गुरुवार, 8 फ़रवरी 2018

क्या आपकी जन्म कुंडली में हैं दुर्घटना योग

जन्म पत्रिका से भी जाना जा सकता है दुर्घटनाओं के बारे में। यदि हमें पूर्व से जानकारी हो जाए तो हम संभलकर उससे बच सकते हैं। दुर्घटना तो होना है लेकिन क्षति न पहुँच कर चोट लग सकती है।जिस प्रकार हम चिलचिलाती धूप में निकलें और हमने छाता लगा रखा हो तो धूप से राहत मिलेगी, उसी प्रकार दुर्घटना के कारणों को जानकर उपाय कर लिए जाएँ तो उससे कम क्षति होगी।

इसके लिए 6ठा और 8वाँ भाव महत्वपूर्ण माना गया है। इनमें बनने वाले अशुभ योग को ही महत्वपूर्ण माना जाएगा। किसी किसी की पत्रिका में षष्ठ भाव व अष्टमेश का स्वामी भी अशुभ ग्रहों के साथ हो तो ऐसे योग बनते हैं।

वाहन से दुर्घटना के योग के लिए शुक्र जिम्मेदार होगा। लोहा या मशीनरी से दुर्घटना के योग का जिम्मेदार शनि होगा। आग या विस्फोटक सामग्री से दुर्घटना के योग के लिए मंगल जिम्मेदार होगा। चौपायों से दुर्घटनाग्रस्त होने पर शनि प्रभावी होगा। वहीं अकस्मात दुर्घटना के लिए राहु जिम्मेदार होगा। अब दुर्घटना कहाँ होगी? इसके लिए ग्रहों के तत्व व उनका संबंध देखना होगा।

1·षष्ठ भाव में शनि शत्रु राशि या नीच का होकर केतु के साथ हो तो पशु द्वारा चोट लगती है।
2·षष्ठ भाव में मंगल हो व शनि की दृष्टि पड़े तो मशीनरी से चोट लग सकती है।
3·अष्टम भाव में मंगल शनि के साथ हो या शत्रु राशि का होकर सूर्य के साथ हो तो आग से खतरा हो सकता है।
4·चंद्रमा नीच का हो व मंगल भी साथ हो तो जल से सावधानी बरतना चाहिए।

5·केतु नीच का हो या शत्रु राशि का होकर गुरु मंगल के साथ हो तो हार्ट से संबंधित ऑपरेशन हो सकता है।
6·‍शनि-मंगल-केतु अष्टम भाव में हों तो वाहनादि से दुर्घटना के कारण चोट लगती है।
7·वायु तत्व की राशि में चंद्र राहु हो व मंगल देखता हो तो हवा में जलने से मृत्यु भय रहता है।
8·अष्टमेश के साथ द्वादश भाव में राहु होकर लग्नेश के साथ हो तो हवाई दुर्घटना की आशंका रहती है।
9·द्वादशेश चंद्र लग्न के साथ हो व द्वादश में कर्क का राहु हो तो अकस्मात मृत्यु योग देता है।
10·मंगल-शनि-केतु सप्तम भाव में हों तो उस जातक का जीवनसाथी ऑपरेशन के कारण या आत्महत्या के कारण या किसी घातक हथियार से मृत्यु हो सकती है।
11·अष्टम में मंगल-शनि वायु तत्व में हों तो जलने से मृत्यु संभव है।
12·सप्तमेश के साथ मंगल-शनि हों तो दुर्घटना के योग बनते हैं।

इस प्रकार हम अपनी पत्रिका देखकर दुर्घटना के योग को जान सकते हैं। यह घटना द्वितीयेश मारकेश की महादशा में सप्तमेश की अंतरदशा में अष्टमेश या षष्ठेश के प्रत्यंतर में घट सकती है।

उसी प्रकार सप्तमेश की दशा में द्वितीयेश के अंतर में अष्टमेश या षष्ठेश के प्रत्यंतर में हो सकती है। जिस ग्रह की मारक दशा में प्रत्यंतर हो उससे संबंधित वस्तुओं को अपने ऊपर से नौ बार विधिपूर्वक उतारकर जमीन में गाड़ दें यानी पानी में बहा दें तो दुर्घटना योग टल सकता है।

यह जानना बहुत जरूरी है कि कोई ग्रह जातक को क्या फल देगा

यह जानना बहुत जरूरी है कि कोई ग्रह जातक को क्या फल देगा। कोई ग्रह कैसा फल देगा, वह उसकी कुण्डली में स्थिति, युति एवं दृष्टि आदि पर निर्भर करता है। जो ग्रह जितना ज्यादा शुभ होगा, अपने कारकत्व को और जिस भाव में वह स्थित है, उसके कारकत्वों को उतना ही अधिक दे पाएगा। नीचे कुछ सामान्य नियम दिए जा रहे हैं, जिससे पता चलेगा कि कोई ग्रह शुभ है या अशुभ। शुभता ग्रह के बल में वृद्धि करेगी और अशुभता ग्रह के बल में कमी करेगी।

नियम 1 - जो ग्रह अपनी उच्च, अपनी या अपने मित्र ग्रह की राशि में हो - शुभ फलदायक होगा। इसके विपरीत नीच राशि में या अपने शत्रु की राशि में ग्रह अशुभफल दायक होगा।

नियम 2 - जो ग्रह अपनी राशि पर दृष्टि डालता है, वह शुभ फल देता है।

नियम 3 - जो ग्रह अपने मित्र ग्रहों के साथ या मध्य हो वह शुभ फलदायक होता है। मित्रों के मध्य होने को मलतब यह है कि उस राशि से, जहां वह ग्रह स्थित है, अगली और पिछली राशि में मित्र ग्रह स्थित हैं।

नियम 4 - जो ग्रह अपनी नीच राशि से उच्च राशि की ओर भ्रमण करे और वक्री न हो तो शुभ फल देगा।

नियम 5 - जो ग्रह लग्नेहश का मित्र हो।

नियम 6 - त्रिकोण के स्वा‍मी सदा शुभ फल देते हैं।

नियम 7 - केन्द्र का स्वामी शुभ ग्रह अपनी शुभता छोड़ देता है और अशुभ ग्रह अपनी अशुभता छोड़ देता है।

नियम 8 - क्रूर भावों (3, 6, 11) के स्वामी सदा अशुभ फल देते हैं।

नियम 9 - उपाच्य भावों (1, 3, 6, 10, 11) में ग्रह के कारकत्वत में वृद्धि होती है।

नियम 10 - दुष्ट स्थानों (6, 8, 12) में ग्रह अशुभ फल देते हैं।

नियम 11 - शुभ ग्रह केन्द्र (1, 4, 7, 10) में शुभफल देते हैं, पाप ग्रह केन्द्र में अशुभ फल देते हैं।

नियम 12 - पूर्णिमा के पास का चन्द्र शुभफलदायक और अमावस्या के पास का चंद्र अशुभफलदायक होता है।


नियम 13 - बुध, राहु और केतु जिस ग्रह के साथ होते हैं, वैसा ही फल देते हैं।


नियम 14 - सूर्य के निकट ग्रह अस्त हो जाते हैं और अशुभ फल देते हैं।

इन सभी नियम के परिणाम को मिलाकर हम जान सकते हैं कि कोई ग्रह अपना और स्थित भाव का फल दे पाएगा कि नहींय़ जैसा कि उपर बताया गया शुभ ग्रह अपने कारकत्व को देने में सक्षम होता है परन्तु अशुभ ग्रह अपने कारकत्व को नहीं दे पाता।

कुछ सरल उपाय

पलंग के नीचे इन चीजों को रखने से टल जायेगा आपका बुरा समय

हमारे ज्योतिषशास्त्र में कुछ ऐसी बातो के बारे में बताया गया है जिनको अगर आप अपने पलंग के नीचे रखते है तो इससे आपका बुरा समय दूर हो सकता है, व आपके ज़िंदगी में धन की कमी भी दूर हो सकती है। आज हम आपको कुछ ऐसी ही चीजों के बारे में बताने जा रहे है जो आपके बुरे समय को टाल सकती है,

1- अगर आपकी कुंडली में सुर्यदोष है तो अपने पलंग के नीचे एक ताम्बे के बर्तन में पानी भरकर रखे, या अपने तकिये के नीचे लाल चन्दन रखे उस उपाय को रविवार को करे और एक महीने तक करे।।   
2- कुंडली में चंद्रदोष होने पर पलंग के नीचे चांदी के बर्तन में पानी भरकर रखे या चांदी के ज्वेलरी रखे उस उपाय को सोमवार से शुरू करे और 15 दिन तक करे।।

3- मंगल के कारण आ रही परेशानियों को दूर करने के लिए पलंग के नीचे कांस के बरतन में पानी भरकर रखे या तकिये के नीचे कासे का 9 टुकड़े रखे ।। इस उपाय को मंगलवार के दिन को करें।।

4- कुंडली में गुरु दोष होने पर सभी कामो में असफलता ही हाथ लगती है, ऐस में अपनी तकिया के नीचे हल्दी की गांठो को एक कपडे में बांधकर रख व फिर सोये, ऐसा करने से कुंडली से गुरुदोष हमेशा के लिए दूर हो जायेगा इस उपाय को गुरुवार को करे।।

नाड़ी दोष एवं नाड़ी दोष परिहार

1 -वर कन्या की एक राशि हो, लेकिन जन्म नक्षत्र अलग अलग हों या जन्म नक्षत्र एक ही हों परन्तु राशियां अलग अलग हों तो नाड़ी दोष नही होता है , यदि जन्म नक्षत्र एक ही हों चरण भेद हो तो अति आवश्यकता अर्थात सगाई हो गई हो, एक दूसरे को पसंद करते हों तब इस स्थिति में विवाह किया जा सकता है।

2 -विशाखा ,अनुराधा , धनिष्ठा , रेवति , आद्रा , पूर्वभाद्रपद इन आठ नक्षत्रों मे वर कन्या का जन्म हो तो नाड़ी दोष नही रहता है।

3 – उत्तराभाद्रपद , रेवती , रोहणी , विषाखा , आद्रा , श्रवण , पुष्य, मघा , इन नक्षत्र में भी वर कन्या का जन्म नक्षत्र पड़े तो नाड़ी दोष नही रहता है।उपरोक्त मत कालिदास का है

4 – वर कन्या के राशिपति यदि बुध , गुरू , एवं शुक्र में से कोई एक या अथवा दोनों के राशि पति एक ही हों तो नाड़ी दोष नही रहता है।

5 – ज्योतिष के अनुसार नाड़ी दोष विप्र वर्ण पर प्रभावी माना जाता है।
यदि वर कन्या दोनो जन्म से विप्र हो तो उनमे नाड़ी दोष प्रभावी माना जाता है ।अन्य वर्णो पर नाड़ी दोष पूर्ण प्रभावी नही होता है।यदि विप्र वर्ण पर नाड़ी दोष प्रभावी माने तो नियम का हनन होता है । क्योकिं बृहस्पति एवं शुक्र को विप्र वर्ण का माना गया है । यदि वर कन्या के राशि पति विप्र वर्ण ग्रह हों तो इनके अनुसार नाड़ी दोष नही रहता है ।विप्र वर्ण की राशियों में भी बुध व शुक्र राशिपति बनते हैं।

6 -सप्तमेश स्वगृही होकर शुभ ग्रहों के प्रभाव में हों एवं वर कन्या के जन्म नक्षत्र चरण में भिन्नता हो तो नाड़ी दोष नही रहता है ।
इन परिहारों के अलावा कुछ प्रबल नाड़ी दोष के योग भी बनते हैं , जिनके होने पर विवाह न करना ही उचित रहता है।

यदि वर कन्या की नाड़ी एक हो एवं निम्न मे से कोई युग्म वर कन्या का जन्म नक्षत्र हो तो विवाह न करें;
अ – आदि नाड़ी -अश्विनी -ज्येष्ठा, हस्त-शतिभषा, उ फा -पू फा, अर्थात वर का नक्षत्र अश्विनी हो तो वधु का नक्षत्र ज्येष्ठा होने पर प्रबल नाड़ी दोष होगा।इस प्रकार कन्या का नक्षत्र अश्विनी हो तो वर का नक्षत्र ज्येष्ठा होने पर प्रबल नाड़ी दोष होगा। इसी प्रकार आगे के युग्मों से भी अभिप्राय समझें।
ब – मध्यनाड़ी- भरणी-अनुराधा , पूर्वा फाल्गुनी -उत्तराफाल्गुनी, पुष्य-पूर्वाष्णढ़ , मृगशिरा -चित्रा , चित्रा-धनिष्ठा, मृगशिरा-धनिष्ठा

स – अंत्य नाड़ी- कृतिका-विशाखा, रोहणी- स्वाति , मघा-रेवती ,
इस प्रकार की स्थिति में प्रबल नाड़ी दोष होने के कारण विवाह करते समय अवश्य ध्यान रखें।
सामान्य नाड़ी दोष होने पर किस प्रकार के उपाय दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाने का प्रयास कर सकते हैं।

*नाड़ी दोष के उपाय*

1 – वर एवं कन्या दोनों मध्यनाड़ी में उत्पन्न हो तो पुरूष को प्राण भय रहता है । इसी स्थिति में पुरूष को महा मृत्युंजय जाप इत्यादि अति आवश्यक है।यदि वर एवं कन्या दोनों की नाड़ी आदि या अंत हो तो स्त्री को प्राण भय की संभावना रहती है, इसलिये इस स्थिति में कन्या महामृत्युंजय अवश्य करे।

2 – नाड़ी दोष होने पर संकल्प लेकर किसी ब्राह्मण को गोदान या स्वर्णदान करना चाहिये ।

3 – अपनी सालगिरह पर अपने वजन के बराबर अन्नदान करें , एवं साथ में ब्राह्मण भोज करायें ।

4 – नाड़ी दोष के प्रभाव को दूर करने के लिये अनुकूल आहार दान करें । अर्थात आर्युवेद मतानुसार जिस दोष की अधिकतम बने उस दोष को दूर करने वाले आहार का सेवन करें ।

5 – वर एवं कन्या में से जिसे मारकेश की दशा चल रही हो उसको दशानाथ का उपाय दशाकाल तक अवश्य करना चाहिये

