शनिवार, 31 मार्च 2018

ग्रहों की नाराजगी ऐसे दूर करें

1-सूर्य-

 भूल कर भी झूठ न
बोलें,सूर्य का गुस्सा कम हो जाएगा .झूठ क्या है ?झूठ वो है
जो अस्तित्व में नहीं है और यदि हम झूठ बोलेंगे
तो सूर्य को उसका अस्तित्व(Existence)
पैदा करना पडेगा (आश्चर्य की कोई बात
नहीं है -ये नौ ग्रह हमारे जीवन के
लिए ही अस्तित्व (existence)में आये हैं )सूर्य
का काम बढ़ जाएगा और मुश्किल भी हो जाएगा

2-चंद्रमा

जितना ज्यादा हो सके सफाई पसंद
हो जाईये ,और साफ़ रहिये भी -
चंद्रमा का गुस्सा कम हो जाएगा ।
चंद्रमा को सबसे ज्यादा डर राहू से लगता है .राहू अदृश्य
ग्रह है ,राहू क्रूर
है .हमारी रोजमर्रा की ज़िंदगी में
राहू गंदगी है .हम हमारे घर को, आसपास के
वातावरण को कितना भी साफ़ करें -उसमें ढूँढने जायेंगे
तो गंदगी मिल
ही जायेगी ,या हम हमारे घर और
आस पास के वातावरण को कितना भी साफ़ रखें
वो गंदा हो ही जाएगा और हम सब जानते हैं
कि गंदगी कितनी खतरनाक
हो सकती है और होती है --
ज़िंदगी के लिए ,न जाने कितने बेक्टीरिया ,
वायरस ,जो अदृश्य होते हुए
भी हमारी ज़िंदगी को भयभीत
कर देते हैं ,बीमार
करके ,ज़िंदगी को खत्म तक कर देते
हैं ,चंद्रमा (जो सबके मन को आकर्षित करता है स्वय राहू के
मन को भी) राहू से डरता है ।अतः यदि आप साफ़
रहेंगे तो चंद्रमा को अच्छा लगेगा और उसका क्रोध शांत रहेगा ।
चंद्रमा का गुस्सा उतना ही कम हो जाएगा ।

3-मंगल

-यह ग्रह सूर्य
का सेनापती ग्रह है भोजन में गुड है ।सूर्य गेंहू
है रविवार को गेहूं के आटे का चूरमा गुड डालकर बनाकर खाएं
खिलाये ,मंगल को बहुत अच्छा लगेगा ।सूर्य गेहूं है -मंगल गुड
है और घी चंद्रमा है ,अब तीनो प्रिय
मित्र हैं तो तीन मित्र मिलकर जब खुश होंगे
तो गुस्सा किसे याद रहेगा ।

4-बुध

बुध ग्रह यदि आपकी जन्म
पत्रिका में क्रोधित है तो बस तुरंत मना लीजिये --
गाय को हरी घास खिलाकर -
धरती और गाय दोनों शुक्र (Venus)ग्रह
का प्रतिनिधित्व करती है ।
हरी घास है जो बुध ग्रह का प्रतिनिधित्व
करती है -बुध ग्रह का रंग हरा है ,वो बच्चा है
नौ ग्रहों में शारीरिक रूप से सबसे कमजोर और
बौद्धिक रूप में सबसे आगे आगे ।
घास है जो पृथ्वी के अन्य पेड़ पौधों के मुकाबले
कमजोर है बिलकुल बुध ग्रह की तरह , घास
भी शारीरिक रूप से बलवान
नहीं होती है मगर ताकत देने में कम
नहीं अतः बुध स्वरूप
ही है .हरी हरी घास से
सजी धरती कितनी सुंदर
और खुश दिखती है -घास =बुध और
धरती = शुक्र
इसी तरह गाय हरी -
हरी घास खा कर कितनी खुश
होती है
इसलिए - हरी- हरी घास =बुध ग्रह
और गाय (और धरती )= शुक्र
इसलिए गाय को हरी हरी घास खिलाएंगे
तो दो बहुत अच्छे दोस्तों को मिला रहे होंगे -
ऐसी हंसी खुशी के
वातावरण में हर कोई गुस्सा थूक देता है और बुध ग्रह
भी अपना क्रोध शांत कर लेंगे ।

5-बृहस्पति

चने की दाल parrots
को खिलादे बृहस्पति कभी गुस्सा नहीं करेंगे।
चने की दाल पीले रंग
की होती है और
बृहस्पति भी पीले रंग के हैं ।
बृहस्पति का भी घनत्व सौरमंडल में ज्यादा है और
चने की दाल
भी हलकी फुल्की नहीं होती पचाने
में हमारी आँतों को ज्यादा मेहनत
करनी पड़ती है ।
तोता हरे रंग का होता है .बुध ग्रह भी हरे रंग
का होता है ।
तोता भी दिन भर बोलता रहता है और बुध ग्रह
भी बच्चा होना के कारण बोलना पसंद करता है ।
अतः तोता =बुध ग्रह
और चने की दाल = बृहस्पति ग्रह
बुध ग्रह बृहस्पति के जायज पुत्र और चंद्रमा के नाजायज
पुत्र है।
बुध के पिता बृहस्पति हैं और बृहस्पति के चंद्रमा अच्छे मित्र
हैं और बृहस्पति की पत्नी तारा ने
चंद्रमा से नाजायज शारीरिक सम्बन्ध बनाकर बुध
ग्रह को जन्म दिया था इस बात से
बृहस्पति अपनी पत्नी तारा से नाराज़
रहते है और बुध की माँ से नाराज़ रहने के कारण
अपने जायज पिता बृहस्पति से बुध ग्रह नाराज़ रहता है ।इस
बात से बृहस्पति दुखी रहता है अतः जब
तोता जो बुध स्वरूप है जब चने की दाल खाकर पेट
भरेगा और खुश
होगा तो बृहस्पति को खुशी मिलेगी और
गुस्सा तो अपने आप कम हो जाएगा ।

6-शुक्र

 - यदि नाराज़ हो तो गाय
को रोटी खिलाओ .
सूर्य गेहूं है
और शुक्र गाय .
किस बलवान व्यक्ति को उसके खुद के अलावा कोई और
राजा हो तो अच्छा लगता है !
शुक्र को भी सूर्य के अधीन
रहना पसंद नहीं है अतः जब आप उसके शत्रु
सूर्य जो गेहूं को गाय जो शुक्र है को खिलाएंगे तो वो अपने आप
ही गुस्सा भूल जाएगा ।

7-शनि

 -जिस किसी से
भी नाराज़
हो तो उसकी पीड़ा तो बस वो खुद
ही जानता है .
शनि समानतावादी है .
ये बड़ा है और ये छोटा है ऐसी बातें शनि को क्रोधित
कर देती है
क्योंकि शनि सूर्य (राजा ) का पुत्र है और उसके पिता सूर्य ने
उसकी माँ का सम्मान नहीं किया इसलिए
शनि को अपनी माँ छाया से प्यार होने के कारण सूर्य
पर बहुत गुस्सा आता है --किसी का बड़े होने
का अहंकार ज़रा भी नहीं भाता है .
अतः जो सर्वहारा वर्ग (मेहनतकश लोग )है उसको खुश
रखो तो शनि खुद ही खुश हो जाएगा .आपको उन्हें
दान नहीं देना है क्योंकि शनि श्रम
का पुजारी है .शनि ईमानदार है और मेहनतकश लोग
भी दान लेने के बजाय मेहनत कर के खुश रहते
हैं अतः किसी मेहनतकश की मेहनत
का तन ,मन और धन से उचित सम्मान करने से शनि खुश
हो जाता है और खुश हो जाएगा तो गुस्सा तो कम
हो ही जाएगा ।

8-राहू

राहू के दिए दुःख गैबी होते हैं
(जिनका कारण समझ में ना आये ).
राहू स्वय अदृश्य रहता है .(अतः उसके दिए
दुखों को समझना भी मुश्किल है ).राहू एक
हिस्सा उसके शरीर का ऊपरी भाग
वो स्वय है और उसके नीचे का हिस्सा केतु है .
(समुद्र मंथन के समय छल से देवताओं का रूप धर अमृत
पीने जब वो आया तो विष्णु ने उसे पहचान लिया और
अपने सुदर्शन चक्र से उसके दो टुकड़े कर दिए (एक बूँद
अमृत उसके शरीर में
जा चुका था अतः उसकी मृत्यु
नहीं हुयी )(ऊपर का हिस्सा राहू
कहलाया और नीचे का हिस्सा केतु )।

शुक्रवार, 23 मार्च 2018

सरकारी नौकरी के योग एवं प्राप्ति के उपाय

1- लग्न पर बैठे किसी ग्रह का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में सबसे अधिक प्रभाव रखने वाला माना जाता है। लग्न पर यदि सूर्य या चंद्र स्थित हो तो व्यक्ति शाषण से जुडता है और अत्यधिक नाम कमाने वाला होता है। खुद जानें कब आपके करियर को रफ्तार मिलेगी

2- चंद्र का दशम भाव पर दृष्टी या दशमेश के साथ युति सरकारी क्षेत्र में सफलता दर्शाता है। यधपि चंद्र चंचल तथा अस्थिर ग्रह है जिस कारण जातक को नौकरी मिलने में थोडी परेशानी आती है। ऐसे जातक नौकरी मिलने के बाद स्थान परिवर्तन या बदलाव के दौर से बार बार गुजरते है।

3- सूर्य धन स्थान पर स्थित हो तथा दशमेश को देखे तो व्यक्ति को सरकारी क्षेत्र में नौकरी मिलने के योग बनते है। ऐसे जातक खुफिया ऐजेंसी या गुप चुप तरीके से कार्य करने वाले होते है। यहां जानें कब लगेगी आपकी सरकारी नौकरी

4- सूर्य तथा चंद्र की स्थिति दशमांश कुंडली के लग्न या दशम स्थान पर होने से व्यक्ति राज कार्यो में व्यस्त रहता है ऐसे जातको को बडा औहदा प्राप्त होता है।

5- यदि ग्रह अत्यधिक बली हो तब भी वें अपने क्षेत्र से सम्बन्धित सरकारी नौकरी दे सकते है। मंगल सैनिक, या उच्च अधिकारी, बुध बैंक या इंश्योरेंस, गुरु- शिक्षा सम्बंधी, शुक्र फाइनेंश सम्बंधी तो शनि अनेक विभागो में जोडने वाला प्रभाव रखता है। पैसा कमाने की इच्‍छा रखने वाले लोग करें इनका पूजन

6- सूर्य चंद्र का चतुर्थ प्रभाव जातक को सरकारी क्षेत्र में नौकरी प्रदान करता है। इस स्थान पर बैठे ग्रह सप्तम दृष्टि से कर्म स्थान को देखते है।

7- सूर्य यदि दशम भाव में स्थित हो तो व्यक्ति को सरकारी कार्यो से अवश्य लाभ मिलता है। दशम स्थान कार्य का स्थान हैं। इस स्थान पर सूर्य का स्थित होना व्यक्ति को सरकारी क्षेत्रो में अवश्य लेकर जाता है। सूर्य दशम स्थान का कारक होता है जिस कारण इस भाव के फल मिलने के प्रबल संकेत मिलते है।पाराशरी सिद्धांत के अनुसार, दसवें भाव के स्वामी की नवें भाव के स्वामी के साथ दृष्टि अथवा क्षेत्र और राशि स्थानांतर संबंध उसके लिए विशिष्ट राजयोग का निर्माण करते हैं।
कुंडली में यदि केंद्र में चन्द्रमा, ब्रहस्पति एक साथ हैं तो उस स्थिति में भी सरकारी नौकरी के लिए शुभ योग बनता है। इसी प्रकार चन्द्रमा और मंगल भी अगर केंद्र में स्थित हैं तो सरकारी नौकरी की आशा बढ़ जाती हैं।
यदि व्यक्ति का लग्न मेष, मिथुन, सिंह, वृश्चिक, वृष या तुला है तो ऐसे में शनि ग्रह और गुरु(ब्रहस्पति) का एक-दूसरे से केंद्र या त्रिकोण में होना, सरकारी नौकरी के लिए अच्छा योग बनाते हैं।
कुंडली में दसवां स्थान को कार्यक्षेत्र के लिए जाना जाता है। सरकारी नौकरी के योग को जानने के लिए इसी घर का विश्लेषण किया जाता है। दसवें स्थान में यदि सूर्य, मंगल या ब्रहस्पति की दृष्टि पड़ रही होती है तो सरकारी नौकरी का प्रबल योग बनता है। अपवादस्वरूप यह भी देखने में आता है कि जातक की कुंडली में दसवें स्थान में तो यह ग्रह होते हैं किंतु फिर भी जातक को नौकरी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा होता है तो ऐसे में अगर सूर्य, मंगल या ब्रहस्पति पर किसी पाप ग्रह (अशुभ ग्रह) की दृष्टि पड़ रही होती है, तो जातक को सरकारी नौकरी प्राप्ति में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

नौकरी प्राप्त करने के कुछ सरल उपाय –

1 प्रतिदिन 40 दिनों तक सुबह नंगे पैर हनुमान जी के मंदिर में जाकर उन्हें लाल गुलाब का फूल चढ़ाएं। यह अचूक वैदिक उपाय शीध्र ही अच्छी नौकरी दिलवाने में सहायक होता है।

2 प्रतिदिन चन्दन की माला से 11 बार ओम् वक्रतंण्डाय हूं मंत्र का जाप करें। इससे उपाय से भी सरकारी नौकरी मिलने में सहायता प्राप्त होती है।

3 प्रत्येक सोमवार के दिन शिवजी के मंदिर में जाकर शिवलिंग पर एक थैली कच्चा दूध तथा साबुत चावल चढ़ाएं और सच्चे मन प्रार्थना करें। ऐसा करने से नौकरी मिलने में आ रही हर तरह की बाधा का नाश होता है।

4 प्रत्येक सुबह पक्षियों को दाना देने से रोजगार और नौकरी की संभावना बढ़ जाती है। आप बाजरा या सात प्रकार के अनाजों का मिश्रण भी पक्षियों को दे सकते हैं। ऐसा करने से मनचाही नौकरी प्राप्त होती है।

5 नौकरी के लिए इंटरव्यू देने से पहले सुबह स्नान करते समय बाल्टी या टब में हल्दी मिलाकर स्नान करें और प्रभु के सामने 11 अगरबत्ती जलाकर अपनी सफलता की कामना करें।

6 यदि आप सरकारी नौकरी ही चाहते हैं, तो महीने के प्रथम सोमवार के दिन सूर्य के ढ़लते समय सफेद कपड़े में काले चावल और कुछ दक्षिणा को बांध कर काली माता के मंदिर में चढ़ाएँ। 11 महिने तक लगातार ऐसा करने से आपको मनचाही नौकरी व सरकारी नौकरी के अवसर प्राप्त हो जाएगें।
सरकारी नौकरी और अच्छे कारोबार की प्राप्ति के लिए घर में उड़ते हुए हनुमान जी की फोटो लगाएं।

7 कोई भी उपाय करने से नौकरी न मिल रही हो तो शुक्ल पक्ष में लगातार 21 दिनों तक कुंए में दूध डालें। कुंआ खाली या सूखा हुआ नहीं होना चाहिए।
नौकरी के प्राप्त करने के लिए घर से निकलते समय एक नींबू पर चार लौंग वारकर चारों दिशाओं में गाड़ दें और 108 बार ‘‘ओम् श्री हनुमते नमः’’ का जाप करें। और उस नींबू को अपने साथ ले जाएं। आपको नौकरी मिलने की संभावना प्रबल हो जाएगी।

8 नौकरी पाने के लिए घर से निकलते समय चना और गुड़ खाकर निकलें और रास्ते में किसी गाय को भी अपने हाथों से गुड-चना खिला दें। आपका काम अवश्य बन जाएगा।

9 प्रत्येक शनिवार को 108 बारी ‘‘ओम् शं शनैश्चराय नमः’’ का मंत्र जाप करें। इस उपाय से नौकरी मिलने में आ रही बाधा दूर हो जाती है।

10 नौकरी के लिए इंटरव्यू देने के लिए घर से निकलते समय एक चम्मच दही और चम्मच चीनी मिलाकर और उसे खाकर घर से बाहर निकलें। ध्यान रहे कि घर से बाहर जाते समय सबसे पहले दायां पैर ही बाहर निकालें।

11 सरकारी नौकरी प्राप्त करने के लिए गंगाजल को एक पीतल के लोटे में डालें और इसमें चांदी की धातु को डाल दें। फिर इस लोटे को अपने सिर के उपर से सात बार वार दें और इसे ईशान कोण में रख दें। इसके पश्चात 21 बार ओम् गंगाधराय नमः मंत्र का जाप करें।

12 यदि नौकरी की आशा धूमिल पड़ रही हो या नौकरी मिलते-मिलते रह जाती हो। तो शुक्ल पक्ष के महीने में गुड़ की 7 डलियां और 7 हल्दी की साबुत गांठे को एक रूपये के सिक्के के साथ किसी पीले वस्त्र यानि कपड़े में बांधकर सड़क या रेल लाइन के पार फेक दें। और मन में नौकरी की सच्ची प्रार्थना करें। इस उपाय से नौकरी मिलने की संभावना बढ़ जाती है।

बुधवार, 21 मार्च 2018

कौन से नाम का शहर मुझे सब से ज्यादा फायदेमंद होगा ? - वर्ग विन्यास

कौन से अक्षर नाम वाले जातक मेरे मित्र या शत्रु हो सकते है ?

कौन से नाम का शहर मुझे सब से ज्यादा फायदेमंद होगा ?

कौन से नाम से कंपनी रखू ?

