बुधवार, 27 दिसंबर 2017

कुन्डली में एकादश भाव

कुन्डली में एकादश भाव
11 हाउस की भूमिका

एकादश स्थान ही वह स्थान है जिससे मनुष्य को जीवन में प्राप्त होने वाले सभी प्रकार के लाभ ज्ञात हो सकते हैं इसलिए इसे लाभ स्थान भी कहा जाता है एकादश भाव दशम स्थान(कर्म) से द्वितीय है  अतः कर्मों से प्राप्त होने वाले लाभ या आय एकादश भाव से देखे जाते हैं मनुष्य को प्राप्त होने वाली प्राप्तियों के संबंध में एकादश भाव सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाव है
 ये निज प्रयास या निजकर्मों द्वारा अर्जित व्यक्ति की उपलब्धियों की सूचना देता है यह भाव एक उपचय स्थान भी है  इस भाव को  दिशा के रुप में  आग्नेय स्थान भी कहते (South-East) है
भाव के रूप में एकादश स्थान को शुभ माना गया है  यह हमारे जीवन में वृद्धि का सूचक है वैसे भी हिन्दू धर्म में 11 के अंक को शुभ व पवित्र माना जाता है यही कारण है कि इस भाव में सभी ग्रह शुभ फलदायी माने गए हैं मगर छठे भाव(रोग, शत्रु, चोट) से छठा होने के कारण के कारण इस भाव का स्वामी शारीरिक कष्ट भी प्रदान कर सकता है इस भाव से आय, लाभ, वृद्धि, प्राप्ति, इच्छाओं की पूर्ति, बड़े भाई-बहन, पुत्रवधू या दामाद, चाचा, बुआ, मित्र, कामवासना, विशिष्ट सम्मान, कान, जांघ व कामवासना आदि का विचार किया जाता है
एकादश भाव चर लग्नों(1, 4, 7, 10) के लिए एक बाधक भाव भी माना जाता है। एकादश भाव में क्रूर(पाप) ग्रह विशेष शुभ फलदायी माने जाते हैं।

एकादश भाव से निम्नलिखित विषयों का विचार किया जाता है-
आय या लाभ- एकादश भाव व्यक्ति को मिलने वाले लाभ या उसकी आय का सूचक है इस भाव में जिस भाव का स्वामी आकर बैठता है, उस भाव से प्राप्त होने वाली वस्तु की प्राप्ति व्यक्ति को होती है-
यदि इस भाव में सूर्य हो तो व्यक्ति को राज्य व मान-सम्मान की प्राप्ति होती है|
यदि इस भाव में चन्द्र हो तो व्यक्ति को तरल पदार्थ, समुद्र यात्रा , कृषि से  जल के काम आदि से लाभ होता है

यदि मंगल इस भाव में हो तो व्यक्ति को साहस, निडरता, , भूमि, अग्नि संबंधी कार्यों से लाभ मिलता है
यदि बुध इस भाव में हो तो व्यक्ति को शिक्षण, लेखन व वाणी के द्वारा लाभ मिलता है
यदि गुरु इस भाव में हो तो व्यक्ति को ज्ञान, साहित्य व धार्मिक गतिविधियों से लाभ प्राप्त होता है
यदि शुक्र इस भाव में हो तो व्यक्ति को नाटक, नृत्य, संगीत, कला, सिनेमा, आभूषण आदि से लाभ मिलता है
यदि शनि इस भाव में हो तो व्यक्ति को श्रम, कारखाने, कृषि, राजनीति व गूढ़ विद्याओं से लाभ मिलता है
यदि, राहु-केतु इस भाव में हो तो सट्टे, लॉटरी, शेयर बाजार, तंत्र-मंत्र, गूढ़ ज्ञान आदि से लाभ मिलता है

2. प्राप्ति- एकादश भाव का संबंध प्राप्ति से है इसलिए किसी भी प्रकार की प्राप्ति का विचार इस भाव से किया जाता है

3. कीर्ति- दशम स्थान कर्म है और एकादश भाव दशम(कर्म) से द्वितीय(आय) है इसलिए यह व्यक्ति को मिलने वाली कीर्ति, यश व मान-सम्मान का प्रतीक है

4. (वृद्धिदायक)    एकादश भाव बहुलता से भी संबंधित है। जिस भाव का स्वामी एकादश भाव में हो तो वह भाव तथा उसके स्वामी से संबंधित कारकत्वों में वृद्धि होती है, जैसे यदि पंचम भाव का स्वामी एकादश में हो तो मनुष्य की कई संताने होती हैं  इसी प्रकार द्वितीय भाव का स्वामी एकादश स्थान में हो तो मनुष्य के पास काफी रूपया-पैसा होता है

5. ज्येष्ठ बड़े भाई-बहन– एकादश स्थान से बड़े भाई-बहन का विचार भी किया जाता है। इस भाव पर शुभ या अशुभ ग्रहों का जैसा भी प्रभाव हो वैसे ही संबंध व्यक्ति के अपने बड़े भाई-बहन से होते हैं

6. शारीरिक कष्ट– एकादश भाव छठे भाव से छठा होने के कारण रोग को भी सूचित करता है। एकादश भाव के स्वामी की दशा-अंतर्दशा में मनुष्य को शारीरिक कष्ट हो सकता है

7. मित्र– मित्रों का विचार भी एकादश भाव से किया जाता है व्यक्ति के मित्र किस प्रकार के होंगे तथा उनसे उनके   संबंध कैसे रहेंगे आदि की जानकारी भी इसी भाव से प्राप्त होती है

8. बाधक स्थान– मेष, कर्क, तुला व मकर लग्नों इन्हें चर लग्न भी कहते हैं। के लिए एकादश भाव का स्वामी बाधकाधिपति होता है। अतः इन चर लग्नों में एकादशेश की दशा-अंतर्दशा में मनुष्य को बाधाओं व व्यवधानों का सामना करना पड़ सकता है
9. कामवासना– तृतीय, सप्तम तथा एकादश स्थान काम त्रिकोण माने जाते हैं अतः मनुष्य की कामवासना का विचार भी इस भाव से किया जाता है।

10. आर्थिक स्थिति– द्वितीय भाव के साथ-साथ एकादश स्थान का भी मनुष्य की आर्थिक स्थिति से घनिष्ठ संबंध है। जब भी किसी जन्मकुंडली में द्वितीय भाव के साथ-साथ एकादश भाव मजबूत स्थिति में होता है तो व्यक्ति धनवान, यशस्वी तथा अनेक प्रकार की भौतिक सुख- सुविधाओं को भोगने वाला होता है।

11. शारीरिक अंग– एकादश भाव मनुष्य की बाई भुजा, बांया कान तथा पैरों की पिंडलियों को दर्शाता है। जब भी इस भाव पर तथा इसके स्वामी पर पाप ग्रहों का प्रभाव होता है तो मनुष्य के बांये कान, बाई भुजा व पैर की पिंडलियों में कष्ट होता है।
अगर कुण्डली में ग्रहों का सम्बन्ध 11 हाउस से वंचित हो या 9,10,11 भाव कमज़ोर  हो
तब जीवन में भाग्य,कर्म ओर लाभ का साथ ना मिलने पर जीवन में संघर्षता बढ़ जाती है पर ये भाव मज़बूत हो तब जीवन में मिलने वाली सुख सुविधाएँ में बढ़ोत्तरी होती है ।

जन्म कुंडली नहीं है तो करें ये महाउपाय

जन्म कुंडली नहीं है तो करें ये महाउपाय :-
आपका बुरा समय चल रहा हो तो आपको किसी विद्वान ज्योतिषी की सहायता लेनी पड़ेगी ! कुछ लोगों की जन्म कुंडली या जन्म विवरण सही नहीं होता । ऐसी दशा में कैसे पता लगाया जाए कि आप पर किस ग्रह का प्रभाव चल रहा है ! कुछ लक्षण ऐसे होते हैं जिनका सीधा सम्बन्ध किसी ख़ास योग या ग्रह से होता है।
जैसे कि :--
1. अगर आपको अचानक धन हानि होने लगे ! आपके पैसे खो जाएँ, बरकत न रहे, दमा या सांस की बीमारी हो जाए, त्वचा सम्बन्धी रोग उत्पन्न हों, कर्ज उतर न पाए, किसी कागजात पर गलत दस्तखत से नुक्सान हो तो आप पर बुध ग्रह का कुप्रभाव चल रहा है !
इसके लिए बुधवार को गाय को हरा चारा व 50 ग्राम चने की दाल व गुड़ , इसी दिन खिलाएं । व अभिमंत्रित किया हुआ पन्ना रत्न चांदी में धारण करें।

