मंगलवार, 31 जुलाई 2018

सर्व-ग्रह दोष शांत करने का सबसे आसान उपाय

सर्व-ग्रह दोष शांत करने का सबसे आसान उपाय करके तो देखिऐ ईश्वर के कार्य में सहयोगी बनें पशु पक्षियों को आहार-पानी देकर कुंडली में दूषित ग्रहों के प्रभाव से सहज बचा जा सकता है।
       इस कार्य को करने से  हम प्रभु के कृपा पात्र ही नहीं बनते हैं बल्कि हम ईश्वर का प्रतिनिधी बनकर ईश्वर का कार्य ही करते हैं। सोचिए भूखे-प्यासे को भोजन-पानी देना तो भगवान का ही कार्य है ना और भगवान का कार्य करने वाले को सारी परेशानियों और प्रारब्ध के दोषों से ईश्वर स्वयं रक्षा करता है तथा पाप क्षीण हो जाते हैंं ,पुण्यों की प्राप्ति होती है। पापों के क्षरण होते ही दैहिक ,दैविक , और भौतिक कष्ट समाप्त होने लगते हैं।

   -:लाभ:-
 1-आपके मन में अक्सर भय सा या बेचैनी-सी रहती है।
2-आपके काम ठीक समय पर पूरे नहीं होते या पूरे होते-होते रुकते हैं।
 3-पारिवारिक क्लेश (विवाद) नियमित रूप से चलता रहता है।
4-परिवार में सदैव किसी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है।
5-भरकस परिश्रम करने पर भी धनोपार्जन करना मुश्किल हो रहा है।
6-एक नई परेशानी हल होने से पहले दूसरी तैयार रहती है।
7- कर्ज या खर्च से परेशान है,बचत नहीं हो पा रही।
      तो ‍निश्चिन्त हो कर आपको पशु पक्षियों को दाना-पानी डालना शुरू कर दें  चमत्कार होने लगेगा । आनंद की प्राप्ति होगी और आपके जीवन के सारे कष्ट दूर होने लगेंगे।
      चींटिंयों, चिड़ियों, गिलहरियों, कबूतर, तोता, कौआ और अन्य पक्षियों के झुंड, मछलियाँ और गाय, कुत्तों आदि को नियमित दाना-पानी देने से आपको मानसिक शांति, आरोग्यता और तरक्की प्राप्त होगी।

  ग्रह-बाधा के लिए
           
सूर्य- गेहूं ,घी या पका हुआ भोजन खिलाने से सूर्य की पीड़ा दूर होती है, पित्र-दोष शांत होने लगते हैं।

चंद्र- चावल बाँटने या पानी पिलाने से चंद्र की पीड़ा और मानसिक परेशानियां दूर होकर शांति मिलती है।

मंगल-दोष- लाल गाय को गुड खिलाने से मंगल दोष कम होते हैं भाई , मित्र, और पार्टनर से सहयोग मिलता है।

बुध- मूंग की दाल और हरी घास से बुध ग्रह से होने वाली परेशानियों से निजात पाई जा सकती है। बोद्धिक विकास और है व्यापार में वृद्धि होती है।

गुरू- चने की दाल गाय को खिलाने से गुरु की कृपा प्राप्त होती है वैवाहिक, शिक्षा, संतान के सुख में लाभ मिलता है

शुक्र- पशु पक्षियों को ज्वार खिलाने से शुक्र ग्रह की पीड़ा दूर होती है सौन्दर्य,लग्जरी सुविधा,प्रेम, और कामसुख आदि प्राप्त होते हैं।

शनि- काली उर्द की दाल या उससे सरसों के तेल मिश्रित भोजन कुत्तों को खिलाने से शनि के दोष दूर होते हैं जीवन की रुकावटें दूर होती हैं।

राहु- कुंडली में यदि राहु- की परेशानी हो तो पक्षियों को बाजरा डालना चाहिए या कुत्तों का संरक्षण करना चाहिए। कौओं और कुत्तों को ग्रास देने से शनि, राहु प्रसन्न होते हैं।

केतु- मछलियों को सात प्रकार के अनाज (आटे) की गोलियां खिलाने से केतु सकारात्मक हो जाता है।

         विशेष-लाभ
1- गरीबों को नित्य भोजन बाँटने और मदद देने से धन-धान्य बढ़ता है।
2- प्रत्येक अमावस्या-पूर्णिमा को दरिद्र या विद्वान ब्राह्मण या भानजों को षठरस भोजन कराके दक्षिणा देने से पित्र-दोष, पित्र-श्राप, अनाधिकृत धनोपार्जन का दोष कम हो जाता है तथा समस्त सुख-संपदाओं की प्राप्ती होती है।

     अति-विशेष
जो भी मनुष्य नियमित भोजन से पहले पंच-ग्रास यानि गाय, कुत्ता-बिल्ली, कागा, चींटी, और  मछलियों का भोजन कराता है तो इसी जीवन में "राज-सुख" ,  वैभव , आरोग्य , सम्मान , और स्वर्ग को प्राप्त करता है।
 परन्तु ध्यान रखें ये कार्य एक-दो बार करने से उचित लाभ नहीं मिलता। श्रद्धा-विस्वास से नियमित करते रहने से ही सम्पूर्ण पाप क्षीण होकर पुण्य की वृद्धि होती है और धीरे-धीरे समस्त सुख प्राप्त होने लगते हैं। धैर्यपूर्वक करते रहें फल तो ईश्वर देगा ही।

वैदिक ज्योतिष में पित्रादि-दोष (ऋण) या श्राप की सही पहचान और निदान

"पित्र-श्राप" का सही पता सिर्फ जन्म कुण्डली देखकर ही नहीं लगाया जा सकता है, अपितु कुंंडली ना होने पर इसके अलावा प्रश्न कुंडली, हस्त-रेखा (सामुद्रिक विज्ञान),  अपराविज्ञान और शकुन शास्त्र के माध्यम से भी "पित्र दोष" का सही पता लगाया जा सकता है, परन्तु प्राय ये विधिंयाँ प्रचलन में नहीं है लुप्तप्राय सी हो गयी हैं।
मुख्य रूप से जन्म कुण्डली से ही पित्र दोष का निर्णय किया जाता है।

        चार प्रकार के प्रबल पित्र-दोष :-
           
 सूर्य.... आत्मा एवं पिता का कारक गृह है पित्र पक्ष का विचार सूर्य से होता है।
"चन्द्रमा" मन एवं माता पक्ष का कारक ग्रह है।
मंगल...  हमारे रक्त , जीन्स, परम्परा, पौरुष और बंधुत्व पक्ष का कारक ग्रह है।
 शुक्र.... भी हमारे भोग, ऐश्वर्य और स्त्री पक्ष का कारक ग्रह है।

सूर्य जब राहु- की युति में हो तो ग्रहण योग बनता है, सूर्य का ग्रहण अतः पिता या आत्मा का ग्रहण हुआ यानि पित्र-श्राप या श्रापित आत्मा। और चंद्र केतु की युति, अमावस्या दोष या चंद्र ग्रहण दोष भी एक प्रकार का पित्र दोष ही होता है क्यों कि चंद्र हमारी भोंतिक देह का कारक है।
      चार अत्यंत कष्टकर पित्र-दोष :-
 "सूर्य"- सूर्य राहू सूर्य शनी या सूर्य केतु की युति पित्र दोष का निर्माण करती है।
 "चन्द्र"-अगर राहू, केतुु , शनी या सूर्य की युति में हो तो पित्र दोष (मात्र पक्ष) होता है।
"मंगल"- मंगल भी यदि पूर्णास्त है या इन क्रूर ग्रहों से युक्त है तो भी वंशानुगत पित्र दोष होता है।
"शुक्र" या सप्तम भाव यदि सूर्य, मंगल, शनी या राहु से युक्त हो तो भी स्त्री पक्ष से पित्र श्राप बनता है।

वैसे समस्त ग्रहों के दूषित होने से कुंंडली में विभिन्न प्रकार के अन्य पित्रादि श्राप भी बन सकते हैं....
परंतु अभी हम कुछ प्रमुख पित्र दोषों (श्रापों) को समझते हैं :-

शनि सूर्य पुत्र है, यह सूर्य का नैसर्गिक शत्रु भी है, अतः शनि की सूर्य पर दर्ष्टि भी पित्र दोष उत्पन करती है। इसी पित्र दोष से जातक आदि-व्याधि-उपाधि तीनो प्रकार की पीड़ाओं से कष्ट उठाता है, उसके प्रत्येक कार्ये में अड़चनें आती रहती हैं, कोई भी कार्य सामान्य रूप से निर्विघ्न सम्पन्न नहीं होते है, दूसरे की दृष्टि में जातक सुखी-सम्पंन दिखाई तो पड़ता है, परन्तु जातक आंतरिक रूप से दुखी होता रहता है, जीवन में अनेक प्रकार के कष्ट उठाता है, कष्ट किस प्रकार के होते है इसका विचार व निर्णय सूर्य राहु की युति अथवा सूर्य शनि की दृष्टि सम्बन्ध या युति जिस भाव में हो उसी पर निर्भर करता है, कुंडली में चतुर्थ भाव नवम भाव, तथा दशम भाव में सूर्य राहु अथवा चन्द्र राहु की युति से जो पित्र दोष उतपन्न होता उसे श्रापित पितृ दोष कहते है, इसी प्रकार पंचम भाव में राहु गुरु की युति से बना गुरु चांडाल योग भी प्रबल पितृ दोष कारक होता होता है, संतान भाव में इस दोष के कारण प्रसव कष्टकारक होते हैं, आठवे या बारहवे भाव में स्थित गुरु प्रेतात्मा से पित्र दोष करता है, यदि इन भावो में राहु बुध की युति में हो तथा सप्तम, अष्टम भाव में राहु और शुक्र की युति में हो तब भी पूर्वजो के दोष से पित्र दोष होता है, यदि राहु शुक्र की युति द्वादश भाव में हो तो पित्र दोष स्त्री जातक से होता है इसका कारण भी स्पष्ट कर दें क्योंकि बारहवाँ भाव भोग एव शैया सुख का स्थान है, अतः इस भावके दूषित होने से स्त्री जातक से दोष (श्राप) होना स्वभाविक है ये अनैतिक संबंधों का कारण भी हो सकता है।
          अन्य श्रापित योग :-
1.यदि कुण्डली में  अष्टमेश राहु के नक्षत्र में तथा राहु अष्टमेश के नक्षत्र में स्थित हो तथा लग्नेश निर्वल एवं पीड़ित हो तो जातक पित्र दोष एव भूत प्रेतादि आदि से शीघ्र प्रभावित होते हैं।
2.यदि जातक का जन्म सूर्य चन्द्र ग्रहण में हो तथा घटित होने वाले ग्रहण का सम्बन्ध जातक के लग्न, षष्ट एव अष्टम भाव से बन रहा हो तो ऐसे जातक पित्र दोष,भूत प्रेत, एव आत्माओं के प्रभाव से पीड़ित रहते हैं।
3.यदि लग्नेश जन्म कुण्डली में अथवा नवमांश कुण्डली में अपनी नीच राशि में स्थित हो तथा राहु , शनि, मंगल के प्रभाव से युक्त हो तो जातक पित्र दोष, प्रेत्माओं का शिकार होता है।
4.यदि जन्म कुण्डली में अष्टमेश पंचम भाव तथा पंचमेश अष्टम भाव में स्थित हो तथा चतुर्थेश षष्ठ भाव में स्थित हो और लग्न या लग्नेश पापकर्तरी (प्रतिबंधक) योग में स्थित हो तो जातक मातृ श्राप एवं अतृप्त मात्र आत्माओं से प्रभावित होता है।
5.यदि चन्द्रमा जन्म कुण्डली अथवा नवमांश कुण्डली में अपनी नीच राशि में स्थित हो या चन्द्र एव लग्नेश का सम्बन्ध क्रूर एव पाप ग्रहो से बन रहा हो तो जातक पित्र दोष, प्रेत-वाधा, एवं
पित्रात्माओं से प्रभावित होता है।
6.यदि कुंडली में शनि एव चन्द्रमा की युति हो अथवा चन्द्रमा शनि के नक्षत्र में, अथवा शनि चन्द्रमा के नक्षत्र में स्थित हो तो जातक पित्र दोष,  एव अतृप्त आत्माओं से शीघ्र प्रभावित होता है।
7.यदि लग्नेश जन्म कुंडली में अपनी शत्रु राशि में निर्बल आव दूषित होकर स्थित हो तथा क्रूर एव पाप ग्रहो से युक्त हो तथा शुभ ग्रहो की दृष्टि लग्न भाव एव लग्नेश पर नहीं पड़ रही हो, तो जातक प्रेतात्माओं, एव पित्र दोष से पीड़ित होता है।
8.यदि जातक का जन्म कृष्ण पक्ष की अष्टमी से शुक्ल पक्ष की सप्तमी के मध्य हुआ हो और चन्द्रमा अस्त, निर्बल, एव दूषित हो, अथवा चन्द्रमा पक्षबल में निर्बल हो, तथा राहु शनि से युक्त नक्षत्र परिवर्तन योग बना रहा हो तो श्राप के कारण जातक अदृश्य रूप से मानसिक बाधाऔं का शिकार होता है।
9.यदि कुंडली में चन्द्रमा राहु के नक्षत्र में स्थित हो तथा अन्य क्रूर एव पाप ग्रहो का प्रभाव चन्द्रमा, लग्नेश, एव लग्न भाव पर हो तो जातक अतृप्त आत्माओं से प्रभावित होता है।
10.यदि कुंडली में गुरु का सम्बन्ध राहु से हो तथा लग्नेश एव लग्न भाव पापकर्तरी योग में हो तो जातक को अतृप्त आत्माए अधिक परेशान करती है ।
11.यदि बुध एव राहु में नक्षत्रीय परिवर्तन हो तथा लग्नेश निर्बल होकर अष्टम भाव में स्थित हो साथ ही लग्न एव लग्नेश पर क्रूर एव पाप ग्रहो का प्रभाव हो तो जातक अतृप्त आत्माओं से परेशान रहता है और मनोरोगी बन जाता है।
12.यदि कुंडली में अष्टमेश लग्न में स्थित हो (मेष लग्न को छोडकर अन्य लग्नों में) तथा लग्न भाव तथा लग्नेश पर अन्य क्रूर तथा पाप ग्रहो का प्रभाव हो तो जातक अतृपत आत्माओं का शिकार होता है।
13. यदि जन्म कुण्डली में राहु जिस राशि में स्थित हो उसका स्वामी निर्बल एव पीड़ित होकर अष्टम भाव में स्थित हो तथा लग्न एव लग्नेश पापकर्तरी योग में स्थित हो तो जातक ऊपरी हवा, प्रेत बाधित और आत्माओं से परेशान रहता है ।
         
 सिर्फ इतना ही नहीं और भी दूषित ग्रहों से पित्र-ऋण (श्राप) दोष भी बनते हैं जो जीवन में बहुत ही अवरोध पैदा करके नाना भाँति के कष्ट देते हैं :-
   जैसे:-
 पित्र दोष(श्राप) के कारण व प्रकार
     1- "सूर्य" से पिता, चाचा, ताऊ, दादा, परदादा, नाना, मामा, मौसा या समतुल्य पैत्रिक (पित्रपुरुस) ऋण (श्राप)।
    2-"चंद्र" से मात्र, मात्रपक्ष या मात्रतुल्य स्त्रियों के ऋण (श्राप)।
     3-"मंगल" से भाई, मित्र, स्नेही या इनके समान पित्रों का ऋण (श्राप)।
    4-"बुध" से बहन-भांजी बुआ, साली, ननद या समतुल्य का ऋण (श्राप)।
    5-"गुरू" से गुरुदेव, ब्राह्मण, महात्मा, ज्ञानीजन, शिक्षक, विद्वान, पंडित या कुल पूज्य पुरुस आदि का  ऋण (श्राप)।
     6-"शुक्र" से पत्नी, प्रेमिका अथवा शैया सुख देने वाली अन्य स्त्रियों का ऋण (श्राप)।
     7-"शनि" से सेवक, कर्मचारी, मातहत, वेटर, मजदूर, मिस्त्री, चांडाल (डोम), भिकारी, या दीन-दुखियों का ऋण (श्राप)।
    8-"राहु-केतु" से प्राकृतिक, पर्यावरण, सामाजिक, क्षेत्रपाल, देश, मात्रभूमी, सरकारी अधिकारी, कर चोरी, जाने-अन्जाने की गई हिंसा, जीवहत्या या अनैतिक व्यवहार व व्यापार के अभिश्राप (ऋण)।