इस प्रकार अनेक सवाल आते है ।

नामाक्षरों के आधार पर पारस्परिक मित्रता यस शत्रुता देखना की एक विद्या “वर्ग विन्यास” है ।


हिन्दी वर्णमाला के सभी स्वरो और व्यंजनो को आठ वर्गो में क्रमानुसार बांटा गया है वो निम्नलिखित है, साथ में अवकहड़ा चक्र अनुसार नामाक्षर नक्षत्र चरण भी प्रस्तुत कर रहा हु  :

गरुड़ वर्ग : अ, इ, ऊ, ए, ओ –- कृतिका 1,2,3,4, रोहिणी 1 ।

मार्जार वर्ग : क, ख, ग, घ, ङ –- मृगशिरा 3,4 आद्रा 1,2,3, पुनर्वसु 1,2 धनिष्ठा 1,2,3,4, शतभीषा 1, श्रवण 1,2,3,4।

सिंह वर्ग : च, छ, ज, झ, ञ –- अश्वनी 1,2,3, आद्रा 4, उत्तरा भादप्रद 3,4, रेवती 3,4 ।

श्वान वर्ग : ट, ठ, ड, ढ, ण – पुष्य 4, अश्लेषा 1,2,3,4, पूर्वा फाल्गुनी 2,3,4, उत्तरा फाल्गुनी 1,2, हस्त 3,4, पूर्वाषाढ़ 4 ।

सर्प वर्ग : त, थ, द, ध, न – स्वाति 4, विशाखा 1,2,3,4, अनुराधा 1,2,3,4, ज्येष्ठा 1, पूर्वाषाढ़ 2, पूर्वा भादप्रद 3,4, उत्तरा भादप्रद 1,2 रेवती 1,2 ।

मूषक वर्ग : प, फ, ब, भ, म – रोहिणी 2,3,4, मृगशिर 1,2, मघा 1,2,3,4, पूर्व फाल्गुनी 1, उत्तरा फाल्गुनी 3,4, हस्त 1, चित्रा 1,2, मूल 3,4, पूर्वाषाढ़ 1,3, उत्तराषाढ़ 1,2, (ब को व मानने के आधार पर) ।

मृग वर्ग : य, र, ल, व – अश्वनी 4, भरणी 1,2,3,4, रोहिणी 2,3,4, मृगशिर 1,2, चित्रा 3,4, स्वाति 1,2,3, ज्येष्ठा 2,3,4, मूल 1,2 ।

मेष वर्ग : श, ष, स, ह – पुनर्वसु 3,4, पुष्य 1,2,3, हस्त 2, शतभिषा 2,3,4, पूर्वा भादप्रद 1,2 (श को स मानने के आधार पर )


जिस क्रम से वर्ग निर्धारित किए गए है, प्रत्येक वर्ग से पाचवा वर्ग शत्रु वर्ग होता है :
गरुड़ और सर्प आपस में पारस्परिक शत्रु है ।
मार्जार और मूषक आपस में पारस्परिक शत्रु है ।
सिंह और मृग आपस में पारस्परिक शत्रु है ।
श्वान और मेष आपस में पारस्परिक शत्रु है ।
इसलिए जातक को अपनी नाम राशि के अनुसार वर्ग के पारस्परिक शत्रु वर्ग नामाक्षर नाम के जातक या शहर या कंपनी से बचना चाहिए ।

उदाहरण के तौर पर मेरा नाम  “विजय” है जो ‘मृग’ वर्ग में आता है और मृग का शत्रु वर्ग ‘सिंह’ है जिस के अक्षर च, छ, ज, झ, ञ है । इन नाम के जातक जैसे ‘चन्द्रस्वामी’ , ‘चन्दन’ , ‘जावेद’ आधी से मुझे बचना चाहिए और इन नाम से शहर जैसे चंडीगढ़, चेन्नई , छतरपुर, झांसी आधी शहर में सफलता मिलने में परेशानी होगी । (अगर कोई नौकरी करता है तो इन शहर में न जाए ) । इन अक्षर की कंपनी ‘जिंदाल स्टील’, ‘जे के लक्ष्मी सीमेंट’, ‘चंबल पावर’, आधी  नही जॉइन न करे।

गुरुवार, 8 मार्च 2018

बहुत प्राचीन विधि - ताश के पत्तों से भविष्यफल

ज्योतिष मे ताश के पत्ते :मनुष्य के जीवन में क्या क्या घटित हो रहा है, या क्या क्या घ टित होगा, अच्छा होगा या बुरा होगा, मेरी समस्या का समाधान होगा या नहीं, ऐसे अनेक प्रश्न जीवन के प्रत्येक पल में सामने होते है सभी को ज्ञान है कि जो भी होगा ईश्वर की इच्छा अनुसार होगा फिर भी तीव्र जिज्ञासा भविष्य को जानने की होती है भविष्य को जाननेकी अनेको विधियां हमारे समक्ष है. किसी का विश्वास कहीं पर है तो किसी का किसी दूसरी विद्या पर है भविष्य जानने की इच्छा सभी में प्रबल होती है उन्ही विद्याओ में ताश का भी महत्वपूर्ण स्थान है जिसे हम अपना टाइम पास करने के लिए प्रयोग करते है। कुछ जादू के प्रयोग से भी मनोरंजन करते है.। ताश के बावन पत्ते और एक जोकर इसी प्रकार से साल मे बावन सप्ताह. ताश के पत्तों से भविष्यफल-----

1-हूकुम, 2-पान,3-ईंट,
4- चिड़िया!
 ताश के पत्तों से भविष्य जानने की विधि---

 ताश के पत्तों से भविष्य जानने के लिए 32 पत्तों की आवश्यकता होती है! ताश के 52 पत्तों में से 20 पत्ते निकाल दें! 2,3,4,5,6 हूकुम के, इसी प्रकार 5
ईंट के, 5 पान के और 5 चिड़िया के पत्ते
 पत्ते निकाल देने पर 32 पत्ते रह जायेंगे [राजा, रानी, गुलाम, एक्का 7,8,9,10]

1-हूकुम के पत्तों से साधारण बीमारी, चिंता, धन, हानि और प्रेम में धोखा जानना।
2-ईंट के पत्तों से महत्वाकांक्षा और पूर्ति, धन का आना और विभिन्न 2 कार्य-क्षेत्रों में मिलाने वाली सफलता का पता चलता है।
3-पान के पत्ते से कार्यक्षेत्र की अच्छे समाचार,
उद्यमशीलता, प्यार, प्यार में सफलता, विवाह
आदि का पता चलता है।
4-चिड़िया के पत्तों से भाग्यशाली समझा जाता है! उद्यम के क्षेत्र में सफलता का ज्ञान होता है। प्रत्येक पते के रंग और अंक का अर्थ और विशेषता अलग
अलग होता है।

 प्रयोग विधि--ताश की 32
पत्तों वाली गड्डी को अच्छी तरह से फेंट कर अपने
बाएं हाथ काट लिजये और अलग किये पत्तों के सबसे
निचे वाले पत्ते को देखिये और उसको निकाल कर बांये
तरफ मेज पर रख दें। अब बाकी बची हुई गड्डी में से ऊपर के 6 पत्ते निकाल दें व 7 पत्ते को देखें, इस 7वे पत्ते को पहले निकाले हुये पत्ते के दाहिनी ओर रख दें।

पहला पता चारों ओर की परिस्थितियों के बारे में
बताता है
और दूसरा निकाला पत्ता प्रश्न के उत्तर
बताता है। दूसरे पत्ते के द्वारा जातक की भविष्यावानी होती है।
याद रहे अगर पत्ते दोनों एक समान हो तो भविष्य बहुत अच्छा समझा जाता है।

हूकुम राजा---हूकुम का राजा एक काला व्यक्ति,
एक शिक्षित व्यक्ति, जंगल, चकित्सक, लेखक और
कलाकार हो।
हूकुम की रानी--एक काली स्त्री, विधवा,एक
प्रतिष्ठित स्त्री, प्रतिष्टित पेशे से जुडी हुई स्त्री।
हूकुम का गुलाम--काला जातक, अविवाहित,
संदेशवाहक,गंवार, चापलूस।
हूकुम का 10--आंसू, अप्रसंता, ईर्ष्या,सगाई,या विवाह
का अचानक टूट जाना।
हूकुम का 9--मृत्यु का समाचार, किसी रिश्तेदार
या मित्र से सम्बंधित शोक।
हुकुम का 8--बीमारी, बुद्धिमता की कमी,
बुरा समाचार, उदासी।
हूकुम का 7--अत्यधिक आशा, आशा, अच्छा भविष्य,
प्रसंता।
ईक्का--दस्तावेज, परित्यक्त।

ईंट के पत्ते--
राजा--विवाह, निष्ठावान, उच्च पद प्रतिष्ठित,
गौरवर्ण जातक,।
रानी--हलके वालों वाली स्त्री, छोटे शहर
का निवासी, गप्पबाजी, अकीर्ति।
गुलाम--नीच जाती का गौरवर्ण व्यक्ति, संदेशवाहक,
अविश्वासी मित्र।
ईक्का--एक चट्ठी या दस्तावेज की प्राप्ति,
चिंता का कारण।
10--सोना, चांदी, पानी, समुद्र, एक यात्रा, स्थान
परिवर्तन।
9--जीत, प्रसन्ता, विजय, एकता, सामंजस्य, कार्य,
उपहार।
8--गौरवर्ण की स्त्री से विशेष लगाव, सफलतापूर्वक
उत्तरदायित्व का निर्वाह, भोजन।
7--वर्तमान में दृढ़ता, सुखद समाचार, आनन्दित होने
और हंसाने-हंसाने का समय।

पान के पत्ते--
राजा-- हलके वालों वाला पुरुष, एक वकील,एक
प्रतिष्ठित मित्र, उदार व्यक्ति।
रानी--हलके वालों वाली स्त्री, विश्वासी मित्र,
भद्र स्त्री, मित्रों से मुलाक़ात।
गुलाम-- हलके वालों वाला अविवाहित व्यक्ति,
वर्दी में एक युवा अधिकारी, एक यात्री, प्रेम पत्र के
प्रति गंभीर।
ईक्का--धर, उत्सवी,माहौल, एक प्रेम पत्र, रुचिपूर्ण
बातचीत।
रुपियों से भरी थैली, अत्यधिक संपतिशाली।
10--शहर, ईर्षालू, व्यक्ति, नासमझ।
9-- जीत, प्रसंता, विजय, एकता, सामंजस्य,कार्य,
उपहार।
8--गौरवर्ण की स्त्री से विशेष लगाव, सफलता पूर्वक
उत्तरदायित्व का निर्वाह, भोजन।
7--वर्तमान में दृढ़ता, सुखद समाचार, आनंदित होने और हंसाने का समय।

चिडी के पत्ते--
राजा-- गौरवर्ण का जातक, स्पष्टवादी, खुले
विचारों वाला, अच्छा मित्र, विश्वासी, निर्भर,
ईमानदार और गुणी।
रानी--भूरे वालों वाली स्त्री, बातूनी, स्नेहदिल,
तुनकमिजाज, प्रेमी।
गुलाम-- काला या भोंडा जातक, अविवाहित
व्यक्ति, एक प्रेमी, उद्मशील, छलप्रेमी।
ईक्का--रुपियों से भरी थैली, अत्यधिक संपतिशाली।
10-- घर, भविष्य, प्रसिद्धि, भाग्यवान,
सफलता,प्रत्येक कार्य में भाग्यशाली।
9--खुद के धन को गिरवी रखना, साजोसामान, चल-
सम्पति, एक नासमझ, लापरवाह।
8--गौरवर्ण स्त्री से विशेष लगाव, खुश रखने की कला,
छोटी आयु में प्यार होना।
7--नकदी की कमी, पुराने कर्ज का भुगतान, एक
छोटा बच्चा, छोटे निवेश करेगा।

इस शकुन ज्योतिष (ताँस के पत्ते) द्वारा ...कुछ दिनों के अभ्यास से सहजता से भविष्य फल करने लगेंगे।।

बुधवार, 21 फ़रवरी 2018

पंचक विचार 2

भारतीय ज्योतिष में पंचक को अशुभ माना गया है,इसके अंतर्गत धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तरा भाद्रपद, पूर्वा भाद्रपद व रेवती नक्षत्र आते हैं,पंचक के दौरान कुछ विशेष काम नहीं करते ।

 पंचक के प्रकार
1. रोग पंचक
रविवार को शुरू होने वाला पंचक रोग पंचक कहलाता है,इसके प्रभाव से ये पांच दिन शारीरिक और मानसिक परेशानियों वाले होते हैं,इस पंचक में किसी भी तरह के शुभ काम नहीं करने चाहिए,हर तरह के मांगलिक कार्यों में ये पंचक अशुभ माना गया है।

2. राज पंचक
सोमवार को शुरू होने वाला पंचक राज पंचक कहलाता है,ये पंचक शुभ माना जाता है,इसके प्रभाव से इन पांच दिनों में सरकारी कामों में सफलता मिलती है,राज पंचक में संपत्ति से जुड़े काम करना भी शुभ रहता है।

3. अग्नि पंचक
मंगलवार को शुरू होने वाला पंचक अग्नि पंचक कहलाता है,इन पांच दिनों में कोर्ट कचहरी और विवाद आदि के फैसले,अपना हक प्राप्त करने वाले काम किए जा सकते हैं,इस पंचक में अग्नि का भय होता है,इस पंचक में किसी भी तरह का निर्माण कार्य, औजार और मशीनरी कामों की शुरुआत करना अशुभ माना गया है,इनसे नुकसान हो सकता है।

4. मृत्यु पंचक
शनिवार को शुरू होने वाला पंचक मृत्यु पंचक कहलाता है,नाम से ही पता चलता है कि अशुभ दिन से शुरू होने वाला ये पंचक मृत्यु के बराबर परेशानी देने वाला होता है,इन पांच दिनों में किसी भी तरह के जोखिम भरे काम नहीं करना चाहिए। इसके प्रभाव से विवाद, चोट, दुर्घटना आदि होने का खतरा रहता है।

5. चोर पंचक
शुक्रवार को शुरू होने वाला पंचक चोर पंचक कहलाता है.विद्वानों के अनुसार, इस पंचक में यात्रा करने की मनाही है,इस पंचक में लेन-देन, व्यापार और किसी भी तरह के सौदे भी नहीं करने चाहिए, मना किए गए कार्य करने से धन हानि हो सकती है।

6. इसके अलावा बुधवार और गुरुवार को शुरू होने वाले पंचक में ऊपर दी गई बातों का पालन करना जरूरी नहीं माना गया है,इन दो दिनों में शुरू होने वाले दिनों में पंचक के पांच कामों के अलावा किसी भी तरह के शुभ काम किए जा सकते हैं।

पंचक में न करें ये 05 काम:-
1. पंचक में चारपाई बनवाना भी अच्छा नहीं माना जाता,विद्वानों के अनुसार ऐसा करने से कोई बड़ा संकट खड़ा हो सकता है।
2. पंचक के दौरान जिस समय घनिष्ठा नक्षत्र हो उस समय घास, लकड़ी आदि जलने वाली वस्तुएं इकट्ठी नहीं करना चाहिए, इससे आग लगने का भय रहता है।
3. पंचक के दौरान दक्षिण दिशा में यात्रा नही करनी चाहिए, क्योंकि दक्षिण दिशा, यम की दिशा मानी गई है,इन नक्षत्रों में दक्षिण दिशा की यात्रा करना हानिकारक माना गया है।
4. पंचक के दौरान जब रेवती नक्षत्र चल रहा हो, उस समय घर की छत नहीं बनाना चाहिए, ऐसा विद्वानों का कहना है,इससे धन हानि और घर में क्लेश होता है।
5. पंचक में शव का अंतिम संस्कार करने से पहले किसी योग्य पंडित की सलाह अवश्य लेनी चाहिए,यदि ऐसा न हो पाए तो शव के साथ पांच पुतले आटे या कुश (एक प्रकार की घास) से बनाकर अर्थी पर रखना चाहिए और इन पांचों का भी शव की तरह पूर्ण विधि-विधान से अंतिम संस्कार करना चाहिए, तो पंचक दोष समाप्त हो जाता है। ऐसा गरुड़ पुराण में लिखा है।

यह शुभ कार्य कर सकते हैं पंचक में:-
     बृहत् होडाशास्त्र के अनुसार, पंचक में आने वाले नक्षत्रों में शुभ कार्य हो सकते हैं,पंचक में आने वाला उत्तराभाद्रपद नक्षत्र वार के साथ मिलकर सर्वार्थसिद्धि योग बनाता है, वहीं धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद व रेवती नक्षत्र यात्रा, व्यापार, मुंडन आदि शुभ कार्यों में श्रेष्ठ माने गए हैं।
   पंचक को भले ही अशुभ माना जाता है,लेकिन इस दौरान सगाई, विवाह आदि शुभ कार्य भी किए जाते हैं,पंचक में आने वाले तीन नक्षत्र पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद व रेवती रविवार को होने से आनंद आदि 28 योगों में से 3 शुभ योग बनाते हैं, ये शुभ योग इस प्रकार हैं- चर, स्थिर व प्रवर्ध,इन शुभ योगों से सफलता व धन लाभ का विचार किया जाता है..।

मुहूर्त चिंतामणि ग्रंथ के अनुसार पंचक के नक्षत्रों का शुभ फल:-
1. घनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र चल संज्ञक माने जाते हैं,इनमें चलित काम करना शुभ माना गया है जैसे- यात्रा करना, वाहन खरीदना, मशीनरी संबंधित काम शुरू करना शुभ माना गया है।
2. उत्तराभाद्रपद नक्षत्र स्थिर संज्ञक नक्षत्र माना गया है,इसमें स्थिरता वाले काम करने चाहिए जैसे- बीज बोना, गृह प्रवेश, शांति पूजन और जमीन से जुड़े स्थिर कार्य करने में सफलता मिलती है।
3. रेवती नक्षत्र मैत्री संज्ञक होने से इस नक्षत्र में कपड़े, व्यापार से संबंधित सौदे करना, किसी विवाद का निपटारा करना, गहने खरीदना आदि काम शुभ माने गए हैं।

इस तरह होता है पंचक के नक्षत्रों का अशुभ प्रभाव:-
1.धनिष्ठा नक्षत्र में आग लगने का भय रहता है.....।
2. शतभिषा नक्षत्र में वाद-विवाद होने के योग बनते हैं...।
3. पूर्वाभाद्रपद रोग कारक नक्षत्र है यानी इस नक्षत्र में बीमारी होने की संभावना सबसे अधिक होती है.।
4. उत्तरा भाद्रपद में धन हानि के योग बनते हैं...।
5. रेवती नक्षत्र में नुकसान व मानसिक तनाव होने की संभावना होती है...।

मंगलवार, 20 फ़रवरी 2018

नक्षत्र स्वामी के अनुसार पीपल वृक्ष के उपाय


ज्योतिष शास्त्र अनुसार प्रत्येक ग्रह 3, 3 नक्षत्रों के स्वामी होते है. कोई भी व्यक्ति जिस भी नक्षत्र में जन्मा हो वह उसके स्वामी ग्रह से सम्बंधित दिव्य प्रयोगों को करके लाभ प्राप्त कर सकता है। अपने विद्वान ज्योतिषी से संपर्क कर जन्म का नक्षत्र ज्ञात कर के यह सर्व सिद्ध प्रयोग करके लाभ उठा सकते है।विभिन्न ग्रहों से सम्बंधित पीपल वृक्ष के प्रयोग निम्न है...
सूर्य:-
जिन नक्षत्रों के स्वामी भगवान सूर्य देव है, उन व्यक्तियों के लिए निम्न प्रयोग है.
(अ) रविवार के दिन प्रातःकाल पीपल वृक्ष की 5 परिक्रमा करें.
(आ) व्यक्ति का जन्म जिस नक्षत्र में हुआ हो उस दिन (जो कि प्रत्येक माह में अवश्य आता है) भी पीपल वृक्ष की 5 परिक्रमा अनिवार्य करें.
(इ) पानी में कच्चा दूध मिला कर पीपल पर अर्पण करें.
(ई) रविवार और अपने नक्षत्र वाले दिन 5 पुष्प अवश्य चढ़ाए. साथ ही अपनी कामना की प्रार्थना भी अवश्य करे तो जीवन की समस्त बाधाए दूर होने लगेंगी ।

चन्द्र:-
जिन नक्षत्रों के स्वामी भगवान चन्द्र देव है, उन व्यक्तियों के लिए निम्न प्रयोग है.
(अ) प्रति सोमवार तथा जिस दिन जन्म नक्षत्र हो उस दिन पीपल वृक्ष को सफेद पुष्प अर्पण करें लेकिन पहले 4 परिक्रमा पीपल की अवश्य करें.
(आ) पीपल वृक्ष की कुछ सुखी टहनियों को स्नान के जल में कुछ समय तक रख कर फिर उस जल से स्नान करना चाहिए.
(इ) पीपल का एक पत्ता सोमवार को और एक पत्ता जन्म नक्षत्र वाले दिन तोड़ कर उसे अपने कार्य स्थल पर रखने से सफलता प्राप्त होती है और धन लाभ के मार्ग प्रशस्त होने लगते है ।

