष्ट होने का कारण बनता है कुल मिलाकर ऐसे लोग जो जिंदगी में बहुत ज्यादा और कम समय में ज्यादा से ज्यादा पाना चाहते हैं वह सभी लोग चर लग्न वाले व्यक्ति होते हैं वह कभी भी एक जगह आराम से नहीं बैठते इसीलिए उस लग्न के व्यक्ति को चर लग्न का व्यक्ति कहा गया है 11 भाव उनके लिए फायदा पहुंचाने वाला लाभ देने वाला उनको फल देने वाला बन जाता है इसी वजह से जो भाव उनको फल ज्यादा देता है वही उनके लिए परेशानी का कारण भी बनता है लालच का कारण भी बनता है क्योंकि लालच से उनकी भाग-दौड़ और ज्यादा बढ़ जाती है इसीलिए चर लग्न वालों व्यक्ति के लिए हमेशा 11 भाव उसमे बैठे हुए ग्रह या उसका मालिक हमेशा उस व्यक्ति को लाभ दिलाने के चक्कर में और ज्यादा भागदौड़ कराता है अगर यह भाग-दौड़ अच्छी नीयत से प्रेरित हो तो हमेशा यह बाधक ग्रह फायदा ही पहुंचाते हैं लेकिन थोड़ी सी भी परेशानी या नीयत खराब होने पर व्यक्ति को परेशानी भी उठानी पड़ती है और होता भी यही है कि लालच हमेशा धीरे-धीरे बढ़ता है और एक दिन बड़ा नुकसान का कारण बन जाता है इसलिए 11 भाव चर लग्न वाले व्यक्ति के लिए बाधक बन जाता है।
सभी 12 राशियों को उनके स्वभाव के अनुसार तीन भागों में बांटा गया है और फिर उसके आधार पर बाधक ग्रह का निर्णय किया जाता है.
मेष, कर्क, तुला और मकर राशि चर स्वभाव की राशियाँ मानी गई हैं. चर अर्थात चलायमान रहती है.
वृष, सिंह, वृश्चिक और कुंभ राशियाँ स्थिर स्वभाव की राशि मानी गई हैं. स्थिर अर्थात ठहराव रहता है. ।
मिथुन, कन्या, धनु और मीन राशियाँ द्वि-स्वभाव की राशि मानी जाती है अर्थात चर व स्थिर दोनो का समावेश इनमें होता है.।
जन्म लग्न में चर राशि मेष, कर्क, तुला या मकर स्थित हैं तब एकादश भाव का स्वामी ग्रह बाधकेश का काम करता है.।
जन्म लग्न में स्थिर राशि वृष, सिंह, वृश्चिक या कुंभ स्थित है तब नवम भाव का स्वामी ग्रह बाधकेश का काम करता है.।
यदि जन्म लग्न में द्वि-स्वभाव राशि मिथुन, कन्या, धनु या मीन स्थित है तब सप्तम भाव का स्वामी ग्रह बाधकेश का काम करता है.।
जब भी बाधक ग्रह की दशा अंतर्दशा आती है उस समय व्यक्ति को फायदा लाभ होने की संभावनाएं उतनी ही बढ़ जाती है लेकिन उसी के साथ परेशानी या उतना ही नुकसान की भी संभावना बढ़ती ह, अगर अशुभग गृह शामिल हो, अशुभ भाव के मालिक बनकर।
कुल मिलाकर यह बात निर्भर करती है कि बाधक भाव या बाधक ग्रह का संबंध अगर अच्छे ग्रहों से है अच्छी दृष्टि से है तो लाभ उतना ही बढ़ जाता है
बाधक जैसा कि शब्द से ही मालूम पड़ता है कि बाधा देने वाला
वैसे हमने पहले भी मारक ग्रह की चर्चा की है मारक का मतलब मार देगा ऐसा नहीं है मारक ग्रह का मतलब है जिंदगी में जो भी गृह और भाव सबसे ज्यादा हमें उलझा कर रखता है हमें चक्र व्यूह में फंसा कर रखता है इस तरह के दो ही भाव है वह है दूसरा भाव और सातवां भाव क्योंकि हम पूरी जिंदगी वैवाहिक जिंदगी धन परिवार इस तरह इन के इर्द गिर्द घूमते रहते हैं इसीलिए इन 2 भावों को मारक भाव कहां गया है।