2.जब , बुजुर्ग लोग आपसे बार बार नाराज होते हैं, जोड़ों मैं तकलीफ है, शरीर मैं जकरण या आपका मोटापा बढ़ रहा है, नींद कम है, पढने लिखने में परेशानी है किसी ब्रह्मण से वाद विवाद हो जाए अथवा पीलिया हो जाए तो समझ लेना चाहिए की गुरु का अशुभ प्रभाव आप पर पढ़ रहा है ! अगर सोना गुम हो जाए पीलिया हो जाए या पुत्र पर संकट आ जाए तो निस्संदेह आप पर गुरु का अशुभ प्रभाव चल रहा है !
ऐसी स्थिति में केसर या हल्दी का तिलक वीरवार से शुरू करके 43 दिन तक रोज लगायें, सामान्य अशुभता दूर हो जाएगी किन्तु गंभीर परिस्थितियों में जैसे अगर नौकरी चली जाए या पुत्र पर संकट, सोना चोरी या गम हो जाए तो बृहस्पति के बीज मन्त्रों का जाप करें या करवाएं ! तुरंत मदद मिलेगी ! मंत्र का प्रभाव तुरंत शुरू हो जाता है ! व अभिमंत्रित किया हुआ पुखराज रत्न चांदी या सोने में धारण करें।
3. अगर आपको वहम हो जाए, जरा जरा सी बात पर मन घबरा जाए, आत्मविश्वास मैं कमी आ जाए, सभी मित्रों पर से विशवास उठ जाए, ब्लड प्रेशर की बीमारी हो जाए, जुकाम ठीक न हो या बार बार होने लगे, आपकी माता की तबियत खराब रहने लगे ! अकारण ही भय सताने लगे और किसी एक जगह पर आप टिक कर ना बैठ सकें, छोटी छोटी बात पर आपको क्रोध आने लगे तो समझ लें की आपका चन्द्रमा आपके विपरीत चल रहा है ! इसके लिए हर सोमवार का व्रत रखें और दूध या खीर का दान करें ! अभिमंत्रित किया हुआ सफेद मोती व टाइगर या नीलमणि रत्न धारण करें।
4.अगर आपकी स्त्रियों से नहीं बनती, किसी स्त्री से धोखा या मान हानि हो जाए, किसी शुभ काम को करते वक्त कुछ न कुछ अशुभ होने लगे, आपका रूप पहले जैसा सुन्दर न रहे ! लोग आपसे कतराने लगें ! वाहन को नुक्सान हो जाए ! नीच स्त्रियों से दोस्ती, ससुराल पक्ष से अलगाव तथा शूगर हो जाए तो आपका शुक्र बुरा प्रभाव दे रहा है !
आप महालक्ष्मी की पूजा करें, चीनी, चावल तथा चांदी शुक्रवार को किसी ब्राह्मण की पत्नी को भेंट करें, बड़ी बहन को वस्त्र दें, 21 ग्राम का चांदी का बिना जोड़ का कड़ा शुक्रवार को धारण करें ! अगर किसी के विवाह में देरी या बाधाएं आ रही हों तो जिस दिन रिश्ता देखने जाना हो उस दिन 57 आटे की गोलियां किसी नदी मैं प्रवाहित करके जाएँ ! इन में से किसी भी उपाय को करने से आपका शुक्र शुभ प्रभाव देने लगेगा ! किसी सुहागन को सुहाग का सामन देने से भी शुक्र का शुभ प्रभाव होने लगता है ! ध्यान रहे, शुक्रवार को राहुकाल में कोई भी उपाय न करें ! पुखराज व पन्ना दोनों रत्न धारण करें।
5. अगर आपके मकान मैं दरार आ जाए ! घर में प्रकाश की मात्रा कम हो जाए ! जोड़ों में दर्द रहने लगे विशेषकर घुटनों और पैरों में या किसी एक टांग पर चोट, रंग काला हो जाए, जेल जाने का डर सताने लगे, सपनों मैं मुर्दे या शमशान घाट दिखाई दे, गठिया की शिकायत हो जाए, परिवार का कोई वरिष्ठ सदस्य गंभीर रूप से बीमार या मृत्यु को प्राप्त हो जाए तो आप पर शनि का कुप्रभाव है जिसके निवारण के लिए शनिवार को सरसों का तेल लोहे के कटोरे में डाल कर अपना मुँह उसमे देख कर , उसी तेल में गुलगुले बना कर कुत्तो को खीलायें व बचा तेल आटे में मिलाकर भैंस को खीलायें। ऐसा हर शनिवार करें ! बीमारी की अवस्था में किसी गरीब, बीमार व्यक्ति को दवाई दिलवाएं ! नीलम रत्न धारण करें। व धर में काले घोड़े की नाल लगाएं।
6.अगर आपके बाल झड जाएँ और आपकी हड्डियों के जोड़ों मैं कड़क कड़क की आवाज आने लगे, पिता से झगडा हो जाए, मुकदमा या कोर्ट केस मैं फंस जाएँ, आपकी आत्मा दुखी हो जाए, आलसी प्रवृत्ति हो जाये तो आपको समझ लेना चाहिए की सूर्य व केतु का अशुभ प्रभाव आप पर हो रहा है !
ऐसी दशा मैं सबसे अच्छा उपाय है की हर सुबह सूर्य को मीठा डालकर अर्ध्य दें ! पिता से सम्बन्ध सुधरने की कोशिश करें ! पिता को उपहार दें। व गोमेद व लहसुनिया रत्न धारण करें।
7. आपको खून की कमी हो जाए, बार बार दुर्घटना होने लगे या चोट लगने लगे, सर मैं चोट, आग से जलना, नौकरी मैं शत्रु पैदा हो जाएँ या ये पता न चल सके की कौन आपका नुक्सान करने की चेष्टा कर रहा है, व्यर्थ का लड़ाई झगडा हो, पुलिस केस, जीवन साथी के प्रति अलगाव नफरत या शक पैदा हो जाए, आपरेशन की नौबत आ जाए, कर्ज ऐसा लगने लगे की आसानी से ख़त्म नहीं होगा तो आप पर मंगल ग्रह क्रुद्ध हैं ! ऐसे में आप , हनुमान जी की यथासंभव उपासना शुरू कर दें ! हनुमान जी से तिलक लेकर माथे पर प्रतिदिन लगायें, अति गंभीर परिस्थितियों मैं रक्त दान करें तो जो रक्त आपका आपरेशन, चोट या दुर्घटना आदि के कारण निकलना है, नहीं होगा ! व मूंगा त्रिकोण व कला मोती रत्न धारण करें। ओर घर में एक मुखी रूद्राक्ष सिंदूर में मिला कर रखें ।

शनिवार को घर मे नही लानी चाहिए निम्नलिखित दस चीजें।

शनिवार को घर मे नही लानी चाहिए निम्नलिखित दस चीजें।

यूं तो किसी भी वस्तु के उपयोग या क्रय करने का समय उसकी आवश्यकता पर ही निर्भर करता है, परंतु ज्योतिष शास्त्र में भी इसके कुछ नियम बताए गए हैं। इस कड़ी में जानिए ऐसी कौनसी वस्तुएं हैं जो शनिवार को घर नहीं लानी चाहिए या इस दिन इन्हें नहीं खरीदना चाहिए।

1.लोहे का सामान

भारतीय समाज में यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है कि शनिवार को लोहे का बना सामान नहीं खरीदना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि शनिवार को लोहे का सामान क्रय करने से शनि देव कुपित होते हैं।

इस दिन लोहे से बनी चीजों के दान का विशेष महत्व है। लोहे का सामान दान करने से शनि देव की कोप दृष्टि निर्मल होती है और घाटे में चल रहा व्यापार मुनाफा देने लगता है। इसके अतिरिक्त शनि देव यंत्रों से होने वाली दुर्घटना से भी बचाते हैं।

2.यह चीज लाती है रोग

इस दिन तेल खरीदने से भी बचना चाहिए। हालांकि तेल का दान किया जा सकता है। काले श्वान को सरसों के तेल से बना हलुआ खिलाने से शनि की दशा टलती है। ज्योतिष के अनुसार, शनिवार को सरसों या किसी भी पदार्थ का तेल खरीदने से वह रोगकारी होता है।

3.इससे आता है कर्ज

नमक हमारे भोजन का सबसे अहम हिस्सा है। अगर नमक खरीदना है तो बेहतर होगा शनिवार के बजाय किसी और दिन ही खरीदें। शनिवार को नमक खरीदने से यह उस घर पर कर्ज लाता है। साथ ही रोगकारी भी होता है।

4.कैंची लाती है रिश्तों में तनाव

कैंची ऐसी चीज है जो कपड़े, कागज आदि काटने में सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाती है। पुराने समय से ही कपड़े के कारोबारी, टेलर आदि शनिवार को नई कैंची नहीं खरीदते।

इसके पीछे यह मान्यता है कि इस दिन खरीदी गई कैंची रिश्तों में तनाव लाती है। इसलिए अगर आपको कैंची खरीदनी है तो किसी अन्य दिन खरीदें।

5.काले तिल बनते हैं बाधा

सर्दियों में काले तिल शरीर को पुष्ट करते हैं। ये शीत से मुकाबला करने के लिए शरीर की गर्मी को बरकरार रखते हैं। पूजन में भी इनका उपयोग किया जाता है। शनि देव की दशा टालने के लिए काले तिल का दान और पीपल के वृक्ष पर भी काले तिल चढ़ाने का नियम है, लेकिन शनिवार को काले तिल कभी न खरीदें। कहा जाता है कि इस दिन काले तिल खरीदने से कार्यों में बाधा आती है।