मंगल:-
जिन नक्षत्रो के स्वामी मंगल है. उन नक्षत्रों के व्यक्तियों के लिए निम्न प्रयोग है....
(अ) जन्म नक्षत्र वाले दिन और प्रति मंगलवार को एक ताम्बे के लोटे में जल लेकर पीपल वृक्ष को अर्पित करें.
(आ) लाल रंग के पुष्प प्रति मंगलवार प्रातःकाल पीपल देव को अर्पण करें.
(इ) मंगलवार तथा जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल वृक्ष की 8 परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए.
(ई) पीपल की लाल कोपल को (नवीन लाल पत्ते को) जन्म नक्षत्र के दिन स्नान के जल में डाल कर उस जल से स्नान करें.
(उ) जन्म नक्षत्र के दिन किसी मार्ग के किनारे १ अथवा 8 पीपल के वृक्ष रोपण करें.
(ऊ) पीपल के वृक्ष के नीचे मंगलवार प्रातः कुछ शक्कर डाले.
(ए) प्रति मंगलवार और अपने जन्म नक्षत्र वाले दिन अलसी के तेल का दीपक पीपल के वृक्ष के नीचे लगाना चाहिए ।

बुध:-
जिन नक्षत्रों के स्वामी बुध ग्रह है, उन नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहिए.
(अ) किसी खेत में जंहा पीपल का वृक्ष हो वहां नक्षत्र वाले दिन जा कर, पीपल के नीचे स्नान करना चाहिए.
(आ) पीपल के तीन हरे पत्तों को जन्म नक्षत्र वाले दिन और बुधवार को स्नान के जल में डाल कर उस जल से स्नान करना चाहिए.
(इ) पीपल वृक्ष की प्रति बुधवार और नक्षत्र वाले दिन 6 परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए.
(ई) पीपल वृक्ष के नीचे बुधवार और जन्म, नक्षत्र वाले दिन चमेली के तेल का दीपक लगाना चाहिए.
(उ) बुधवार को चमेली का थोड़ा सा इत्र पीपल पर अवश्य लगाना चाहिए अत्यंत लाभ होता है।

वृहस्पति:-
जिन नक्षत्रो के स्वामी वृहस्पति है. उन नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहियें.
(अ) पीपल वृक्ष को वृहस्पतिवार के दिन और अपने जन्म नक्षत्र वाले दिन पीले पुष्प अर्पण करने चाहिए.
(आ) पिसी हल्दी जल में मिलाकर वृहस्पतिवार और अपने जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल वृक्ष पर अर्पण करें
(इ) पीपल के वृक्ष के नीचे इसी दिन थोड़ा सा मावा शक्कर मिलाकर डालना या कोई भी मिठाई पीपल पर अर्पित करें.
(ई) पीपल के पत्ते को स्नान के जल में डालकर उस जल से स्नान करें
(उ) पीपल के नीचे उपरोक्त दिनों में सरसों के तेल का दीपक जलाएं ।

शुक्र:-
जिन नक्षत्रो के स्वामी शुक्र है. उन नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहियें.
(अ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल वृक्ष के नीचे बैठ कर स्नान करना.
(आ) जन्म नक्षत्र वाले दिन और शुक्रवार को पीपल पर दूध चढाना.
(इ) प्रत्येक शुक्रवार प्रातः पीपल की 7 परिक्रमा करना.
(ई) पीपल के नीचे जन्म नक्षत्र वाले दिन थोड़ासा कपूर जलाना.
(उ) पीपल पर जन्म नक्षत्र वाले दिन 7 सफेद पुष्प अर्पित करना.
(ऊ) प्रति शुक्रवार पीपल के नीचे आटे की पंजीरी सालना.

शनि:-
जिन नक्षत्रों के स्वामी शनि है. उस नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहिए.
(अ) शनिवार के दिन पीपल पर थोड़ा सा सरसों का तेल चडाना.
(आ) शनिवार के दिन पीपल के नीचे तिल के तेल का दीपक जलाना.
(इ) शनिवार के दिन और जन्म नक्षत्र के दिन पीपल को स्पर्श करते हुए उसकी एक परिक्रमा करना.
(ई) जन्म नक्षत्र के दिन पीपल की एक कोपल चबाना.
(उ) पीपल वृक्ष के नीचे कोई भी पुष्प अर्पण करना.
(ऊ) पीपल के वृक्ष पर मिश्री चडाना ।

राहू:-
जिन नक्षत्रों के स्वामी राहू है, उन नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहिए.
(अ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल वृक्ष की 21 परिक्रमा करना.
(आ) शनिवार वाले दिन पीपल पर शहद चडाना.
(इ) पीपल पर लाल पुष्प जन्म नक्षत्र वाले दिन चडाना.
(ई) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल के नीचे गौमूत्र मिले हुए जल से स्नान करना.
(उ) पीपल के नीचे किसी गरीब को मीठा भोजन दान करना ।

केतु:-
जिन नक्षत्रों के स्वामी केतु है, उन नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न उपाय कर अपने जीवन को सुखमय बनाना चाहिए.
(अ) पीपल वृक्ष पर प्रत्येक शनिवार मोतीचूर का एक लड्डू या इमरती चडाना.
(आ) पीपल पर प्रति शनिवार गंगाजल मिश्रित जल अर्पित करना.
(इ) पीपल पर तिल मिश्रित जल जन्म नक्षत्र वाले दिन अर्पित करना.
(ई) पीपल पर प्रत्येक शनिवार सरसों का तेल चडाना.
(उ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल की एक परिक्रमा करना.
(ऊ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल की थोडीसी जटा लाकर उसे धूप दीप दिखा कर अपने पास सुरक्षित रखना.
इस प्रकार से प्रत्येक व्यक्ति उपरोक्त उपाय अपने अपने नक्षत्र के अनुसार करके अपने जीवन को सुगम बना सकते है, इन उपायों को करने से तुरंत लाभ प्राप्य होता है और जीवन में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं होती है और जो बाधा हो वह तत्काल दूर होने लगती है. शास्त्र, आदि सभी महान ग्रन्थ अनुसार पीपल वृक्ष में सभी देवी देवताओं का वास होता है. उन्हीं को हम अपने जन्म नक्षत्र अनुसार प्रसन्न करते है. और आशीर्वाद प्राप्त करते है ।

जन्म कुंडली एवम संतान सुख

जन्म कुंडली से संतान सुख का विचार

स्त्री और पुरुष संतान प्राप्ति की कामना के लिए विवाह करते हैं | वंश परंपरा की वृद्धि के लिए एवम परमात्मा को श्रृष्टि रचना में सहयोग देने के लिए यह आवश्यक भी है | पुरुष पिता बन कर तथा स्त्री माता बन कर ही पूर्णता का अनुभव करते हैं | धर्म शास्त्र भी यही कहते हैं कि संतान हीन व्यक्ति के यज्ञ,दान ,तप व अन्य सभी पुण्यकर्म निष्फल हो जाते हैं | महाभारत के शान्ति पर्व में कहा गया है कि पुत्र ही पिता को पुत् नामक नर्क में गिरने से बचाता है | मुनिराज अगस्त्य ने संतानहीनता के कारण अपने पितरों को अधोमुख स्थिति में देखा और विवाह करने के लिए प्रवृत्त हुए |प्रश्न मार्ग के अनुसार संतान प्राप्ति कि कामना से ही विवाह किया जाता है जिस से वंश वृद्धि होती है और पितर प्रसन्न होते हैं|

जन्म कुंडली से संतान सुख का विचार

ज्योतिष के प्राचीन फलित ग्रंथों में संतान सुख के विषय पर बड़ी गहनता से विचार किया गया  है | भाग्य में संतान सुख है या नहीं ,पुत्र होगा या पुत्री अथवा दोनों का सुख प्राप्त होगा ,संतान कैसी निकलेगी ,संतान सुख कब मिलेगा और संतान सुख प्राप्ति में क्या बाधाएं हैं और उनका क्या उपचार है , इन सभी प्रश्नों का उत्तर पति और पत्नी की जन्म कुंडली के विस्तृत व गहन विश्लेषण से प्राप्त हो सकता है |

जन्म कुंडली के किस भाव से विचार करें

जन्म लग्न और चन्द्र लग्न में जो बली हो ,उस से पांचवें भाव से संतान सुख का विचार किया जाता है | भाव ,भाव स्थित राशि व उसका स्वामी ,भाव कारक बृहस्पति और उस से पांचवां भाव तथा सप्तमांश कुंडली, इन सभी का विचार संतान सुख के विषय में किया जाना आवश्यक है |पति एवम पत्नी दोनों की कुंडलियों का अध्ययन करके ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए |पंचम भाव से प्रथम संतान का ,उस से तीसरे भाव से दूसरी संतान का और उस से तीसरे भाव से तीसरी संतान का विचार करना चाहिए | उस से आगे की संतान का विचार भी इसी क्रम से किया जा सकता है |

संतान सुख प्राप्ति के योग

पंचम भाव में बलवान शुभ ग्रह गुरु ,शुक्र ,बुध ,शुक्ल पक्ष का चन्द्र स्व मित्र उच्च राशि – नवांश में  स्थित हों या इनकी पूर्ण दृष्टि भाव या भाव स्वामी पर हो , भाव स्थित राशि का स्वामी स्व ,मित्र ,उच्च राशि – नवांश का लग्न से केन्द्र ,त्रिकोण या अन्य शुभ स्थान पर शुभ युक्त शुभ दृष्ट हो , संतान कारक गुरु भी स्व ,मित्र ,उच्च राशि – नवांश का लग्न से शुभ स्थान पर शुभ युक्त शुभ दृष्ट हो , गुरु से पंचम भाव भी शुभ युक्त –दृष्ट हो तो निश्चित रूप से संतान सुख की प्राप्ति होती है | शनि मंगल आदि पाप ग्रह भी यदि पंचम भाव में स्व ,मित्र ,उच्च राशि – नवांश के हों तो संतान प्राप्ति करातें हैं | पंचम भाव ,पंचमेश तथा कारक गुरु तीनों जन्मकुंडली में बलवान हों तो संतान सुख उत्तम ,दो बलवान हों तो मध्यम ,एक ही बली हो तो सामान्य सुख  होता है |सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में बलवान हो ,शुभ स्थान पर हो तथा सप्तमांश लग्न भी  शुभ  ग्रहों से युक्त दृष्ट हो तो निश्चित रूप से संतान सुख की अनुभूति होती है | प्रसिद्ध फलित ग्रंथों में वर्णित कुछ प्रमुख  योग निम्नलिखित प्रकार से हैं जिनके जन्मकुंडली में होने से संतान सुख की  प्राप्ति अवश्य होती है :-

१ जन्मकुंडली में लग्नेश और पंचमेश का या पंचमेश और नवमेश का युति,दृष्टि या राशि सम्बन्ध शुभ भावों में हो |

२ लग्नेश पंचम भाव में मित्र ,उच्च राशि नवांश का हो |

३ पंचमेश पंचम भाव में ही स्थित हो |

४ पंचम भाव पर बलवान शुभ ग्रहों की पूर्ण दृष्टि हो |

५ जन्म कुंडली में गुरु स्व ,मित्र ,उच्च राशि नवांश का लग्न से शुभ भाव में स्थित हो |

६ एकादश भाव में शुभ ग्रह बलवान हो कर स्थित हों |

७ गुरु से पंचम भाव में शुभ ग्रह स्थित हो |

८ गुरु के अष्टक वर्ग में  पंचम स्थान में बलवान ग्रहों द्वारा प्रदत्त  पांच  या अधिक शुभ बिंदु हों |

९ सप्तमांश लग्न का स्वामी बलवान हो कर जन्म कुंडली में शुभ भाव में स्थित हो |

संतान सुख हीनता के योगलग्न एवम चंद्रमा से पंचम भाव में निर्बल पाप ग्रह अस्त ,शत्रु –नीच राशि नवांश में स्थित हों ,पंचम भाव पाप  कर्तरी योग से पीड़ित हो , पंचमेश और गुरु  अस्त ,शत्रु –नीच राशि नवांश में लग्न से 6,8 12 वें भाव में स्थित हों , गुरु से पंचम में पाप ग्रह हो , षष्टेश अष्टमेश या द्वादशेश का सम्बन्ध पंचम भाव या उसके स्वामी से होता हो , सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में 6,8 12 वें भाव में  अस्त ,शत्रु –नीच राशि नवांश में स्थित हों तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है | जितने अधिक कुयोग होंगे उतनी ही अधिक कठिनाई संतान प्राप्ति में होगी |

पंचम भाव में अल्पसुत राशि ( वृष ,सिंह कन्या ,वृश्चिक ) हो तथा उपरोक्त योगों में से कोई योग भी घटित होता हो तो कठिनता से संतान होती है |

गुरु के अष्टक वर्ग में गुरु से पंचम स्थान शुभ बिंदु से रहित हो तो संतानहीनता होती है |

सप्तमेश निर्बल हो कर पंचम भाव में हो तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है |

गुरु ,लग्नेश ,पंचमेश ,सप्तमेश चारों ही बलहीन हों तो अन्पतत्यता होती है |

गुरु ,लग्न व चन्द्र से पांचवें स्थान पर पाप ग्रह हों तो अन्पतत्यता होती है |

पुत्रेश पाप ग्रहों के मध्य हो तथा पुत्र स्थान पर पाप ग्रह हो ,शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो अन्पतत्यता होती है |

पुत्र या पुत्री योग

सूर्य ,मंगल, गुरु पुरुष ग्रह हैं | शुक्र ,चन्द्र स्त्री ग्रह हैं | बुध और शनि नपुंसक ग्रह हैं | संतान योग कारक पुरुष ग्रह होने पर पुत्र तथा स्त्री ग्रह होने पर पुत्री का सुख मिलता है | शनि और बुध  योग कारक हो कर विषम राशि में हों तो पुत्र व सम राशि में हो तो पुत्री प्रदान करते हैं | सप्तमान्शेष पुरुष ग्रह हो तो पुत्र तथा स्त्री ग्रह हो तो कन्या सन्तिति का सुख मिलता है | गुरु के अष्टक वर्ग में गुरु से पांचवें स्थान पर पुरुष ग्रह बिंदु दायक हों तो पुत्र ,स्त्री ग्रह बिंदु दायक हो तो पुत्री का सुख प्राप्त होता है |पुरुष और स्त्री ग्रह दोनों ही योग कारक हों तो पुत्र व पुत्री दोनों का ही सुख प्राप्त होता है | पंचम भाव तथा पंचमेश पुरुष ग्रह के वर्गों में हो तो पुत्र व स्त्री ग्रह के वर्गों में हो तो कन्या सन्तिति की प्रधानता रहती है |

पंचमेश के भुक्त नवांशों में जितने पुरुष ग्रह के नवांश हों उतने पुत्र और जितने स्त्री ग्रह के नवांश हों उतनी पुत्रियों का योग होता है | जितने  नवांशों के स्वामी कुंडली में अस्त ,नीच –शत्रु राशि में पाप युक्त या दृष्ट होंगे उतने पुत्र या पुत्रियों की हानि होगी |

संतान बाधा के कारण व निवारण के उपाय

सर्वप्रथम पति और पत्नी की जन्म कुंडलियों से संतानोत्पत्ति की क्षमता पर विचार किया जाना चाहिए |जातकादेशमार्ग तथा फलदीपिका के अनुसार पुरुष की कुंडली में सूर्य स्पष्ट ,शुक्र स्पष्ट और गुरु स्पष्ट का योग करें |राशि का योग 12 से अधिक आये तो उसे 12 से भाग दें |शेष राशि ( बीज )तथा उसका नवांश दोनों विषम हों तो संतानोत्पत्ति की  पूर्ण क्षमता,एक सम एक विषम हो तो कम क्षमता तथा दोनों सम हों तो अक्षमता होती है | इसी प्रकार स्त्री की कुंडली से चन्द्र स्पष्ट ,मंगल स्पष्ट और गुरु स्पष्ट से विचार करें |शेष राशि( क्षेत्र ) तथा उसका नवांश दोनों सम  हों तो संतानोत्पत्ति की  पूर्ण क्षमता,एक सम एक विषम हो तो कम क्षमता तथा दोनों विषम  हों तो अक्षमता होती है | बीज तथा क्षेत्र का विचार करने से अक्षमता सिद्ध होती हो तथा उन पर पाप युति या दृष्टि भी हो तो उपाय करने पर भी लाभ की संभावना क्षीण  होती है ,शुभ युति दृष्टि होने पर शान्ति उपायों से और औषधि उपचार से लाभ होता है |  शुक्र से पुरुष की तथा मंगल से स्त्री की संतान उत्पन्न करने की क्षमता का विचार करें | पुरुष व स्त्री जिसकी अक्षमता सिद्ध होती हो उसे किसी कुशल वैद्य से परामर्श करना चाहिए |

सूर्यादि ग्रह नीच ,शत्रु आदि राशि  नवांश में,पाप युक्त दृष्ट ,अस्त ,त्रिक भावों का स्वामी हो कर पंचम भाव में हों तो संतान बाधा होती है | योग कारक ग्रह की पूजा ,दान ,हवन आदि से शान्ति करा लेने पर बाधा का निवारण होता है और सन्तिति सुख प्राप्त होता है | फल दीपिका के अनुसार :-

एवं हि जन्म समये बहुपूर्वजन्मकर्माजितं  दुरितमस्य वदन्ति तज्ज्ञाः |

ततद ग्रहोक्त जप दान शुभ क्रिया भिस्तददोषशान्तिमिह शंसतु  पुत्र सिद्धयै ||

अर्थात जन्म कुंडली से यह ज्ञात होता है कि पूर्व जन्मों के किन पापों के कारण संतान हीनता है | बाधाकारक ग्रहों या उनके देवताओं का जाप ,दान ,हवन आदि शुभ क्रियाओं के करने से पुत्र प्राप्ति होती है |सूर्य संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण पितृ पीड़ा है |  पितृ शान्ति के लिए गयाजी में पिंड दान कराएं |  हरिवंश पुराण का श्रवण करें |सूर्य रत्न माणिक्य धारण करें | रविवार को सूर्योदय के बाद गेंहु,गुड ,केसर ,लाल चन्दन ,लाल वस्त्र ,ताम्बा, सोना  तथा लाल रंग के फल दान करने चाहियें | सूर्य के बीज मन्त्र ॐ  ह्रां ह्रीं ह्रों सः सूर्याय नमः  के 7000 की संख्या में जाप करने  से भी सूर्य कृत अरिष्टों की निवृति हो जाती है | गायत्री जाप से , रविवार के मीठे व्रत रखने से तथा ताम्बे के पात्र में जल में  लाल चन्दन ,लाल पुष्प ड़ाल कर नित्य सूर्य को अर्घ्य  देने पर भी शुभ  फल प्राप्त होता है |  विधि पूर्वक बेल पत्र की जड़ को रविवार में लाल डोरे में धारण करने से भी सूर्य प्रसन्न हो कर शुभ फल दायक हो जाते हैं  |

