सोमवार, 20 अगस्त 2018

संतान बाधा योग

हर स्त्री-पुरुष की यह कामना होती है कि उन्हें एक योग्य संतान उत्पन हो जिससे उनका वंश चले और वह उम्र के आखरी पड़ाव में उनका सहारा बने। नीचे दिए गए ग्रह योग जो संतान बाधक योग हैं,  यदि किसी की कुंडली में मौजूद हो तो उन्हें अवश्य सचेत हो जाना चाहिए और समय रहते उचित उपाय के जरिये उन प्रतिकूल ग्रहों को अनुकूल बनाना चाहिए जिनके वजह यह बाधक योग उत्पन्न हुए हैं।

1:- लग्न से, चंद्र से तथा गुरु से पंचम स्थान पाप ग्रह से यक्त हो और वहाँ कोई शुभ ग्रह न बैठा हो न ही शुभ ग्रह की दृष्टि हो।

2:- लग्न, चंद्र तथा गुरु से पंचम स्थान का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में बैठा हो।

3:- यदि पंचमेश पाप ग्रह होते हुए पंचम में हो तो पुत्र होवे किन्तु शुभ ग्रह पंचमेश होकर पंचम में बैठ जाये और साथ में कोई पाप ग्रह हो तो वह पाप ग्रह संतान बाधक बनेगा।

4:- यदि पंचम भाव में वृष, सिंह, कन्या या वृश्चिक राशि हो और पंचम भाव में सूर्य, आठवें भाव में शनि तथा लग्न में मंगल  स्थित हो तो संतान होने में दिक्कत होती है एवं विलंब होता है।

5:- लग्न में दो या दो से अधिक पाप ग्रह हों तथा गुरु से पांचवें स्थान पर भी पाप ग्रह हो तथा ग्यारहवें भाव में चन्द्रमा हो तो भी संतान होने में विलंब होता है।

6:- प्रथम, पंचम, अष्टम एवं द्वादस । इन चारो भावों में अशुभ ग्रह हो तो वंश वृद्धि में दिक्कत होती है।

7:- चतुर्थ भाव में अशुभ ग्रह, सातवें में शुक्र तथा दसवें में चन्द्रमा हो तो भी वंश वृद्धि के लिए बाधक है।

8:- पंचम भाव में चंद्रमा तथा लग्न, अष्टम तथा द्वादश भाव में पाप ग्रह हो तो भी वंश नहीं चलता।

9:- पंचम में गुरु, सातवें भाव में बुध- शुक्र तथा चतुर्थ भाव में क्रूर ग्रह होना संतान बाधक है।

10:- लग्न में पाप ग्रह, लग्नेश पंचम में, पंचमेश तृतीय भाव में हो तथा चन्द्रमा चौथे भाव में हो तो पुत्र संतान नहीं होता।

11:- पंचम भाव में मिथुन, कन्या, मकर या कुंभ राशि हो। शनि वहां बैठा हो या शनि की दृष्टि पांचवे भाव पर हो तो पुत्र संतान प्राप्ति में समस्या होती है।

12:- षष्ठेश, अष्टमेश या द्वादशेश पंचम भाव में हो या पंचमेश 6-8-12 भाव में बैठा हो या पंचमेश नीच राशि में हो या अस्त हो तो संतान बाधायोग उत्पन्न होता है।

13:- पंचम में गुरु यदि धनु राशि का हो तो बड़ी परेशानी के बाद संतान की प्राप्ति होती है।

14:- पंचम भाव में गुरु कर्क या कुंभ राशि का हो और गुरु पर कोई शुभ दृष्टि नहीं हो तो प्रायः पुत्र का आभाव ही रहता है।

15:- तृतीयेश यदि 1-3-5-9 भाव में बिना किसी शुभ योग के हो तो संतान होने में रूकावट पैदा करते हैं।

16:- लग्नेश, पंचमेश, सप्तमेश एवं गुरु सब के सब दुर्बल हों तो जातक संतानहीन होता है।

17:- पंचम भाव में पाप ग्रह, पंचमेश नीच राशि में बिना किसी शुभ दृष्टि के तो जातक संतानहीन होता है।

18:-  सभी पाप ग्रह यदि चतुर्थ में बैठ जाएँ तो संतान नहीं होता।

19:- चंद्रमा और गुरु दोनों लग्न में हो तथा मंगल और शनि दोनों की दृष्टि लग्न पर हो तो पुत्र संतान नहीं होता ।

20:- गुरु दो पाप ग्रहों से घिरा हो और पंचमेश निर्बल हो तथा शुभ ग्रह की दृष्टि या स्थिति न हो तो जातक को संतान होने में दिक्कत होता है।

21:- दशम में चंद्र, सप्तम में राहु तथा चतुर्थ में पाप ग्रह हो तथा लग्नेश बुध के साथ हो तो जातक को पुत्र नहीं होता ।

22:- पंचम,अष्टम, द्वादश तीनो स्थान में पाप ग्रह बैठे हों तो जातक को पुत्र नहीं होता।

23:- बुध एवं शुक्र सप्तम में, गुरु पंचम में तथा चतुर्थ भाव में पाप ग्रह हो एवं चंद्र से अष्टम भाव में भी पाप ग्रह हो तो जातक के लड़का नहीं होता।

24:- चंद्र पंचम हो एवं सभी पाप ग्रह 1-7-12 या 1-8-12 भाव में हो तो संतान नहीं होता ।

25:- पंचम भाव में तीन या अधिक पाप ग्रह बैठे हों और उनपर कोई शुभ दृष्टि नहीं हो तथा पंचम भाव पाप राशिगत हो तो संतान नहीं होता।

26:- 1-7-12 भाव में पाप ग्रह शत्रु राशि में हों तो पुत्र होने में दिक्कत होती है ।

27:- लग्न में मंगल, अष्टम में शनि, पंचम में सूर्य हो तो यत्न करने पर ही पुत्र प्राप्ति होती है।

28:- पंचम में केतु हो और किसी शुभ गृह की दृष्टि न हो तो संतान होने में परेशानी होती है।

29:- पति-पत्नी दोनों के जन्मकालीन शनि तुला राशिगत हो तो संतान प्राप्ति में समस्या होती है।

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