 हस्त-रेखा से भी:-
भिन्न-भिन्न ग्रह पर्वतों के योग एवं पर्वतों पर पाऐ जाने वाले चिन्ह जैसे:- क्रोस, जाल, द्वीप, वलय, भंग, दाग (तिलादि), झाँई, या अन्य अशुभ चिन्हों से भी सभी प्रकार के पित्रादि दोषों (श्रापों) को सहजता से जाना जा सकता है। बस थोडे से अभ्यास की जरूरत होती है ये सब देखने के लिऐ।

पितृ दोष (श्राप) भी भांति भांति के पाऐ जाते हैं, इन्ही पित्रादि दोषो के कारण जातक को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, और शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, पारिवारिक, अकस्मात दुर्घटनाओं से परेशान रहता है, और शनै-शनै जातक का जीवन नर्क बनता जाता है, एवं कई बार तो दिखने में सम्पंन व्यक्ती भी आंतरिक तौर से पीडित होकर मृतकों जैसा जीवन जीने पर मजबूर हो सकता है और दोष की सही जानकारी ना होने पर श्रापमुक्ती के लिऐ दर-दर भटकता रहता है व तमाम तंत्र, मंत्र, रत्न , व्रत, जाप या उपाय करके भी पीडित रहता है अन्ततः वैदिक तंत्र-ज्योतिषादि को ही ढ़ोंग मान बैठता है।
        तब जाचक करें क्या:-
   एक बात ध्यान दें कि मोत के अलावा हर बीमारी का इलाज भी है हर एक श्राप, दोष, दुर्भाग्य, और पाप का प्रायश्चित कर्म-विधान व उसको करने का सही स्थान और मुहुर्त भी हमारे वैदिक शास्त्रों में बताया है एवं अत्यंत फलदायी भी होता है ये अकाट्य सत्य है वर्तमान कर्मों से ... भविष्य का लेख भी बदल सकता है।
अतः जिस तरह पित्रादि-दोष (श्राप) या ऋण कई प्रकार के होते हैं.....   उसी तरह इनके निदान (प्रायश्चित कर्म-विधान) भी देश, काल, परिस्थितियों के आधीन होकर विभिन्न तरीके से ही कराना उचित होता है।
      इसलिऐ सर्वप्रथम जाचक को... इस विषय के विषेशज्ञ व तत्वज्ञ ज्योतिषाचार्य से उचित दक्षिणा देकर सही परामर्श लेना चाहिये और तत्पश्चात उसके द्वारा बताऐ गये "स्थान व मुहुर्त" में ..... पूर्ण श्रद्धा और समर्पण भाव से इन श्रापों (दोषों) का प्रायश्चित कर्म-विधान करवाना चाहिऐ.... तथा आचार्यों द्वारा बताऐ गये नियम-संयमों का पूर्ण विस्वास से पालन करना चाहिऐ.... फिर आप देखेंगे ये दोष भी आपकी उन्नति में मील के पत्थर बन जाऐंगे।

कैसा होगा आपकी भावी पत्नी का स्वरूप


विवाह योग्य हर पुरुष को यह जानने की जिज्ञासा होती है कि उसकी होने वाली पत्नी देखने में कैसी होगी ।ज्योतिष् शास्त्र कुंडली के माध्यम से ही इसकी पूर्व सूचना दे सकता है तो जानते हैं आपकी भावी पत्नी कैसी होगी।

1 सप्तमेश  के 6वें 8वें व 12वें भाव में स्थित होकर अशुभ ग्रहों से दृष्ट होने पर पत्नी सुन्दर नही होगी ।

2 सप्तमेश एवं शुक्र के सम राशि में होने पर पत्नी सभी स्त्रियोचित गुणों से युक्त होती है।

3 सप्तमेश शुक्र के नवांश में सम राशि में होने से पत्नी सुंदर होती है।

4 यदि सप्तमेश एवं शुक्र विषम राशि व नवांश में हों तो पत्नी के स्वभाव एवं आचरण में पुरुषोचित गुण देखने को मिलेंगे।

5 सूर्य एवं चंद्र के अतिरिक्त सभी ग्रह दो राशियों के स्वामी होते हैं।यदि सप्तम भाव का स्वामी एवं कलत्र कारक शुक्र चंद्र बुध अथवा शुक्र की राशियों में हों तो पत्नी स्वभाव एवं आचरण में पुरुषोचित गुणों से युक्त होगी ।

6 यदि सप्तमेश एवं शुक्र पुरुष ग्रह की राशियों में उसमें से भी विषम राशियों में तो पत्नी में पुरुषोचित गुणों की अधिकता होगी।

7 यदि सप्तमेश एवं शुक्र जन्मचक्र एवं नवमांश में सम राशियों में हो तो पत्नी सुंदर होगी।सप्तमेश के स्त्री ग्रह होने पर सुंदरता में और वृद्धि होगी ।

8 सप्तमेश यदि सम राशि एवं सम नवांश मे स्थित है उसका संबंध यदि स्त्री ग्रह से हो तो पत्नी ने अत्यधिक सुंदर होगी।

9 यदि सप्तमेश एवं शुक्र शुभ स्थान में हों अथवा सप्तम भाव में स्त्री ग्रह हो एवं किसी भी अशुभ ग्रह से दृष्ट न हो तो पत्नी अप्रतिम सुंदरी होगी।

10 पति के मामले में पति कारक गुरु एवं सम की जगह विषम राशि नवांश व विषम स्थान पर विचार किया जाएगा।

सोमवार, 25 जून 2018

प्रसासनिक अधिकारी या सिविल सर्विसिस में सफलता के ज्योतिष योग

प्रत्येक उच्च शिक्षित व्यक्ति एक अच्छे पद को पाने का इच्छुक होता है।।
 परंतु जन्मकुंडली में बनी भिन्न–भिन्न ग्रहस्थितियों के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति की रुचि या इच्छा अलग अलग क्षेत्रों में अपना करियर बनाने की होती है। जहाँ कुछ तकनीकी क्षेत्रों से जुड़ते हैं, कुछ रचनात्मक कार्यों से तो प्रशासनिक  कार्यों से।

“ज्योतिषीय दृष्टि में “मंगल” और “सूर्य” को प्रशासनिक  पद या प्रशासनिक  अधिकारों और कार्यों का कारक माना गया है इसके अतिरिक्त बृहस्पति की यहाँ सहायक भूमिका होती है। मंगल को हिम्मत, शक्ति, पराक्रम, उत्साह, रणनीति, स्पर्धा और कानून व्यवस्था, पुलिस और नियमव्यवस्था  का कारक माना गया है  अतः एक प्रशासनिक  अधिकारी में जिन गुणों का उपस्थित होना आवश्यक है वह सब मंगल के अन्तर्गत आते हैं इसी प्रकार सूर्य को सरकार, सरकारी कार्य, प्रसासन और प्रशासनिक  कार्यों का कारक माना गया है और सूर्य ही व्यक्ति को सरकारी कार्य से जोड़ने में अपनी अहम भूमिका निभाता है इसके अलावा बृहस्पति व्यक्ति को ज्ञान के साथ साथ परिस्थिति और व्यवस्था को मैनेज करने की प्रतिभा देता है अतः निष्कर्षतः मंगल व्यक्ति में व्यक्ति में पराक्रम, उत्साह, बल और  निर्भयता को देकर आईपीएस जैसे पुलिस अधिकारी बनने में सहायक होता है तो वहीँ बृहस्पति की अच्छी स्थिति व्यक्ति में आईएएस, जैसे प्रशासनिक  अधिकारी बनने की प्रतिभा देता है तथा  सूर्य व्यक्ति को सरकार और प्रसासन से जोड़ने का कार्य करता है इसके अलावा आईपीएस और आईएएस दोनों ही क्षेत्रों में शिक्षा बौद्धिक क्षमता और कॉम्पटीशन की बड़ी अहम भूमिका होती है इसलिए यहाँ बुद्धि कारक बुध, ज्ञान और शिक्षा कारक बृहस्पति तथा कॉम्पटीशन के कारक छटे भाव का भी अच्छी स्थिति में होना आवश्यक है, बलवान बुध और बृहस्पति  व्यक्ति को अच्छी बौद्धिक क्षमता देते हैं तो कुंडली के छटे भाव का बली होना व्यक्ति में कॉम्पटीशन की क्षमता देकर सिविल सर्विसिस में आगे बढ़ने का मार्ग प्रसस्त करता है, आईपीएस के लिए मंगल, सूर्य और बृहस्पति में से भी मंगल की अधिक भूमिका होती है तथा आईएएस के लिए सूर्य और बृहस्पति की अधिक भूमिका होती है।  जिन लोगो की कुंडली में पंचम भाव, बुध और छटा भाव बलि होते हैं उन्हें सिविल सर्विसिस की परीक्षाओं या कॉम्पटीशन में जल्दी सफलता मिलती है और इन घटकों के कमजोर होने पर संघर्ष और विलम्ब का सामना करना पड़ता है।

कुछ विशेष योग –

1 यदि मंगल स्व या उच्च राशि (मेष, वृश्चिक, मकर) में शुभ स्थान में हो तो आईपीएस में सफलता देता है।
2 मंगल बली होकर दशम भाव में स्थित हो या मंगल की दशम भाव पर दृष्टि हो तो आईपीएस का योग बनता है।
3 मंगल यदि बली होकर शनि से पाचवे या नवे भाव में हो तो भी आईपीएस में जाने का योग बनता है।
4 सूर्य स्व उच्च राशि (सिंह, मेष) में होकर शुभ स्थानों में हो तो उच्च प्रशासनिक सेवा से जोड़ता है।
5 सूर्य का दशम भाव में होना या दशम भाव को देखना भी प्रसासन से जोड़ता है।
6 यदि सूर्य मंगल का योग मेष राशि में हो तो आईपीएस अधिकारी बनने में सफलता मिलती है।
7 सूर्य और बृहस्पति का योग हो और मंगल शुभ भाव में बली होने पर भी आईएएस में सफलता देता है।
8 बृहस्पति यदि स्व उच्च राशि (धनु, मीन,कर्क) में होकर केंद्र त्रिकोण में हो और सूर्य भी शुभ स्थिति में हो तो आईएएस में सफलता दिलाता है।
9 सूर्य और बृहस्पति का योग लग्न में होना भी आईएएस के क्षेत्र की सफलता देता है।
10 कुंडली में बुधादित्य योग शुभ स्थान में बनना मेष,मिथुन, सिंह और कन्या राशि में बनना भी सिविल सर्विसिस के कॉम्पटीशन में सफलता दिलाता है।

विशेष – जैसा की हमने यहाँ स्पष्ठ किया के मंगल, बृहस्पति और सूर्य को सिविल सर्विसिस के लिए मुख्य कारक ग्रह माना गया है पर बिना सूर्य के अच्छी स्थिति में हुए सरकारी सेवा का योग नहीं बनता अतः सिविल सर्विस में जाने के लिए मंगल और सूर्य दोनों ही अच्छी स्थिति में होने चाहियें इसके अतिरिक्त किस व्यक्ति को इस क्षेत्र में कितनी जल्दी या किस स्तर की सफलता मिलेगी यह किसी भी व्यक्ति की अपनी कुंडली पर निर्भर करता है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में ग्रहस्थिति भिन्न होती है, उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में पंचम भाव बुध और बृहस्पति कमजोर होने से उसकी शिक्षा ही अच्छी नहीं रही तो फिर मंगल बलवान होने पर भी वह सिविल सर्विस में सफल कैसे हो सकता है क्योंकि अच्छी शिक्षा के बिना तो इस क्षेत्र में आगे बढ़ना संभव ही नहीं है इसी प्रकार दो अलग अलग व्यक्तियों की कुंडली में आजीविका का स्तर भी भिन्न भिन्न होने पर कोण किस स्तर तक उन्नति करेगा यह व्यक्ति की व्यक्तिगत कुंडली की क्षमता पर निर्भर करता है। मंगल की प्रधानता विशेषकर आईपीएस की और तथा बृहस्पति की प्रधानता आईएएस की और सफलता दिलाती है पर सूर्य की यहाँ बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका है जो दोनों ही क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है जिन लोगो की कुंडली में सूर्य नीच राशि में हो राहु से पीड़ित हो या अन्य प्रकार कमजोर हो ऐसे व्यक्तियों को सिविल सर्विसिस में आसानी से सफलता नहीं मिलती इसी प्रकार कुंडली का छटा भाव भी यदि पीड़ित हो तो व्यक्ति बहुत बार कॉम्पटीशन में सफल ना होने के कारण इस क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ पाता अतः सूर्य और छटे भाव का बली होना भी सिविल सर्विसिस के लिए बहुत आवश्यक है।
यदि आप बारम्बार इन परीक्षाओं में असफल हो रहे है तो कि योग्य ज्योतिषाचार्य से परामर्श लेकर कुछ उपाय करने पर सफल भी हो सकते हैं।।

गुरुवार, 7 जून 2018

जन्म पत्री मृतक की है या जीवित की, ज्ञात करने की विधि

जन्म पत्री मृतक की है या जीवित की, अर्थात कुंडली देख कर ये ज्ञात करना कि जातक जिन्दा है या मर चूका :

इसमें जन्म लग्न, अष्टम स्थान की राशि और प्रश्न लग्न इन तीनो की संख्या को जोड़ कर जन्मकुंडली के अष्टमेश की राशि संख्या से गुणा कर के लग्नेश की राशि संख्या से भाग देने पर विषम अंक - 1,3,5,7,9,11 शेष रहे तो जीवित की और सम अंक - 2,4,6,8,10,12 शेष रहे तो मृतक की जन्म पत्रिका होती है।

उदहारण : प्रश्न लग्न तुला, जन्म लग्न मीन और अष्टमेश की राशि 9, लग्नेश की राशि 5

7 (प्रश्न लग्न) + 12 (जन्म लग्न) + 7 ( अष्टम स्थान की राशि ) = 26 × 9 ( अष्टमेश की राशि ) = 234 ÷ 5 ( लग्नेश की राशि ) = 46 लब्ध 4 शेष ।

अतएव मृतक की जन्म पत्रिका है ।

नोट : ये विधि श्री नेमीचंद शास्त्री जी द्वारा लिखी हुई पुस्तक " भारतीय ज्योतिष" में बताई गई है ।

सोमवार, 4 जून 2018

लग्नेश के नवांश से मृत्यु और रोग का अनुमान

1- मेष नवांश हो तो
ज्वर,ताप जठराग्नि तथा पित्तदोष से मृत्यु हो।
2- वृष नवांश हो तो
दमा,शूल त्रिदोषादि, ऐपेंडिसाइटिस से मृत्यु हो।
3- मिथुन नवांश हो तो सिर वेदना।
4- कर्क नवांश हो तो
वात रोग व उन्माद से मृत्यु हो।
5- सिंह नवांश हो तो
विस्फोटकादि, घाव, विष, शस्त्राघात और ज्वर से मृत्यु।
6- कन्या नवांश हो तो
गुह्य रोग, जठराग्नि विकार से मृत्यु हो।
7- तुला नवांश में  हो तो
शोक, बुद्धि दोष, चतुष्पद के आघात से मृत्यु हो।
8- वृश्चिक नवांश में
पत्थर अथवा शस्त्र चोट से, पाण्डु ग्रहणी वेग से।
9- धनु नवांश में
गठिया, विष शस्त्राघात से मृत्यु हो।
10- मकर नवांश में
व्याघ्र, शेर,पशुओं से घात, शूल, अरुचि रोग से मृत्यु।
11- कुंभ नवांश में
स्त्री से विष पान श्वांस तथा ज्वर से मृत्यु हो।
12- मीन नवांश में
जल से तथा संग्रहणी रोग से मृत्यु हो सकती है।

गुरुवार, 31 मई 2018

ज्योतिष और मानसिक रोग ( कारण और निवारण)

मानसिक बीमारी होने के बहुत से कारण होते हैं, इन कारणों का ज्योतिषीय आधार क्या है, इसकी जानकारी के लिये कुंडली के उन योगों का अध्ययन करेंगे जिनके आधार पर मानसिक बिमारियों का पता चलता है।
मानसिक बीमारी में चंद्रमा, बुध, चतुर्थ भाव व पंचम भाव का आंकलन किया जाता है। चंद्रमा मन है, बुध से बुद्धि देखी जाती है और चतुर्थ भाव भी मन है तथा पंचम भाव से बुद्धि देखी जाती है। जब व्यक्ति भावुकता में बहकर मानसिक संतुलन खोता है तब उसमें पंचम भाव व चंद्रमा की भूमिका अहम मानी जाती है। सेजोफ्रेनिया बीमारी में चतुर्थ भाव की भूमिका मुख्य मानी जाती है। शनि व चंद्रमा की युति भी मानसिक शांति के लिए शुभ नहीं मानी जाती है। मानसिक परेशानी में चंद्रमा पीड़ित होना चाहिए।

