ज्योतिष में अट्ठाइस नक्षत्र, बारहराशियां, नौ ग्रह और बारह भावजन्मकुंडली निर्माण का आधार होते हैंतथा इन्हीं घटकों के विश्लेषण से किसीभी जातक के जीवन की स्थिति औरजीवन में घटने वाली घटनाओं कोनिश्चित किया जाता है पर ज्योतिष केआधार इन सभी घटकों में भी नव ग्रहोंकी ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है हमारीजन्मकुंडली में स्थित प्रत्येक ग्रह कीअपनी अलग विशेष भूमिका होती हैप्रत्येक ग्रह हमारे जीवन के भिन्न भिन्नपक्षों को नियंत्रित करता है। हमारीकुंडली में स्थित प्रत्येक ग्रह वास्तव में दोप्रकार से अपनी भूमिका निभाता है एकतो ग्रह के जो नैसर्गिक गुण तत्व हैं उसरूप में और दूसरा भावेश के रूप मेंकुंडली में स्थित कोई भी ग्रह जितनाबली और अच्छी स्थिति में होगा उतनाही अच्छा परिणाम देगा और उस ग्रह सेनियंत्रित होने वाली चीजें जीवन मेंअच्छी मात्रा में प्राप्त होंगी और जबकोई ग्रह पीड़ित या कमजोर स्थिति मेंहो तो उस ग्रह से नियंत्रित होने वालीचीजों में संघर्ष उत्पन्न होता है और उसग्रह से नियंत्रित होने वाले पदार्थों कीजीवन में कमी रहती है। नीच राशिकिसी भी ग्रह की वह स्थिति होती हैजिसमे ग्रह सबसे कमजोर स्थिति मेंहोता है इसलिए नीच राशि में बैठे ग्रहको नकारात्मक परिणाम देने वाला मानागया है।
नकारात्मक दृष्टिकोण – यदि कुंडलीमें कोई ग्रह नीचस्थ हो अर्थात अपनीनीच राशि में स्थित हो तो ऐसे में वहबहुत कमजोर स्थिति में होता है जिससेउस नीचस्थ ग्रह से नियंत्रित होने वालीवस्तुएं या पदार्थ जीवन में बहुत संघर्षके बाद और कम मात्रा में प्राप्त होती हैं, कुंडली में कोई भी ग्रह नीच राशि में होनेपर उसके नैसर्गिक कारक तत्वों में तोसंघर्ष उत्पन्न होता ही है साथ ही नीचस्थग्रह जिस भाव का स्वामी है उस भाव सेनियंत्रित होने वाली चीजों में भी संघर्षउत्पन्न होता है उदाहरण के लिए यदिमेष लग्न की कुंडली में सूर्य अपनी नीचराशि तुला में हो तो सूर्य नीच राशि मेंहोने से ऐसे में व्यक्ति को प्रसिद्धि प्रतिष्ठायश और पिता के सुख में तो कमी होगीही क्योंकि ये सब सूर्य के नैसर्गिककारक तत्व हैं साथ ही सूर्य यहाँ पँचमभाव का स्वामी है अतः नीचस्थ सूर्य केकारण शिक्षा और संतान से जुडीसमस्याएं भी जीवन में रहेंगी। इन सबके अलावा यहाँ एक बात औरमहत्वपूर्ण है नीच राशि में बैठा ग्रह स्वयंतो कमजोर होता ही है पर जिस भाव मेंहोता है उस भाव को भी बहुत पीड़ितकर देता है और उस भाव से सम्बंधितपदार्थों में संघर्ष उत्पन्न करता है ऊपरवाले उदाहरण के अनुसार मेष लग्न कीकुंडली में सूर्य सप्तम भाव में तुला राशिमें नीचस्थ होगा तो इससे कुंडली कासप्तम भाव भी पीड़ित हो जायेगाजिससे व्यक्ति के वैवाहिक जीवन मेंउतार चढ़ाव और संघर्ष उपस्थित होगा।
सकारात्मक दृष्टिकोण – कुण्डली मेंकिसी भी ग्रह का नीच राशि में होनानिश्चित ही एक संघर्ष उत्पन्न करने वालायोग होता है और नीच राशि में स्थितग्रह से सम्बंधित कारक तत्वों की अल्पमात्रा में प्राप्ति होती है पर नीचस्थ ग्रहके कुछ सकारात्मक पहलू भी होते हैं।जब कुंडली में कोई भी ग्रह अपनी नीचराशि में होता है तो जिस भाव में नीचस्थग्रह स्थित होता है उसके सामने वालेभाव अर्थात अपने से सातवे भाव कोउच्च दृष्टि से देखता है क्योंकि किसी भीग्रह की नीच और उच्च राशि परस्परसमसप्तक (आमने सामने) होती हैंजिससे जब कोई ग्रह नीच राशि में होताहै तो सामने वाले भाव पर उस नीचस्थग्रह की उच्च दृष्टि पड़ती है जिससे वहभाव बहुत बली और मजबूत हो जाता हैऔर भाव के कारक तत्वों में वृद्धि होतीहै उदाहरण के लिए मकर लग्न कीकुंडली में शनि चतुर्थ भाव में अपनीनीच राशि मेष में हो तो वह दशम भावको उच्च दृष्टि (तुला राशि) से देखेगाजिससे दशम भाव बली होजायेगा औरकरियर में उन्नतिदायक होगा अतः नीचराशि में बैठा ग्रह अपने सामने वाले भावको बली कर देता है। इसके आलावायदि कुंडली में कोई ग्रह नीच राशि में होऔर ऐसे में उस नीचस्थ ग्रह की नीचराशि का स्वामी या उच्चनाथ (उस राशिमें उच्च होने