जानिए आपका डूबा हुआ फँसा हुआ धन प्राप्त करने के उपाय

अक्सर लोग किसी की मदद के लिए, दुकान, मकान, प्लाट या किसी रोजगार, किसी कंपनी या किसी सरकारी विभागों से कोई काम निकलवाने के धन दे देते है या अपना ही धन किसी के पास रखवा देते है लेकिन समय पर वह व्यक्ति आपका धन नहीं लौटाता है या आपका वह काम भी नहीं होता है और आपको आपका दिया धन भी नहीं वापस मिल पाता है तब बहुत ज्यादा मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ता है । जब धन वापस मिलने के सारे प्रयास विफल होते है, सम्बन्ध भी ख़राब हो जाते है । धन का हमारे जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है| धन के अभाव में व्यक्ति शारीरिक और मानसिक दोनों ही तरह से दरिद्र दिखने लगता है| अगर आपके जीवन में किसी भी तरह से धन की समस्या आ रही है तो आपको धैर्य के साथ अपने काम में मन लगना चाहिए और हमेशा सकारात्मक ऊर्जा से युक्त रहना चाहिए| इसके साथ ही अगर आप धन प्राप्ति के अचूक उपाय करते हैं तो आपकी सफलता सुनिश्चित हो जाती है| ऐसी स्थिति तब जब आपको सारे उपायों में असफलता मिले और आपको सारे रास्ते बंद नज़र आये तो ऐसी परिस्तिथियों में आप पण्डित दयानन्द शास्त्री द्वारा अनुभूत (सुझाए गए) उपरोक्त उपाए ईश्वर पर पूरी श्रद्धा और विश्वास से करें , आपको अवश्य ही लाभ नज़र आएगा। मै, पण्डित दयानन्द शास्त्री आपको ऐसे उपाय बता रहा हूँ जिसके करने से आपका डूबा पैसा या लबें अरसे से नहीं लौटाया गया कर्ज वापस मिलने के आसार बंधंगे। ये उपाय बहुत ही आसान और अचूक हैं। इससे आपको ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी और आसानी से आपका डूबा पैसा वापस मिल जाएगा। 1. यदि आपका धन किसी के पास फंस गया है और वह उसे वापस नहीं कर रहा तो आप रोज सुबह नहाने के पश्चात एक ताम्बे के पात्र में जल लेकर उसमें लाल मिर्च के 11 बीज डालकर सूर्यदेव को जल अर्पण करके उनसे अपने पैसे वापसी के लिए प्रार्थना करें।। इसके साथ ही "ओम आदित्याय नमः" की नित्य एक माला का जाप करें। 2. यदि किसी व्यक्ति के पास आपका धन फँसा है और वह देने में समर्थ है परन्तु फिर भी नहीं दे रहा है तो 2 'राजा कौड़ी' यह किसी भी पूजा की दुकान पर मिल जाएगी उस व्यक्ति के घर के सामने डाल दे जिसके पास आपका धन फँसा है इससे उसका मन बदल जाएगा और वह शीघ्र ही आपका धन आपको लौटा देगा । यह उपाय बिलकुल चुपचाप करें । 3. किसी बुधवार के दिन, ( अगर कृष्ण पक्ष का बुधवार या बुधवार को पड़ने वाली अमावस्या हो तो और भी अच्छा है ) शाम के समय मीठे तेल की पाँच पूड़ियाँ बना कर उसमें सबसे ऊपर की पूड़ी पर रोली से एक स्वास्तिक का चिन्ह बनायें और उसके उपर सरसों का तेल डाल कर गेहूं के आटे का एक दिया रख लें। फिर दिया जलाकर उसपर भी रोली से तिलक करें और पीले अथवा लाल रंग के पुष्प अर्पित करें। इस दौरान लगातार भगवान श्री गणेश से उस व्यक्ति से अपना धन वापस दिलाने की प्रार्थना करते रहें। फिर बाएं हाथ में काली सरसों और काली उड़द के कुछ दाने लेकर निम्न मंत्र का 21 बार जप करते हुए उसे पूड़ी तथा दिए के उपर छोड़ते जाएँ । ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं ह्रैं ह्रूं ह्रः हेराम्बाय नमो नमः। मम धनं प्रतिगृहं कुरु कुरु स्वाहा। 4. तत्पश्चात उसी रात को समस्त सामग्री को ले जाकर चुपचाप उस व्यक्ति के घर के मुख्य द्वार के सामने कुछ दुरी पर / सड़क के पार किसी ऐसे स्थान पर रख दें जहाँ से उसका मुख्यद्वार या घर नज़र आता हो। और यदि आपको जिसके पास आपका पैसा फंसा है उसका पता नहीं मालूम है तो किसी भी शनिवार के दिन दक्षिण दिशा की ओर मुख कर हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र के सामने एक सरसों के तेल का दीपक जलाएं, फिर उसमें सरसों के कुछ दाने, 2 लौंग और एक कपूर का टुकड़ा डाल कर 3 बार बजरंग बाण का पाठ करें और बजरंग बलि जी से प्रार्थना करें की वह व्यक्ति ( जिसके पास आपका धन फंसा है ) आपका सारा धन शीघ्र से शीघ्र वापस कर दे। इसके पश्चात इसी जलते हुए दीपक से एक चम्मच पर एक दो बूँद तेल लगा कर उसे लौ पर रखकर काजल बना लें। फिर एक नए पतले, मुलायम कपड़े पर शमी वृक्ष की लकड़ी की कलम से उसी काजल से उस व्यक्ति का नाम लिखें जिसके पास आपके पैसे फँसे हैं। अब इस कपडे की पतली पतली बत्ती बना लें एवं आटे का एक दिया बनाकर उसमे तिल का तेल डाल इस बत्ती को जलाकर पुनः हनुमान जी की प्रतिमा के आगे 5 बार बजरंग बाण का पाठ करें और धन वापस प्राप्ति की प्रार्थना करें। ऐसा 21 शनिवार लगातार करें और इस बीच यदि आपका धन वापस मिल जाय तब भी इसे पूरा अवश्य ही करें । धन मिलने पर यथा संभव लड्डू , नारियल बूँदी आदि का प्रशाद चढ़ाएं । इसके अलावा आप अपना डूबा हुआ धन प्राप्त करने के लिए आप शुक्रवार को कपूर को जला कर उसका काजल बना ले। फिर एक भोजपत्र पर उस व्यक्ति का नाम लिखे जिसके पास आपका धन है। इसके बाद आप उस कागज़ पर 7 बार थपकी देते हुए उस व्यक्ति से अपने धन की वापसी के लिए कहें फिर उस भोजपत्र को अपनी तिजोरी / अलमारी / बक्सा जहाँ पर आप धन रखते है उसके नीचे दबा दें। अगर आप उसको जानते है तो काजल से भोजपत्र पर उसका नाम लिखकर वह कागज अपने पास रखकर उसके पास जाएँ और बिलकुल शान्त होकर उसको किसी भी तरीके से 7 बार थपकी देकर अपना धन वापस करने के लिए कहे और घर आकर उस भोजपत्र को उपरोक्त विधि से दबा दें । धीरे धीरे आपके धन की वापसी होने लागगी। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की धन प्राप्ति के लिए घर के दरवाजे पर माँ लक्ष्मी के चरणों के चिन्ह लगायें. इस उपाय को करने से आपके घर में माँ लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहेगी. ये उपाय करने से सभी तरह की धन सम्बंधित बाधा दूर होंगी और आपको सम्रधि और सौभाग्य की प्राप्ति होगी| फंसा हुआ धन निकालने के कई तरीके हैं उनके से कुछ आसन से उपाय यहाँ दिए जा रहे हैं. अगर आप धैर्य और लगन से ये उपाय करेंगे तो आपको शीघ्र ही धन प्राप्ति हो जाएगी|

गृह कलह निवारण के कुछ ज्योतिष उपाय

रिश्तों की डोर बहुत नाजुक होती है, फिर चाहे वह पति-पत्नी हों, सास-बहू हों, पिता पुत्र हों या फिर भाई-भाई, इनके बीच कभी न कभी आपस में टकराव हो ही जाता है। यदि बात नोकझोंक तक सीमित रहे तो ठीक लेकिन यदि कलह का रूप लेने लगे तो पारिवारिक वातावरण तनावपूर्ण हो जाता है। इस आलेख में अनेक प्रकार की समस्याओं के निदान एवं गृह कलह निवारण के अनुभूत उपाय दिए जा रहे हैं…
गृह कलह की कोई न को¬ई वजह जरूर होती है जैसे पति-पत्नी के तनाव का मुख्य कारण उनके घरवालों को लेकर उत्पन्न कलह होती है। कलह के कारण कई बार तो दाम्पत्य जीवन में तनाव इतना बढ़ जाता है कि तलाक तक की नौबत आ जाती है। इससे बचाव का एक सरल सा रास्ता यह है कि जब भी आप अपने लड़के या लड़की के गुणों का मिलान कराएं तो गुणों के साथ-साथ पत्री पर भी ध्यान दें। कई बार कलह बच्चों के जन्म को लेकर भी होता है जिसकी वजह से गृह क्लेश काफी बढ़ जाता है।
दाम्पत्य जीवन में कलह के कुछ मुख्य कारण इस प्रकार हैं।
– लड़के या लड़की की पत्री में सप्तम भाव में शनि का होना या गोचर करना।
– किसी पाप ग्रह की सप्तम या अष्टम भाव पर दृष्टि होना या राहु, केतु अथवा सूर्य का वहां बैठना
– पति-पत्नी की एक सी दशा या शनि की साढ़े साती का चलना भी कलह एवं तलाक का एक कारण होता है।
– शुक्र की गुरु में दशा का चलना या गुरु में शुक्र की दशा का चलना भी एक कारण है। कलह को दूर करने के कुछ उपायों का वर्णन यहां किया जा रहा है।
– अगर कलह का कारण शनि ग्रह से संबंधित है तो शनि ग्रह की शांति कर सकते हैं, शनि यंत्र पर जप कर सकते हैं और शनि की वस्तुओं का दान भी कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त सात मुखी रुद्राक्ष भी धारण कर सकते हैं। यह उपाय शनिवार को सायंकाल के समय करना ठीक होता है ।
– अगर गृह कलह राहु से संबंधित हो तो राहु यंत्र पर राहु के मंत्र का जप करें एवं 8 मुखी रुद्राक्ष धारण करें। यह सभी प्रकार के कलहों व बाधाओं से मुक्त करता है और राहु के दुष्प्रभाव का निवारण करता है। इसके लिए राहु का दान भी कर सकते हैं।– अगर गृह क्लेश का कारण केतु ग्रह हो तो उसकी वस्तुओं का दान एवं उसके मंत्र का जप करें। केतु यंत्र पर पूजा करें। गणेश मंत्र का जप करें। 9 मुखी रुद्राक्ष भी धारण कर सकते हैं।
अगर गृहस्थ जीवन में कलह किसी पराई स्त्री की वजह से हो तो ये उपाय करें।
– कई बार देखने में आता है कि न तो ग्रहों की परेशानी है, न ही पत्री में दशा एवं गोचर की स्थिति खराब है। फिर भी गृह कलह है जिसके कारण बात तलाक तक पहुंच जाती है। ऐसे में यह धारणा होती है कि किसी ने कुछ जादू टोना अर्थात तांत्रिक प्रयोग तो नहीं किया। अगर ऐसा लगे तो ये उपाय करें:
– घर में पूजा स्थान में बाधामुक्ति यंत्र स्थापित करें।
– शुक्ल पक्ष में सोमवार को उत्तर दिशा में मुख करके पति और पत्नी गौरीशंकर रुद्राक्ष धारण करें।
– शयन कक्ष में शुक्र यंत्र की स्थापना करें।
विवाह बाधा के उपाय
– बाधा मुक्ति यंत्र की स्थापना एवं रोज सुबह पूजा करें।
– शनि ग्रह के कारण विवाह में बाधा आ रही हो तो लड़के या लड़की को सातमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
– शनि ग्रह की वस्तुएं दान करनी चाहिए।
– शनि यंत्र पर शनिवार से शुरू करके रोज शनि के मंत्र का जप करना चाहिए।
सूर्य के कारण विवाह में बाधा आती हो तो:
– सूर्य यंत्र को अपने घर में स्थापित करके सूर्य मंत्र का जप करें। यह रविवार से शुरू करके रोज करें।
– सूर्य की वस्तुओं का दान करें। तांबे के एक लोटे में गेहूं भरकर रविवार की सुबह 6 से 8 बजे के बीच दान करें।
– रविवार को 1 मुखी रुद्राक्ष धारण करें।
राहु ग्रह के कारण विवाह बाधाः
अगर विवाह में बाधा राहु ग्रह के कारण आ रही हो तो ये उपाय करेंः
– आठमुखी रुद्राक्ष धारण करें।
– राहु यंत्र को अपने पूजा स्थान पर स्थापित करें।
– रविवार को जौ लेकर रविवार के दिन दान करें।
– किसी गरीब को पानमसाला दान करें।
– गुरुद्वारे में या किसी भी धर्मस्थल पर जूते चप्पल की सेवा करें।
अशुभ ग्रहों का उपाय कर लेना अनिवार्य होता है। खास कर पुरुषों को तो केतु के उपाय करने ही चाहिए, क्योंकि विवाह के बाद पुरुष के ग्रहों का संपूर्ण प्रभाव स्त्री पर पड़ता है।
लड़की की शादी में रुकावट आने पर
– गुरुवार को विष्णु-लक्ष्मी जी के मंदिर में जा कर विष्णु जी को कलगी (जो सेहरे के ऊपर लगी होती है) चढ़ाएं। साथ में बेसन के पांच लड्डू चढ़ाएं। शादी जल्दी हो जाएगी।
– किसी भी कारण से, योग्य वर नहीं मिल पा रहा हो, तो कन्या किसी भी गुरुवार को प्रातः नहा-धो कर पीले रंग के वस्त्र पहने। फिर बेसन के लड्डू स्वयं बनाए। लड्डुओं का आकार कुछ भी हो, परंतु उनकी गिनती 108 होनी चाहिए। फिर पीले रंग के प्लास्टिक की टोकरी में, पीले रंग का कपड़ा बिछा कर उन 108 लड्डुओं को उसमें रख दे तथा अपनी श्रद्धानुसार कुछ दक्षिणा रख दे। पास के किसी शिव मंदिर में जा कर, विवाह हेतु गुरु ग्रह की शांति और अनुकूलता के लिए संकल्प करके, सारा सामान किसी ब्राह्मण को दे दे। शिव-पार्वती से प्रार्थना कर अपने घर आ जाए।
यदि कन्या का विवाह न हो रहा हो और माता-पिता बहुत परेशान हांे, सारे प्रयास विफल हो रहे हांे तो उसे किसी शुभ मुहूर्त में निम्न मंत्रों में से किसी एक का जप करना चाहिए।लड़के की शादी के लिए
गुरुवार को पीले रंग की चुन्नी, पीला गोटा लगा कर, विष्णु-लक्ष्मी जी को चढ़ाएं। साथ में बेसन के पांच लड्डू चढ़ाएं तो शादी में आने वाली रुकावट दूर हो जाएगी।
ग्रहों के उपाय निम्नलिखित हैं
-सूर्य के लिए गेहूं और तांबे का बर्तन दान करें।
-चंद्र के लिए चावल, दूध एवं चांदी की वस्तु का दान करें।
-मंगल के लिए साबुत मसूर या मसूर की दाल दान करें।
-बुध के लिए साबुत मूंग का दान करें।
-गुरु के लिए चने की दाल एवं सोने की वस्तु दान करें।
-शुक्र के लिए दही, घी, कपूर और मोती में से किसी एक वस्तु का दान करें।
-शनि के लिए काले साबुत उड़द एवं लोहे की वस्तु का दान करें।
-राहु के लिए सरसों एवं नीलम का दान करें।
-केतु के लिए तिल का दान करें।

सोमवार, 5 फ़रवरी 2018

लक्ष्मी कृपा प्राप्ति के उपाय

अगर आप चाहते हैं कि देवी लक्ष्मी के कृपा आप पर सदैव बनी रहे तो इसके लिए आगे कुछ उपाय दिए गए हैं।

