*मोक्ष प्राप्ति योग*
यदि उच्चस्थ (कर्क राशि का)गुरु लग्न से छठे, आठवें या केन्द्र में हो तथा शेष ग्रह निर्बल हों तो जातक को मुक्ति मिलती है। (बृहद्जातक)।
यदि गुरु मीन लग्न तथा शुभ नवांश का हो और अन्य ग्रह निर्बल हों तो जातक मोक्ष पाता है। (जातक चन्द्रिका)
यदि गुरु धनु लग्न, मेष नवांश(धनु में 0 अंश से 3 अंश 20’ तक) में हो, शुक्र सप्तम भाव में हो और चंद्र कन्या राशि में हो तो जातक को मोक्ष प्राप्त होता है। (जातक पारिजात)
यदि गुरु कर्क लग्न में उच्चस्थ हो, धनु नवांश (कर्क में 16″40’ से 20″ तक)का हो और तीन चार ग्रह केन्द्र में हों तो जातक मोक्ष पाता है। (जातक पारिजात)
जिसके बारहवें स्थान में शुभ ग्रह हो और द्वादशेशश बलवान होकर शुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट हो, उसे मोक्ष प्रापत होता है। (बृहत् पराशर होरा शास्त्र)
यदि दशम भाव में मीन राशि हो और उसमें मंगल शुभ ग्रहों के साथ हो तो भी व्यक्ति मोक्ष पाता है। (सर्वार्थ चिन्तामणि)
देवलोक (स्वर्ग)प्राप्ति योग
यदि शुभ ग्रह बारहवें भाव में शुभ होकर स्थित हों, अच्छे वर्ग में हों और शुभ ग्रह से दृष्ट हों तो जातक को स्वर्ग मिलता है। (जातक पारिजात)
यदि अष्टम भाव में केवल शुभ ग्रह हों तो मरणोपरांत शुभ गति प्राप्त होती है।
यदि बृहस्पति दशमेष होकर बारहवें स्थान में हो और शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो देवपद प्राप्त होता है। (सर्वार्थ चिंतामणि)
लग्न में उच्च का गुरु चंदको पूर्ण दृष्टि से देखता हो और अष्टम स्थान में कोई ग्रह न हो तो जातक सैकड़ों धार्मिक कार्य करता है और सदगति पाता है।
नरक प्राप्ति योग
बारहवें भाव का स्वामी पाप षष्ठांश में हो और उसे पापी ग्रह देखते हों तो प्राणी नकर में जाता है। (फल दीपिका)
बारहवें भाव में यदि राहु, गुलिका और अष्टमेश हो तो जातक नरक पाता है। (जातक पारिजात)
बारहवें भाव में मंगल, सूर्य, शनि व राहु हों अथवा द्वादशेश सूर्य के साथ हो तो मृत्योपरांत नरक मिलता है। (बृहत् पराशर होरा शास्त्र)
यदि बारहवें भाव में राहु और मांदी हों और अष्टमेश तथा षष्ठेश से दृष्ट हों तो जातक नरक पाता है। (सर्वार्थ चिंतामणि)
यदि बारहवें भाव में शनि राहु या केतु अष्टमेश के साथ हो तब भी नरक की प्राप्ति होती है। (जातक पारिजात)
ऊपर वर्णित ग्रह योग प्रारब्ध के अनुरूप मनुष्य के अगले जन्म की ओर अंगित करते हैं। फिर भी वह इसी जन्म में एकनिष्ठ भाव से परमात्मा की शरण में जाकर अपने पूर्वार्जित कर्म-फल को नष्ट कर जन्म – मृत्यु के चक्र से छुटकारा पा सकता है।
इसका आश्वासन भगवान श्री कृष्ण ने गीता के 18वें अध्याय के 66वें श्लोक में दिया है।
सर्वधर्मान्परिज्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।
अर्थात संपूर्ण धर्मो को अर्थात संपूर्ण कर्तव्य कर्मो को मुझ में अर्पितकर तू केवल एक मुझ सर्वशक्तिमान सर्वाधार परमेश्वर की शरण में आ जा। मैं तुझे संपूर्ण पापों से मुक्त कर दूंगा.