1- जन्म कुंडली में चंद्रमा अगर राहु के साथ है तब व्यक्ति को मानसिक बीमारी होने की संभावना बनती है क्योकि राहु मन को भ्रमित रखता है और चंद्रमा मन है. मन के घोड़े बहुत ज्यादा दौड़ते हैं. व्यक्ति बहुत ज्यादा हवाई किले बनाता है।

2- यदि जन्म कुंडली में बुध, केतु और चतुर्थ भाव का संबंध बन रहा है और यह तीनों अत्यधिक पीड़ित हैं तब व्यक्ति में अत्यधिक जिदपन हो सकती है और वह सेजोफ्रेनिया का शिकार हो सकता है. इसके लिए बहुत से लोगों ने बुध व चतुर्थ भाव पर अधिक जोर दिया है।

3- जन्म कुंडली में गुरु लग्न में स्थित हो और मंगल सप्तम भाव में स्थित हो या मंगल लग्न में और सप्तम में गुरु स्थित हो तब मानसिक आघात लगने की संभावना बनती है।

4- जन्म कुंडली में शनि लग्न में और मंगल पंचम भाव या सप्तम भाव या नवम भाव में स्थित हो तब मानसिक रोग होने की संभावना बनती है।

5- कृष्ण पक्ष का बलहीन चंद्रमा हो और वह शनि के साथ 12वें भाव में स्थित हो तब मानसिक रोग की संभावना बनती है. शनि व चंद्र की युति में व्यक्ति मानसिक तनाव ज्यादा रखता है।

6- जन्म कुंडली में शनि लग्न में स्थित हो, सूर्य 12वें भाव में हो, मंगल व चंद्रमा त्रिकोण भाव में स्थित हो तब मानसिक रोग होने की संभावना बनती है।

7- जन्म कुंडली में मांदी सप्तम भाव में स्थित हो और अशुभ ग्रह से पीड़ित हो रही हो।

8- राहु व चंद्रमा लग्न में स्थित हो और अशुभ ग्रह त्रिकोण में स्थित हों तब भी मानसिक रोग की संभावना बनती है।

9- मंगल चतुर्थ भाव में शनि से दृष्ट हो या शनि चतुर्थ भाव में राहु/केतु अक्ष पर स्थित हो तब भी मानसिक रोग होने की संभावना बनती है।

10- जन्म कुंडली में शनि व मंगल की युति छठे भाव या आठवें भाव में हो रही हो।

11- जन्म कुंडली में बुध पाप ग्रह के साथ तीसरे भाव में हो या छठे भाव में हो या आठवें भाव में हो या बारहवें भाव में स्थित हो तब भी मानसिक रोग होने की संभावना बनती है।

12- यदि चंद्रमा की युति केतु व शनि के साथ हो रही हो तब यह अत्यधिक अशुभ माना गया है और अगर यह अंशात्मक रुप से नजदीक हैं तब मानसिक रोग होने की संभावना अधिक बनती है।

13- जन्म कुंडली में शनि और मंगल दोनो ही चंद्रमा या बुध से केन्द्र में स्थित हों तब मानसिक रोग होने की संभावना बनती है।

मिरगी होने के जन्म कुंडली में लक्षणइसके लिए चंद्र तथा बुध की स्थिति मुख्य रुप से देखी जाती है. साथ ही अन्य ग्रहों की स्थिति भी देखी जाती है।

1- शनि व मंगल जन्म कुंडली में छठे या आठवें भाव में स्थित हो तब व्यक्ति को मिरगी संबंधित बीमारी का सामना करना पड़ सकता है।

2- कुंडली में शनि व चंद्रमा की युति हो और यह दोनो मंगल से दृष्ट हो।

3- जन्म कुंडली में राहु व चंद्रमा आठवें भाव में स्थित हों।


मानसिक रुप से कमजोर बच्चे अथवा मंदबुद्धि बच्चे

जन्म के समय लग्न अशुभ प्रभाव में हो विशेष रुप से शनि का संबंध बन रहा हो. यह संबंध युति, दृष्टि व स्थिति किसी भी रुप से बन सकता है।

1- शनि पंचम से लग्नेश को देख रहा हो तब व्यक्ति जन्म से ही मानसिक रुप से कमजोर हो सकता है।

2- जन्म के समय बच्चे की कुण्डली में शनि व राहु पंचम भाव में स्थित हो, बुध बारहवें भाव में स्थित हो और पंचमेश पीड़ित अवस्था में हो तब बच्चा जन्म से ही मानसिक रुप से कमजोर हो सकता है।

3- पंचम भाव, पंचमेश, चंद्रमा व बुध सभी पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तब भी बच्चा जन्म से ही मानसिक रुप से कमजोर हो सकता है।

4- जन्म के समय चंद्रमा लग्न में स्थित हो और शनि व मंगल से दृष्ट हो तब भी व्यक्ति मानसिक रुप से कमजोर हो सकता है।

5- पंचम भाव का राहु भी व्यक्ति की बुद्धि को भ्रष्ट करने का काम करता है, बुद्धि अच्छी नहीं रहती है।

मेरे विचार से  मानसिक बीमारियों  के निवारण हेतु  बुध को  बल प्रदान करना सर्वथा उपयुक्त होगा । ऐसे व्यक्ति को पन्ना रत्न की अंगूठी चाँदी  में बनवाकर दाहिने हाथ की कनिष्ठा अंगुली में  धारण करना चाहिए । कुछ विशेष परिस्थितिओं  में गले में भी धारण किया जा सकता है । पन्ना का भष्म  आदि भी खिलाना लाभप्रद होगा । प्रज्ञा मन्त्र का अनुष्ठान एवं अपामार्ग की लता से हवन भी  कराना चाहिए।

कालसर्प दोष भंग करने के लिए दैनिक छोटे उपाय

1 108 राहु यंत्रों को जल में प्रवाहित करें।
2 सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।
3 शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर अष्टधातु या चांदी का स्वस्तिक लगाएं और उसके दोनों ओर धातु निर्मित नाग.।
4 अमावस्या के दिन पितरों को शान्त कराने हेतु दान आदि करें तथा कालसर्प योग शान्ति पाठ कराये।
5 शुभ मुहूर्त में नागपाश यंत्रा अभिमंत्रित कर धारण करें और शयन कक्ष में बेडशीट व पर्दे लाल रंग के प्रयोग में लायें।
6. हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और मंगलवार के दिन हनुमान पर सिंदूर, चमेली का तेल व बताशा चढ़ाएं।.
7 शनिवार को पीपल पर शिवलिंग चढ़ाये व मंत्र जाप करें (ग्यारह शनिवार )
8 सवा महीने देवदारु, सरसों तथा लोहवान - इन तीनों को जल में उबालकर उस जल से स्नान करें।
9 काल सर्प दोष निवारण यंत्रा घर में स्थापित करके उसकी नित्य प्रति पूजा करें ।
10 सोमवार को शिव मंदिर में चांदी के नाग की पूजा करें, पितरों का स्मरण करें तथा श्रध्दापूर्वक बहते पानी में नागदेवता का विसर्जन करें।
11 श्रावण मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
12 प्रत्येक सोमवार को दही से भगवान शंकर पर - हर हर महादेव' कहते हुए अभिषेक करें। हर रोज श्रावण के महिने में करें।
13. सरल उपाय- कालसर्प योग वाला युवा श्रावण मास में प्रतिदिन रूद्र-अभिषेक कराए एवं महामृत्युंजय मंत्र की एक माला रोज करें।
14 यदि रोजगार में तकलीफ आ रही है अथवा रोजगार प्राप्त नहीं हो रहा है तो पलाश के फूल गोमूत्र में डूबाकर उसको बारीक करें। फिर छाँव में रखकर सुखाएँ। उसका चूर्ण बनाकर चंदन के पावडर में मिलाकर शिवलिंग पर त्रिपुण्ड बनाएँ। 41 दिन दिन में नौकरी अवश्य मिलेगी।.
15 शिवलिंग पर प्रतिदिन मीठा दूध उसी में भाँग डाल दें, फिर चढ़ाएँ इससे गुस्सा शांत होता है, साथ ही सफलता तेजी से मिलने लगती है।
16 किसी शुभ मुहूर्त में ओउम् नम: शिवाय' की 21 माला जाप करने के उपरांत शिवलिंग का गाय के दूध से अभिषेक करें और शिव को प्रिय बेलपत्रा आदि श्रध्दापूर्वक अर्पित करें। साथ ही तांबे का बना सर्प शिवलिंग पर समर्पित करें।
17 शत्रु से भय है तो चाँदी के अथवा ताँबे के सर्प बनाकर उनकी आँखों में सुरमा लगा दें, फिर शिवलिंग पर चढ़ा दें, भय दूर होगा व शत्रु का नाश होगा।
18 यदि पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका में क्लेश हो रहा हो, आपसी प्रेम की कमी हो रही हो तो भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या बालकृष्ण की मूर्ति जिसके सिर पर मोरपंखी मुकुट धारण हो घर में स्थापित करें एवं प्रतिदिन उनका पूजन करें एवं ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम: शिवाय का यथाशक्ति जाप करे। कालसर्प योग की शांति होगी।
19 किसी शुभ मुहूर्त में मसूर की दाल तीन बार गरीबों को दान करें।
20 किसी शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को बहते जल में तीन बार प्रवाहित करें तथा किसी शुभ मुहूर्त में शनिवार के दिन बहते पानी में तीन बार कोयला भी प्रवाहित करें
21 मंगलवार एवं शनिवार को रामचरितमानस के सुंदरकाण्ड का 108 बार पाठ श्रध्दापूर्वक करें।
22 महामृत्युंजय कवच का नित्य पाठ करें और श्रावण महीने के हर सोमवार का व्रत रखते हुए शिव का रुद्राभिषेक करें।
23 मंगलवार एवं शनिवार को रामचरितमानस के सुंदरकाण्ड का 108 बार पाठ श्रध्दापूर्वक करें।
24 86 शनिवार का व्रत करें और राहु,केतु व शनि के साथ हनुमान की आराधना करें। शनिवार को श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें
25 नव नाग स्तोत्रा का एक वर्ष तक प्रतिदिन पाठ करें।
26 प्रत्येक बुधवार को काले वस्त्रों में उड़द या मूंग एक मुट्ठी डालकर, राहु का मंत्रा जप कर भिक्षाटन करने वाले को दे दें। यदि दान लेने वाला कोई नहीं मिले तो बहते पानी में उस अन्न हो प्रवाहित करें। 72 बुधवार तक करने से अवश्य लाभ मिलता है।
27 कालसर्प योग हो और जीवन में लगातार गंभीर बाधा आ रही हो तब किसी विद्वान ब्राह्मण से राहु और केतु के मंत्रों का जप कराया जाना चाहिए और उनकी सलाह से राहु और केतु की वस्तुओं का दान या तुलादान करना चाहिए।)-
28 शिव के ही अंश बटुक भैरव की आराधना से भी इस दोष से बचाव हो सकता है।
29 प्रथम पूज्य शिव पुत्र श्री गणेश को विघ्रहर्ता कहा जाता है। इसलिए कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए गणेश पूजा भी करनी चाहिए।
30-पुराणों में बताया गया है कि भगवान श्री कृष्ण ने कालिय नाग का मद चूर किया था। इसलिए इस दोष शांति के लिए श्री कृष्ण की आराधना भी श्रेष्ठ है।
31विद्यार्थीजन सरस्वती जी के बीज मंत्रों का एक वर्ष तक जाप करें और विधिवत उपासना करें।
32 एक वर्ष तक गणपति अथर्वशीर्ष का नित्य पाठ करें
33 नागपंचमी के दिन दूध-जलेबी का दान करें।
34 लाल रंग के कपडे की छोटी थैली में खांड या सौंठ भरकर अपने पास रखें
35 चांदी का ठोस हाथी घर में रखें।
36 रसोईघर में ही भोजन करें।
37 प्रत्येक शनिवार जलेबी का दान करें।
38 किसी शुभ मुहूर्त में मसूर की दाल तीन बार गरीबों को दान करें।
39 सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाने के बाद ही कोई काम प्रारंभ करें।
40 काल सर्प दोष निवारण यंत्रा घर में स्थापित करके उसकी नित्य प्रति पूजा करें और भोजनालय में ही बैठकर भोजन करें अन्य कमरों में नहीं।
41 किसी शुभ मुहूर्त में नागपाश यंत्रा अभिमंत्रित कर धारण करें और शयन कक्ष में बेडशीट व पर्दे लाल रंग के प्रयोग में लायें।
42 काले और सफेद तील बहते जल में प्रवाह करें। किसी भी मंदिर में केले का दान करें।
43 शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर अष्टधातु या चांदी का स्वस्तिक लगाएं और उसके दोनों ओर धातु निर्मित नाग चिपका दें तथा एक बार देवदारु, सरसों तथा लोहवान इन तीनों को उबाल कर स्नान करें।
44 सोने की चेन पहनें।
45 सरस्वती का पूजन नीले पुष्पों से करें।
46 कन्या तथा बहन को उपहार देते रहें।
47 किसी शुभ मुहूर्त में ओउम् नम: शिवाय' की 11 माला जाप करने के उपरांत शिवलिंग का गाय के दूध से अभिषेक करें और शिव को प्रिय बेलपत्रा आदि सामग्रियां श्रध्दापूर्वक अर्पित करें। साथ ही तांबे का बना सर्प विधिवत पूजन के उपरांत शिवलिंग पर समर्पित करें।
48 हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और मंगलवार के दिन हनुमान जी की प्रतिमा पर लाल वस्त्रा सहित सिंदूर, चमेली का तेल व बताशा चढ़ाएं।
49 अपने गले में सोमवार, मंगलवार और शनिवार के दिन लाल धागे में 8 मुखी 2 दानें रुद्राक्ष, 9 मुखी 2 दानें रुद्राक्ष और 12 मुखी 3 दानें रुद्राक्ष धारण करें। कष्टों से अवश्य छुटकारा मिलेगा।

बुधवार, 30 मई 2018

चोरी गया सामान ज्ञात करना

कोई भी सामान खोना/चोरी होना आज
के समय मे सामान्य बात है। अंक विद्या में गुम हुई वस्तु के बारे में प्रश्र किया जाए तो उसका जवाब बहुत हद तक सच साबित होता है।

जैसे
सर्व प्रथम आप 1 से 108 के बीच का एक अंक मन मे सोचे।
और उस अंक को 9 से भाग दें। शेष जो अंक आये तो आगे लिखे अनुसार उसका
उत्तर होगा।

 शेष अंक 1 ( सूर्य का अंक है )
पूर्व में मिलने की आशा है।

शेष अंक 2 ( चंद्र का अंक है )
वस्तु किसी स्त्री के पास होने की
आशा है पर वापस नहीं मिलेगी।

शेष अंक 3 ( गुरु का अंक है )
वस्तु वापिस मिल जायेगी। मित्रों और परिवार के लोगों से पूछें।

शेष अंक 4 ( राहु का अंक है )
ढूढ़ने का प्रयास व्यर्थ है। वस्तु आप की
लापरवाही से खोई है।

शेष अंक 5 ( बुध का अंक है )
आप धैर्य रखें वस्तु वापस मिलने की आशा है।

शेष अंक 6 ( शुक्र का अंक है )
वस्तु आप किसी को देकर भूल गए हैं।
घर के दक्षिण पूर्व या रसोई घर में ढूंढने की कोशिश करें।

शेष अंक 7 ( केतु का अंक है )
चिंता न करें खोई वस्तु मिल जायेगी।

शेष अंक 8 ( शनि का अंक है )
खोई वस्तु मिलने की आशा नहीं है। वस्तु को भूल जाएँ तो अच्छा है।

शेष अंक 9 या 0 ( मंगल का अंक है )
यदि खोई वस्तु आज मिल गई तो ठीक अन्यथा मिलने की कोई आशा नहीं है।

उदाहरण :- के लिए अगर प्रश्नकर्ता ने 83 अंक कहा है तो 83 को 9 से भाग दें
83÷9 = 2
शेष आया 2 जो चंन्द्र का अंक है।

वस्तु किसी स्त्री के पास है पर वापस प्राप्त नही होगीl खोये सामान की जानकारी मिलेगी अथवा नहीं मिलेगी? इसके लिए सभी नक्षत्रों को चार बराबर भागों में बाँट दिया गया है. एक भाग में सात नक्षत्र आते हैं. उन्हें अंध, मंद, मध्य तथा सुलोचन नाम दिया गया है. इन नक्षत्रों के अनुसार चोरी की वस्तु का दिशा ज्ञान तथा फल ज्ञान के विषय में जो जानकारी प्राप्त होती है वह एकदम सटीक होती है.