6.काले जूते लाते हैं असफलता

शरीर के लिए जितने जरूरी वस्त्र हैं, उतने ही जूते भी। खासतौर से काले रंग के जूते पसंद करने वालों की तादाद आज भी काफी है। अगर आपको काले रंग के जूते खरीदने हैं तो शनिवार को न खरीदें। मान्यता है कि शनिवार को खरीदे गए काले जूते पहनने वाले को कार्य में असफलता दिलाते हैं।

7.परिवार पर कष्ट

रसोई के लिए ईंधन, माचिस, केरोसीन आदि ज्वलनशील पदार्थ आवश्यक माने जाते हैं। भारतीय संस्कृति में अग्नि को देवता माना गया है और ईंधन की पवित्रता पर विशेष जोर दिया गया है लेकिन शनिवार को ईंधन खरीदना वर्जित है। कहा जाता है कि शनिवार को घर लाया गया ईंधन परिवार को कष्ट पहुंचाता है।

8.झाड़ू लाती है दरिद्रता

झाड़ू घर के विकारों को बुहार कर उसे निर्मल बनाती है। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का आगमन होता है। झाड़ू खरीदने के लिए शनिवार को उपयुक्त नहीं माना जाता। शनिवार को झाड़ू घर लाने से दरिद्रता का आगमन होता है।

9.अनाज पीसने की चक्की

इसी प्रकार अनाज पीसने के लिए चक्की भी शनिवार को नहीं खरीदनी चाहिए। माना जाता है कि यह परिवार में तनाव लाती है और इसके आटे से बना भोजन रोगकारी होता है।

10.स्याही दिलाती है अपयश

विद्या मनुष्य को यश और प्रसिद्धि दिलाती है और उसे अभिव्यक्त करने का सबसे बड़ा माध्यम है कलम। कलम की ऊर्जा है स्याही। कागज, कलम और दवात आदि खरीदने के लिए सबसे श्रेष्ठ दिन गुरुवार है। शनिवार को स्याही न खरीदें। यह मनुष्य को अपयश का भागी बनाती है।

ग्रहों की अवस्थाएं

राशि, अंशों, भावों तथा पारस्परिक सम्बन्धों के अनुसार ग्रहों की भिन्न-भिन्न प्रकार से अवस्थाएं मानी गयी हैं। ग्रह अपनी अवस्थानुसार ही फल देते हैं। ग्रहों की अवस्था का वर्गीकरण निम्नानुसार है:-

१. अंशों के आधार पर अवस्था

अंशों के आधार पर ग्रहों को पांच आयुवर्गों में बांटा गया है। विषम राशियों में बढ़ते हुए अंशों में बालक से मृत तथा सम राशियों में घटते हुए अंशों में बालक से मृत के क्रम में ग्रहों की आयु मानी गयी है।

क)  ग्रह विषम राशियों में ६° तक बालक, ६° से १२° तक कुमार, १२° से १८° तक युवा, १८° से २४° तक वृद्ध तथा २४° से ३०° तक मृत अवस्था में रहता है।

ख) ग्रह सम राशियों में ३०° से २४° तक बालक, २४° से १८° तक कुमार, १८° से १२° तक युवा, १२° से ६° तक वृद्ध तथा ६° से नीचे मृत अवस्था में होता है।

बाल्यावस्था में ग्रह का फल कम, कुमारावस्था में आधा, युवावस्था में पूर्ण, वृद्धावस्था में कम तथा मृतावस्था में नगण्य रहता है।

२. चैतन्यता के आधार पर अवस्था

क)  विषम राशि में ग्रह १०° तक जागृत, १०° से २०° तक स्वप्न तथा २०° से ३०° तक सुषुप्तावस्था में रहते हैं।

ख)  सम राशि में ग्रह १०° तक सुषुप्त, १०° से २०° तक स्वप्न तथा २०° से ३०° तक जागृत अवस्था में रहता है।

ग्रह की जागृत अवस्था कार्यसिद्धि करती है, स्वप्नावस्था मध्यम फल देती है तथा सुषुप्तावस्था निष्फल होती है।

३. दीप्ति के अनुसार अवस्था

क)  दीप्त - उच्च राशिस्थ ग्रह दीप्त कहलाता है। जिसका फल कार्यसिद्धि है।

ख ) स्वस्थ - स्वगृही ग्रह स्वस्थ होता है, जिसका फल लक्ष्मी व कीर्ति प्राप्ति है।

ग) मुदित - मित्रक्षेत्री ग्रह मुदित होता है, जो आनन्द देता है।

घ) दीन - नीच राशिस्थ ग्रह दीन होता है, जो कष्टदायक होता है।

ड़ ) सुप्त - शत्रुक्षेत्री ग्रह सुप्त होता है, जिसका फल शत्रु से भय होता है।

च) निपीड़ित - जो ग्रह किसी अन्य ग्रह से अंशो में पराजित हो जाये उसे निपीड़ित कहते हैं, यानि एक ग्रह की गति तीव्र हो तथा वह किसी दूसरे ग्रह से कम अंशों पर उसी राशि में हो, परन्तु गति वाला ग्रह उस ग्रह के बराबर अंशों में आगे आकर बढ़ जाए तो पीछे रहने वाला ग्रह पराजित अथवा निपीड़ित ग्रह कहलाता है, जिसका फल धनहानि है।

छ) हीन - नीच अंशोन्मुखी ग्रह हीन कहलाता है, जिसका फल धनहानि है।

ज) सुवीर्य - उच्च अंशोन्मुखी ग्रह सुवीर्य कहलाता है, जो सम्पत्ति वृद्धि करता है।

झ) मुषित - अस्त होने वाले ग्रह को मुषित कहते हैं, जिसका फल कार्यनाश है।

ञ) अधिवीर्य - शुभ वर्ग में अच्छी कांति वाले ग्रह को अधिवीर्य कहते हैं, जिसका फल कार्यसिद्धि है।

४. क्षेत्र, युति तथा दृष्टि के आधार पर अवस्था

क) लज्जित - पंचम स्थान में राहु-केतु के साथ अथवा सूर्य, शनि या मंगल के साथ अन्य ग्रह लज्जित होता है।

ख ) गर्वित - उच्च राशि या मूल त्रिकोण का ग्रह गर्वित होता है।

ग) क्षुधित - शत्रु के घर में, शत्रु से युक्त अथवा दृष्ट अथवा शनि से दृष्ट ग्रह क्षुधित होता है।

घ) तृषित - जल राशि (कर्क, वृश्चिक, मीन) में शत्रु से दृष्ट, परन्तु शुभ ग्रह से दृष्ट न हो तो ग्रह तृषित कहलाता है।

ड़ ) मुदित - मित्र के घर में, मित्र से युक्त, अथवा दृष्ट अथवा गुरु से युक्त ग्रह मुदित कहलाता है।

च) क्षोभित - सूर्य से युक्त, पाप या शत्रु से दृष्ट ग्रह क्षोभित कहलाता है।

फल -

क) जिस भाव में क्षुधित या क्षोभित ग्रह हों उस भाव की हानि करते हैं।

ख) गर्वित या मुदित ग्रह भाव की वृद्धि करते हैं।

ग) यदि कर्म स्थान में क्षोभित, क्षुधित, तृषित अथवा लज्जित ग्रह हों तो जातक दरिद्र तथा दुःखी होता है।

घ) पंचम स्थान में लज्जित ग्रह संतान नष्ट करता है।

ड़) सप्तम स्थान में क्षोभित, क्षुधित अथवा तृषित ग्रह पत्नी का नाश करता है।

कुल मिला कर गर्वित व मुदित ग्रह एक प्रकार से सुख देते हैं, जबकि लज्जित, क्षुधित, तृषित एवं क्षोभित ग्रह कष्ट देने वाले होते हैं।

५. सूर्य से दूरी के अनुसार अवस्था

क) अस्तंगत - सूर्य से युक्त ग्रह (राहु केतु को छोड़कर) अस्त कहलाते हैं। चंद्रमा सूर्य से १२°, मंगल १०°, वक्री बुध १२°, मार्गी बुध १४°, गुरु ११°,  वक्री शुक्र ८°, मार्गी शुक्र १०° तथा शनि १५° की दूरी तक सूर्य की प्रखर किरणों के कारण अस्तंगत होते हैं। ऐसे ग्रहों को मुषित कहते हैं।

ख ) उदयी - सूर्य से उपरोक्त अंशों से अधिक दूर हो जाने पर ग्रह उदय हो जाते हैं।

पूर्वोदयी -  जो ग्रह सूर्य से धीमा हो तथा सूर्य से अंशों में कम हो उसका उदय पूर्व में होता है।

पश्चिमोदयी - जो ग्रह सूर्य की अपेक्षा तीव्र हों तथा सूर्य से अधिक अंशों पर हो, उसका उदय पश्चिम से होता है।

पूर्वास्त - जो ग्रह सूर्य की अपेक्षा तीव्र हों और सूर्य से कम अंशों में हों, उसका अस्त पूर्व में होता है।

