कुण्डली में 3,7,8,9 आैर 12वाँ भाव विदेश यात्रा को दर्शाता है, 8 वाँ भाव मुख्य रूप से देश से बाहर कराने का काम करता है क्योकि यह 12वें से 9वाँ भाव होता है 12वाँ भाव वातावरण मे पूर्ण परिवर्तन लाता है इसलिए यह विदेश यात्रा या विदेश से सम्बन्धित भाव है शनि और राहु विदेश यात्रा के कारक ग्रह हैं अधिकतर ग्रहों का चर राशियों मे होना भी विदेश यात्रा के संकेत होते हैं, --------यदि :
1. चंद्रमा पीडित हो
2. सूर्य लग्न में
3. बुध 8वें भाव में
4. शनि 12वें
5. लग्नेश 12वें
6. दशमेश व दशमेश का नवांश दोनों चर राशि में
7. षष्टेष बारहवें भाव में
8. राहु पहले या सातवें या बारहवें भाव में
9. सूर्य गुरू और राहु बारहवें में
10. सप्तमेस नवें भाव मे हो तो विदेश यात्रा के योग बनते हैं
माता के घर से बारवां भाव अर्थात तीसरा भाव, में चन्द्र, मंगल व राहु हो
शरीर भाव से बारहवां भाव में चन्द्र, मंगल व राहु होतो
कर्म भाव या पिता भाव से बारहवां भाव अर्थात नवां भाव में चन्द्र , मंगल व राहु हो
भाग्य भवन से बारहवा भाव अर्थात अष्टम भाव में चन्द्र , मंगल व राहु होतो विदेश में रहकर धनार्जन योग बनाता है
इन्ही भावों से तीसरा भाव छोटी यात्रा, होती है विदेश रहना नही होता
राहु बारहवे भाव में तो निश्चित ही विदेश योग बनाएगा ही
अगर जातक कुंडली में यह योग न हो पत्नी की या बालक की कुंडली में यह योग होतो उनके वजह से विदेश जाना पड़ता है
कर्क जल तत्व अवंम तुला वायु तत्व राशि चंद्र और शुक्र जलतत्व के ग्रह हैं कर्क या तुला राशि शुक्र या चंद्र जब व्ययभाव से जुड़े हो तब जातक के लिए परदेश यात्रा की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है लग्नेश व्यय भाव में हो या व्ययेश लग्न में तब भी विदेश में बसना होता हैलग्नेश व् पराक्रमेश युति में हो या दोनों परिवर्तन में हो तब विदेश यात्रा निचित होती है
राहु और शनि वायुतत्व के ग्रह है इनका विदेश के साथ सबंध है ये ग्रह जब 12 भाव से सबंध बनाते है तब जातक को विदेश जाने की इच्छा पैदा होती है
विदेश यात्रा के लिए 3।7।8।9।12 ये भाव महत्व पूर्ण है
3 भाव से छोटी यात्रा
7 भाव से व्यवसाय व् नोकरी के लिए
4 भाव विदेश यात्रा के लिए इन डायरेक्ट रोल अदा करता है चतुर्थ भाव बलवान होगा तो जातक अपने वतन में ही सूंदर भवन का सुख देगा
चर राशि कर्क उसका स्वामी चंद्रमा अति शीघ्र ग्रह है और जल तत्व पर अधिपत्य है इसीलिए वो अति महत्व पूर्ण रोल अदा करता है बलवान 9 भाव व् बलवान लग्न जातक को विदेश में धन एवम् कीर्ति दिलाते है
और ऐसे ग्रह खिलाडी गायक में ज्यादा देखने मिलता है भाग्येश व्ययेश का सबंध परदेश से धन प्राप्ति बलवान चतुर्थेश की असर जब व्ययभाव पर होती है तब जातक अपनी जिंदगी का ज्यादातर समय परदेश में व्यतीत करता है
कर्क वृचिक मीन जल तत्व की राशि है
विदेश यात्रा के लिए समुद्रपार जाना ही पड़ता है इसीलिए विदेश यात्रा में जलतत्व की राशियो का बहुत महत्व है
लग्न व् लग्नेश चतुर्थ भाव व् चतुर्थेश के बिच शुभ सबंध विदेश से धन व् कीर्ति तो दिलाते है किन्तु स्थाई रूप से बसना तो तो वतन में ही होता है
राहु 12 भाव मे हो तो विदेश यात्रा का योग बनाता है
लगनेश 12 वे भाव मे केतु के साथ हो तो भी महादशा व अन्तरदशा मे विदेश का योग बनता है
जन्म कुंडली में यदि उच्च के सूर्य की दशा चल रही हो तब व्यक्ति के विदेश जाने के योग बनते हैं
यदि उच्च के चंद्रमा या उच्च के ही मंगल की भी दशा चल रही हो तब भी व्यक्ति विदेश यात्रा करता है