 नक्षत्रों का लोचन ज्ञान

अंध लोचन नक्षत्र :-
रेवती, रोहिणी, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा, पूर्वाषाढा़, धनिष्ठा.

मंद लोचन नक्षत्र :-
अश्विनी, मृगशिरा, आश्लेषा, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढा़, शतभिषा.

मध्य लोचन नक्षत्र:-
भरणी, आर्द्रा, मघा, चित्रा, ज्येष्ठा, अभिजित, पूर्वाभाद्रपद.

  सुलोचन नक्षत्र नक्षत्र :-
कृतिका, पुनर्वसु, पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, मूल, श्रवण, उत्तराभाद्रपद.

यदि वस्तु अंध लोचन में खोई है तो वह पूर्व दिशा में शीघ्र मिल जाती है.

 यदि वस्तु मंद लोचन में गुम हुई है तो वह दक्षिण दिशा में होती है और गुम होने के 3-4 दिन बाद कष्ट से मिलती है.

यदि वस्तु मध्य लोचन में खोई है तो वह पश्चिम दिशा की ओर होती है और एक गुम होने के एक माह बाद उस वस्तु की जानकारी मिलती है. ढा़ई माह बाद उस वस्तु के मिलने की संभावना बनती है.

यदि वस्तु सुलोचन नक्षत्र में गुम हुई है तो वह उत्तर दिशा की ओर होती है. वस्तु की ना तो मिलती है।

  गुम वस्तु की प्राप्ति हेतु दिव्य मंत्र

जीवन में भूलना, गुमना, चले जाना, बलात ले लेना अथवा लेने के बाद कोई भी वस्तु वापस नहीं मिलना ऐसी घटनाएं स्वाभाविक रूप से घटि‍त होती रहती है।
यदि आप का कोई भी सामान खो गया है या मिल नही रहा तो अपने पूजाघर मे एक देशी घी का दीपक लगाकर पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठें। अपनी गुम वस्तु की कामना को उच्चारण कर भगवान विष्‍णु के सुदर्शन चक्रधारी रूप का ध्यान करें इस मंत्र का विश्वासपूर्वक जप 1008 बार करें।इससे गुम हुई वस्तु एवं अपना फसा धन प्राप्ति होने की सम्भावना प्रबल हो जाती है।

मंत्र :- ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान।
यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।

रविवार, 13 मई 2018

ग्रहों की दृष्टियाँ

 ग्रहों की दृष्टि कौन-कौन सी है क्या सभी ग्रह अपने स्थान से सप्तम स्थान को और गुरु सप्तम के अलावा पंचम और नवम, मंगल चतुर्थ व अष्टम, शनि तृतीय व दशम को स्थान को देखते हैं अन्य किसी स्थान को नही?

चलिए चर्चा करते हैं कि कौन ग्रह अपने स्थान से किन-किन भावों को व कितनी दृष्टि से देखते हैं:-

ग्रहों की दृष्टियाँ:-

सभी ग्रह अपने स्थान से (स्थित भाव स्थान से) तृतीय व दशम स्थान पर एक पाद मतलब चतुर्थांश मतलब २५% की दृष्टि से देखते हैं इसी प्रकार सभी ग्रह नवम व पंचम स्थान को द्विपाद अर्थात आधी दृष्टि मतलब ५०% दृष्टि से, चतुर्थ व अष्टम स्थान को त्रिपाद अर्थात तीन चौथाई मतलब ७५% दृष्टि से एवं सप्तम स्थान को पूर्ण दृष्टि मतलब १००% अर्थात संपूर्ण दृष्टि से देखते हैं।

यह पाद वृद्धिक्रम से दृष्टि ग्रह दृष्टिफल को भी क्रमशः चतुर्थांश फल, अर्द्ध फल, तीन चौथाई व पूर्ण फल प्रदान करते हैं अर्थात ३-१० स्थान में ग्रह दृष्टि से १/४ फल, ५-९ स्थान में १/२ फल, ४-८ स्थान में ३/४ फल व ७ स्थान में ग्रह पूर्ण दृष्टि से पूर्ण फल प्राप्त होता है।

विशेष दृष्टि:-

शनि अपने स्थान से ३, १० स्थान पर पूर्ण दृष्टि करता है, गुरु अपने स्थान से ५, ९ स्थान पर पूर्ण दृष्टि करता है, मंगल अपने स्थान से ४, ८ स्थान पर पूर्ण दृष्टि करता है और सूर्य, चंद्र, बुध व शुक्र अपने स्थान से कलत्र स्थान (७ स्थान) पर पूर्ण दृष्टि करते हैं।

लग्नानुसार भाग्योदय वर्ष

कुंडली में बारह भाव होते हैं और ये 12 राशियों (मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन) का प्रतिनिधित्व करते हैं। कुंडली का प्रथम भाव यानी कुंडली के केंद्र स्थान में पहला घर जिस राशि का होता है, उसी राशि के अनुसार कुंडली का लग्न निर्धारित होता है। लग्न के आधार पर कुंडलियां बारह प्रकार की होती हैं।

अपनी कुंडली का पहला भाव यानी लग्न देखिए और यहां जानिए किस-किस उम्र में आपका भाग्योदय हो सकता है...       
                                                                         मेष लग्न की कुंडली:
जिन लोगों की कुंडली मेष लग्न की है, सामान्यत: उनका भाग्योदय 16 वर्ष की आयु में या 22 वर्ष की आयु, 28 वर्ष की आयु, 32 वर्ष की आयु या 36 वर्ष की आयु में हो सकता है।

वृष लग्न की कुंडली:
जिन लोगों की कुंडली वृष लग्न की है, उनका भाग्योदय 25 वर्ष की आयु, 28 वर्ष की आयु, 36 वर्ष की आयु या 42 वर्ष की आयु में भाग्योदय हो सकता है।

मिथुन लग्न की कुंडली:
मिथुन लग्न की कुंडली वाले लोगों का भाग्योदय करने वाली आयु है 22 वर्ष, 32 वर्ष, 35 वर्ष, 36 वर्ष या 42 वर्ष। इन वर्षों में मिथुन राशि के लोगों का भाग्योदय हो सकता है।

कर्क लग्न की कुंडली:
जिन लोगों की कुंडली कर्क लग्न की है, उनका भाग्योदय 16 वर्ष की आयु, 22 वर्ष की आयु, 24 वर्ष की आयु, 25 वर्ष की आयु, 28 वर्ष की आयु या 32 वर्ष की आयु में हो सकता है।

सिंह लग्न की कुंडली:
जिन लोगों की कुंडली सिंह लग्न की है, उनका भाग्योदय 16 वर्ष की आयु में, 22 वर्ष की आयु में, 24 वर्ष की आयु में, 26 वर्ष की आयु में, 28 वर्ष की आयु में या 32 वर्ष की आयु में हो सकता है।

कन्या लग्न की कुंडली:
कन्या लग्न की कुंडली वाले लोगों का भाग्योदय इन आयु वर्ष में हो सकता है- 16 वर्ष, 22 वर्ष, 25 वर्ष, 32 वर्ष, 33 वर्ष, 35 वर्ष या 36 वर्ष।

तुला लग्न की कुंडली:
जिन लोगों की कुंडली तुला लग्न की है, उनके भाग्य का उदय 24 वर्ष की आयु में हो सकता है। यदि 24 वर्ष की आयु में भाग्योदय न हो तो इसके बाद 25 वर्ष की आयु में, 32 वर्ष की आयु में, 33 वर्ष की आयु में या 35 वर्ष की आयु में भाग्योदय हो सकता है।

वृश्चिक लग्न की कुंडली:
वृश्चिक लग्न की कुंडली वाले लोगों का भाग्योदय 22 वर्ष की आयु में, 24 वर्ष की आयु में, 28 वर्ष की आयु में या 32 वर्ष की आयु में हो सकता है।

धनु लग्न की कुंडली:
जिन लोगों की कुंडली धनु लग्न की है, उनका भाग्योदय 16 वर्ष की आयु में, 22 वर्ष की आयु में या 32 वर्ष की आयु में हो सकता है।

मकर लग्न की कुंडली:
मकर लग्न की कुंडली वाले लोगों का भाग्योदय 25 वर्ष की आयु में या 33 वर्ष की आयु में या 35 वर्ष की आयु में या 36 वर्ष की आयु में हो सकता है।

कुंभ लग्न की कुंडली:
जिन लोगों की कुंडली कुंभ लग्न की है, उनका भाग्योदय 25 वर्ष की आयु में, 28 वर्ष की आयु में, 36 वर्ष की आयु में या 42 वर्ष की आयु में हो सकता है।

मीन लग्न की कुंडली:
मीन लग्न की कुंडली वाले लोगों का भाग्योदय 16 वर्ष की आयु में, 22 वर्ष की आयु में, 28 वर्ष की आयु में या 33 वर्ष की आयु में हो सकता है।

शुक्रवार, 4 मई 2018

फलित में जन्मांग के इतर षोडश वर्ग की महत्वता

 आज भौतिक व संघर्ष युग में ज्योतिष सबसे तेज से व्यवहार में आने वाला विषय है, प्रतिदिन ज्योतिषी भी बढ़ते जा रहे हैं, कुछ सूत्रों को पढ़कर व  जानकार ही कोई भी ज्योतिषी बन बैठता है, वह लोग मात्र जन्मांग कुण्डली का विश्लेषण करके ही फलित कर देते हैं, लेकिन जानकारी अभ्यास के अभाव में शेष षोडश वर्ग का विवेचन नहीं कर पाते हैं, आज इस अपने इस लेख मे सभी सोलह प्रकार की कुंडलियों को परिभाषित किया गया है कि षोडश वर्ग कि कोनसी कुण्डली से क्या देखा जाता है?

1. लग्न कुंडली (डी-1) जन्म के समय पूर्व क्षितिज में उदित राशि को लग्न मानकर बनायी गयी कुंडली को लग्न/जन्म कुंडली कहते हैं।जन्म के समय चन्द्र द्वारा गृहीत राशि को लग्न मान कर बनायी गयी कुंडली को राशि कुंडली कहते हैं। वर्गों के लिये लग्न कुंडली ही आधार होती है। फल प्राप्ति के लिये जन्मकुंडली में योग होना आवश्यक है। वर्ग कुंडली का महत्व या तो उस फल की पुष्टि करना, नकारना या उसके स्वरूप को कम या अधिक करना होता है।

2. होरा (डी-2) उपयोग: होरा कुंडली का अध्ययन मुख्यतः जातक की आर्थिक समृद्धि को जांचने के लिये किया जाता है। द्वितीय भाव के अन्य कारक तत्वों के लिये भी इसे देखा जा सकता है।आर्थिक समृद्धि से तात्पर्य स्वयं अर्जित किये हुए धन से लेना चाहिये न कि परिवार से प्राप्त किये हुए होरा के स्वामी: सूर्य की होरा का स्वामित्व देवों (स्व प्रयास से ही धन प्राप्ति होगी) का और चन्द्र की होरा का स्वामित्व पितृ/पूर्वजों (मेहनत की अपेक्षा फल अधिक क्योंकि पूर्वजों का आशीर्वाद होता है) का होता है। कुछ मुख्य नियम – होरा कुंडली में पुरुष ग्रहों (सूर्य, गुरु, मंगल) का सूर्य की होरा में होना समृद्धि के लिये शुभ होता है। स्त्री ग्रहों (चन्द्र, शुक्र) और शनि का फल चन्द्र होरा में शुभ होता है। बुध, दोनों होरा में शुभ होते हैं। – सूर्य की होरा में स्थित आत्मकारक (सर्वाधिक भोगांश वाला ग्रह) उन्नति के लिये शुभ माना जाता है।

3. द्रेष्काण (डी-3) उपयोगः द्रेष्काण कुंडली का अध्ययन मुख्यतः जातक के छोटे भाई-बहन का होना/न होना, उनसे संबंधित सुख-दुःख, जातक का स्वभाव और रुचियों के लिये किया जाता है। तृतीय भाव के अन्य कारक तत्वों के लिये भी इसे देखा जा सकता है। 22 वें द्रेष्काण की गणना जातक की मृत्यु के स्वरूप को जानने के लिये की जाती है। द्रेष्काण के स्वामी: प्रथम द्रेष्काण के स्वामी नारद, द्वितीय के अगस्त्य और तृतीय के दुर्वासा ऋषि। द्रेष्काण स्वामी अपने स्वभावानुसार फल देते हैं। कुछ मुख्य नियम: – द्रेष्काण कुंडली में जन्मकुंडली के तृतीयेश और कारक मंगल का सुस्थित होना बहन-भाइयों से अच्छे संबंध दर्शाता है। – द्रेष्काण कुंडली का बली लग्न/ लग्नेश भाई-बहन का होना सुनिश्चित करता है। – द्रेष्काण कुंडली के तृतीय/ तृतीयेश का निरीक्षण भी सहोदरों के होने या न होने में भूमिका निभाता है। – द्रेष्काण कुंडली के एकादश/एकादशेश का निरीक्षण बड़े भाई-बहनों के लिये किया जाता है।

4. चतुर्थांश (डी-4) उपयोग: चतुर्थांश कुंडली का अध्ययन जातक की चल-अचल सम्पत्ति, वाहन, चरित्र, माता-सुख, स्कूली शिक्षा आदि के लिये किया जाता है। मंगल सम्पति का, बुध शिक्षा का, चन्द्र माता का और शुक्र वाहन के कारक हैं। चतुर्थांश के स्वामीः प्रत्येक भाग के क्रमशः स्वामी हैं: सनक (अपने अनुसार चलना जैसे एक पागल/ सनकी व्यक्ति), सानन्द (सफलता या असफलता खुशी-खुशी स्वीकार करने वाला), सनत (हिम्मत न हारने वाला) और सनातन (हर परिस्थिति में प्रसन्न)। कुछ मुख्य नियम: – चतुर्थांश कुंडली के लग्न/लग्नेश अगर बली हों तो जातक के सुखों में स्थायित्व बना रहता है। लग्न पर गुरु (धन का कारक) की दृष्टि आर्थिक तौर पर शुभ होती है। – चतुर्थांश कुंडली में लग्नेश और चतुर्थेश की परस्पर शुभ स्थिति माता से सम्बन्ध का स्तर दर्शाती है । – चतुर्थ भाव और शुक्र बली हो तो जातक को वाहन आदि सुखों की प्राप्ति होती है। – चतुर्थ भाव और मंगल बली हो तो जातक को सम्पत्ति (चर एवं अचल) आदि सुखों की प्राप्ति होती है। – चतुर्थ भाव के साथ चन्द्र भी पीड़ित हो तो जातक का चरित्र अच्छा नहीं होता और जातक धूर्त होता है।

5. सप्तमांश (डी-7) उपयोग: यह वर्ग, जन्मकुंडली के पंचम भाव से सम्बंधित प्रजनन/ संतति सम्बंधित फलों के सूक्ष्म रूप को दर्शाता है। इससे पंचम भाव में अन्य कारक तत्वों (उच्च शिक्षा डी 24 से देखते हैं), मनन/ मन्त्र, जीवन-साथी की समृद्धि, सृजनात्मकता आदि भी देख सकते हैं। सप्तमांश के स्वामी: विषम राशियों में स्थित ग्रहों के सप्तमांशों का स्वभाव क्रमशः क्षार (खट्टा/कठोर खनिज), क्षीर (खीर), दधि (दही, किसी भी प्रकार का आकार लेने में सक्षम पर खट्टा भी), इक्षुरस (गन्ने की भांति सीधा/कठोर परन्तु बहुत मिठास भी), मद्य (शराब) और शुद्ध जल। सम राशि में यह क्रम विपरीत होता है, अर्थात पहले सप्तमांश में स्थित ग्रह का स्वभाव शुद्ध जल के समान, दूसरे का मद्य/नशा के समान आदि। कुछ मुख्य नियम: – सप्तमांश कुंडली का बली लग्न/ लग्नेश संतति उत्पत्ति सुनिश्चित करते हैं। – सप्तमांश कुंडली में पंचम/पंचमेश एवं कारक गुरु की शुभ स्थिति संतति उत्पत्ति की पुष्टि करते हैं। – जन्मकुंडली के लग्नेश की सप्तमांश कुंडली में शुभ स्थिति संतान से अच्छे संबंधों की ओर इशारा करती है। – पुत्र सहम की जन्म एवं सप्तमांश कुंडली में स्थिति भी संतान के साथ संबंधों की गुणवत्ता को दर्शाती है। – बीज/क्षेत्र स्फुट से प्रजनन एवं उत्पत्ति की क्षमता का आकलन होता है।