पश्चिमास्त - जो ग्रह सूर्य की अपेक्षा धीमा हो और सूर्य से अधिक अंशों में हों, उस ग्रह का अस्त पश्चिम में होता है।

६. गति के अनुसार अवस्था -

क) सूर्य तथा चंद्रमा सदैव मार्गी रहते हैं। मेष से वृषभ, मिथुन आदि के क्रम में चलने वाले।

ख) राहु और केतु सदैव वक्री रहते हैं। मिथुन से वृषभ आदि के क्रम में चलने वाले।

ग) शेष ग्रह मंगल, बुध, गुरु व शनि सामान्यतः मार्गी होते हैं पर बीच-बीच में वक्री भी हो जाते हैं।

घ) इन ग्रहों की गति  मार्गी से वक्री तथा मार्गी से वक्री होते समय अति मंद हो जाती है।

ड़) यह ग्रह वक्री होने के कुछ दिन पहले व कुछ दिन बाद तक स्थिर दिखाई पड़ते हैं।

वास्तव में कोई ग्रह वक्री या स्थिर नहीं होता  है। पृथ्वी तथा उस ग्रह की पारस्परिक गतियां तथा सूर्य के संदर्भ में उस ग्रह की सापेक्ष स्थिति के सम्मिलित प्रभाव में ऐसा लगता है मानो कोई ग्रह ठहर गया हो या उल्टा चलने लग गया हो।

७, सूर्य से भावों की दूरी के अनुसार अवस्था -

क ) सूर्य से दूसरे स्थान पर ग्रहों की गति तीव्र हो जाती है।

ख ) सूर्य से तीसरे स्थान पर सम तथा चौथे स्थान पर गति मंद हो जाती है।

ग)  सूर्य से पांचवे व छठे स्थान पर ग्रह वक्री हो जाता है।

घ)  सूर्य से सातवें व आठवें स्थान पर ग्रह अतिवक्री हो जाता है।

ड़ ) सूर्य से नवें व दसवें स्थान पर ग्रह मार्गी हो जाता है।

च)  सूर्य से ग्यारहवें व बारहवें स्थान पर ग्रह पुनः तीव्र हो जाता है।

क्रूर ग्रह वक्री  होने पर अधिक क्रूर फल देते हैं, परन्तु सौम्य ग्रह वक्री होने पर अति शुभ फल देते हैं।

शनिवार, 23 दिसंबर 2017

विदेश यात्रा योग

कुण्डली में 3,7,8,9 आैर 12वाँ भाव विदेश यात्रा को दर्शाता है, 8 वाँ भाव मुख्य रूप से देश से बाहर कराने का काम करता है क्योकि यह 12वें से 9वाँ भाव होता है 12वाँ भाव वातावरण मे पूर्ण परिवर्तन लाता है इसलिए यह विदेश यात्रा या विदेश से सम्बन्धित भाव है शनि और राहु विदेश यात्रा के कारक ग्रह हैं अधिकतर ग्रहों का चर राशियों मे होना भी विदेश यात्रा के संकेत होते हैं, --------यदि :
1. चंद्रमा पीडित हो
2. सूर्य लग्न में
3. बुध 8वें भाव में
4. शनि 12वें
5. लग्नेश 12वें
6. दशमेश व दशमेश का नवांश दोनों चर राशि में
7. षष्टेष बारहवें भाव में
8. राहु पहले या सातवें या बारहवें भाव में
9. सूर्य गुरू और राहु बारहवें में
10. सप्तमेस नवें भाव मे हो तो विदेश यात्रा के योग बनते हैं
माता के घर से बारवां भाव अर्थात तीसरा भाव, में चन्द्र, मंगल व राहु हो
शरीर भाव से बारहवां भाव में चन्द्र, मंगल व राहु होतो
कर्म भाव या पिता भाव से बारहवां भाव अर्थात नवां भाव में चन्द्र , मंगल व राहु हो
भाग्य भवन से बारहवा भाव अर्थात अष्टम भाव में चन्द्र , मंगल व राहु होतो विदेश में रहकर धनार्जन योग बनाता है
इन्ही भावों से तीसरा भाव छोटी यात्रा, होती है विदेश रहना नही होता
राहु बारहवे भाव में तो निश्चित ही विदेश योग बनाएगा ही
अगर जातक कुंडली में यह योग न हो पत्नी की या बालक की कुंडली में यह योग होतो उनके वजह से विदेश जाना पड़ता है
कर्क जल तत्व अवंम तुला वायु तत्व राशि चंद्र और शुक्र जलतत्व के ग्रह हैं कर्क या तुला राशि शुक्र या चंद्र जब व्ययभाव से जुड़े हो तब जातक के लिए परदेश यात्रा की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है लग्नेश व्यय भाव में हो या व्ययेश लग्न में तब भी विदेश में बसना होता हैलग्नेश व् पराक्रमेश युति में हो या दोनों परिवर्तन में हो तब विदेश यात्रा निचित होती है
राहु और शनि वायुतत्व के ग्रह है इनका विदेश के साथ सबंध है ये ग्रह जब 12 भाव से सबंध बनाते है तब जातक को विदेश जाने की इच्छा पैदा होती है
विदेश यात्रा के लिए 3।7।8।9।12 ये भाव महत्व पूर्ण है
3 भाव से छोटी यात्रा
7 भाव से व्यवसाय व् नोकरी के लिए
4 भाव विदेश यात्रा के लिए इन डायरेक्ट रोल अदा करता है चतुर्थ भाव बलवान होगा तो जातक अपने वतन में ही सूंदर भवन का सुख देगा
चर राशि कर्क उसका स्वामी चंद्रमा अति शीघ्र ग्रह है और जल तत्व पर अधिपत्य है इसीलिए वो अति महत्व पूर्ण रोल अदा करता है बलवान 9 भाव व् बलवान लग्न जातक को विदेश में धन एवम् कीर्ति दिलाते है
और ऐसे ग्रह खिलाडी गायक में ज्यादा देखने मिलता है भाग्येश व्ययेश का सबंध परदेश से धन प्राप्ति बलवान चतुर्थेश की असर जब व्ययभाव पर होती है तब जातक अपनी जिंदगी का ज्यादातर समय परदेश में व्यतीत करता है
कर्क वृचिक मीन जल तत्व की राशि है
विदेश यात्रा के लिए समुद्रपार जाना ही पड़ता है इसीलिए विदेश यात्रा में जलतत्व की राशियो का बहुत महत्व है
लग्न व् लग्नेश चतुर्थ भाव व् चतुर्थेश के बिच शुभ सबंध विदेश से धन व् कीर्ति तो दिलाते है किन्तु स्थाई रूप से बसना तो तो वतन में ही होता है
राहु 12 भाव मे हो तो विदेश यात्रा का योग बनाता है
लगनेश 12 वे भाव मे केतु के साथ हो तो भी महादशा व अन्तरदशा मे विदेश का योग बनता है
जन्म कुंडली में यदि उच्च के सूर्य की दशा चल रही हो तब व्यक्ति के विदेश जाने के योग बनते हैं
यदि उच्च के चंद्रमा या उच्च के ही मंगल की भी दशा चल रही हो तब भी व्यक्ति विदेश यात्रा करता है
उच्च के बृहस्पति की दशा में भी व्यक्ति की विदेश यात्रा होती है
यदि मंगल बली होकर लग्न में स्थित है या सूर्य से संबंधित है तब मंगल की दशा में भी विदेश यात्रा होने की संभावना बनती है
कुंडली में यदि नीच के बुध की दशा चल रही है तब भी विदेश यात्रा हो सकती है
बृहस्पति की दशा चल रही हो और वह सातवें या बारहवें भाव में चर राशि में स्थित हो
शुक्र की दशा चल रही हो और वह एक पाप ग्रह के साथ सप्तम भाव में स्थित हो
शनि की दशा चल रही हो और शनि बारहवें भाव में या उच्च नवांश में स्थित हो
राहु की दशा कुंडली में चल रही हो और राहु कुंडली में तीसरे, सातवें, नवम या दशम भाव में स्थित हो
जन्म कुंडली में सूर्य की महादशा में केतु की अन्तर्दशा चल रही हो तब भी विदेश जाने की संभावना बनती है
यदि केतु की महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा चल रही हो और कुंडली में सूर्य, केतु से छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो
केतु की महादशा में चंद्रमा की अन्तर्दशा चल रही हो और केतु से चंद्रमा केन्द्र/त्रिकोण या ग्यारहवें भाव में स्थित हो
कुंडली में शुक्र की महादशा में बृहस्पति की अन्तर्दशा चल रही हो तब भी विदेश यात्रा की संभावना बनती है
कुंडली में राहु की महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा चल रही हो और राहु से सूर्य केन्द्र/त्रिकोण या ग्यारहवें भाव का स्वामी हो
शनि की महादशा में बृहस्पति की अन्तर्दशा चल रही हो और शनि से बृहस्पति केन्द्र/त्रिकोण या दूसरे या ग्यारहवें भाव का स्वामी हो
बुध की महादशा में शनि की अन्तर्दशा चल रही हो और बुध से शनि छठे, आठवें, या बारहवें भाव में स्थित हो