  • दूध चावल का दान समय समय पर धर्म स्थान में दे।
  • गाय एव कौवों को सदैव भोजन कराने से इंसान धनी होता है।
  • पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका हफ्ते का एक दिन शुक्रवार साथ बितायें एव दोनों साथ में गुलाबी रंग की आइसक्रीम खायें।
  • घर या व्यवसायिक स्थल में अभिमंत्रित श्रीयंत्र व कुबेर यंत्र स्थापित करें और नित्य धूप, दीप और फूल चढ़ायें। ऐसा करने पर लक्ष्मी जी का वास सदैव के लिए घर में बना रहेगा।
  • घर के धन स्थान पर पांच कौड़ी, शुद्ध चाँदी से निर्मित लक्ष्मी-गणेश, श्री यंत्र का सिक्का तथा सिद्ध कनकधारा यंत्र को लाल कपड़े की छोटी पोटली में रखे।
  • अपने व्यापारिक स्थल के मुख्य दरवाजे पर उल्लू पक्षी का फोटो लगायें व स्वास्तिक का चिन्ह भी लगायें।
  • 7 धन की समस्याओं को दूर करने के लिए रात के समय में चांदी की कटोरी में कपूर और लौंग को जलाएं। इस टोटके को कुछ दिनों तक रोज करें। यह उपाय आपको धन से मालामाल कर देगा। पैसों की कमी भी नहीं रहेगी।
  • शनिवार के दिन कपूर की कुछ बूंदे पानी में डालें और फिर इस पानी से स्नान करें। यह टोटका आपकी बंद किस्मत को खोलता है और आपको बीमारियों से भी बचाता है।
  • अपनी तिजोरी में 10 के लगभग 100 से ज्यादा नोट रखें। जेब में हमेशा कुछ सिक्के रखें। खुद को धनवान मानना शुरू कर दें और उसी तरह से कपड़े पहनें और जो भी आप खरीदना चाहते हैं उसके बारे में कल्पना करें। जो लोग खुद को दरिद्र मानते हैं, वे हमेशा दरिद्र ही बने रहते हैं।
  • और खुद को साफ और स्वच्छ बनाए रखें। प्रतिदिन मंदिर जाएं और जो मिला है उसके लिए धन्यवाद देने के साथ अपनी नई मांग रखें और उस मांग की पूर्ति पर श्रद्धा बनाए रखें।
  • विष्णु-लक्ष्मी का बड़ा-सा चित्र घर में रहना चाहिए।
  • शालिग्राम की नित्य पूजा पंचामृत के स्थान के साथ चंदन आदि लगाकर पूजन करें।
  • विष्णु-लक्ष्मी मंदिर में प्रति शुक्रवार को लाल रंग के फूल अर्पित करें।
  • मां लक्ष्मी की प्रतिमा के सामने 11 दिनों तक अखंड ज्योति (तेल का दीपक) प्रज्वलित करें। 11वें दिन 11 कन्या को भोजन कराकर एक सिक्का व मेहंदी दान में दें।
  • शुक्रवार के दिन दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर भगवान विष्णु का अभिषेक करें। इस उपाय से मां लक्ष्मी जल्दी प्रसन्न हो जाती हैं।
  • जिस घर में अक्सर लड़ाई होती रहती है, उस घर पर लक्ष्मी की कृपा नहीं होती है।
  • इसलिए यह सुनिश्चित करें कि आपके घर में लड़ाई न हो।
  • हर दिन श्रीसूक्त का पाठ कीजिए और श्रीसूक्त से हवन भी कीजिए।
  • घर में तुलसी का पौधा लगाएँ, और हर शाम तुलसी के पौधे के पास घी का दीपक जरुर जलाएँ।
  • जिस घर के लोग सूर्योदय से पहले उठ जाते हैं, फिर पूजा करके हीं नाश्ता करते हों।
  • उस घर पर लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है।
  • भगवान को भोग लगाने के बाद हीं भोजन कीजिए।
  • बिस्तर पर बैठकर भोजन न करें, इससे माँ लक्ष्मी रुष्ट होती है।
  • अपने घर की स्त्रियों को सम्मान दें, उन्हें जानबूझकर कष्ट भूलकर भी न दें। जिस घर में स्त्रियाँ
  • दुखी होती है, वहाँ लक्ष्मी कभी नहीं टिकती है।
  • जहाँ धन रखते हों, उस स्थान पर लाल कपड़ा बिछा दीजिये।
  • किसी का भी जूठा भोजन न करें, इससे उस व्यक्ति की दरिद्रता का कुछ अंश आपमें आ जाता है।
  • घर में कबाड़ न रखें, टूटे-फूटे चीजों को घर में नहीं रखना चाहिए।
  • रात में खाना खाने के बाद जूठे बर्तन रसोई में न छोड़ें। बर्तन और रसोई की सफाई करने के बाद हीं सोयें।
  • शाम के समय में कभी भी सेक्स न करें।
  • शाम होने के बाद घर में झाड़ू न लगाएँ।
  • पूजा रूम अलग रखें, पूजा रूम की शुद्धता का ख्याल रखें और जब भी पूजा करें तो पूरी तरह शुद्ध होकर पूजा करें।
  • किसी से भी कोई भी चीज मुफ्त में न लें, उसके सामान की कीमत अवश्य चुकाएँ।
  • किसी को धोखा देकर धन लेने से भी लक्ष्मी नाराज हो जाती है।
  • अपनी आय का कुछ हिस्सा धार्मिक कार्यों में जरुर लगाएँ, समय-समय पर दान भी करते रहें।
  • अपने इष्ट देवता / देवी की हर दिन पूजा करें।
  • हर शाम तुलसी जी पर शुद्ध देशी घी का दिया जलाने से घर में सुख, शांति और धन का आगमन होता है और लक्ष्मी जी हमेशा खुश रहती हैं।
  • पांच काली मिर्च के दाने लीजिये और इन दानों को अपने सिर पर वारकर एक-एक दाना चारों दिशाओं में फेंक दो और पाँचवें दाने को आकाश की और उछाल दो। कहते हैं इस टोटके से धन का आकस्मिक आगमन होता है।
  • नवरात्रि के नौ दिन आपको हर रोज श्रीसूक्त का पाठ शुद्ध मन से करने पर माता लक्ष्मी की कृपा हमेशा आप पर बनी रहेगी।
  • घर में पूजा की जो जगह होती है और जहाँ आप अपना धन रखते हैं वहाँ पर एक साफ लाल कपड़ा बिछा कर रखें। पूजा स्थल और तिजोरी की रोज शाम को पूजा की जाए और जितना संभव हो आपके घर की कोई स्त्री ही पूजा करे तो ज्यादा फलदाई होगा।
  • ऐसा कहा जाता है कि जो लोग रोजाना अपने माता पिता या बड़े बुजुर्गों के पांव छूकर आशीर्वाद लेते हैं माँ लक्ष्मी उनसे हमेशा प्रसन्न रहती हैं और उनके घर पर बरकत बनी रहती है। इसलिए हर सुबह स्नान आदि के बाद सबसे पहले गणेश और लक्ष्मी जी की पूजा करें और फिर अपने बड़े लोगों का आशीर्वाद लें। लक्ष्मी जी आप पर प्रसन्न होंगी।
  • यदि आर्थिक हालत कमजोर हो, घर में बरकत नहीं रहती, दुःखी रहते हो, ओर दूसरी समस्याओं से घिरे रहते हो तो शुक्ल पक्ष के हर बुद्धवार को पहला दिन मानते हुए 21 दिनों तक भगवान गणेश जी की मूर्ति पर जावित्री अर्पण करें और 21 रात को सोने से पहले आप भी थोड़ी सी जावित्री का सेवन करें।इस टोटके से आपके घर मे सुख, शांति, और पैसे का वास रहेगा।
  • जिस घर में सुख शांति होती है साथ ही जब घर के लोगों मे आपसी समझदारी होती है तब उस घर पर लक्ष्मी जी की कृपा बनी रहती है। कुल मिलाकर आपको अपने घर में खुशी का माहौल बनाना है और इसका सबसे सरल तरीका है कि आप अपने घर मैं बने मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति या तस्वीर रखिए जिसमें वो हवा में उड़ते हुए दिखाई दे रहे हों और रोजाना हनुमान जी की साफ मन से पूजा करें। इस उपाय से आपका भाग्य उदय होगा और घर में लक्ष्मी जी की हमेशा कृपा बनी रहेगी।
  • यदि काम मे मंदी और व्यापार में घाटा चल रहा है साथ ही सब कुछ करने के बाद भी मंदी बनी रहती है तो आपको मूँग की दाल की पांच मुठ्ठी मात्रा को हरे कपड़े में लपेट कर दिन की रोशनी में बहते जल में प्रवाहित करनी होगी। लक्ष्मी प्राप्ति का ये टोटका आपके व्यापार में लाभ दिलाएगा और आपका आर्थिक पक्ष मजबूत होने लगेगा। ये टोटका हर महीने के पहले बुधवार को करने से पैसे का प्रवाह आपकी और बना रहेगा।
  • आर्थिक परेशानी काफ़ी लंबे समय से चल रही हो और पैसा टिकता ना हो तो आपको बुधवार के दिन पीली वस्तु नहीं खानी है और हो सके तो हरी वस्तु का सेवन करें। साथ ही आपको बृहस्पतिवार को पीली चीज़ खानी होगी लेकिन हरी वस्तु का सेवन नहीं करना है। ये सरल सा उपाय आपकी धन प्राप्ति की राह को आसान बना देगा।
  • यदि आपके घर में बरकत नहीं रहती और आप चाहते हैं कि बरकत बनी रहे तो इसका एक सरल उपाय यह है कि आप शाम के समय किसी को भी दूध, दही और प्याज ना दें। अक्सर शाम को आस पड़ोसवाले दूध, दही और सब्जी माँगने आ जाते हैं ओर ज्ञानी लोगों का मानना है कि जो लोग उन्हें संध्या के समय ये चीज़ें देते हैं उनके घर में बरकत नहीं रहती।
  • अगर आप भोजन बेड पर, अपनी टाँगो पर रख कर या लेट कर करते हैं तो ऐसा कभी मत करिए क्योंकि ऐसा करना अन्न का निरादर होता है और लक्ष्मी जी नाराज़ हो जाती हैं। इसलिए जितना हो सके भोजन को पूरी श्रद्धा से नीचे या टेबल पर रख कर ही खाएँ।इस उपाय से कभी भी आर्थिक संकट आप पर हावी नहीं होंगे।
  • यदि आप चाहते हैं कि आपके पास धन टीके और जीवन में कभी भी उसकी कमी ना आए तो आपको ये याद रखना चाहिए कि वही धन आपके पास टिकता है जो आपने सही तरीके से कमाया हो। किसी को परेशान करके, किसी को धोखा देकर या किसी से छीना हुआ पैसा टिकता नहीं।
  • कन्या को लक्ष्मी जी का रूप माना जाता है इसलिए कन्या हो याऔरत हमेशा उसके प्रति अपनी नज़र साफ और अच्छी रखें साथ ही उन्हें मान सम्मान दें, इससे लक्षमी जी की कृपा हमेशा आपके ऊपर बनी रहेगी। साथ ही अपनी पत्नी का भी सम्मान करें और उसे घर के सभी फैसले लेने का पूरा अधिकार दें। आप जो कमाते हैं वो अपनी पत्नी और घर के बड़े बुजुर्गों को भी दें इससे धन की कमी कभी नहीं होगी।
  • लक्ष्मी प्राप्ति का एक टोटका जिसे हर कोई करने की सलाह देता है, वो ये है कि आप अर्क, छाक (छिला), खैर, अपामार्ग, पीपल, गूलर, खेजड़े, दुर्वा और कुशा की जड़ को बराबर मात्रा में चांदी की डिब्बी में रखकर हर रोज पूजें। इससे आपको सफलता मिलेगी और धन और वैभव का संचार होने लगेगा।
  • घर में मकड़ी के जाले रखना, रात को रसोई मे गंदे बर्तन रखना, घर में रखी चीज़ों पर धूल मिट्टी रहने देना, कमरे में हर चीज़ बिखरे रहने देना, घर में टूटे शीशे, और टूटी फूटी चीज़ें रखने से घर की बरकत कम होती है। इसी प्रकार अपने दफ्तर और दुकान में साफ सफाई ना रखने से व्यापार पर बुरा असर पड़ता है। घर और दुकान की साफ सफाई का विशेष ध्यान दें।
  • ऐसा माना जाता है की यदि आप घर के मुखिया हैं और आप अपने घर में हमेशा धन और सुख की कामना रखते हैं तो आपको रात के समय सफेद वस्तु का सेवन नहीं करना चाहिए जैसे दूध, दही, चावल आदि।
  • शुक्रवार के दिन सवा सौ ग्राम मिश्री और साबूत चावल एक सफेद कपड़े में बाँध कर अपनी ग़लतियों की माफी माँगते हुए और धन के स्थाई वास की कामना करते हुए बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। इस लक्ष्मी प्राप्ति के टोटके से आप पर लक्ष्मी जी का आशीर्वाद बना रहेगा और जैसे जैसे दिन बीतेंगे आपका लाभ भी बढ़ता जाएगा, व्यापार अच्छा होगा।
  • शनिवार के दिन पीपल का एक ताजा पत्ता लीजिये और उसे गंगा जल से धोकर शुद्ध कर लीजिये।उस पत्ते के मध्य में अपनी अनामिका उंगली का उपयोग करते हुए हल्दी और दही की पेस्ट से “ह्रीं” लिखें। इसके बाद उस पत्ते की पूजा कीजिये और फिर अपने बटुए में रख लीजिये। यदि ऐसा हर शनिवार को किया जाये तो कभी भी धन का अभाव नहीं होगा। पुराने पत्ते को किसी शुद्ध जगह जैसे मंदिर या पीपल के पेड़ के नीचे रख दीजिये।
  • झाड़ू को मुख्य द्वार के सामने रखना, उसे पैर लगाना, उसके ऊपर से गुज़रना और उसे खड़े करके रखने से लक्ष्मी प्राप्ति के मार्ग अवरोधित होते हैं। झाड़ू हमारे घर की साफ सफाई के लिए भागीदार माना जाता है और साफ जगह पर ही लक्ष्मी जी वास करती हैं।इसलिए हमेशा झाड़ू को किसी सही स्थान पर लेटाकर ही रखें।
  • कभी भी पैसे को पावं मत लगाओ, साथ ही पैसे को ऐसी जगह मत रखो जहाँ गंदगी हो या साफ सफाई ना हो।
  • हर महीने के शुक्ल पक्ष के दिन आप यदि लाल रंग के मटके पर जटा युक्त नारियल रख कर और उस मटके के मुख पर लाल मोली (कलावा) बाँध कर, सूर्य के अस्त होने से पहले बहते हुए जल में वो मटका प्रवाहित करते हो तो धन का आगमन होने लगता है।
  • अपने घर के ईशान कोण में श्री यंत्र ताम्रपत्र, रजत पत्र या भोजपत्र पर बनायें। प्राण प्रतिष्ठा करके नित्य पूजा करने से विविध ऐश्वर्य के साथ लक्ष्मी प्राप्त होती है।
  • घर में अनाज की बर्बादी कभी मत होने दो यदि कोई भोजन घर में बचता है तो उसे गाय या दूसरे किसी जानवर को खाने के लिए दे दो।
  • ऐसा कहा जाता है कि घर में ताजमहल, नटराज और बहते पानी का चित्र कभी नहीं रखने चाहिए, इससे बरकत नहीं होती और ये अशुभ माने जाते हैं।
  • हमेशा ये कोशिश करें कि आपके द्वारा पहने गए कपडे साफ़ सुथरे हों साथ ही फटे हुए कपड़े न पहने तो ही अच्छा होगा।
  • ऐसा माना जाता है कि घर का एक हिस्सा कच्चा (मिटटी का आंगन) छोड़ने से भी लाभ का वातावरण बनता है।
  • एक बार उपयोग में लाया गया जल संभाल कर न रखें।
  • हमेशा भगवान की पूजा और उन्हें भोग लगाने के बाद ही अन्न ग्रहण करें।
  • वास्तु के हिसाब से यदि तिजोरी को पूर्व दिशा में रखा जाये और यदि उसका मुख उत्तर दिशा में खुले तो धन की कभी कमी नहीं होगी। तिजोरी में लक्ष्मी जी की वो मूर्ति रखें जिसमें हाथी सूँड उठाये हुए हो, को बड़ा ही शुभ माना जाता है।
  • हर सोमवार को शमशान में बने शिव मंदिर पर शहद मिला हुआ दूध अर्पित करने से आकस्मिक धन की प्राप्ति या लक्ष्मी प्राप्ति होती है।

अष्टकूट का तार्किक ज्ञान

अष्टकूट का खास तोर पर  आज कुंडली मिलान में उपयोग होता है पर इसे समझ नही पाते कि क्यो यह देखते है ?
अष्टकूट का खास महत्व तो जातक के अंदर जो खूबी  व गुण है वो जानना है । सूर्य आत्मा का कारक है , चंद्र मन का कारक है ओर लग्न शरीर का कारक है ।
आचार्यो ने मन को पहचानने के लिये यह अष्टकूट बनाया है । अपने अंदर के मन की क्या स्थिति है वो पता नही होता है  तो इससे हम उसके सदगुण ओर दुर्गुणों का पता चल सकता है ।

*Medical astrology  में इसे क्यो लिया  क्योकि*
*1 धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष*
*2 इसके ऊपर से मनुष्य की प्रकृति ओर विकृती का ख्याल आता है ।*
*3 इस से मानव की sextuality & production capacity का पता चलता है ।*
*4 उससे पता चला है कि लग्न जीवन मे  आगे क्या प्रॉब्लम आ सकता है तो उसका ख्याल व उपाय कर सकते है ।*

यहाँ 8 चीजे है  जो चंद्र व चंद्र नक्षत्र व नक्षत्र चरण के साथ लिंक है जो हम अपने शरीर व अपने मन को जानने के लीये बनाया है ।
मन बहुत चंचल है वो जीवन शक्ति , विवेक , विचारशील है । वो एक विचार को अमल करने का काम करता है । मन व मगज शरीर के अंगों को कार्य करने की प्रेरणा देता है । मन कोई अंग नही है वो अंनत व असीम है । वो अपने विचारों से प्रत्याधात देता है व वो अपने अधिकार वो अंग पर हैजो कार्य को अमल करने का करता है । मन वो मनोहर , अतिसुंदर व उत्कृष्ट है वो सत्व , रजस  ओर तमस है , organs of action & organs of knowledge ये मन के अंकुश में है । मन बहुत ही संवेदनशील , बेचेन व अस्वस्थ है । चंद्र मन का  बड़ा निर्देशक है ।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में राशि और नक्षत्र के साथ चंद्र को स्थान दिया है क्योंकि उससे ही हम मनन चिंतन करते है और उसको समझने के लीये अष्टकूट में महत्व ज्यादा दिया है ।

अब देखते है कि 8 जो चीज से हम कैसे जाने और क्या जाने ?