6. नवांश (डी-9) उपयोग: नवांश कुंडली का प्रयोग जन्मकुंडली के पूरक के रूप में किया जाता है। मुख्य रूप से नवांश को विवाह के होने/न होने, वैवाहिक जीवन की गुणवत्ता और जीवन साथी का चरित्र आदि को जानने के लिये किया जाता है। नवमांश के स्वामी: चर राशि में देव, मनुष्य, राक्षस, स्थिर में मनुष्य, राक्षस, देव तथा द्विस्वभाव में राक्षस, देव, मनुष्य नवांश भाव के अधिपति होते हैं। अर्थात, राशि के नौ हिस्से होने से यह आवृत्ति तीन-तीन बार होगी। कुछ मुख्य नियम: – जन्मकुंडली और नवांश कुंडली के लग्नेश के अच्छे संबंध जातक और उसके जीवन साथी के बीच परस्पर सहयोग, सुखमय संबंध और समन्वय दर्शाते हैं। – अगर जन्मकुंडली का सप्तमेश और नवांश कुंडली लग्न दोनों बली हों तो वैवाहिक जीवन सुखमय होता है। नवांश में सप्तम/सप्तमेश का निरीक्षण इसकी पुष्टि या मात्रा को कम/ज्यादा करता है। – नवांश में राजा सूर्य और रानी चन्द्र का एक दूसरे से अधिकतम दूरी यानी सम-सप्तक होने को वैवाहिक सुखों की दृष्टि से शुभ नहीं माना जाता है, जैसे आपसी विचारों में तालमेल की कमी, परस्पर सहयोग की कमी या परस्पर वैमनस्य का भाव आदि। – जन्मकुंडली के सप्तम, सप्तमेश और कारक शुक्र (पुरुष)/गुरु (स्त्री) की शुभ स्थिति विवाह होने की संभावनाओं को दर्शाती है। नवांश का बली लग्न विवाह होने की पुष्टि या मात्रा को कम/ज्यादा करता है। अधिकतर नवांश का बली लग्न विवाह को सुनिश्चित करता है। – जन्मकुंडली के लग्नेश एवं सप्तमेश की नवांश में शुभ स्थिति विवाह के होने, सामान्य उम्र में होने एवं विवाह पश्चात सुखी संबंधों का संकेत देती है। इन दोनों की स्थिति जन्म एवं नवांश कुंडली में परस्पर 6/8 या 2/12 होना अशुभ होता है। – गुरु का सप्तम/सप्तमेश से सम्बन्ध शीघ्र या विलम्ब से विवाह की प्रवृत्ति देता है। अर्थात, सामान्य उम्र में विवाह नहीं होता क्योंकि गुरु अंतिम सत्य की ओर प्रवृत्त करता है। – त्रिंशांश लग्न पर पीड़ा भी विवाह में विलम्ब कारक होती है।

7. दशमांश (डी-10) उपयोग: दशमांश कुंडली का अध्ययन जीवन वृत्ति एवं आजीविका से सम्बंधित उपलब्धियों (सफलता, उन्नति, असफलता, बाधा आदि) के लिये किया जाता है। इसके अध्ययन से जातक के व्यवसाय की दिशा भी इंगित होती है। दशमांशों के स्वामी: विषम राशियों में क्रम (प्रथम से दशम दशमांश तक) से इन्द्र, अग्नि, यम, राक्षस, वरुण, वायु, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा और अनंत स्वामी है। सम राशि में विपरीत क्रम है अर्थात प्रथम दशमांश में स्वामी अनंत, द्वितीय के ब्रह्मा आदि। ग्रह अपने दशमांश स्वामी के स्वभावानुसार भी फल देगा। कुछ मुख्य नियम: – दशमांश कुंडली में लग्न/लग्नेश का सुस्थित, बली या शुभ प्रभाव में होने से जातक की सक्षमता का ज्ञान होता है। अर्थात, आजीविका में समस्याओं से सामना करने की क्षमता। – दशमांश कुंडली का दशम/दशमेश के बली होने पर आजीविका बिना बाधा/कठिनाइयों के सुचारु रूप से चलती रहती है। पीड़ा के अनुरूप ही मात्रा कम या अधिक होती है। – दशमांश कुंडली में कारक सूर्य का प्रसिद्धि, शनि का नौकरी, बुध का व्यवसाय और चन्द्र का मानसिक सबलता के लिए निरीक्षण करना चाहिये।

8. द्वादशांश (डी-12) उपयोग: जन्मकुंडली का द्वादश भाव पूर्व जन्म और आगामी जन्म की कड़ी के रूप में भी देखा जाता है क्योंकि यह मोक्ष का कारक और जन्मकुंडली का आखिरी भाव है। सामान्यतः द्वादशांश कुंडली का प्रयोग माता-पिता की प्रतिष्ठा (जैसे, सामाजिक और आर्थिक स्तर) एवं उनसे सम्बंधित सुख-दुःख का अध्ययन करने के लिये किया जाता है। द्वादशांशों के स्वामी: प्रथम चार द्वादशांशों के स्वामी क्रमशः गणेश, अश्विनी कुमार, यम और सर्प हैं और इसी कर्म की आवृत्ति आगे होती रहती है। कुछ मुख्य नियम: – पिता के कारक सूर्य और माता के कारक चन्द्र हैं। अतः इस वर्ग कुंडली में इनकी स्थिति का आकलन आवश्यक है। – इसके अतिरिक्त इस वर्ग कुंडली के लग्न और लग्नेश की स्थिति का विश्लेषण माता-पिता की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति ज्ञात करने के लिये करते हैं। इसके अतिरिक्त वर्ग कुंडली में निर्मित धन एवं राज योग भी सामाजिक एवं आर्थिक स्तर की पुष्टि करते हैं। – पिता की आयु के लिये नवम से अष्टम (चतुर्थ) और माता की आयु के लिये चतुर्थ से अष्टम (एकादश) का विश्लेषण भी किया जाता है।

9. षोडशांश (डी-16) उपयोग: सामान्यतः इस वर्ग कुंडली का अध्ययन वाहन सुख, जीवन की सामान्य खुशियां, विलासिता आदि के लिये किया जाता है। खुशियों से तात्पर्य चल-सुख से है जबकि डी-4 से स्थिर सुख देखा जाता है। चन्द्र की सोलह कलाओं की तरह राशि के सोलह हिस्से होते हैं। चन्द्र से सम्बन्ध होने के कारणवश इस वर्ग कुंडली से जातक की मानसिक सहनशीलता भी देखते हैं। कुछ मुख्य नियम: चं. – डी-16 वर्ग कुंडली में राजयोग एवं धनयोग अत्यधिक खुशियाँ एवं ऐश्वर्य देते हैं। – बली शुक्र (सांसारिक सुखों का कारक) समस्त सांसारिक विलासिता (वस्त्र, वाहन, स्त्री सुख आदि) देता हैपरन्तु अशुभ राशि में होने से कुछ हानि जैसे चोरी, वाहन दुर्घटना आदि भी हो सकती है। – बली/शुभ गुरु मानसिक संतुष्टि प्रदान करता है जिससे सुख की अनुभूति स्वतः ही होने लगती है।

10 विंशांश (डी-20) उपयोग: सामान्यतः इस वर्ग कुंडली का अध्ययन उन खुशियों को देखने के लिये किया जाता है जो आध्यात्मिकता एवं धार्मिक झुकाव या उनसे सम्बंधित क्रिया-कलापों से प्राप्त होती है। कुछ मुख्य नियम: प्रत्येक जीव में परमात्मा का ही अंश विद्यमान होता है परन्तु उसकी मात्रा अलग-अलग हो सकती है। मोक्ष प्राप्ति की ओर अग्रसर बने रहने के लिये आध्यात्मिक एवं धार्मिक उन्नति निरन्तर बनी रहनी आवश्यक है। डी-20 में निम्न तथ्यों पर ध्यान देना चाहिये। – डी-20 में शुभ एवं अशुभ योगों को देखें। जितने अधिक शुभ योग, उतनी ही अधिक आध्यात्मिकता एवं धार्मिकता की उन्नति। – डी-20 में लग्न/लग्नेश, पंचम/ पंचमेश और नवम/नवमेश का विश्लेषण करना चाहिये। – अगर विंशांश कुंडली का लग्न, जन्म कुंडली के लग्न से 6, 8, 12 की राशि है तो आध्यात्मिकता एवं धार्मिकता की उन्नति में बाधाएं होंगी। – सूर्य एवं शनि का बली होना शुभ संकेत है। – बली शुक्र होने पर यौन-जीवन पर नियंत्रण होता है जो उन्नति की लिये आवश्यक है।

11. चतुर्विंशांश (डी-24) उपयोग: सामान्यतः इस वर्ग कुंडली का अध्ययन शैक्षिक प्राप्तियों एवं ज्ञान से सम्बंधित फलों (सफलता, असफलता, बाधा आदि) के लिये किया जाता है। कुछ मुख्य नियम: – शिक्षा के लिये जन्म कुंडली में 4ए 4स्ए 5ए 5स् के अध्ययन के साथ-साथ इनकी स्थिति का डी 24 में भी अध्ययन आवश्यक है। दशानाथों का आकलन भी दोनों कुंडलियों में करना चाहिये। – डी 24 का बली लग्न/लग्नेश शिक्षा के सुचारु रूप से चलने को इंगित करता है। – सबसे बली ग्रह शिक्षा की दिशा भी इंगित करता है। – शिक्षा के कारक बुध और गुरु का भी जन्म एवं वर्ग कुंडली में आकलन करना चाहिये।

12. सप्तविंशांश (डी-27) उपयोग: इस वर्ग कुंडली को नक्षत्रांश भी कहते हैं क्योंकि इसके भी 27 भाग होते हैं। इस वर्ग कुंडली का अध्ययन जातक की शारीरिक एवं मानसिक शक्ति को देखने के लिये किया जाता है। शारीरिक शक्ति से तात्पर्य है, रोग प्रतिरोधक क्षमता का और मानसिक शक्ति से तात्पर्य है, मानसिक सबलता या सहनशीलता। नक्षत्रों के स्वामी ही (अश्विनी कुमार, यम, अग्नि आदि) सप्तविंशांश के स्वामी होते हैं। ?कुछ मुख्य नियम: – प्रत्येक ग्रह अपने कारक तत्वों के आधार पर फल देता है। सूर्यः सामान्य स्वास्थ्य, पेट, हड्डी, दाहिनी आँख आदि। चन्द्र: रक्त सम्बंधित, बायीं आँख, मानसिक विकार आदि। मंगल: रक्तचाप, दुर्घटना, सर्जरी, हड्डी की मज्जा आदि। बुध: त्वचा सम्बंधित, वाणी, स्नायु तंत्र आदि। गुरु: मधुमेह, मोटापा आदि। शुक्र: यौन विकार आदि। शनि वायु संबंधित, कैंसर, नसें, पेट के रोग आदि। राहु/केतु: विष, कीटाणु सम्बंधित, छाले आदि। – वर्ग कुंडली में पीड़ित ग्रह सम्बंधित शारीरिक एवं मानसिक अवसाद देते हैं।

13. त्रिंशांश (डी-30) उपयोग: इस वर्ग कुंडली का अध्ययन जीवन की दुर्घटनाएं, बाधाएं, असफलता, दुर्भाग्य आदि के अध्ययन के लिये किया जाता है। इस वर्ग का अध्ययन जातक के नैतिक आचरण को देखने के लिये भी किया जाता है। इस वर्ग कुंडली में लग्न पर पीड़ा होने पर विवाह में देरी भी हो सकती है। कुछ मुख्य नियम: – इस वर्ग कुंडली में सूर्य और चन्द्र का विश्लेषण नहीं होता। – बाकी ग्रह अपनी भाव स्थिति एवं कारकत्वों के अनुसार बाधाओं (पीड़ित होने पर) को इंगित करते हैं। मंगल: क्रोध / गुस्सा / आक्रामकता), बुध: ईष्र्या, गुरुः अहंकार, शुक्र: कामुकता, शनिः नशा/लत, राहुः लोभ/लालच, केतुः गलत सोच आदि। – बली लग्न और लग्नेश बाधा रहित जीवन देते हैं। – चतुर्थ भाव पीड़ित होने पर नैतिक चरित्र में कमी होती है। – अपने ही त्रिशांश में स्थित ग्रह अपने कारकत्वों में वृद्धि करते हैं। – त्रिंशांश लग्न पर पीड़ा विवाह में विलम्ब कारक होती है।

14. खवेदांश (डी-40) उपयोग: इस वर्ग कुंडली का अध्ययन शुभाशुभ फलों की मात्रा ज्ञात करने के लिये किया जाता है। उपरोक्त त्रिंशांश वर्णन में जातक के अशुभ फलों का अध्ययन था और खवेदांश में शुभ फलों का अध्ययन होता है। खवेदांशों के स्वामी: विष्णु, चन्द्र, मरीचि, त्वष्टा, धाता, शिव, रवि, यम, यक्ष, गन्धर्व, काल व वरुण ये बारी-बारी से खवेदांश के अधिपति होते हैं। कुछ मुख्य नियम: – लग्न और लग्नेश के बली होने पर शुभ घटनाएं अधिक होती हैं। – त्रिकोण के स्वामी भी सुस्थित एवं शुभ प्रभाव में हो तो शुभ फल अध् िाक होते हैं। – शुभ फलों के लिये सूर्य एवं चंद्रमा का भी सुस्थित होना आवश्यक है। उपरोक्त उदाहरण में, वर्ग कुंडली का लग्न नवमेश गुरु से दृष्ट है-शुभ, राहु/केतु के अक्ष में-अशुभ, लग्नेश मंगल एकादश में शुभ। अर्थात, शुभ फलों की अधिकता। पंचमेश सूर्य दिग्बली होकर दशम में होकर अति शुभ है परन्तु शत्रु राशि में होने से उन्नति तो देगा परन्तु शिखर की नहीं। नवमेश गुरु नवम भाव में स्वराशि एवं मित्र राशिस्थ होकर बली है। अर्थात, त्रिकोणेशों की स्थिति अच्छी है जो शुभ फलों की मात्रा में वृद्धि दर्शाती है।

15. अक्षवेदांश (डी-45) उपयोग: इस वर्ग कुंडली का अध्ययन जातक के चरित्र, व्यवहार, आचरण एवं सामान्य शुभाशुभ प्रभावों के अध्ययन के लिये किया जाता है। अक्षवेदांशों के स्वामी: चर राशियों में क्रमशः ब्रह्मा, महेश, विष्णु, स्थिर राशियों में महेश, विष्णु, ब्रह्मा एवं द्विस्वभाव राशियों में विष्णु, ब्रह्मा, महेश अधिदेव होते हैं। कुछ मुख्य नियम: – सूर्य, आत्मा का प्रतिनिधित्व करते हैं। शुभ राशि एवं शुभ प्रभाव युक्त सूर्य सात्विक आत्मा के गुण दर्शायेगा और अशुभ सूर्य उससे विपरीत। – चन्द्र, मन का कारक होने से मानसिक नैतिकता या अनैतिकता प्रदर्शित करते हैं। – लग्नेश, तृतीयेश, षष्ठेश एवं नवमेश का शुभ राशि में होना जातक की सोच में शुद्धता एवं पवित्रता दर्शाता है।

16 षष्ठ्यांश (डी-60) पाराशर जी ने इस वर्ग कुंडली को जन्मकुंडली एवं नवांश कुंडली से भी अधिक महत्व दिया है, परन्तु इसके प्रयोग का
अधिक प्रचलन नहीं है क्योंकि इसके लिये जन्म समय का बिल्कुल सही होना आवश्यक होता है। लगभग 2 मिनट के अंतर से षष्ठ्यांश कुंडली बदल जाती है। उपयोग: इस वर्ग कुंडली का अध्ययन जन्मकुंडली की भांति सभी पहलुओं पर विचार के लिये किया जा सकता है। षष्ठ्यांशों के स्वामी: एक राशि में कुल साठ षष्ठ्यांश होते हैं। पाराशर जी ने विषम राशियों में घोर, राक्षस, देव, कुबेर आदि क्रम से तीस और सम राशियों इन्दुरेखा, भ्रमण, पयोधि आदि क्रम से तीस अधिपति वर्णित किये हैं। ये सभी अधिपति नाम तुल्य शुभाशुभ फल देने वाले होते हैं। कुछ मुख्य नियम: – इस वर्ग में बनने वाले योगों का अध्ययन भी करना चाहिये। – किसी भी परिणाम के पूर्वानुमान के लिये तीनों अर्थात जन्म, नवांश एवं षष्ठ्यांश कुंडली देखकर ही फलित करना चाहिये।  एक अच्छा ज्योतिषी, जो मानव सेवा को अपना धर्म मानता है, सदैव वर्ग अध्ययन के बाद ही फलित करता है जिससे ऋषियों द्वारा दिये गये ज्ञान का नियमों सहित उपयोग हो और फलित की सटीकता रहे और ज्योतिषी का धर्म पूर्ण हो।