नोट : - यह फल, मुख्यता लग्न लागू है - यह एक सामान्य फल आपकी रूचि को ध्यान में रखकर पोस्ट किया जता है। प्रत्येक व्यक्ति के लग्न, ग्रह-स्थिति और महा/अन्तरदशा के अनुसार फल अलग-2 होता है

जन्म कुंडली मे मृत्यु योग

1 लग्न की महादशा हो और अन्तर्दशा लग्न के शत्रु ग्रह की हो तो मनुष्य की अकस्मात मृत्यु होती है।

2- छठे स्थान के स्वामी का सम्बन्ध मंगल से हो तो अकस्मात आपरेशन से मृत्यु हो।

3- लग्न से तृतीय स्थान में या कारक ग्रह से तृतीय स्थान में सूर्य हो तो राज्य के कारण मृत्यु हो।

4- यदि शनि चर व चर राशि के नवांश में हो तो दूर देश में मृत्यु हो।

5- अष्टम में स्थिर राशि हो उस राशि का स्वामी स्थिर राशि में हो तो गृह स्थान में जातक की मृत्यु होती है।

6- द्विस्वभाव राशि अष्टम स्थान मं हो तथा उसका स्वामी भी द्विस्वभाव राशिगत हो तो पथ (रास्ते) में मृत्यु हो।

7- तीन ग्रह एक राशि में बैठे हों तो जातक सहस्र पद से युक्त पवित्र स्थान गंगा के समीप मरता है।

8- लग्न से 22 वें द्रेष्काण का स्वामी या अष्टमभाव का स्वामी नवम भाव में चन्द्र हो तो काशीतीर्थ बुध शुक्र हो तो द्वारिका में मृत्यु हो।

9- अष्टम भाव में गुरु चाहे किसी राशि में हो व्यक्ति की मृत्यु बुरी हालत में होती है।

मृत्यु फांसी के द्वारा

1- द्वितीयेश और अष्टमेश राहु व केतु के साथ 6, 8, 12 वें भाव में हो। सारे ग्रह मेष, वृष, मिथुन राशि में हो।

2- चतुर्थ स्थान में शनि हो दशम भाव में क्षीण चन्द्रमा के साथ मंगल शनि बैठे हों

3- अष्टम भाव बुध और शनि स्थित हो तो फांसी से मृत्यु हो।

4- क्षीण चन्द्रमा पाप ग्रह के साथ 9, 5, 11 वे भाव में हो।

5- शनि लग्न में हो और उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तथा सूर्य, राहु क्षीण चन्द्रमा युत हों तो जातक की गोली या छुरे से मृत्यु अथवा हत्या हो।

6- नवमांश लग्न में सप्तमेश राहु, केतु से युत 6, 8, 12 वें भाव मं स्थित हों तो आत्महत्या करता है।

7- चैथे व दसवें या त्रिकोण भाव में अशुभ ग्रह हो या अष्टमेश लग्न में मंगल से युत हो तो फांसी से मृत्यु होती है

8- क्षीण चन्द्रमा पाप ग्रह के साथ पंचम या एकादश स्थान में हो तो सूली से मृत्यु होती है।

दुर्घटना से मृत्यु योग

1- चतुर्थेश, षष्ठेश व अष्टमेश से सम्बन्ध हो तो मृत्यु वाहन दुर्घटना मं हो।

2- यदि अष्टम भाव में चन्द्र, मंगल, शनि हो तो मृत्यु हथियार द्वारा हो।

3- चन्द्र सूर्य मंगल शनि 8, 5 तथा 9 में हो तो मृत्यु ऊँचाई से गिरने समुद्र, तूफान या वज्रपात से हो।

4- अष्टमेश तथा अष्टम, षष्ठ तथा षष्ठेश और मंगल का इन सबसे सम्बन्ध हो तो मृत्यु शत्रु द्वारा होती है।

5- अष्टमेश एवं द्वादशेश में भाव परिवर्तन हो, इन पर मंगल की दृष्टि हो तो अकाल मौत हो। जन्म विषघटिका में होने से विष, अग्नि क्रूरजीव से मृत्यु हो।

6- जन्म लग्न से दशम भाव में सूर्य चतुर्थ भाव में मंगल हो तो मृत्यु वाहन दुर्घटना तथा सवारी से गिरने से होती है।

7- मंगल और सूर्य सप्तम भाव में, शनि अष्टम भाव में क्षीण चन्द्र के साथ हो तो पक्षी के कारण दुर्घटना में मृत्यु हो।

8- सूर्य, मंगल, केतु की यति हो जिस पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो अग्नि दुर्घटना में मृत्यु हो। चन्द्र मेष$ वृश्चिक राशि में हो तो पाप ग्रह की दृष्टि से अग्नि अस्त्र से मृत्यु हो।

9- द्विस्वभाव राशि लग्न में सूर्य+चन्द्र हो तो जातक की मृत्यु जल में डूबने से हो।

10- लग्नेश और अष्टमेश कमजोर हो, मंगल षष्ठेश से युत हो तो मृत्यु युद्ध में हो। द्वादश भाव में मंगल अष्टम भाव में शनि से हथियार द्वारा हत्या हो।

11- यदि नंवाश लग्न में सप्तमेश शनि युत हो 6, 8, 12 में हो जहर खाने से मृत्यु हो ।

12- चन्द्र मंगल अष्टमस्थ हो तो सर्पदंश से मृत्यु होती है। 13- लग्नेश अष्टमेश और सप्तमेश साथ बैठे हों तो जातक स्त्री के साथ मरता है।

आत्म हत्या से मृत्यु योग

1- लग्न व सप्तम भाव में नीच ग्रह हों
2- लग्नेश व अष्टमेश का सम्बन्ध व्ययेश से हो।
3- अष्टमेश जल तत्व हो तो जल में डूबने से, अग्नि तत्व हो तो जलकर, वायु तत्व हो तो तूफान व बज्रपात से अपघात हो ।
4- कर्क राशि का मंगल अष्टम भाव में पानी में डूबकर आत्मघात कराता है
5- यदि अष्टम भाव में एक या अधिक अशुभ ग्रह हो तो जातक हत्या, अपघात, दुर्घटना, बीमारी से मरता है।

ग्रहों के अनुसार स्त्री पुरूष के आकस्मिक मृत्यु योग

1- चतुर्थ भाव में सूर्य और मंगल स्थित हों, शनि दशम भाव मं स्थित हो तो शूल से मृत्यु तुल्य कष्ट तथा अपेंडिक्स रोग से मौत हो सकती है।

2- द्वितीय स्थान में शनि, चतुर्थ स्थान में चन्द्र, दशम स्थान में मंगल हो तो घाव में सेप्टिक से मृत्यु होती है।

3- दशम स्थान में सूर्य और चतुर्थ स्थान में मंगल स्थित हो तो कार, बस, वाहन या पत्थर लगने से मृत्यु तुल्य कष्ट होता है।

4- शनि कर्क और चन्द्रमा मकर राशिगत हो तो जल से अथवा जलोदर से मृत्यु हो।

5- शनि चतुर्थस्थ, चन्द्रमा सप्तमस्थ और मंगल दशमस्थ हो तो कुएं में गिरने से मृत्यु होती है

6- क्षीण चन्द्रमा अष्टम स्थान में हो उसके साथ मं$रा$शनि हो तो पिशाचादि दोष से मृत्यु हो।

7- जातक का जन्म विष घटिका में होने से उसकी मृत्यु विष, अग्नि तथा क्रूर जीव से होती है।

8- द्वितीय में शनि, चतुर्थ में चन्द्र और दशम में मंगल हो तो मुख मं कृमिरोग से मृत्यु होती है।

9- शुभ ग्रह दशम, चतुर्थ, अष्टम, लग्न में हो और पाप ग्रह से दृष्ट हो तो बर्छी की मार से मृत्यु हो।

10- यदि मंगल नवमस्थ और शनि, सूर्य राहु एकत्र हो, शुभ ग्रह दृष्ट न हो तो बाण से मृत्यु हो

11- अष्टम भाव में चन्द्र के साथ मंगल, शनि, राहु हो तो मृत्यु मिर्गी से हो।

12- नवम भाव में बुध शुक्र हो तो हृदय रोग से मृत्यु होती है।

13- अष्टम शुक्र अशुभ ग्रह से दृष्ट हो तो मृत्यु गठिया या मधुमेह से होती है

14- स्त्री की जन्म कुण्डली सूर्य, चन्द्रमा मेष राशि या वृश्चिक राशिगत होकर पापी ग्रहों के बीच हो तो महिला शस्त्र व अग्नि से अकाल मृत्यु को प्राप्त होती है।

15- स्त्री की जन्म कुण्डली में सूर्य एवं चन्द्रमा लग्न से तृतीय, षष्ठम, नवम, द्वादश भाव में स्थित हो तो तथा पाप ग्रहों की युति व दृष्टि हो तो महिला फंासी लगाकर या जल में कूद कर आत्म हत्या करती है।