चन्द्र संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण माता का शाप या माँ दुर्गा की अप्रसन्नता है  जिसकी शांति के लिए रामेश्वर तीर्थ का स्नान ,गायत्री का जाप करें | श्वेत तथा गोल मोती चांदी की अंगूठी में रोहिणी ,हस्त ,श्रवण नक्षत्रों में जड़वा कर सोमवार या पूर्णिमा तिथि में पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की अनामिका या कनिष्टिका अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप ,पुष्प ,अक्षत आदि से पूजन कर लें |
सोमवार के नमक रहित व्रत रखें , ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः मन्त्र का ११००० संख्या में जाप करें |सोमवार को चावल ,चीनी ,आटा, श्वेत वस्त्र ,दूध दही ,नमक ,चांदी  इत्यादि का दान करें |

मंगल संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण भ्राता का शाप ,शत्रु का अभिचार या  श्री गणपति या श्री हनुमान की अवज्ञा होता है जिसकी शान्ति के लिए प्रदोष व्रत तथा रामायण का पाठ करें |लाल रंग का मूंगा  सोने या ताम्बे  की अंगूठी में  मृगशिरा ,चित्रा या अनुराधा नक्षत्रों में जड़वा कर मंगलवार  को सूर्योदय के बाद  पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की अनामिका अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ  क्रां क्रीं क्रों सः भौमाय नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , लाल पुष्प, गुड  ,अक्षत आदि से पूजन कर लें
मंगलवार के नमक रहित व्रत रखें , ॐ  क्रां क्रीं क्रों सः भौमाय नमः  मन्त्र का १०००० संख्या में जाप करें | मंगलवार को गुड शक्कर ,लाल रंग का वस्त्र और फल ,ताम्बे का पात्र ,सिन्दूर ,लाल चन्दन केसर ,मसूर की दाल  इत्यादि का दान करें |

बुध संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण मामा का शाप ,तुलसी या भगवान विष्णु की अवज्ञा है जिसकी शांति के लिए विष्णु पुराण का श्रवण ,विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें |हरे  रंग का पन्ना सोने या चांदी की अंगूठी में आश्लेषा,ज्येष्ठा ,रेवती  नक्षत्रों में जड़वा कर बुधवार को सूर्योदय के बाद  पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की कनिष्टिका अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ  ब्रां ब्रीं ब्रों सः बुधाय  नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , लाल पुष्प, गुड  ,अक्षत आदि से पूजन कर लें | बुधवार  के नमक रहित व्रत रखें ,  ॐ  ब्रां ब्रीं ब्रों सः बुधाय  नमः मन्त्र का ९००० संख्या में जाप करें | बुधवार को कर्पूर,घी, खांड, ,हरे  रंग का वस्त्र और फल ,कांसे का पात्र ,साबुत मूंग  इत्यादि का दान करें | तुलसी को जल व दीप दान करना भी शुभ रहता है |

बृहस्पति संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण गुरु ,ब्राह्मण का शाप या फलदार वृक्ष को काटना है जिसकी शान्ति के लिए  पीत रंग का  पुखराज सोने या चांदी की अंगूठी मेंपुनर्वसु ,विशाखा ,पूर्व भाद्रपद   नक्षत्रों में जड़वा कर गुरुवार को सूर्योदय के बाद  पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की तर्जनी अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ  ग्रां ग्रीं ग्रौं सःगुरुवे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , पीले पुष्प, हल्दी ,अक्षत आदि से पूजन कर लें |पुखराज की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न सुनैला या पीला जरकन भी धारण कर सकते हैं | केले की जड़ गुरु पुष्य योग में धारण करें |गुरूवार के नमक रहित व्रत रखें ,  ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सःगुरुवे  नमः मन्त्र का १९०००  की संख्या में जाप करें | गुरूवार को घी, हल्दी, चने की दाल ,बेसन पपीता ,पीत रंग का वस्त्र ,स्वर्ण, इत्यादि का दान करें |फलदार पेड़ सार्वजनिक स्थल पर लगाने से या ब्राह्मण विद्यार्थी को भोजन करा कर दक्षिणा देने और गुरु की पूजा सत्कार से भी बृहस्पति प्रसन्न हो कर शुभ फल देते हैं |

शुक्र संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण गौ -ब्राह्मण ,किसी साध्वी स्त्री को कष्ट देना या पुष्प युक्त पौधों को काटना है  जिसकी शान्ति के लिए गौ दान ,ब्राह्मण दंपत्ति को वस्त्र फल आदि का दान ,श्वेत रंग का  हीरा प्लैटिनम या चांदी की अंगूठी में  पूर्व फाल्गुनी ,पूर्वाषाढ़ व भरणी नक्षत्रों में जड़वा कर शुक्रवार को सूर्योदय के बाद  पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ  द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय  नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , श्वेत  पुष्प, अक्षत आदि से पूजन कर लें

हीरे की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न श्वेत जरकन भी धारण कर सकते हैं |शुक्रवार  के नमक रहित व्रत रखें ,  ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय  नमः मन्त्र का १६ ०००  की संख्या में जाप करें | शुक्रवार को  आटा ,चावल दूध ,दही, मिश्री ,श्वेत चन्दन ,इत्र, श्वेत रंग का वस्त्र ,चांदी इत्यादि का दान करें |

शनि संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण पीपल का वृक्ष काटना या प्रेत बाधा है जिसकी शान्ति के लिए पीपल के पेड़ लगवाएं,रुद्राभिषेक करें ,शनि की लोहे की मूर्ती तेल में डाल कर दान करें|  नीलम लोहे या सोने की अंगूठी में पुष्य ,अनुराधा ,उत्तरा भाद्रपद नक्षत्रों में जड़वा कर शनिवार  को  सूर्यास्त  के बाद  पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ  प्रां प्रीं प्रों  सः शनये  नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , नीले पुष्प,  काले तिल व अक्षत आदि से पूजन कर लें|

नीलम की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न संग्लीली , लाजवर्त भी धारण कर सकते हैं | काले घोड़े कि नाल या नाव के नीचे के कील  का छल्ला धारण करना भी शुभ रहता है |शनिवार के नमक रहित व्रत रखें | ॐ  प्रां प्रीं प्रों  सः शनये  नमः मन्त्र का २३०००  की संख्या में जाप करें | शनिवार को काले उडद ,तिल ,तेल ,लोहा,काले जूते ,काला कम्बल , काले  रंग का वस्त्र इत्यादि का दान करें |श्री हनुमान चालीसा का नित्य पाठ करना भी शनि दोष शान्ति का उत्तम उपाय है |

दशरथ  कृत शनि  स्तोत्र

नमः कृष्णाय नीलाय शितिकंठनिभाय च |नमः कालाग्नि रूपाय कृतान्ताय च वै नमः ||

नमो निर्मोसदेहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च | नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ||

नमः पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे च वै पुनः | नमो दीर्घाय शुष्काय कालद्रंष्ट नमोस्तुते||

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरिक्ष्याय वै नमः|  नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करालिने ||

नमस्ते सर्व भक्षाय बलि मुख नमोस्तुते|सूर्य पुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ||

अधोदृष्टे नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोस्तुते| नमो मंद गते तुभ्यम निंस्त्रिशाय नमोस्तुते ||

तपसा दग्धदेहाय नित्यम योगरताय च| नमो नित्यम क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नमः||

ज्ञानचक्षुर्नमस्ते ऽस्तु    कश्यपात्मजसूनवे |तुष्टो ददासि वै राज्यम रुष्टो हरसि तत्क्षणात ||

देवासुर मनुष्याश्च सिद्धविद्याधरोरगा | त्वया विलोकिताः सर्वे नाशं यान्ति समूलतः||

प्रसादं कुरु में देव  वराहोरऽहमुपागतः ||पद्म पुराण में वर्णित शनि के  दशरथ को दिए गए वचन के अनुसार जो व्यक्ति श्रद्धा पूर्वक शनि की लोह प्रतिमा बनवा कर शमी पत्रों से उपरोक्त स्तोत्र द्वारा पूजन करके तिल ,काले उडद व लोहे का दान प्रतिमा सहित करता है तथा नित्य विशेषतः शनिवार को भक्ति पूर्वक इस स्तोत्र का जाप करता है उसे दशा या गोचर में कभी शनि कृत पीड़ा नहीं होगी और शनि द्वारा सदैव उसकी रक्षा की जायेगी |

राहु संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण सर्प शाप है जिसकी शान्ति के लिए नाग पंचमी में नाग पूजा करें ,गोमेद पञ्च धातु की अंगूठी में आर्द्रा,स्वाती या शतभिषा नक्षत्र  में जड़वा कर शनिवार  को  सूर्यास्त  के बाद  पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ  भ्रां भ्रीं भ्रों सः राहवे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , नीले पुष्प,  काले तिल व अक्षत आदि से पूजन कर लें|रांगे का छल्ला धारण करना भी शुभ रहता है | ॐ  भ्रां भ्रीं भ्रों सः राहवे नमः मन्त्र का १८००० की संख्या में जाप करें | शनिवार को काले उडद ,तिल ,तेल ,लोहा,सतनाजा ,नारियल ,  रांगे की मछली ,नीले रंग का वस्त्र इत्यादि का दान करें | मछलियों को चारा देना भी राहु शान्ति का श्रेष्ठ उपाय है |

केतु संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण ब्राह्मण को कष्ट देना है जिसकी शान्ति के लिए ब्राह्मण का सत्कार करें , सतनाजा व नारियल का दान करें और ॐ स्रां  स्रीं  स्रों सः केतवे नमः का १७००० की संख्या में जाप करें |

संतान बाधा दूर करने के कुछ शास्त्रीय उपाय

जन्म कुंडली में अन्पत्तयता दोष स्थित हो या  संतान भाव निर्बल एवम पीड़ित होने से संतान सुख की प्राप्ति में विलम्ब या  बाधा हो तो निम्नलिखित पुराणों तथा प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में वर्णित शास्त्रोक्त उपायों में से किसी एक या दो उपायों को श्रद्धा पूर्वक  करें | आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी |

1. संकल्प पूर्वक  शुक्ल पक्ष से गुरूवार के १६  नमक रहित मीठे व्रत रखें | केले की पूजा करें तथा ब्राह्मण बटुक को भोजन करा कर यथा योग्य दक्षिणा दें | १६ व्रतों के बाद उद्यापन कराएं  ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं गुरुवे नमः का जाप करें |
2. पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की तर्जनी में गुरु रत्न पुखराज स्वर्ण में विधिवत  धारण करें |
3. यजुर्वेद के मन्त्र दधि क्राणों ( २३/३२)  से हवन कराएं |
4. अथर्व वेद के मन्त्र  अयं ते योनि ( ३/२०/१) से जाप व हवन कराएं |

5 संतान गोपाल स्तोत्र

ॐ देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि में तनयं कृष्ण त्वामहम शरणम गतः |

उपरोक्त मन्त्र की १०००  संख्या का जाप प्रतिदिन १०० दिन तक करें | तत्पश्चात १०००० मन्त्रों से हवन,१००० से तर्पण ,१०० से मार्जन तथा १० ब्राह्मणों को भोजन कराएं |

6    संतान गणपति स्तोत्र

श्री गणपति की दूर्वा से पूजा करें तथा उपरोक्त स्तोत्र का प्रति दिन ११ या २१ की संख्या में पाठ करें |

7. संतान कामेश्वरी प्रयोग

उपरोक्त यंत्र को शुभ मुहूर्त में अष्ट गंध से भोजपत्र पर बनाएँ तथा षोडशोपचार पूजा करें तथा  ॐ  क्लीं ऐं ह्रीं श्रीं नमो भगवति संतान कामेश्वरी गर्भविरोधम निरासय निरासय सम्यक शीघ्रं संतानमुत्पादयोत्पादय स्वाहा ,मन्त्र का नित्य जाप करें | ऋतु काल के बाद पति और पत्नी जौ के आटे में शक्कर मिला कर ७ गोलियाँ बना लें तथा उपरोक्त मन्त्र से २१ बार अभिमन्त्रित करके एक ही दिन में खा लें तो लाभ होगा | |
8.पुत्र प्रद प्रदोष व्रत ( निर्णयामृत )शुक्ल  पक्ष की जिस त्रयोदशी को शनिवार हो उस दिन से साल भर यह प्रदोष व्रत करें|प्रातःस्नान करके पुत्र प्राप्ति हेतु व्रत का संकल्प करें | सूर्यास्त के समय शिवलिंग की भवाय भवनाशाय मन्त्र से पूजा करें  जौ का सत्तू ,घी ,शक्कर का भोग लगाएं | आठ दिशाओं में  दीपक रख कर  आठ -आठ बार प्रणाम करें | नंदी को जल व दूर्वा अर्पित करें तथा उसके सींग व पूंछ का स्पर्श करें | अंत में शिव पार्वती की आरती पूजन करें |

9. पुत्र व्रत (वराह पुराण )

भाद्रपद कृष्ण सप्तमी को उपवास करके विष्णु का पूजन करें | अगले दिन ओम् क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपी जन वल्लभाय  स्वाहा मन्त्र से तिलों की १०८ आहुति दे कर ब्राह्मण भोजन कराएं  | बिल्व फल खा कर षडरस भोजन करें | वर्ष भर प्रत्येक मास की सप्तमी को इसी प्रकार व्रत रखने से पुत्र प्राप्ति होगी

स्त्री की कुंडली में जो ग्रह निर्बल व पीड़ित होता है उसके महीने  में गर्भ  को भय रहता है अतः उस  महीने के अधिपति ग्रह से सम्बंधित पदार्थों का निम्न लिखित सारणी के अनुसार  दान करें जिस से गर्भ को भय नहीं रहेगा

गर्भ मास के अधिपति ग्रह व उनका दान

गर्भाधान से नवें महीने तक प्रत्येक मास के अधिपति ग्रह के पदार्थों का उनके वार में दान करने से गर्भ क्षय का भय नहीं रहता |  गर्भ मास के अधिपति ग्रह व उनके दान निम्नलिखित हैं ——

प्रथम मास — – शुक्र  (चावल ,चीनी ,गेहूं का आटा ,दूध ,दही ,चांदी ,श्वेत वस्त्र व दक्षिणा शुक्रवार को  )

द्वितीय मास —मंगल ( गुड ,ताम्बा ,सिन्दूर ,लाल वस्त्र , लाल फल व दक्षिणा मंगलवार को  )

तृतीय मास —  गुरु (    पीला वस्त्र ,हल्दी ,स्वर्ण , पपीता ,चने कि दाल , बेसन व दक्षिणा गुरूवार को  )

चतुर्थ मास —  सूर्य (    गुड ,  गेहूं ,ताम्बा ,सिन्दूर ,लाल वस्त्र , लाल फल व दक्षिणा रविवार को )

पंचम मास —-  चन्द्र (चावल ,चीनी ,गेहूं का आटा ,दूध ,दही ,चांदी ,श्वेत वस्त्र व दक्षिणा सोमवार को )

षष्ट मास — –-शनि ( काले तिल ,काले उडद ,तेल ,लोहा ,काला वस्त्र व दक्षिणा  शनिवार को )

सप्तम मास —– बुध ( हरा वस्त्र ,मूंग ,कांसे का पात्र ,हरी सब्जियां  व दक्षिणा बुधवार को )

अष्टम मास —-   गर्भाधान कालिक लग्नेश ग्रह  से सम्बंधित दान उसके वार में |यदि पता न हो तो अन्न ,वस्त्र व फल का दान अष्टम मास लगते ही कर  दें |

नवं मास —-    चन्द्र (चावल ,चीनी ,गेहूं का आटा ,दूध ,दही ,चांदी ,श्वेत वस्त्र व दक्षिणा सोमवार को )

संतान सुख की प्राप्ति के समय का निर्धारण

पति और पत्नी दोनों की कुंडली का अवलोकन करके ही संतानप्राप्ति के समय का निर्धारण करना चाहिए |पंचम भाव में स्थित बलवान और शुभ फलदायक ग्रह ,पंचमेश और उसका नवांशेश ,पंचम भाव तथा पंचमेश को देखने वाले शुभ फलदायक ग्रह,पंचमेश से युक्त ग्रह ,सप्तमान्शेष ,बृहस्पति ,लग्नेश तथा सप्तमेश अपनी दशा अंतर्दशा प्रत्यंतर दशा में संतान सुख की प्राप्ति करा सकते हैं |

दशा के अतिरिक्त गोचर विचार भी करना चाहिए | गुरु गोचर वश लग्न ,पंचम भाव ,पंचमेश से युति या दृष्टि सम्बन्ध करे तो संतान का सुख मिलता है | लग्नेश तथा पंचमेश के राशि अंशों का योग करें | प्राप्त राशि अंक से सप्तम या त्रिकोण स्थान पर गुरु का गोचर संतान प्राप्ति कराता है | गोचर में लग्नेश और पंचमेश का युति , दृष्टि या राशि  सम्बन्ध हो तो संतानोत्पत्ति होती है | पंचमेश लग्न में जाए या लग्नेश पंचम भाव में जाए तो संतान सम्बन्धी सुख प्राप्त होता है | बृहस्पति से पंचम भाव का स्वामी जिस राशि नवांश में है उस से त्रिकोण (पंचम ,नवम स्थान ) में गुरु का गोचर संतान प्रद होता है |लग्नेश या पंचमेश अपनी राशि या उच्च राशि में भ्रमण शील हों तो संतान प्राप्ति हो सकती है | लग्नेश ,सप्तमेश तथा पंचमेश तीनों का  का गोचरवश युति दृष्टि या राशि सम्बन्ध बन रहा हो तो संतान लाभ होता है |

स्त्री की जन्म राशि से चन्द्र 1 ,2 ,4 ,5 ,7 ,9 ,1 2  वें स्थान पर हो तथा मंगल से दृष्ट हो और पुरुष जन्म राशि से चन्द्र 3 ,6 10 ,11 वें स्थान पर गुरु से दृष्ट हो तो स्त्री -पुरुष का संयोग गर्भ धारण कराने वाला होता है | आधान काल में गुरु लग्न ,पंचम या नवम में हो और पूर्ण चन्द्र व् शुक्र अपनी राशि के हो तो अवश्य संतान लाभ होता है |

बुधवार, 14 फ़रवरी 2018

कमजोर शनि के कारण,परिणाम और उपाय

आज इस नए लेख के माध्यम से मै आपको "कमजोर शनि ग्रह,उसके परिणाम और उपाय पर संक्षिप्त जानकारी दूँगा।

*पहले ये जानते है कि किन परिस्थितियों में शनि कमजोर होता है:-

*शनि यदि मेष,वृश्चिक,सिंह या कर्क राशि में हो तो कमजोर माना जाता है क्योकि ये तीनो राशि उसकी शत्रु राशियाँ है। यहाँ ये मानकर चलना होगा की मेष राशि में शनि का नीचभंग ना हो रहा हो या नवमांश में शनि उच्च राशि में ना हो,नही तो हम जिन परिणामो की चर्चा करेगे वो नीचभंग वाले शनि पर लागू नही होगे:-

