अष्टकूट का खास तोर पर आज कुंडली मिलान में उपयोग होता है पर इसे समझ नही पाते कि क्यो यह देखते है ?
अष्टकूट का खास महत्व तो जातक के अंदर जो खूबी व गुण है वो जानना है । सूर्य आत्मा का कारक है , चंद्र मन का कारक है ओर लग्न शरीर का कारक है ।
आचार्यो ने मन को पहचानने के लिये यह अष्टकूट बनाया है । अपने अंदर के मन की क्या स्थिति है वो पता नही होता है तो इससे हम उसके सदगुण ओर दुर्गुणों का पता चल सकता है ।
*Medical astrology में इसे क्यो लिया क्योकि*
*1 धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष*
*2 इसके ऊपर से मनुष्य की प्रकृति ओर विकृती का ख्याल आता है ।*
*3 इस से मानव की sextuality & production capacity का पता चलता है ।*
*4 उससे पता चला है कि लग्न जीवन मे आगे क्या प्रॉब्लम आ सकता है तो उसका ख्याल व उपाय कर सकते है ।*
यहाँ 8 चीजे है जो चंद्र व चंद्र नक्षत्र व नक्षत्र चरण के साथ लिंक है जो हम अपने शरीर व अपने मन को जानने के लीये बनाया है ।
मन बहुत चंचल है वो जीवन शक्ति , विवेक , विचारशील है । वो एक विचार को अमल करने का काम करता है । मन व मगज शरीर के अंगों को कार्य करने की प्रेरणा देता है । मन कोई अंग नही है वो अंनत व असीम है । वो अपने विचारों से प्रत्याधात देता है व वो अपने अधिकार वो अंग पर हैजो कार्य को अमल करने का करता है । मन वो मनोहर , अतिसुंदर व उत्कृष्ट है वो सत्व , रजस ओर तमस है , organs of action & organs of knowledge ये मन के अंकुश में है । मन बहुत ही संवेदनशील , बेचेन व अस्वस्थ है । चंद्र मन का बड़ा निर्देशक है ।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में राशि और नक्षत्र के साथ चंद्र को स्थान दिया है क्योंकि उससे ही हम मनन चिंतन करते है और उसको समझने के लीये अष्टकूट में महत्व ज्यादा दिया है ।
अब देखते है कि 8 जो चीज से हम कैसे जाने और क्या जाने ?
1 वर्ण :-
वर्ण 4 प्रकार के है । ब्रामण , क्षत्रिय , वैश्य , शुद्र ।
यह वर्ण से हम कल्चर , क्वालिटी , आध्यात्मिकत व ego develop कितने प्रमाण में है वो पता चलता है ।
2 वश्य :-
यहाँ पर this is suggests degree of magnetic control or a men ability ( responsibility ) ।यहाँ दोनों का आकर्षण ओर प्रेम का वचन लेना और अविछेडक स्वभाव दिखाता है ।
पांच वश्य है ।
1 चतुष्पाद , 2 मानव , 3 जलचर , 4 वनचर , 5 किट है ।
इससे मनुष्य की आंतरिक प्रकृती किस प्रकार की है वो पता चलता है ।
3 नक्षत्र व ताराबल
यहाँ नक्षत्र की जिसकी गति नही है माने फिक्स है । नक्षत्र के गुण थोड़े प्रमाण में व्यक्ति में दिखते है।
लग्न का नक्षत्र से व्यक्ति में गुण देखने को मिलता है ।
चंद्र का नक्षत्र उसका मन की बाबत दर्शाता है ।
सूर्य का नक्षत्र उसकी आत्मा की बाबत दर्शाता है ।
यहाँ तारा जातक की तबियत व उसकी खुशी दर्शाता है । अगर दिनों की तारा का मेल हो तो दोनों अच्छी तबियत बहुत साल तक रहती है ।
4 योनी :–
यहाँ सांसारिक जीवन मे भौतिक सुख मिले उसके लीये वो क्या अभिगम धरता है वो योनि से जान सकते है । इसमे दोनों के बीच की समजूति , खुशिया ओर सुमेल का ख्याल आता है जो बहुत ही जरुरी है योनि 14 प्रकार की है । जो सब ऐनिमल के नाम का उपयोग किया है जो उसके गुण व लक्षण देखने को मिलते है।
जैसे मूषक है तो वो खुद का 1 rs बचाने के लीये दूसरे का 100 rs का नुकसान करता है , intelligent , sharp & shrud , high production but less sextually.