अष्टम भाव:-एक विचार

अष्टम भाव आयु भाव है इस भाव को त्रिक भाव, पणफर भाव और बाधक भाव के नाम से जाना जाता है | आयु का निर्धारण करने के लिए इस भाव को विशेष महत्ता दी जाती है | इस भाव से जिन विषयों का विचार किया जाता है | उन विषयों में व्यक्ति को मिलने वाला अपमान, पदच्युति, शोक, ऋण, मृत्यु इसके कारण है | इस भाव से व्यक्ति के जीवन में आने वाली रुकावटें देखी जाती है | आयु भाव होने के कारण इस भाव से व्यक्ति के दीर्घायु और अल्पायु का विचार किया जाता है।

अष्टम भाव आयु को दर्शाता है यह भाव क्रिया भाव भी है | इसे रंध्र अर्थात छिद्र भी कहते हैं क्योंकि यहाँ जो भी कुछ प्रवेश करता है वह रहस्यमय हो जाता है | जो वस्तु रहस्यमय होती है वह परेशानी व चिंता का कारण स्वत: ही बन जाती है | बली अष्टम भाव लम्बी आयु को दर्शाता है. साधारणत: अष्टम भाव में कोई ग्रह नही हो तो अच्छा रहता है | यदि कोई भी ग्रह आठवें भाव में बैठ जाये चाहे वह शुभ हो या अशुभ कुछ न कुछ बुरे फल तो अवश्य ही देता है।

ग्रह कैसे फल देगा यह तो ग्रह के बल के आधार पर ही निर्भर करता है. इस अवस्था में अगर किसी ग्रह को आठवें भाव में देखा जाए तो वह उस भाव का स्वामी ही है | कोई भी ग्रह आठवें भाव में बैठता है तो अपने शुभ स्वभाव को खो देता है. ऎसे में शनि को अपवाद रूप में आठवें भाव में शुभ माना गया है | क्योंकि वह आयु प्रदान करने में सहायक बनता है | अष्टमेश आठवें भाव की रक्षा करता है | अष्टमेश की मजबूती का निर्धारण उस पर पड़ने वाली दृष्टियों अथवा संबंधों के द्वारा होती है।

कुछ अन्य तथ्यों द्वारा देखा जाए तो अष्टमेश अचानक आने वाले प्रभाव दिखाता है | यह भाव जीवन में आने वाली रूकावटों से रूबरू कराता है. जहां – जहां अष्टमेश का प्रभाव पड़ता है उससे संबंधित अवरोध जीवन में दिखाई पड़ते हैं | अष्टमेश जिस भाव में स्थित होता है उस भाव के फल अचानक दिखाई देते हैं और वह अचानक से मिलने वाले फलों को प्रदान करता है।

व्यक्ति अपने जीवन में जो उपहार देता है, उन सभी की व्याख्या यह भाव करता है | इस भाव से व्यक्ति के द्वारा कमाई, गुप्त धन-सम्पत्ति, विदेश यात्रा, रहस्यवाद, स्त्रियों के लिए मांगल्यस्थान, दुर्घटनाएं, देरी खिन्नता, निराशा, हानि, रुकावटें, तीव्र, मानसिक चिन्ता, दुष्टता, गूढ विज्ञान, गुप्त सम्बन्ध, रहस्य का भाव देखा जा सकता है।

अष्टम भाव का कारक ग्रह शनि है. आयु के लिए इस भाव से शनि का विचार किया जाता है | अष्टम भाव से स्थूल रुप में मुख्य रुप में आयु का विचार किया जाता है | अष्टम भाव सूक्ष्म रुप में जीवन के क्षेत्र की बाधाएं देखी जाती है | अष्टमेश व नवमेश का परिवर्तन योग बन रहा हों, तो व्यक्ति पिता की पैतृक संपति प्राप्त करता है | अष्टमेश व दशमेश आपस में परिवर्तन योग बना रहा हों, तो व्यक्ति को कार्यों में बाधा, धोखा प्राप्त हो सकता है | उसे जीवन में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है।

सशक्त शुक्र अष्टम भाव में भी अच्छा फल प्रदान करता है। शुक्र अकेला अथवा शुभ ग्रहों के साथ शुभ योग बनाता है। स्त्री जातक में शुक्र की अष्टम स्थिति गर्भपात को सूचक। आठवें भाव का शुक्र जातक को विदेश यात्रायें जरूर करवाता है,और अक्सर पहले से माता या पिता के द्वारा सम्पन्न किये गये जीवन साथी वाले रिस्ते दर किनार कर दिये जाते है,और अपनी मर्जी से अन्य रिस्ते बनाकर माता पिता के लिये एक नई मुसीबत हमेशा के लिये खड़ी कर दी जाती है।

जातक का स्वभाव तुनक मिजाज होता है । पुरुष वर्ग कामुकता की तरफ़ मन लगाने के कारण अक्सर उसके अन्दर जीवन रक्षक तत्वों की कमी हो जाती है,और वह रोगी बन जाता है,लेकिन रोग के चलते यह शुक्र जवानी के अन्दर किये गये कामों का फ़ल जरूर भुगतने के लिये जिन्दा रखता है,और किसी न किसी प्रकार के असाध्य रोग जैसे तपेदिक या सांस की बीमारी देता है,और शक्तिहीन बनाकर बिस्तर पर पड़ा रखता है। इस प्रकार के पुरुष वर्ग स्त्रियों पर अपना धन बरबाद करते है,और स्त्री वर्ग आभूषणो और मनोरंजन के साधनों तथा महंगे आवासों में अपना धन व्यय करती है।

अष्टम भाव अचानक प्राप्ति का है इसके अंदर ज्योतिषी विद्याएं गुप्त विद्याएं अनुसंधान समाधि छुपा खजाना अध्यात्मिक चेतना प्राशक्तियों की प्राप्ति योग की ऊंची साधना मोक् पैतृक संपत्ति विरासत अचानक आर्थिक लाभ अष्टम भाव के सकारात्मक पक्ष है और लंबी बीमारी मृत्यु का कारण तथा दांपत्य जीवन अष्टम भाव के नकारात्मक पक्ष है |

आठवें भाव में शुक्र होने के कारण जातक देखने में सुंदर होते है। निडर और प्रसन्नचित्त शारीरिक,आर्थिक अथवा स्त्रीविषय सुखों में से कम से कम कोई एक सुख पर्याप्त मात्रा में इन्हे मिलता है।


विदेश यात्रा अवसर मिलते रहेंगे।

नौकर चाकर और सवारी का भी पूर्ण सुख मिलता रहेगा।

शुक्र कभी धन का सुख तो कभी ऋण का दुःख भी देता है।

एेसे जातक को २५ वर्ष के बाद विवाह करना चाहिए।

जातक यहाँ ऋणी रहेगा ही रहेगा

जीवन साथी या पुत्र को लेकर चिंताएं भी रह सकती है।

कमाई भी उतनी ही होगी, जितना कर्ज होगा।

अष्टम् भाव के कारकत्व…

1. आयु
2. पाप कर्म ( पिछले जनम के )
3. अचानक/घटना
4. संकट
5. चोरी
6. रुकावटे/ अड़चने/विघ्न
7. परेशानिया
8. दुःख
9. गुप्त शत्रु
10. पूर्ण विनाश
11. दुर्भाग्य
12. शत्रुता
13. षड़यंत्र
14. अकाल मृत्यु
15. मृत्यु का कारन
16. स्पाउस का मारक स्थान
17. स्पाउस का धन
18. सार्वजनिक निंदा
19. छुपे हुए अफेयर्स
20. पैंत्रिक सम्पति
21. गढ़ा धन
22. अचानक प्राप्ति
23. अचानक घाटा/ loss
24. नवम से द्वादश भाव
25. स्पाउस की वाण
26. शिप द्वारा विदेश यात्रा
27. समाधी
28. रिसर्च
29. खदान और सुरंग
30. अध्यात्म
31. मोक्ष त्रिकोण का 2 कोण 5 ऑफ़ 4h
32. संतान की हैप्पीनेस (4 ऑफ़ 5) 3 ऑफ़ 6
33. दूसरा ट्रिक भाव… 6,8,124
34. भाग्य की हानि
35. एक जीवन चक्र का अंत
36. माता की शीक्षा
37. आकस्मिक परिवर्तन
38. दुर्घटना
39. असाध्य रोग
40. अंडर दि टेबल इनकम
41. उनेर्नेद मनी फ्रॉम लिगेसी /इन्शुरन्स /दोव्री
42. आय का कर्म स्थान
43. कर्म का आय स्थान
44. गिफ्ट
45. छोटे भाई की नौकरी
46. बड़े भाई का भौतिक सुख
47. बड़े भाई की सर्विस (प्रोफेशन)
48. तंत्र एवम् रहस्यमयी गुप्त विद्याये
49.सास का लाभ स्थान
50.ससुराल का धन

बुधवार, 4 अप्रैल 2018

शरीर पर तिल होने का फल

शरीर पर विभिन्न अंगों पर तिल विचार


माथे पर -  बलवान हो ।

माथे के दाहिनी ओर -  धन हमेशा बढ़ता रहेगा।

माथे के बायीं ओर  जीवन में संकटों की अधिकता रह सकती है ।

ठुड्डी पर -  स्त्री से प्रेम न रहे, स्त्री से मनमुटाव रहे ।

दोनों भौहों पर -  अधिकांश समय यात्रा में बितेगा ।

दाहिनी आंख -  पराई स्त्री से प्रेम होना ,अच्छे प्रेम संबंध होना ।

बायीं आंख पर -  स्त्री से कलह होना ,घोर चिंता और दुख मिल सकता है ।

दाहिनी गाल पर -  धनवान, किन्तु घमंडी होए ।

बायीं गाल पर -  खर्च बढता रहे।

होंठ पर -  विषय-वासना में रमा रहे, कामुक हो।

होंठ के नीचे -  निर्धनता हो सकती है।

बाएँ कान के सामने की -  व्यक्ति रहस्यमयी होता है, ऐसे व्यक्ति का विवाह अधिक उम्र होने के पश्चात् होए।

बाएँ कान के पीछे -  व्यक्ति के ग़लत कार्यो के प्रति झुकाव हो।

दाँए कान के सामने -  व्यक्ति बहुत कम आयु में ही धनवान हो व्यक्ति का जीवन साथी सुंदर होए ।

दाँए कान के पीछे -  कान में किसी भी प्रकार के रोग होने की सम्भावना होए ।

गर्दन पर -  ऐशों आराम मिले ।
कंठ पर -  सुरीली आवाज़ का सूचक, संगीत में रूचि होए ।

गले पर और कहीं भी -  संगीत के शौक़ीन होते हैं परन्तु गले सम्बंधित रोग की भी सम्भावना बनती है ।

गले के पीछे -  रीढ़ सम्बंधित रोग हो सकते है ।

दाहिनी भुजा पर -  मान-प्रतिष्ठा प्राप्त हो ।

बायीं भुजा पर -  झगडालू होना ।

कोहनी पर तिल -  ज्ञान प्राप्त हो ।

दायें कन्धे पर तिल -  जातक बात का धनी, स्वाभिमानी होता है ।

बाएं कन्धे पर तिल -  जातक तुनकमिजाज, जल्दी गुस्सा करने वाला होता है ।

हाथ के अँगूठे पर तिल -  जातक मिलनसार, सच्चा होता है ।

हाथ की तर्जनी ऊँगली पर तिल -  धन और यश प्राप्त होता है ।

हाथ की मध्यमा (बीच की उँगली पर तिल)-  उत्तम लाभ, जीवन में सुख मिले ।

हाथ की अनामिका ऊँगली पर तिल -  धन, यश ज्ञान की प्राप्ति हो ।

हाथ की सबसे छोटी ऊँगली पर तिल -  जीवन में धन तो हो पर सुख में कमी रहे

नाक पर -  यात्रा बहुत होए ।

नाक के अग्र भाग पर -  लक्ष्य बना कर चलने वाला हो, विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित होए ।

नाक के नीचे (मूछ वाली जगह )कहीं भी -  व्यक्ति विलासी होगा तथा नींद बहुत अधिक पसंद करेगा।
नाक के दाहिने हिस्से पर तिल -  जीवन में सुख मिले धन सम्पति की कमी ना हो

नाक के बाएं हिस्से पर तिल -  जीवन में संघर्ष हो, सफलता में अड़चने आये ।

दाहिनी छाती पर -  सुन्दर जीवन साथी मिले, दाम्पत्य जीवन सुखमय हो, धन लाभ भी बने ।

दाहिनी वक्ष पर -  जातक कामुक हो, इन्द्रियों को वश में रखे वर्ना बदनामी होने की संभावना ।

बायीं छाती पर -  हर्दय सम्बन्धी रोगों की सम्भावना, देर से शादी, स्त्री से मनमुटाव की आशंका ।

बाएँ वक्ष पर -  जातक कामुक हो, इन्द्रियों को वश में रखे वर्ना बदनामी होने की संभावना। (दोनों वक्षों पर तिल का एक ही प्रभाव है।)

दोनों छाती के बीच -  जीवन सुखी रहे ।

पेट पर -  उत्तम भोजन का इच्छुक ।

पेट के बीचो बीच -  डरपोक होगा ।

पीठ पर -  ज्यादातर यात्रा करनी पड़े ।

कमर में -  उम्र परेशानी में गुजरे ।

पुरूष के गुप्तांग पर -  पुरूष अधिक कामुक एवं एक से अधिक स्त्रियों से संपर्क में रहता है। शिथिल इन्द्रियों के रोग की सम्भावना|

स्त्री के गुप्तांग पर यदि बाएँ तरफ़ -  स्त्री अधिक कामुक होए , कम आयु से ही विपरीत लिंग के संपर्क में रहे अथवा इन्द्रियों सम्बंधित रोगों से पीड़ा की सम्भावना ।ऐसी स्त्रियाँ कन्या को अधिक जनम दें ।

स्त्री के गुप्तांग पर यदि दाँए तरफ़ -  यह भी अधिक कामुक होए, गुप्तांग में किसी प्रकार के रोग की आशंका । ऐसी स्त्रियाँ कन्या से अधिक पुत्र को जनम देती दें।


दाहिने हथेली पर -  बलवान हो ।

बायीं हथेली पर -  खूब खर्च करे,लेकिन ज्यादातर धन व्यर्थ जाये ।
दाहिने हाथ की पीठ पर -  धनवान हो ।

बाएं हाथ की पीठ पर -  कम खर्च करे ।

दाहिने पैर में -  बुद्धिमान हो ।

बाएं पैर में -  खर्च अधिक हो ।

पांव के तलवे में अंगूठे पर तिल -  खाँसी, कफ, दमा, टी.बी. की सम्भावना हो सकती है ।

पैरों के तलवों में ऊपर की ओर तिल -  आंत्र रोग से परेशानी हो ।

पैर के तलवों के मध्य तिल -  किडनी, मूत्ररोग से संबंधित रोग होने की संभावना ।

दायें पांव के अंगूठे के पास वाली अंगुली पर तिल -  दाईं आंख में रोग की आशंका ।

बाएं पांव के अंगूठे के पास वाली अंगुली पर तिल -  बाईं आंख में रोग का खतरा ।

एड़ी पर तिल -  यात्राओं से लाभ मिले ।

घुटने पर -  जोडो के दर्द, अस्थि रोगों की संभावना ।

कलाई पर -  ऐसे व्यक्ति को यश नही मिलता है। व्यक्ति को पुत्र कष्ट भी होता है।

दाँए कांख बगल में -  व्यक्ति बहुत धनवान किन्तु कंजूस भी होए।

बाएँ कांख बगल में -  खूब धन कमायें लेकिन रोग और भोग में धन की बर्बादी।

बाएँ कूल्हे (हिप्स) पर -  व्यक्ति को बवासीर, भगंदर सम्बन्धी रोगों की सम्भावना।

दाँए कूल्हे (हिप्स) पर -  व्यक्ति अपने व्यापार में बहुत आगे जाये ।

ध्यान रहे तिल का प्रभाव स्त्री एवं पुरूष दोनों के लिए एक समान ही होता है ।

मंगलवार, 3 अप्रैल 2018

संतान प्रतिबंधक योग

1- तृतीय भाव का अधिपति और चंद्रमा केंद्र या त्रिकोण भावों में स्थित हो तो जातक को संतान सुख में बाधा होती है।

2- लग्न में मंगल, आठवें शनि और पंचम भाव में शनि हो तो भी जातक को संतान सुख में बाधा होती है।

3- बुध और लग्न भाव का अधिपति ये दोनों लग्न के अलावा केंद्र स्थानों में हो तो भी संतान सुख में बाधा होती है।