*यदि कुंडली में शनि,मजबूत सूर्य या मंगल के साथ युति में हो और कम से कम 6° का अंतर हो तब द्वंदयुद्ध(Planetary War) की स्थिति बन जाती है और ऐसी अवस्था में शनि कमजोर पड़ जाता है॥

*शनि यदि कुंडली में राहू-केतु के नकारात्मक प्रभाव से पीड़ित हो तो शनि कमजोर माना जाता है॥

अब जानते है कमजोर शनि के परिणाम:-

*कमजोर शनि सबसे पहले जातक के जीवन में आलस्य की मात्रा को बहुत बड़ा देता है।जातक अनुशासनहीन और अव्यवस्थित जीवन जीता है।

कमजोर शनि के कुछ उदाहरण:-

*1.गृहणिया बर्तन धोना या कपडे धोने का काम सुबह से शाम पर टालती हैं।

*2.बच्चे होमवर्क अंतिम समय में करते है या परीक्षा के 1 दिन पहले किताब खोलकर उसका श्रीगणेश करते है।

*3.पुरुष ज्यादातर ऑफिस लेट जाते है,कामचोरी करते है,बाल-नाख़ून-दाढ़ी साफ़ करने का समय नही निकाल पाते।

*कमजोर शनि जातक की एकाग्रता को बहुत कम कर देता है साथ ही जातक को लक्ष्यविहीन बना देता है अर्थात जातक जीवन के मकसद को ही भूल जाता है।

*कमजोर शनि से घर की मशीनरी एक के बाद एक अचानक ख़राब होने लगती है जैसे घडी बंद पड़ जाना,Iron ख़राब हो जाना,पंखा ख़राब होना आदि।

*कमजोर शनि जातक को बहुत जल्दी कर्ज में डुबा देता है और ये कर्ज जल्दी नही चुकता।जातक को काफी संघर्ष और लम्बे अंतराल के बाद ये कर्ज से छुटकारा मिलता है।

*कमजोर शनि से आपके अधिनस्थ कर्मचारी या नौकर आपके विरुद्ध हो जाते है।आपको उनसे संबंधित कष्ट मिलते है जैसे पूरे स्टाफ ने मिलकर आपकी Staff Complaint ऑफिसर को कर दी या किसी नौकर/कामवाली बाई ने आपके ऊपर झेडखानी का झूठा मुकदमा कर दिया।

*कमजोर शनि से जातक में धैर्य बिलकुल नही होता और अक्सर वो जल्दबाजी में गलत निर्णय ले बैठते है।
   
*इसका बेहतरीन उदाहरण-कई जातक अपनी कुंडली डालकर ज्योतिषी के पीछे हाथ-धोकर पड़ जाते है कि अभी सब बताओ..वही बलवान शनि वाले अपने धैर्य का परिचय देते है।

*एक अफ़्रीकी क्रिकेटर जो ज्योतिषी को बहुत मानता है अपने जिंदगी के सबसे  ख़राब फॉर्म से गुजर रहा था...अंत में वो एक ज्योतिष से मिला,ज्योतिष ने उससे पूछा की आपने कभी किसी वेटर को गाली या अपशब्द कहा है तो उस क्रिकेटर ने कहा की "कुछ महीनो पहले एक Bar में उसने काफी ज्यादा पी ली थी और बिल को लेकर हुए विवाद में उसने वेटर को काफी गाली दी थी"..बस फिर क्या,वेटर/सेवक  शनि के प्रतिनिधित्व में आते है अतः कमजोर शनि ने उसका धैर्य तोडा और इस कारण वो जल्दबाजी में गलत शॉट मारकर आउट हो रहा था।

*कमजोर शनि जातक को अच्छी आदतो से दूर करके बुरी आदत की ओर ले जाता है जैसे शराब/गुटखा/बीडी का सेवन,जुआ खेलना,सट्टा लगाना,अश्लील किताबे पढना आदि॥

*कमजोर शनि जातक में षडरिपु(काम,क्रोध,लोभ,मोह,मद,मत्सर) की मात्रा में वृद्धि करता है।जातक के जीवन में सात्विकता कम हो जाती है और तामसिकता में वृद्धि होती है।

कमजोर शनि को मजबूत करने के उपाय:-

*सबसे प्रभावशाली उपाय यही है की जातक को सुबह जल्दी उठना चाहिये और आलस्य का त्याग कर देना चाहिये। इससे धीरे-धीरे शनि मजबूत होकर अच्छे परिणाम देता है।

*सुबह नहाकर सबसे पहले एक बार हनुमान चालीसा पढ़े,मुस्लिम मित्र दिन की सबसे पहली नमाज जो सुबह तडके होती है वो जरुर अदा करे।

*जातक को कम से कम 5 मिनिट से चालु करके 20 मिनिट तक प्राणायाम करना चाहिए क्योकि कमजोर शनि एकाग्रता कम करता है और प्राणायाम(Meditation) से एकाग्रता बढती है॥

*जातक को सुबह सूर्य को अर्घ देना चाहिये क्योकि इससे शरीर में नयी ऊर्जा का संचार होता है।

*जातक को कोई भी काम Pending नही रखना चाहिए।जो काम हो संभव हो तो तुरंत ख़त्म करो।

*जातक को जितनी जरुरत हो उतना ही कर्ज लेना चाहिये और कर्ज के पैसे का दुरुपयोग कतई ना करे।

*अपने अधिनस्थ कर्मचारी या नौकर/सफाई कर्मचारी का सम्मान करे...कभी भी भिखारी को "चल हट"/"भिखारी कही का" ऐसा कहकर ना धुत्कारे बल्कि विनम्रता से मना कीजिये।

*आप कभी भी परिवार के साथ खाना खाने होटल जाये या तो अपनी आर्थिक स्थिति अनुसार वेटर को ₹10/₹20/₹50 अवश्य टिप दे और संभव हो तो उसके हाथो में स्वंय दे।

*जातक को कभी भी फटे जूते/चप्पल नही पहनना चाहिए,उन्हें तुरंत किसी मंदिर के पास छोड़ आना चाहिए।

*घोड़े की नाल/नाव की कील/लोहे का छल्ला दाये हाथ की मध्यमा ऊँगली में शनिवार की शाम को धारण करे।

*शनिवार के शाम को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों/तिल के तेल का दीपक लगाकर अपनी मनोकामना माँगे।

*अंत में जब तक आप आलस्य नही त्यागोगे तो कोई उपाय काम नही करेगे अतः पहले आलस्य का त्याग करे।

*यदि आप ऊपर बताये गये उपाय श्रद्धापूर्वक करेगे तो आपका जीवन ना सिर्फ वैभवमयी होगा बल्कि तेजसपूर्ण भी होगा।

मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018

ग्रहों से होने वाली परेशानियां

प्रत्येक जातक की कुंडली में अशुभ ग्रहों की स्थिति अलग-अलग रहती है। कुंडली में कुल बारह भाव होते हैं सभी भाव के अलग-अलग स्वामी होते हैं। आप खुद ही देख सकते हैं की कौन सा ग्रह खराब है और उसका उपाय कैसे करें। ग्रहों से होने वाली परेशानियां इस प्रकार हैं।

सूर्य : सरकारी नौकरी या सरकारी कार्यों में परेशानी, सिर दर्द, नेत्र रोग, हृदय रोग, अस्थि रोग, चर्म रोग, पिता से अनबन आदि।

चंद्र : मानसिक परेशानियां, अनिद्रा, दमा, कफ, सर्दी, जुकाम, मूत्र रोग, स्त्रियों को मासिक धर्म, निमोनिया।

मंगल : अधिक क्रोध आना, दुर्घटना, रक्त विकार, कुष्ठ रोग, बवासीर, भाइयों से अनबन आदि।

बुध : गले, नाक और कान के रोग, स्मृति रोग, व्यवसाय में हानि, मामा से अनबन आदि।

गुरु : धन व्यय, आय में कमी, विवाह में देरी, संतान में देरी, उदर विकार, गठिया, कब्ज, गुरु व देवता में अविश्वास आदि।

शुक्र : जीवन साथी के सुख में बाधा, प्रेम में असफलता, भौतिक सुखों में कमी व अरुचि, नपुंसकता, मधुमेह, धातु व मूत्र रोग आदि।

शनि : वायु विकार, लकवा, कैंसर, कुष्ठ रोग, मिर्गी, पैरों में दर्द, नौकरी में परेशानी आदि।

राहु : त्वचा रोग, कुष्ठ, मस्तिष्क रोग, भूत प्रेत वाधा, दादा से परेशानी आदि।

केतु : नाना से परेशानी, भूत-प्रेत, जादू टोने से परेशानी, रक्त विकार, चेचक आदि।

भावानुसार मंगल के उपाय

प्रथम भाव मे मंगल
1. मंगल को शुभ बनाने के लिए हनुमान चालीसा का प्रतिदिन पाठ करें.
2. मिट्टी के घड़े में गुड़ डालकर मंगलवार को सुनसान स्‍थान में रख आएं.
3. लाल रंग के वस्त्रों का ज्यादा उपयोग करें.
4. मंगलवार का व्रत रखें.
5. सिद्ध मंगल यंत्र धारण करें.

दूसरे भाव में मंगल
कुण्डली के दूसरे खाने में मंगल बैठा हो तो जातक 9 वर्षों तक रोग से पीड़ित रहता है. यदि जातक अपने भाइयों से छोटा है तो बड़े भाई की मृत्यु का योग बनता है. विवाहित जीवन में पति-पत्नी में आपसी क्लेश बना रहेगा. मंगल अशुभ हो तो जातक की मृत्यु लड़ाई-झगड़े में होने की आशंका रहती है.
उपाय और टोटके
1. दोपहर के समय बच्चों को फल बांटें.
2. मंगलवार का व्रत रखें.
3. लाल रूमाल सदैव अपने पास रखें.
4. सवा किलो या सवा पांच किलो रे‍वड़ियां बहते जल में प्रवाहित करें.
5. पांच छुहारे जल में उबालकर नदी में प्रवाहित करें.

तीसरे भाव में मंगल 
कुण्डली में तीसरे खाने में मंगल बैठा हो तो जातक शराबी होता है. जातक चालबाज एवं धोखेबाज होता है. मंगल के अशुभ प्रभाव से जातक ब्लड प्रेशर का रोगी हो सकता है. मंगल अशुभ होकर जातक की हत्या भी करवा सकता है. मंगल की अशुभता के कारण जातक अपना काम स्वयं बिगाड़ लेता है.
उपाय एवं टोटके
1. चापलूस मित्रों से दूर रहें.
2. साढ़े पांच रत्ती मूंगा (रत्न) सोने की अंगूठी में जड़वाकर मंगलवार के दिन धारण करें.
3. मूंगा धारण करने की शक्ति (क्षमता) न हो तो 'सिद्ध मंगल यंत्र' धारण करें.
4. हाथी दांत से बनी वस्तुएं घर में न रखें.
5. चांदी की अंगूठी बाएं हाथ की उंगली में धारण करें.

चौथे भाव में मंगल
कुण्डली में चौथे खाने में मंगल बैठा हो तो जातक मांगलिक होता है. जातक संतानहीन हो सकता है. जातक रोग से पीड़ित रहता है. क्रोध के कारण स्वयं की हानि होती है. विवाह में समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं. जातक वृद्धावस्था में अंधा हो सकता है. मंगल चौथे खाने में हो और बुध 12वें हो तो जातक पूर्ण रूप से दरिद्र होता है.
उपाय एवं टोटके
1. त्रिधातु की अंगूठी धारण करें.
2. 'सिद्ध मंगल यंत्र' गले में अथवा दाहिने बाजू पर धारण करें. सिद्ध किया हुआ मंगल यंत्र शीघ्र शुभ फल प्रदान करता है.
3. देवताओं की मूर्तियां घर में स्‍थापित न करें.
4. अपने बिस्तर, तकिया आदि पर लाल रंग का कवर चढ़ाएं.

पांचवें भाव में मंगल
कुण्डली के पांचवें खाने (भाव) में मंगल बैठा हो तो जातक (जिसकी जन्म कुण्डली हो), पाप कर्म में लिप्त शराबी हो सकता है. जीवन में अनेक परेशानियां आएंगी. मिरगी का रोगी भी हो सकता है. जातक नेत्र रोगी भी हो सकता है. जातक की स्त्री गर्भस्राव रोग से परेशान हो सकती है.
उपाय एवं टोटके
1. रात को सिरहाने तांबे के लोटे में पानी भरकर रखें और सुबह उठकर उस जल को पीपल के वृक्ष की जड़ में डाल दें.
2. आंगन में नीम का पेड़ लगाएं.
3. 'सिद्ध मंगल यंत्र' गले में धारण करें या सवा पांच रत्ती मूंगा की अंगूठी बनवाकर दाहिने हाथ की उंगली में मंगलवार के दिन धारण करें.
4. मंगलवार का व्रत रखें.
5. मंगलवार को हनुमान मंदिर में जाकर हनुमान चालीसा बांटें.
6. वैदिक विधि से 'मंगल शांति पाठ' कराएं.

छठे भाव में मंगल
जिसकी कुण्डली में मंगल छठे भाव में होता है वैसा जातक बवासीर या ब्लडप्रेशर का रोगी हो सकता है. जातक कामुक स्वभाव होता है और पराई स्त्रियों पर बुरी नीयत रखता है. मंगल छठे भाव में हो और बुध आठवें भाव हो तो जातक की छोटी उम्र में ही उसकी माता का देहान्त हो जाने की आशंका रहती है. मंगल छठे और बुध 12वें भाव में हो तो जातक के भाई-बहनों की स्थि‍ति दयनीय होती है.
उपाय एवं टोटके
1. चार सूखे खड़कते ना‍रियल मंगलवार के दिन नदी में प्रवाहित करें.
2. मंगलवार के दिन हनुमानजी को सिंदूर चढ़ाएं और पीले लड्डू का प्रसाद चढ़ाकर लोगों को बांटें.
3. 'सिद्ध मंगल यंत्र' धारण करने से अशुभता का नाश होगा और शुभ फल मिलेगा.
4. हनुमान चालीसा या हनुमान स्त‍ुति बांटें.
5. कुंवारी कन्याओं का पूजन करें.

सातवें भाव में मंगल
कुण्डली के सातवें घर (भाव) में मंगल बैठा हो तो जातक की स्त्री क्रोधी स्वभाव की होगी. जातक स्वयं क्रोध के कारण अपना नुकसान कर लेता है. जातक प्राय: पुत्रहीन होता है. ऐसे जातकों की पराई स्त्री से संबंध होते हैं.
उपाय एवं टोटके
1. चांदी की ठोस गोली बनवाकर सदैव अपनी जेब में रखें.
2. मंगलवार के दिन लस्सी जरूर पियें.
3. लाल रूमाल अपनी जेब में रखें.
4. बहन को मंगलवार के दिन अपने हाथ से मिठाई खिलाएं.
5. 'सिद्ध मंगल यंत्र' धारण करें.
6. हनुमानजी का व्रत रखें, हनुमान चालीसा बांटें.

आठवें भाव में मंगल
कुण्डली में आठवें भाव (घर) में मंगल बैठा हो तो मंगल के अशुभ प्रभाव से जातक अल्प आयु वाला तथा दरिद्र होता है. जातक के लिए 28 वर्षों तक मौत का फंदा बना रहता है. मंगल आठवें भाव में हो और बुध छठे भाव में हो तो जातक की माता की मृत्यु जातक के बचपन में हो जाने की आशंका रहती है. जातक 'मर्डर केस' में फंस सकता है. जातक रोगी होता है.
उपाय एवं टोटके
1. विधवा स्त्री की सेवा करें.
2. चांदी की चेन धारण करें.
3. 'सिद्ध मंगल यंत्र' जरूर धारण करें.
4. त्रिधातु की अंगूठी धारण करें.
5. हनुमान चालीसा का प्रतिदिन पाठ करें और मंगलवार के दिन हनुमान चालीसा हनुमानजी के मंदिर में जाकर बांटें.
6. लाल रूमाल सदैव अपने पास रखें.

नौवें भाव में मंगल
कुण्डली में नवम् भाव में मंगल हो तो जातक क्रोधी स्वभाव का होता है. विद्या अधूरी रह जाती है. जातक झूठा होता है. ईमानदार हो फिर भी बदनामी मिलती है. जीवन के क्षेत्र में सफलता कम मिलती है. ऐसा जाकत स्त्री की कमाई पर जीवन-यापन करता है.
उपाय एवं टोटका
1. मंगलवार को 21, 51 या 101 हनुमान चालीसा बांटें.
2. मंगलवार को हनुमानजी को सिंदूर एवं लड्डू चढ़ाएं.
3. 'सिद्ध मंगल यंत्र' धारण करें.
4. तांबे के सात चौकोर टुकड़े बनाकर मिट्टी के नीचे दबा दें.
5. प्रतिदिन 'हनुमान स्तुति' का पाठ करें.

दसवें भाव में मंगल
दसवें खाने में अगर मंगल बैठा हो तो जातक को चोरी के आरोप में जेल जाना पड़ सकता है. मंगल दसवें, सूर्य चौथे, बुध छठे खाने में हो तो जातक एक आंख का काना हो सकता है. मंगल के साथ कोई पापी ग्रह हो तो जातक बर्बाद हो जाता है. मंगल के अशुभ प्रभाव से जातक 15 वर्ष तक बीमारी से पी‍ड़ित हो सकता है. उपाय
उपाय एवं टोटका 
1. संतानहीन की सेवा करें.
2. घर में हिरण पालें.
3. मंगलवार को मीठा भोजन करें.
4. हनुमानजी को लड्‍डू चढ़ाएं.
5. मंगलवार को हनुमान चालीसा बांटें.

ग्‍यारहवें भाव में मंगल
मंगल ग्यारहवें भाव में हो तो जातक कर्जदार रहता है. जातक की संतान झगड़ालू होती है. जातक को मित्रों से धोखे मिलते हैं. शिक्षा में विघ्न बाधाएं उत्पन्न होती हैं. आजीविका के लिए कठोर संघर्ष करना पड़ सकता है.
उपाय एवं टोटका
1. बिना जोड़ वाला सोने का छल्ला धारण करें.
2. काला कुत्ता पालें.
3. केसर का तिलक लगाएं.
4. कर्ज से मुक्ति के लिए प्रभावकारी 'सिद्ध मंगल यंत्र' धारण करें.
5. मंगल व्रत रखें और पीले लड्‍डू का प्रसाद बांटें.

बारहवें भाव में मंगल 
कुण्डली में बारहवें भाव में अगर मंगल हो तो जातक को शत्रुओं से हानि की आशंका रहती है. लाभ से अधिक व्यय होगा. घर में चोरी होने का भय बना रहता है. पत्नी से अनबन की संभावना प्रबल रहती है. जातक संतानहीन हो सकता है.
उपाय एवं टोटका
1. चांदी की चेन धारण करें.
2. लाल रूमाल सदैव अपने पास रखें.
3. एक किलो पतासे मंगल के दिन बहते जल में प्रवाहित करें.
4. 'सिद्ध मंगल यंत्र' धारण करने से शुभ लाभ होगा.
5. तंदूर में मीठी रोटी सेंककर कुत्ते को खिलाएं.
6. साढ़े पांच रत्ती मूंगा सोने की अंगूठी में जड़वाकर धारण करें.