अभी बात करते है, बाधक ग्रह, इसे भी कॉमन सेन्सस से समझे,
जो भी चर लग्न वाले व्यक्ति होते हैं वह हमेशा आराम से बैठना पसंद नहीं करते हमेशा कुछ ना कुछ अपने फायदे वाले जुगाड़ में लगे रहते हैं और इस वजह से जो भी फायदे वाली चीजें हैं उन्हीं से उनको कष्ट होने का कारण बनता है कुल मिलाकर ऐसे लोग जो जिंदगी में बहुत ज्यादा और कम समय में ज्यादा से ज्यादा पाना चाहते हैं वह सभी लोग चर लग्न वाले व्यक्ति होते हैं वह कभी भी एक जगह आराम से नहीं बैठते इसीलिए उस लग्न के व्यक्ति को चर लग्न का व्यक्ति कहा गया है 11 भाव उनके लिए फायदा पहुंचाने वाला लाभ देने वाला उनको फल देने वाला बन जाता है इसी वजह से जो भाव उनको फल ज्यादा देता है वही उनके लिए परेशानी का कारण भी बनता है लालच का कारण भी बनता है क्योंकि लालच से उनकी भाग-दौड़ और ज्यादा बढ़ जाती है इसीलिए चर लग्न वालों व्यक्ति के लिए हमेशा 11 भाव उसमे बैठे हुए ग्रह या उसका मालिक हमेशा उस व्यक्ति को लाभ दिलाने के चक्कर में और ज्यादा भागदौड़ कराता है अगर यह भाग-दौड़ अच्छी नीयत से प्रेरित हो तो हमेशा यह बाधक ग्रह फायदा ही पहुंचाते हैं लेकिन थोड़ी सी भी परेशानी या नीयत खराब होने पर व्यक्ति को परेशानी भी उठानी पड़ती है और होता भी यही है कि लालच हमेशा धीरे-धीरे बढ़ता है और एक दिन बड़ा नुकसान का कारण बन जाता है इसलिए 11 भाव चर लग्न वाले व्यक्ति के लिए बाधक बन जाता है।
सभी 12 राशियों को उनके स्वभाव के अनुसार तीन भागों में बांटा गया है और फिर उसके आधार पर बाधक ग्रह का निर्णय किया जाता है.
मेष, कर्क, तुला और मकर राशि चर स्वभाव की राशियाँ मानी गई हैं. चर अर्थात चलायमान रहती है.
वृष, सिंह, वृश्चिक और कुंभ राशियाँ स्थिर स्वभाव की राशि मानी गई हैं. स्थिर अर्थात ठहराव रहता है. ।
मिथुन, कन्या, धनु और मीन राशियाँ द्वि-स्वभाव की राशि मानी जाती है अर्थात चर व स्थिर दोनो का समावेश इनमें होता है.।
जन्म लग्न में चर राशि मेष, कर्क, तुला या मकर स्थित हैं तब एकादश भाव का स्वामी ग्रह बाधकेश का काम करता है.।
जन्म लग्न में स्थिर राशि वृष, सिंह, वृश्चिक या कुंभ स्थित है तब नवम भाव का स्वामी ग्रह बाधकेश का काम करता है.।
यदि जन्म लग्न में द्वि-स्वभाव राशि मिथुन, कन्या, धनु या मीन स्थित है तब सप्तम भाव का स्वामी ग्रह बाधकेश का काम करता है.।
जब भी बाधक ग्रह की दशा अंतर्दशा आती है उस समय व्यक्ति को फायदा लाभ होने की संभावनाएं उतनी ही बढ़ जाती है लेकिन उसी के साथ परेशानी या उतना ही नुकसान की भी संभावना बढ़ती ह, अगर अशुभग गृह शामिल हो, अशुभ भाव के मालिक बनकर।
कुल मिलाकर यह बात निर्भर करती है कि बाधक भाव या बाधक ग्रह का संबंध अगर अच्छे ग्रहों से है अच्छी दृष्टि से है तो लाभ उतना ही बढ़ जाता है
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