मंगलवार, 26 सितंबर 2017

स्त्री रोग योग

स्त्री रोग योग

स्त्री रोग योग   लग्न में शनि, मंगल या केतु हो | सप्तमेश 8, 12वें भाव में हो | सप्तमेश और दुतीयेश पापग्रहो से युक्त हो | नीच का चन्द्रमा सातवें भाव में हो | सातवें भाव में बुध पापग्रहो से दृष्टी हो |                     भास्कर योग

भास्कर योग   सू्र्य के अनेक नामों में भास्कर भी एक है.यह योग कुण्डली तब बनता है जबकि बुध सूर्य से द्वतीय भाव में होता है एवं बुध से एकादश भाव में चन्द्रमा और इससे पंचम अथवा नवम में गुरू होता है.ग्रहों का यह योग अति दुर्लभ होता है.जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह महान योग बनता है वह व्यक्ति भी महान बन जाता है.इस योग के प्रभाव से धन वैभव से घर भरा होता है.भमि, भवन एवं वाहन का सुख प्राप्त होता है.इनमें कला के प्रति लगाव एवं अन्य लोगों के प्रति स्नेह होता है. संतान प्रतिबंधक योग

संतान प्रतिबंधक योग   1- तृतीय भाव का अधिपति और चंद्रमा केंद्र या त्रिकोण भावों में स्थित हो तो जरक को संतान सुख में बाधा होती है ! 2- लग्न में मांगल, आठवें शनि और पंचम भाव में शनि हो तो भी जातक को संतान सुख में बाधा होती है ! 3- बुध और लग्न भाव का अधिपति ये दोनों लग्न के अलावा केंद्र स्थानों में हो तो भी संतान सुख में बाधा होती है ! 4- लग्न, अस्थम एवम बारहवें भाव में पापग्रह हो तो संतान सुख में बाधा उत्पन्न होती है ! 5- सप्तम भाव में शुक्र, दशवें भाव में चन्द्रमा, एवं सप्तम भाव में शनि या मंगल हो तो संतान सुख में बाधा होती है ! 6- तीसरे भाव का अधिपति 1/2/3/5 वें भाव में स्थित हो तथा शुभ से युत या द्रस्त हो तो ऐसे जातक को संतान सुख में बाधा होती है !          महाराज योग

महाराज योग   लग्नेश पंचमेश में तथा पंचमेश लग्न में हो | लग्नेश शुभग्रहो से दृष्ट हो | लग्नेश तथा पंचमेश स्वराशिस्थ हो | इन योगो में जन्म लेनेवाला जातक उच्च शासनधिकारी बनता हे      |भाग्योदय योग

भाग्योदय योग   सप्तमेश या शुक्र 3, 6, 10, 11वें स्थान पर हों, तो 22वें वर्ष में भाग्योदय होता हो | भाग्येश रवि हो, तो 24वें वर्ष में | चन्द्रमा भाग्येश हो, तो 25वें वर्ष में | भाग्येश भौम हो, तो 28वें वर्ष में | भाग्येश बुध हो, तो 32वें वर्ष में | भाग्येश गुरु हो, तो 16वें वर्ष में | शुक्र भाग्येश हो, तो 25वें वर्ष में | शनि भाग्येश हो, तो 36वें वर्ष में | राहु-केतु भाग्येश हो, तो 42वें वर्ष में | नवम भाव में गुरु या शुक्र हो | नवमस्थ गुरु शुभ राशि का व स्वराशिस्थ हो | नवम भाव में शुभग्रह हो और उस पर किसी पापग्रह की दृष्टी न हो रोग योग

रोग योग   षष्ठेश सूर्य के साथ 1 या 8वें भाव में हो, तो मुखरोग | षष्ठेश चन्द्र के साथ 1 या 8वें भाव में हो, तो तालुरोग | 12वें भाव में गुरू और चन्द्र साथ  हों | मंगल और शनि का योग 6 या 12वें भाव में हो | लग्नेश रवि का योग 6, 8 व 12वें स्थान में हो | मंगल और शनि लग्न स्थान या लग्नेश को देखते हों | सूर्य ,मंगल तथा शनि-तीनों जिस स्थान में हो, उस स्थान वाले अगं पर रोग होता है | पापी मंगल पापराशि में हो | शुक्र और मंगल में सूर्य का योग हो | अष्टमेश और लग्नेश साथ हो | छठे स्थान पर शनि की पुणॅ दृष्टी हो | चन्द्र और शनि एक साथ कर्क राशि में हो | छठे भाव में चन्द्र, शनि और बुध हों, तो जातक कोढ़ी होता है | अष्टमेश नीच ग्रहों के बीच में हो | सूर्य पापग्रह द्रारा दृष्ट हो |
बहुसन्तान योग

बहुसन्तान योग   पंचमेश शनि शुक्र के साथ पाप स्थानगत हो | आठवें भाग में पंचमेश हो | पंचमेश तथा तृतीयेश साथ-साथ हो | पंचमेश के स्थान में तृतीयेश हो | सप्तमेश-तृतीयेश का अन्योंयास्रित योग हो गोद जाने का योग

गोद जाने का योग   कर्क या सिंह राशि मे पापग्रह हो | ४ या १०वें स्थान पर पापग्रह हो | चन्द्रमा से चतुर्थ राशि मे पापग्रह हो | सूर्य से ९वें स्थान पर पापग्रह हो | चन्द्रमा या सूर्य शत्रुक्षेत्र मे हो |जमींदारी योग

जमींदारी योग   चौथे घर का मालिक दशम मे तथा दशमेश चतुर्थ मे हो | चतुर्थेश, २ या ११वें स्थान पर हो | चतुर्थेश, दशमेश और चन्द्रमा बलवान हों तथा परस्पर मित्र हों | पंचमेश लग्न मे हो | सप्तमेश, नवमेश तथा एकादशेश लग्न मे हों ।

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