भाग्य में बाधा डालने वाले कुछ योग एवं उपाय

भाग्य में बाधा डालने वाले कुछ योग :-

1 लग्नेश यदि नीच राशि में, छठे, आठवे, 12 भाव में हो तो भाग्य में बाधा आती है।

2 राहू यदि लग्न में नीच का शनि जन्मपत्री में किसी भी स्थान में हो, तथा मंगल चतुर्थ स्थान में हो तो भाग्य में बांधा आती है।

3 लग्नेश सूर्य चंद्र व राहू के साथ 12वें भाव में हो तो भाग्य में बाधा आती है।

4 लग्नेश यदि तुला राशि के सूर्य तथा शनि के साथ छठे, 8वें में हो तो जातक का भाग्य साथ नहीं देता।

5 पंचम भाव का स्वामी यदि नीच का हो या वक्री हो तथा छठे, आठवें, 12वें भाव में स्थित हो तो भाग्य के धोखे सहने पड़ते हैं।

6 पंचम भाव का स्वामी तथा नवमेश यदि नीच के होकर छठे भाव में हो तो शत्रुओं द्वारा बाधा आती है।

7 पंचम भाव पर राहु, केतु तथा सूर्य का प्रभाव हो लग्नेश छठे भाव में हो पितृदोष के कारण भाग्य में बाधा आती है।

8 मकर राशि का गुरु पंचम भाव में यदि हो तो भाग्य के धक्के सहने पड़ते हैं।

9 पंचमेश यदि 12वें भाव में मीन राशि के बुध के साथ हो भाग्य में बाधा आती है।

10 पंचम या नवम भाव में सूर्य उच्च के शनि के साथ हो तो भाग्य में बाधा देखी जाती है।

11 नवम भाव में यदि राहु के साथ नवमेश हो तो भाग्य बन जाता है।

12 नवम भाव में सूर्य के साथ शुक्र यदि शनि द्वारा देखा जाता हो। तो भाग्य साथ नहीं देता।

13 नवमेश यदि 12वें या 8 वें भाव में पाप ग्रह द्वारा देखा जाता हो, तो भाग्य साथ नही देता।

14 नवम भाव का स्वामी 8वें भाव में राहु के साथ स्थित हो तो पग-पग पर ठोकरे खानी पड़ती है।

15 नवमेश यदि द्वितीय भाव में राहु-केतु के साथ, शनि द्वारा देखा जाता है, तो व्यक्ति का भाग्य बंध जाता है।

16 नवमेश यदि द्वादश भाव में षष्ठेश के साथ स्थित होकर पाप ग्रहों द्वारा देखा जाता हो, तो बीमारी कर्जा व रोग के कारण कष्ट उठाने पड़ते है।

17 नीच का गुरु नवमेश के साथ अष्टम भाव में राहु, केतु द्वारा दृष्ट हो तो गुरु छठे, 8वें, 12वें राहु शनि द्वारा देखा जाता हो तो भाग्य साथ नहीं देता।

18 नीचे का गुरु छठे, 8वें, और 12वें राहु शनि द्वारा देखा जाता हो तो भाग्य साथ नहीं देता।


भाग्य बाधा निवारण के उपाय

सूर्य गुरु लग्नेश व भाग्येश के शुभ उपाय करने से भाग्य संबंधी बाधाएं दूर हो जाती है।

1 गायत्री मंत्र का जाप करके भगवान सूर्य को जल दें।

2 प्रात:काल उठकर माता-पिता के चरण छूकर आशीर्वाद लें।

3 अपने ज्ञान, सामर्थ और पद प्रतिष्ठा का कभी भी अहंकार न करें।

4 किसी भी निर्बल व असहाय व्यक्ति की बददुआ न ले।

5वद्धाश्रम और कमजोर वर्ग की यदाशक्ति तन, मन और धन से मदद करें।

6 सप्ताह में एक दिन मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारा जाकर ईश्वर से शुभ मंगल की प्रार्थना करें। मंदिर निर्माण में लोहा, सीमेंट, सरिया इत्यादि का दान देकर मंदिर निर्माण में मदद करें।

7 पांच सोमवार रुद्र अभिषेक का पाठ करने से भाग्य संबंधी अवरोध दूर होते है।

8 ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’।

इस द्वादश अक्षर मंत्र का जाप 108 बार रोज करने से बंधा हुआ भाग्य खुलने लगता है।

भाव संज्ञा

1.प्रथम भाव :यह लग्न भी कहलाता है। इस स्थान से व्यक्ति की शरीर यष्टि, वात-पित्त-कफ प्रकृति, त्वचा का रंग, यश-अपयश, पूर्वज, सुख-दुख, आत्मविश्वास, अहंकार, मानसिकता आदि को जाना जाता है।

2.द्वितीय भाव :इसे धन भाव भी कहते हैं। इससे व्यक्ति की आर्थिक स्थिति, परिवार का सुख, घर की स्थिति, दाईं आँख, वाणी, जीभ, खाना-पीना, प्रारंभिक शिक्षा, संपत्ति आदि के बारे में जाना जाता है।
 3.तृतीय भाव :इसे पराक्रम का सहज भाव भी कहते हैं। इससे जातक के बल, छोटे भाई-बहन, नौकर-चाकर, पराक्रम, धैर्य, कंठ-फेफड़े, श्रवण स्थान, कंधे-हाथ आदि का विचार किया जाता है।

4.चतुर्थ स्थान :इसे मातृ स्थान भी कहते हैं। इससे मातृसुख, गृह सौख्‍य, वाहन सौख्‍य, बाग-बगीचा, जमीन-जायदाद, मित्र छाती पेट के रोग, मानसिक स्थिति आदि का विचार किया जाता ह।
5.पंचम भाव :इसे सुत भाव भी कहते हैं। इससे संतति, बच्चों से मिलने वाला सुख, विद्या बुद्धि, उच्च शिक्षा, विनय-देशभक्ति, पाचन शक्ति, कला, रहस्य शास्त्रों की रुचि, अचानक धन-लाभ, प्रेम संबंधों में यश, नौकरी परिवर्तन आदि का विचार किया जाता है।

6.छठा भाव :इसे शत्रु या रोग स्थान भी कहते हैं। इससे जातक के श‍त्रु, रोग, भय, तनाव, कलह, मुकदमे, मामा-मौसी का सुख, नौकर-चाकर, जननांगों के रोग आदि का विचार किया जाता है।
7,सातवाँ भाव :विवाह सौख्य, शैय्या सुख, जीवनसाथी का स्वभाव, व्यापार, पार्टनरशिप, दूर के प्रवास योग, कोर्ट कचहरी प्रकरण में यश-अपयश आदि का ज्ञान इस भाव से होता है। इसे विवाह स्थान कहते हैं।

8आठवाँ भाव :इस भाव को मृत्यु स्थान कहते हैं। इससे आयु निर्धारण, दु:ख, आर्थिक स्थिति, मानसिक क्लेश, जननांगों के विकार, अचानक आने वाले संकटों का पता चलता है।

9,नवाँ भाव :इसे भाग्य स्थान कहते हैं। यह भाव आध्यात्मिक प्रगति, भाग्योदय, बुद्धिमत्ता, गुरु, परदेश गमन, ग्रंथपुस्तक लेखन, तीर्थ यात्रा, भाई की पत्नी, दूसरा विवाह आदि के बारे में बताता है।

10,दसवाँ भाव :इसे कर्म स्थान कहते हैं। इससे पद-प्रतिष्ठा, बॉस, सामाजिक सम्मान, कार्य क्षमता, पितृ सुख, नौकरी व्यवसाय, शासन से लाभ, घुटनों का दर्द, सासू माँ आदि के बारे में पता चलता है।

11,ग्यारहवाँ भाव :इसे लाभ भाव कहते हैं। इससे मित्र, बहू-जँवाई, भेंट-उपहार, लाभ, आय के तरीके, पिंडली के बारे में जाना जाता है।

12,बारहवाँ भाव :इसे व्यय स्थान भी कहते हैं। इससे कर्ज, नुकसान, परदेश गमन, संन्यास, अनैतिक आचरण, व्यसन, गुप्त शत्रु, शैय्या सुख, आत्महत्या, जेल यात्रा, मुकदमेबाजी का विचार किया जाता है।

लघु पाराशरी सिद्धांत – सभी 42 सूत्र

ज्‍योतिष की एक नहीं बल्कि कई धाराएं साथ साथ चलती रही हैं। वर्तमान में दशा गणना की जिन पद्धतियों का हम इस्‍तेमाल करते हैं, उनमें सर्वाधिक प्रयुक्‍त होने वाली विधि पाराशर पद्धति है। सही कहें तो पारशर की विंशोत्‍तरी दशा के इतर कोई दूसरा दशा सिस्‍टम दिखाई भी नहीं देता है। महर्षि पाराशर के फलित ज्‍योतिष संबंधी सिद्धांत लघु पाराशरी  में मिलते हैं। इनमें कुल जमा 42 सूत्र हैं।

1. यह श्रुतियों का सिद्धांत है जिसमें में प्रजापति के शुद्ध अंत:करण, बिम्‍बफल के समान लाल अधर वाले और वीणा धारण करने वाले तेज, जिसकी अराधना करता हूं, को समर्पित करता हूं।

2. मैं महर्षि पाराशर के होराशास्‍त्र को अपनी मति के अनुसार विचारकर ज्‍योतिषियों के आनन्‍द के लिए नक्षत्रों के फलों को सूचित करने वाले उडूदायप्रदीप ग्रंथ का संपादन करता हूं।

3. हम इसमें नक्षत्रों की दशा के अनुसार ही शुभ अशुभ फल कहते हैं। इस ग्रंथ के अनुसार फल कहने में विशोंतरी दशा ही ग्रहण करनी चाहिए। अष्‍टोतरी दशा यहां ग्राह्य नहीं है।

4. सामान्‍य ग्रंथों पर से भाव, राशि इत्‍यादि की जानकारी ज्‍योति शास्‍त्रों से जानना चाहिए। इस ग्रंथ में जो विरोध संज्ञा है वह शास्‍त्र के अनुरोध से कहते हैं।

5. सभी ग्रह जिस स्‍थान पर बैठे हों, उससे सातवें स्‍थान को देखते हैं। शनि तीसरे व दसवें, गुरु नवम व पंचम तथा मंगल चतुर्थ व अष्‍टम स्‍थान को विशेष देखते हैं।

6. (अ) कोई भी ग्रह त्रिकोण का स्‍वामी होने पर शुभ फलदायक होता है। (लग्‍न, पंचम और नवम भाव को त्रिकोण कहते हैं) तथा त्रिषडाय का स्‍वामी हो तो पाप फलदायक होता है (तीसरे, छठे और ग्‍यारहवें भाव को त्रिषडाय कहते हैं।)

6. (ब) अ वाली स्थिति के बावजूद त्रिषडाय के स्‍वामी अगर त्रिकोण के भी स्‍वामी हो तो अशुभ फल ही आते हैं। (मेरा नोट: त्रिषडाय के अधिपति स्‍वराशि के होने पर पाप फल नहीं देते हैं- काटवे।)

7. सौम्‍य ग्रह (बुध, गुरु, शुक्र और पूर्ण चंद्र) यदि केन्‍द्रों के स्‍वामी हो तो शुभ फल नहीं देते हैं। क्रूर ग्रह (रवि, शनि, मंगल, क्षीण चंद्र और पापग्रस्‍त बुध) यदि केन्‍द्र के अधिपति हों तो वे अशुभ फल नहीं देते हैं। ये अधिपति भी उत्‍तरोतर क्रम में बली हैं। (यानी चतुर्थ भाव से सातवां भाव अधिक बली, तीसरे भाव से छठा भाव अधिक बली)

8. लग्‍न से दूसरे अथवा बारहवें भाव के स्‍वामी दूसरे ग्रहों के सहचर्य से शुभ अथवा अशुभ फल देने में सक्षम होते हैं। इसी प्रकार अगर वे स्‍व स्‍थान पर होने के बजाय अन्‍य भावों में हो तो उस भाव के अनुसार फल देते हैं। (मेरा नोट: इन भावों के अधिपतियों का खुद का कोई आत्‍मनिर्भर रिजल्‍ट नहीं होता है।)

9. अष्‍टम स्‍थान भाग्‍य भाव का व्‍यय स्‍थान है (सरल शब्‍दों में आठवां भाव नौंवे भाव से बारहवें स्‍थान पर पड़ता है), अत: शुभफलदायी नहीं होता है। यदि लग्‍नेश भी हो तभी शुभ फल देता है (यह स्थिति केवल मेष और तुला लग्‍न में आती है)।

10. शुभ ग्रहों के केन्‍द्राधिपति होने के दोष गुरु और शुक्र के संबंध में विशेष हैं। ये ग्रह केन्‍द्राधिपति होकर मारक स्‍थान (दूसरे और सातवें भाव) में हों या इनके अधिपति हो तो बलवान मारक बनते हैं।

11. केन्‍द्राधिपति दोष शुक्र की तुलना में बुध का कम और बुध की तुलना में चंद्र का कम होता है। इसी प्रकार सूर्य और चंद्रमा को अष्‍टमेष होने का दोष नहीं लगता है।

12. मंगल दशम भाव का स्‍वामी हो तो शुभ फल देता है। किंतु यही त्रिकोण का स्‍वामी भी हो तभी शुभफलदायी होगा। केवल दशमेष होने से नहीं देगा। (यह स्थिति केवल कर्क लग्‍न में ही बनती है)

13. राहू और केतू जिन जिन भावों में बैठते हैं, अथवा जिन जिन भावों के अधिपतियों के साथ बैठते हैं तब उन भावों अथवा साथ बैठे भाव अधिपतियों के द्वारा मिलने वाले फल ही देंगे। (यानी राहू और केतू जिस भाव और राशि में होंगे अथवा जिस ग्रह के साथ होंगे, उसके फल देंगे।)। फल भी भावों और अधिपतियो के मु‍ताबिक होगा।

14. ऐसे केन्‍द्राधिपति और त्रिकोणाधिपति जिनकी अपनी दूसरी राशि भी केन्‍द्र और त्रिकोण को छोड़कर अन्‍य स्‍थानों में नहीं पड़ती हो, तो ऐसे ग्रहों के संबंध विशेष योगफल देने वाले होते हैं।

15. बलवान त्रिकोण और केन्‍द्र के अधिपति खुद दोषयुक्‍त हों, लेकिन आपस में संबंध बनाते हैं तो ऐसा संबंध योगकारक होता है।

16. धर्म और कर्म स्‍थान के स्‍वामी अपने अपने स्‍थानों पर हों अथवा दोनों एक दूसरे के स्‍थानों पर हों तो वे योगकारक होते हैं। यहां कर्म स्‍थान दसवां भाव है और धर्म स्‍थान नवम भाव है। दोनों के अधिपतियों का संबंध योगकारक बताया गया है।

17. नवम और पंचम स्‍थान के अधिपतियों के साथ बलवान केन्‍द्राधिपति का संबंध शुभफलदायक होता है। इसे राजयोग कारक भी बताया गया है।

18. योगकारक ग्रहों (यानी केन्‍द्र और त्रिकोण के अधिपतियों) की दशा में बहुधा राजयोग की प्राप्ति होती है। योगकारक संबंध रहित ऐसे शुभ ग्रहों की दशा में भी राजयोग का फल मिलता है।

19. योगकारक ग्रहों से संबंध करने वाला पापी ग्रह अपनी दशा में तथा योगकारक ग्रहों की अंतरदशा में जिस प्रमाण में उसका स्‍वयं का बल है, तदअनुसार वह योगज फल देगा। (यानी पापी ग्रह भी एक कोण से राजयोग में कारकत्‍व की भूमिका निभा सकता है।)

20. यदि एक ही ग्रह केन्‍द्र व त्रिकोण दोनों का स्‍वामी हो तो योगकारक होता ही है। उसका यदि दूसरे त्रिकोण से संबंध हो जाए तो उससे बड़ा शुभ योग क्‍या हो सकता है ?

21. राहू अथवा केतू यदि केन्‍द्र या त्रिकोण में बैइे हों और उनका किसी केन्‍द्र अथवा त्रिकोणाधिपति से संबंध हो तो वह योगकारक होता है।

22. धर्म और कर्म भाव के अधिपति यानी नवमेश और दशमेश यदि क्रमश: अष्‍टमेश और लाभेश हों तो इनका संबंध योगकारक नहीं बन सकता है। (उदाहरण के तौर पर मिथुन लग्‍न)। इस स्थिति को राजयोग भंग भी मान सकते हैं।

23. जन्‍म स्‍थान से अष्‍टम स्‍थान को आयु स्‍थान कहते हैं। और इस आठवें स्‍थान से आठवां स्‍थान आयु की आयु है अर्थात लग्‍न से तीसरा भाव। दूसरा भाव आयु का व्‍यय स्‍थान कहलाता है। अत: द्वितीय एवं सप्‍तम भाव मारक स्‍थान माने गए हैं।

24. द्वितीय एवं सप्‍तम मारक स्‍थानों में द्वितीय स्‍थान सप्‍तम की तुलना में अधिक मारक होता है। इन स्‍थानों पर पाप ग्रह हों और मारकेश के साथ युक्ति कर रहे हों तो उनकी दशाओं में जातक की मृत्‍यु होती है।

25. यदि उनकी दशाओं में मृत्‍यु की आशंका न हो तो सप्‍तमेश और द्वितीयेश की दशाओं में मृत्‍यु होती है।

26. मारक ग्रहों की दशाओं में मृत्‍यु न होती हो तो कुण्‍डली में जो पापग्रह बलवान हो उसकी दशा में मृत्‍यु होती है। व्‍ययाधिपति की दशा में मृत्‍यु न हो तो व्‍ययाधिपति से संबंध करने वाले पापग्रहों की दशा में मरण योग बनेगा। व्‍ययाधिपति का संबंध पापग्रहों से न हो तो व्‍ययाधिपति से संबंधित शुभ ग्रहों की दशा में मृत्‍यु का योग बताना चाहिए। ऐसा समझना चाहिए। व्‍ययाधिपति का संबंध शुभ ग्रहों से भी न हो तो जन्‍म लग्‍न से अष्‍टम स्‍थान के अधिपति की दशा में मरण होता है। अन्‍यथा तृतीयेश की दशा में मृत्‍यु होगी। (मारक स्‍थानाधिपति से संबंधित शुभ ग्रहों को भी मारकत्‍व का गुण प्राप्‍त होता है।)

27. मारक ग्रहों की दशा में मृत्‍यु न आवे तो कुण्‍डली में जो बलवान पापग्रह हैं उनकी दशा में मृत्‍यु की आशंका होती है। ऐसा विद्वानों को मारक कल्पित करना चाहिए।

28. पापफल देने वाला शनि जब मारक ग्रहों से संबंध करता है तब पूर्ण मारकेशों को अतिक्रमण कर नि:संदेह मारक फल देता है। इसमें संशय नहीं है।

29. सभी ग्रह अपनी अपनी दशा और अंतरदशा में अपने भाव के अनुरूप शुभ अथवा अशुभ फल प्रदान करते हैं। (सभी ग्रह अपनी महादशा की अपनी ही अंतरदशा में शुभफल प्रदान नहीं करते हैं – लेखक)

