(1)जन्म कुंडली के तरह मृत्यु कुंडली बनाई जाती है जिसमे मृत व्यक्ति का मृत्यु के पशछात की गति देखी जाती है।
(2)मृत्यु कुंडली मे सूर्य और गुरु की स्तिथी महत्वपूर्ण होती है।
(3)मोक्षभाव 4,8,12 भी महत्वपूर्ण होते है।
(4) 4था भाव मृत्यु के पूर्व का समय, 8वा भाव मृत्यु का समय एवम 12वा मृत्यु के बाद के समय को दर्शाता है।
(5) सूर्य यदि राहु, शनि के साथ हो अथवा 6वे, 12वे भ्रमण कर रहा हो तो इसका मतलब व्यक्ति की आत्मा सही मार्ग से भटक गई है।
(6) 8वे भाव मे सूर्य ,चंद्र हो तो अर्थात मृत्यु के पश्चात स्वर्ग प्राप्ति होगी।
(7) 8वे भाव मे गुरु,बुध,शुक्र भी हो तो देवलोक की प्राप्ति होगी।
(8) 8वे भाव मे मंगल हो तो व्यक्ति पुनः धरती पर आएगा।
(9) 8वे मे शनि,राहु,केतु हो तो व्यक्ति नीच योनि में जन्म लेगा।
(10) शुभ ग्रहों का 4,8,12 से सम्बंध हो तो अगला जन्म सम्पन्न अथवा अच्छे घराने मे होता है।
(11) 12वे भाव मे बृहस्पति ,केतु हो तो मोक्ष मिल जाता है शर्त है शनि की दृष्टि 12वे भाव मे ना हो।
Note- उपर्युक्त जितने भी सूत्र व जानकारी बताई गई है वह सिर्फ मृत्यु के समय ग्रहो की स्तिथि पर बताई गई है इसका जन्मकुंडली से कोई लेना देना नही है।
।।इतिशुभम।।
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