4- लग्न, अष्टम एवं बारहवें भाव में पापग्रह हो तो संतान सुख में बाधा उत्पन्न होती है।

5- सप्तम भाव में शुक्र, दशवें भाव में चन्द्रमा एवं सप्तम भाव में शनि या मंगल हो तो संतान सुख में बाधा होती है।

6- तीसरे भाव का अधिपति 1,2,3,5, वें भाव में स्थित हो तथा शुभ से युत या दृष्ट हो तो ऐसे जातक को संतान सुख में बाधा होती है।

रविवार, 1 अप्रैल 2018

मूलांक के अनुसार हो आपका पर्स, नहीं रहेगी धन की कमी

अंक ज्योतिष के अनुसार नंबर यानी मूलांक के अनुसार आप अपने पर्स में सामान रखते हैं तो आपको कभी पैसों की  समस्यां से सामना नहीं करना पडेगा। जानें किस मूलांक के जातक क्या रखें अपने पर्स में-

मूलांक -1.   (1,10,19,28)
अपने लाल रंग के वॉलेट या पर्स में एक 100 और 20 रुपये के एक एक नोट तथा 1 रुपये के सात नोट को नारंगी रंग के कागज में रखें। एक ताम्बे का सिक्का भी रखें।

मूलांक 2  (2,11,20,29)
अपने सफेद रंग के वॉलेट या पर्स में एक रुपये के दो और 20 रुपये का एक नोट चांदी की तार में लपेट कर रखें। एक चान्दी का सिक्का भी रखें।

मूलांक 3   (3,12,21,30)
अपने पीले या मेहन्दी रंग के वॉलेट या पर्स में दस रुपये के तीन नोट तथा 1 रूपये के तीन नोट को पीले रंग के कागज में रखें। एक गोल्डन फॉइल का तिकोना टुकडा भी रखें।

मूलांक 4  (4,13,22,31)
अपने भूरे रंग के वॉलेट या पर्स में दस रुपये के दो और 20 रुपये का दो नोट चन्दन का इत्र लगाकर रखें। अपने घर की चुट्की भर मिट्टी भी रखें।

मूलांक 5  (5,14,23)
अपने हरे रंग के वॉलेट या पर्स में पाँच रुपये का एक और 10 रुपये के पांच नोट एक हरे कागज में रखें। एक बेल का पत्ता भी रखें।

मूलांक 6  (6,15,24)
अपने चमकीले सफेद रंग के वॉलेट या पर्स में पाँच सौ रुपये का और 100 रुपये का एक एक नोट तथा 1 रुपये के छ: नोट को सिल्वर फॉइल में रखें। एक पीतल का सिक्का भी रखें।

मूलांक 7 (7,16,25)
अपने बहुरंगी वॉलेट या पर्स में एक रुपये के सात और 20 रुपये का एक नोट नारंगी रंग के कागज में रखें. एक मछली का चित्र अंकित किया हुआ सिक्का भी रखें।

मूलांक 8  (8,17,26) अपने नीले रंग के वॉलेट या पर्स में 100 रुपये का एक और 20 रुपये के चार नोट नीले रंग के कागज में रखें। एक मोर पंख का टुकडा भी रखें।

मूलांक 9 (9,18,27)
अपने नीले और नारंगी रंग के वॉलेट या पर्स में पांच रुपये का एक और दो रुपये के दो नोट चमेली का इत्र लगे नारंगी रंग के कागज में रखें। एक पीतल का सिक्का भी रखें।

शनिवार, 31 मार्च 2018

ग्रहों की नाराजगी ऐसे दूर करें

1-सूर्य-

 भूल कर भी झूठ न
बोलें,सूर्य का गुस्सा कम हो जाएगा .झूठ क्या है ?झूठ वो है
जो अस्तित्व में नहीं है और यदि हम झूठ बोलेंगे
तो सूर्य को उसका अस्तित्व(Existence)
पैदा करना पडेगा (आश्चर्य की कोई बात
नहीं है -ये नौ ग्रह हमारे जीवन के
लिए ही अस्तित्व (existence)में आये हैं )सूर्य
का काम बढ़ जाएगा और मुश्किल भी हो जाएगा

2-चंद्रमा

जितना ज्यादा हो सके सफाई पसंद
हो जाईये ,और साफ़ रहिये भी -
चंद्रमा का गुस्सा कम हो जाएगा ।
चंद्रमा को सबसे ज्यादा डर राहू से लगता है .राहू अदृश्य
ग्रह है ,राहू क्रूर
है .हमारी रोजमर्रा की ज़िंदगी में
राहू गंदगी है .हम हमारे घर को, आसपास के
वातावरण को कितना भी साफ़ करें -उसमें ढूँढने जायेंगे
तो गंदगी मिल
ही जायेगी ,या हम हमारे घर और
आस पास के वातावरण को कितना भी साफ़ रखें
वो गंदा हो ही जाएगा और हम सब जानते हैं
कि गंदगी कितनी खतरनाक
हो सकती है और होती है --
ज़िंदगी के लिए ,न जाने कितने बेक्टीरिया ,
वायरस ,जो अदृश्य होते हुए
भी हमारी ज़िंदगी को भयभीत
कर देते हैं ,बीमार
करके ,ज़िंदगी को खत्म तक कर देते
हैं ,चंद्रमा (जो सबके मन को आकर्षित करता है स्वय राहू के
मन को भी) राहू से डरता है ।अतः यदि आप साफ़
रहेंगे तो चंद्रमा को अच्छा लगेगा और उसका क्रोध शांत रहेगा ।
चंद्रमा का गुस्सा उतना ही कम हो जाएगा ।

3-मंगल

-यह ग्रह सूर्य
का सेनापती ग्रह है भोजन में गुड है ।सूर्य गेंहू
है रविवार को गेहूं के आटे का चूरमा गुड डालकर बनाकर खाएं
खिलाये ,मंगल को बहुत अच्छा लगेगा ।सूर्य गेहूं है -मंगल गुड
है और घी चंद्रमा है ,अब तीनो प्रिय
मित्र हैं तो तीन मित्र मिलकर जब खुश होंगे
तो गुस्सा किसे याद रहेगा ।

4-बुध

बुध ग्रह यदि आपकी जन्म
पत्रिका में क्रोधित है तो बस तुरंत मना लीजिये --
गाय को हरी घास खिलाकर -
धरती और गाय दोनों शुक्र (Venus)ग्रह
का प्रतिनिधित्व करती है ।
हरी घास है जो बुध ग्रह का प्रतिनिधित्व
करती है -बुध ग्रह का रंग हरा है ,वो बच्चा है
नौ ग्रहों में शारीरिक रूप से सबसे कमजोर और
बौद्धिक रूप में सबसे आगे आगे ।
घास है जो पृथ्वी के अन्य पेड़ पौधों के मुकाबले
कमजोर है बिलकुल बुध ग्रह की तरह , घास
भी शारीरिक रूप से बलवान
नहीं होती है मगर ताकत देने में कम
नहीं अतः बुध स्वरूप
ही है .हरी हरी घास से
सजी धरती कितनी सुंदर
और खुश दिखती है -घास =बुध और
धरती = शुक्र
इसी तरह गाय हरी -
हरी घास खा कर कितनी खुश
होती है
इसलिए - हरी- हरी घास =बुध ग्रह
और गाय (और धरती )= शुक्र
इसलिए गाय को हरी हरी घास खिलाएंगे
तो दो बहुत अच्छे दोस्तों को मिला रहे होंगे -
ऐसी हंसी खुशी के
वातावरण में हर कोई गुस्सा थूक देता है और बुध ग्रह
भी अपना क्रोध शांत कर लेंगे ।

5-बृहस्पति

चने की दाल parrots
को खिलादे बृहस्पति कभी गुस्सा नहीं करेंगे।
चने की दाल पीले रंग
की होती है और
बृहस्पति भी पीले रंग के हैं ।
बृहस्पति का भी घनत्व सौरमंडल में ज्यादा है और
चने की दाल
भी हलकी फुल्की नहीं होती पचाने
में हमारी आँतों को ज्यादा मेहनत
करनी पड़ती है ।
तोता हरे रंग का होता है .बुध ग्रह भी हरे रंग
का होता है ।
तोता भी दिन भर बोलता रहता है और बुध ग्रह
भी बच्चा होना के कारण बोलना पसंद करता है ।
अतः तोता =बुध ग्रह
और चने की दाल = बृहस्पति ग्रह
बुध ग्रह बृहस्पति के जायज पुत्र और चंद्रमा के नाजायज
पुत्र है।
बुध के पिता बृहस्पति हैं और बृहस्पति के चंद्रमा अच्छे मित्र
हैं और बृहस्पति की पत्नी तारा ने
चंद्रमा से नाजायज शारीरिक सम्बन्ध बनाकर बुध
ग्रह को जन्म दिया था इस बात से
बृहस्पति अपनी पत्नी तारा से नाराज़
रहते है और बुध की माँ से नाराज़ रहने के कारण
अपने जायज पिता बृहस्पति से बुध ग्रह नाराज़ रहता है ।इस
बात से बृहस्पति दुखी रहता है अतः जब
तोता जो बुध स्वरूप है जब चने की दाल खाकर पेट
भरेगा और खुश
होगा तो बृहस्पति को खुशी मिलेगी और
गुस्सा तो अपने आप कम हो जाएगा ।

6-शुक्र

 - यदि नाराज़ हो तो गाय
को रोटी खिलाओ .
सूर्य गेहूं है
और शुक्र गाय .
किस बलवान व्यक्ति को उसके खुद के अलावा कोई और
राजा हो तो अच्छा लगता है !
शुक्र को भी सूर्य के अधीन
रहना पसंद नहीं है अतः जब आप उसके शत्रु
सूर्य जो गेहूं को गाय जो शुक्र है को खिलाएंगे तो वो अपने आप
ही गुस्सा भूल जाएगा ।

7-शनि

 -जिस किसी से
भी नाराज़
हो तो उसकी पीड़ा तो बस वो खुद
ही जानता है .
शनि समानतावादी है .
ये बड़ा है और ये छोटा है ऐसी बातें शनि को क्रोधित
कर देती है
क्योंकि शनि सूर्य (राजा ) का पुत्र है और उसके पिता सूर्य ने
उसकी माँ का सम्मान नहीं किया इसलिए
शनि को अपनी माँ छाया से प्यार होने के कारण सूर्य
पर बहुत गुस्सा आता है --किसी का बड़े होने
का अहंकार ज़रा भी नहीं भाता है .
अतः जो सर्वहारा वर्ग (मेहनतकश लोग )है उसको खुश
रखो तो शनि खुद ही खुश हो जाएगा .आपको उन्हें
दान नहीं देना है क्योंकि शनि श्रम
का पुजारी है .शनि ईमानदार है और मेहनतकश लोग
भी दान लेने के बजाय मेहनत कर के खुश रहते
हैं अतः किसी मेहनतकश की मेहनत
का तन ,मन और धन से उचित सम्मान करने से शनि खुश
हो जाता है और खुश हो जाएगा तो गुस्सा तो कम
हो ही जाएगा ।

8-राहू

राहू के दिए दुःख गैबी होते हैं
(जिनका कारण समझ में ना आये ).
राहू स्वय अदृश्य रहता है .(अतः उसके दिए
दुखों को समझना भी मुश्किल है ).राहू एक
हिस्सा उसके शरीर का ऊपरी भाग
वो स्वय है और उसके नीचे का हिस्सा केतु है .
(समुद्र मंथन के समय छल से देवताओं का रूप धर अमृत
पीने जब वो आया तो विष्णु ने उसे पहचान लिया और
अपने सुदर्शन चक्र से उसके दो टुकड़े कर दिए (एक बूँद
अमृत उसके शरीर में
जा चुका था अतः उसकी मृत्यु
नहीं हुयी )(ऊपर का हिस्सा राहू
कहलाया और नीचे का हिस्सा केतु )।

शुक्रवार, 23 मार्च 2018

सरकारी नौकरी के योग एवं प्राप्ति के उपाय

1- लग्न पर बैठे किसी ग्रह का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में सबसे अधिक प्रभाव रखने वाला माना जाता है। लग्न पर यदि सूर्य या चंद्र स्थित हो तो व्यक्ति शाषण से जुडता है और अत्यधिक नाम कमाने वाला होता है। खुद जानें कब आपके करियर को रफ्तार मिलेगी

2- चंद्र का दशम भाव पर दृष्टी या दशमेश के साथ युति सरकारी क्षेत्र में सफलता दर्शाता है। यधपि चंद्र चंचल तथा अस्थिर ग्रह है जिस कारण जातक को नौकरी मिलने में थोडी परेशानी आती है। ऐसे जातक नौकरी मिलने के बाद स्थान परिवर्तन या बदलाव के दौर से बार बार गुजरते है।

3- सूर्य धन स्थान पर स्थित हो तथा दशमेश को देखे तो व्यक्ति को सरकारी क्षेत्र में नौकरी मिलने के योग बनते है। ऐसे जातक खुफिया ऐजेंसी या गुप चुप तरीके से कार्य करने वाले होते है। यहां जानें कब लगेगी आपकी सरकारी नौकरी

4- सूर्य तथा चंद्र की स्थिति दशमांश कुंडली के लग्न या दशम स्थान पर होने से व्यक्ति राज कार्यो में व्यस्त रहता है ऐसे जातको को बडा औहदा प्राप्त होता है।

5- यदि ग्रह अत्यधिक बली हो तब भी वें अपने क्षेत्र से सम्बन्धित सरकारी नौकरी दे सकते है। मंगल सैनिक, या उच्च अधिकारी, बुध बैंक या इंश्योरेंस, गुरु- शिक्षा सम्बंधी, शुक्र फाइनेंश सम्बंधी तो शनि अनेक विभागो में जोडने वाला प्रभाव रखता है। पैसा कमाने की इच्‍छा रखने वाले लोग करें इनका पूजन

6- सूर्य चंद्र का चतुर्थ प्रभाव जातक को सरकारी क्षेत्र में नौकरी प्रदान करता है। इस स्थान पर बैठे ग्रह सप्तम दृष्टि से कर्म स्थान को देखते है।

7- सूर्य यदि दशम भाव में स्थित हो तो व्यक्ति को सरकारी कार्यो से अवश्य लाभ मिलता है। दशम स्थान कार्य का स्थान हैं। इस स्थान पर सूर्य का स्थित होना व्यक्ति को सरकारी क्षेत्रो में अवश्य लेकर जाता है। सूर्य दशम स्थान का कारक होता है जिस कारण इस भाव के फल मिलने के प्रबल संकेत मिलते है।पाराशरी सिद्धांत के अनुसार, दसवें भाव के स्वामी की नवें भाव के स्वामी के साथ दृष्टि अथवा क्षेत्र और राशि स्थानांतर संबंध उसके लिए विशिष्ट राजयोग का निर्माण करते हैं।
कुंडली में यदि केंद्र में चन्द्रमा, ब्रहस्पति एक साथ हैं तो उस स्थिति में भी सरकारी नौकरी के लिए शुभ योग बनता है। इसी प्रकार चन्द्रमा और मंगल भी अगर केंद्र में स्थित हैं तो सरकारी नौकरी की आशा बढ़ जाती हैं।
यदि व्यक्ति का लग्न मेष, मिथुन, सिंह, वृश्चिक, वृष या तुला है तो ऐसे में शनि ग्रह और गुरु(ब्रहस्पति) का एक-दूसरे से केंद्र या त्रिकोण में होना, सरकारी नौकरी के लिए अच्छा योग बनाते हैं।
कुंडली में दसवां स्थान को कार्यक्षेत्र के लिए जाना जाता है। सरकारी नौकरी के योग को जानने के लिए इसी घर का विश्लेषण किया जाता है। दसवें स्थान में यदि सूर्य, मंगल या ब्रहस्पति की दृष्टि पड़ रही होती है तो सरकारी नौकरी का प्रबल योग बनता है। अपवादस्वरूप यह भी देखने में आता है कि जातक की कुंडली में दसवें स्थान में तो यह ग्रह होते हैं किंतु फिर भी जातक को नौकरी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा होता है तो ऐसे में अगर सूर्य, मंगल या ब्रहस्पति पर किसी पाप ग्रह (अशुभ ग्रह) की दृष्टि पड़ रही होती है, तो जातक को सरकारी नौकरी प्राप्ति में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

नौकरी प्राप्त करने के कुछ सरल उपाय –

1 प्रतिदिन 40 दिनों तक सुबह नंगे पैर हनुमान जी के मंदिर में जाकर उन्हें लाल गुलाब का फूल चढ़ाएं। यह अचूक वैदिक उपाय शीध्र ही अच्छी नौकरी दिलवाने में सहायक होता है।