यदि उच्चस्थ (कर्क राशि का)गुरु लग्न से छठे, आठवें या केन्द्र में हो तथा शेष ग्रह निर्बल हों तो जातक को मुक्ति मिलती है। (बृहद्जातक)।
यदि गुरु मीन लग्न तथा शुभ नवांश का हो और अन्य ग्रह निर्बल हों तो जातक मोक्ष पाता है। (जातक चन्द्रिका)
यदि गुरु धनु लग्न, मेष नवांश(धनु में 0 अंश से 3 अंश 20’ तक) में हो, शुक्र सप्तम भाव में हो और चंद्र कन्या राशि में हो तो जातक को मोक्ष प्राप्त होता है। (जातक पारिजात)
यदि गुरु कर्क लग्न में उच्चस्थ हो, धनु नवांश (कर्क में 16″40’ से 20″ तक)का हो और तीन चार ग्रह केन्द्र में हों तो जातक मोक्ष पाता है। (जातक पारिजात)
जिसके बारहवें स्थान में शुभ ग्रह हो और द्वादशेशश बलवान होकर शुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट हो, उसे मोक्ष प्रापत होता है। (बृहत् पराशर होरा शास्त्र)
यदि दशम भाव में मीन राशि हो और उसमें मंगल शुभ ग्रहों के साथ हो तो भी व्यक्ति मोक्ष पाता है। (सर्वार्थ चिन्तामणि)
देवलोक (स्वर्ग)प्राप्ति योग
यदि शुभ ग्रह बारहवें भाव में शुभ होकर स्थित हों, अच्छे वर्ग में हों और शुभ ग्रह से दृष्ट हों तो जातक को स्वर्ग मिलता है। (जातक पारिजात)
यदि अष्टम भाव में केवल शुभ ग्रह हों तो मरणोपरांत शुभ गति प्राप्त होती है।
यदि बृहस्पति दशमेष होकर बारहवें स्थान में हो और शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो देवपद प्राप्त होता है। (सर्वार्थ चिंतामणि)
लग्न में उच्च का गुरु चंदको पूर्ण दृष्टि से देखता हो और अष्टम स्थान में कोई ग्रह न हो तो जातक सैकड़ों धार्मिक कार्य करता है और सदगति पाता है।
नरक प्राप्ति योग
बारहवें भाव का स्वामी पाप षष्ठांश में हो और उसे पापी ग्रह देखते हों तो प्राणी नकर में जाता है। (फल दीपिका)
बारहवें भाव में यदि राहु, गुलिका और अष्टमेश हो तो जातक नरक पाता है। (जातक पारिजात)
बारहवें भाव में मंगल, सूर्य, शनि व राहु हों अथवा द्वादशेश सूर्य के साथ हो तो मृत्योपरांत नरक मिलता है। (बृहत् पराशर होरा शास्त्र)
यदि बारहवें भाव में राहु और मांदी हों और अष्टमेश तथा षष्ठेश से दृष्ट हों तो जातक नरक पाता है। (सर्वार्थ चिंतामणि)
यदि बारहवें भाव में शनि राहु या केतु अष्टमेश के साथ हो तब भी नरक की प्राप्ति होती है। (जातक पारिजात)
ऊपर वर्णित ग्रह योग प्रारब्ध के अनुरूप मनुष्य के अगले जन्म की ओर अंगित करते हैं। फिर भी वह इसी जन्म में एकनिष्ठ भाव से परमात्मा की शरण में जाकर अपने पूर्वार्जित कर्म-फल को नष्ट कर जन्म – मृत्यु के चक्र से छुटकारा पा सकता है।
इसका आश्वासन भगवान श्री कृष्ण ने गीता के 18वें अध्याय के 66वें श्लोक में दिया है।
सर्वधर्मान्परिज्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।
अर्थात संपूर्ण धर्मो को अर्थात संपूर्ण कर्तव्य कर्मो को मुझ में अर्पितकर तू केवल एक मुझ सर्वशक्तिमान सर्वाधार परमेश्वर की शरण में आ जा। मैं तुझे संपूर्ण पापों से मुक्त कर दूंगा.
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