1  वर्ण :-

वर्ण 4 प्रकार के है । ब्रामण , क्षत्रिय , वैश्य , शुद्र ।
यह वर्ण से हम  कल्चर , क्वालिटी , आध्यात्मिकत व ego develop कितने प्रमाण में है वो पता चलता है ।

2 वश्य :-

यहाँ पर  this is suggests degree of magnetic control or a men ability ( responsibility ) ।यहाँ दोनों का आकर्षण ओर प्रेम का वचन लेना और  अविछेडक स्वभाव दिखाता है ।
पांच वश्य है ।
1 चतुष्पाद , 2 मानव , 3 जलचर , 4 वनचर , 5 किट है ।
इससे मनुष्य की आंतरिक प्रकृती किस प्रकार की है वो पता चलता है ।

3 नक्षत्र व ताराबल

यहाँ नक्षत्र की जिसकी गति नही है माने फिक्स है । नक्षत्र के गुण थोड़े प्रमाण में व्यक्ति में दिखते है।
लग्न का नक्षत्र से व्यक्ति में गुण देखने को मिलता है ।
चंद्र का नक्षत्र उसका मन की बाबत दर्शाता है ।
सूर्य का नक्षत्र उसकी आत्मा की बाबत दर्शाता है ।
यहाँ तारा जातक की तबियत व उसकी खुशी दर्शाता है । अगर दिनों की तारा का मेल हो तो दोनों अच्छी तबियत बहुत साल तक रहती है ।

4  योनी :–

यहाँ सांसारिक जीवन मे भौतिक सुख मिले उसके लीये वो क्या अभिगम धरता है वो योनि से जान सकते है । इसमे दोनों के बीच की समजूति , खुशिया ओर सुमेल का ख्याल आता है जो बहुत ही जरुरी है योनि 14 प्रकार की है । जो सब ऐनिमल के नाम का उपयोग किया है जो उसके गुण व लक्षण देखने को मिलते है।
जैसे मूषक है तो वो खुद का 1 rs बचाने के लीये दूसरे का 100 rs का नुकसान करता है , intelligent , sharp & shrud ,  high production  but  less sextually.
 इस तरह सब योनि के लक्षण व गुण का उस जातक को जान सकते है ।

5  राश्याधिपति / ग्रह मैत्री :-

यहाँ पर जन्म राशि के स्वामिओ को देखा जाता है जिससे जातक की साइकोलॉजीकल पोजीशन क्या है ? इसका ख्याल आता है।
मेंटल क्वालिटी व कैपेसिटी का पता चलता है । ग्रह के गुण , खासियत व उसका नक्षत्र के गुण , खासियत  देख के  उसकी ताकत का अंदाज मिलता है ।


6  गण :-

यहाँ 3 प्रकार के गण है  1 देव , 2 मनुष्य , 3 राक्षस गण है ।
यहाँ जातक की प्रकृति व उसका टेम्परामेंट कैसा है वो मालूम पड़ता है । अपनी जिंदगी में वो सामाजिक व व्यवहारिक व जवाबदारी व फर्ज के बाबत का पता चलता है ।
वर्ण ओर गण का समन्वय से जातक का स्वभाव का सही परिचय मिलता है ।

7 भृकुट  :-

भृकुट माने लेन देन । दोनों का एकदूसरे से कैसा लेन देन है उसका ख्याल आता है । यहा पूर्व जन्म से चली आ रही लेन देन का पता चलता है । यहा चंद्र से राशि मेल व लग्न से भी देखे तो ज्यादा अच्छी तरह से जीवन मे स्थिरता व एकदूसरे को किस तरह से उपयोगी हो सकते है उसका पता चलता है।

8 नाडी :–


यहां पर गति , मानसिक शक्ति कितनी ? वो दर्शाता है । हरेक की गति अलग अलग होती है । यह वंशवृद्धि का विचार  के लीये देखते है । 27 नक्षत्र को 3 नाडी में विभाजित किया है । उनकी खासियत व नाम ---

1 वायु माने आध नाडी :-
पित्त स्थिर व शक्ति का संचय कर सही दिशा में उपयोग होता है ।

2 पित्त माने मध्य नाडी :-
कफ प्रकृती धैर्यवान दोनों के बीच संतुलन होता है ।

3 अंत्य माने कफ नाडी :-
वात प्रकृती , चंचल , शक्ति है परंतु जिस जगह use करना होता है वहा नही करते है । शक्ति को सही दिशा में नही वापरते है उनका वेस्ट करते है।
इसको अष्टकूट में बहुत महत्वपूर्ण दिया है । ये प्लस ओर नर्वस एनर्जी से फिजियोलॉजिकल ओर थोड़े प्रमाण में वारसागत ता को दर्शाता है । अगर विपरीत नाडी होतो कफ , पित्त , वायु का प्रभाव जन्म लेने वाले बच्चे पर ज्यादा प्रमाण में नही आता है । अगर ये सही न होतो बच्चे में शारीरिक व मानसिक खामियां भी देता है ।

सोमवार, 29 जनवरी 2018

जानिये किस ग्रह के कारण हैं आप परेशान…

 आज मैं आपकों इन नियमों के फेर से बचने के लिये प्रत्येक ग्रह के अशुभ फल बता रहा हूं जिनकी मदद से आप आसानी से जान  पाओगे की वास्तव में आप को कौन सा ग्रह परेशान कर रहा हैं। ये किसी पुस्तक  का लेख न होकर मेरे अनुभव पर अधारित हैं जिन्हे मैने कई बार परखा है।

अशुभ सूर्य के प्रभाव पहचान-  व्यक्ति के अंदर अहंकार की भावना  बढना,  पैतृक घर में बदलाव होना, घर के मुख्य को परेशानी आना, कानूनी  विवादों में फंसना, पिता के कारण या उसकी सम्पति के कारण विवाद होना, पत्नि  से विछोह होना, सीनीयर अधिकारी से विवाद, दांत, बाल, आंख व हृदय में रोग  होना, सरकारी नौकरी में अडचन आना आदि।
अशुभ चंद्र के प्रभाव  पहचान- घर-परिवार के सुखमी आना,  मानसिक रोगों से परेशान होना, भय व घबराहट की स्थिति बनी रहना, माता से  दूरियां, सर्दी-जुखाम रहना, छाती सम्बंधित रोग, या रोगों का बना रहना,  कार्य व धन में अस्थिरता।

अशुभ मंगल के प्रभाव पहचान- मन में क्रोध व चिडचिडापन रहना,  भाइयों से विरोध होना, रक्त सम्बंधी विकार, मकान या जमीन के कारण परेशान  होना, अग्निभय या चोट-खरोच लगना, मशीन इत्यादि से नुकसान होना।

अशुभ बुध के प्रभाव- अल्पबुद्धि होना, बोलने और सुनने में  दिक्कत होना, आत्मविश्वास की कमी होना, नपुंसकता, व्यापार में हानि होना,  माता से विरोध होना, शिक्षा में बाधायें आना, मित्रों से धोखे मिलना।

अशुभ गुरु के प्रभाव
 बडे भाई, गुरुजन से विरोध व अनैतिक मार्ग  से हानि होना, अधिकारी से विवाद, अहंकारी होना, धर्म से जुडकर अधर्म करना,  पाखंडी, स्त्रियों के विवाह सुख को हीन करना, संतान दोष, अपमान व अपयश  होना, मोटापा आना, सूजन व चर्बी के रोग होना।

 अशुभ शुक्र के प्रभाव-  अशुभ शुक्र स्त्रि सुखों से दूर करता हैं,  सेक्स रोग, विवाह बाधा, प्रेम में असफलता मिलना, चंचल होना, अपने साथी के  साथ धोखा करना, सुखों से हीन होना,

शुभ शनि के प्रभाव- शनि के कारण जातक झडालूं, आलसी, दरिद्री,  अधिक निद्रा आना, वैराग्य से युक्त, पांव में या नशों से सम्बंधित व स्टोन  की दिक्कत आना, उपेक्षाओं का शिकार होना, विवाह बाधायें आना, नपुंसकता आदि  होना।

अशुभ राहु के प्रभाव- नशे इत्यादि के प्रति रूचि बढना, गलत  कार्यो से जुडना, शेयर मार्किट आदि से हानि होना, घर-गृहस्थी से दूर होना,  जेल या कानूनी अपराधों में संलग्न होना, फोडे फुंसी व घृणित रोग होना।

अशुभ केतु के प्रभाव केतु के प्रभाव राहु मंगल के मिश्रित फल  जैसे होते हैं। अत्यधिक क्रोधी, शरीर में अधिक अम्लता होना जिस कारण पेट  में जलन होती हैं तथा चेहरे पर दाग धब्बे होते हैं। किसी प्रकार के आप्रेशन  से गुजरना पडता हैं।

शुक्रवार, 19 जनवरी 2018

कालसर्प दोष प्रकार एवं उपाय

अग्रे राहुरध: केतु सर्वे मध्यगता: ग्रहा: | योगोयं कालसर्पाख्यो शीघ्रं तं तु विनाशय ||
आगे राहु हो या निचे केतु, मध्य में सभी सातों ग्रह विधमान हो तो कालसर्प योग बनता है |
कालसर्प योग का प्रभाव :
काल सर्प योग में उत्पन्न जातक को मानसिक अशांति, धनप्राप्ति में बाधा, संतान अवरोध एवं गृहस्थी में प्रतिपल कलह के रूप में प्रकट होता है। प्रायः जातक को बुरे स्वप्न आते हैं। कुछ न कुछ अशुभ होने की आशंका मन में बनी रहती है। जातक को अपनी क्षमता एवं कार्यकुशलता का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है, कार्य अक्सर देर से सफल होते हैं। अचानक नुकसान एवं प्रतिष्ठा की क्षति इस योग के लक्षण हैं। जातक के शरीर में वात, पित्त, कफ तथा त्रिदोषजन्य असाध्य रोग अकारण उत्पन्न होते हैं। ऐसे रोग जो प्रतिदिन क्लेश (पीड़ा) देते हैं तथा औषधि लेने पर भी ठीक नहीं होते हों, काल सर्प योग के कारण होते हैं।जन्मपत्रिका के अनुसार जब-जब राहु एवं केतु की महादशा, अंतर्दशा आदि आती है तब यह योग असर दिखाता है। गोचर में राहु व केतु का जन्मकालिक राहु-केतु व चंद्र पर भ्रमण भी इस योग को सक्रिय कर देता है।
कालसर्प योग के भेद: काल सर्प योग उदित, अनुदित भेद से दो प्रकार के होते हैं। राहु के मुख मेें सभी सातों ग्रह ग्रसित हो जाएं तो उदित गोलार्द्ध नामक योग बनता है एवं राहु की पृष्ठ में यदि सभी ग्रह हों तो अनुदित गोलार्द्ध नामक योग बनता है।यदि लग्न कुंडली में सभी सातों ग्रह राहु से केतु के मध्य में हो लेकिन अंशानुसार कुछ ग्रह राहु केतु की धुरी से बाहर हों तो आंशिक काल सर्प योग कहलाता है। यदि कोई एक ग्रह राहु-केतु की धुरी से बाहर हो तो भी आंशिक काल सर्प योग बनता है। यदि केवल चंद्रमा अपनी तीव्रगति के कारण राहु केतु की धुरी से बाहर भी हो जाता है, तो भी काल सर्प दोष बना रहता है। अतः मुख्यतः छः ग्रह शनि, गुरु, मंगल व सूर्य, बुध, शुक्र राहु के एक ओर हैं तो काल सर्प दोष बनता है।
यदि राहु से केतु तक सभी भावों में कोई न कोई ग्रह स्थित हो तो यह योग पूर्ण रूप से फलित होता है। यदि राहु-केतु के साथ सूर्य या चंद्र हो तो यह योग अधिक प्रभावशाली होता है। यदि राहु, सूर्य व चंद्र तीनों एक साथ हों तो ग्रहण काल सर्प योग बनता है। इसका फल हजार गुना अधिक हो जाता है। ऐसे जातक को काल सर्प योग की शांति करवाना अति आवश्यक होता है।
बुध व शुक्र सूर्य के साथ ही विद्यमान रहते हैं। एवं सूर्य को राहु-केतु के एक ओर से दूसरी ओर आने में 6 माह तक लगते हैं। अतः काल सर्प योग अधिकतम 6 माह या उससे कम ही रहता है।
जब जब कालसर्प योग की स्थिति बनती है, पृथ्वी पर ग्रहों का गुरुत्वाकर्षण एक ओर बढ़ जाता है। जिसके कारण पृथ्वी पर अधिक हलचल रहती है व अधिक भूकंप व सुनामी आदि आते हैं। भूकंप की तीव्रता बढ़ जाती है। ऐसा पाया गया है कि अस्पताल में गर्भपात के केस अधिक होते हैं या अधिक मात्रा में आपरेशन होते हैं, खून का स्राव अधिक होता है एवं मानसिक रोग अधिक होते हैं। अतः कालसर्प दोष का प्रभाव विशेष देखने में आता है।
कालसर्प योग के प्रकार:
द्वादश भावों में राहु की स्थिति के अनुसार काल सर्प योग मुख्यतः द्वादश प्रकार के होते हैं। राहु जिस भाव में होकर कालसर्प दोष बनाता है उसी भाव के फल प्राप्त होते हैं। जैसे -
1 अनंत- स्वास्थ्य में परेशानी रहती है। षडयंत्र एवं सरकारी परेशानियों को झेलना पड़ता है। अनंत दुखों का सामना करना पड़ता है। बात-बात पर झूठ बोलना पड़ता है। पत्नी से झगड़ा रहता है।
2 कुलिक- आंखों में परेशानी रहती है, पेट खराब रहता है। लोग बोलने को गलत समझ लेते हैं और उसकी सफाई देनी पड़ती है। धन की कमी महसूस होती है। कुल में क्लेश झेलने पड़ते हैं।
3 वासुकि- कानों के कष्टों से पीडि़त रहते हैं। भाई बहनों से मेल मिलाप में कमी रहती है। कभी-कभी ऊर्जा का अभाव महसूस होता है। कैंसर आदि रोग से भी ग्रसित होने का भय होता है।
4 शंखपाल- माता-पिता का स्वास्थ्य खराब रहता है। घर में कलह बनी रहती है। घर में व वाहन में कुछ न कुछ मरम्मत की आवश्यकता पड़ती रहती है। काम में मन नहीं लगता है। व्यवसाय में नुकसान झेलना पड़ता है।
5 पदम्- संतान कहना नहीं मानती या संतान से कष्ट होता है। सोच-विचार कर किए गए कार्य भी हानि देते हैं। या आखिर में छोटी गलती के कारण नुकसान झेलना पड़ता है।
6 महापदम- स्वास्थ्य परेशान करता है। मामा की ओर से नुकसान होता है। खर्चे अधिक हो जाते हैं। अचानक अस्पताल आदि पर खर्च हो जाता हैं। जो वित्तीय प्रवाह को बिगाड़ देता है। अक्सर दुश्मन हावी हो जाते हैं या समय व पैसा बर्वाद करवा देते हैं।
7 तक्षक- पत्नी साथ नहीं देती। पारिवारिक व गृहस्थ जीवन उजड़ा सा रहता है। अपना स्वास्थ्य भी कभी-कभी अचानक खराब हो जाता है। धन हानि होती है।
8 कर्कोटक- स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। पेट की बीमारी व अपचन बनी रहती है। लोग थोड़ा बोलने पर भी प्रतिक्रिया करते हैं। धन संचय में परेशानी होती है। परिवार में कलह होती है।
9 शंखचुड- बड़े लोगों से मिलने में धन व समय नष्ट होता है। सिर दर्द या चक्कर आने का रोग हो जाता है। भाग्य साथ नहीं देता। हर काम में दुगनी मेहनत करनी पड़ती है।
10 घातक- पिता से विचार नहीं मिलते हैं। अचानक हानि हो जाती है। परिवार में कलह रहती है। एक काम अच्छी तरह से सेट नहीें होता। माता-पिता का स्वास्थ्य ध्यान आकर्षित करता रहता है।
11 विषधर- लाभ अचानक हानि में बदल जाता है। बड़े भाई बहनों का सहयोग नहीं प्राप्त होता। मित्र मंडली समय खराब कर देती है। एक से अधिक संबंध पारिवारिक कलह का कारण बनते हैं।
12 शेष नाग- रोग व अस्पताल पर विशेष व्यय होता है। कैंसर जैसे रोग तंग करते हैं। अपव्यय होता है। निरर्थक यात्रा होती है। समय-समय पर पैसे की दिक्कत महसूस होती है।