16- द्वितीय भाव में राहु, सप्तम भाव में मंगल हो तो महिला की विषाक्त भोजन से मृत्यु हो

17- सूर्य एवं मंगल चतुर्थ भाव अथवा दशम भाव में स्थित हो तो स्त्री पहाड़ से गिर कर मृत्यु को प्राप्त होती है।

18- दशमेश शनि की व्ययेश एवं सप्तमेश मंगल पर पूर्ण दृष्टि से महिला की डिप्रेशन से मृत्यु हो।

19- पंचमेश नीच राशिगत होकर शत्रु ग्रह शुक्र एवं शनि से दृष्ट हो तो प्रसव के समय मृत्यु हो ।

20- महिला की जन्मकुण्डली में मंगल द्वितीय भाव में हो, चन्द्रमा सप्तम भाव में हो, शनि चतुर्थ भाव में हो तो स्त्री कुएं, बाबड़ी, तालाब में कूद कर मृत्यु को प्राप्त होती है।

लग्नेश के नवांश से मृत्यु, रोग अनुमान

1- मेष नवांश हो तो ज्वर, ताप जठराग्नि तथा पित्तदोष से मृत्यु हो
2- वृष नवांश हो तो दमा, शूल त्रिदोषादि, ऐपेंडिसाइटिस से मृत्यु हो।
3- मिथुन नवांश हो तो सिर वेदना,
4- कर्क नवांश वात रोग व उन्माद से मृत्यु हो।
5- सिंह नवांश हो तो विस्फोटकादि, घाव, विष, शस्त्राघात और ज्वर से मृत्यु।
6- कन्या नवांश हो तो गुह्य रोग, जठराग्नि विकार से मृत्यु हो।
7- तुला नवांश में शोक, बुद्धि दोष, चतुष्पद के आघात से मृत्यु हो।
8- वृश्चिक नवांश में पत्थर अथवा शस्त्र चोट, पाण्डु ग्रहणी वेग से।
9- धनु नवांश में गठिया, विष शस्त्राघात से मृत्यु हो।
10- मकर नवांश में व्याघ्र, शेर, पशुओं से घात, शूल, अरुचि रोग से मृत्यु।
11- कुंभ नवांश में स्त्री से विष पान श्वांस तथा ज्वर से मृत्यु हो।
12- मीन नवांश में जल से तथा संग्रहणी रोग से मृत्यु हो।

गुलिक से मृत्युकारी रोग अनुमान

1- गुलिक नवांश से सप्तम शुभग्रह हो तो मृत्यु सुखकारी होगी।
2- गुलिक नवांश से सप्तम स्थान में मंगल हो तो जातक की युद्ध लड़ाई में मृत्यु होगी।
3- गुलिक नवांश से सप्तम स्थान में शनि हो तो मृत्यु चोर, दानव, सर्पदंश से होगी।
4- गुलिक नवांश से सप्तम स्थान में सूर्य हो तो राजकीय तथा जलजीवांे से मृत्यु।

अरिष्ट महादशा व दशान्तर में मृत्यु

1- अष्टमेश भाव 6, 8, 12 मं हो तो अष्टमेश की दशा-अन्तर्दशा में और दशमेश के बाद के ग्रह अन्तर्दशा में मृत्यु होती है।
2- कर्क, वृश्चिक, मीन के अन्तिम भाग ऋक्ष संधि कहलाते हैं। ऋक्ष सन्धि ग्रह की दशा मृत्युकारी होती है।
3- जिस महादशा में जन्म हो महादशा से तीसरा, पांचवां, सातवें भाव की महादशा यदि नीच, अस्त, तथा शत्रु ग्रह की हो तो मृत्यु होती है।
4- द्वादशेश की महादशा में द्वितीयेश का अन्तर आता है अथवा द्वितीयेश दशा में द्वादश अन्तर में अनिष्टकारी मृत्यु तुल्य होता है।
5- छिद्र ग्रह सात होते हैं

1. अष्टमेश,
2. अष्टमस्थ ग्रह,
3. अष्टमदर्शी ग्रह,
4. लग्न से 22 वां द्रेष्काण अर्थात अष्टम स्थान का द्रेष्काण जिसे रवर कहते हैं उस द्रेष्काण स्वामी,
5. अष्टमेश के साथ वाला ग्रह,
6. चन्द्र नवांश से 64 वां नवांशपति,
7. अष्टमेश का अतिशत्रु ग्रह।

इन सात में से सबसे बली ग्रह की महादशा कष्टदायक व मृत्युकारी होगी।

1. आकस्मिक मृत्यु के बचाव के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। जप रुद्राक्ष माला से पूर्वी मुख होकर करें।

2. वाहन चलाते समय मादक वस्तुओं का सेवन न करें तथा अभक्ष्य वस्तुओं का सेवन न करें अन्यथा पिशाची बाधा हावी होगी वैदिक गायत्री मंत्र कैसेट चालू रखें।

3. गोचर कनिष्ठ ग्रहों की दशा में वाहन तेजी से न चलायें।

4. मंगल का वाहन दुर्घटना यंत्र वाहन में लगायें, उसकी विधिवत पूजा करें।

5. नवग्रह यंत्र का विधिविधान पूर्वक प्रतिष्ठा कर देव स्थान में पूजा करें।

6. सूर्य कलाक्षीण हो तो आदित्य हृदय स्तोत्र, चन्द्र की कला क्षीण हो तो चन्द्रशेखर स्तोत्र, मंगल की कला क्षीण हो तो हनुमान स्तोत्र, शनि कला क्षीण हो तो दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ करें। राहु की कला क्षीण हो तो भैरवाष्टक व गणेश स्तोत्र का पाठ करें।

गणित पद्धति से अरिष्ट दिन मृत्यु समय के लग्न, अरिष्ट मास का ज्ञान अरिष्ट मास:

1- लग्न स्फूट और मांदी स्फुट को जोड़कर जो राशि एवं नवांश हो उस राशि के उसी नवांश पर जब गोचर में सूर्य आता है तब जातक की मृत्यु होती है।
2- लग्नेश के साथ जितने ग्रह हां उन ग्रहों की महादशा वर्ष जोड़कर 12 का भाग दें। जो शेष बचे उसी संख्यानुसार सौर मास में अरिष्ट होगा।

अरिष्ट दिन:

1- मांदी स्फुट और चन्द्र स्फुट को जोड़कर 18 से गुणन करें उसमें शनि स्फुट को जोड़कर 9 से गुणन कर जोड़ दें। जब गोचर चन्द्र उस राशि के नवांश में जाता है तो उस दिन अरिष्ट दिन होगा।

मृत्यु समय लग्न का ज्ञान:

2- लग्न स्फुट मांदी स्फुट और चन्द्र स्फुट को जोड़ देने से जो राशि आये उसी राशि के उदय होने पर जातक की मृत्यु होती है।

भाग्योदय के ज्योतिषीय योग

हर जातक के मन में भविष्य के गर्त में क्या छुपा है यह जानने की जिज्ञासा सदैव बनी रहती है बालक के जन्म होते ही उसके माता पिता, परिजन ज्योतिषी के पास जाकर एक ही प्रश्न के करते हैं कि यह बालक भाग्यशाली है कि नहीं

कुंडली के भाग्यशाली योग

1 नवमेश नवम में स्थित हो तो जातक भाग्यशाली होता है

2- नवमेश केन्द्र, त्रिकोण या लाभ स्थान में उच्च राशि या मित्र राशि का हो तो जातक भाग्यशाली होता है

3- धनेश लाभ भाव में स्थित हो और दशमेश से युक्त या दृष्ट हो तो जातक भाग्यशाली होता है

4- भाग्येश  और पंचमेश का परिवर्तन योग हो एवं दशमेश दशम में हो तो जातक भाग्यवान होता है।

5- लाभेश नवम भाव में , धनेश लाभ भाव मे , नवमेश धन भाव में हो एवं दशमेश से युत हो तो जातक भाग्यशाली होता है

6- तृतीयेश के साथ स्थित नवमेश पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तथा धनेश बलवान हो तो व्यक्ति भाग्यशाली होता है

7- नवम भाव में शुक्र गुरु से युत, भाग्येश गुरु, शुक्र से युत तथा लग्नेश और धनेश पंचम भाव में स्थित हों अथवा नवम भाव में हों नवमेश लग्न में स्थित हो तो जातक भाग्यशाली होता है

8- भाग्येश चतुर्थेश के साथ हो तथा शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो जातक भाग्यशाली होता है

9- त्रिकोणेश शुक्र हो और उस पर शुभ ग्रहों या लग्नेश की दृष्टि हो तो जातक भाग्यवान होता है

10-लग्न में चन्द्रमा और शुक्र हो तथा दोनों बलवान हों तो जातक भाग्यवान होता है
     
भाग्योदय वर्ष ज्ञान

भाग्येश सूर्य हो तो 22 वें वर्ष में भाग्योदय होता है

भाग्येश चन्द्र हो तो 24 वें वर्ष में भाग्योदय होता है

भाग्येश मंगल हो तो 22वें वर्ष में भाग्योदय
होता है

भाग्येश बुध हो तो 32वें वर्ष में भाग्योदय
होता है

भाग्येश गुरु हो तो 16वें वर्ष में भाग्योदय होता है

भाग्येश शुक्र हो तो 25वें वर्ष में भाग्योदय
होता है

भाग्येश शनि हो तो 36वें वर्ष में भाग्योदय होता है

भाग्येश राहु अथवा केतु हो तो 42वें वर्ष में भाग्योदय होता है होता है

बुधवार, 13 दिसंबर 2017

जन्म कुंडली से जानिऐ आपके इष्ट देव कौन है ?