उच्च के बृहस्पति की दशा में भी व्यक्ति की विदेश यात्रा होती है
यदि मंगल बली होकर लग्न में स्थित है या सूर्य से संबंधित है तब मंगल की दशा में भी विदेश यात्रा होने की संभावना बनती है
कुंडली में यदि नीच के बुध की दशा चल रही है तब भी विदेश यात्रा हो सकती है
बृहस्पति की दशा चल रही हो और वह सातवें या बारहवें भाव में चर राशि में स्थित हो
शुक्र की दशा चल रही हो और वह एक पाप ग्रह के साथ सप्तम भाव में स्थित हो
शनि की दशा चल रही हो और शनि बारहवें भाव में या उच्च नवांश में स्थित हो
राहु की दशा कुंडली में चल रही हो और राहु कुंडली में तीसरे, सातवें, नवम या दशम भाव में स्थित हो
जन्म कुंडली में सूर्य की महादशा में केतु की अन्तर्दशा चल रही हो तब भी विदेश जाने की संभावना बनती है
यदि केतु की महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा चल रही हो और कुंडली में सूर्य, केतु से छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो
केतु की महादशा में चंद्रमा की अन्तर्दशा चल रही हो और केतु से चंद्रमा केन्द्र/त्रिकोण या ग्यारहवें भाव में स्थित हो
कुंडली में शुक्र की महादशा में बृहस्पति की अन्तर्दशा चल रही हो तब भी विदेश यात्रा की संभावना बनती है
कुंडली में राहु की महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा चल रही हो और राहु से सूर्य केन्द्र/त्रिकोण या ग्यारहवें भाव का स्वामी हो
शनि की महादशा में बृहस्पति की अन्तर्दशा चल रही हो और शनि से बृहस्पति केन्द्र/त्रिकोण या दूसरे या ग्यारहवें भाव का स्वामी हो
बुध की महादशा में शनि की अन्तर्दशा चल रही हो और बुध से शनि छठे, आठवें, या बारहवें भाव में स्थित हो
नोट : - यह फल, मुख्यता लग्न लागू है - यह एक सामान्य फल आपकी रूचि को ध्यान में रखकर पोस्ट किया जता है। प्रत्येक व्यक्ति के लग्न, ग्रह-स्थिति और महा/अन्तरदशा के अनुसार फल अलग-2 होता है
1. चंद्रमा पीडित हो
2. सूर्य लग्न में
3. बुध 8वें भाव में
4. शनि 12वें
5. लग्नेश 12वें
6. दशमेश व दशमेश का नवांश दोनों चर राशि में
7. षष्टेष बारहवें भाव में
8. राहु पहले या सातवें या बारहवें भाव में
9. सूर्य गुरू और राहु बारहवें में
10. सप्तमेस नवें भाव मे हो तो विदेश यात्रा के योग बनते हैं
माता के घर से बारवां भाव अर्थात तीसरा भाव, में चन्द्र, मंगल व राहु हो
शरीर भाव से बारहवां भाव में चन्द्र, मंगल व राहु होतो
कर्म भाव या पिता भाव से बारहवां भाव अर्थात नवां भाव में चन्द्र , मंगल व राहु हो
भाग्य भवन से बारहवा भाव अर्थात अष्टम भाव में चन्द्र , मंगल व राहु होतो विदेश में रहकर धनार्जन योग बनाता है
इन्ही भावों से तीसरा भाव छोटी यात्रा, होती है विदेश रहना नही होता
राहु बारहवे भाव में तो निश्चित ही विदेश योग बनाएगा ही
अगर जातक कुंडली में यह योग न हो पत्नी की या बालक की कुंडली में यह योग होतो उनके वजह से विदेश जाना पड़ता है
कर्क जल तत्व अवंम तुला वायु तत्व राशि चंद्र और शुक्र जलतत्व के ग्रह हैं कर्क या तुला राशि शुक्र या चंद्र जब व्ययभाव से जुड़े हो तब जातक के लिए परदेश यात्रा की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है लग्नेश व्यय भाव में हो या व्ययेश लग्न में तब भी विदेश में बसना होता हैलग्नेश व् पराक्रमेश युति में हो या दोनों परिवर्तन में हो तब विदेश यात्रा निचित होती है
राहु और शनि वायुतत्व के ग्रह है इनका विदेश के साथ सबंध है ये ग्रह जब 12 भाव से सबंध बनाते है तब जातक को विदेश जाने की इच्छा पैदा होती है