वाला ग्रह) दोनों में से कोईभी यदि लगन से केंद्र (1,4,7,10 भाव) में हो तो उस ग्रह का नीच भंग होजाताहै जिससे नीचस्थ ग्रह के नकारात्मकपरिणाम में कुछ हद तक कमी आ जातीहै नीच भंग होने की इस स्थिति कोनीचभंग राजयोग भी कहते हैं। इसकेअतिरिक्त यदि लग्न कुंडली में कोई ग्रहनीच राशि में हो पर नवांश कुंडली में वहग्रह स्व राशि या अपनी उच्च राशि में होतो भी नीच राशि में होने के नकारात्मकमें काफी कमी आजाती है अर्थात नवांशकुंडली में उच्च या स्व राशि में होने सेनीचस्थ ग्रह को सकारात्मक बल मिलजाता है और उससे उत्पन्न संघर्ष में कमीआती है।
नकारात्मक दृष्टिकोण – यदि कुंडलीमें कोई ग्रह नीचस्थ हो अर्थात अपनीनीच राशि में स्थित हो तो ऐसे में वहबहुत कमजोर स्थिति में होता है जिससेउस नीचस्थ ग्रह से नियंत्रित होने वालीवस्तुएं या पदार्थ जीवन में बहुत संघर्षके बाद और कम मात्रा में प्राप्त होती हैं, कुंडली में कोई भी ग्रह नीच राशि में होनेपर उसके नैसर्गिक कारक तत्वों में तोसंघर्ष उत्पन्न होता ही है साथ ही नीचस्थग्रह जिस भाव का स्वामी है उस भाव सेनियंत्रित होने वाली चीजों में भी संघर्षउत्पन्न होता है उदाहरण के लिए यदिमेष लग्न की कुंडली में सूर्य अपनी नीचराशि तुला में हो तो सूर्य नीच राशि मेंहोने से ऐसे में व्यक्ति को प्रसिद्धि प्रतिष्ठायश और पिता के सुख में तो कमी होगीही क्योंकि ये सब सूर्य के नैसर्गिककारक तत्व हैं साथ ही सूर्य यहाँ पँचमभाव का स्वामी है अतः नीचस्थ सूर्य केकारण शिक्षा और संतान से जुडीसमस्याएं भी जीवन में रहेंगी। इन सबके अलावा यहाँ एक बात औरमहत्वपूर्ण है नीच राशि में बैठा ग्रह स्वयंतो कमजोर होता ही है पर जिस भाव मेंहोता है उस भाव को भी बहुत पीड़ितकर देता है और उस भाव से सम्बंधितपदार्थों में संघर्ष उत्पन्न करता है ऊपरवाले उदाहरण के अनुसार मेष लग्न कीकुंडली में सूर्य सप्तम भाव में तुला राशिमें नीचस्थ होगा तो इससे कुंडली कासप्तम भाव भी पीड़ित हो जायेगाजिससे व्यक्ति के वैवाहिक जीवन मेंउतार चढ़ाव और संघर्ष उपस्थित होगा।
सकारात्मक दृष्टिकोण – कुण्डली मेंकिसी भी ग्रह का नीच राशि में होनानिश्चित ही एक संघर्ष उत्पन्न करने वालायोग होता है और नीच राशि में स्थितग्रह से सम्बंधित कारक तत्वों की अल्पमात्रा में प्राप्ति होती है पर नीचस्थ ग्रहके कुछ सकारात्मक पहलू भी होते हैं।जब कुंडली में कोई भी ग्रह अपनी नीचराशि में होता है तो जिस भाव में नीचस्थग्रह स्थित होता है उसके सामने वालेभाव अर्थात अपने से सातवे भाव कोउच्च दृष्टि से देखता है क्योंकि किसी भीग्रह की नीच और उच्च राशि परस्परसमसप्तक (आमने सामने) होती हैंजिससे जब कोई ग्रह नीच राशि में होताहै तो सामने वाले भाव पर उस नीचस्थग्रह की उच्च दृष्टि पड़ती है जिससे वहभाव बहुत बली और मजबूत हो जाता हैऔर भाव के कारक तत्वों में वृद्धि होतीहै उदाहरण के लिए मकर लग्न कीकुंडली में शनि चतुर्थ भाव में अपनीनीच राशि मेष में हो तो वह दशम भावको उच्च दृष्टि (तुला राशि) से देखेगाजिससे दशम भाव बली होजायेगा औरकरियर में उन्नतिदायक होगा अतः नीचराशि में बैठा ग्रह अपने सामने वाले भावको बली कर देता है। इसके आलावायदि कुंडली में कोई ग्रह नीच राशि में होऔर ऐसे में उस नीचस्थ ग्रह की नीचराशि का स्वामी या उच्चनाथ (उस राशिमें उच्च होने वाला ग्रह) दोनों में से कोईभी यदि लगन से केंद्र (1,4,7,10 भाव) में हो तो उस ग्रह का नीच भंग होजाताहै जिससे नीचस्थ ग्रह के नकारात्मकपरिणाम में कुछ हद तक कमी आ जातीहै नीच भंग होने की इस स्थिति कोनीचभंग राजयोग भी कहते हैं। इसकेअतिरिक्त यदि लग्न कुंडली में कोई ग्रहनीच राशि में हो पर नवांश कुंडली में वहग्रह स्व राशि या अपनी उच्च राशि में होतो भी नीच राशि में होने के नकारात्मकमें काफी कमी आजाती है अर्थात नवांशकुंडली में उच्च या स्व राशि में होने सेनीचस्थ ग्रह को सकारात्मक बल मिलजाता है और उससे उत्पन्न संघर्ष में कमीआती है।
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