इष्टबल से आत्मवल बढ़ता है और आत्मबल किसी भी शक्ती को प्राप्त किया जा सकता है।

आपकी  कुंडली मैं पंचम भाव का स्वामी ग्रह (पंचमेश ) आपके इष्ट देव है ! चाहे लाख दोष हो आपकी कुंडली मैं ..अच्छा फल नहीं दे रहे हो ....तो  इष्टदेव की आराधना , उपासना , वंदना, पूजा करने से बहुत से परेशानी से मुक्ति मिलेगी।

 मेष लग्न = ( सूर्य देवता, गायत्री देवी आपके इष्ट है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी )

 वृषभ लग्न = ( बुध देवता, गणेश जी आपके इष्ट है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी )

मिथुन लग्न = ( शुक्र देवता , माँ दुर्गा आपके इष्ट है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी )

 कर्क लग्न = ( मंगल देवता , हनुमान जी आपके इष्ट देव है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी )

सिंह लग्न = ( देव गुरु बृहस्पति, विष्णु जी आपके इष्ट देव है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी )

कन्या लग्न = (शनि देवता, शिव जी आपके इष्ट देव है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी )

तुला लग्न = शनि देवता, शिव जी आपके इष्ट देव है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी )

 वृश्चिक लग्न= ( देव गुरु बृहस्पति, विष्णु जी आपके इष्ट देव है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी )

 धनु लग्न = ( मंगल देवता, हनुमान जी आपके इष्ट देव है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी )

मकर लग्न = ( शुक्र देवता , माँ दुर्गा आपके इष्ट है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी )

कुम्भ लग्न = ( बुध देवता, गणेश जी आपके इष्ट है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी )

 मीन लग्न = (चंद्र देवता, शिव जी आपके इष्ट देव है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगी )

इस तरह अपने सही इष्ट को पहचान कर उसकी नित्य आराधना करने वाले को... आरोग्य, सौभाग्य, सम्मान, इष्टवल, एवं योग्यताकी प्राप्ती होती है।

शनिवार, 9 दिसंबर 2017

भोग्य दशा निकालना

अब हम आपको विंशोत्तरी दशा के माध्यम से भोग्य दशा निकालनी बता रहे हैं। सबसे पहले हमे जन्म नक्षञ के घटी पल व गत नक्षञ के घटी पल पंचाँग जान लें।

हस्त जन्म नक्षञ 19-5 घटी पल, गत नक्षञ उत्तरा फाल्गुनी 25-8 60 में से गत नक्षञ घटा कर जन्म नक्षञ जोङने से भभोग, इष्टकाल जोङने से भयात् होता हैं।

                60 - 00
                25 - 08                गत नक्षञ घटाया
                ---------------------
                34 - 52
                12 - 10 - 23        शेष में इष्टकाल जोङा
                ---------------------
                47 - 02 - 23
                60                         60 से गुणा करके घटी को पल बनाये
                ---------------------
                2820 + 2 = 2822
                ---------------------
               2822 * 10 = 28220

पलो को चन्द्रमा की दशा 10 से गुणा किया जो भयात बना       60 - 00
                25 - 08                गत नक्षञ घटाया
                ---------------------
                34 - 52
                19 - 05               जन्म नक्षञ हस्त जोङा
                ---------------------
                54 - 57
                60                         60 से गुणा करके घटी को पल बनाये
                ---------------------
                3240 + 57 = 3297        ये भभोग बना

अब भयात 28220 में भभोग 3297 का भाग देना हैं उसमें वर्ष, शेष को 12 से गुणा करके महीना, फिर शेष को 30 से गुना करके दिन निकाला जाता हैं। अब निकला 8 वर्ष, 7 महीना, 1 दिन ये भुक्त हुआ इसको चन्द्रमा की दशा 10 वर्ष से घटाने पर 1 वर्ष , 4 महीना 29 दिन भोग्य समय हुआ।

1 - 4 - 29 दिन को जन्म तिथि 10 मार्च 2012 सन् मे जोङा तब आया 9 -8 -2013 सन् तक चन्द्रमा की दशा चलेगी। इसमें मंगल की 7 वर्ष जोङने पर मंगल की दशा 9-8-2020 तक चलेगी। इसी तरह दशायें जोङते चलें।

विंशोत्तरी दशा की गणना

विंशोत्तरी दशा गणना एवं इसका आप प्रभाव
वैदिक ज्योतिष के ग्रंन्थों में अनेक दशाओं का वर्णन किया गया हैं परन्तु सरल, लोकप्रिय, सटीक एवं सर्वग्राह्य विंशोत्तरी दशा ही है. कृ्ष्णमूर्ति पद्धति में भी इसी दशा का प्रयोग किया जाता है.सूर्य आत्मा का, चन्द्रमा मन का, मंगल बल का, बुध बुद्धि का, गुरु जीव का, शुक्र स्त्री का और शनि आयु का कारक है. फलादेश देश, काल और परिस्थिति को ध्यान में रखकर करना चाहिए फलादेश में परिस्थिति का ध्यान रखना आवश्यक है. जब एक यात्री जंगल से, रेगिस्तान से, नदी से और शहरों की सड़कों एवं गलियों से गुजरता है तो तरह-तरह के मनोभावों का अनुभव करता है. उसी प्रकार हम जन्म से मृ्त्यु तक ग्रहों के प्रभाव से विभिन्न प्रकार की सुखद एवं दु:खद घटनाओं से प्रभावित होते है.

ग्रह उच्च राशि में हो तो नाम, यश प्राप्त होता है तथा ग्रहों के अशुभ होने पर कष्ट प्राप्त होता है. जन्म नक्षत्र से दशा स्वामी किस नक्षत्र में है ये देखना आवश्यक है. यदि वह क्षेम, सम्पत्त, मित्र या अतिमित्र तारें में है तो शुभ फल प्राप्त होते है.

विंशोत्तरी दशा की गणना

जन्म के समय कितनी दशा शेष है इसकी गणना चन्द्र स्पष्टीकरण से की जाती है माना जन्म समय चन्द्र मेष राशि में 10 डिग्री 15 मिनट का है. मेष राशि में अश्विनी नक्षत्र 0 से 13 डिग्री 20 मिनट तक रहता है. अर्थात चन्द्र अश्विनी नक्षत्र के 10 डिग्री 15 मिनट तक भोग चुका है. शेष 3 डिग्री 5 मिनट भोगना बचा है. अश्विनी नक्षत्र का स्वामी केतु है जिसकी दशा 7 वर्ष की है. अत: दशा वर्ष शेष = 3 डिग्री 5 मिनट = 185 मिनट ना में घटी पल का उपयोग नहीं किया गया है. डिग्री मिनट का उपयोग आधुनिक व सरल है. हमने 13 डिग्री 20 मिनट को मिनटों में बदल दिया तो हमें 800 मिनट मिलते है.

महादशा के वर्ष

सूर्य = 6 वर्ष

चन्द्र = 10 वर्ष

मंगल = 7 वर्ष

बुध = 17 वर्ष

गुरु = 16 वर्ष

शुक्र = 20 वर्ष

शनि = 19 वर्ष

राहु = 18 वर्ष

केतु = 7 वर्ष


अन्तर दशा की गणना

माना शुक्र में शुक्र का अन्तर निकालना है तो महादशा वर्ष x महादशा वर्ष करें. इकाई का तीन गुना दिन होगा शेष माह होगें. जैसे 20 x 20 = 400, 0 दिन = 40 माह अर्थात 3 वर्ष 4 माह का अन्तर होगा. शुक्र में सूर्य का अन्तर भी इसी प्रकार होगा 20 x 6 = 120 दिन = 12 माह = 1 वर्ष

शुक्र में चन्द्र का अन्तर = 20 x 10 = 200 दिन = 20 माह = 1 वर्ष 8 माह

शुक्र में मंगल का अन्तर = 20 x 7 = 140 दिन = 14 माह = 1 वर्ष 2 माह

शुक्र में राहु का अन्तर = 20 x 18 = 360 दिन = 36 माह = 3 वर्ष

शुक्र में गुरु का अन्तर = 20 x 16 = 320 दिन = 32 माह = 2 वर्ष 8 माह

शुक्र में शनि का अन्तर = 20 x 19 = 380 दिन = 38 माह = 3 वर्ष 2 माह

शुक्र में बुध क अन्तर = 20 x 17 = 340 दिन = 34 माह = 2 वर्ष 10 माह

शुक्र में केतु का अन्तर = 20 x 7 = 140 दिन = 14 माह = 1 वर्ष 2 माह


प्रत्यन्तर दशा की गणना

यह तृ्त्तीय स्तर की गणना है. जिस प्रकार 120 वर्ष में समान अनुपात में गणना की जाती है, उसी प्रकार अन्य स्तर की भी गणना की जाती है. शुक्र में शुक्र का अन्तर 3 वर्ष 4 माह अर्थात 40 माह है. 120 वर्ष में 20 वर्ष शुक्र के हैं अत: 1 वर्ष में 20 / 120 = 1/ 6 अत: 40 माह में = 40 x 1/ 6 = 6 माह 20 दिन