विदेश यात्रा के लिए 3।7।8।9।12 ये भाव महत्व पूर्ण है
3 भाव से छोटी यात्रा
7 भाव से व्यवसाय व् नोकरी के लिए
4 भाव विदेश यात्रा के लिए इन डायरेक्ट रोल अदा करता है चतुर्थ भाव बलवान होगा तो जातक अपने वतन में ही सूंदर भवन का सुख देगा
चर राशि कर्क उसका स्वामी चंद्रमा अति शीघ्र ग्रह है और जल तत्व पर अधिपत्य है इसीलिए वो अति महत्व पूर्ण रोल अदा करता है बलवान 9 भाव व् बलवान लग्न जातक को विदेश में धन एवम् कीर्ति दिलाते है
और ऐसे ग्रह खिलाडी गायक में ज्यादा देखने मिलता है भाग्येश व्ययेश का सबंध परदेश से धन प्राप्ति बलवान चतुर्थेश की असर जब व्ययभाव पर होती है तब जातक अपनी जिंदगी का ज्यादातर समय परदेश में व्यतीत करता है
कर्क वृचिक मीन जल तत्व की राशि है
विदेश यात्रा के लिए समुद्रपार जाना ही पड़ता है इसीलिए विदेश यात्रा में जलतत्व की राशियो का बहुत महत्व है
लग्न व् लग्नेश चतुर्थ भाव व् चतुर्थेश के बिच शुभ सबंध विदेश से धन व् कीर्ति तो दिलाते है किन्तु स्थाई रूप से बसना तो तो वतन में ही होता है
राहु 12 भाव मे हो तो विदेश यात्रा का योग बनाता है
लगनेश 12 वे भाव मे केतु के साथ हो तो भी महादशा व अन्तरदशा मे विदेश का योग बनता है
जन्म कुंडली में यदि उच्च के सूर्य की दशा चल रही हो तब व्यक्ति के विदेश जाने के योग बनते हैं
यदि उच्च के चंद्रमा या उच्च के ही मंगल की भी दशा चल रही हो तब भी व्यक्ति विदेश यात्रा करता है
उच्च के बृहस्पति की दशा में भी व्यक्ति की विदेश यात्रा होती है
यदि मंगल बली होकर लग्न में स्थित है या सूर्य से संबंधित है तब मंगल की दशा में भी विदेश यात्रा होने की संभावना बनती है
कुंडली में यदि नीच के बुध की दशा चल रही है तब भी विदेश यात्रा हो सकती है
बृहस्पति की दशा चल रही हो और वह सातवें या बारहवें भाव में चर राशि में स्थित हो
शुक्र की दशा चल रही हो और वह एक पाप ग्रह के साथ सप्तम भाव में स्थित हो
शनि की दशा चल रही हो और शनि बारहवें भाव में या उच्च नवांश में स्थित हो
राहु की दशा कुंडली में चल रही हो और राहु कुंडली में तीसरे, सातवें, नवम या दशम भाव में स्थित हो
जन्म कुंडली में सूर्य की महादशा में केतु की अन्तर्दशा चल रही हो तब भी विदेश जाने की संभावना बनती है
यदि केतु की महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा चल रही हो और कुंडली में सूर्य, केतु से छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो
केतु की महादशा में चंद्रमा की अन्तर्दशा चल रही हो और केतु से चंद्रमा केन्द्र/त्रिकोण या ग्यारहवें भाव में स्थित हो
कुंडली में शुक्र की महादशा में बृहस्पति की अन्तर्दशा चल रही हो तब भी विदेश यात्रा की संभावना बनती है
कुंडली में राहु की महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा चल रही हो और राहु से सूर्य केन्द्र/त्रिकोण या ग्यारहवें भाव का स्वामी हो
शनि की महादशा में बृहस्पति की अन्तर्दशा चल रही हो और शनि से बृहस्पति केन्द्र/त्रिकोण या दूसरे या ग्यारहवें भाव का स्वामी हो
बुध की महादशा में शनि की अन्तर्दशा चल रही हो और बुध से शनि छठे, आठवें, या बारहवें भाव में स्थित हो
नोट : - यह फल, मुख्यता लग्न लागू है - यह एक सामान्य फल आपकी रूचि को ध्यान में रखकर पोस्ट किया जता है। प्रत्येक व्यक्ति के लग्न, ग्रह-स्थिति और महा/अन्तरदशा के अनुसार फल अलग-2 होता है
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