कुछ मुख्य उपाय

1. प्रति वर्ष मे एक बार किसी सिद्धस्थल जैंसे अमलेश्वर महाकाल धाम जाकर कालसर्प दोष की शांति करवाए एवं वर्ष मे एक-दों बार घर मे या मंदिर मे काल सर्पं शांति करवाएं। 2. नाग पंचमी पर रुद्राभिषेक करवाएं व नाग नागिन के एक या नौ जोड़े विसर्जित करें। 3. कालसर्प अंगूठी, लाकेट या यंत्र धारण करें। 4. भगवान विष्णु, शिव, राहु व केतु का पाठ व मंत्र जाप करें। 5. कालसर्प योग यंत्र के सम्मुख 43 दिन तक सरसों के तेल का दीया जलाकर निम्न मंत्र का जप करें। 6. ग्रहण के दिन तुला दान करें व नीले कंबल दान करें। 7. "ॐ नम: शिवाय" मंत्र का जप प्रतिदिन रुद्राक्ष माला पर करें व माला को धारण करें। 8. गरुड़ भगवान की पूजा करें। 9. 7 बुधवार एकाक्षी नारियल अपने ऊपर से उतारकर प्रवाहित करें। 10. 8, 9, व 13 मुखी रुद्राक्ष का कवच धारण करें।

मंगल ग्रह-एक दृष्टि

मंगल स्वभाव से तामसी और उग्र ग्रह है
विवाह संबंधों में मंगल दोष प्रमुख व्यवधान होता है और कई बार अज्ञानतावश भी मंगल वाली कुंडली का हौआ बना दिया जाता है और जातक का विवाह हो ही नहीं पाता। मंगल स्वभाव से तामसी और उग्र ग्रह है। यह जिस स्थान पर बैठता है उसका भी नाश करता है जिसे देखता है उसकी भी हानि करता है। केवल मेष व वृश्चिक राशि (स्वग्रही) में होने पर यह हानि नहीं करता। जब कुंडली में मंगल प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश स्थान में हो तो पत्रिका मांगलिक मानी जाती है।

प्रथम स्थान का मंगल सातवीं दृष्टि से सप्तम को व चतुर्थ दृष्टि से चौथे घर को देखता है। इसकी तामसिक वृत्ति से वैवाहिक जीवन व घर दोनों प्रभावित होते हैं।चतुर्थ मंगल मानसिक संतुलन बिगाड़ता है, गृह सौख्‍य में बाधा पहुँचाता है, जीवन को संघर्षमय बनाता है। चौथी दृष्टि से यह सप्तम स्थान यानी वैवाहिक जीवन को प्रभावित करता है।सप्तम मंगल जीवनसाथी से मतभेद बनाता है व मतभेद कई बार तलाक तक पहुँच सकते हैं।अष्टम मंगल संतति सुख को प्रभावित करता है। जीवन साथी की आयु कम करता है।द्वादश मंगल विवाह व शैय्या सुख को नष्ट करता है। विवाह से नुकसान व शोक का कारक है।

कब नष्ट होता है यह दोष

मंगल गुरु की शुभ दृष्टि में होकर्क व सिंह लग्न में (मंगल राजयोगकारक ग्रह है।)उच्च राशि (मकर) में होने पर।स्व राशि का मंगल होने परशुक्र, गुरु व चंद्र शुभ होने पर भी मंगल की दाहकता कम हो जाती है।पत्रिका मिलान करते समय यदि दूसरे जातक की कुंडली में इन्हीं स्थानों पर मंगल, शनि या राहु हो तो यह दोष कम हो जाता है।

बुधवार, 17 जनवरी 2018

बुधादित्य योग और उसके फल

किसी भी  कुंडली में योग ही उसे ठीक स्थिती प्रदान करने में सहायक बनते आज उसी श्रंखला में बुधादित्य योग जातक को कुंडली के विभिन्न घर में उत्तम लाभ प्रदान करते हे । बुधादित्य योग कुंडली में अपनी स्थिति के आधार पर नीचे बताए गए कुछ संभावित फल प्रदान करते है। श्रेष्ठ योगो में एक योग है ये।

कुंडली के पहले घर अर्थात लग्न में स्थित बुधादित्य योग जातक को मान, सम्मान, प्रसिद्धि, व्यवसायिक सफलता तथा अन्य कई प्रकार के शुभ फल प्रदान कर सकता है।

कुंडली के दूसरे घर में बनने वाला बुध आदित्य योग जातक को धन, संपत्ति, ऐश्वर्य, सुखी वैवाहिक जीवन तथा अन्य कई प्रकार के शुभ फल प्रदान कर सकता है।

कुंडली के तीसरे घर में बनने वाला बुधादित्य योग जातक को बहुत अच्छी रचनात्मक क्षमता प्रदान कर सकता है जिसके चलते ऐसे जातक रचनात्मक क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त तीसर घर का बुध आदित्य योग जातक को सेना अथवा पुलिस में किसी अच्छे पद की प्राप्ति भी करवा सकता है।

कुंडली के चौथे घर में स्थित बुधादित्य योग जातक को सुखमय वैवाहिक जीवन, ऐश्वर्य, रहने के लिए सुंदर तथा सुविधाजनक घर, वाहन सुख तथा विदेश भ्रमण आदि जैसे शुभ फल प्रदान कर सकता है।

कुंडली के पांचवे घर में बनने वाला बुध आदित्य योग जातक को बहुत अच्छी कलात्मक क्षमता, नेतृत्व क्षमता तथा आध्यातमिक शक्ति प्रदान कर सकता है जिसके चलते ऐसा जातक अपने जीवन के अनेक क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर सकता है।

कुंडली के छठे घर में स्थित बुधादित्य योग जातक को एक सफल वकील, जज, चिकित्सक, ज्योतिषी आदि बना सकता है तथा इस योग के प्रभाव में आने वाले जातक अपने व्यवसाय के माध्यम से बहुत धन तथा ख्याति अर्जित कर सकते हैं।

कुंडली के सातवें घर में स्थित बुधादित्य योग जातक के वैवाहिक जीवन को सुखमय बना सकता है तथा यह योग जातक को सामाजिक प्रतिष्ठा तथा प्रभुत्व वाला कोई पद भी दिला सकता है।

कुंडली के आठवें घर में बनने वाला बुधादित्य योग जातक को किसी वसीयत आदि के माध्यम से धन प्राप्त करवा सकता है तथा यह योग जातक को आध्यात्म तथा परा विज्ञान के क्षेत्रों में भी सफलता प्रदान कर सकता है।

कुंडली के नौवें घर में बनने वाला बुध आदितय योग जातक को उसके जीवन के अनेक क्षेत्रों में सफलता प्रदान कर सकता है तथा इस योग के शुभ प्रभाव में आने वाले जातक सरकार में मंत्री पद अथवा किसी प्रतिष्ठित धार्मिक संस्था में उच्च पद भी प्राप्त कर सकते हैं।

कुंडली के दसवें घर में बनने वाला बुधादित्य योग जातक को उसके व्यवसायिक क्षेत्र में सफलता प्रदान कर सकता है तथा ऐसा जातक अपने किसी अविष्कार, खोज अथवा अनुसंधान के सफल होने के कारण बहुत ख्याति भी प्राप्त कर सकता है।

कुंडली के ग्यारहवें घर में बनने वाला बुधादित्य योग जातक को बहुत मात्रा में धन प्रदान कर सकता है तथा इस प्रकार के बुध आदित्य योग के प्रभाव में आने वाला जातक सरकार में मंत्री पद अथवा कोई अन्य प्रतिष्ठा अथवा प्रभुत्व वाला पद भी प्राप्त कर सकता है।

कुंडली के बारहवें घर में बनने वाला बुधादित्य योग जातक को विदेशों में सफलता, वैवाहिक जीवन में सुख तथा आध्यात्मिक विकास प्रदान कर सकता है ।

मंगलवार, 16 जनवरी 2018

मंगल दोष का स्वमेव परिहार

मंगल दोष के परिहार स्वयं की कुंडली में (मंगल भी निम्न लिखित परिस्तिथियों में दोष कारक नहीं होगा)

1 जैसे शुभ ग्रहों का केंद्र में होना, शुक्र द्वितीय भाव में हो, गुरु मंगल साथ हों या मंगल पर गुरु की दृष्टि हो तो मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है।

2 वर-कन्या की कुंडली में आपस में मांगलिक दोष की काट- जैसे एक के मांगलिक स्थान में मंगल हो और दूसरे के इन्हीं स्थानों में सूर्य, शनि, राहू, केतु में से कोई एक ग्रह हो तो दोष नष्ट हो जाता है।

3 मेष का मंगल लग्न में, धनु का द्वादश भाव में, वृश्चिक का चौथे भाव में, वृष का सप्तम में, कुंभ का आठवें भाव में हो तो भौम दोष नहीं रहता।

4 कुंडली में मंगल यदि स्व-राशि (मेष, वृश्चिक), मूलत्रिकोण, उच्चराशि (मकर), मित्र राशि (सिंह, धनु, मीन) में हो तो भौम दोष नहीं रहता है।

5 सिंह लग्न और कर्क लग्न में भी लग्नस्थ मंगल का दोष नहीं होता है। शनि, मंगल या कोई भी पाप ग्रह जैसे राहु, सूर्य, केतु अगर मांगलिक भावों (1,4,7,8,12) में कन्या जातक के हों और उन्हीं भावों में वर के भी हों तो भौम दोष नष्ट होता है। यानी यदि एक कुंडली में मांगलिक स्थान में मंगल हो तथा दूसरे की में इन्हीं स्थानों में शनि, सूर्य, मंगल, राहु, केतु में से कोई एक ग्रह हो तो उस दोष को काटता है।

 6 कन्या की कुंडली में गुरु यदि केंद्र या त्रिकोण में हो तो मंगलिक दोष नहीं लगता अपितु उसके सुख-सौभाग्य को बढ़ाने वाला होता है।

7 यदि एक कुंडली मांगलिक हो और दूसरे की कुंडली के 3, 6 या 11वें भाव में से किसी भाव में राहु, मंगल या शनि में से कोई ग्रह हो तो मांगलिक दोष नष्ट हो जाता है।

8 कुंडली के 1,4,7,8,12वें भाव में मंगल यदि चर राशि मेष, कर्क, तुला और मकर में हो तो भी मांगलिक दोष नहीं लगता है।

9 वर की कुण्डली में मंगल जिस भाव में बैठकर मंगली दोष बनाता हो कन्या की कुण्डली में उसी भाव में सूर्य, शनि अथवा राहु हो तो मंगल दोष का शमन हो जाता है.

10 जन्म कुंडली के 1,4,7,8,12,वें भाव में स्थित मंगल यदि स्व ,उच्च मित्र आदि राशि -नवांश का ,वर्गोत्तम ,षड्बली हो तो मांगलिक दोष नहीं होगा

11 यदि 1,4,7,8,12 भावों में स्थित मंगल पर बलवान शुभ ग्रहों कि पूर्ण दृष्टि हो

सोमवार, 15 जनवरी 2018

नवग्रह के दोष दूर करने के अचूक उपाय

ज्योतिष की मानें तो हर कोई किसी न किसी ग्रह दोष से ग्रस्त रहता है. कई बार उसे पता नहीं चलता कि किस वजह से उसकी जिंदगी में तूफान थमने का नाम नहीं ले रही. किस वजह से जीना मुहाल हो रहा है. तो क्या हैं नवग्रह दोष के लक्षण और उससे निजात पाने के उपाय. अगर बिना बात घर में कलह क्लेश हो, हर काम बनते-बनते बिगड़ जाते हैं, शत्रु अकारण परेशान कर रहे हों , सेहत नहीं दे रही साथ, मान सम्मान का हो रहा हो नाश, बच्चे की बुद्धि का नहीं हो रहा विकास तो आप नवग्रह दोषों से ग्रस्त हैं. फिर तो आप जान लीजिए वो 9 उपाय जो खत्म करेगा 9 ग्रहों के दोष.

1. सूर्य दोष के लक्षण:- असाध्य रोगों के कारण परेशानी, सिरदर्द, बुखार, नेत्र संबंधी कष्ट, सरकार के कर विभाग से परेशानी, नौकरी में बाधा

उपाय:- भगवान विष्णु की आराधना करें [ ऊं नमो भगवते नारायणाय ] मंत्र का 1 माला लाल चंदन की माला से जाप करें गुड़ खाकर पानी पीकर कार्य आरंभ करें बहते जल में 250 ग्राम गुड़ प्रवाहित करें सवा पांच रत्ती का माणिक तांबे की अंगूठी में बनवायें रविवार को सूर्योंदय के समय दाएं हाथ की मध्यमा अंगूली में धारण करें मकान के दक्षिण दिशा के कमरे में अंधेरा रखें पशु-पक्षियों के लिए पीने के पानी की व्यवस्था करें घर में मां, दादी का आशीर्वाद जरूर लें.

2. चंद्रमा दोष के लक्षण:- जुखाम, पेट की बीमारियों से परेशानी, घर में असमय पशुओं की मत्यु की आशंका, अकारण शत्रुओं का बढ़ना, धन का हानि

उपाय:- भगवान शिव की आराधना करें [ ऊं नम: शिवाय ] मंत्र का रूद्राक्ष की माला से 11 माला जाप करें बड़े बुजुर्गों, ब्रह्मणों, गुरूओं का आशीर्वाद लें सोमवार को सफेद कपड़े में मिश्री बांधकर जल में प्रवाहित करें चांदी की अंगूठी में चार रत्ती का मोती सोमवार को जाएं हाथ अनामिका में धारण करें शीशे की गिलास में दूध, पानी पीने से परेहज करें 28 वर्ष के बाद विवाह का निर्णय लें लाल रंग का रूमाल हमेशा जेब में रखें माता-पिता की सेवा से विशेष लाभ.