मंगलवार, 5 दिसंबर 2017

शनिदेव को प्रसन्न कंरने के बिलकुल सरल और उत्तम उपाय

हिन्दू धर्म परंपराओं में दण्डाधिकारी माने गए शनिदेव का चरित्र भी असल में, कर्म और सत्य को जीवन में अपनाने की ही प्रेरणा देता है। अगर आप शनिदेव को प्रसन्न कंरना चाहते हैं तो कुछ बिलकुल सरल और उतम उपाय हैं ! शनिवार का व्रत और शनिदेव पूजन किसी भी शनिवार के दिन शुरू कर सकते हैं। इस व्रत का पालन करने वाले को शनिवार के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके शनिदेव की पूजा करनी चाहिए । शुभ संकल्पों को अपनाने के लिए ही शनिवार को शनि पूजा व उपासना बहुत ही शुभ मानी गई है। यह दु:ख, कलह, असफलता से दूर रख सौभाग्य, सफलता व सुख लाती है। किसी भी तरह के शनि दोष से इस तरह आपको मुक्ति मिल सकती है, जानिए शनि देव को प्रसन्न करने के उपाय:-

 *अगर आप शनि को प्रसन्न करना चाहते हैं तो शुक्रवार की रात काला चना पानी में भिगोएं। शनिवार को वह काला चना, जला हुआ कोयला, हल्दी और लोहे का एक टुकड़ा लें और एक काले कपड़े में उन्हें एक साथ बांध लें। पोटली को बहते हुए पानी में फेंके जिसमें मछलियां हों। इसे प्रक्रिया को एक साल तक हर शनिवार दोहराएं। यह शनि के अशुभ प्रभाव के कारण उत्पन्न हुई बाधाओं को समाप्त कर देगा।*

 *इस तरीके से भी आप शनि देव को प्रसन्न रख सकते हैं, घोड़े की नाल शनिवार को किसी लोहार के यहां से इसे अंगूठी की तरह बनवा लें। शुक्रवार की रात इसे कच्चे दूध या साफ पानी में डूबा कर रख दें। शनिवार की सुबह उस अंगूठी को अपने बाएं हाथ की मध्यमा में पहन लें। यह आपको तत्काल परिणाम देगा।*

 *शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष के चारों ओर सात बार कच्चा सूत लपेटें इस दौरान शनि मंत्र का जाप करते रहना चाहिए, यह आपकी साढ़ेसाती की सभी परेशानियों को दूर ले जाता है। धागा लपेटने के बाद पीपल के पेड़ की पूजा और दीपक जलाना अनिवार्य है। साढ़ेसाती के प्रकोप से बचने के लिए इस दिन उपवास रखने वाले व्यक्ति को दिन में एक बार नमक विहीन भोजन करना चाहिए।*

*शनिदेव को आप काले रंग की गाय की पूजा करके भी प्रसन्न कर सकते हैं। इसके लिए आपके गाय के माथे पर तिलक लगाने के बाद सींग में पवित्र धागा बांधना होगा और फिर धूप दिखानी होगी। गाय की आरती जरूर की जानी चाहिए। अंत में गाय की परिक्रमा करने के बाद उसको चार बूंदी के लड़्डू भी खिलाएं। यह शनिदेव की साढ़ेसाती के सभी प्रतिकूल प्रभावों को रोकता है।*

*शनि देव को सरसों का तेल बहुत ही पसंद है। शनि को खुश करने के लिए शनिवार को पीपल के पेड़ की पूजा करनी चाहिए और उस पर सरसों का तेल चढ़ाना चाहिए। माना जाता है कि सूर्योदय से पूर्व पीपल की पूजा करने पर शनि देव अत्यधिक प्रसन्न होते हैं।*

*शनिवार की शाम पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए, इसके बाद पेड़ के सात चक्कर लगाने चाहिए। इस पूजा के बाद किसी काले कुत्ते को 7 लड्डू खिलाने से शनि भगवान प्रसन्न होते हैं और सकारात्मक परिणाम देते हैं।*

 *शनिवार के दिन आप अपने हाथ की लंबाई का 19 गुणा लंबा एक काला धागा लें उसे एक माला के रूप में बनाकर अपने गले में धारण करें। यह अच्छा परिणाम देगा और भगवान शनि को आप पर कृपावान बनाएगा

*किसी भी शनिवार आटे (चोकर सहित) दो रोटियां बनाएं। एक रोटी पर सरसों का तेल और मिठाई रखें जबकि दूसरे पर घी। पहली रोटी (तेल और मिठाई वाली) एक काली गाय को खिलाएं उसके बाद दूसरी रोटी (घी वाली) उसी गाय को खिलाएं। अब शनिदेव की प्रार्थना करें और उनसे शांति और समृद्धि की कामना करें।*

 *शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए आपको उगते सूरज के समय लगातार 43 दिनों तक शनिदेव की मूर्ति पर तेल चढ़ाना चाहिए। यह ध्यान में रखें कि शनि देव को प्रसन्न करने की यह विधि शनिवार के दिन ही आरंभ करनी चाहिए।*

 *हर शनिवार बंदरों को गुड़ और काले चने खिलाएं, इसके अलावा केले या मीठी लाई भी खिला सकते हैं। यह भी शनिदेव के अशुभ प्रभाव को समाप्त करने में काफी मददगार होता है।*

 *इसके अलावा भगवान शनिदेव की पूजा करते समय इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें चन्दन लेपना चाहिए-*

भो शनिदेवः चन्दनं दिव्यं गन्धादय सुमनोहरम् |

विलेपन छायात्मजः चन्दनं प्रति गृहयन्ताम् ||

*भगवान शनिदेव की पूजा में इस मंत्र का जाप करते हुए उन्हें अर्घ्य समर्पण करना चाहिए-*

ॐ शनिदेव नमस्तेस्तु गृहाण करूणा कर |

अर्घ्यं च फ़लं सन्युक्तं गन्धमाल्याक्षतै युतम् ||

 *इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान श्री शनिदेव को प्रज्वलीत दीप समर्पण करना चाहिए-*

साज्यं च वर्तिसन्युक्तं वह्निना योजितं मया |

दीपं गृहाण देवेशं त्रेलोक्य तिमिरा पहम्. भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने |

 *इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान शनिदेव को यज्ञोपवित समर्पण करना चाहिए और उनके मस्तक पर काला चन्दन (काजल अथवा यज्ञ भस्म) लगाना चाहिए-*

परमेश्वरः नर्वाभस्तन्तु भिर्युक्तं त्रिगुनं देवता मयम् |

उप वीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः ||

*इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान श्री शनिदेव को पुष्पमाला समर्पण करना चाहिए-*

नील कमल सुगन्धीनि माल्यादीनि वै प्रभो |
मयाहृतानि पुष्पाणि गृहयन्तां पूजनाय भो ||

 *भगवान शनि देव की पूजा करते समय इस मंत्र का जाप करते हुए उन्हें वस्त्र समर्पण करना चाहिए-*

शनिदेवः शीतवातोष्ण संत्राणं लज्जायां रक्षणं परम् |

देवलंकारणम् वस्त्र भत: शान्ति प्रयच्छ में ||

 *शनि देव की पूजा करते समय इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें सरसों के तेल से स्नान कराना चाहिए-*

भो शनिदेवः सरसों तैल वासित स्निगधता |
हेतु तुभ्यं-प्रतिगृहयन्ताम् ||

 *सूर्यदेव पुत्र भगवान श्री शनिदेव की पूजा करते समय इस मंत्र का जाप करते हुए पाद्य जल अर्पण करना चाहिए-*

ॐ सर्वतीर्थ समूदभूतं पाद्यं गन्धदिभिर्युतम् |

अनिष्ट हर्त्ता गृहाणेदं भगवन शनि देवताः ।

 *भगवान शनिदेव की पूजा में इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें आसन समर्पण करना चाहिए-*
ॐ विचित्र रत्न खचित दिव्यास्तरण संयुक्तम् |

स्वर्ण सिंहासन चारू गृहीष्व शनिदेव पूजितः ||

 *इस मंत्र के द्वारा भगवान श्री शनिदेव का आवाहन करना चाहिए-*

नीलाम्बरः शूलधरः किरीटी गृध्रस्थित स्त्रस्करो धनुष्टमान् |

चतुर्भुजः सूर्य सुतः प्रशान्तः सदास्तु मह्यां वरदोल्पगामी ||

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