30. दशानाथ जिन ग्रहों के साथ संबंध करता हो और जो ग्रह दशानाथ सरीखा समान धर्मा हो, वैसा ही फल देने वाला हो तो उसकी अंतरदशा में दशानाथ स्‍वयं की दशा का फल देता है।

31. दशानाथ के संबंध रहित तथा विरुद्ध फल देने वाले ग्रहों की अंतरदशा में दशाधिपति और अंतरदशाधिपति दोनों के अनुसार दशाफल कल्‍पना करके समझना चाहिए। (विरुद्ध व संबंध रहित ग्रहों का फल अंतरदशा में समझना अधिक महत्‍वपूर्ण है – लेखक)

32. केन्‍द्र का स्‍वामी अपनी दशा में संबंध रखने वाले त्रिकोणेश की अंतरदशा में शुभफल प्रदान करता है। त्रिकोणेश भी अपनी दशा में केन्‍द्रेश के साथ यदि संबंध बनाए तो अपनी अंतरदशा में शुभफल प्रदान करता है। यदि दोनों का परस्‍पर संबंध न हो तो दोनों अशुभ फल देते हैं।

33. यदि मारक ग्रहों की अंतरदशा में राजयोग आरंभ हो तो वह अंतरदशा मनुष्‍य को उत्‍तरोतर राज्‍याधिकार से केवल प्रसिद्ध कर देती है। पूर्ण सुख नहीं दे पाती है।

34. अगर राजयोग करने वाले ग्रहों के संबंधी शुभग्रहों की अंतरदशा में राजयोग का आरंभ होवे तो राज्‍य से सुख और प्रतिष्‍ठा बढ़ती है। राजयोग करने वाले से संबंध न करने वाले शुभग्रहों की दशा प्रारंभ हो तो फल सम होते हैं। फलों में अधिकता या न्‍यूनता नहीं दिखाई देगी। जैसा है वैसा ही बना रहेगा।

35. योगकारक ग्रहों के साथ संबंध करने वाले शुभग्रहों की महादशा के योगकारक ग्रहों की अंतरदशा में योगकारक ग्रह योग का शुभफल क्‍वचित देते हैं।

36. राहू केतू यदि केन्‍द्र (विशेषकर चतुर्थ और दशम स्‍थान में) अथवा त्रिकोण में स्थित होकर किसी भी ग्रह के साथ संबंध नहीं करते हों तो उनकी महादशा में योगकारक ग्रहों की अंतरदशा में उन ग्रहों के अनुसार शुभयोगकारक फल देते हैं। (यानी शुभारुढ़ राहू केतू शुभ संबंध की अपेक्षा नहीं रखते। बस वे पाप संबंधी नहीं होने चाहिए तभी कहे हुए अनुसार फलदायक होते हैं।) राजयोग रहित शुभग्रहों की अंतरदशा में शुभफल होगा, ऐसा समझना चाहिए।

37-38. यदि महादशा के स्‍वामी पापफलप्रद ग्रह हों तो उनके असंबंधी शुभग्रह की अंतरदशा पापफल ही देती है। उन महादशा के स्‍वामी पापी ग्रहों के संबंधी शुभग्रह की अंतरदशा मिश्रित (शुभ एवं अशुभ) फल देती है। पापी दशाधिप से असंबंधी योगकारक ग्रहों की अंतरदशा अत्‍यंत पापफल देने वाली होती है।

39. मारक ग्रहों की महादशा में उनके साथ संबंध करने वाले शुभग्रहों की अंतरदशा में दशानाथ मारक नहीं बनता है। परन्‍तु उसके साथ संबंध रहित पापग्रह अंतरदशा में मारक बनते हैं।

40. शुक्र और शनि अपनी अपनी महादशा में अपनी अपनी अंतरदशा में अपने अपने शुभ फल देते हैं। यानी शनि महादशा में शुक्र की अंतरदशा हो तो शनि के फल मिलेंगे। शुक्र की महादशा में शनि के अंतर में शुक्र के फल मिलेंगे। इस फल के लिए दोनों ग्रहों के आपसी संबंध की अपेक्षा भी नहीं करनी चाहिए।

41. दशम स्‍थान का स्‍वामी लग्‍न में और लग्‍न का स्‍वामी दशम में, ऐसा योग हो तो वह राजयोग समझना चाहिए। इस योग पर विख्‍यात और विजयी ऐसा मनुष्‍य होता है।

42. नवम स्‍थान का स्‍वामी दशम में और दशम स्‍थान का स्‍वामी नवम में हो तो ऐसा योग राजयोग होता है। इस योग पर विख्‍यात और विजयी पुरुष होता है।

ग्रहों की नाराजगी इस प्रकार दूर करें

1-सूर्य-(The Sun) भूल कर भी झूठ न
बोलें,सूर्य का गुस्सा कम हो जाएगा .झूठ क्या है ?झूठ वो है
जो अस्तित्व में नहीं है और यदि हम झूठ बोलेंगे
तो सूर्य को उसका अस्तित्व(Existence)
पैदा करना पडेगा (आश्चर्य की कोई बात
नहीं है -ये नौ ग्रह हमारे जीवन के
लिए ही अस्तित्व (existence)में आये हैं )सूर्य
का काम बढ़ जाएगा और मुश्किल भी हो जाएगा .
2-चंद्रमा (The Moon)-- जितना ज्यादा हो सके सफाई पसंद
हो जाईये ,और साफ़ रहिये भी -
चंद्रमा का गुस्सा कम हो जाएगा .
चंद्रमा को सबसे ज्यादा डर राहू से लगता है .राहू अदृश्य
ग्रह है ,राहू क्रूर
है .हमारी रोजमर्रा की ज़िंदगी में
राहू गंदगी है .हम हमारे घर को, आसपास के
वातावरण को कितना भी साफ़ करें -उसमें ढूँढने जायेंगे
तो गंदगी मिल
ही जायेगी ,या हम हमारे घर और
आस पास के वातावरण को कितना भी साफ़ रखें
वो गंदा हो ही जाएगा और हम सब जानते हैं
कि गंदगी कितनी खतरनाक
हो सकती है और होती है --
ज़िंदगी के लिए ,न जाने कितने बेक्टीरिया ,
वायरस ,जो अदृश्य होते हुए
भी हमारी ज़िंदगी को भयभीत
कर देते हैं ,बीमार
करके ,ज़िंदगी को खत्म तक कर देते
हैं ,चंद्रमा (जो सबके मन को आकर्षित करता है स्वय राहू के
मन को भी) राहू से डरता है .अतः यदि आप साफ़
रहेंगे तो चंद्रमा को अच्छा लगेगा और उसका क्रोध शांत रहेगा .
चंद्रमा का गुस्सा उतना ही कम हो जाएगा .
3-मंगल(Mars)-यह ग्रह सूर्य
का सेनापती ग्रह है भोजन में गुड है .सूर्य गेंहू
है रविवार को गेहूं के आटे का चूरमा गुड डालकर बनाकर खाएं
खिलाये ,मंगल को बहुत अच्छा लगेगा .सूर्य गेहूं है -मंगल गुड
है और घी चंद्रमा है ,अब तीनो प्रिय
मित्र हैं तो तीन मित्र मिलकर जब खुश होंगे
तो गुस्सा किसे याद रहेगा .
4-बुध (Mercury)-बुध ग्रह यदि आपकी जन्म
पत्रिका में क्रोधित है तो बस तुरंत मना लीजिये --
गाय को हरी घास खिलाकर -
धरती और गाय दोनों शुक्र (Venus)ग्रह
का प्रतिनिधित्व करती है .
हरी घास है जो बुध ग्रह का प्रतिनिधित्व
करती है -बुध ग्रह का रंग हरा है ,वो बच्चा है
नौ ग्रहों में शारीरिक रूप से सबसे कमजोर और
बौद्धिक रूप में सबसे आगे आगे .
घास है जो पृथ्वी के अन्य पेड़ पौधों के मुकाबले
कमजोर है बिलकुल बुध ग्रह की तरह , घास
भी शारीरिक रूप से बलवान
नहीं होती है मगर ताकत देने में कम
नहीं अतः बुध स्वरूप
ही है .हरी हरी घास से
सजी धरती कितनी सुंदर
और खुश दिखती है -घास =बुध और
धरती = शुक्र
इसी तरह गाय हरी -
हरी घास खा कर कितनी खुश
होती है
इसलिए - हरी- हरी घास =बुध ग्रह
और गाय (और धरती )= शुक्र
इसलिए गाय को हरी हरी घास खिलाएंगे
तो दो बहुत अच्छे दोस्तों को मिला रहे होंगे -
ऐसी हंसी खुशी के
वातावरण में हर कोई गुस्सा थूक देता है और बुध ग्रह
भी अपना क्रोध शांत कर लेंगे .
5-बृहस्पति (Jupiter)-चने की दाल parrots
को खिलादे .बृहस्पति कभी गुस्सा नहीं करेंगे.
चने की दाल पीले रंग
की होती है और
बृहस्पति भी पीले रंग के हैं .
बृहस्पति का भी घनत्व सौरमंडल में ज्यादा है और
चने की दाल
भी हलकी फुल्की नहीं होती पचाने
में हमारी आँतों को ज्यादा मेहनत
करनी पड़ती है .
तोता हरे रंग का होता है .बुध ग्रह भी हरे रंग
का होता है .
तोता भी दिन भर बोलता रहता है और बुध ग्रह
भी बच्चा होना के कारण बोलना पसंद करता है .
अतः तोता =बुध ग्रह
और चने की दाल = बृहस्पति ग्रह
बुध ग्रह बृहस्पति के जायज पुत्र और चंद्रमा के नाजायज
पुत्र है.
बुध के पिता बृहस्पति हैं और बृहस्पति के चंद्रमा अच्छे मित्र
हैं और बृहस्पति की पत्नी तारा ने
चंद्रमा से नाजायज शारीरिक सम्बन्ध बनाकर बुध
ग्रह को जन्म दिया था इस बात से
बृहस्पति अपनी पत्नी तारा से नाराज़
रहते है और बुध की माँ से नाराज़ रहने के कारण
अपने जायज पिता बृहस्पति से बुध ग्रह नाराज़ रहता है .इस
बात से बृहस्पति दुखी रहता है अतः जब
तोता जो बुध स्वरूप है जब चने की दाल खाकर पेट
भरेगा और खुश
होगा तो बृहस्पति को खुशी मिलेगी और
गुस्सा तो अपने आप कम हो जाएगा .
6-शुक्र(Venus) - यदि नाराज़ हो तो गाय
को रोटी खिलाओ .
सूर्य गेहूं है
और शुक्र गाय .
किस बलवान व्यक्ति को उसके खुद के अलावा कोई और
राजा हो तो अच्छा लगता है !
शुक्र को भी सूर्य के अधीन
रहना पसंद नहीं है अतः जब आप उसके शत्रु
सूर्य जो गेहूं को गाय जो शुक्र है को खिलाएंगे तो वो अपने आप
ही गुस्सा भूल जाएगा .
7-शनि(Saturn) -जिस किसी से
भी नाराज़
हो तो उसकी पीड़ा तो बस वो खुद
ही जानता है .
शनि समानतावादी है .The planet Saturn is
one and only real democrat in our Solar
System.He does not like Monarchy.
ये बड़ा है और ये छोटा है ऐसी बातें शनि को क्रोधित
कर देती है
क्योंकि शनि सूर्य (राजा ) का पुत्र है और उसके पिता सूर्य ने
उसकी माँ का सम्मान नहीं किया इसलिए
शनि को अपनी माँ छाया से प्यार होने के कारण सूर्य
पर बहुत गुस्सा आता है --किसी का बड़े होने
का अहंकार ज़रा भी नहीं भाता है .
अतः जो सर्वहारा वर्ग (मेहनतकश लोग )है उसको खुश
रखो तो शनि खुद ही खुश हो जाएगा .आपको उन्हें
दान नहीं देना है क्योंकि शनि श्रम
का पुजारी है .शनि ईमानदार है और मेहनतकश लोग
भी दान लेने के बजाय मेहनत कर के खुश रहते
हैं अतः किसी मेहनतकश की मेहनत
का तन ,मन और धन से उचित सम्मान करने से शनि खुश
हो जाता है और खुश हो जाएगा तो गुस्सा तो कम
हो ही जाएगा .
8-राहू -राहू के दिए दुःख गैबी होते हैं
(जिनका कारण समझ में ना आये ).
राहू स्वय अदृश्य रहता है .(अतः उसके दिए
दुखों को समझना भी मुश्किल है ).राहू एक
हिस्सा उसके शरीर का ऊपरी भाग
वो स्वय है और उसके नीचे का हिस्सा केतु है .
(समुद्र मंथन के समय छल से देवताओं का रूप धर अमृत
पीने जब वो आया तो विष्णु ने उसे पहचान लिया और
अपने सुदर्शन चक्र से उसके दो टुकड़े कर दिए (एक बूँद
अमृत उसके शरीर में
जा चुका था अतः उसकी मृत्यु
नहीं हुयी )ऊपर का हिस्सा राहू
कहलाया और नीचे का हिस्सा केतु )

शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

कैसे बचें कारावास योग से..?

यदि समय रहते आपको कारावास सम्बन्धी योग पता चलते हैं या इस तरह की स्थिति आपके सामने आती है, तो रेमेडियल एस्ट्रोलॉजी की सहायता से आप इस योग को समाप्त या उसकी तीव्रता को कम कर सकते हैं| इस प्रकार के योगों से बचने के लिए निम्नलिखित उपायों का सहारा लेना चाहिए :
1. सर्वप्रथम यह पता करें कि किन ग्रहों के कारण यह योग निर्मित हो रहा है| फिर उस ग्रह की शान्ति हेतु उसके चतुर्गुणित जप करवाएँ, हवन करें, निश्‍चित संख्या में उससे सम्बन्धित वार के व्रत करें और तदनुसार सम्बन्धित वस्तुओं का दान करें|
2. शुभ मुहूर्त में भगवान् शिव के नर्मदेश्‍वर शिवलिंग पर सात सोमवार तक सहस्रघट करवाएँ|
3. अपनी आयु वर्षों के चतुर्गुणित संख्या में किलोग्राम ज्वार लें और जिस ग्रह के कारण यह योग बन रहा हो, उस ग्रह के वार को या शनिवार को प्रारम्भ कर ज्वार एक-एक मुट्ठी डालते हुए कबूतरों को खिलाएँ|
4. यदि आपने वास्तव में अपराध किया है, तो यह निश्‍चित है कि आपको उसकी सजा मिलेगी, इतना अवश्य है कि उपाय करने से या प्रायश्‍चित से वह सजा कम हो जाएगी| जिस व्यक्ति के प्रति आपने अपराध किया है, उससे क्षमा मॉंगें| इसके अतिरिक्त शनिवार से प्रारम्भ कर किसी शिव मन्दिर में जाएँ और भगवान् के समक्ष अपने सारे अपराध स्वीकार करें| यह ध्यान रखें कि मन्दिर आपके घर के पास में नहीं हो, थोड़ा दूर हो और वहॉं आप नंगे पैर ही जाएँ|
5. शनिवार से प्रारम्भ कर चालीस दिनों तक मूँगा के हनूमान् जी की मूर्ति के समक्ष हनूमान् चालीसा के प्रतिदिन 100 पाठ करें या करवाएँ| पाठ से पूर्व संक्षेप में हनूमान् जी की पूजा भी करें|
6. शुभ मुहूर्त में प्रारम्भ कर ११ पण्डितों से ‘बन्दीमोचन स्तोत्र’ के 3100 पाठ करवाएँ|
7. जेल योग दूर करने के लिए यह टोटका अत्यन्त प्रसिद्ध और अनुभूत है| इसके अन्तर्गत अपनी जान-पहचान से या अन्य किसी की सहायता से एक दिन के लिए जेल जाएँ, वहॉं का भोजन करें और रात्रिकाल में वहीं शयन करें| इस उपाय से जेलयोग पूरा भी हो जाएगा और टल भी जाएगा|

रावण संहिता के प्राचीन तांत्रिक उपाय

रावण संहिता (Ravan Sanhita) के प्राचीन तांत्रिक उपाय, जो चमका सकते है आपकी किस्मत

रावण एक असुर था, लेकिन वह सभी शास्त्रों का जानकार और प्रकाण्ड विद्वान भी था। रावण ने ज्योतिष और तंत्र शास्त्र संबंधी ज्ञान के लिए रावण संहिता की रचना की थी।

रावण संहिता में ज्योतिष और तंत्र शास्त्र के माध्यम से भविष्य को जानने के कई रहस्य बताए गए हैं। इस संहिता में बुरे समय को अच्छे समय में बदलने के लिए भी चमत्कारी तांत्रिक उपाय बताए हैं। जो भी व्यक्ति इन तांत्रिक उपायों को अपनाता है उसकी किस्मत बदलने में अधिक समय नहीं लगता है।

1. धन प्राप्ति के लिए उपाय – किसी भी शुभ मुहूर्त में या किसी शुभ दिन सुबह जल्दी उठें। इसके बाद नित्यकर्मों से निवृत्त होकर किसी पवित्र नदी या जलाशय के किनारे जाएं। किसी शांत एवं एकांत स्थान पर वट वृक्ष के नीचे चमड़े का आसन बिछाएं। आसन पर बैठकर धन प्राप्ति मंत्र का जप करें।

धन प्राप्ति का मंत्र: ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं नम: ध्व: ध्व: स्वाहा।

इस मंत्र का जप आपको 21 दिनों तक करना चाहिए। मंत्र जप के लिए रुद्राक्ष की माला का उपयोग करें। 21 दिनों में अधिक से अधिक संख्या में मंत्र जप करें।

जैसे ही यह मंत्र सिद्ध हो जाएगा आपके लिए धन प्राप्ति के योग बनेंगे।

2.यदि किसी व्यक्ति को धन प्राप्त करने में बार-बार रुकावटें आ रही हों तो उसे यह उपाय करना चाहिए।
यह उपाय 40 दिनों तक किया जाना चाहिए। इसे अपने घर पर ही किया जा सकता है। उपाय के अनुसार धन प्राप्ति मंत्र का जप करना है। प्रतिदिन 108 बार।

मंत्र: ऊँ सरस्वती ईश्वरी भगवती माता क्रां क्लीं, श्रीं श्रीं मम धनं देहि फट् स्वाहा।
इस मंत्र का जप नियमित रूप से करने पर कुछ ही दिनों महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो जाएगी और आपके धन में आ रही रुकावटें दूर होने लगेंगी।

महालक्ष्मी की कृपा तुरंत प्राप्त करने के लिए यह तांत्रिक उपाय करें।

3. दीपावली के लिए उपाय
किसी शुभ मुहूर्त जैसे दीपावली, अक्षय तृतीया, होली आदि की रात यह उपाय किया जाना चाहिए। दीपावली की रात में यह उपाय श्रेष्ठ फल देता है। इस उपाय के अनुसार दीपावली की रात कुमकुम या अष्टगंध से थाली पर यहां दिया गया मंत्र लिखें।

मंत्र: ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्मी, महासरस्वती ममगृहे आगच्छ-आगच्छ ह्रीं नम:।