3. मंगल दोष के लक्षण:- घर में चोरी होने का डर, घर-परिवार में लड़ाई-झगड़े की आशंका, भाई के साथ संबंधों में अनबन, दांपत्य जीवन में तनाव, अकाल मृत्यु की आशंका.

उपाय: भगवान हनुमान की आराधना करें [ ऊं हं हनुमते रूद्रात्मकाय हुं फट कपिभ्यो नम: ] का 1 माला जाप करें हनुमान चालीसा या बजरंगबाण का रोज पाठ करें त्रिधातु की अंगुठी बाएं हाथ की अनामिका अंगूली में धारण करें 400 ग्राम चावल दूध से धोकर 14 दिन तक पिवत्र जल में प्रवाहित करें घर में नीम का पौधा लगायें बहन, बेटी, मौसी, बुआ, साली को मीठा खिलायें बहन, बुआ को कपड़े भेंट न दें तंदूर की बनी रोटी कुत्तों को खिलायें.

4. बुध दोष के लक्षण: स्वभाव में चिड़चिड़ापन, जुए-सट्टे के कारण धन की बड़ी हानि, दांत से जुड़े रोगों के कारण परेशानी सिर दर्द. अधिक तनाव की स्थिति.

उपाय: मां दुर्गा की आराधना करें ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे मंत्र का 5 माला जाप करें देवी के सामने अखंड घी का दीया जलायें घर की पूर्व दिशा में लाल झंडा लगायें सोने के आभूषण धारण करें, हरे रंग से परहेज करें खाली बर्तनों को ढ़ककर न रखें चौड़े पत्ते वाले पौधे घर में लगायें, मुख्य द्वार पंचपल्लव का तोरण लगायें 100 ग्रíम चावल, चने की दाल बहते जल में प्रवाहित करें.

5. गुरू दोष के लक्षण:- सोने की हानि, चोरी की आशंका उच्च शिक्षा की राह में बाधाएं झूठे आरोप के कारण मान-सम्मान में कमी पिता को हानि होने की आशंका.

उपाय:- परमपिता ब्रह्मा की आराधना करें बहते पानी में बादाम, तेल, नारियल प्रवाहित करें माथे पर केसर का तिलक लगायें सोने की अंगूठी में सवा पांच रत्ती का पुखराज गुरूवार को दाएं हाथ की तर्जनी अंगुली में धारण करें पूजा स्थल की नियमित रूप से सफाई करें पीपल के पेड़ पर 7 बार पीला धागा लेपटकर जल दें 600 ग्राम पीले चने मंदिर में दान दें जुए-सट्टे की लत न पालें, मांसाहार-मद्यपान से परहेज करें कारोबार में भाई का साथ लाभकारी संबंध मधुर बनायें रखें.

शुक्र दोष के लक्षण:- बिना किसी बीमारी के अंगूठे, त्वचा संबंधी रोगों से परेशानी, राजनीति के क्षेत्र में हानि, प्रेम व दापंत्य संबंधों में अलगाव जीवनसाथी के स्वास्थ्य को लेकर तनाव.

उपाय: मां लक्ष्मी की आराधना करें. [ ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसिद प्रसिद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम: ] रोज रात में मंत्र का 1 माला जाप करें मां लक्ष्मी को कमल के पुष्पों की माला चढ़ायें मंदिर में आरती पूजा के लिए गाय का घी दान करें 2 किलो आलू में हल्दी या केसर लगाकर गाय को खिलायें चांदी या मिटटी के बर्तन में शहद भरकर घर की छत पर दबा दें आडू की गुटली में सूरमा भरकर घास वाले स्थान पर दबा दें शुक्रवार के दिन मंदिर में कांसे के बर्तन का दान करें लाल रंग के गाय की सेवा करें, 800 ग्राम जिमीकंद मंदिर में दान करें.

शनि दोष के लक्षण: पैतृक संपत्ति की हानि, हमेशा बीमारी से परेशानी मुकदमे के कारण परेशानी बनते हुए काम का बिगड़ जाना.

उपाय: भगवान भैरव की आराधना करें [ ऊं प्रां प्रीं प्रौं शं शनिश्चराय नम: ] मंत्र का 1 माला जाप करें शनिदेव का 1 किलो सरसों के तेल से अभिषेक करें सिर पर काला तेल लगाने से परहेज करें 43 दिन तक लगातार. शनि मंदिर में जाकर नीले पुष्प चढ़ायें कौवे या सांप को दूध, चावल खिलायें किसी बर्तन में तेल भरकर अपना चेहरा देखें, बर्तन को जमीन में दबा दें शनिवार 800 ग्राम दूध, उड़द जल में प्रवाहित करें जल में दूध मिलाकर लकड़ी या पत्थर पर बैठकर स्नान करें घर की छत पर साफ-सफाई का ध्यान रखें 12 नेत्रहीन लोगों को भोजन करायें.

राहु दोष के लक्षण: मोटापेके कारण परेशानी अचानक दुर्घटना, लड़ाई-झगड़े की आशंका हर तरह के व्यापार में घाटा.

उपाय: मां सरस्वती की आराधना करें [ ऊं ऐं सरस्वत्यै नम: ] मंत्र का 1 माला जाप करें तांबेके बर्तन में गुड़, गेहूं भरकर बहते जल में प्रवाहित करें माता से संबंध मधुर रखें 400 ग्राम धनिया, बादाम जल में प्रवाहित करें घर की दहलीज के नीचे चांदी का पत्ता लगायें सीढ़ियों के नीचे रसोईघर का निर्माण न करवायें रात में पत्नी के सिर के नीचे 5 मूली रखें, सुबह मंदिर में दान कर दें मां सरस्वती के चरणों में लगातार 6 दिन तक नीले पुष्प की माला चढ़ायें चांदी की गोली हमेशा जेब में रखें लहसुन, प्याज, मसूर के सेवन से परहेज करें.

केतु दोष के लक्षण: बुरी संगत के कारण धन का हानि जोड़ों के दर्द से परेशानी संतान का भाग्योदय न होना, स्वास्थ्य के कारण तनाव.

उपाय: भगवान गणेश की आराधना करें [ ऊं गं गणपतये नम:] मंत्र का 1 माला जाप करें गणेश अथर्व शीर्ष का पाठ करें कुंवारी कन्याओं का पूजन करें, पत्नी का अपमान न करें घर के मुख्य द्वार पर दोनों तरफ तांबे की कील लगायें पीले कपड़े में सोना, गेहूं बांधकर कुल पुरोहित को दान करें दूध, चावल, मसूर की दाल का दान करें बाएं हाथ की अंगुली में सोना पहनने से लाभ 43 दिन तक मंदिर में लगातार केला दान करें काले व सफेद तिल बहते जल में प्रवाहित करें.

राहु की महादशा में नवग्रहों की अंतर्दशाओं का फल एवं उपाय अशोक शर्मा राहु मूलतः छाया ग्रह है, फिर भी उसे एक पूर्ण ग्रह के समान ही माना जाता है। यह आद्र्रा, स्वाति एवं शतभिषा नक्षत्र का स्वामी है। राहु की दृष्टि कुंडली के पंचम, सप्तम और नवम भाव पर पड़ती है। जिन भावों पर राहु की दृष्टि का प्रभाव पड़ता है, वे राहु की महादशा में अवश्य प्रभावित होते हैं। राहु की महादशा 18 वर्ष की होती है।
राहु में राहु की अंतर्दशा का काल 2 वर्ष 8 माह और 12 दिन का होता है। इस अवधि में राहु से प्रभावित जातक को अपमान और बदनामी का सामना करना पड़ सकता है। विष और जल के कारण पीड़ा हो सकती है। विषाक्त भोजन, से स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। इसके अतिरिक्त अपच, सर्पदंश, परस्त्री या पर पुरुष गमन की आशंका भी इस अवधि में बनी रहती है। अशुभ राहु की इस अवधि में जातक के किसी प्रिय से वियोग, समाज में अपयश, निंदा आदि की संभावना भी रहती है। किसी दुष्ट व्यक्ति के कारण उस परेशानियों का भी सामना करना पड़ सकता है।

उपाय: भगवान शिव के रौद्र अवतार भगवान भैरव के मंदिर में रविवार को शराब चढ़ाएं और तेल का दीपक जलाएं। शराब का सेवन कतई न करें। लावारिस शव के दाह-संस्कार के लिए शमशान में लकड़िया दान करें। अप्रिय वचनों का प्रयोग न करें।

राहु में बृहस्पति: राहु की महादशा में गुरु की अंतर्दशा की यह अवधि दो वर्ष चार माह और 24 दिन की होती है। राक्षस प्रवृत्ति के ग्रह राहु और देवताओं के गुरु बृहस्पति का यह संयोग सुखदायी होता है। जातक के मन में श्रेष्ठ विचारों का संचार होता है और उसका शरीर स्वस्थ रहता है। धार्मिक कार्यों में उसका मन लगता है। यदि कुंडली में गुरु अशुभ प्रभाव में हो, राहु के साथ या उसकी दृष्टि में हो तो उक्त फल का अभाव रहता है।

उपाय : किसी अपंग छात्र की पढ़ाई या इलाज में सहायता करें। शैक्षणिक संस्था के शौचालयों की सफाई की व्यवस्था कराएं। शिव मंदिर में नित्य झाड़ू लगाएं। पीले रंग के फूलों से शिव पूजन करें।

राहु में शनि: राहु में शनि की अंतदर्शा का काल 2 वर्ष 10 माह और 6 दिन का होता है। इस अवधि में परिवार में कलह की स्थिति बनती है। तलाक भाई, बहन और संतान से अनबन, नौकरी में या अधीनस्थ नौकर से संकट की संभावना रहती है। शरीर में अचानक चोट या दुर्घटना के दुर्योग, कुसंगति आदि की संभावना भी रहती है। साथ ही वात और पित्त जनित रोग भी हो सकता है। दो अशुभ ग्रहों की दशा-अंतर्दशा कष्ट कारक हो सकती है।

उपाय : भगवान शिव की शमी के पत्रों से पूजा और शिव सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए। महामृत्युंजय मंत्र के जप स्वयं, अथवा किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण से कराएं। जप के पश्चात् दशांश हवन कराएं जिसमें जायफल की आहुतियां अवश्य दें। नवचंडी का पूर्ण अनुष्ठान करते हुए पाठ एवं हवन कराएं। काले तिल से शिव का पूजन करें।

राहु में बुध: राहु की महादशा में बुध की अंतर्दशा की अवधि 2 वर्ष 3 माह और 6 दिन की होती है। इस समय धन और पुत्र की प्राप्ति के योग बनते हैं। राहु और बुध की मित्रता के कारण मित्रों का सहयोग प्राप्त होता है। साथ ही कार्य कौशल और चतुराई में वृद्धि होती है। व्यापार का विस्तार होता है और मान, सम्मान यश और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

उपाय: भगवान गणेश को शतनाम सहित दूर्वाकुंर चढ़ाते रहें। हाथी को हरे पत्ते, नारियल गोले या गुड़ खिलाएं। कोढ़ी, रोगी और अपंग को खाना खिलाएं। पक्षी को हरी मूंग खिलाएं।

राहु में केतु: राहु की महादशा में केतु की यह अवधि शुभ फल नहीं देती है। एक वर्ष और 18 दिन की इस अवधि के दौरान जातक को सिर में रोग, ज्वर, शत्रुओं से परेशानी, शस्त्रों से घात, अग्नि से हानि, शारीरिक पीड़ा आदि का सामना करना पड़ता है। रिश्तेदारों और मित्रों से परेशानियां व परिवार में क्लेश भी हो सकता है।

उपाय: भैरवजी के मंदिर में ध्वजा चढ़ाएं। कुत्तों को रोटी, ब्रेड या बिस्कुट खिलाएं। कौओं को खीर-पूरी खिलाएं। घर या मंदिर में गुग्गुल का धूप करें।

राहु में शुक्र: राहु की महादशा में शुक्र की प्रत्यंतर दशा पूरे तीन वर्ष चलती है। इस अवधि में शुभ स्थिति में दाम्पत्य जीवन में सुख मिलता है। वाहन और भूमि की प्राप्ति तथा भोग-विलास के योग बनते हैं। यदि शुक्र और राहु शुभ नहीं हों तो शीत संबंधित रोग, बदनामी और विरोध का सामना करना पड़ सकता है।

उपाय करें- सांड को गुड़ या घास खिलाएं। शिव मंदिर में स्थित नंदी की पूजा करें और वस्त्र आदि दें। एकाक्षी श्रीफल की स्थापना कर पूजा करें। स्फटिक की माला धारण करें।

राहु में सूर्य: राहु की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा की अवधि 10 माह और 24 दिन की होती है, जो अन्य ग्रहों की तुलना में सर्वाधिक कम है। इस अवधि में शत्रुओं से संकट, शस्त्र से घात, अग्नि और विष से हानि, आंखों में रोग, राज्य या शासन से भय, परिवार में कलह आदि हो सकते हैं। सामान्यतः यह समय अशुभ प्रभाव देने वाला ही होता है।

उपाय: इस अवधि में सूर्य को अघ्र्य दें। उनका पूजन एवं उनके मंत्र का नित्य जप करें। हरिवंश पुराण का पाठ या श्रवण करते रहें। चाक्षुषोपनिषद् का पाठ करें। सूअर को मसूर की दाल खिलाएं।

राहु में चंद्र: एक वर्ष 6 माह की इस अवधि में जातक को असीम मानसिक कष्ट होता है। इस अवधि में जीवन साथी से अनबन, तलाक या मृत्यु भी हो सकती है। लोगों से मतांतर, आकस्मिक संकट एवं जल जनित पीड़ा की संभावना भी रहती है। इसके अतिरिक्त पशु या कृषि की हानि, धन का नाश, संतान को कष्ट और मृत्युतुल्य पीड़ा भी हो सकती है।

उपाय: राहु और चंद्र की दशा में उत्पन्न होने वाली विषम परिस्थितियों से बचने के लिए माता की सेवा करें। माता की उम्र वाली महिलाओं का सम्मान और सेवा करें। प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव का शुद्ध दूध से अभिषेक करें। चांदी की प्रतिमा या कोई अन्य वस्तु मौसी, बुआ या बड़ी बहन को भेंट करें।

 राहु में मंगल: राहु की महादशा में मंगल की अंतर्दशा का यह समय एक वर्ष 18 दिन का होता है। इस काल में शासन व अग्नि से भय, चोरी, अस्त्र शस्त्र से चोट, शारीरिक पीड़ा, गंभीर रोग, नेत्रों को पीड़ा आदि हो सकते हंै। इस अवधि में पद एवं स्थान परिवर्तन तथा भाई को या भाई से पीड़ा की संभावना भी रहती है।

कुंडली से जाने वैधव्य योग

1.  सप्तम भाव व अष्टम भाव का स्वामी दोनों पापी ग्रहों के साथ 6 या 12 वे स्थान में एक साथ बैठे हो तो ऐसी स्त्री विधवा हो जाती है |

2. सप्तम भाव में केतु बैठा हो तथा राहु सूर्य व शनि के साथ मंगल आठवें या 12वें भाव में बैठा हो तो ऐसी स्त्री विधवा हो जाती   हैं |

2.  लग्न एवं सप्तम भाव में पापी ग्रहों तथा तीन ग्रहों पर शुभ ग्रह की दृष्टि या युक्ति ना हो तो ऐसी स्त्री 7 से 10 वर्ष के भीतर विधवा हो जाती है|

3.  सप्तम स्थान में मेष या वृश्चिक राशि हो दो पापी ग्रहों के साथ राहु हो सप्तम स्थान में बैठा हो तो निश्चित रुप से विधवा योग बन जाता है |

4.  चंद्र लग्न पाप कर्तरी योग में हो तथा चंद्र लग्न से सप्तम अष्टम स्थान में पापी ग्रह बैठे हो तो ऐसी स्त्री जल्द ही विधवा बन जाती है|