इस तरह सब योनि के लक्षण व गुण का उस जातक को जान सकते है ।
5 राश्याधिपति / ग्रह मैत्री :-
यहाँ पर जन्म राशि के स्वामिओ को देखा जाता है जिससे जातक की साइकोलॉजीकल पोजीशन क्या है ? इसका ख्याल आता है।
मेंटल क्वालिटी व कैपेसिटी का पता चलता है । ग्रह के गुण , खासियत व उसका नक्षत्र के गुण , खासियत देख के उसकी ताकत का अंदाज मिलता है ।
6 गण :-
यहाँ 3 प्रकार के गण है 1 देव , 2 मनुष्य , 3 राक्षस गण है ।
यहाँ जातक की प्रकृति व उसका टेम्परामेंट कैसा है वो मालूम पड़ता है । अपनी जिंदगी में वो सामाजिक व व्यवहारिक व जवाबदारी व फर्ज के बाबत का पता चलता है ।
वर्ण ओर गण का समन्वय से जातक का स्वभाव का सही परिचय मिलता है ।
7 भृकुट :-
भृकुट माने लेन देन । दोनों का एकदूसरे से कैसा लेन देन है उसका ख्याल आता है । यहा पूर्व जन्म से चली आ रही लेन देन का पता चलता है । यहा चंद्र से राशि मेल व लग्न से भी देखे तो ज्यादा अच्छी तरह से जीवन मे स्थिरता व एकदूसरे को किस तरह से उपयोगी हो सकते है उसका पता चलता है।
8 नाडी :–
यहां पर गति , मानसिक शक्ति कितनी ? वो दर्शाता है । हरेक की गति अलग अलग होती है । यह वंशवृद्धि का विचार के लीये देखते है । 27 नक्षत्र को 3 नाडी में विभाजित किया है । उनकी खासियत व नाम ---
1 वायु माने आध नाडी :-
पित्त स्थिर व शक्ति का संचय कर सही दिशा में उपयोग होता है ।
2 पित्त माने मध्य नाडी :-
कफ प्रकृती धैर्यवान दोनों के बीच संतुलन होता है ।
3 अंत्य माने कफ नाडी :-
वात प्रकृती , चंचल , शक्ति है परंतु जिस जगह use करना होता है वहा नही करते है । शक्ति को सही दिशा में नही वापरते है उनका वेस्ट करते है।
इसको अष्टकूट में बहुत महत्वपूर्ण दिया है । ये प्लस ओर नर्वस एनर्जी से फिजियोलॉजिकल ओर थोड़े प्रमाण में वारसागत ता को दर्शाता है । अगर विपरीत नाडी होतो कफ , पित्त , वायु का प्रभाव जन्म लेने वाले बच्चे पर ज्यादा प्रमाण में नही आता है । अगर ये सही न होतो बच्चे में शारीरिक व मानसिक खामियां भी देता है ।
अष्टकूट का खास महत्व तो जातक के अंदर जो खूबी व गुण है वो जानना है । सूर्य आत्मा का कारक है , चंद्र मन का कारक है ओर लग्न शरीर का कारक है ।
आचार्यो ने मन को पहचानने के लिये यह अष्टकूट बनाया है । अपने अंदर के मन की क्या स्थिति है वो पता नही होता है तो इससे हम उसके सदगुण ओर दुर्गुणों का पता चल सकता है ।
*Medical astrology में इसे क्यो लिया क्योकि*
*1 धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष*
*2 इसके ऊपर से मनुष्य की प्रकृति ओर विकृती का ख्याल आता है ।*
*3 इस से मानव की sextuality & production capacity का पता चलता है ।*
*4 उससे पता चला है कि लग्न जीवन मे आगे क्या प्रॉब्लम आ सकता है तो उसका ख्याल व उपाय कर सकते है ।*
यहाँ 8 चीजे है जो चंद्र व चंद्र नक्षत्र व नक्षत्र चरण के साथ लिंक है जो हम अपने शरीर व अपने मन को जानने के लीये बनाया है ।
मन बहुत चंचल है वो जीवन शक्ति , विवेक , विचारशील है । वो एक विचार को अमल करने का काम करता है । मन व मगज शरीर के अंगों को कार्य करने की प्रेरणा देता है । मन कोई अंग नही है वो अंनत व असीम है । वो अपने विचारों से प्रत्याधात देता है व वो अपने अधिकार वो अंग पर हैजो कार्य को अमल करने का करता है । मन वो मनोहर , अतिसुंदर व उत्कृष्ट है वो सत्व , रजस ओर तमस है , organs of action & organs of knowledge ये मन के अंकुश में है । मन बहुत ही संवेदनशील , बेचेन व अस्वस्थ है । चंद्र मन का बड़ा निर्देशक है ।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में राशि और नक्षत्र के साथ चंद्र को स्थान दिया है क्योंकि उससे ही हम मनन चिंतन करते है और उसको समझने के लीये अष्टकूट में महत्व ज्यादा दिया है ।
अब देखते है कि 8 जो चीज से हम कैसे जाने और क्या जाने ?