इस मंत्र का जप भी करना चाहिए। किसी साफ एवं स्वच्छ आसन पर बैठकर रुद्राक्ष की माला या कमल गट्टे की माला के साथ मंत्र जप करें। मंत्र जप की संख्या कम से कम 108 होनी चाहिए। अधिक से अधिक इस मंत्र की आपकी श्रद्धानुसार बढ़ा सकते हैं।

इस उपाय से आपके घर में महालक्ष्मी की कृपा बरसने लगेगी।

4. यदि आप दसों दिशाओं से यानी चारों तरफ से पैसा प्राप्त करना चाहते हैं तो यह उपाय करें। यह उपाय दीपावली के दिन किया जाना चाहिए।

दीपावली की रात में विधि-विधान से महालक्ष्मी का पूजन करें। पूजन के बाद सो जाएं और सुबह जल्दी उठें।
नींद से जागने के बाद पलंग से उतरे नहीं बल्कि यहां दिए गए मंत्र का जप 108 बार करें।
मंत्र: ऊँ नमो भगवती पद्म पदमावी ऊँ ह्रीं ऊँ ऊँ पूर्वाय दक्षिणाय उत्तराय आष पूरय सर्वजन वश्य कुरु कुरु स्वाहा।
शय्या पर मंत्र जप करने के बाद दसों दिशाओं में दस-दस बार फूंक मारें। इस उपाय से साधक को चारों तरफ से पैसा प्राप्त होता है।

5. यदि आप देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर की कृपा से अकूत धन संपत्ति चाहते हैं तो यह उपाय करें।

उपाय के अनुसार आपको यहां दिए जा रहे मंत्र का जप तीन माह तक करना है। प्रतिदिन मंत्र का जप केवल 108 बार करें।

मंत्र: ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रवाणाय, धन धन्याधिपतये धन धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा।

मंत्र जप करते समय अपने पास धनलक्ष्मी कौड़ी रखें। जब तीन माह हो जाएं तो यह कौड़ी अपनी तिजोरी में या जहां आप पैसा रखते हैं वहां रखें। इस उपाय से जीवनभर आपको पैसों की कमी नहीं होगी।

6. यदि आपको ऐसा लगता है कि किसी स्थान पर धन गढ़ा हुआ है और आप वह धन प्राप्त करना चाहते हैं तो यह उपाय करें।

गड़ा धन प्राप्त करने के लिए यहां दिए गए मंत्र का जप दस हजार बार करना होगा।

मंत्र: ऊँ नमो विघ्नविनाशाय निधि दर्शन कुरु कुरु स्वाहा।

गड़े हुए धन के दर्शन करने के लिए विधि इस प्रकार है। किसी शुभ दिवस में यहां दिए गए मंत्र का जप हजारों की संख्या करें। मंत्र सिद्धि हो जाने के बाद जिस स्थान पर धन गड़ा हुआ है वहां धतुरे के बीज, हलाहल, सफेद घुघुंची, गंधक, मैनसिल, उल्लू की विष्ठा, शिरीष वृक्ष का पंचांग बराबर मात्रा में लें और सरसों के तेल में पका लें। इसके बाद इस सामग्री से गड़े धन की शंका वाले स्थान पर धूप-दीप ध्यान करें। यहां दिए गए मंत्र का जप हजारों की संख्या में करें।

ऐसा करने पर उस स्थान से सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियों का साया हट जाएगा। भूत-प्रेत का भय समाप्त हो जाएगा। साधक को भूमि में गड़ा हुआ धन दिखाई देने लगेगा।

ध्यान रखें तांत्रिक उपाय करते समय किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी का परामर्श अवश्य लें।

7. यदि आप घर या समाज या ऑफिस में लोगों को आकर्षित करना चाहते हैं तो बिल्वपत्र तथा बिजौरा नींबू लेकर उसे बकरी के दूध में मिलाकर पीस लें। इसके बाद इससे तिलक लगाएं। ऐसा करने पर व्यक्ति का आकर्षण बढ़ता है।

8. अपामार्ग के बीज को बकरी के दूध में मिलाकर पीस लें, लेप बना लें। इस लेप को लगाने से व्यक्ति का समाज में आकर्षण काफी बढ़ जाता है। सभी लोग इनके कहे को मानते हैं।

9. सफेद आंकड़े के फूल को छाया में सुखा लें। इसके बाद कपिला गाय यानी सफेद गाय के दूध में मिलाकर इसे पीस लें और इसका तिलक लगाएं। ऐसा करने पर व्यक्ति का समाज में वर्चस्व हो जाता है।

10. शास्त्रों के अनुसार दूर्वा घास चमत्कारी होती है। इसका प्रयोग कई प्रकार के उपायों में भी किया जाता है। कोई व्यक्ति सफेद दूर्वा को कपिला गाय यानी सफेद गाय के दूध के साथ पीस लें और इसका तिलक लगाएं तो वह किसी भी काम में असफल नहीं होता है।

गुरुवार, 8 फ़रवरी 2018

क्या आपकी जन्म कुंडली में हैं दुर्घटना योग

जन्म पत्रिका से भी जाना जा सकता है दुर्घटनाओं के बारे में। यदि हमें पूर्व से जानकारी हो जाए तो हम संभलकर उससे बच सकते हैं। दुर्घटना तो होना है लेकिन क्षति न पहुँच कर चोट लग सकती है।जिस प्रकार हम चिलचिलाती धूप में निकलें और हमने छाता लगा रखा हो तो धूप से राहत मिलेगी, उसी प्रकार दुर्घटना के कारणों को जानकर उपाय कर लिए जाएँ तो उससे कम क्षति होगी।

इसके लिए 6ठा और 8वाँ भाव महत्वपूर्ण माना गया है। इनमें बनने वाले अशुभ योग को ही महत्वपूर्ण माना जाएगा। किसी किसी की पत्रिका में षष्ठ भाव व अष्टमेश का स्वामी भी अशुभ ग्रहों के साथ हो तो ऐसे योग बनते हैं।

वाहन से दुर्घटना के योग के लिए शुक्र जिम्मेदार होगा। लोहा या मशीनरी से दुर्घटना के योग का जिम्मेदार शनि होगा। आग या विस्फोटक सामग्री से दुर्घटना के योग के लिए मंगल जिम्मेदार होगा। चौपायों से दुर्घटनाग्रस्त होने पर शनि प्रभावी होगा। वहीं अकस्मात दुर्घटना के लिए राहु जिम्मेदार होगा। अब दुर्घटना कहाँ होगी? इसके लिए ग्रहों के तत्व व उनका संबंध देखना होगा।

1·षष्ठ भाव में शनि शत्रु राशि या नीच का होकर केतु के साथ हो तो पशु द्वारा चोट लगती है।
2·षष्ठ भाव में मंगल हो व शनि की दृष्टि पड़े तो मशीनरी से चोट लग सकती है।
3·अष्टम भाव में मंगल शनि के साथ हो या शत्रु राशि का होकर सूर्य के साथ हो तो आग से खतरा हो सकता है।
4·चंद्रमा नीच का हो व मंगल भी साथ हो तो जल से सावधानी बरतना चाहिए।

5·केतु नीच का हो या शत्रु राशि का होकर गुरु मंगल के साथ हो तो हार्ट से संबंधित ऑपरेशन हो सकता है।
6·‍शनि-मंगल-केतु अष्टम भाव में हों तो वाहनादि से दुर्घटना के कारण चोट लगती है।
7·वायु तत्व की राशि में चंद्र राहु हो व मंगल देखता हो तो हवा में जलने से मृत्यु भय रहता है।
8·अष्टमेश के साथ द्वादश भाव में राहु होकर लग्नेश के साथ हो तो हवाई दुर्घटना की आशंका रहती है।
9·द्वादशेश चंद्र लग्न के साथ हो व द्वादश में कर्क का राहु हो तो अकस्मात मृत्यु योग देता है।
10·मंगल-शनि-केतु सप्तम भाव में हों तो उस जातक का जीवनसाथी ऑपरेशन के कारण या आत्महत्या के कारण या किसी घातक हथियार से मृत्यु हो सकती है।
11·अष्टम में मंगल-शनि वायु तत्व में हों तो जलने से मृत्यु संभव है।
12·सप्तमेश के साथ मंगल-शनि हों तो दुर्घटना के योग बनते हैं।

इस प्रकार हम अपनी पत्रिका देखकर दुर्घटना के योग को जान सकते हैं। यह घटना द्वितीयेश मारकेश की महादशा में सप्तमेश की अंतरदशा में अष्टमेश या षष्ठेश के प्रत्यंतर में घट सकती है।

उसी प्रकार सप्तमेश की दशा में द्वितीयेश के अंतर में अष्टमेश या षष्ठेश के प्रत्यंतर में हो सकती है। जिस ग्रह की मारक दशा में प्रत्यंतर हो उससे संबंधित वस्तुओं को अपने ऊपर से नौ बार विधिपूर्वक उतारकर जमीन में गाड़ दें यानी पानी में बहा दें तो दुर्घटना योग टल सकता है।

यह जानना बहुत जरूरी है कि कोई ग्रह जातक को क्या फल देगा

यह जानना बहुत जरूरी है कि कोई ग्रह जातक को क्या फल देगा। कोई ग्रह कैसा फल देगा, वह उसकी कुण्डली में स्थिति, युति एवं दृष्टि आदि पर निर्भर करता है। जो ग्रह जितना ज्यादा शुभ होगा, अपने कारकत्व को और जिस भाव में वह स्थित है, उसके कारकत्वों को उतना ही अधिक दे पाएगा। नीचे कुछ सामान्य नियम दिए जा रहे हैं, जिससे पता चलेगा कि कोई ग्रह शुभ है या अशुभ। शुभता ग्रह के बल में वृद्धि करेगी और अशुभता ग्रह के बल में कमी करेगी।

नियम 1 - जो ग्रह अपनी उच्च, अपनी या अपने मित्र ग्रह की राशि में हो - शुभ फलदायक होगा। इसके विपरीत नीच राशि में या अपने शत्रु की राशि में ग्रह अशुभफल दायक होगा।

नियम 2 - जो ग्रह अपनी राशि पर दृष्टि डालता है, वह शुभ फल देता है।

नियम 3 - जो ग्रह अपने मित्र ग्रहों के साथ या मध्य हो वह शुभ फलदायक होता है। मित्रों के मध्य होने को मलतब यह है कि उस राशि से, जहां वह ग्रह स्थित है, अगली और पिछली राशि में मित्र ग्रह स्थित हैं।

नियम 4 - जो ग्रह अपनी नीच राशि से उच्च राशि की ओर भ्रमण करे और वक्री न हो तो शुभ फल देगा।

नियम 5 - जो ग्रह लग्नेहश का मित्र हो।

नियम 6 - त्रिकोण के स्वा‍मी सदा शुभ फल देते हैं।

नियम 7 - केन्द्र का स्वामी शुभ ग्रह अपनी शुभता छोड़ देता है और अशुभ ग्रह अपनी अशुभता छोड़ देता है।

नियम 8 - क्रूर भावों (3, 6, 11) के स्वामी सदा अशुभ फल देते हैं।

नियम 9 - उपाच्य भावों (1, 3, 6, 10, 11) में ग्रह के कारकत्वत में वृद्धि होती है।

नियम 10 - दुष्ट स्थानों (6, 8, 12) में ग्रह अशुभ फल देते हैं।

नियम 11 - शुभ ग्रह केन्द्र (1, 4, 7, 10) में शुभफल देते हैं, पाप ग्रह केन्द्र में अशुभ फल देते हैं।

नियम 12 - पूर्णिमा के पास का चन्द्र शुभफलदायक और अमावस्या के पास का चंद्र अशुभफलदायक होता है।


नियम 13 - बुध, राहु और केतु जिस ग्रह के साथ होते हैं, वैसा ही फल देते हैं।


नियम 14 - सूर्य के निकट ग्रह अस्त हो जाते हैं और अशुभ फल देते हैं।

इन सभी नियम के परिणाम को मिलाकर हम जान सकते हैं कि कोई ग्रह अपना और स्थित भाव का फल दे पाएगा कि नहींय़ जैसा कि उपर बताया गया शुभ ग्रह अपने कारकत्व को देने में सक्षम होता है परन्तु अशुभ ग्रह अपने कारकत्व को नहीं दे पाता।

कुछ सरल उपाय

पलंग के नीचे इन चीजों को रखने से टल जायेगा आपका बुरा समय

हमारे ज्योतिषशास्त्र में कुछ ऐसी बातो के बारे में बताया गया है जिनको अगर आप अपने पलंग के नीचे रखते है तो इससे आपका बुरा समय दूर हो सकता है, व आपके ज़िंदगी में धन की कमी भी दूर हो सकती है। आज हम आपको कुछ ऐसी ही चीजों के बारे में बताने जा रहे है जो आपके बुरे समय को टाल सकती है,

1- अगर आपकी कुंडली में सुर्यदोष है तो अपने पलंग के नीचे एक ताम्बे के बर्तन में पानी भरकर रखे, या अपने तकिये के नीचे लाल चन्दन रखे उस उपाय को रविवार को करे और एक महीने तक करे।।   
2- कुंडली में चंद्रदोष होने पर पलंग के नीचे चांदी के बर्तन में पानी भरकर रखे या चांदी के ज्वेलरी रखे उस उपाय को सोमवार से शुरू करे और 15 दिन तक करे।।

3- मंगल के कारण आ रही परेशानियों को दूर करने के लिए पलंग के नीचे कांस के बरतन में पानी भरकर रखे या तकिये के नीचे कासे का 9 टुकड़े रखे ।। इस उपाय को मंगलवार के दिन को करें।।

4- कुंडली में गुरु दोष होने पर सभी कामो में असफलता ही हाथ लगती है, ऐस में अपनी तकिया के नीचे हल्दी की गांठो को एक कपडे में बांधकर रख व फिर सोये, ऐसा करने से कुंडली से गुरुदोष हमेशा के लिए दूर हो जायेगा इस उपाय को गुरुवार को करे।।

नाड़ी दोष एवं नाड़ी दोष परिहार

1 -वर कन्या की एक राशि हो, लेकिन जन्म नक्षत्र अलग अलग हों या जन्म नक्षत्र एक ही हों परन्तु राशियां अलग अलग हों तो नाड़ी दोष नही होता है , यदि जन्म नक्षत्र एक ही हों चरण भेद हो तो अति आवश्यकता अर्थात सगाई हो गई हो, एक दूसरे को पसंद करते हों तब इस स्थिति में विवाह किया जा सकता है।

2 -विशाखा ,अनुराधा , धनिष्ठा , रेवति , आद्रा , पूर्वभाद्रपद इन आठ नक्षत्रों मे वर कन्या का जन्म हो तो नाड़ी दोष नही रहता है।

3 – उत्तराभाद्रपद , रेवती , रोहणी , विषाखा , आद्रा , श्रवण , पुष्य, मघा , इन नक्षत्र में भी वर कन्या का जन्म नक्षत्र पड़े तो नाड़ी दोष नही रहता है।उपरोक्त मत कालिदास का है

4 – वर कन्या के राशिपति यदि बुध , गुरू , एवं शुक्र में से कोई एक या अथवा दोनों के राशि पति एक ही हों तो नाड़ी दोष नही रहता है।

5 – ज्योतिष के अनुसार नाड़ी दोष विप्र वर्ण पर प्रभावी माना जाता है।
यदि वर कन्या दोनो जन्म से विप्र हो तो उनमे नाड़ी दोष प्रभावी माना जाता है ।अन्य वर्णो पर नाड़ी दोष पूर्ण प्रभावी नही होता है।यदि विप्र वर्ण पर नाड़ी दोष प्रभावी माने तो नियम का हनन होता है । क्योकिं बृहस्पति एवं शुक्र को विप्र वर्ण का माना गया है । यदि वर कन्या के राशि पति विप्र वर्ण ग्रह हों तो इनके अनुसार नाड़ी दोष नही रहता है ।विप्र वर्ण की राशियों में भी बुध व शुक्र राशिपति बनते हैं।

6 -सप्तमेश स्वगृही होकर शुभ ग्रहों के प्रभाव में हों एवं वर कन्या के जन्म नक्षत्र चरण में भिन्नता हो तो नाड़ी दोष नही रहता है ।
इन परिहारों के अलावा कुछ प्रबल नाड़ी दोष के योग भी बनते हैं , जिनके होने पर विवाह न करना ही उचित रहता है।

यदि वर कन्या की नाड़ी एक हो एवं निम्न मे से कोई युग्म वर कन्या का जन्म नक्षत्र हो तो विवाह न करें;
अ – आदि नाड़ी -अश्विनी -ज्येष्ठा, हस्त-शतिभषा, उ फा -पू फा, अर्थात वर का नक्षत्र अश्विनी हो तो वधु का नक्षत्र ज्येष्ठा होने पर प्रबल नाड़ी दोष होगा।इस प्रकार कन्या का नक्षत्र अश्विनी हो तो वर का नक्षत्र ज्येष्ठा होने पर प्रबल नाड़ी दोष होगा। इसी प्रकार आगे के युग्मों से भी अभिप्राय समझें।
ब – मध्यनाड़ी- भरणी-अनुराधा , पूर्वा फाल्गुनी -उत्तराफाल्गुनी, पुष्य-पूर्वाष्णढ़ , मृगशिरा -चित्रा , चित्रा-धनिष्ठा, मृगशिरा-धनिष्ठा

स – अंत्य नाड़ी- कृतिका-विशाखा, रोहणी- स्वाति , मघा-रेवती ,
इस प्रकार की स्थिति में प्रबल नाड़ी दोष होने के कारण विवाह करते समय अवश्य ध्यान रखें।
सामान्य नाड़ी दोष होने पर किस प्रकार के उपाय दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाने का प्रयास कर सकते हैं।

*नाड़ी दोष के उपाय*

1 – वर एवं कन्या दोनों मध्यनाड़ी में उत्पन्न हो तो पुरूष को प्राण भय रहता है । इसी स्थिति में पुरूष को महा मृत्युंजय जाप इत्यादि अति आवश्यक है।यदि वर एवं कन्या दोनों की नाड़ी आदि या अंत हो तो स्त्री को प्राण भय की संभावना रहती है, इसलिये इस स्थिति में कन्या महामृत्युंजय अवश्य करे।

2 – नाड़ी दोष होने पर संकल्प लेकर किसी ब्राह्मण को गोदान या स्वर्णदान करना चाहिये ।

3 – अपनी सालगिरह पर अपने वजन के बराबर अन्नदान करें , एवं साथ में ब्राह्मण भोज करायें ।

4 – नाड़ी दोष के प्रभाव को दूर करने के लिये अनुकूल आहार दान करें । अर्थात आर्युवेद मतानुसार जिस दोष की अधिकतम बने उस दोष को दूर करने वाले आहार का सेवन करें ।

5 – वर एवं कन्या में से जिसे मारकेश की दशा चल रही हो उसको दशानाथ का उपाय दशाकाल तक अवश्य करना चाहिये

विशिष्ट पोस्ट

नक्षत्र स्वामी के अनुसार पीपल वृक्ष के उपाय

ज्योतिष शास्त्र अनुसार प्रत्येक ग्रह 3, 3 नक्षत्रों के स्वामी होते है. कोई भी व्यक्ति जिस भी नक्षत्र में जन्मा हो वह उसके स्वामी ग्रह से स...