5.  चंद्रमा के साथ राहु शुक्र के साथ मंगल तथा अष्टम स्थान में पापी ग्रह होने पर स्त्री की कुंडली में विधवा योग बनता है |

6.  सप्तम स्थान में बुध व शनि हो तो ऐसी स्त्री विधवा भी हो जाती है और साथ ही व्यभिचार भी करती है |

7.  यदि लग्न में शनि बैठा हो उससे अष्टम या बारहवें स्थान में राहु केतु सूर्य के साथ मंगल बैठा हो तो ऐसी स्त्री विधवा हो जाती है |

8.  यदि दो या तीन पापी ग्रहों के साथ मंगल सप्तम या अष्टम स्थान में बैठा हो तो ऐसी स्त्री विवाह के बाद शीघ्र ही विधवा हो जाती है |

9.  सप्तम स्थान में वेश्या वृश्चिक राशि मे राहु हो तथा मंगल छठे आठवें या 12वें स्थान में बैठा हो तो ऐसी स्त्री निश्चित रुप से विधवा हो जाती है |

10.  सप्तमेश अष्टम स्थान में हो और अष्टमेश सप्तम स्थान में हो और पापी ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो ऐसी  स्त्री निश्चित रूप से विधवा हो जाती है |

11.  यदि बुध सप्तम भाव का स्वामी होकर पापी ग्रहों के साथ नीच या शत्रु राशि में यह अस्त होकर अष्टम स्थान में बैठा हो तथा उसे पापी ग्रह देखते हो तो ऐसी स्त्री अपने पति की हत्या कर के परिवार का नाश कर देती है |

12.  मंगल मिथुन या कन्या लग्न का सप्तम स्थान में हो सूर्य, शनि, राहु, केतु ,इन ग्रहों की दृष्टि मंगल के ऊपर हो तो ऐसी स्त्री कम उम्र में ही विधवा हो जाती है।

गुरुवार, 11 जनवरी 2018

पित्र दोष दूर करने का सटीक उपाय

पित्र दोष दूर करने का सटीक उपाय
सूर्य पिता का कारक होता है और कुंडली मे 5,9,10 व लग्न भाव पिता के कारक होते है।पंचम भाव इसलिए कारक होता कि वह नवम भाव से नवम होता है अर्थात पिता के पिता यानी पूर्वज होता है काल पुरुष की कुंडली मे पंचम भाव सिंह राशि का होता है अर्थात पिता का घर और 12 भाव को मोक्ष्य का भाव माना जाता है।अर्थात सिंह से 12 वां भाव मोक्ष्य यानी कर्क राशि होती है।कर्क राशि की रेखा उज्जैन से होकर गुजरती है औऱ वहां सिद्धवट नामक स्थान पर जहां से कर्क रेखा गुजरती है वहां पर पूरी विधि विधान से पित्र शांति का अनुष्ठान करवाए ओर तर्पन दे निश्चित ही लाभ मिलेगा।

जब तक ऊपर सुझाए उपाय नही कर सको तो निम्न उपाय करने चाहिए
1 अमावश्या के दिन पित्रो के नाम पर किसी विद्वान,संत,ब्राह्मण को भोजन कराएं व दान दक्षिणा देकर विदा करें।
2 अमावश्या के दिन से शुरू कर के प्रतिदिन जल रखने के स्थान पर श्याम के समय सुहागिन स्त्री पूरी तरह से सज धज कर साड़ी का पल्लू सर पर रख कर दुल्हन के वेश में होकर एक घी का दीपक अपने पूर्वजों के नाम का जलाए।
3 श्याम के समय रसोईघऱ को पूरी तरह से पवित्र कर के एक ताम्र पात्र में जल भरकर रसोईघर में खाना बनाने के स्थान पर पूर्वजों के नाम से नित्य ढककर रख देना चाहिए और सुबह उठ कर उस पात्र के जल को तुलसी,पीपल,नीम या किसी देव वृक्ष पर अर्पित कर देना चाहिए
4 प्रतिदिन पूर्वजों के नाम की कम से कम 5 आहुतियां देकर हवन करना चाहिए और नियमित पित्रों के नाम से जल अर्पित(तर्पण) करना चाहिए
5 रोज सुबह जल्दी उठकर पितृतुल्य बुजुर्ग या मातृतुल्य स्त्री के चरण स्पर्श कर के उनका आशीर्वाद लेने चाहिए

सोमवार, 8 जनवरी 2018

शनि सूर्य की युति एवं उपाय

सूर्य सुलभ दृष्ट, प्रकाशवान व ज्वलंत ग्रह है। वह जीवनी शक्ति, पिता, सफलता, सत्ता, सोना, लाल कपड़ा, तांबा, ऊर्जा, स्वास्थ्य, आरोग्य, औषधि आदि का कारक है। इसका आंखों की ज्योति, शरीर के मेरूदंड, तथा पाचन क्रिया पर प्रभुत्व है। सूर्य के तेज के कारण अन्य ग्रह- चंद्र, मंगल, शनि, शुक्र, बृहस्पति व बुध उसके पास आने पर अस्त होकर प्रभावहीन हो जाते हैं, परंतु राहु व केतु सूर्य के समीप आने पर उसे ग्रहण लगाते हैं। सूर्य को ग्रहों का राजा माना गया है। वह 24 घंटे में भचक्र में 10 प्रगति कर एक राशि का गोचर 30 दिन में पूरा करता है। सूर्य सिंह राशि का स्वामी है, मेष में उच्च तथा तुला राशि में नीचस्थ होता है। उसकी विंशोत्तरी दशा छः वर्ष की होती है। सूर्य के विपरीत शनि ग्रह प्रकाशहीन, दूरबीन से दृष्ट और ठंडा ग्रह है। वह आलस, दासता, गरीबी, लंबी बीमारी और मृत्यु का मुख्य कारक है। शनि काले तिल, तेल, उड़द, लोहा, कोयला व काले वस्त्र आदि का कारक है। भचक्र में शनि दो राशियों- मकर व कुंभ का स्वामी है। वह तुला राशि में उच्च तथा मेष राशि में नीचस्थ होता है। शनि एक राशि का गोचर ढाई वर्ष में पूरा करता है। वह कुंडली में षष्ठ, अष्टम और द्वादश (त्रिक) भावों का कारक है जो कष्ट, दुःख और हानि दर्शाते हैं। अतः उसे नैसर्गिक पापी ग्रह की संज्ञा दी गई है, परंतु वह तुला, मकर, कुंभ और वृष लग्नों में शुभकारी होता है। बलवान शनि जातक की प्रगति में पूर्ण सहायक होता है। अन्य ग्रहों पर शनि के दुष्प्रभाव से उनके कारकत्व में न्यूनता आती है। सूर्य से अस्त होने पर शनि अधिक कष्टकारी बन जाता है। हृदय को खून ले जाने वाली नाड़ियों के संकुचित होने से जातक हृदय रोग से ग्रस्त होता है। शनि ग्रह के बारे में हिंदू धार्मिक ग्रंथों में अनेक महत्वपूर्ण तथ्य प्राप्त होते हैं। जैसे शनि सूर्य के पुत्र हैं। इनका सूर्य की पत्नी की छाया से जन्म होने के कारण ये कृष्ण वर्ण, कुरूप तथा पिता समान ज्ञानी और बलवान ग्रह हैं। इनकी हानिकारक दृष्टि से बचने के लिए पिता सूर्य द्वारा जन्म के तुरंत बाद ब्रह्मांड में बहुत दूर फेंके जाने के कारण यह प्रकाश रहित और शीतल ग्रह है। कुंडली में अशुभ भाव में स्थित होने पर शनि शीत-जनित और दीर्घकालीन रोग व कष्ट देता है। इनका अपने पिता सूर्य से शत्रुवत व्यवहार है। शनि शिवजी के परम प्रिय शिष्य हैं। शनि के धार्मिक, सात्विक और निष्पक्ष आचरण से प्रसन्न होकर शिवजी ने इन्हें सभी प्राणियों के कर्मफल का निर्णायक बनाया था। विंशोत्तरी दशा में शनि को 19 वर्ष प्राप्त हैं। सप्तम दृष्टि के अतिरिक्त शनि की तीसरी और दसवीं पूर्ण दृष्टि होती है। शनि जिस भाव में स्थित हों उसमें स्थिरता तथा दृष्ट ग्रह व भावों के कार्यकाल को हानि पहुंचाते हंै। शनि कष्टकारी होने पर शिवजी तथा हनुमान जी की आराधना लाभकारी होती है। कुंडली में इन दो विपरीत प्रकृति वाले शक्तिशाली ग्रहों की युति स्वभावतः जातक का जीवन कठिनाईयों से भरा और हताशापूर्ण बनाती है। इस बारे में कुछ मानद ज्योतिष ग्रंथों का मार्गदर्शन इस प्रकार है:- फलदीपिका (अ. 18) के अनुसारः ‘सूर्य व शनि साथ-साथ हो तो जातक धातु के बर्तन निर्माण और व्यापार द्वारा अपना निर्वाह करता है अर्थात् मेहनत से जीवन यापन करता है। सारावली (अ. 15.7) के अनुसार: जातक धातुशिल्पी होता है। यह युति 6, 8, 12 (त्रिक) भावों में होने पर जातक पारिवारिक क्लेशों से घिरा रहता है। पुनश्च, (अ. 31, 22.25) के अनुसार: लग्न में सूर्य-शनि की युति होने पर जातक की माता का चरित्र संदिग्ध होता है। जातक स्वयं दुश्चरित्र, मलिन और दुष्कर्मी होता है। चतुर्थ भाव में धन की कमी, रिश्तेदारों से खराब संबंध और माता का सुख कम प्राप्त होगा। सप्तम भाव में युति से जातक आलसी, मंदबुद्धि, दुर्भागी और नशे का सेवन करता है तथा पति-पत्नी के संबंधों में कटुता रहती है। दशम भाव में युति होने पर जातक विदेश में या स्वदेश में निम्न स्तर की नौकरी से धन कमाता है, और वह भी चोरी चला जाता है जिससे जातक धनहीन और दुःखी रहता है। सूर्य-शनि की युति के फलादेश का अध्ययन दर्शाता है कि शनि के दुष्प्रभाव से युति वाले भाव तथा उससे सप्तम भाव के फलादेश में न्यूनता आती है। यह युति सूर्य के कारकत्व पिता की स्थिति, उनका स्वास्थ्य तथा जातक के अपने कार्यक्षेत्र तथा मान-सम्मान में कमी करती है। जातक के अपने पिता से संबंध अच्छे नहीं रहते। सूर्य के अधिक निर्बल होने पर पिता का साया जल्दी उठ जाता है या जातक अपने पिता से अलग हो जाता है। इसी प्रकार संबंधियों से भी अलगाव होता है। अतः कुछ आचार्य इस युति को ‘विच्छेदकारी योग’ की संज्ञा देते हैं।
सूर्य-शनि युति जनित कष्टों को सहनशील बनाने के लिए आगे दिये गये उपाय लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं:- उपाय 1. सूर्य को बल देने के लिए जातक को सूर्योदय से पहले जागकर अपने पिता के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। पिता की उम्र के व्यक्तियों का आदर करना चाहिए। 2. स्नान के बाद उगते सूर्य को तांबे के बर्तन में जल, थोड़ा गंगाजल, रोली, खांड और लाल फूल डालकर ‘ऊँ’ आदित्याय नमः। ‘ऊँ’ भास्कराय नमः। ‘ऊँ’ सूर्याय नमः का उच्चारण करते हुए धीरे-धीरे सूर्य को अघ्र्य देना चाहिए। ध्यान रखें कि छींटे पैर पर न पड़ें तथा चढ़े हुए जल से अपना तिलक करना चाहिए। उसके बाद एक माला ‘ंऊँ आदित्याय नमः’ मंत्र का जप करना चाहिए। 3. प्रत्येक रविवार को अनार फाड़कर सूर्य को अघ्र्य के बाद भोग अर्पण करते समय सूर्य मंत्र का धीरे-धीरे जप करना चाहिए। कुछ अनार के दाने प्रसादस्वरूप ग्रहण करना चाहिए। साथ ही शनि की शांति के लिए 1. प्रत्येक शनिवार सायंकाल शनिदेव का तैलाभिषेक करके कुछ तेल को मिट्टी के दीपक में डालकर समीपस्थ पीपल के पेड़ की जड़ के पास प्रज्ज्वलित करना चाहिए और ‘ऊँ शं शनैश्चराय नमः’ मंत्र का कुछ समय जप करना चाहिए। 2. उसके बाद मंदिर के सामने बैठे अपाहिज भिखारियों को उड़द दाल-चावल की खिचड़ी या उड़द दाल के बड़े यथाशक्ति बांटना चाहिए। धन का दान नहीं देना चाहिए। 3. अपने नौकरांे और सफाई कर्मचारियों से अच्छा व्यवहार और सामथ्र्य अनुसार कभी-कभी उनकी सहायता करते रहना चाहिए। उपरोक्त उपाय श्रद्धापूर्वक कुछ माह करने से जीवन में सुख-शांति का अनुभव होना आरंभ हो जाएगा।

रविवार, 7 जनवरी 2018

विवाह वर्ष ज्ञात करने की ज्योतिषीय विधि

आयु के जिस वर्ष में गोचरस्थ गुरु लग्न, तृतीय, पंचम, नवम या एकादश भाव में आता है, उस वर्ष शादी होना निश्चित समझना चाहिए। परंतु शनि की दृष्टि सप्तम भाव या लग्न पर नहीं होनी चाहिए। अनुभव में देखा गया है कि लग्न या सप्तम में बृहस्पति की स्थिति होने पर उस वर्ष शादी हुई है।

विवाह कब होगा यह जानने की दो विधियां यहां प्रस्तुत हैं। जन्म लग्न कुंडली में सप्तम भाव में स्थित राशि अंक में १० जोड़ दें। योगफल विवाह का वर्ष होगा। सप्तम भाव पर जितने पापी ग्रहों की दृष्टि हो, उनमें प्रत्येक की दृष्टि के लिए 4-4 वर्ष जोड़ योगफल विवाह का वर्ष होगा। जहां तक विवाह की दिशा का प्रश्न है, ज्योतिष के अनुसार गणित करके इसकी जानकारी प्राप्त की जा सकती है। जन्मांग में सप्तम भाव में स्थित राशि के आधार पर शादी की दिशा ज्ञात की जाती है। उक्त भाव में मेष, सिंह या धनु राशि एवं सूर्य और शुक्र ग्रह होने पर पूर्व दिशा, वृष, कन्या या मकर राशि और चंद्र, शनि ग्रह होने पर दक्षिण दिशा, मिथुन, तुला या कुंभ राशि और मंगल, राहु, केतु ग्रह होने पर पश्चिम दिशा, कर्क, वृश्चिक, मीन या राशि और बुध और गुरु ग्रह होने पर उत्तर दिशा की तरफ शादी होगी। अगर जन्म लग्न कुंडली में सप्तम भाव में कोई ग्रह न हो और उस भाव पर अन्य ग्रह की दृष्टि न हो, तो बलवान ग्रह की स्थिति राशि में शादी की दिशा समझनी चाहिए।

एक अन्य नियम के अनुसार शुक्र जन्म लग्न कंुडली में जहां कहीं भी हो, वहां से सप्तम भाव तक गिनें। उस सप्तम भाव की राशि स्वामी की दिशा में शादी होनी चाहिए। जैसे अगर किसी कुंडली में शुक्र नवम भाव में स्थित है, तो उस नवम भाव से सप्तम भाव तक गिनें तो वहां से सप्तम भाव वृश्चिक राशि हुई। इस राशि का स्वामी मंगल हुआ। मंगल ग्रह की दिशा दक्षिण है। अतः शादी दक्षिण दिशा में करनी चाहिए।

शनिवार, 6 जनवरी 2018

कुछ विशेष योग

बहुसन्तान योग 
पंचमेश शनि शुक्र के साथ पाप स्थानगत हो | आठवें भाग में पंचमेश हो | पंचमेश तथा तृतीयेश साथ-साथ हो | पंचमेश के स्थान में तृतीयेश हो | सप्तमेश-तृतीयेश का अन्योंयास्रित योग हो ।