1 वर्ण :-
वर्ण 4 प्रकार के है । ब्रामण , क्षत्रिय , वैश्य , शुद्र ।
यह वर्ण से हम कल्चर , क्वालिटी , आध्यात्मिकत व ego develop कितने प्रमाण में है वो पता चलता है ।
2 वश्य :-
यहाँ पर this is suggests degree of magnetic control or a men ability ( responsibility ) ।यहाँ दोनों का आकर्षण ओर प्रेम का वचन लेना और अविछेडक स्वभाव दिखाता है ।
पांच वश्य है ।
1 चतुष्पाद , 2 मानव , 3 जलचर , 4 वनचर , 5 किट है ।
इससे मनुष्य की आंतरिक प्रकृती किस प्रकार की है वो पता चलता है ।
3 नक्षत्र व ताराबल
यहाँ नक्षत्र की जिसकी गति नही है माने फिक्स है । नक्षत्र के गुण थोड़े प्रमाण में व्यक्ति में दिखते है।
लग्न का नक्षत्र से व्यक्ति में गुण देखने को मिलता है ।
चंद्र का नक्षत्र उसका मन की बाबत दर्शाता है ।
सूर्य का नक्षत्र उसकी आत्मा की बाबत दर्शाता है ।
यहाँ तारा जातक की तबियत व उसकी खुशी दर्शाता है । अगर दिनों की तारा का मेल हो तो दोनों अच्छी तबियत बहुत साल तक रहती है ।
4 योनी :–
यहाँ सांसारिक जीवन मे भौतिक सुख मिले उसके लीये वो क्या अभिगम धरता है वो योनि से जान सकते है । इसमे दोनों के बीच की समजूति , खुशिया ओर सुमेल का ख्याल आता है जो बहुत ही जरुरी है योनि 14 प्रकार की है । जो सब ऐनिमल के नाम का उपयोग किया है जो उसके गुण व लक्षण देखने को मिलते है।
जैसे मूषक है तो वो खुद का 1 rs बचाने के लीये दूसरे का 100 rs का नुकसान करता है , intelligent , sharp & shrud , high production but less sextually.
इस तरह सब योनि के लक्षण व गुण का उस जातक को जान सकते है ।
5 राश्याधिपति / ग्रह मैत्री :-
यहाँ पर जन्म राशि के स्वामिओ को देखा जाता है जिससे जातक की साइकोलॉजीकल पोजीशन क्या है ? इसका ख्याल आता है।
मेंटल क्वालिटी व कैपेसिटी का पता चलता है । ग्रह के गुण , खासियत व उसका नक्षत्र के गुण , खासियत देख के उसकी ताकत का अंदाज मिलता है ।
6 गण :-
यहाँ 3 प्रकार के गण है 1 देव , 2 मनुष्य , 3 राक्षस गण है ।
यहाँ जातक की प्रकृति व उसका टेम्परामेंट कैसा है वो मालूम पड़ता है । अपनी जिंदगी में वो सामाजिक व व्यवहारिक व जवाबदारी व फर्ज के बाबत का पता चलता है ।
वर्ण ओर गण का समन्वय से जातक का स्वभाव का सही परिचय मिलता है ।
7 भृकुट :-
भृकुट माने लेन देन । दोनों का एकदूसरे से कैसा लेन देन है उसका ख्याल आता है । यहा पूर्व जन्म से चली आ रही लेन देन का पता चलता है । यहा चंद्र से राशि मेल व लग्न से भी देखे तो ज्यादा अच्छी तरह से जीवन मे स्थिरता व एकदूसरे को किस तरह से उपयोगी हो सकते है उसका पता चलता है।
8 नाडी :–
यहां पर गति , मानसिक शक्ति कितनी ? वो दर्शाता है । हरेक की गति अलग अलग होती है । यह वंशवृद्धि का विचार के लीये देखते है । 27 नक्षत्र को 3 नाडी में विभाजित किया है । उनकी खासियत व नाम ---
1 वायु माने आध नाडी :-
पित्त स्थिर व शक्ति का संचय कर सही दिशा में उपयोग होता है ।
2 पित्त माने मध्य नाडी :-
कफ प्रकृती धैर्यवान दोनों के बीच संतुलन होता है ।
3 अंत्य माने कफ नाडी :-
वात प्रकृती , चंचल , शक्ति है परंतु जिस जगह use करना होता है वहा नही करते है । शक्ति को सही दिशा में नही वापरते है उनका वेस्ट करते है।
इसको अष्टकूट में बहुत महत्वपूर्ण दिया है । ये प्लस ओर नर्वस एनर्जी से फिजियोलॉजिकल ओर थोड़े प्रमाण में वारसागत ता को दर्शाता है । अगर विपरीत नाडी होतो कफ , पित्त , वायु का प्रभाव जन्म लेने वाले बच्चे पर ज्यादा प्रमाण में नही आता है । अगर ये सही न होतो बच्चे में शारीरिक व मानसिक खामियां भी देता है ।