2 प्रतिदिन चन्दन की माला से 11 बार ओम् वक्रतंण्डाय हूं मंत्र का जाप करें। इससे उपाय से भी सरकारी नौकरी मिलने में सहायता प्राप्त होती है।

3 प्रत्येक सोमवार के दिन शिवजी के मंदिर में जाकर शिवलिंग पर एक थैली कच्चा दूध तथा साबुत चावल चढ़ाएं और सच्चे मन प्रार्थना करें। ऐसा करने से नौकरी मिलने में आ रही हर तरह की बाधा का नाश होता है।

4 प्रत्येक सुबह पक्षियों को दाना देने से रोजगार और नौकरी की संभावना बढ़ जाती है। आप बाजरा या सात प्रकार के अनाजों का मिश्रण भी पक्षियों को दे सकते हैं। ऐसा करने से मनचाही नौकरी प्राप्त होती है।

5 नौकरी के लिए इंटरव्यू देने से पहले सुबह स्नान करते समय बाल्टी या टब में हल्दी मिलाकर स्नान करें और प्रभु के सामने 11 अगरबत्ती जलाकर अपनी सफलता की कामना करें।

6 यदि आप सरकारी नौकरी ही चाहते हैं, तो महीने के प्रथम सोमवार के दिन सूर्य के ढ़लते समय सफेद कपड़े में काले चावल और कुछ दक्षिणा को बांध कर काली माता के मंदिर में चढ़ाएँ। 11 महिने तक लगातार ऐसा करने से आपको मनचाही नौकरी व सरकारी नौकरी के अवसर प्राप्त हो जाएगें।
सरकारी नौकरी और अच्छे कारोबार की प्राप्ति के लिए घर में उड़ते हुए हनुमान जी की फोटो लगाएं।

7 कोई भी उपाय करने से नौकरी न मिल रही हो तो शुक्ल पक्ष में लगातार 21 दिनों तक कुंए में दूध डालें। कुंआ खाली या सूखा हुआ नहीं होना चाहिए।
नौकरी के प्राप्त करने के लिए घर से निकलते समय एक नींबू पर चार लौंग वारकर चारों दिशाओं में गाड़ दें और 108 बार ‘‘ओम् श्री हनुमते नमः’’ का जाप करें। और उस नींबू को अपने साथ ले जाएं। आपको नौकरी मिलने की संभावना प्रबल हो जाएगी।

8 नौकरी पाने के लिए घर से निकलते समय चना और गुड़ खाकर निकलें और रास्ते में किसी गाय को भी अपने हाथों से गुड-चना खिला दें। आपका काम अवश्य बन जाएगा।

9 प्रत्येक शनिवार को 108 बारी ‘‘ओम् शं शनैश्चराय नमः’’ का मंत्र जाप करें। इस उपाय से नौकरी मिलने में आ रही बाधा दूर हो जाती है।

10 नौकरी के लिए इंटरव्यू देने के लिए घर से निकलते समय एक चम्मच दही और चम्मच चीनी मिलाकर और उसे खाकर घर से बाहर निकलें। ध्यान रहे कि घर से बाहर जाते समय सबसे पहले दायां पैर ही बाहर निकालें।

11 सरकारी नौकरी प्राप्त करने के लिए गंगाजल को एक पीतल के लोटे में डालें और इसमें चांदी की धातु को डाल दें। फिर इस लोटे को अपने सिर के उपर से सात बार वार दें और इसे ईशान कोण में रख दें। इसके पश्चात 21 बार ओम् गंगाधराय नमः मंत्र का जाप करें।

12 यदि नौकरी की आशा धूमिल पड़ रही हो या नौकरी मिलते-मिलते रह जाती हो। तो शुक्ल पक्ष के महीने में गुड़ की 7 डलियां और 7 हल्दी की साबुत गांठे को एक रूपये के सिक्के के साथ किसी पीले वस्त्र यानि कपड़े में बांधकर सड़क या रेल लाइन के पार फेक दें। और मन में नौकरी की सच्ची प्रार्थना करें। इस उपाय से नौकरी मिलने की संभावना बढ़ जाती है।

बुधवार, 21 मार्च 2018

कौन से नाम का शहर मुझे सब से ज्यादा फायदेमंद होगा ? - वर्ग विन्यास

कौन से अक्षर नाम वाले जातक मेरे मित्र या शत्रु हो सकते है ?

कौन से नाम का शहर मुझे सब से ज्यादा फायदेमंद होगा ?

कौन से नाम से कंपनी रखू ?

इस प्रकार अनेक सवाल आते है ।

नामाक्षरों के आधार पर पारस्परिक मित्रता यस शत्रुता देखना की एक विद्या “वर्ग विन्यास” है ।


हिन्दी वर्णमाला के सभी स्वरो और व्यंजनो को आठ वर्गो में क्रमानुसार बांटा गया है वो निम्नलिखित है, साथ में अवकहड़ा चक्र अनुसार नामाक्षर नक्षत्र चरण भी प्रस्तुत कर रहा हु  :

गरुड़ वर्ग : अ, इ, ऊ, ए, ओ –- कृतिका 1,2,3,4, रोहिणी 1 ।

मार्जार वर्ग : क, ख, ग, घ, ङ –- मृगशिरा 3,4 आद्रा 1,2,3, पुनर्वसु 1,2 धनिष्ठा 1,2,3,4, शतभीषा 1, श्रवण 1,2,3,4।

सिंह वर्ग : च, छ, ज, झ, ञ –- अश्वनी 1,2,3, आद्रा 4, उत्तरा भादप्रद 3,4, रेवती 3,4 ।

श्वान वर्ग : ट, ठ, ड, ढ, ण – पुष्य 4, अश्लेषा 1,2,3,4, पूर्वा फाल्गुनी 2,3,4, उत्तरा फाल्गुनी 1,2, हस्त 3,4, पूर्वाषाढ़ 4 ।

सर्प वर्ग : त, थ, द, ध, न – स्वाति 4, विशाखा 1,2,3,4, अनुराधा 1,2,3,4, ज्येष्ठा 1, पूर्वाषाढ़ 2, पूर्वा भादप्रद 3,4, उत्तरा भादप्रद 1,2 रेवती 1,2 ।

मूषक वर्ग : प, फ, ब, भ, म – रोहिणी 2,3,4, मृगशिर 1,2, मघा 1,2,3,4, पूर्व फाल्गुनी 1, उत्तरा फाल्गुनी 3,4, हस्त 1, चित्रा 1,2, मूल 3,4, पूर्वाषाढ़ 1,3, उत्तराषाढ़ 1,2, (ब को व मानने के आधार पर) ।

मृग वर्ग : य, र, ल, व – अश्वनी 4, भरणी 1,2,3,4, रोहिणी 2,3,4, मृगशिर 1,2, चित्रा 3,4, स्वाति 1,2,3, ज्येष्ठा 2,3,4, मूल 1,2 ।

मेष वर्ग : श, ष, स, ह – पुनर्वसु 3,4, पुष्य 1,2,3, हस्त 2, शतभिषा 2,3,4, पूर्वा भादप्रद 1,2 (श को स मानने के आधार पर )


जिस क्रम से वर्ग निर्धारित किए गए है, प्रत्येक वर्ग से पाचवा वर्ग शत्रु वर्ग होता है :
गरुड़ और सर्प आपस में पारस्परिक शत्रु है ।
मार्जार और मूषक आपस में पारस्परिक शत्रु है ।
सिंह और मृग आपस में पारस्परिक शत्रु है ।
श्वान और मेष आपस में पारस्परिक शत्रु है ।
इसलिए जातक को अपनी नाम राशि के अनुसार वर्ग के पारस्परिक शत्रु वर्ग नामाक्षर नाम के जातक या शहर या कंपनी से बचना चाहिए ।

उदाहरण के तौर पर मेरा नाम  “विजय” है जो ‘मृग’ वर्ग में आता है और मृग का शत्रु वर्ग ‘सिंह’ है जिस के अक्षर च, छ, ज, झ, ञ है । इन नाम के जातक जैसे ‘चन्द्रस्वामी’ , ‘चन्दन’ , ‘जावेद’ आधी से मुझे बचना चाहिए और इन नाम से शहर जैसे चंडीगढ़, चेन्नई , छतरपुर, झांसी आधी शहर में सफलता मिलने में परेशानी होगी । (अगर कोई नौकरी करता है तो इन शहर में न जाए ) । इन अक्षर की कंपनी ‘जिंदाल स्टील’, ‘जे के लक्ष्मी सीमेंट’, ‘चंबल पावर’, आधी  नही जॉइन न करे।

गुरुवार, 8 मार्च 2018

बहुत प्राचीन विधि - ताश के पत्तों से भविष्यफल

ज्योतिष मे ताश के पत्ते :मनुष्य के जीवन में क्या क्या घटित हो रहा है, या क्या क्या घ टित होगा, अच्छा होगा या बुरा होगा, मेरी समस्या का समाधान होगा या नहीं, ऐसे अनेक प्रश्न जीवन के प्रत्येक पल में सामने होते है सभी को ज्ञान है कि जो भी होगा ईश्वर की इच्छा अनुसार होगा फिर भी तीव्र जिज्ञासा भविष्य को जानने की होती है भविष्य को जाननेकी अनेको विधियां हमारे समक्ष है. किसी का विश्वास कहीं पर है तो किसी का किसी दूसरी विद्या पर है भविष्य जानने की इच्छा सभी में प्रबल होती है उन्ही विद्याओ में ताश का भी महत्वपूर्ण स्थान है जिसे हम अपना टाइम पास करने के लिए प्रयोग करते है। कुछ जादू के प्रयोग से भी मनोरंजन करते है.। ताश के बावन पत्ते और एक जोकर इसी प्रकार से साल मे बावन सप्ताह. ताश के पत्तों से भविष्यफल-----

1-हूकुम, 2-पान,3-ईंट,
4- चिड़िया!
 ताश के पत्तों से भविष्य जानने की विधि---

 ताश के पत्तों से भविष्य जानने के लिए 32 पत्तों की आवश्यकता होती है! ताश के 52 पत्तों में से 20 पत्ते निकाल दें! 2,3,4,5,6 हूकुम के, इसी प्रकार 5
ईंट के, 5 पान के और 5 चिड़िया के पत्ते
 पत्ते निकाल देने पर 32 पत्ते रह जायेंगे [राजा, रानी, गुलाम, एक्का 7,8,9,10]

1-हूकुम के पत्तों से साधारण बीमारी, चिंता, धन, हानि और प्रेम में धोखा जानना।
2-ईंट के पत्तों से महत्वाकांक्षा और पूर्ति, धन का आना और विभिन्न 2 कार्य-क्षेत्रों में मिलाने वाली सफलता का पता चलता है।
3-पान के पत्ते से कार्यक्षेत्र की अच्छे समाचार,
उद्यमशीलता, प्यार, प्यार में सफलता, विवाह
आदि का पता चलता है।
4-चिड़िया के पत्तों से भाग्यशाली समझा जाता है! उद्यम के क्षेत्र में सफलता का ज्ञान होता है। प्रत्येक पते के रंग और अंक का अर्थ और विशेषता अलग
अलग होता है।

 प्रयोग विधि--ताश की 32
पत्तों वाली गड्डी को अच्छी तरह से फेंट कर अपने
बाएं हाथ काट लिजये और अलग किये पत्तों के सबसे
निचे वाले पत्ते को देखिये और उसको निकाल कर बांये
तरफ मेज पर रख दें। अब बाकी बची हुई गड्डी में से ऊपर के 6 पत्ते निकाल दें व 7 पत्ते को देखें, इस 7वे पत्ते को पहले निकाले हुये पत्ते के दाहिनी ओर रख दें।

पहला पता चारों ओर की परिस्थितियों के बारे में
बताता है
और दूसरा निकाला पत्ता प्रश्न के उत्तर
बताता है। दूसरे पत्ते के द्वारा जातक की भविष्यावानी होती है।
याद रहे अगर पत्ते दोनों एक समान हो तो भविष्य बहुत अच्छा समझा जाता है।

हूकुम राजा---हूकुम का राजा एक काला व्यक्ति,
एक शिक्षित व्यक्ति, जंगल, चकित्सक, लेखक और
कलाकार हो।
हूकुम की रानी--एक काली स्त्री, विधवा,एक
प्रतिष्ठित स्त्री, प्रतिष्टित पेशे से जुडी हुई स्त्री।
हूकुम का गुलाम--काला जातक, अविवाहित,
संदेशवाहक,गंवार, चापलूस।
हूकुम का 10--आंसू, अप्रसंता, ईर्ष्या,सगाई,या विवाह
का अचानक टूट जाना।
हूकुम का 9--मृत्यु का समाचार, किसी रिश्तेदार
या मित्र से सम्बंधित शोक।
हुकुम का 8--बीमारी, बुद्धिमता की कमी,
बुरा समाचार, उदासी।
हूकुम का 7--अत्यधिक आशा, आशा, अच्छा भविष्य,
प्रसंता।
ईक्का--दस्तावेज, परित्यक्त।

ईंट के पत्ते--
राजा--विवाह, निष्ठावान, उच्च पद प्रतिष्ठित,
गौरवर्ण जातक,।
रानी--हलके वालों वाली स्त्री, छोटे शहर
का निवासी, गप्पबाजी, अकीर्ति।
गुलाम--नीच जाती का गौरवर्ण व्यक्ति, संदेशवाहक,
अविश्वासी मित्र।
ईक्का--एक चट्ठी या दस्तावेज की प्राप्ति,
चिंता का कारण।
10--सोना, चांदी, पानी, समुद्र, एक यात्रा, स्थान
परिवर्तन।
9--जीत, प्रसन्ता, विजय, एकता, सामंजस्य, कार्य,
उपहार।
8--गौरवर्ण की स्त्री से विशेष लगाव, सफलतापूर्वक
उत्तरदायित्व का निर्वाह, भोजन।
7--वर्तमान में दृढ़ता, सुखद समाचार, आनन्दित होने
और हंसाने-हंसाने का समय।

पान के पत्ते--
राजा-- हलके वालों वाला पुरुष, एक वकील,एक
प्रतिष्ठित मित्र, उदार व्यक्ति।
रानी--हलके वालों वाली स्त्री, विश्वासी मित्र,
भद्र स्त्री, मित्रों से मुलाक़ात।
गुलाम-- हलके वालों वाला अविवाहित व्यक्ति,
वर्दी में एक युवा अधिकारी, एक यात्री, प्रेम पत्र के
प्रति गंभीर।
ईक्का--धर, उत्सवी,माहौल, एक प्रेम पत्र, रुचिपूर्ण
बातचीत।
रुपियों से भरी थैली, अत्यधिक संपतिशाली।
10--शहर, ईर्षालू, व्यक्ति, नासमझ।
9-- जीत, प्रसंता, विजय, एकता, सामंजस्य,कार्य,
उपहार।
8--गौरवर्ण की स्त्री से विशेष लगाव, सफलता पूर्वक
उत्तरदायित्व का निर्वाह, भोजन।
7--वर्तमान में दृढ़ता, सुखद समाचार, आनंदित होने और हंसाने का समय।

चिडी के पत्ते--
राजा-- गौरवर्ण का जातक, स्पष्टवादी, खुले
विचारों वाला, अच्छा मित्र, विश्वासी, निर्भर,
ईमानदार और गुणी।
रानी--भूरे वालों वाली स्त्री, बातूनी, स्नेहदिल,
तुनकमिजाज, प्रेमी।
गुलाम-- काला या भोंडा जातक, अविवाहित
व्यक्ति, एक प्रेमी, उद्मशील, छलप्रेमी।
ईक्का--रुपियों से भरी थैली, अत्यधिक संपतिशाली।
10-- घर, भविष्य, प्रसिद्धि, भाग्यवान,
सफलता,प्रत्येक कार्य में भाग्यशाली।
9--खुद के धन को गिरवी रखना, साजोसामान, चल-
सम्पति, एक नासमझ, लापरवाह।
8--गौरवर्ण स्त्री से विशेष लगाव, खुश रखने की कला,
छोटी आयु में प्यार होना।
7--नकदी की कमी, पुराने कर्ज का भुगतान, एक
छोटा बच्चा, छोटे निवेश करेगा।

इस शकुन ज्योतिष (ताँस के पत्ते) द्वारा ...कुछ दिनों के अभ्यास से सहजता से भविष्य फल करने लगेंगे।।

विशिष्ट पोस्ट

नक्षत्र स्वामी के अनुसार पीपल वृक्ष के उपाय

ज्योतिष शास्त्र अनुसार प्रत्येक ग्रह 3, 3 नक्षत्रों के स्वामी होते है. कोई भी व्यक्ति जिस भी नक्षत्र में जन्मा हो वह उसके स्वामी ग्रह से स...