गोद जाने का योग
कर्क या सिंह राशि मे पापग्रह हो | ४ या १०वें स्थान पर पापग्रह हो | चन्द्रमा से चतुर्थ राशि मे पापग्रह हो | सूर्य से ९वें स्थान पर पापग्रह हो | चन्द्रमा या सूर्य शत्रुक्षेत्र मे हो |

जमींदारी योग= 
चौथे घर का मालिक दशम मे तथा दशमेश चतुर्थ मे हो | चतुर्थेश, २ या ११वें स्थान पर हो | चतुर्थेश, दशमेश और चन्द्रमा बलवान हों तथा परस्पर मित्र हों | पंचमेश लग्न मे हो | सप्तमेश, नवमेश तथा एकादशेश लग्न मे हों |

ससुराल से धन-प्राप्ति के योग
सप्तमेश और द्वतीयेश एक साथ हों और उन पर शुक्र की दृष्टि हो | चौथे घर का स्वमी सातवें घर में हो, शुक्र चौथे स्थान पर हो, तो ससुराल से धन मिलता है | सप्तमेश नवमेश शुक्र द्वारा देखे जाते हों | बलवान धनेश सातवें स्थान पर बैठे शुक्र द्वारा देखा जाता हो |

धन-सुख योग 
दिन मे जन्म लेने वाले जातक का चन्द्रमा अपने नवांश मे हो तथा उसे गुरु देखता हो, तो धन-सुख योग होता है | रात मे जन्म हो, चंद्रमा को शुक्र देखता हो, तो धन-प्राप्ति होती है | भाग्य के स्वामी का लाभ के स्वामी के साथ योग हो | चौथे घर का मालिक भाग्येश के साथ बैठा हो | भाग्येश और पंचमेश का योग हो | भाग्येश और द्वितीयेश का योग हो | दशमेश और लाभेश साथ हों | दशमेश और चतुर्थेश २, ४, ५, ९ घर मे साथ बैठे हो | धनेश और पंचमेश का योग हो | लग्न का स्वामी चौथे घर के साथ बैठे हो | लाभेश और चतुर्थेश का योग हो | लाभेश और धनेश का योग हो | लाभेश और लग्नेश का योग हो | लग्नेश और धनेश का योग हो | लग्न का स्वामी पांचवें स्थान के स्वामी के साथ हो |

महालक्ष्मी योग 
धन और एश्वर्य प्रदान करने वाला योग है। यह योग कुण्डली Kundli में तब बनता है जब धन भाव यानी द्वितीय स्थान का स्वामी बृहस्पति एकादश भाव में बैठकर द्वितीय भाव पर दृष्टि डालता है। यह धनकारक योग (Dhan Yoga) माना जाता है।

इसी प्रकार एक महान योग है सरस्वती योग
यह तब बनता है जब शुक्र बृहस्पति और बुध ग्रह एक दूसरे के साथ हों अथवा केन्द्र में बैठकर एक दूसरे से सम्बन्ध बना रहे हों। युति अथवा दृष्टि किसी प्रकार से सम्बन्ध बनने पर यह योग बनता है। यह योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में बनता है उस पर विद्या की देवी मां सरस्वती की कृपा रहती है। सरस्वती योग वाले व्यक्ति कला, संगीत, लेखन, एवं विद्या से सम्बन्धित किसी भी क्षेत्र में काफी नाम और धन कमाते हैं।

शुक्रवार, 5 जनवरी 2018

कुंडली में विष योग एवं उपाय

फलदीपिका’ ग्रंथ के अनुसार ‘‘आयु, मृत्यु, भय, दुख, अपमान, रोग, दरिद्रता, दासता, बदनामी, विपत्ति, निन्दित कार्य, नीच लोगों से सहायता, आलस, कर्ज, लोहा, कृषि उपकरण तथा बंधन का विचार शनि ग्रह से होता है। ‘‘अपने अशुभ कारकत्व के कारण शनि ग्रह को पापी तथा अशुभ ग्रह कहा जाता है। परंतु यह पूर्णतया सत्य नहीं है। वृष, तुला, मकर और कुंभ लग्न वाले जातक के लिए शनि ऐश्वर्यप्रद, धनु व मीन लग्न में शुभकारी तथा अन्य लग्नों में वह मिश्रित या अशुभ फल देता है। शनि पूर्वजन्म में किये गये कर्मों का फल इस जन्म में अपनी भाव स्थिति द्वारा देता है। वह 3, 6, 10 तथा 11 भाव में शुभ फल देता है। 1, 2, 5, 7 तथा 9 भाव में अशुभ फलदायक और 4, 8 तथा 12 भाव में अरिष्ट कारक होता है। बलवान शनि शुभ फल तथा निर्बल शनि अशुभ फल देता है। यह 36वें वर्ष से विशेष फलदाई होता है। शनि की विंशोत्तरी दशा 19 वर्ष की होती है। अतः कुंडली में शनि अशुभ स्थित होने पर इसकी दशा में जातक को लंबे समय तक कष्ट भोगना पड़ता है। शनि सब से धीमी गति से गोचर करने वाला ग्रह है। वह एक राशि के गोचर में लगभग ढाई वर्ष का समय लेता है। चंद्रमा से द्वादश, चंद्रमा पर, और चंद्रमा से अगले भाव में शनि का गोचर साढ़े-साती कहलाता है। वृष, तुला, मकर और कुंभ लग्न वालों के अतिरिक्त अन्य लग्नों में प्रायः यह समय कष्टकारी होता है। शनि एक शक्तिशाली ग्रह होने से अपनी युति अथवा दृष्टि द्वारा दूसरे ग्रहों के फलादेश में न्यूनता लाता है। सप्तम दृष्टि के अतिरिक्त उसकी तीसरे व दसवें भाव पर पूर्ण दृष्टि होती है। शनि के विपरीत चंद्रमा एक शुभ परंतु निर्बल ग्रह है। चंद्रमा एक राशि का संक्रमण केवल 2( से 2) दिन में पूरा कर लेता है। चंद्रमा के कारकत्व में मन की स्थिति, माता का सुख, सम्मान, सुख-साधन, मीठे फल, सुगंधित फूल, कृषि, यश, मोती, कांसा, चांदी, चीनी, दूध, कोमल वस्त्र, तरल पदार्थ, स्त्री का सुख, आदि आते हैं। जन्म समय चंद्रमा बलवान, शुभ भावगत, शुभ राशिगत, ऐसी मान्यता है कि शनि और चंद्रमा की युति जातक द्वारा पिछले जन्म में किसी स्त्री को दिये गये कष्ट को दर्शाती है। वह जातक से बदला लेने के लिए इस जन्म में उसकी मां बनती है। माता का शुभत्व प्रबल होने पर वह पुत्र को दुख, दारिद्र्य तथा धन नाश देते हुए दीर्घकाल तक जीवित रहती है। यदि पुत्र का शुभत्व प्रबल हो तो जन्म के बाद माता की मृत्यु हो जाती है अथवा नवजात की शीघ्र मृत्यु हो जाती है। इसकी संभावना 14वें वर्ष तक रहती है। दर्शाती है, जिसका अशुभ प्रभाव मध्य अवस्था तक रहता है। शनि के चंद्रमा से अधिक अंश या अगली राशि में होने पर जातक अपयश का भागी होता है। सभी ज्योतिष ग्रंथों में शनि-चंद्र की युति का फल अशुभ कहा है। ‘‘जातक भरणम्’ ने इसका फल ‘‘परजात, निन्दित, दुराचारी, पुरूषार्थहीन’’ कहा है। ‘बृहद्जातक’ तथा ‘फलदीपिका’ ने इसका फल ‘‘परपुरूष से उत्पन्न, आदि’’ बताया है। अशुभ फलादेश के कारण इस युति को ‘‘विष योग’’ की संज्ञा दी गई है। ‘विष योग’ का अशुभ फल जातक को चंद्रमा और शनि की दशा में उनके बलानुसार अधिक मिलता है। कंटक शनि, अष्टम शनि तथा साढ़ेसाती कष्ट बढ़ाती है। ऐसी मान्यता है कि शनि और चंद्रमा की युति जातक द्वारा पिछले जन्म में किसी स्त्री को दिये गये कष्ट को दर्शाती है। वह जातक से बदला लेने के लिए इस जन्म में उसकी मां बनती है। माता का शुभत्व प्रबल होने पर वह पुत्र को दुख, दारिद्र्य तथा धन नाश देते हुए दीर्घकाल तक जीवित रहती है। यदि पुत्र का शुभत्व प्रबल हो तो जन्म के बाद माता की मृत्यु हो जाती है अथवा नवजात की शीघ्र मृत्यु हो जाती है। इसकी संभावना 14वें वर्ष तक रहती है। कुंडली में जिस भाव में ‘विष योग’ स्थित होता है उस भाव संबंधी कष्ट मिलते हैं। नजदीकी परिवारजन स्वयं दुखी रहकर विश्वासघात करते हैं। जातक को दीर्घकालीन रोग होते हैं और वह आर्थिक तंगी के कारण कर्ज से दबा रहता है। जीवन में सुख नहीं मिलता। जातक के मन में संसार से विरक्ति का भाव जागृत होता है और वह अध्यात्म की ओर अग्रसर होता है। विभिन्न भावों में ‘विष योग’ का फल प्रथम भाव (लग्न) इस योग के कारण माता के बीमार रहने या उसकी मृत्यु से किसी अन्य स्त्री (बुआ अथवा मौसी) द्वारा उसका बचपन में पालन-पोषण होता है। उसे सिर और स्नायु में दर्द रहता है। शरीर रोगी तथा चेहरा निस्तेज रहता है। जातक निरूत्साही, वहमी एवं शंकालु प्रवृत्ति का होता है। आर्थिक संपन्नता नहीं होती। नौकरी में पदोन्नति देरी से होती है। विवाह देर से होता है। दांपत्य जीवन सुखी नहीं रहता। इस प्रकार जीवन में कठिनाइयां भरपूर होती हैं। द्वितीय भाव घर के मुखिया की बीमारी या मृत्यु के कारण बचपन आर्थिक कठिनाई में व्यतीत होता है। पैतृक संपत्ति मिलने में बाधा आती है। जातक की वाणी में कटुता रहती है। वह कंजूस होता है। धन कमाने के लिए उसे कठिन परिश्रम करना पड़ता है। जीवन के उत्तरार्द्ध में आर्थिक स्थिति ठीक रहती है। दांत, गला एवं कान में बीमारी की संभावना रहती है। तृतीय भाव जातक की शिक्षा अपूर्ण रहती है। वह नौकरी से धन कमाता है। भाई-बहनों के साथ संबंध में कटुता आती है। नौकर विश्वासघात करते हैं। यात्रा में विघ्न आते हैं। श्वांस के रोग होने की संभावना रहती है। चतुर्थ भाव माता के सुख में कमी, अथवा माता से विवाद रहता है। जन्म स्थान छोड़ना पड़ता है। मध्यम आयु में आय कुछ ठीक रहती है, परंतु अंतिम समय में फिर से धन की कमी हो जाती है। स्वयं दुखी दरिद्र होकर दीर्घ आयु पाता है। उसके मृत्योपरांत ही उसकी संतान का भाग्योदय होता है। पुरूषों को हृदय रोग तथा महिलाओं को स्तन रोग की संभावना रहती है। पंचम भाव विष योग होने से शिक्षा प्राप्ति में बाधा आती है। वैवाहिक सुख अल्प रहता है। संतान देरी से होती है, या संतान मंदबुद्धि होती है। स्त्री राशि में कन्यायें अधिक होती हैं। संतान से कोई सुख नहीं मिलता। षष्ठ भाव जातक को दीर्घकालीन रोग होते हैं। ननिहाल पक्ष से सहायता नहीं मिलती। व्यवसाय में प्रतिद्धंदी हानि करते हैं। घर में चोरी की संभावना रहती है। सप्तम भाव स्त्री की कुंडली में विष योग होने से पहला विवाह देर से होकर टूटता है, और वह दूसरा विवाह करती है। पुरूष की कुंडली में यह युति विवाह में अधिक विलंब करती है। पत्नी अधिक उम्र की या विधवा होती है। संतान प्राप्ति में बाधा आती है। दांपत्य जीवन में कटुता और विवाद के कारण वैवाहिक सुख नहीं मिलता। साझेदारी के व्यवसाय में घाटा होता है। ससुराल की ओर से कोई सहायता नहीं मिलती। अष्टम भाव दीर्घकालीन शारीरिक कष्ट और गुप्त रोग होते हैं। टांग में चोट अथवा कष्ट होता है। जीवन में कोई विशेष सफलता नहीं मिलती। उम्र लंबी रहती है। अंत समय कष्टकारी होता है। नवम भाव भाग्योदय में रूकावट आती है। कार्यों में विलंब से सफलता मिलती है। यात्रा में हानि होती है। ईश्वर में आस्था कम होती है। कमर व पैर में कष्ट रहता है। जीवन अस्थिर रहता है। भाई-बहन से संबंध अच्छे नहीं रहते। दशम भाव पिता से संबंध अच्छे नहीं रहते। नौकरी में परेशानी तथा व्यवसाय में घाटा होता है। पैतृक संपत्ति मिलने में कठिनाई आती है। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं रहती। वैवाहिक जीवन भी सुखी नहीं रहता। एकादश भाव बुरे दोस्तों का साथ रहता है। किसी भी कार्य मंे लाभ नहीं मिलता। 1 संतान से सुख नहीं मिलता। जातक का अंतिम समय बुरा गुजरता है। बलवान शनि सुखकारक होता है। द्वादश स्थान जातक निराश रहता है। उसकी बीमारियों के इलाज में अधिक समय लगता है। जातक व्यसनी बनकर धन का नाश करता है। अपने कष्टों के कारण वह कई बार आत्महत्या तक करने की सोचता है। महर्षि पराशर ने दो ग्रहों की एक राशि में युति को सबसे कम बलवान माना है। सबसे बलवान योग ग्रहों के राशि परिवर्तन से बनता है तथा दूसरे नंबर पर ग्रहों का दृष्टि योग होता है। अतः शनि-चंद्र की युति से बना ‘विष योग’ सबसे कम बलवान होता है। इनके राशि परिवर्तन अथवा परस्पर दृष्टि संबंध होने पर ‘विष योग’ संबंधी प्रबल प्रभाव जातक को प्राप्त होते हैं। इसके अतिरिक्त शनि की तीसरी, सातवीं या दसवीं दृष्टि जिस स्थान पर हो और वहां जन्मकुंडली में चंद्रमा स्थित होने पर ‘विष योग’ के समान ही फल जातक को प्राप्त होते हैं।
 उपाय
शिवजी शनिदेव के गुरु हैं और चंद्रमा को अपने सिर पर धारण करते हैं। अतः ‘विषयोग’ के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए देवों के देव महादेव शिव की आराधना व उपासना करनी चाहिए। सुबह स्नान करके प्रतिदिन थोड़ा सरसों का तेल व काले तिल के कुछ दाने मिलाकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हुये ‘ऊँ नमः शिवाय’ का उच्चारण करना चाहिए। उसके बाद कम से कम एक माला ‘महामृत्युंजय मंत्र’ का जप करना चाहिए। शनिवार को शनि देव का संध्या समय तेलाभिषेक करने के बाद गरीब, अनाथ एवं वृद्धों को उरद की दाल और चावल से बनी खिचड़ी का दान करना चाहिए। ऐसे व्यक्ति को रात के समय दूध व चावल का उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे चंद्रमा और निर्बल हो जाता है।

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ज्योतिष शास्त्र अनुसार प्रत्येक ग्रह 3, 3 नक्षत्रों के स्वामी होते है. कोई भी व्यक्ति जिस भी नक्षत्र में जन्मा हो वह उसके स्वामी ग्रह से स...